Thursday, October 1, 2015

नेपाल में नया संविधान लागू

वर्ष-18, अंक-19 (01-15 अक्टूबर, 2015)
    16-17 सितम्बर 2015 की रात को नेपाल की संविधान सभा ने दो तिहाई बहुमत से नेपाल का नया संविधान पारित कर दिया। 20 सितम्बर को राष्ट्रपति के इस पर हस्ताक्षर करने के साथ ही यह संविधान लागू हो गया और संविधान सभा का अस्तित्व समाप्त हो गया और वह अगले चुनाव तक संसद में तब्दील हो गयी। यह संसद अब अपने नये अध्यक्ष, प्रधानमंत्री, सरकार को तय करेगी। 
    संविधान सभा के 598 सदस्यों में से 532 सदस्य नये संविधान पर मतदान के वक्त मौजूद थे। इनमें से 507 ने संविधान के पक्ष में मत दिया और 25 ने संविधान के विरोध में मत दिया। संविधान के पक्ष में मतदान करने वाले नेपाली कांग्रेस, नेकपा एमाले व एनेकपा(माओवादी) प्रमुख थे, विरोध में मत देने वाली राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी थी जबकि मधेसी पार्टियों के लगभग 64 सदस्य संविधान सभा का बहिष्कार कर रहे थे। 

धार्मिक आयोजनों में भगदड़ में मरते लोग: दोषी कौन?

वर्ष-18, अंक-19 (01-15 अक्टूबर, 2015)
    साऊदी अरब के मक्का में हज करने गये लोगों में एक बार फिर भगदड़ मच गयी जिसमें सैकड़ों लोग मारे गये। ईद के मौके पर मची इस भगदड़ में मृतकों का आंकड़ा एक हजार से ऊपर पहुंचने की संभावना है। इससे पहले भी मक्का में कई बार भगदड़ मचने से हजारों लोग मारे जा चुके हैं। धार्मिक आयोजनों में भारी भीड़ उमड़ने और फिर भगदड़ मचने का सिलसिला केवल मक्का तक ही सीमित नहीं है। हमारे देश भारत में भी कुंभ मेले में, दुर्गा पूजा, दशहरा मेले में या फिर मंदिरों में किसी पर्व के मौके पर, किसी बाबा के प्रवचन में भगदड़ में सैकड़ों लोग अक्सर ही मारे जाते रहे हैं।

भारतीय शासकों के ख्याली पुलाव

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बदलाव का मसला
वर्ष-18, अंक-19 (01-15 अक्टूबर, 2015)

       हीनताबोध के शिकार लेकिन भयंकर महत्वाकांक्षी भारत के पूंजीपति वर्ग को खुशफहमी पालने के लिए कोई न कोई बहाना चाहिए। कोई भी कच्चा धागा चलेगा, कम से कम कुछ दिनों के लिए। अभी ऐसा ही एक धागा उसे पिछले दिनों मिला।
    सितंबर माह में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने एक प्रस्ताव स्वीकार किया। इसके तहत अगले साल संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में अस्थाई सदस्यों की संख्या बढ़ाने के लिए चर्चा की जायेगी। यानी इस चर्चा को एजेंडे पर लिया जायेगा। बस इतने मात्र से भारत के पूंजीवादी प्रचारतंत्र ने कुछ इस तरह का प्रचार करना शुरू किया मानो भारत की सुरक्षा परिषद की सदस्यता पक्की हो गयी हो।

Wednesday, September 16, 2015

नेताओं ने किया अनुष्ठान, मजदूरों ने की हड़ताल

 2 सितम्बर को देशव्यापी हड़ताल
वर्ष-18, अंक-18 (16-30 सितम्बर, 2015)
    भाजपा नीत मोदी सरकार द्वारा श्रम कानूनों में संशोधन किये जाने के खिलाफ 10 केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा 2 सितम्बर को देशव्यापी हड़ताल की गयी। पहले इस हड़ताल के आह्वान में 11 केन्द्रीय ट्रेड यूनियनें शामिल थीं। बाद में भाजपा से जुड़ी बी.एम.एस. ने हड़ताल से अपने कदम वापस खींच लिये। इस हड़ताल में 15 करोड़ मजदूर-कर्मचारियों ने हिस्सा लिया। 
    जब देश में 2014 में आम चुनाव हुए तो चुनावों के दौरान ही यह बात स्पष्ट हो गयी थी कि मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही उसका पहला निशाना श्रम कानून होंगे। श्रम कानूनों में संशोधनों की मांग पूंजीपति वर्ग एक लम्बे समय से करता रहा है। पूंजीपति वर्ग ने इस चुनाव में बेतहाशा पैसा खर्च किया था और मोदी के चुनाव जीतते ही यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो गयी। मोदी की शह पर राजस्थान सरकार ने श्रम कानूनों में संशोधन करने शुरू कर दिये। मोदी सरकार ने केन्द्रीय स्तर पर श्रम कानूनों में संशोधनों के पहले चरण में एप्रेन्टिस एक्ट, फैक्टरियों में रजिस्टर रखने से छूट देना, महिलाओं से रात्रि की पाली में काम करने जैसे कानून पास करना आदि संशोधन किये।

मोदी सरकार और सत्ता के दो केन्द्र

वर्ष-18, अंक-18 (16-30 सितम्बर, 2015)
    सितम्बर के पहले सप्ताह में भारत सरकार के सारे मंत्री राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सामने पेश हुए। इसमें स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी शामिल थे। इन सारे मंत्रियों ने संघ के सामने अपने कार्यों का लेखा-जोखा पेश किया। यह तो पता नहीं चला कि शिक्षक दिवस के ठीक पहले संघ द्वारा आयोजित इस परीक्षा में सरकार के मंत्री पास हुए या नहीं और यदि पास हुए तो कितने अंकों से पर यह स्पष्ट है कि इसने संघ और सरकार के रिश्तों को एक बार फिर रेखांकित कर दिया। 
    भाजपाई कांग्रेस पार्टी की मनमोहन सिंह सरकार पर लगातार आरोप लगाते रहते थे कि यह सरकार सोनिया गांधी द्वारा चलायी जाती है जो कांग्रेस पार्टी की शुरूआत है। उसका कहना था कि सरकार के दो केन्द्र हैं और यह खतरनाक है।

दाभोलकर-पानसारे के बाद अब कलबुर्गी की हत्या

वर्ष-18, अंक-18 (16-30 सितम्बर, 2015)  
 सत्ता की मद में चूर हिंदुत्व फासिस्टों की करतूतें एक के बाद एक बढ़ती जा रही हैं। डा. नरेन्द्र दाभोलकर, पानसारे की हत्या के बाद इस बार उनके हमले का निशाना कर्नाटक के तार्किक चिंतक डा. मालेशप्पा कलबुर्गी बने। फासिस्टों की लंपट वाहिनी ने डा. कलबुर्गी की गोली मारकर हत्या कर दी। 
    डा. कलबुर्गी एक लिंगायत थे जो जाति प्रथा, हिंदू धर्म की मूर्ति पूूजा के साथ अंधविश्वास-ज्योतिष आदि के विरोधी थे। वे तार्किक व वैज्ञानिक चिन्तन के पक्षधर थे। वे एक मशहूर लेखक और हम्पी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति थे। विभिन्न मौकों पर उन्होंने धार्मिक पाखण्ड व अंधविश्वास के खिलाफ आवाज उठायी थी। वे वचन साहित्य के विशेषज्ञ थे और कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरूस्कार से 2006 में नवाजे गये थे। 

Tuesday, September 1, 2015

फिर एक और काला सोमवार

शेयर बाजारों के गोते से गहराता जाता वैश्विक आर्थिक संकट
वर्ष 18, अंक-17 (01-15 सितम्बर, 2015)
    24 अगस्त 2015 का दिन दुनिया भर के शेयर बाजारों में हाहाकार के दिन के रूप में सामने आया। इस अकेले दिन में चीन का शंघाई कम्पोजिट 8 प्रतिशत; जापान का निक्की 4.6 प्रतिशत, हांगकांग का हांग सेंग 5.2 प्रतिशत, जर्मनी का शेयर बाजार डैक्स 4.6 प्रतिशत, फ्रांस का शेयर बाजार 5.2 प्रतिशत, अमेरिका का डाउ जोंस 3.6 प्रतिशत, एस एण्ड पी 500 3.94 प्रतिशत, नास्डाक 3.82 प्रतिशत गिर गये। भारत का सेन्सेक्स भी लगभग 6 प्रतिशत गोता लगा रहा था। 

