Tuesday, December 16, 2014

मोदी राज में बढ़ता साम्प्रदायिक वैमनस्य

वर्ष-17,अंक-24(16-31 दिसम्बर, 2014)
    मोदी सरकार के मंत्रियों में लगता है अपने बयानों से उलट-पुलट कुछ भी बोल साम्प्रदायिक हिन्दुत्व के एजेण्डे को आगे बढ़ाने की प्रतियोगिता छिड़ गयी है। मानो संघ ने ईनाम घोषित कर रखा है कि जो जितना जहरीला व बड़ा झूठ बोलेगा उसे ईनाम दिया जायेगा। अब तक इस प्रतियोगिता में मोदी, स्मृति ईरानी ही थे अब इसमें नजमा हेपतुल्ला, साध्वी निरंजना, सुषमा स्वराज, साक्षी महाराज सभी शामिल हो गये हैं।
    मोदी ने जब अम्बानी के अस्पताल के उद्घाटन में प्राचीन काल में टेस्ट ट्यूब बेबी की बात बोली तो उनके मंत्री पीछे कैसे रहते। स्मृति ईरानी व नजमा हेपतुल्ला ज्योतिष व संस्कृत के महिमा मंडन में जुट गयीं। अब मैदान में आते हुए सुषमा स्वराज ने गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करने की मांग कर डाली। 

सी.आई.ए. द्वारा कैदियों का उत्पीड़न व अमेरिकी साम्राज्यवादी

वर्ष-17,अंक-24(16-31 दिसम्बर, 2014)    
अमेरिका में जहां एक ओर पुलिस द्वारा एक निहत्थे अश्वेत नौजवान को मारे जाने के विरोध में अमेरिकी जनता 4 महीनों से सड़कों पर उतरी हुयी है वहीं दूसरी ओर संसद में सी.आई.ए.(अमेरिकी खुफिया एजेंसी) द्वारा कैदियों के उत्पीड़न पर रिपोर्ट जारी किये जाने के बाद समाज में हंगामा है। इस रिपोर्ट में बुश काल में सी.आई.ए. द्वारा कैदियों के साथ किये गये घोर अमानवीय उत्पीड़न को प्रदर्शित किया गया। पर अमेरिकी सरगना बराक ओबामा को न तो प्रदर्शनकारियों का डर है और न उन देशों के नागरिकों का जिनके निवासियों को सी.आई.ए. द्वारा उत्पीड़न किया गया। पहले ओबामा ने घडि़याली आंसू बहाते हुए यह कहा कि अमेरिका में अभी भी अश्वेतों के साथ सम्मान का व्यवहार नहीं होता पर ओबामा नवयुवक के हत्यारे गोरे पुलिस वाले को ज्यूरी द्वारा मुक्त किये जाने के खिलाफ कुछ नहीं बोले। कुल मिलाकर ओबामा ने भी पुलिस वाले पर मुकदमा चलाने से मुंह मोड़ लिया। अब जब सी.आई.ए. के कुकर्मों की रिपोर्ट जारी हुई तो भी ओबामा ने सी.आई.ए. के अधिकारियों की रक्षा करते हुए उन पर कोई कार्यवाही न करने की बात करते हुए केवल इतना कहा कि अब हमें इस तरह कैदियों का उत्पीड़न बंद कर देना चाहिए क्योंकि इससे दुनिया में अमेरिका की गलत छवि जाती है। 

भोपाल गैस त्रासदी के तीन दशक पूरे होने पर मोदी ने दिया देशवासियों को मौत का तोहफा

देश में कम से कम 12 परमाणु संयंत्र लगाने के समझौते पर मोदी ने किये हस्ताक्षर 
वर्ष-17,अंक-24(16-31 दिसम्बर, 2014)
    3 दिसम्बर 2014 को भोपाल गैस त्रासदी को तीन दशक पूरे हो चुके हैं। इस त्रासदी में हजारों लोग मारे गये और लाखों आज भी इस त्रासदी का दंश झेलने को मजबूर हैं। वहां की मिट्टी, हवा, पानी में आज भी जहरीले अंश मौजूद हैं। इस परमाणु विकरण के कारण वहां अपंग बच्चे पैदा हो रहे हैं। इस त्रासदी के शिकार हजारों मृतकों के परिजन व पीडि़त और प्रभावित लोगों की आंखें न्याय की आस में पथरा गईं। आज भी भोपाल की जनता इस त्रासदी के दंश को झेल रही है। वहां की जमीन, हवा, पानी उस त्रासदी के जहर को अपने भीतर समाये हुए है। इस कांड के आरोपियों व कम्पनी को आजाद भारत की सरकारों ने कभी भी न्याय के कटघरे में खड़ा करने की कोशिश नहीं की, बल्कि उन्हें भगाने में पूरी सुविधा और सहयोग दिया। राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वयं उन्हें बड़ी शान के साथ विमान में बैठाने गये जैसे वह किसी हत्यारे, अपराधी की नहीं बल्कि किसी सम्मानित व्यक्ति की विदाई हो। मुख्य आरोपी एण्डरसेन को पिछले तीन दशकों में कभी भी अदालत में पेश नहीं किया जा सका और जनता की उसको दण्डित करने की आशा उसकी मौत के बाद पूरी नहीं हो सकेगी क्योंकि एक भरा-पूरा जीवन जी कर वह इस दुनिया से विदा हो चुका है और इस भीषण हत्याकांण्ड के अन्य आरोपियों में से किसी को भी कोई सजा नहीं मिली। 
    आज भी भोपाल सहित पूरे देश की जनता के सामने यह सवाल है कि क्या भोपाल गैस त्रासदी के पीडि़तों के घावों पर मरहम लगाने के लिए उन्हें सम्मानजनक मुआवजा भी मिल पायेगा। क्या भोपाल गैस त्रासदी के जैसे और हत्याकांड रचे जायेंगे या नहीं। 

Monday, December 1, 2014

बढ़ते अंतरविरोधों के बीच आर्थिक संकट जस का तस

जी-20 बैठक
वर्ष-17,अंक-23 (01-15 दिसम्बर, 2014)
15-16 नवम्बर को आस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन में जी-20 की बैठक सम्पन्न हो गयी। बैठक में जहां उक्रेन के मसले पर साम्राज्यवादी आपस में भिड़े रहे वहीं आर्थिक संकट का उन्हें कोई भी हल नजर नहीं आया। वे लाख कोशिश कर पिछले सात वर्ष में इस संकट को इंच भर भी हल नहीं कर पाये। अंत में संकट से मिलकर लड़ने की रस्मी घोषणाओं के साथ बैठक समाप्त हो गयी।
    उक्रेन के मसले पर रूसी व पश्चिमी साम्राज्यवादी इस कदर एक दूसरे के खिलाफ नज़र आये कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन बैठक बीच में ही छोड़ कर चल दिये। दरअसल अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने उक्रेन के हालातों के लिए रूसी साम्राज्यवादियों को जमकर कोसा। पर रूसी साम्राज्यवादी अब इतने कमजोर नहीं रहे कि वे अपने विपक्षियों की सब बकवास चुपचाप सुनते रहें। परिणाम यह हुआ कि पुतिन बैठक बीच में छोड़ चले गये। यह बात दिखलाती है कि साम्राज्यवादियों के अंतरविरोध कितने तीखे हो रहे हैं। 

