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देश व्यापी हड़ताल में जगह-जगह हुए प्रदर्शन व हड़तालें
वर्ष-18, अंक-18 (16-30 सितम्बर, 2015)
रुद्रपुर/ उत्तराखण्ड के रुद्रपुर में विभिन्न ट्रेड यूनियनों, मजदूर संगठनों एवं वामपंथी पार्टियों द्वारा संयुक्त रूप से अम्बेडकर पार्क में सभा की गयी और उसके बाद जुलूस निकाला गया जिसमें 1000 मजदूरों ने भागीदारी की। टाटा मोटर्स, एच.पी., नैस्ले, ब्रिटानिया, राने मद्रास और रिद्धी-सिद्धी में हड़ताल हुयी। टाटा मोटर्स में हड़ताल होने से टाटा वैण्डर पार्क सेक्टर-11 सिडकुल पंतनगर की दर्जनों कंपनियों को प्रबंधन द्वारा स्वयं ही बंद कर दिया गया। इसके अलावा बैंक और बीमा, रोडवेज में भी पूर्णतया हड़ताल रही। 
 सभा को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने मोदी सरकार द्वारा श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी संशोधनों की कड़े शब्दों में निंदा की। वक्ताओं ने कहा कि मोदी सरकार की कारपोरेट परस्त नीतियों का पर्दाफाश मजदूर-मेहनतकश जनता के बीच में होने लगा है। श्रमेव जयते, मेक इन इण्डिया आदि के लफ्फाजीपूर्ण नारों में अंबानी-अदाणी के अच्छे दिनों एवं मजदूर-मेहनतकश जनता की तबाही-बर्बादी की झलक आम जनता को साफ-साफ दिखाई पड़ रही है। 
    वक्ताओं ने रेखांकित किया कि एक ओर मोदी सरकार श्रम कानूनों को विघटित कर रही है, मजदूर-मेहनतकशों के विरोध में कानून बनाकर देशी-विदेशी कारपोरेटों की लूट को और अधिक सुगम बना रही है वहीं दूसरी ओर संघ मण्डली द्वारा देश भर में साम्प्रदायिक दंगे/तनाव रचकर मजदूर-मेहनतकश जनता को आपस में लड़ाकर एकता को खंडित किया जा रहा है। जनपक्षधर-क्रांतिकारी ताकतों को फासीवादी ताकतों के खिलाफ व्यापक संयुक्त मोर्चा बनाकर हिन्दू फासीवादी ताकतों को अलगाव में डालना होगा। बी.एम.एस. द्वारा हड़ताल से अपने कदम वापस खींच लिये जाने की भी निंदा की गयी। 
    सभा व जूलूस में इंकलाबी मजदूर केन्द्र, इण्टक, एक्टू, मजदूर सहयोग केन्द्र, नैस्ले यूनियन, सीपीआई, ठेका मजदूर कल्याण समिति, सीपीआईएमएल, ऐरा श्रमिक संगठन, रिद्धी-सिद्धी कर्मचारी संगठन, राने मद्रास यूनियन, टाटा आॅटोकैम्प, आशा हैल्थ वर्कर यूनियन, रोडवेज, बीमा, बिजली आदि विभागों के प्रतिनिधि मौजूद थे।      रुद्रपुर संवाददाता
हल्द्वानी/ 2 सितम्बर को देशव्यापी हड़ताल की कडी में हल्द्वानी में भी हड़ताल घोषित की गयी। हड़ताल पर रही यूनियनों द्वारा जुलूस निकाला गया और श्रम कानूनों में हो रहे संशोधनों के विरोध में नारेबाजी की गयी तथा बुद्ध पार्क में सभा की गयी। 
    सभा में निजीकरण, वैश्वीकरण व उदारीकरण की नीतियों का विरोध किया गया। वक्ताओं ने कहा कि इन नीतियों को सभी सरकारों ने लागू किया है। सभी संस्थानों व फैक्टरियों में मजदूरों को ठेके, संविदा व मानदेय के रूप में रखा जा रहा है जिससे मजदूरों की आर्थिक स्थिति तंगहाली की अवस्था में पहुंच गयी है। महंगाई काफी बढ़ चुकी है। स्वास्थ्य संस्थानों व अन्य विभागों को पीपीपी मोड पर दिया जा रहा है। शिक्षा में फीसें काफी बढ़ा दी गयी हैं। 
    सभा में इस बात की आवश्यकता पर जोर दिया गया कि समाज में समाजवाद के संघर्ष को छेड़ने की जरूरत है ताकि सभी मजदूरों को बराबरी व स्वतंत्रता प्राप्त हो सके। 