संकटग्रस्त पूंजीवाद की आरक्षण की राजनीति

वर्ष 18, अंक-17 (01-15 सितम्बर, 2015)   
 संघी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बहुप्रचारित गुजरात माॅडल के वीभत्स चेहरे को उजागर करते हुए गुजरात की दबंग पटेल जाति का आरक्षण मांग आंदोलन इस समय प्रदेश और केन्द्र दोनों सरकारों के गले की हड्डी बन गया है। बर्बर लाठीचार्ज, बड़े पैमाने की आगजनी और पुलिस की गोली की खबरों से पूंजीवादी प्रचार माध्यम भरे पड़े हैं। केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह स्वयं मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल से स्थिति का जायजा ले रहे हैं। 
    पाटीदार या पटेल समुदाय गुजरात का सबसे दबंग समुदाय है - संख्या और आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक सभी आधारों पर। यह तीन उपजातियों में विभाजित है। इसकी दबंग स्थिति का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि इस समय गुजरात की मुख्यमंत्री पटेल हैं, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पटेल है, प्रदेश के सात प्रमुख मंत्री पटेल हैं। साथ ही गुजरात के आधा दर्जन सांसद और तीन दर्जन विधायक पटेल हैं। यह सब बिना किसी कानूनी आरक्षण के। 

Saturday, August 15, 2015

सूचना- वार्षिक सेमिनार 2015

प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी ‘नागरिक’ द्वारा सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है। शहीद भगतसिंह की याद में होने वाले इस सेमिनार का विषयः हिन्दू फासीवाद और मीडिया है। ‘नागरिक’ के सभी पाठकों, संवाददाताओं, शुभेच्छुओं से इस आयोजन को सफल बनाने की अपील की जाती है।
विषयः हिन्दू फासीवाद और मीडिया
दिनांकः 27 सितम्बर (रविवार), 2015
समयः प्रातः 10 बजे से सांय 5 बजे 
स्थानः गांधी पीस फाउण्डेशन
  दीन दयाल उपाध्याय मार्ग मण्डी हाउस
  (तिलक ब्रिज रेलवे स्टेशन के पास)
   नई दिल्ली
सम्पर्कः कमलेश (नागरिक कार्यालय)
  मो.न.- 07500714375
  हरीश (दिल्ली, नागरिक संवाददाता)
  मो.न.- 09654298344
सम्पादक

कानून बने तो लूट हो आसान

वर्ष-18, अंक-16(16-31 अगस्त, 2015)
    भूमि अधिग्रहण विधेयक पर मुंह की खाने के बाद नरेन्द्र मोदी की सरकार ने संसद के वर्तमान सत्र में वस्तु एवं सेवाकर (गुड्स एण्ड सर्विसेज टैक्स) विधेयक को पारित करवाने के लिए हर हथकंडे को अपनाया है। इस विधेयक को लोकसभा पहले ही पारित कर चुकी है परन्तु विधेयक राज्य सभा में अटका है। यह एक ऐसा संवैधानिक विधेयक है जिसे राज्यसभा में दो तिहाई बहुमत से पास होना चाहिए और साथ ही देश की आधी विधानसभाओं से भी मंजूरी मिलनी चाहिए।  
    वस्तु एवं सेवा कर विधेयक उनके आर्थिक सुधार के वर्तमान चरण में सबसे महत्वपूर्ण विधेयकों में से एक है। यह विधेयक, कर ढांचे (टैक्स स्ट्रक्चर) में आमूलचूल  परिवर्तन कर देगा। इस विधेयक के पारित हो जाने के बाद पूरा भारत एक ऐसी आर्थिक इकाई में बदल जायेगा जिसकी मांग लम्बे समय से देशी-विदेशी एकाधिकारी घराने करते रहे हैं। संसद में हंगामे के कारण इस विधेयक के पारित न होने पर दुखी इन वित्तपतियों में से कई ने लूट की राह को आसान बनाने के लिए आन लाइन मांग के एक नये तरीके का इस्तेमाल किया जिसमें संसद के हंगामे के कारण इस विधेयक के पास न होने पर क्षोभ व्यक्त किया गया।

46 वां श्रम सम्मेलन: श्रम पर हमला जारी है...

वर्ष-18, अंक-16(16-31 अगस्त, 2015)
    21-22 जुलाई को 46 वां श्रम सम्मेलन सम्पन्न हुआ। मजदूरों की एक भी मांग पर सहमति के बगैर यह समाप्त हो गया। प्रधानमंत्री मोदी ने लच्छेदार बातों से इसका उदघाटन किया। अपनी बातों में उन्होंने श्रम सुधारों की वकालत करते हुए इसे पूंजी व श्रम दोनों के फायदे का घोषित कर डाला। मजदूरों की मांगों पर एक शब्द भी खर्च किये बगैर वे खुद ही सरकार को सबसे बड़ा मजदूर हितैषी बता कर चलते बने। 
    इस श्रम सम्मेलन में 12 केन्द्रीय ट्रेड यूनियन केन्द्रों के प्रतिनिधियों, पूंजीपति वर्ग के प्रतिनिधियों व केन्द्र-राज्य के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। किसी समय कल्याणकारी राज्य के जमाने में ये श्रम सम्मेलन पूंजी व श्रम के बीच सरकार की मध्यस्थता में सौदेबाजी का मंच थे। पर आज के नवउदारवादी दौर में जब पूंजी ने श्रम पर हमला बोल रखा हो और सरकार निर्लज्जता से पूंजी के पक्ष में एक के बाद एक कदम उठा रही हो तब ये श्रम सम्मेलन औपचारिकता के अलावा कोई महत्व नहीं रखते। 
    श्रम सम्मेलन का महत्व मोदी सरकार की निगाह में कितना है इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि लगभग एक वर्ष से यह टल रहा है। सरकार तमाम श्रम कानूनों में संशोधन के लिए अब न तो श्रम सम्मेलनों का इंतजार करती है और न ही केन्द्रीय फेडरेशनों के नेताओं को विश्वास में लेने की ही जरूरत समझती है।  
    पूंजी द्वारा श्रम पर बोले जा रहे हमले से लड़ने में केन्द्रीय ट्रेड यूनियन केन्द्रों की अक्षमता आज मजदूरों के साथ-साथ सरकार के सामने भी स्पष्ट है। हालत यह है कि भाजपा का भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) अपनी सरकार के खिलाफ संघर्ष का दिखावटी अगुआ बना हुआ है। इन सेण्टरों के वर्षों अर्थवाद-सुधारवाद में गोते लगाने व पूंजीवादी-संशोधनवादी दिशा होने से सरकार को इनके संघर्ष से कोई खतरा नहीं है। 

समझौता नगा मुक्ति के साथ छल

वर्ष-18, अंक-16(16-31 अगस्त, 2015)
    पिछले दिनों मोदी सरकार ने नगा विद्रोहियों से एक ‘ऐतिहासिक समझौते’ की घोषणा की। इस समझौते में क्या है? इसे समझौता करने वालों के अलावा कोई नहीं जानता। और मजे की बात है दोनों ही पक्षों में से कोई भी इस पर अभी तक कुछ बोलने को तैयार नहीं है। ऐसा क्यों हो रहा है? 
    ऐसा इसलिए हो सकता है कि समझौते में कुछ ऐसा है जिसे बताने से हर ओर हल्ला-गुल्ला मच सकता है। विरोध के स्वर उभर सकते हैं। 

Saturday, August 1, 2015

इस आतंक का कोई अंत नहीं

वर्ष 18, अंक-15(01-15 अगस्त, 2015)
    पंजाब के गुरूदासपुर जिले के दीनापुर कस्बे में 27 जुलाई को हुए एक आतंकी हमले में दस से अधिक लोग मारे गये। मरने वालों में निर्दोष नागरिक, सुरक्षाकर्मी और आतंकवादी भी हैं। 
    पंजाब में हाल के वर्षों में घटी यह पहली घटना है हालांकि जम्मू-कश्मीर सहित पूर्वोत्तर राज्यों में इस तरह की घटनाएं रोजमर्रा की बात हैं। भारत सरकार इसे पाकिस्तान से आये आतंकवादियों का कारनामा बता रही है परन्तु इस बात की भी संभावना व्यक्त की जा रही है कि यह पंजाब में पुनः खालिस्तानी आतंकवादियों की हरकत न हो।

पूंजीवादी पार्टियों की संसद में नूराकुश्ती

वर्ष 18, अंक-15(01-15 अगस्त, 2015)
    भारतीय संसद के मानसून सत्र की शुरूआत हंगामे के साथ हुई। संसद में एक बार फिर वही नजारा दोहराया जा रहा है जो कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में सप्रंग शासन के अंतिम वर्षों में हुआ था। बस फर्क सिर्फ इतना हुआ है कि सत्ता पक्ष तब विपक्ष में था और तब का सत्ता पक्ष अब विपक्ष में है। तब कांग्रेस पार्टी के भ्रष्टाचार के विरुद्ध भाजपा व उसके सहयोगियों ने संसद को बंधक बना लिया था और अब कांग्रेस व उसके सहयोगियों ने भाजपा के भ्रष्टाचार पर संसद को बंधक बना लिया है। यह सब पुरानी फिल्म का रीमेक है। 
    परन्तु यहां एक महत्वपूर्ण अन्तर है। भाजपा तब आक्रामक थी और कांग्रेस अपनी चोरी पर बैकफुट पर थी। परन्तु भाजपा सरकार चोरी करने के बावजूद आक्रामक है। वह अपनी चोरी पर सफाई देने या शर्मसार होने के बजाय कह रही है कि अगर हमने चोरी की है तो कांग्रेसियों ने भी तो चोरी की है और ऐसा करके भाजपा सरकार अपनी चोरी को बेशर्मी के साथ न्यायसंगत ठहराने पर लगी हुई है। 

चन्दन विष व्यापत नहीं...