नस्लीय उत्पीड़न के खिलाफ अमेरिका में फूटा जनाक्रोश

वर्ष-17,अंक-23 (01-15 दिसम्बर, 2014)    
एक बार फिर नस्लीय उत्पीड़न के खिलाफ अमेरिका में अश्वेत आबादी का आक्रोश फूट पड़ा है। मौजूदा जनाक्रोश एक अफ्रीकी मूल के अमेरिकी किशोर माइकल ब्राउन की हत्या के आरोपी डैरेन विल्सन को स्थानीय जूरी के द्वारा आरोप मुक्त कर, बरी करने के बाद फूटा। 24 नवम्बर को जूरी ने माना कि हत्यारोपी डैरेन विल्सन ने आत्मरक्षा में माइकल ब्राउन पर गोली चलाई थी। यह बात सामने आई है कि 18 वर्षीय किशोर माइकल ब्राउन निहत्था था और उस पर गोलियां तब चलाई र्गइं जब उसने हाथ ऊपर किये हुए थे। 
    यह भी गौरतलब है कि जूरी के फैसले के पहले 21 अगस्त को माइकल ब्राउन की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ कि ब्राउन को एक बार बहुत निकट से हाथ में और कुल छः बार गोली मारी गयी। 

संत-महंत और बाबा-साधु

वर्ष-17,अंक-23 (01-15 दिसम्बर, 2014)   
 हरियाणा के हिसार में संत रामपाल के मामले ने एक बार यह दिखाया कि भारत की पूंजीवादी राजनीति के इस मोड़ पर धर्म और राजनीति का कितना और किस हद तक घृणित गठबंधन हो चुका है। संत रामपाल को केवल अदालत में पेश करने के लिए तीस चालीस हजार की पुलिस तैनात की गयी और कई दिनों का नाटक रचा गया। 
    ऐसा क्यों किया गया? ऐसा इसलिए किया गया कि संत रामपाल ने पिछले चुनावों में भाजपा को समर्थन दिया था और अपने अनुयाइयों से कहा था कि वे भाजपा को वोट दें। अब भाजपा सरकार में है और वह संत का कुछ तो ख्याल रखेगी ही। 

Sunday, November 16, 2014

कश्मीर में व्यापक प्रदर्शन

भारतीय सेना के द्वारा दो नौजवानों की हत्या
वर्ष-17,अंक-22(16-30 नवम्बर, 2014)
    भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा कश्मीरी नागरिकों की हत्याओं का सिलसिला जारी है। 2 नवंबर को बड़गाम जिले के छतरग्राम चैकपोस्ट पर सेना के जवानों द्वारा मारूति कार पर ताबड़तोड़ फायरिंग की गयी। कार में सवार चार नौजवानों में से दो नौजवानों फैजल अहमद बट व मेहराजुद्दीन डार की मौके पर ही मौत हो गयी। शेष दो नौजवान अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं। 
    सेना ने कुछ किंतु-परंतु लगाकर अपनी गलती स्वीकार की है तथा मृतकों के परिजनों को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा देने की घोषणा भी की है। सेना का कहना है कि उनके पास सूचना थी कि सफेद मारूति में आतंकवादी आ रहे हैं। उन्होंने गाड़ी को हाथ दिया परंतु गाड़ी नहीं रोकी गयी। इस कारण कार पर गोलियां चलायी गयीं। सेना ने उक्त घटना की जांच करने की बात कही है तथा चैकपोस्ट पर तैनात जवानों को वहां से हटा दिया गया है। 
    सेना की गोली से घायल हुए अस्पताल में भर्ती छात्र जाहिद अयूब और शाकिर अहमद ने बताया कि वे मोहर्रम के जुलूस में शिरकत करके आ रहे थे तथा तेज रफ्तार में थे। रास्ते में सेना के जवान ने हाथ देकर रोका, उन्हें देखने के बाद कुछ आगे हमने ज्योंही कार को रोकने की कोशिश की तो उन्होंने हमारे ऊपर फायरिंग कर दी। हमसे कहा कि हथियार हमारे हवाले कर दो। कार की तलाशी के बाद घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया। फैजल व मेहराजुद्दीन की मौके पर ही मौत हो गयी। 

नसबंदी शिविर या मौत का शिविर

वर्ष-17,अंक-22(16-30 नवम्बर, 2014)
    छत्तीसगढ़ के विलासपुर में नसबंदी शिविर में सरकारी बदइंतजामी और डाक्टरों की घोर लापरवाही के कारण 15 महिलाएं अब तक मारी जा चुकी हैं। 92 से भी अधिक महिलाएं अभी भी विभिन्न अस्पतालों में भर्ती हैं। वे मौत से जूझ रही हैं और सरकार के मंत्री फूहड़ बयान दे रहे हैं।
    छत्तीसगढ़ में वर्षों से भाजपा की सरकार है और वहां स्वास्थ्य सेवाओं का क्या हाल है वह इस घटना ने बखूबी जाहिर कर दिया है। हद तो यह है प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल मुख्यमंत्री की उपस्थिति में मुस्कराते हुए दिखे जब वे लाशों को देख रहे थे। पैचाशिक हंसी का यह नजारा जिसने देखा उसने थू-थू की। 

