Saturday, August 15, 2015

सूचना- वार्षिक सेमिनार 2015

प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी ‘नागरिक’ द्वारा सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है। शहीद भगतसिंह की याद में होने वाले इस सेमिनार का विषयः हिन्दू फासीवाद और मीडिया है। ‘नागरिक’ के सभी पाठकों, संवाददाताओं, शुभेच्छुओं से इस आयोजन को सफल बनाने की अपील की जाती है।
विषयः हिन्दू फासीवाद और मीडिया
दिनांकः 27 सितम्बर (रविवार), 2015
समयः प्रातः 10 बजे से सांय 5 बजे 
स्थानः गांधी पीस फाउण्डेशन
  दीन दयाल उपाध्याय मार्ग मण्डी हाउस
  (तिलक ब्रिज रेलवे स्टेशन के पास)
   नई दिल्ली
सम्पर्कः कमलेश (नागरिक कार्यालय)
  मो.न.- 07500714375
  हरीश (दिल्ली, नागरिक संवाददाता)
  मो.न.- 09654298344
सम्पादक

कानून बने तो लूट हो आसान

वर्ष-18, अंक-16(16-31 अगस्त, 2015)
    भूमि अधिग्रहण विधेयक पर मुंह की खाने के बाद नरेन्द्र मोदी की सरकार ने संसद के वर्तमान सत्र में वस्तु एवं सेवाकर (गुड्स एण्ड सर्विसेज टैक्स) विधेयक को पारित करवाने के लिए हर हथकंडे को अपनाया है। इस विधेयक को लोकसभा पहले ही पारित कर चुकी है परन्तु विधेयक राज्य सभा में अटका है। यह एक ऐसा संवैधानिक विधेयक है जिसे राज्यसभा में दो तिहाई बहुमत से पास होना चाहिए और साथ ही देश की आधी विधानसभाओं से भी मंजूरी मिलनी चाहिए।  
    वस्तु एवं सेवा कर विधेयक उनके आर्थिक सुधार के वर्तमान चरण में सबसे महत्वपूर्ण विधेयकों में से एक है। यह विधेयक, कर ढांचे (टैक्स स्ट्रक्चर) में आमूलचूल  परिवर्तन कर देगा। इस विधेयक के पारित हो जाने के बाद पूरा भारत एक ऐसी आर्थिक इकाई में बदल जायेगा जिसकी मांग लम्बे समय से देशी-विदेशी एकाधिकारी घराने करते रहे हैं। संसद में हंगामे के कारण इस विधेयक के पारित न होने पर दुखी इन वित्तपतियों में से कई ने लूट की राह को आसान बनाने के लिए आन लाइन मांग के एक नये तरीके का इस्तेमाल किया जिसमें संसद के हंगामे के कारण इस विधेयक के पास न होने पर क्षोभ व्यक्त किया गया।

46 वां श्रम सम्मेलन: श्रम पर हमला जारी है...

वर्ष-18, अंक-16(16-31 अगस्त, 2015)
    21-22 जुलाई को 46 वां श्रम सम्मेलन सम्पन्न हुआ। मजदूरों की एक भी मांग पर सहमति के बगैर यह समाप्त हो गया। प्रधानमंत्री मोदी ने लच्छेदार बातों से इसका उदघाटन किया। अपनी बातों में उन्होंने श्रम सुधारों की वकालत करते हुए इसे पूंजी व श्रम दोनों के फायदे का घोषित कर डाला। मजदूरों की मांगों पर एक शब्द भी खर्च किये बगैर वे खुद ही सरकार को सबसे बड़ा मजदूर हितैषी बता कर चलते बने। 
    इस श्रम सम्मेलन में 12 केन्द्रीय ट्रेड यूनियन केन्द्रों के प्रतिनिधियों, पूंजीपति वर्ग के प्रतिनिधियों व केन्द्र-राज्य के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। किसी समय कल्याणकारी राज्य के जमाने में ये श्रम सम्मेलन पूंजी व श्रम के बीच सरकार की मध्यस्थता में सौदेबाजी का मंच थे। पर आज के नवउदारवादी दौर में जब पूंजी ने श्रम पर हमला बोल रखा हो और सरकार निर्लज्जता से पूंजी के पक्ष में एक के बाद एक कदम उठा रही हो तब ये श्रम सम्मेलन औपचारिकता के अलावा कोई महत्व नहीं रखते। 
    श्रम सम्मेलन का महत्व मोदी सरकार की निगाह में कितना है इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि लगभग एक वर्ष से यह टल रहा है। सरकार तमाम श्रम कानूनों में संशोधन के लिए अब न तो श्रम सम्मेलनों का इंतजार करती है और न ही केन्द्रीय फेडरेशनों के नेताओं को विश्वास में लेने की ही जरूरत समझती है।  
    पूंजी द्वारा श्रम पर बोले जा रहे हमले से लड़ने में केन्द्रीय ट्रेड यूनियन केन्द्रों की अक्षमता आज मजदूरों के साथ-साथ सरकार के सामने भी स्पष्ट है। हालत यह है कि भाजपा का भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) अपनी सरकार के खिलाफ संघर्ष का दिखावटी अगुआ बना हुआ है। इन सेण्टरों के वर्षों अर्थवाद-सुधारवाद में गोते लगाने व पूंजीवादी-संशोधनवादी दिशा होने से सरकार को इनके संघर्ष से कोई खतरा नहीं है। 