वर्ष 18, अंक-15(01-15 अगस्त, 2015)
    पूंजीवादी राजनीति में यह आम चलन है कि खुद को चन्दन और दूसरों को भुजंग बताया जाये। लेकिन मामला तब रोचक हो जाता है जब चन्दन के भुजंग से लिपटने की बात आती है।
    चन्दन और भुजंग का यह प्रसंग अपने ताजे रूप में बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने छेड़ा जो पूंजीवादी प्रचारतंत्र की कृपा से ईमानदार व्यक्ति माने जाते हैं। पूंजीवादी प्रचारतंत्र से प्रभावित एक व्यक्ति ने नीतिश कुमार से ट्विटर पर पूछ लिया कि आप लालू प्रसाद यादव जैसे भ्रष्ट व्यक्ति के साथ कैसे गठजोड़ में आ गये? इस पर नीतिश कुमार ने रहीम का वह दोहा जड़ दिया जिसकी दूसरी पंक्ति इस प्रकार हैः ‘‘चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग’’। रहीम ने तो यह दोहा संतों के लिए कहा था पर नीतिश कुमार ने मान लिया कि यह उन पर भी लागू होता है। हो सकता है कि वे खुद को भारत की पतित पूंजीवादी राजनीति का संत मानते हों। पूंजीवादी प्रचारतंत्र की कृपा से उन्हें भी स्वयं के संत होेने का गुमान हो गया हो।

Thursday, July 16, 2015

व्यापम की व्यापकता

वर्ष-18, अंक-14(16-31 जुलाई, 2015)
मध्य प्रदेश सरकार के व्यापम घोटाले की चर्चा इस समय आम है। खासकर इससे सम्बन्धित मौतों ने सबका ध्यान खींचा है और इस पर हाय-तौबा मची है।
लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि इस घोटाले को अप्रतिम, बेनजीर या अपनी तरह का अनोखा बताने की कोशिश की जा रही है। कांगे्रस पार्टी द्वारा ऐसा किये जाने का तो वाजिब कारण है पर पूंजीवादी प्रचारतंत्र और अन्य लोग भी इसे इसी रूप में पेश कर रहे हैं।

फिलीस्तीन को समर्थन से मुंह मोड़ते भारतीय शासक

वर्ष-18, अंक-14(16-31 जुलाई, 2015)
पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार परिषद में इस्राइल द्वारा फिलीस्तीन व गाजापट्टी में किये जा रहे मानवाधिकार हनन के खिलाफ एक प्रस्ताव पेश हुआ। इस प्रस्ताव पर वोटिंग के समय भारत ने फिलीस्तीन को समर्थन की पुरानी अवस्थिति छोड़ते हुए वोटिंग में तटस्थ रहने का निर्णय लिया। भारत के साथ केन्या, पराग्वे, इथोपिया व मकदूनिया तटस्थ रहने वाले अन्य देश थे। अमेरिका ने प्रस्ताव के विरोध में मत दिया। शेष 41 देशों के प्रस्ताव के समर्थन में मत देने से प्रस्ताव पारित हो गया। प्रस्ताव में इसा्रइल व संयुक्त राष्ट्र अधिकारियों को निर्देशित किया गया कि वे फिलीस्तीन व गाजापट्टी में मानवाधिकारों का पालन सुनिश्चित करायें अन्यथा इस्राइल को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में मुकदमा झेलना पड़ेगा।

ललित मोदीः होनहार बीरवान के होत चिकने पात

वर्ष-18, अंक-14(16-31 जुलाई, 2015)
पूंजीवादी समाज में पूंजीपति वर्ग के सदस्यों को अपनी जीविका चलाने के लिए कोई श्रम नहीं करना पड़ता। वे दूसरों के श्रम पर पलते हैं। पूंजीवाद के शुरूआती दौर में श्रम के प्रबंधन में उनकी जो भूमिका होती है, वह भी पूंजीवाद के परजीवीपन बढ़ने के साथ-साथ कम होने लगती है। इस प्रकार सामाजिक उत्पादन के लिए न तो उनकी कोई जरूरत होती है और न ही वे कोई जरूरत पूरी करते हैं। इस तरह जीवन के किसी भी तरह के सार से वंचित अपने जीवन में वे जो भी काम करते हैं वह घिनौना और जुगुप्सा पैदा करने वाला होता है।

Wednesday, July 1, 2015

‘ललित गेट’: फिर उद्घाटित हुआ भारतीय शासकों का भ्रष्ट चरित्र

वर्ष-18, अंक-13(01-15 जुलाई, 2015)
पिछले दो हफ्तों से देश की राजनीति में ललित मोदी और भाजपा के नेताओं के रहस्यमयी सम्बन्ध छाये हुए हैं। इन सम्बन्धों के खुलासों के बाद देश के प्रधानमंत्री को मानो सांप सूंघ गया है। वे एकदम मौन हो गये हैं। ‘मुदुहु आंख कतहु कुछ नाहीं’ की उनकी इस योग मुद्रा ने भाजपा के दूसरी और तीसरी पंक्ति के नेताओं को कहीं का नहीं छोड़ा है। वैसे भी एक-दो मंत्री को छोड़कर मोदी जी ने अपने मंत्रिमण्डल के लोगों को इस लायक भी नहीं छोड़ा था कि वे कुछ कर सकंे। वे इतने बेचारे या नालायक समझे गये कि वे अपने निजी सचिवों का भी चुनाव नहीं कर सकते थे। ऐसे समय में जब भाजपा की खूब धज्जियां उड़ रही हैं तब प्रधानमंत्री का मौन प्रमाण हो न हो परन्तु वक्त ने उनकी बोलती बंद कर दी है। या फिर मौन भारत के शीर्ष पर बैठे व्यक्तियों की अदा है।

योग के बहाने हिन्दुत्व का एजेण्डा आगे बढ़ाती संघी सरकार

वर्ष-18, अंक-13(01-15 जुलाई, 2015)
पिछले दिनों अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया। मोदी सरकार और खुद प्रधानमंत्री मोदी न जाने कितनी बार इस बात के लिए अपनी पीठ थपथपा चुके हैं कि इस दिवस को मनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र में पहल उन्होंने की। इसके साथ ही भारत की जनता को भी जबरन गर्व मनाने को कह रहे हैं कि दुनिया में भारत का मान बढ़ गया है, भारत के कहने पर दिवस घोषित किया गया है कि भारत का लोहा आज पूरी दुनिया मान रही है। अफसोस की बात तो यह है कि हमारे संघी प्रधानमंत्री को संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित योग दिवस तो दिखता है पर उसी संस्था के द्वारा भारत के बारे में पेश यह बात नजर नहीं आती कि सबसे ज्यादा भूखे भारत में हैं।

इस्लामिक स्टेट का कहर

वर्ष-18, अंक-13(01-15 जुलाई, 2015)
पिछले दिनों फ्रांस, ट्यूनीशिया, कुवैत, सीरिया में इस्लामिक स्टेट या उससे जुड़े संगठनों के हमले में दर्जनों लोग मारे गये और घायलों की संख्या भी सैकड़ों में है।
फ्रांस, ट्यूनीशिया, कुवैत में मारे जाने वाले निर्दोष नागरिक थे। उनकी हत्या किये जाने का एक ही मकसद था व्यापक तौर पर आतंक फैलाना और पश्चिमी साम्राज्यवादियों को एक संदेश देना कि वे किस तरह और कहां तक हमले कर सकते हैं।

Wednesday, June 17, 2015

भारतीय सेना का म्यांमार आॅपरेशनः यह गर्व नहीं शर्म का विषय है

वर्ष-18, अंक-12(16-30 जून, 2015)
    गत 4 जून को मणिपुर के चंदेल जिले में भारतीय सेना पर हमला किया गया जिसमें 18 सैनिक मारे गये। इस हमले के पीछे बगैर किन्हीं खास सबूतों के भारत सरकार ने घोषणा कर दी कि एनएससीएन (खपलांग) ग्रुप है। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी की सहमति से भारतीय सेना ने म्यांमार की सीमा में प्रवेश कर इस संगठन के कैम्प पर हमला कर 100 से अधिक लोगों को मार गिराया।
    भारत का पूंजीवादी मीडिया इस आपरेशन पर फूला नहीं समा रहा है। वह जैसे को तैसा जवाब देने के लिए मोदी सरकार की पीठ थपथपाने में जुटा है। इस खुशी में वह यह भी भूल गया है कि म्यांमार एक स्वतंत्र देश है जिसमें घुस कर कार्यवाही करने का भारतीय सेना को कोई हक नहीं है। यह भारत की दबंगई व विस्तारवादी नीति ही है कि इस तरह की कार्यवाही के बावजूद म्यांमार सरकार इसका कोई खास विरोध तक नहीं कर पाई। मोदी तो अपनी पीठ कुछ उसी अंदाज में थपथपा रहे हैं जैसे ओबामा ने पाकिस्तान में लादेन को मारने की कहानी गढ़ कर थपथपाई थी।