त्रिलोकपुरी के बाद अब बवाना में दंगों की साजिश

विशेष रिपोर्ट
वर्ष-17,अंक-22(16-30 नवम्बर, 2014)   
 पूर्वी दिल्ली के त्रिलोकपुरी में साम्प्रदायिक हिंसा की आग बुझ भी नहीं पाई थी कि बाहरी दिल्ली के बवाना में मोहर्रम के अवसर पर दंगा भड़काने की पूरी तैयारी कट्टरपंथी तत्वों द्वारा कर ली गयी थी। मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा हर वर्ष की तरह मोहर्रम के जुलूस को बवाना गांव में नहीं निकलने देने के लिए हिन्दू कट्टरपंथी तत्वों द्वारा हिंसक टकराव की धमकी दी गयी थी। मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधियों द्वारा 24 अक्टूबर को प्रशासन के सामने किसी अप्रिय व हिंसा की घटना को टालने के मद्देनजर बवाना गांव में मोहर्रम का जुलूस न निकालने का आश्वासन देने के बावजूद 2 नवम्बर को हिन्दू कट्टरपंथियों द्वारा बवाना में 52 गांवों की एक महापंचायत आयोजित कर मोहर्रम के दिन बवाना गांव में जुलूस व ताजिया न निकलने देने हेतु शक्ति प्रदर्शन किया गया। इस तरह मोहर्रम के दिन इस इलाके की शांति व हिन्दू-मुस्लिम भाई-चारे को नष्ट कर दंगा फसाद को अंजाम देने की पूरी तैयारी साम्प्रदायिक तत्वों द्वारा कर ली गयी थी। मोहर्रम के अवसर पर ‘‘नागरिक संवाददाता’’ ने बवाना जाकर तनाव ग्रस्त इलाके में वहां के स्थानीय लोगों से बातचीत कर स्थिति का जायजा लिया। प्रस्तुत है एक रिपोर्ट-
    बवाना बाहरी दिल्ली (उत्तर पश्चिमी) में स्थित है। यहां काफी संख्या में उद्योग भी हैं। ज्यादातर उद्योग लघु उद्योगों की श्रेणी के हैं, जहां रोजमर्रा की उपभोक्ता वस्तुओं व हार्डवेयर के सामान की मैन्युफैक्चरिंग होती है। आमतौर पर दिल्ली में बवाना को एक औद्योगिक इलाके के रूप में जाना जाता है। औद्योगिक इलाके से सटी बवाना पुनर्वास कालोनी है। इस पुनर्वास कालोनी में लगभग 1.5 लाख आबादी रहती है। जिसमें 35000 के लगभग मतदाता हैं। यह पुनर्वास कालोनी लगभग दस वर्ष पूर्व बसाई गयी। इनमें ज्यादातर लोग यमुना पुस्ता से यहां पुनर्वासित किए गये हैं। राजघाट पाॅवर हाउस व आर.के.पुरम के झुग्गीवासियों को भी पुनर्वासित कर यहां बसाया गया था। इस बस्ती के ज्यादातर लोग मजदूर-मेहनतकश हैं। इनमें से ज्यादातर दिहाड़ी मजदूर, रिक्शा चालक, गाड़ी-टैम्पो चालक व असंगठित क्षेत्र के छोटे-मोटे रोजगार में लगे लोग हैं। यह कालोनी एक छोटा-मोटा कस्बा जैसी प्रतीत होती है। इस कालोनी में मुस्लिम व हिंदू आबादी क्रमशः 60 व 40 प्रतिशत है। हिंदू व मुस्लिम आबादी आपस में घुली-मिली है। किसी भी गली में हिन्दू व मुस्लिमों के मकान अलग-बगल हैं। कई जगह मंदिर व मस्जिद भी आस-पास ही हैं। 

Saturday, November 1, 2014

काला धन और मोदी सरकारः कहां गये वे वायदे?

वर्ष-17,अंक-21(01-15 नवम्बर, 2014)    
कहा जाता है कि झूठ की कलई एक दिन जरूर खुलती है। आज यही मोदी सरकार के साथ हो रहा है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के भ्रष्टाचार पर लम्बे भाषण देने वाले नरेन्द्र मोदी ने बार-बार मंचों से यह दोहराया था कि वे सत्ता में आ गये तो विदेशों में जमा सारा काला धन देश में ले आयेंगे। सारे काले धन के मालिकों के नाम उजागर कर देंगे। समस्त भ्रष्टाचार का नाश कर देंगे। पर सत्ता में आये अभी 5 माह भी पूरे नहीं हुए थे कि मोदी सरकार काले घन के वायदे से पलटती नजर आने लगी है। वित्त मंत्री अरुण जेटली अब मजबूरियां गिनाने लग गये हैं कि विदेशों से हुए समझौतों की बाध्यता के चलते वे स्विस बैंक के खाता धारकों के नाम उजागर नहीं कर सकते। बाद में काफी हो-हल्ले के बाद दो-तीन नाम जाहिर भी किये गये तो मोदी की पार्टी के राम जेठमलानी ने टिप्पणी की ‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’।
    काला धन व भ्रष्टाचार ही वह मुद्दा था जिस पर कांग्रेस सरकार को पहले अन्ना हजारे और रामदेव ने घेरा। भारतीय मध्यम वर्ग के बीच कांग्रेस सरकार को बदनाम कराया गया और फिर मंच पर अवतरित हुए मोदी ने वायदों की फुलझडि़यों से मध्यम वर्ग को मोह लिया। अरविन्द केजरीवाल दिल्ली में ही कदमताल करते रहे और मोदी देश के प्रधानमंत्री बन गये। देश के अधिकांश पूंजीवादी घरानों ने मोदी को जिताने में पूरी ताकत झोंक दी।

इबोला, साम्राज्यवाद और दवा कम्पनियां

वर्ष-17,अंक-21(01-15 नवम्बर, 2014)   
 विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट के अनुसार अब तक 70 देशों गुनिया, लाइबेरिया, नाइजीरिया, सेनेगल, सेयरा लेओन, स्पेन व संयुक्त राज्य अमेरिका में इबोला संक्रमण के करीब 9 हजार मामले सामने आये हैं और लगभग 4500 लोग इससे मर चुके हैं। अफ्रीकी देशों में यह तेजी से फैल रहा है और वहां की गरीबी व स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव देखते हुए यह बहुत जानें ले रहा है। लाइबेरिया में हालात बुरे हैं।
    इबोला वायरस से संक्रमित व्यक्ति को 40 डिग्री सेन्टीग्रेड के आस पास बुखार आता है, पेट में दर्द होता है व पानी की कमी से डिहाइड्रेशन की संभावना बढ़ जाती है। इबोला वायरस 1970 के दशक में माली व एकाध अन्य अफ्रीकी देशों में पाया गया था पर तब यह इतना व्यापक रूप से नहीं फैला था और कुछ जानें लेने के बाद यह समाप्त हो गया था या निष्क्रिय हो गया था।

विशेष रिपोर्ट राजधानी को हिन्दुत्व की प्रयोगशाला बनाने की साजिश

वर्ष-17,अंक-21(01-15 नवम्बर, 2014) 