समझौता नगा मुक्ति के साथ छल

वर्ष-18, अंक-16(16-31 अगस्त, 2015)
    पिछले दिनों मोदी सरकार ने नगा विद्रोहियों से एक ‘ऐतिहासिक समझौते’ की घोषणा की। इस समझौते में क्या है? इसे समझौता करने वालों के अलावा कोई नहीं जानता। और मजे की बात है दोनों ही पक्षों में से कोई भी इस पर अभी तक कुछ बोलने को तैयार नहीं है। ऐसा क्यों हो रहा है? 
    ऐसा इसलिए हो सकता है कि समझौते में कुछ ऐसा है जिसे बताने से हर ओर हल्ला-गुल्ला मच सकता है। विरोध के स्वर उभर सकते हैं। 

Saturday, August 1, 2015

इस आतंक का कोई अंत नहीं

वर्ष 18, अंक-15(01-15 अगस्त, 2015)
    पंजाब के गुरूदासपुर जिले के दीनापुर कस्बे में 27 जुलाई को हुए एक आतंकी हमले में दस से अधिक लोग मारे गये। मरने वालों में निर्दोष नागरिक, सुरक्षाकर्मी और आतंकवादी भी हैं। 
    पंजाब में हाल के वर्षों में घटी यह पहली घटना है हालांकि जम्मू-कश्मीर सहित पूर्वोत्तर राज्यों में इस तरह की घटनाएं रोजमर्रा की बात हैं। भारत सरकार इसे पाकिस्तान से आये आतंकवादियों का कारनामा बता रही है परन्तु इस बात की भी संभावना व्यक्त की जा रही है कि यह पंजाब में पुनः खालिस्तानी आतंकवादियों की हरकत न हो।

पूंजीवादी पार्टियों की संसद में नूराकुश्ती

वर्ष 18, अंक-15(01-15 अगस्त, 2015)
    भारतीय संसद के मानसून सत्र की शुरूआत हंगामे के साथ हुई। संसद में एक बार फिर वही नजारा दोहराया जा रहा है जो कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में सप्रंग शासन के अंतिम वर्षों में हुआ था। बस फर्क सिर्फ इतना हुआ है कि सत्ता पक्ष तब विपक्ष में था और तब का सत्ता पक्ष अब विपक्ष में है। तब कांग्रेस पार्टी के भ्रष्टाचार के विरुद्ध भाजपा व उसके सहयोगियों ने संसद को बंधक बना लिया था और अब कांग्रेस व उसके सहयोगियों ने भाजपा के भ्रष्टाचार पर संसद को बंधक बना लिया है। यह सब पुरानी फिल्म का रीमेक है। 
    परन्तु यहां एक महत्वपूर्ण अन्तर है। भाजपा तब आक्रामक थी और कांग्रेस अपनी चोरी पर बैकफुट पर थी। परन्तु भाजपा सरकार चोरी करने के बावजूद आक्रामक है। वह अपनी चोरी पर सफाई देने या शर्मसार होने के बजाय कह रही है कि अगर हमने चोरी की है तो कांग्रेसियों ने भी तो चोरी की है और ऐसा करके भाजपा सरकार अपनी चोरी को बेशर्मी के साथ न्यायसंगत ठहराने पर लगी हुई है। 

चन्दन विष व्यापत नहीं...

वर्ष 18, अंक-15(01-15 अगस्त, 2015)
    पूंजीवादी राजनीति में यह आम चलन है कि खुद को चन्दन और दूसरों को भुजंग बताया जाये। लेकिन मामला तब रोचक हो जाता है जब चन्दन के भुजंग से लिपटने की बात आती है।
    चन्दन और भुजंग का यह प्रसंग अपने ताजे रूप में बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने छेड़ा जो पूंजीवादी प्रचारतंत्र की कृपा से ईमानदार व्यक्ति माने जाते हैं। पूंजीवादी प्रचारतंत्र से प्रभावित एक व्यक्ति ने नीतिश कुमार से ट्विटर पर पूछ लिया कि आप लालू प्रसाद यादव जैसे भ्रष्ट व्यक्ति के साथ कैसे गठजोड़ में आ गये? इस पर नीतिश कुमार ने रहीम का वह दोहा जड़ दिया जिसकी दूसरी पंक्ति इस प्रकार हैः ‘‘चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग’’। रहीम ने तो यह दोहा संतों के लिए कहा था पर नीतिश कुमार ने मान लिया कि यह उन पर भी लागू होता है। हो सकता है कि वे खुद को भारत की पतित पूंजीवादी राजनीति का संत मानते हों। पूंजीवादी प्रचारतंत्र की कृपा से उन्हें भी स्वयं के संत होेने का गुमान हो गया हो।