Tuesday, September 16, 2014

इस्लामिक स्टेट के बहाने सीरिया पर निशाना

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस्लामिक स्टेट आफ इराक एण्ड सीरिया (आई एस आई एस- जिसे आजकल संक्षेप में इस्लामिक स्टेट कहा जा रहा है) के खिलाफ अपने हवाई हमलों की जद में सीरिया को भी ले लिया है। आईएस का इराक व सीरिया के एक बड़े भाग में पिछले वर्षों से कब्जा रहा है। आई एस ने जब अमेरिका के हितों को इराक में गम्भीर खतरा पैदा कर दिया तब उसने अपनी फौज को उसके खिलाफ इराक में पुनः आक्रामक मुद्रा में ला दिया। ध्यान रहे कि यह एक सफेद झूठ है कि ओबामा ने इराक और अफगानिस्तान से अपनी फौज वापस बुला ली। इन दोनों ही देशों में अमेरिका ने बगदाद और काबुल में विशाल सैन्य अड्डा कायम किये हुए हैं और ऐसे सैन्य अड्डे पूरे देश में भी फैले हुए हैं। पश्चिम एशिया में अमेरिकी सैन्य अड्डे कई देशों में है तो भूमध्य सागर, लाल सागर और अरब की खाड़ी में उसकी नौसेना तैनात है।
सीरिया की असद सरकार अमेरिका की आंखों में दशकों से चुभती रही है। वर्ष 2011 के अरब जनउभार का लाभ उठाकर वह असद सरकार को गिराना चाहता था परन्तु उसमें उसे अभी तक कामयाबी नहीं मिल पायी है। उसकी सारी योजनाएं रूसी साम्राज्यवादियों के और ईरान के कारण ही असफल नहीं हुयी बल्कि स्वयं असद सरकार शुरूवाती गम्भीर झटकों के बाद अपनी स्थिति दिनों दिन मजबूत करती चली गयी। असद सरकार ने पिछले कुछ महीनों में आईएस को भी गम्भीर नुकसान पहुंचाया और उसे पीछे हटने को मजबूर किया। परन्तु आईएस का इसके बावजूद सीरिया के एक भाग में कब्जा रहा है। आईएस की इस कार्यवाही में न केवल अमेरिका बल्कि सऊदी अरब सहित कई अरब देश और इजरायल मदद करते रहे हैं। 

यह आज कोई छुपी बात नहीं रह गयी है कि आईएस को एक समय में अमेरिका-इजरायल-सऊदी अरब की तिकड़ी ने ही मूलतः खड़ा किया था। कट्टर सुन्नी सम्प्रदायवाद के उग्र प्रचारक इस संगठन का लक्ष्य सीरिया व इराक मंे अपनी हुकूमत कायम करने का है। ऐसे कट्टर सुन्नी सम्प्रदाय वाली सत्ता को इजरायल और सऊदी अरब शिया बहुल देशों सीरिया, इराक, ईरान और लेबनान के हमास के खिलाफ अपने रणनीतिक हितों के अनुरूप देखते रहे हैं। 
आईएस का कट्टर धार्मिक दृष्टिकोण और खिलाफत की स्थापना स्वयं करोड़ों सुन्नी धर्मालंबियों के ही खिलाफ नहीं जा रही थी बल्कि स्वयं इन देशों की सत्ता के लिए भी एक चुनौती के रूप में कालांतर में पेश होने लगी। अमेरिका के हितों को आईएस ने सीधे ही चुनौती दे डाली थी। अतः अब आईएस के खिलाफ अमेरिकी हमलों में न केवल पश्चिम साम्राज्यवादी देश बल्कि अरब के दस देशों सऊदी अरब, मिस्र, इराक, जार्डन, बहरीन, कुवैत, लेबनान, ओमान, कतर और संयुक्त अरब अमीरात का भी साथ मिल गया है। अमेरिकी साम्राज्यवादी और उसके सहयोगियों ने जिस दैत्य को तैयार किया वह अब उसके लिए भी चुनौती बनने लगा। 
अमेरिकी साम्राज्यवादी अरब देशों में हस्तक्षेप के लिए दशकों से घृणित चालें चलते रहे हैं। आईएस को जन्म देना और अब उसके विनाश की घोषणा करना उनकी सोची-समझी घृणित चालों का नमूना है। नब्बे के दशक में कुछ ऐसी चाल अमेरिका ने सद्दाम हुसैन के साथ चली थी। पहले सद्दाम हुसैन को कुवैत पर हमले के लिए लाइसेंस दिया और जब उसने कुवैत पर कब्जा कर लिया तब कुवैत की मुक्ति के नाम पर न केवल कुवैत बल्कि इराक को भी एक तरह से हड़प लिया। आज कुवैत व इराक के तेल ठिकानों पर न केवल अमेरिकी कंपनियों का कब्जा है बल्कि इस कब्जे को बनाये रखने के लिए इन देशों में अमेरिका ने अपने सैन्य अड्डे भी कायम कर लिये। आज वह आईएस के विनाश के नाम पर यही काम सीरिया में करना चाहता है। इस तरह वह एक तीर से दो निशाने साधना चाहता है। 
सीरिया के मामले में अमेरिका की मुश्किल यह है कि यहां रूसी साम्राज्यवादियों के साथ ईरान के भी हित जुड़े हैं। सीरिया परम्परागत तौर पर रूसी साम्राज्यवादियों के साथ रहा है। सीरिया में रूस का सैन्य अड्डा भी है। रूस सीरिया में अमेरिकी हस्तक्षेप का अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के नाम पर विरोध कर रहा है। 
सीरिया की सरकार कूटनीतिक फैसले के साथ अपने सामरिक हितों के लिए अमेरिका के आईएस के खिलाफ हमले में साथ देने को तैयार है। परन्तु अमेरिकी साम्राज्यवादी ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि यह असद सरकार को वैधता देना होगा जो कि उसके घृणित मंसूबों के खिलाफ होगा। परन्तु असद सरकार ने ऐसा करके कूटनीतिक परिपक्वता का वैसा ही परिचय दिया जैसा उसने अपने रसायनिक हथियारों को अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को सौंप कर दिया। असद सरकार की मजबूूती अमेरिकी साम्राज्यवादियों की आंखों में चुभ रही है। वे आईएस के बहाने उसे चकनाचूर करने के मंसूबे बांध रहे हैं।। 

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