  त्रिलोकपुरी में साम्प्रदायिक दंगा
 अक्टूबर माह के अंतिम दिनों में पूर्वी दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके में साम्प्रदायिक तनाव की घटनायें हुई हैं। पिछले 2 महीनों में दिल्ली के कई इलाकों में साम्प्रदायिक तनाव भड़काने की कोशिशें हुई। लेकिन इस बार साम्प्रदायिक तत्व अपने इरादों में एक हद तक कामयाब हुए। त्रिलोकपुरी में एक छोटे से विवाद से शुरु हुई घटना ने बड़े पैमाने की हिंसा का रूप ले लिया। 2-3 दिन के भीतर इस साम्प्रदायिक तनाव का प्रसार कल्याणपुरी, खिचड़ीपुर व समयपुर बादली तक हो गया। 
    इस साम्प्रदायिक तनाव व हिंसा के कारणों को तलाशने व साम्प्रदायिक हिंसा से प्रभावित इलाकों का जायजा लेने के लिए विभिन्न जनवादी व प्रगतिशील संगठनों, जनपक्षधर बुद्धिजीवियों व पत्रकारों की एक तथ्यान्वेषी टीम ने दंगा प्रभावित त्रिलोकपुरी इलाके का दौरा किया। नागरिक संवाददाता भी इस टीम के हिस्सा थे। तथ्यान्वेषी टीम ने विभिन्न इलाकों का दौरा किया व हिंसा से प्रभावित कुछ लोगों से भी उन्होंने मुलाकात कर स्थिति का जायजा लिया। प्रस्तुत है इस तथ्यान्वेषी टीम द्वारा दंगा प्रभावित क्षेत्र की एक रिपोर्ट- 
    27 अक्टूबर को तथ्यान्वेषी टीम जब दंगा प्रभावित इलाके में पहुंची तो माहौल में एक तनावपूर्ण शांति दिखाई दे रही थी। मयूर विहार थाने में जब वहां ड्यूटी पर मौजूद अधिकारी से तथ्यान्वेषी टीम ने गिरफ्तार लोगों के संबंध में जानकारी मांगी तो उन्होंने स्पष्ट रूप से कोई जानकारी देने से मना कर दिया। त्रिलोकपुरी के ब्लाॅक 20 में सामान्य आवाजाही थी लेकिन तनाव मौजूद था। लोग अपने बच्चों को बाहर निकलने पर डांट-फटकार रहे थे। तथ्यान्वेषी टीम के सदस्यों ने अलग-अलग इलाकों में जाकर जानकारियां जुटाने का प्रयास किया। पुलिस के एक अधिकारी ने धारा 144 का हवाला देकर टीम को इलाके में घूमने से रोकने की कोशिश की और वापस लौटने को कहा। अंततः टीम दो-दो, तीन-तीन सदस्यों के रूप में बिखरकर अलग-अलग इलाकों में गई। पुलिस द्वारा टोका-टाकी बराबर होती रही। कुछ जगहों पर पास के बगैर घूमने पर प्रतिबंध की बात कहकर व मुख्य सड़कों को छोड़कर विभिन्न गलियों से होते हुए तथ्यान्वेषी टीमों ने अधिकाधिक लोगों तक पहुंचने का प्रयास किया। 

Wednesday, October 15, 2014

फिर भारत-पाकिस्तान आमने-सामने

दर्जनों निर्दोष नागरिक मारे गये
वर्ष-17,अंक-20(16-31 अक्टूबर, 2014)
भारत-पाकिस्तान की सीमा पर अक्टूबर माह में तनाव चरम पर है। इसके साथ ही दोनों देशों में अंधराष्ट्रवादी भावनाओं का ज्वार सा आ गया है। दो हफ्तों से भी ज्यादा समय गुजर चुका है परंतु तनाव समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा है।
सीमा पर हुई झड़पों में दोनों ओर से भारी जान माल की क्षति हुई है। जहां भारत का दावा है कि उसके बारह लोग मारे गये और 60 लोग घायल हुये वहां पाकिस्तान का दावा है कि उसके पन्द्रह लोग मारे गये और पचास से अधिक लोग जख्मी हुये हैं। सीमा के दोनों ओर या तो आम लोग सेना द्वारा बनाये गये बंकरों में रह रहे है या फिर पलायन कर गये हैं। भारत के अनुसार जम्मू, सांबा और कठुआ जिलों में पाकिस्तान सीमा से सटे गांव के 20,000 से ज्यादा निवासी 30 राहत शिविरों में रह रहे हैं। ऐसी ही बातें पाकिस्तानी मीडिया में भी आ रही हैं।
भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर झड़पें आम है। इन झड़पों पर एक-दूसरे पर दोषारोपण भी उतना ही आम है। ऐसी झड़पें होते ही दोनों देशों के राजनीतिज्ञ चाहे वे सत्ता में होें अथवा विपक्ष में अंधराष्ट्रवादी उन्मादी माहौल बना देते हैं। शांति भाईचारे और इंसाफ की सारी बातों का गला घोंट दिया जाता है। देशभक्ति का प्रदर्शन इतने बेहया ढंग से किया जाता है कि किसी भी इंसाफ पसंद आम व्यक्ति को शर्म आ जाये। अमेरिकी साम्राज्यवाद के सामने निर्लज्ज ढंग से समर्पण करने वाले दोनों देशों के शासकों के लिए देशभक्ति का मतलब सिर्फ एक दूसरे को बुरे से बुरे ढंग से गाली-गलौच करना है। गली के गुण्ड़ों की भाषा में शासक वर्ग और उनकी पार्टियां एक-दूसरे देश को सबक सिखाने की धमकियां देते हैं।
भारत-पाकिस्तान के शासकों का अपने देश की आंतरिक समस्याओं से ध्यान भटकाने, चुनाव में लाभ हासिल करने आदि का यह एक सस्ता और उबाऊ तरीका बन गया है। वे आम लोगों की जान की कोई परवाह नहीं करते हैं। इनमें न केवल सीमा पर रहने वाले लोग शामिल हैं बल्कि दोनों ही देशों की सेना के आम मेहनतकश परिवारों से नौकरी करने के लिए आये सैनिक भी शामिल हैं।
भारत और पाकिस्तान के मजदूरों सहित सब मेहनतकशों को अपने-अपने देश के शासकों के इन घृणित हथकंडों की जोरदार ढंग से मुखालफत करनी चाहिए। आम मेहनतकशों को घोषित करना चाहिए कि दोनों ही देशों की जनता की आपस में कोई दुश्मनी नहीं है। असल में दोनों देशों की भाषा, संस्कृति, रीति-रिवाज, जीवन शैली आदि में इतनी अधिक समानता है कि वे वास्तव में एक ही हैं। हां! दोनों देशों के शासक अपने-अपने देश में जनता के ऊपर बोझ बन चुके हैं और हकीकत में दोनों ही देश की जनता को कमबख्त शासकों से मुक्ति चाहिए।