नेपाल में राजनैतिक गतिरोध टूटा

वर्ष-18, अंक-12(16-30 जून, 2015)
    नेपाल में लम्बे समय सेे चला आ रहा राजनैतिक गतिरोध 8 जून को टूटना शुरू हुआ। 8 जून को देश की चार प्रमुख राजनैतिक पार्टियों नेपाली कांग्रेस, सीपीएन-यूएमएल, यूसीपीएन (माओवादी), मधेसी जनाधिकार फोरम-लोकतांत्रिक के बीच 16 सूत्रीय समझौता हुआ। इस समझौते के पीछे भारी जनदबाव काम कर  रहा था। 25 अप्रैल को भूकंप आने के बाद से देश की गंभीर हालात के बाद राजनैतिक पार्टियों के खिलाफ जनाक्रोश काफी बढ़ गया था। संविधान निर्माण प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए यह समझौता राजनैतिक दायरों में आवश्यक समझा जा रहा था।

Tuesday, June 16, 2015

जी-7 सम्मेलनः रूस, ग्रीस को धमकाने की नौटंकी

वर्ष-18, अंक-12(16-30 जून, 2015)
    साम्राज्यवादी मुल्कों के जी-7 का सम्मेलन हाल में सम्पन्न हो गया। पिछले वर्ष जी-8 से रूस को निलम्बित किये जाने के बाद से जी-7 पश्चिमी साम्राज्यवादियों का मंच बन कर रह गया है। उक्रेन के मुद्दे पर रूसी साम्राज्यवादियों और अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी साम्राज्यवादियों के बीच कायम हुई तनातनी अंततः जी-8 से रूस को निकाले जाने के रूप में समाने आई थी। पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने जहां रूस पर ढेरों आर्थिक प्रतिबंध लाद दिये तो वहीं तेल की कीमतों में गिरावट ने रूस की अर्थव्यवस्था को नीचे ढकेल दिया। पर इस सबके बावजूद उक्रेन व सीरिया के मसले पर रूसी साम्राज्यवादी अमेरिका को अपने मन की नहीं करने दे रहे हैं। खासकर उक्रेन में इनका परस्पर तनाव खासा गहराया हुआ है।
    ऐसे वक्त में अमेरिकी साम्राज्यवादी उक्रेन में अपने मन की करने के लिए रूस पर और प्रतिबंध थोपना चाहते हैं पर फ्रांस-जर्मनी के अपने आर्थिक हित रूस से सम्बन्ध बनाये रखने में हैं। इसलिए जी-7 का वर्तमान सम्मेलन रूस को कड़ी चेतावनी देने और रूस के खिलाफ मिलकर लड़ने के संकल्प से अधिक कुछ हासिल न कर पाया।

Sunday, May 31, 2015

बच्चों के हित में या बच्चों के खिलाफ?

बाल श्रम प्रतिबंधन एवं नियमन कानून में संशोधन
वर्ष-18, अंक-11(01-15 जून, 2015)
    गत 13 मई को संसदीय कैबिनेट ने बालश्रम प्रतिबंधन एवं नियमन कानून में संशोधनों को मंजूरी दे दी। सरकार ने अपनी पीठ ठोेंकते हुए कहा कि उसने बच्चों के हित का ध्यान रखते हुए 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से किसी भी किस्म के व्यवसाय में काम पर रोक लगा दी। साथ ही 14-18 साल के बच्चों के खतरनाक उद्योगों में काम पर रोक जारी रखी है। 
    हालांकि कानून में संशोधन का महत्वपूर्ण पहलू यह कदम है कि 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से पारिवारिक व्यवसाय में काम लेने की छूट दे दी गयी है। हालांकि यह जोड़ दिया गया है कि बच्चों को स्कूल के बाद पारिवारिक व्यवसाय में लगाया जा सकेगा। सरकार का तर्क है कि इससे बच्चों को अपना पारम्परिक काम सीखने का मौका मिलेगा। 

नजीब-केजरी जंगः मंजे अभिनेता आमने-सामने

वर्ष-18, अंक-11(01-15 जून, 2015)
    पूंजीवादी राजनीति में जब दो नाटकीय पात्र आमने-सामने खड़े हो जायें तो इस बात की पूरी संभावना है कि दृश्य नाटकों से बन जाये और दर्शकों को आनंददायक लगे। दिल्ली प्रदेश में आजकल यही हो रहा है। 
    दिल्ली प्रदेश के लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग की खासियत यह है कि वे नाट्य कला में रुचि रखते हैं और गाहे-बगाहे नाटकों में अभिनय भी करते हैं। उनके द्वारा अभिनीत एक-दो नाटक तो खासे मशहूर भी रहे हैं। ऐसा तो नहीं लगात कि पिछली कांग्रेस सरकार ने उनकी इस खासियत की वजह से दिल्ली का लेफ्टिनेंट गवर्नर बनाया हो पर उन्होंने केन्द्र के एजेण्ट की भूमिका बखूबी निभाई है। पहले वे केन्द्र की कांग्रेस सरकार के लिए काम कर रहे थे, अब भाजपा सरकार के लिए कर रहे हैं। 

मोदी की विदेश यात्रायें और मीडिया की चापलूसी

वर्ष-18, अंक-11(01-15 जून, 2015)
    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक बार फिर से पिछले दिनों विदेश यात्रा पर थे। इस बार वे चीन, मंगोलिया और द.कोरिया घूम आये। पिछले एक वर्ष में वे 30 देशों से अधिक की यात्रायें कर चुके हैं। इन सभी यात्राओं का भारत के पूंजीवादी मीडिया में कुछ इस भाव से प्रदर्शन किया जाता रहा है मानो सिकंदर विश्व विजय के अभियान पर निकला हो और सभी देशों के शासक उसके आगे नतमस्तक होते जा रहे हैं।  अभी हाल की चीन यात्रा का उदाहरण ले लें। चीनी राष्ट्रपति द्वारा प्रोटोकाॅल तोड़ मोदी की अगुवाई को भारतीय पूंजीवादी मीडिया ने इस रूप में प्रचारित किया कि मानो चीन भारत की बढ़ती ताकत के आगे झुकने को मजबूर हो गया। जबकि वास्तविकता यह है कि प्रोटोकाॅल तोड़ राजनेताओं का दूसरे देश केे नेताओं द्वारा स्वागत अधिकाधिक परम्परा बनती जा रही है। खुद भारतीय नेता साम्राज्यवादी मुल्कों के नेताओं के स्वागत में प्रोटोकाॅल तोड़ते रहे हैं। 

Saturday, May 16, 2015

अच्छे दिन न आने थे न आये

वर्ष-18, अंक-10(01-15 जून, 2015)
    मोदी सरकार का एक वर्ष पूरा होने को है। भाजपा के कहे अनुसार अच्छे दिन आ चुके हैं। भाजपा इस अवसर पर एक हफ्ते का उत्सव मनाने की तैयारी कर रही है जिसमें मोदी सरकार की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचाया जायेगा। 
    मोदी सरकार ने पिछले एक वर्ष में क्या क्या किया? इसका लेखा जोखा करने से पहले सरकार के वायदों को याद कर लेना उचित होगा। बड़बोले मोदी ने अच्छे दिनों को लाने का, 100 दिन में काला धन वापस ला जनता में बांटने का वायदा किया था। ये वायदे न तो पूरे होने थे और न हुए। हां! अच्छे दिन एक मुहावरा जरूर बन गया। 

हिचकोले खाता शेयर बाजार और लुढ़कता रुपया

वर्ष-18, अंक-10(01-15 जून, 2015)  
 नरेन्द्र मोदी ने एक वर्ष पूर्व अपने चुनाव प्रचार के दौरान शेयर बाजार और रुपये की गिरावट को काफी मुद्दा बनाया था। रुपये की गिरावट को उन्होंने राष्ट्रीय गौरव से जोड़ते हुए मनमोहन सरकार की खूब खिल्ली उड़ायी थी। अब लगता है ये सब बातें उनका पीछा करने लगी हैं। 
    शेयर बाजार हिचकोले खा रहा है। अप्रैल माह में एक समय बाॅम्बे स्टाॅक एक्सचेंज का शेयर सूचकांक (सेंसेक्स) 29000 से ऊपर जा पहुंचा था वह अब 27,000 के आस-पास है। मई माह में इसमें बहुत तेज उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है। मई माह के दूसरे हफ्ते में यह उतार-चढ़ाव 500 अंकों से ऊपर-नीचे होता रहा। पिछले समय में विदेशी निवेशकों के अपने हाथ-खींचने से ही यह सूचकांक करीब 2000 अंक नीचे गिरा है। 12 मई को तो वह 27000 से भी नीचे आ गया। बाजार के जानकारों के अनुसार शेयर बाजार की इस गिरावट से निवेशकों को दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। 