‘हाई-फाई, वाई-फाई और सफाई’

वर्ष-17,अंक-20(16-31 अक्टूबर, 2014)
        भूतपूर्व संघी प्रचारक और वर्तमान प्रधानमंत्री के इस जुमले को पूंजीवादी प्रचारतंत्र ने हाथों-हाथ लिया। जुमले गढ़ने में माहिर संघियों के इस जुमले पर सवाल उठाने के बदले इस पर लहा-लोट हो जाने वाले असल में कुछ और ही मंशा रखते हैं।
यह जुमला सुनने के बाद यह सीधा सा सवाल उठता है कि हाई-फाई कौन हैं, वाई-फाई किसके लिए है और सफाई किसके जिम्मे आएगी? उत्तर उतना मुश्किल नहीं है। हाई-फाई में देश के पूंजीपति, नरेन्द्र मोदी जैसा पंूजीवादी नेता, बड़े नौकरशाह तथा ‘जानी-मानी’ हस्तियां आती हैं। यही देश का शासक वर्ग भी है। वाई-फाई देश के मध्यम वर्ग के लिए है और इस तरह आधुनिक मध्यम वर्ग का प्रतीक है। वाई-फाई यानी इंटरनेट और इंटरनेट आधुनिक मध्यम वर्ग की जान है। रही सफाई की बात तो हमेशा से ही सफाई मजदूर वर्ग या समाज के सबसे निचले हिस्से आती रही है। भारत की जाति-वर्ग व्यवस्था में सफाई करने वाली जातियां सबसे नीचे की श्रेणी में आती थीं।
सफाई को इस तरह से मुद्दा बनाकर देश के वर्तमान प्रधानमंत्री ने एक खास तरह की सफलता हासिल की है। वैसे यह कहना पड़ेगा कि यह शासकों का पुराना हथकंडा रहा है।
सफाई अभियान चलाकर मोदी एण्ड कंपनी ने यह स्थापित करने की कोशिश की है कि गंदगी जनता की, खासकर गरीब जनता की आदतों का परिणाम है। यदि गरीब जनता अपनी आदतें ठीक कर ले तो सफाई की समस्या हल हो जायेगी।
ऐसा करते ही गंदगी के लिए जिम्मेदार असली लोग पटल से गायब हो जाते हैं। असली कारक हवा हो जाते हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि फिर गंदगी की समस्या के लिए गरीब आबादी को जिम्मेदार ठहरा कर पूरी व्यवस्था मुक्त हो जाती है।
आज गंदगी की समस्या सबसे भीषण रूप में शहरों में मौजूद है। इस समस्या के कुछ निश्चित आयाम हैं। यह मुख्यतः शहरों की नदियों और नालों, गली-मुहल्लों की सड़कों-नालियों-सीवर लाइनों तथा झुग्गी बस्ती से संबंधित है। और इनमें से एक के लिए भी गरीब आबादी जिम्मेदार नहीं है।
शहरों के बीच से और आस-पास से गुजरने वाले नदी-नाले आज बुरी तरह प्रदूषित हो चुके हैं। सूखे मौसम में तो ये बस बहती गंदगी के नमूने बन जाते हैं। यह मुख्यतः फैक्टरियों के कचड़े और सीवर लाइन के कारण होता है। नदी-नालों के प्रदूषण की यह भीषण समस्या किसी झाडू से हल नहीं हो सकती क्योंकि इसका झाडू से कोई लेना-देना नहीं है। इस समस्या का समाधान सरकार के स्तर पर बड़े स्तर के हस्तक्षेप की मांग करता है। इसमें पूंजीपतियों के मुनाफे पर अंकुश भी शामिल है।
शहरों में निम्न मध्यम वर्गीय बस्तियों से लेकर झुग्गी बस्तियों तो गलियों में नालियों तथा आम तौर पर सीवर लाइन की गंभीर समस्या होती है। इस कारण अक्सर ही गंदा पानी या सीवर गलियों में फैलता रहता है। ऐसे में यह उम्मीद करना बेवकूफी होगी कि लोग झाडू लेकर गलियों की सफाई करें।
रही झुग्गी बस्तियों की बात तो शहरों की ये सबसे गरीब बस्तियां जीता-जागता नरक कुण्ड हंै। यहां सफाई की बात करना ही बेमानी है। यहां रहने वाली गरीब-मजदूर आबादी अपने घर को यथासम्भव साफ-सुथरा रखती है पर घर के बाहर कुछ भी साफ रखना संभव नहीं हो पाता। इसके लिए वहां रहने वाली आबादी को दोष देना परले दर्जे की धूर्तता होगी।
इन स्थितियों को देखते हुए झाडू हाथ में लेकर फोटो खिंचवाने का केवल एक ही मतलब है- लोगों को धोखा देना। इससे वास्तविक समस्या का न केवल रत्ती भर भी समाधान नहीं होता बल्कि वास्तविक समाधान से ध्यान हटाया जाता है।
भारत का शासक वर्ग पिछले सात दशकों से यह करता आया है। वह समस्याओं का समाधान करने के बदले शिगूफे छोड़ता रहा है। मोदी एण्ड कंपनी इसकी ताजा कड़ी है। जहां नेहरू और उनके उत्तराधिकारी इसे नफासत से करते थे वहीं संघी अपने चरित्र के अनुरूप इसे भौंडे तरीके से कर रहे हैं।
बहुत जल्दी ही सफाई का उनका यह शिगूफा अपना आकर्षण खोेने लगेगा और तब तक वे किसी अन्य शिगूफे की ओर बढ़ चुुके होंगे। 

शांति का नोबेल एक बार फिर शांति के लिए नहीं

वर्ष-17,अंक-20(16-31 अक्टूबर, 2014)

       इस वर्ष का शांति का नोबेल पुरूस्कार भारत के कैलाश सत्यार्थी व पाकिस्तान की मलाला युसुफजई को दिया गया है। कैलाश सत्यार्थी जहां ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ से जुड़े हैं वहीं मलाला तालिबान हमले का शिकार हुई लड़कियों की शिक्षा की लड़ाई लड़ने वाली कही जाती हैं। दोनों ही शख्सियतें गैरसरकारी संगठनों से जुड़ी हैं। इस तरह शांति का नोबेल इस वर्ष भी पूर्व के कुछ वर्षों की भांति शांति से दूर-दूर तक कोई सरोकार न रखने वाले व्यक्तियों को दिया गया। 

     साम्राज्यवादियों द्वारा नियंत्रित यह पुरूस्कार एक सोची-समझी नीति के तहत शांति के नाम पर उन लोगों को दिया जाता रहा है जो शांति के नाम पर साम्राज्यवादी लूट-अत्याचार के समर्थक रहे हों। पिछले कुछ वर्षों से तो यह उन व्यक्तियों-संस्थाओं तक को दिया गया जिनका रिकार्ड शांति के लिए नहीं बल्कि अशांति व युद्धों के लिए जगजाहिर है। ओबामा, यूरोपीय यूनियन को शांति का नोबेल इसका उदाहरण है। बांग्लादेश के मोहम्मद युनुस की तरह इस वर्ष के सत्यार्थी-मलाला का शांति से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है। 

Wednesday, October 1, 2014

अपील

जम्मू-कश्मीर में सितम्बर माह के प्रथम सप्ताह में आई बाढ़ व भू-स्खलन के कारण आम मेहनतकशों को जान-माल का भारी नुकसान उठाना पड़ा है। ‘नागरिक’ व जनपक्षधर संगठनों के संयुक्त प्रयास से बने ‘जम्मू-कश्मीर आपदा राहत मंच’ के जरिये वहां कुछ स्थानों पर मेडिकल कैम्प लगाये जा रहे हैं। ‘नागरिक’ अपने पाठकों व शुभेच्छुओं से इस हेतु बढ़-चढ़ कर मदद करने की अपील करता है। पिछले वर्ष उत्तराखण्ड में आई आपदा के समय इकट्ठे किये गये धन से बची राशि के द्वारा मेडिकल कैम्प शुरू किया जा चुका है। आप स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया रामनगर (नैनीताल) उत्तराखण्ड के निम्न अकाउण्ट के जरिये आर्थिक योगदान कर सकते हैं।
‘नागरिक अधिकारों को समर्पित’ 
खाता संख्याः 30488926725
सम्पर्क हेतु फोन नम्बरः 7500714375

कश्मीर आपदा: दोषी कौन?

वर्ष-17,अंक-19  (01-15 अक्टूबर, 2014)
धरती का स्वर्ग कही जाने वाली कश्मीर घाटी आज भयानक आपदा का शिकार है। वहां की डल झील लगभग समूची कश्मीर घाटी को निगल चुकी है। झेलम नदी का तांडव सैकड़ों लोगों की जानें ले चुका है। ऐसे में सहज ही सवाल उठ खड़ा होता है कि इस आपदा का जिम्मेदार कौन है? क्या यह आपदा प्रकृति द्वारा लायी गयी ऐसी आपदा थी जिसके आगे मानव जाति असहाय है या फिर से एक ऐसी आपदा थी जो समय रहते रोकी जा सकती थी। जान-माल के भारी नुकसान से बचा जा सकता था। और अगर ऐसा था तो ऐसा क्यों नहीं किया गया?
हमारे देश में एक परंपरा सी चल पड़ी है कि वर्षा, बाढ़, भूस्खलन सरीखी घटनाओं को प्राकृतिक आपदा की तरह पेश कर दिया जाय। हमारे देश का शासक वर्ग और सरकारें ऐसा ही करती हंै। वे देश की भोली-भाली मेहनतकश जनता को यह झूठी घुट्टी पिलाते हैं कि प्रकृति के इस कहर से बचना असंभव था। इस वर्णन से शासक वर्ग अपनी उन करतूतों को छिपा ले जाते हैं जिससे प्रकृति को कहर बरपाने की ओर ढकेला गया है। शासकों ने प्राकृतिक आपदा का राग उत्तराखण्ड आपदा के समय भी गाया और अब कश्मीर के वक्त भी गाया जा रहा है।

अमेरिकी साम्राज्यवादी और आई.एस.आई.एस.

वर्ष-17,अंक-19 (01-15 अक्टूबर, 2014)
        अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने आई.एस.आई.एस. से लड़ने के लिए तीस देशों का एक गठबंधन बना लिया है। यह खबर किसी चीज की याद दिलाता है? हां! यह एकदम चिरपरिचित लगता है। इसके पहले अमेरिकी साम्राज्यवादी तालिबान से लड़ने के लिए कई देशों का गठबंधन बना चुके हैं और फिर अलकायदा से लड़ने के लिए। इसके भी बहुत पहले वे सोवियत राक्षस से लड़ने के लिए चार दशकों तक नाटो नाम का गठबंधन बना और चला चुके हैं।
यह चिरपरिचित कहानी असल में पिछले पांच-छः दशकों से अमेरिकी साम्राज्यवादियों की रणनीति रही है, सारी दुनिया में अपनी साम्राज्यवादी गतिविधियां करने के लिए। सोवियत संघ और सोवियत खेमा तो उनकी इच्छा और विरोध के बावजूद अस्तित्व में आया था परंतु तालिबान, अलकायदा और अब आई.एस.आई.एस. को खुद इन्होंने ही पाल-पोस कर बड़ा किया था।

टूटते गठबंधन

वर्ष-17,अंक-19 (01-15 अक्टूबर, 2014)
        पहले हरियाणा और फिर महाराष्ट्र में स्थापित गठबंधन विधानसभा चुनाव के पहले बिखर गये। जिस गठबंधन के टूटने से सबसे ज्यादा शोर मचा वह भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना का 25 वर्ष पुराना गठबंधन है। इस गठबंधन के टूटने के चंद घंटे बाद ही महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस का भी गठबंधन टूट गया। कांग्रेस के जहाज को डूबता देख शरद पवार की पार्टी उससे बाहर कूद पड़ी।
लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत हासिल कर केन्द्र की सत्ता में काबिज भाजपा ने हरियाणा व महाराष्ट्र में अपनी शर्र्ताें पर गठबंधन चाहा था परन्तु दूसरे दलों ने भाजपा के सामने झुकने से इंकार कर दिया। जहां तक कांग्रेस पार्टी की बात है, यह अनुमान लगाया जा रहा है कि क्योंकि दोनों ही राज्यों में उसके नेतृत्व में सरकार रही हैै अतः दुबारा सत्ता में उसका वापस लौटना मुश्किल है। कांग्रेस पार्टी का स्थान लेने का दावा भाजपा का है और उसे उम्मीद है कि वह, वह करिश्मा पुनः दोहरा लेगी जो उसने चंद माह पहले आम चुनाव में दिखाया था। हालांकि इस बाद की संभावना पर ग्रहण हालिया उपचुनावों से लग गया है। इन उपचुनावों में भाजपा को झटका लगा है। उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, बिहार में वह अपनी उन सीटों को दुबारा नहीं जीत पायी जो उसके पास पहले से थी। नरेन्द्र मोदी का नशा अब हैंग ओवर बन चुका है।