ओसामा, ओबामा और पाकिस्तान

वर्ष-18, अंक-10(01-15 जून, 2015)
   सं.राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा का ओसामा बिन लादेन की हत्या के बारे में किये गये दावों की पोल प्रसिद्ध अमेरिकी खोजी पत्रकार सेमर एम हर्श ने खोल दी। अमेरिकी राष्ट्रपति ने तुरन्त ही हर्श की बातों को नकार दिया। 
    ओसामा बिन लादेन की 2 मई 2011 की रात को पाकिस्तान के सैन्य शहर ऐबटाबाद में अमेरिकी नेवी सील द्वारा हत्या कर दी गयी थी। ओसामा की इस हत्या को अमेरिकी साम्राज्यवादियों के एक बहुत बड़े कारनामे के रूप में पेश किया गया था। अमेरिकी सेना के इस कारनामे से हमारे देश के तत्कालीन सैन्य प्रमुख इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने भारत में वांछित तथाकथित पाकिस्तानी आतंकवादियों को इसी ढंग से सजा देने की अपनी क्षमता की भी ढींग हांकी थी। 

Thursday, May 7, 2015

नेपाल में भयावह त्रासदीः हजारों लोग भूकम्प में मरे

वर्ष-18, अंक-09(01-15 मई, 2015)   
 25 अप्रैल को दक्षिण एशिया के हिमालयी क्षेत्र में आये तीव्र भूकम्प जो कि रियेक्टर पैमाने पर 7.9 तीव्रता का था ने नेपाल, तिब्बत और भारत के बिहार में व्यापक तबाही मचायी। नेपाल में इस भूकम्प से सबसे ज्यादा जान-माल की हानि हुयी। अनुमान है कि नेपाल में दस हजार से भी ज्यादा लोग मारे गये और घायलों की संख्या कई हजारों में है।
    नेपाल के बाद सबसे ज्यादा जानें भारत के बिहार प्रांत में गई। वहीं तिब्बत में दो दर्जन से अधिक लोग इस भूकम्प की चपेट में आ गये।

कश्मीर घाटी फिर गरमायी

वर्ष-18, अंक-09(01-15 मई, 2015)   
 कश्मीरी जनता का आक्रोश एक बार फिर सड़कों पर फूट रहा है। कश्मीर घाटी फिर से बड़े-बड़े प्रदर्शनों-बंदों की गवाह बन रही है। 
आजादी के नारे फिर से हवाओं में तैरने लगे हैं। साल दर साल कश्मीरी जनता का सड़कों पर उतरता आक्रोश यही बतलाता है कि भारतीय शासक संगीनों के दम पर कश्मीरी जनता की आकांक्षा को कुचल नहीं सकते। 
    14 अप्रैल को भारतीय सेना ने दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा जिले के त्राल गांव में खालिद नामक एक नवयुवक की पीट-पीट कर हत्या कर दी। इसके पश्चात सेना ने उसे आतंकी घोषित करते हुए मुठभेड़ में उसका मारा जाना घोषित कर दिया। इसके पश्चात उसके शव को तुरंत दफना भी दिया गया। उसके पिता बताते रहे कि उसके शरीर पर उत्पीड़न के ढेरों निशान थे पर गोली का एक भी निशान नहीं था। पर उनकी इस बात की कोई सुनवाई नहीं हुयी। 

Friday, May 1, 2015

सीताराम येचुरी की सदारत में माकपा

वर्ष-18, अंक-09(01-15 मई, 2015)    
सीताराम येचुरी भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी) की केन्द्रीय कमेटी के नये महासचिव चुने गये हैं। उन्होंने प्रकाश करात को प्रतिस्थापित किया है। यह विशाखापत्तनम में आयोजित पार्टी की इक्कीसवीं कांग्रेस में सम्पन्न हुआ। 
    प्रकाश करात के बदले सीताराम येचुरी के नेतृत्व में माकपा का क्या भविष्य होगा? क्या वह देश की पूंजीवादी राजनीति में अपनी कोई प्रभावी भूमिका बना पायेगी?

Thursday, April 16, 2015

फर्जी इनकांउटर में पुलिस ने की 25 निर्दोषों की हत्या

वर्ष-18, अंक-08(16-30 अप्रैल, 2015)
  7 अप्रैल को आंध्र प्रदेश पुलिस ने दो बड़े कारनामों को अंजाम दिया। पूंजीवादी मीडिया की खबरों के मुताबिक स्पेशल टास्क फोर्स ने चंदन तस्करों से इनकांउटर में 20 तस्कर मार गिराये और दूसरी घटना में जेल से अदालत लाते समय 5 आतंकियों ने पुलिस से हथियार छीनने की कोशिश की जिसके चलते हुए इनकाउंटर में पांचों आतंकी मारे गये। 
    वास्तविकता पुलिस की कहानी के एकदम उलट थी। पहली घटना में मारे गये 20 लोग तस्कर नहीं सामान्य गरीब मजदूर थे। दूसरी घटना में पुलिस ने सोचे समझे तरीके से पांचों अभियुक्तों को गाड़ी में ही मार गिराया। दोनों ही घटनाओं के लिए इनकांउटर का दर्जा देने के लिए कहानी गढ़ ली गयी जो कुछ इस तरह थी। 

मजदूरों-किसानों को लूटने-ठगने को एक ‘नई’ पार्टी

वर्ष-18, अंक-08(16-30 अप्रैल, 2015)   
  भारतीय पूंजीवादी राजनीति में एक नई पार्टी के बनने की चर्चा जोरों पर है। यह पार्टी जनता परिवार के एकजुट होते जाने से अस्तित्व में आने वाली है। समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल (राजद), जनता दल (यूनाइटेड), जनता दल (सेकूलर), इण्डियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) और समाजवादी जनता पार्टी (एसजेपी) के एक होने से इस पार्टी के अप्रैल माह के बीतते-बीतते सामने आ जाने की सम्भावना है। मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में इस पार्टी का नाम समाजवादी जनता पार्टी और चुनाव चिह्न साइकिल पर सहमति विलय करने वाले दलों के बीच बनी है।

‘नागरिक’ के सम्पादक व उपपा महासचिव पर जानलेवा हमला

वर्ष-18, अंक-08(16-30 अप्रैल, 2015)    
 31 मार्च को ‘नागरिक’ के सम्पादक मुनीष कुमार और उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के महासचिव प्रभात ध्यानी पर उत्तराखण्ड के एक खनन माफिया ने अपने गुण्ड़ों के जरिये जानलेवा हमला करवाया। इस हमले में दोनों ही लोगों को गम्भीरें चोटें आयीं। प्रभात ध्यानी को घायलावस्था में कई दिन अस्पताल में गुजारने पड़े।

Wednesday, April 1, 2015

यमन पर अमेरिकी साम्राज्यवाद की शह पर साऊदी अरब का हमला

वर्ष-18, अंक-07(01-15 अप्रैल, 2015)
    अमेरिकी साम्राज्यवाद के पूर्ण समर्थन से साऊदी अरब ने यमन पर भीषण हवाई हमले 25 मार्च की रात से शुरू कर दिये। इन हमलों में भारी पैमाने पर जान-माल की हानि हुयी है। इन हवाई हमलों के साथ साऊदी अरब बड़े जमीनी सैन्य हमले की तैयारी कर रहा है ताकि अपनी पिट्ठू सरकार को पुनः स्थापित कर सके। भारत सहित विभिन्न देशों के अप्रवासी मजदूर और अन्य नागरिक वहां फंसे हुए हैं। 
    यमन वर्ष 2011 के अरब जनउभार के समय से ही राजनैतिक अस्थिरता का शिकार है। ध्यान रहे जनवरी 2011 में गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार के साथ अब्दुल्ला सालेह की तानाशाही से आजिज आ गये यमन वासियों ने व्यापक जनांदोलन किया था। अब्दुल्ला सालेह ने यमन के संविधान में परिवर्तन करके अपने को आजीवन राष्ट्रपति और अपने पुत्र अहमद सालेह को उत्तराधिकारी के रूप में घोषित करने का प्रयास किया था। सालेह के इन कदमों ने उस आक्रोश और क्षोभ को जन्म दिया था जिसके कारण उन्हें सत्ता छोड़नी पड़ी और उन्होंने अपने संरक्षक साऊदी अरब में अंततः शरण ले ली। 