Tuesday, September 16, 2014

ये मंजर पहले भी देखे हैं

16-30 सितम्बर, 2014
पाकिस्तान भारत का ‘छोटा भाई’ है। वैसे चूंकि पाकिस्तान भारत के विभाजन से बना है इसलिए इसे पौराणिक कथाओं के अनुसार भारत का पुत्र भी कहा जा सकता है। जो भी हो, दोनों मामले में  यह कहा जा सकता है कि उसमें भारत के कुछ गुण तो होंगे ही। अगस्त के अंत और सितंबर के उत्तरार्ध ने इसे प्रदर्शित भी किया। 
आज से दो-तीन साल पहले अपने प्यारे हिन्दुस्तान में अन्ना हजारे एवं केजरीवाल एण्ड कंपनी की बड़ी धूम थी। वे भारत को बदल देने के लिए मैदान में उतरे थे। कम से कम वे भ्रष्टाचार को तो पूरी तरह खत्म ही करने वाले थे। यह उस जमाने की बात है जब नरेन्द्र मोदी ने पूरी तरह टी.वी. चैनलों पर कब्जा नहीं किया था। तब वे ही भारत के उद्धारक घोषित किये जा रहे थे। भारत का कायांतरण तब केवल वक्त की बात थी। 

इस्लामिक स्टेट के बहाने सीरिया पर निशाना

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस्लामिक स्टेट आफ इराक एण्ड सीरिया (आई एस आई एस- जिसे आजकल संक्षेप में इस्लामिक स्टेट कहा जा रहा है) के खिलाफ अपने हवाई हमलों की जद में सीरिया को भी ले लिया है। आईएस का इराक व सीरिया के एक बड़े भाग में पिछले वर्षों से कब्जा रहा है। आई एस ने जब अमेरिका के हितों को इराक में गम्भीर खतरा पैदा कर दिया तब उसने अपनी फौज को उसके खिलाफ इराक में पुनः आक्रामक मुद्रा में ला दिया। ध्यान रहे कि यह एक सफेद झूठ है कि ओबामा ने इराक और अफगानिस्तान से अपनी फौज वापस बुला ली। इन दोनों ही देशों में अमेरिका ने बगदाद और काबुल में विशाल सैन्य अड्डा कायम किये हुए हैं और ऐसे सैन्य अड्डे पूरे देश में भी फैले हुए हैं। पश्चिम एशिया में अमेरिकी सैन्य अड्डे कई देशों में है तो भूमध्य सागर, लाल सागर और अरब की खाड़ी में उसकी नौसेना तैनात है।
सीरिया की असद सरकार अमेरिका की आंखों में दशकों से चुभती रही है। वर्ष 2011 के अरब जनउभार का लाभ उठाकर वह असद सरकार को गिराना चाहता था परन्तु उसमें उसे अभी तक कामयाबी नहीं मिल पायी है। उसकी सारी योजनाएं रूसी साम्राज्यवादियों के और ईरान के कारण ही असफल नहीं हुयी बल्कि स्वयं असद सरकार शुरूवाती गम्भीर झटकों के बाद अपनी स्थिति दिनों दिन मजबूत करती चली गयी। असद सरकार ने पिछले कुछ महीनों में आईएस को भी गम्भीर नुकसान पहुंचाया और उसे पीछे हटने को मजबूर किया। परन्तु आईएस का इसके बावजूद सीरिया के एक भाग में कब्जा रहा है। आईएस की इस कार्यवाही में न केवल अमेरिका बल्कि सऊदी अरब सहित कई अरब देश और इजरायल मदद करते रहे हैं। 

जम्मू कश्मीर में मची तबाही: सैकड़ों मरे, हजारों विस्थापित

निकम्मी शासन प्रणाली की पोल फिर खुली

सितम्बर माह के पहले हफ्ते में हुयी भारी बारिश ने जम्मू-कश्मीर में भयानक तबाही फैला दी। 400 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं तथा चार लाख से अधिक लोग अकेले श्रीनगर में सितम्बर माह के दूसरे हफ्ते तक भी फंसे हुए थे। इस तबाही में हजारों लोग बेघर हो गये और उनकी गृहस्थी पूरे तौर पर उजड़ गयी। 
इस बाढ़ में ‘जम्मू-कश्मीर की उमर अब्दुल्ला की सरकार भी बह गयी’, ऐसा खुद इस राज्य के मुख्यमंत्री का कहना था। श्रीनगर शहर में आई बाढ़ में सरकारी दफ्तर, हाइकोर्ट, सरकारी आवास, टेलीविजन प्रसारण केन्द्र आदि सभी जलमग्न हो गये। जो ‘जलमग्न सरकार’ अपनी ही सुरक्षा नहीं कर सकी वह भला आम जनता को क्या सहायता पहुंचाती। सेना को उतारकर ही पुनः व्यवस्था की जा रही है। जम्मू-कश्मीर में भारी वर्षा व बाढ़ के कारण हजारों लोगों को पलायन भी करना पड़ा है। वे भोजन, दवा, कपड़े, छत आदि के अभाव में दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। पीने के पानी, रसोई गैस, बिजली, डीजल-पैट्रोल आदि के अभाव और संचार सेवाओं के ठप्प हो जाने के कारण हालात और खराब हो गये हैं। 

Saturday, August 16, 2014

इराक का संकट और गहराया

इराक का संकट लम्बा और गहराता जा रहा है। अमेरिकी साम्राज्यवादी पुनः इराक में आक्रामक मुद्रा में आ गये हैं। अमेरिकी बमवर्षक विमान इस्लामिक स्टेट आॅफ इराक और अल शाम (आईएसआईएस) के कब्जे वाले शहरों पर बम बरसा रहे हैं। यह कोई छुपी हुयी बात नहीं है कि कुछ वर्ष पूर्व इस संगठन को अमेरिका, इजरायल, सऊदी अरब व कतर ने खड़ा किया था। 
इराक की अमेरिका समर्थित वर्तमान सरकार को बदलने के लिए अमेरिका ने घृणित हथकण्ड़ों का सहारा लिया है। इराक के राष्ट्रपति फौद मासूम ने नूरी अल मलिकी की सरकार को हटा दिया है और हैदर अल-एबादी को प्रधानमंत्री नियुक्त किया है। अमेरिका बहुत दिनों से मलिकी की सरकार को हटाना चाहता था। इराक के वर्तमान संकट का दोषी वह मलिकी को मानता है। अमेरिका के अनुसार मलिकी ने सुन्नियों को सत्ता में भागीदारी न देकर इस संकट को जन्म दिया है। इस तरह से अमेरिका अपने घृणित अपराधों को अपने देश और दुनिया की जनता से छिपा ले जाना चाहता है। 

साहेब और बहादुर

भारत का पूंजीवाद प्रचारतंत्र इस समय हर तरीके से देश की संघी सरकार या ज्यादा सही-सही कहें तो मोदी सरकार का समर्थन करने में लगा हुआ है। इसके लिए वह किसी भी तुच्छ घटना को एक शानदार कारनामे की तरह पेश करता है। 
नरेन्द्र मोदी की हालिया नेपाल यात्रा के समय ऐसे ही हुआ। सारे ही अखबारों और टीवी चैनलों ने प्रमुखता से देश को बताया कि कैसे मोदी ने दसियों सालों से अपने परिवार से बिछुड़े एक लड़के को उसके परिवार से मिलाया। बताया गया कि एक छोटा सा बालक देश में यूं ही भटक रहा था। उसे यह भी पता नहीं था कि उसके मां-बाप नेपाल में कहां रहते हैं। किसी गुजराती सज्जन को यह बालक मिला तो उन्होंने उसे नरेन्द्र भाई को सौंप दिया। नरेन्द्र भाई ने उसे अहमदाबाद में अपने पास रखा। अब इतने सालों बाद जब वे प्रधानमंत्री बने तो उसे अपने पास नहीं रख सकते थे। सो उन्होंने उसका बी.बी.ए. में पढ़ाई के लिए प्रवेश करा दिया। इस बीच उन्होंने नेपाल में उसके घर का पता करवाया और जब यात्रा पर नेपाल गये तो उसे उसके परिवार को सौंप दिया। 

भाजपा का नया अध्यक्ष

भारी तामझाम के बीच औपचारिक तौर पर अमित शाह को भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष चुन लिया गया। हालांकि इस चुनाव की आवश्यकता नहीं थी। क्योंकि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और नरेन्द्र मोदी ने अमितशाह का चुनाव पहले ही कर लिया था। संघ और मोदी के फैसले के बाद अमित शाह का विरोध करने की हिम्मत भाजपा में किसके पास थी। 
अमित शाह की कई खासियतें हैं। एक बड़ी खासियत यह है कि इस सज्जन को सर्वोच्च अदालत ने गुजरात राज्य से अपराधिक मुकदमों में दखलंदाजी न करने देने के लिए तड़ीपार किया हुआ है।

Friday, August 1, 2014

इस्राइल का फिलिस्तीन पर हमला जारी

जुलाई माह की शुरूआत से ही एक बार फिर से इजरायल ने फिलिस्तीन पर हमला बोल दिया है। पहले हवाई बमबारी और अब जमीनी हमले में अब तक 1000 से अधिक फिलिस्तीनी नागरिक मारे जा चुके हैं और हजारों घायल हो चुके हैं। मरने वालों में 100 से अधिक बच्चे हैं। फिलिस्तीन के स्कूल, अस्पतालों-बिजली उत्पादन संयत्र सबको इजरायल बमबारी में तबाह कर दिया गया है। इजरायल दुनिया भर में हो रही अपनी निन्दा के बावजूद हमला जारी रखे हुए है। फिलिस्तीनियों और हमास के प्रतिरोध में इजरायल के भी तीन दर्जन से अधिक सैनिक मारे जा चुके हैं।  
हमले के बहाने के बतौर इस्राइल ने हमास पर यह आरोप लगाया कि उसने युद्ध विराम का उल्लंघन करके 3 इस्राइली किशोरों का अपहरण कर उनकी हत्या कर दी। हमास ने इस्राइल के इस आरोप का खण्डन किया है पर साथ ही यह भी कहा कि युद्ध विराम का पिछला समझौता जिसमें फिलीस्तीन नागरिकों को एक तरह से कंस्ट्रक्शन कैम्पों में ठूंस दिया है, उसे मान्य नहीं है। इस्राइल द्वारा हमले की शुरूआत के बाद हमास ने भी कुछ राकेट इस्राइल की ओर छोड़े जिनमें 2 इस्राइली मारे गये। फिर भी इस्राइल की विशाल सैन्य शक्ति से हमास का कोई मुकाबला नहीं है।

और अब सहारनपुर में साम्प्रदायिक दंगा

उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक दंगे रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। पूरे प्रदेश में जबरदस्त साम्प्र्रदायिक तनाव भाजपा और संघियों द्वारा कायम किया हुआ है। ऐसी स्थिति में किसी भी छोटी सी घटना को साम्प्रदायिक रंग देकर दंगे प्रायोजित किये जा रहे हैं। सहारनपुर की घटना भी ऐसी है। महीनों से सहारनपुर में किसी न किसी रूप में तनाव कायम था। उसे विस्फोटक रूप धारण करना था। अंततः उसने कर लिया। इन दंगों में तीन लोग मारे गये और दर्जनों घायल हो गये। शहर के छह थानों में कफ्र्यू लगा दिया गया।
सहारनपुर में सिख और मुस्लिम सम्प्रदाय के लोगों के बीच जमीन को लेकर विवाद था। विवाद अदालत में चल रहा है परन्तु उस पर किये जाने वाले निर्माण को साम्प्रदायिक दंगे का रूप दे दिया गया। कमोवेश इसी तरह मुरादाबाद के कांठ कस्बे में भी जारी तनाव साम्प्रदायिक तत्वों की पैदाइश है। संघी व भाजपाई इस तनाव को लगातार बनाये रखने में अपनी ऊर्जा लगा रहे हैं।

हम चुनाव नहीं चाहते.. कोई चुनाव नहीं चाहता

दिल्ली विधान सभा की स्थिति अजीब सी है। उसे पिछले पांच महीने से ‘सस्पेंडेड एनिमेशन’ में रखा गया है यानी जिन्दा तो है पर काम नहीं करेगी और भविष्य में इसका क्या होगा यह दिलचस्प है।   
जब फरवरी में केजरीवाल एण्ड कम्पनी की सरकार ने इस्तीफा दिया तो उन्होंने विधान सभा भंग कर नये चुनाव कराने की सिफारिश भी की थी। पर तब कांग्रेस की केन्द्र सरकार कुछ और ही समीकरण देख रही थी। उसे लग रहा था लोकसभा चुनावों के बाद फिर से आम आदमी पार्टी के साथ सरकार बनाने की जरूरत पड़ सकती है। कम से कम वह लोकसभा चुनावों के साथ चुनाव करवाकर अपनी और फजीहत नहीं करना चाहती थी। उसे परिणाम का अंदाजा था। उसे उम्मीद थी कि वक्त के साथ उसके प्रति जनता की नाराजगी कम हो जायेगी। इसीलिए फरवरी में विधान सभा भंग नहीं हुई।