‘आप’ में कलहः एक और पूंजीवादी मिथक टूटा

वर्ष-18, अंक-07(01-15 अप्रैल, 2015)
    आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के पहले और बाद में जो कुछ हुआ वह यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि भारत के सभी राजनैतिक दलों की तरह ही आआपा भी उन्हीं सभी बीमारियों से ग्रस्त है जिनसे ये पार्टियां ग्रस्त हैं। पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव, व्यक्तिपूजा, गुटबाजी, सिद्धान्तविहीनता, अवसरवाद और सबसे बढ़कर सत्ता पाने के लिए हर हथकंडे को आजमाया गया।

मन की बात, जब मन सौ प्रतिशत बेईमान हो

वर्ष-18, अंक-07(01-15 अप्रैल, 2015) 
संघी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर महीने देश की जनता से अपने मन की बात करते हैं। उन्हें इस बात का गुमान है कि देश की जनता उनके मन की बात सुनने के लिए बेताब रहती है हालांकि इस जनता में से केवल एक तिहाई ने ही उन्हें चुनावों में वोट दिया था। 
    इस 22 मार्च को मोदी ने एक बार फिर अपने मन की बात कही। इस बार उन्होंने देश के किसानों को संबोधित किया। किसानों को संबोधित करने से पहले मोदी इस दृढ़ नतीजे पर पहुंच चुके थे कि किसान बेवकूफ हैं। वे अपना हित नहीं समझते, खासकर अपनी जमीन के मामले में। इसीलिए ये बेवकूफ किसान कांग्रेस इत्यादि धूर्त बेईमान पार्टियों के बहकावे में आकर यह नहीं देख पा रहे हैं कि मोदी सरकार किसानों का भला करने पर तुली है। ऐसे में उन्होंने बेवकूफ किसानों को समझाने की ठानी। 

Sunday, March 15, 2015

पूंजीपतियों के लिए फूल मेहनतकशों के लिए कांटे

आम बजट 2015-16
वर्ष-18, अंक-06(16-31 मार्च, 2015)
    28 फरवरी को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वार्षिक बजट पेश कर दिया। मोदी सरकार के 9 माह बीतने के बाद भी अच्छे दिन जनता के लिए न तो आने थे और न आये। अब इस बजट के प्रावधानों से एक बार फिर स्पष्ट हो गया है कि मेहनतकश जनता के लिए भविष्य में बुरे दिन ही आने हैं। अच्छे दिन तो मोदी राज में पूंजीपतियों के खाते में आने हैं। 
    बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने एक शेर पढ़ा ‘‘कुछ तो फूल खिलाए हमने और कुछ फूल खिलाने हैं, मुश्किल यह है बाग में अब तक कांटे कई पुराने हैं’’। वास्तव में पिछले 9 माह में मोदी सरकार ने पूंजीपतियों के लिए कई फूल खिलाए हैं जो मेहनतकशों के ऊपर कांटों की तरह चुभे हैं। श्रम कानूनों में सुधार, भूमि अधिग्रहण बिल में बदलाव, विदेशी निवेश के लिए तमाम क्षेत्रों को खोलना, राजसत्ता का साम्प्रदायीकरण आदि आदि ऐसे ढ़ेरों फूल पूंजीपतियों की सेवा में पेश किये गये हैं जो मजदूरों-किसानों को कांटों की तरह चुभे हैं। अब नये बजट में कुछ और कांटे जनता को चुभोने का अरुण जेटली ने प्रयास किया है। 

भाजपा कांग्रेस की जुगलबंदी से बीमा बिल संसद में पास

वर्ष-18, अंक-06(16-31 मार्च, 2015)    
     भाजपा और कांग्रेस पार्टी की जुगलबंदी से बीमा क्षेत्र (इंश्योरेन्स सेक्टर) में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) की सीमा 26 फीसदी से बढ़कर 49 फीसदी हो गयी। राष्ट्रपति की सहमति की मुहर लगते ही यह विवादास्पद बिल कानून बन जायेगा। 
    राज्यसभा में जहां मोदी सरकर को बहुमत हासिल नहीं है वहीं कांग्रेस उसकी तारणहार बन गयी। इसमें वैसे कुछ अनोखा नहीं है क्योंकि दोनों ही पार्टियां देशी-विदेशी पूंजी की सेवा में इस तरह की जुगलबंदी पहले भी कर चुकी हैं। 

Sunday, March 1, 2015

आर्थिक सुधारों की पटरी पर दौड़ी प्रभु की रेल

माल भाड़े में वृद्धि से महंगाई बढ़ेगी
वर्ष-18, अंक-05 (01-15 मार्च, 2015)
    26 फरवरी 2015 को रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने संसद में रेल बजट पेश कर दिया। रेल मंत्री ने एक ओर यात्री किराया न बढ़ाने के लिए अपनी पीठ ठोंकी तो दूसरी ओर पुरानी घोषणाओं को ही पूरा करने की बात करते हुए नई ट्रेनों की घोषणाएं नहीं की। तेल की गिरती कीमतों से फायदे में पहुंची रेल के बजट में 454.5 अरब रुपये के खर्च का प्रावधान रखा गया है जिसमें 66 प्रतिशत सरकार से व शेष आंतरिक स्रोतों से जुटाया जाना है। 
    बजट में बायोटाॅयलेट बनाने, एक हेल्पलाइन नं. जारी करने, ई टिकट को बढ़ावा देने, कुछ ट्रेनों में डिब्बे बढ़ाने, 400 स्टेशनों पर वाइफाई की सुविधा देने, सफाई आदि की लोक लुभावनी बातें की गयी हैं। 

आंकड़ों की बाजीगरी और वाक्छल से भरा आर्थिक सर्वे

वर्ष-18, अंक-05 (01-15 मार्च, 2015)
    ‘मूदहुं आंख कतुहु कछु नाहि’ की तर्ज पर देश के वित्त मंत्री ने आर्थिक सर्वे बजट के ठीक एक दिन पहले पेश किया। उन्होंने ऐसी खुशनुमा तस्वीर देश की अर्थव्यवस्था की पेश की जिस पर उनकी सरकार के अलावा शायद ही कोई भरोसा कर सके। 
    आर्थिक सर्वे में सकल घरेलू उत्पाद की गणना के लिए नये घोषित तरीके को अपनाया गया। इस तरीके में सकल घरेलू उत्पाद की गणना का आधार वर्ष 2004-05 के स्थान पर 2011-12 कर दिया गया। गणना के लिए 2011-12 के मूल्यों को आधार बनाया गया है। इस आधार पर कल तक 5 फीसदी से कम दर से विकसित होती अर्थव्यवस्था रातोंरात करीब सात फीसदी तक जा पहुंची। आर्थिक सर्वे के अनुसार 2012-13 में यह 5.1, 2013-14 में 6.9 और 2014-15 में इसका अनुमान 7.4 फीसदी रहने का है। आर्थिक सर्वे के अनुसार आने वाले वर्षों में यह दर 8 फीसदी से 10 फीसदी के बीच रहेगी। वित्त मंत्री की ये खुशनुमा बातें इस ठोस हकीकत के बीच हैं कि भारत का औद्योगिक उत्पादन ठहराव ग्रस्त है और विकास दर शून्य है। निर्यात गिरा हुआ है और तेल की कीमतों में भारी कमी के बावजूद राजस्व घाटा स्थापित मापदण्ड सकल घरेलू उत्पाद के तीन फीसदी से ऊपर है। 2014-15 में इसके 4.1 फीसदी रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है। 

क्या मोदी अंबानी बंधुओं पर मुकदमा चलायेंगे

वर्ष-18, अंक-05 (01-15 मार्च, 2015)
प्रधानमंत्री की पीठ पर किसका हाथ
    पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त मोदी ने अपने चुनावी भाषणों में काले धन के मुद्दे को बड़े जोर-शोर से उठाया था। उन्होंने वायदा किया था कि वे सत्ता में आने के 100 दिन के भीतर सारा काला धन देश में वापिस ले आयेंगे। हर एक मतदाता के खाते में 15 लाख रुपये जमा कर दिये जायेंगे। परन्तु मोदी सरकार के 9 माह के कार्यकाल के बाद 15 लाख तो दूर 15 रुपये भी किसी मतदाता के खाते में नहीं आये। 
    पहले तो मोदी सरकार इस मामले पर अपने वायदों पर ही लीपापोती करती रही, उसके मंत्री लोग बयान देते रहे कि मोदी ने कभी ऐसा वायदा किया 

Monday, February 16, 2015

अब मजमेबाज की सरकार

वर्ष-18, अंक-04 (16-28 फरवरी, 2015)
    दिल्ली में आम आदमी पार्टी को भारी बहुमत मिल गया। सपनों के सौदागर ने सपनों का ऐसा बाजार लगाया गया कि हर कोई दिल्ली में ‘झाडू’ का खरीददार बन गया। इससे पहले लोकसभा चुनावों में मोदी ने आम जन को सपने बेचे थे और उनके सपनों की बिक्री खूब हुई थी। पर इस बार अरविन्द केजरीवाल जैसे तमाम लोग जिन्होंने अपनी एनजीओ की दुकान चलाने से ज्यादा ध्यान सपनों की बिक्री पर लगाया था, उनके सपनों की बिक्री खूब हुयी। सपनों की सौदागरी में अरविन्द केजरीवाल ने मोदी को पछाड़ दिया। 
    एक के खून में व्यापार है (मोदी द्वारा जापान में दिये गये भाषण के अंश से) और दूसरा जाति से व्यापारी है।(केजरीवाल द्वारा दिल्ली चुनाव के दौरान मोदी के आरोप के जबाव से) की व्यापारिक प्रतिद्वन्द्विता (सपनों के बेचने की) में जनता छली जा रही है। लोकसभा चुनाव से पहले गुजरात दंगों के रचयिता ने लोकलुभावन वादों, नारों और झूठी लफ्फाजियों के दम पर देश की जनता को ठगा था। चुनाव जीतने के लिए जाति, धर्म व क्षेत्र की विभाजनकारी राजनीति का सहारा लिया था। इससे भी बढ़कर कारपोरेट जगत के हीरो बनकर पूरे मीडिया का अपहरण कर लिया गया था। कांग्रेस के मुकाबले अपनी दीनहीन स्थिति का मुजाहिरा करके जनता से सहानुभूति हासिल की गयी थी। 

कश्मीर में सेना-पुलिस ने कायम किया आतंक राज

वर्ष-18, अंक-04 (16-28 फरवरी, 2015)
    फरवरी के पहले और दूसरे सप्ताह जम्मू-कश्मीर में पुलिस-सेना की बर्बरता के खिलाफ जनाक्रोश के रहे। पहले सेना के द्वारा दो किशोरों की हत्या और फिर पुलिस के द्वारा एक प्रदर्शनकारी की हत्या के बाद कश्मीर के सभी शहरों में व्यापक प्रदर्शन हुये और आम हड़ताल रही। प्रदर्शन और हड़ताल को असफल करने के लिए पुलिस ने प्रमुख अलगाववादी नेताओं को या तो नजरबंद कर दिया या फिर पुलिस हिरासत में ले लिया। हड़ताल के कारण कश्मीर विश्वविद्यालय ने अपनी परीक्षाएं स्थगित कर दी हैं।

हरिद्वार पुलिस प्रशासन द्वारा एवरेडी मजदूरों का तीखा दमन

वर्ष-18, अंक-04 (16-28 फरवरी, 2015)
    हरिद्वार प्रशासन एवरेडी के आंदोलन को जब अपनी क्रूर उदासीनता से नहीं तोड़ पाई तो उसने बर्बर दमन का इस्तेमाल मजदूरों पर किया। महिलाओें के प्रति सामान्य सभ्यता तो दूर उसने गर्भवती महिलाओं को भी घसीटते हुए गिरफ्तार किया। सिडकुल के विभिन्न फैक्टरियों के यूनियन नेतृत्व को लक्षित कर लाठियों से पीटा। इंकलाबी मजदूर केन्द्र के प्रति भ्रम फैलाने के लिए मजदूरों में यह बात षड्यंत्रकारी तरीके से प्रचारित की गयी कि ये लोग माओवादी हैं और इनसे दूर रहो। 
    एक दिसंबर से एवरेडी प्रबंधन द्वारा गैर कानूनी तालाबंदी के खिलाफ मजदूरों का आंदोलन शुरू हुआ। इस दौरान प्रबंधन ने 14 मजदूरों को निलंबित कर दिया। 14 निलंबित मजदूरों का निलंबन वापस करवाने के लिए तालाबंदी समाप्त होने के बावजूद कंपनी में जाने के बजाय सहायक श्रम आयुक्त कार्यालय पर धरना जारी रखा। मजदूरों ने इस दौरान श्रम विभाग, प्रशासनिक अधिकारियों, देहरादून में मुख्यमंत्री समेत सभी मंत्रियों तक अपनी बात पहुंचाई। लेकिन लगभग दो माह बीत जाने के बावजूद भी मजदूरों को न्याय नहीं मिला। 

Sunday, February 1, 2015

ओबामा के आगे नतमस्तक हुए भारतीय शासक

वर्ष-18, अंक-03(01-15 फरवरी, 2015)
    अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा को लेकर पूंजीवादी मीडिया ने जिस उत्सव का माहौल कायम किया उसके आगे भारत का गणतंत्र दिवस फीका रह गया। सबसे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने प्रोटोकाॅल तोड़कर ओबामा की हवाई अड्डे पर आगवानी की फिर अपने हाथों से चाय बनाकर ओबामा को पिलाई। इस दौरान आतंकवाद से लेकर परमाणु सरीखे कई समझौते दोनों देशों के शासकों ने किये। ओबामा के आगे नतमस्तक होने पर किसी को शर्म नहीं आई। पूंजीपतियों से लेकर संघी मोदी, पूंजीवादी मीडिया सब ओबामा के आगे हाथ जोड़े खड़े रहे। माहौल कुछ इस तरह का था मानो भारतीय शासकों का भाग्य, उनकी अर्थव्यवस्था की गति सब कुछ ओबामा के हाथों में आ गयी हो और भारत के शासक इस मुद्रा में थे मानो ओबामा से निवेश की भीख मांग रहे हों।

ग्रीस में सीरिजा के जीत के मायने

वर्ष-18, अंक-03(01-15 फरवरी, 2015)
    विश्व व्यापार संकट में सबसे बुरी तरह शिकार होने वाले देशों में ग्रीस रहा है। अर्थव्यवस्था की गिरती विकास दर ने संकट के 7 वर्षों में यहां की अर्थव्यवस्था को काफी सिकोड़ दिया है। बाकी देशों की तरह यहां की सरकार ने भी संकट के वक्त जहां पूंजीपतियों को बचाने के लिए अपने खजाने का मुंह खोल दिया और इस तरह खुद सरकार को भारी कर्ज में डुबा दिवालिया होने की हद पर पहुंचा दिया। बाद में इस कर्ज को कम करने के नाम पर और केन्द्रीय यूरोपीय बैंक व यूरोपीय यूनियन से नये कर्जों की शर्त के बतौर ग्रीस की सरकार ने जनता के ऊपर बड़े पैमाने के कटौती कार्यक्रम थोप दिये। इन कटौती कार्यक्रमों ने संकट व बेकारी से तबाह हाल मेहनतकश जनता की कमर ही तोड़ दी। युवाओं में बेरोजगारी ग्रीस में अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ गयी। 
    स्वाभाविक रूप से जनता बडे़ पैमाने पर यूरोप के बाकी देशों की तरह कटौती कार्यक्रमों के खिलाफ मैदान में डटने लगी। ग्रीस का पिछले 10 वर्षों का इतिहास इस बात की तस्दीक करता है कि कोई वर्ष ऐसा नहीं बीता जब ग्रीस की जनता ने अपने कटौती कार्यक्रम विरोधी प्रदर्शनों में सड़कों को न भर दिया हो। परंतु ग्रीस का शासक वर्ग यूरोपीय यूनियन में किसी भी कीमत पर बने रहने की खातिर कटौती कार्यक्रम लागू करता रहा और इस तरह जनता से अलगाव में पड़ता रहा। 

अध्यादेश राज

वर्ष-18, अंक-03(01-15 फरवरी, 2015)   
 राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी राष्ट्रपति बनने के पहले कांग्रेस पार्टी के नेता थे। कांग्रेसियों ने राहुल गांधी का रास्ता निष्कंटक बनाने के लिए उन्हें राष्ट्रपति भवन में बैठा दिया। मुखर्जी के दुर्भाग्य से उनके राष्ट्रपति भवन में बैठने के कुछ समय बाद ही कांग्रेसियों के बदले भाजपााई दिल्ली की गद्दी पर काबिज हो गये।
    अब राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी दुःखी चल रहे हैं। उनके दुःख का कारण यह है कि वे औपचारिक तौर पर भारत सरकार के मुखिया हैं और कोई भी कानून उनके अंतिम हस्ताक्षर से ही कानून बनता है। इस समय प्रधानमंत्री मोदी एक के बाद एक ताबड़तोड़ अध्यादेश उनके पास भेज रहे हैं और वह भी उन कानूनों के संदर्भ में जो कभी कांग्रेस पार्टी ने बनाए थे। इन कानूनों को बनवाने में प्रणव मुखर्जी की भी भूमिका थी। अब अपने ही कानूनों की ऐसी-तैसी करने वाले अध्यादेशों पर हस्ताक्षर करना प्रणव मुखर्जी के लिए काफी पीड़ादाई काम है। 

Friday, January 16, 2015

निजीकरण के खिलाफ कोयला मजदूरों की हड़ताल

वर्ष-18, अंक-02(016-31 जनवरी, 2015)
नए वर्ष का स्वागत कोयला खनिकों ने हड़ताल के साथ किया। 6 जनवरी से देश के 5 लाख से भी अधिक कोयला खनिक 2 दिन हड़ताल पर रहे। यह हड़ताल केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के नेतृत्व में आहूत की गयी थी। हड़ताल के मुख्य मुद्दे कोल इण्डिया लिमिटेड के निजीकरण व श्रमिकों के वेतनमान में वृद्धि थे। इस हड़ताल से लगभग 75 फीसदी कोयला उत्पादन प्रभावित हुआ। पहले से ही ऊर्जा संकट के कारण सरकार भारी दबाव में आ गयी।

वे हमारा साथ छोड़कर चले गये....

वर्ष-18, अंक-02(016-31 जनवरी, 2015)
कल तक वे हमारे साथ थे आज नहीं हैं। साथी दानवीर का ‘नागरिक’ में योगदान अविस्मरणीय है। वे लगातार
दानवीर
मजदूर आंदोलन की रिपोर्ट भेजा करते थे। ‘नागरिक’ में रुद्रपुर, पंतनगर, खटीमा आदि स्थानों से छपने वाली रिपोर्ट उनकी सक्रियता, सजगता और संवेदनशीलता का प्रमाण हैं। मजदूरों की व्यथा, संघर्षों और उन संघर्षों में मौजूद चुनौतियों को वे अपने हर रिपोर्ट में रेखांकित करते थे। मजदूरों के साथ काम करने के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं पर कई महत्वपूर्ण लेख उन्होंने लिखे। वे अच्छे टाइपिस्ट भी थे। उन्होंने कई अंकों में टाइपिंग भी की। 
उनके जाने से ‘नागरिक’ का बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। हमने अपना एक भरोसेमंद साथी खो दिया। हम नम आंखों से उन्हें विदाई देते हैं। उनकी यादें सदा हमारे दिल में बसी रहेंगी। उनके जाने से एक निर्वात पैदा हो गया है जिसे भरने के लिए हमें बहुत अधिक मेहनत करनी होगी।     नागरिक टीम

संघी सरकार और पाकिस्तानी आतंकवादी

वर्ष-18, अंक-02(016-31 जनवरी, 2015)
भारत की संघी सरकार ने दावा किया है कि उसने अरब सागर से होकर भारत की ओर आने वाली आतंकवादियों की नाव को सफलतापूर्वक रोक दिया जिसके कारण उसमें सवार आतंकवादियों ने अपनी नाव को विस्फोटों से उड़ा दिया। यह घटना 31 दिसंबर की बताई जाती है।
भारत सरकार के अनुसार उनके तटीय सीमा रक्षकों ने ऐसे खुफिया संदेश पकड़े जिसमें इस तरह के आतंकवादी हमले के बारे में बातें थीं। पूर्ण सजगता और सतर्कता दिखाते हुए तटीय सुरक्षा गार्डों ने भारत की जल सीमा में लगभग अंतर्राष्ट्रीय जल सीमा के नजदीक, इस नाव को घेर लिया। कोई बचने का रास्ता न देख नाव सवारों ने खुद को ही शहीद कर डाला।

जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन

वर्ष-18, अंक-02(016-31 जनवरी, 2015)
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के घोर साम्प्रदायिक दुष्प्रचार का एक नतीजा जहां चुनाव में भाजपा की सीटों में बढ़ोत्तरी के रूप में आया वहां दूसरा नतीजा राष्ट्रपति शासन के रूप में आया।
विधानसभा में स्थिति ऐसी हो गयी है कि किसी भी सरकार के लिए भाजपा आवश्यक हो गयी है। भाजपा को किनारे कर यदि पीडीपी, कांग्रेस और निर्दलीय मिली-जुली सरकार बना भी लें तो आर्थिक तौर पर पूरे तौर से केन्द्र पर निर्भर इस राज्य को दैनंदिन का काम चलाना भी मुश्किल हो जायेगा। और यदि पीडीपी भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना लेे तो उनका भावी वजूद खतरे में पड़ जायेगा। इसी तरह भाजपा अपनी पीठ थोड़ी झुकाकर पीडीपी से समझौता कर ले तो उसे भी जितना लाभ हासिल हो गया है उससे ज्यादा लाभ हासिल नहीं होगा। नेशनल कांन्फ्रेस और कांग्रेस इस स्थिति में नहीं हैं कि कोई कदम इस दिशा में उठा सकें।

Thursday, January 1, 2015

‘तेरा जादू न चला...’

वर्ष-18, अंक-01(01-15 जनवरी, 2015)    
जम्मू-कश्मीर व झारखंड विधानसभा चुनावों के नतीजे आ चुके हैं। दोनों ही जगहों पर किसी भी पार्टी को अकेले दम पर बहुमत नहीं मिला। तमाम झूठे प्रचारों व दावों के बावजूद भाजपा दोनों ही स्थानों पर बहुमत से दूर रह गयी। दोनों ही विधानसभाओं में दलीय स्थिति इस प्रकार है-
जम्मू-कश्मीर (87/87)       
भाजपा-                 25      
पीडीपी-                  28    
नेशनल कांफ्रेस-     15
कांग्रेस-                  12
अन्य-                      7    
झारखंड (81/81)
भाजपा-              37    
जे एम एम-        19
जे वी एम (पी)-      8
आजसू-                5
कांग्रेस-                6
अन्य-                  6
    इन चुनावों में मोदी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। संघ परिवार झारखंड और जम्मू-कश्मीर में अपने साम्प्रदायिक हथियारों से कृष्ण की भूमिका में ही नहीं था वरन् पर्दे के पीछे से वह स्वयं लड़ाई लड़ रहा था। झारखंड में ईसाई बनाम हिन्दू का तो जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम बनाम हिन्दू का कार्ड जमकर खेला गया। इसी के परिणामस्वरूप न सिर्फ भाजपा का मत प्रतिशत बढ़ा बल्कि इसका ढंग भी विशिष्ट रहा- विशेषकर जम्मू-कश्मीर में। सांप्रदायिक आधार पर किये गये ध्रुवीकरण का परिणाम यह निकला कि जम्मू-कश्मीर का परिणाम भी इसी के अनुरूप आया। घाटी में पीडीपी तो जम्मू में भाजपा और मूलतः लद्दाख में कांग्रेस पार्टी। संघी फासिस्ट जम्मू-कश्मीर का सांप्रदायिक बंटवारा ही चाहते रहे हैं और ऐसा करने में वे काफी हद तक सफल रहे हैं। उनका पहले भी आधार जम्मू में ही था परंतु कांग्रेस व जम्मू-कश्मीर की स्थानीय पार्टियों का भी जम्मू में आधार रहा था और वे अपनी सीटें निकालते रहे थे। लेकिन सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण जम्मू से बाकी सभी का एक तरह से सफाया हो गया। परन्तु इस घोर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के बावजूद मोदी-शाह का ‘मिशन 44+’ पिट गया। 

रूस की अर्थव्यवस्था में हिचकोले

वर्ष-18, अंक-01(01-15 जनवरी, 2015)  
  दिसंबर के मध्य में रूस की मुद्रा रूबल में दो दिनों में 17 प्रतिशत की गिरावट जहां एक ओर रूसी अर्थव्यवस्था की खस्ता होती हालत को बयां करती है वहीं समूची वैश्विक अर्थव्यवस्था के बारे में भी संकेत करती है। रूस की अर्थव्यवस्था में वृद्धि के बारे में पहले ही काफी नकारात्मक भविष्यवाणियां की जा चुकी हैं।
    रूसी मुद्रा की तात्कालिक गिरावट का कारण चाहे जो हो, पिछले साल भर से ऐसे बहुत सारे कारक काम करते रहे हैं जो इसे उधर की तरफ धकेलते हैं इसीलिए पिछले साल भर में इसमें करीब 60 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है। 

अटल बिहारी भारत के किस वर्ग के रत्न हैं

वर्ष-18, अंक-01(01-15 जनवरी, 2015)   
मोदी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को उनके 90 वें जन्म दिन से पूर्व भारत रत्न का तमगा देने का ऐलान कर दिया। पूंजीवादी मीडिया इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी के इतिहास के गौरवगान में डूब गया। 
    इस गौरवगान में से एक बेहद दिक्कततलब तथ्य पूंजीवादी मीडिया ने प्रचारित नहीं किया वह यह कि भारत छोड़ो आंदोलन के वक्त नवयुवक रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने ब्रिटिश साम्राज्यवादियों से माफी मांगी थी। उन्होंने आंदोलन में शामिल होने की गलती मानते हुए अपने लिए माफी मांगी थी और साथ ही उन्होंने अन्य लोगों की गिरफ्तारी में भी भूमिका निभायी थी।