    सभा में सीटू, इंटक, उत्तराखण्ड आशा हैल्थ वर्कर यूनियन, बी.एस.एन.एल. कैजुअल एण्ड कान्ट्रेक्ट वर्कर यूनियन, रोडवेज कर्मचारी संयुक्त परिषद, राज्य पथ परिवहन कर्मचारी यूनियन, उत्तराखण्ड बैंक इम्प्लाॅयीज, बीमा कर्मचारी संघ, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, इंकलाबी मजदूर केन्द्र, क्रालोस, आरएमएल एम्प्लाॅयी यूनियन, उत्तराखण्ड मेडिकल एण्ड सेल्स रिप्रेंजटेटिव एसोशियशन, उत्तराखण्ड वाहन चालक यूनियन, रोडवेज कर्मचारी यूनियन, तिपहिया आॅटो टैक्सी मालिक चालक वेलफेयर आदि संगठनों के प्रतिनिधि मौजूद थे। हल्द्वानी संवाददाता
रामनगर/रामनगर में दिनांक 2 सितम्बर को देशव्यापी आम हड़ताल के समर्थन में जुलूस निकाला। इसमें विभिन्न मजदूर व ट्रेड यूनियन के प्रतिनिधियों के अलावा बड़ी संख्या में आशा कार्यकर्ता मौजूद थीं। यह जुलूस सिविल अस्पताल से शुरू होकर बाजार की मुख्य गलियों से होते हुए एस.डी.एम. कोर्ट पर पहुंचा और वहां एक सभा की गयी। 
    सभा में वक्ताओं ने मोदी द्वारा श्रम कानूनों में किये जा रहे संशोधनों को खारिज किये जाने की मांग उठायी। मोदी सरकार द्वारा आम चुनावों के दौरान दिखाये गये ‘अच्छे दिनों’ का स्वप्न पर तंज कसते हुए कहा कि, ‘‘अच्छे दिनों को लाने का वायदा करने वाली सरकार मजदूर-मेहनतकशों से उनके अधिकार छीनने की तैयारी कर रही है। कुछ श्रम कानूनों में वह संशोधन कर चुकी है अब और आगे की तैयारी वह कर रही है। काले धन में से 15-15 लाख रुपये हरेक के खाते में डलवाने वाली मोदी की पार्टी के अध्यक्ष इसे चुनावी जुमला बता चुके हैं। 
    सभा में बोलते हुए आशा वर्कर संगठन की अध्यक्षा ने कहा कि उनके कठिन मेहनत के कारण आज महिलाओं में प्रसव के दौरान होने वाली मौतों की संख्या में काफी कमी आ चुकी है। उनको प्रसव वाली महिला की नौ महीने तक देखभाल करनी होती है और तब जाकर उन्हें 400 रुपये मिलते हैं। वे हारी-बीमारी के बावजूद इस काम में लगी रहती हैं। उनको कोई अवकाश नहीं मिलता है। वैसे तो उन्हें रीढ़ की हड्डी कहा जाता है लेकिन वे खुद अपना परिवार कैसे चलाएंगी यह नहीं सोचा जाता है। उन्होंने न्यूनतम वेतन 15,000 करने की भी मांग उठायी।
    जुलूस में वन निगम स्केलर संघ, पर्वतीय कर्मचारी शिक्षक संगठन, इंकलाबी मजदूर केन्द्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, भोजन माता संगठन, प्र्रगतिशील महिला एकता केन्द्र, बी.एम.एन.एल. कर्मचारी, ठेका मजदूर कल्याण समिति मोहान, व विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे।          रामनगर संवाददाता 
देशव्यापी हड़ताल का सिडकुल के मजदूरों के बीच प्रचार करना जुर्म है
वर्ष-18, अंक-18 (16-30 सितम्बर, 2015)
    केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों की 2 सितम्बर की राष्ट्रव्यापी हड़ताल सरकारी संस्थानों तक ही सीमित रही। निजी संस्थानों में हड़ताल के बारे में प्रचार करने की भी व्यवस्थापरस्त ट्रेड यूनियनों ने जहमत नहीं उठायी। हरिद्वार के सिडकुल में इंकलाबी मजदूर केन्द्र की हरिद्वार इकाई ने अपने दम पर ही केन्द्र सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों का पर्दाफाश करते हुए 2 सितम्बर की देशव्यापी हड़ताल का प्रचार किया। 
    इसी प्रचार अभियान के तहत इंकलाबी मजदूर केन्द्र के महासचिव अमित कुमार सहित कुछ कार्यकर्ता 31 अगस्त की शाम को रावली महदूद में फैक्टरियों से लौट रहे मजदूरों के बीच पर्चा बांट रहे थे और चैलेंजर (छोटा माइक) से प्रचार कर रहे थे। इस दौरान सिडकुल थाने का एक पुलिसवाला पहुंचा और आपत्ति करने लगा। वह कहने लगा कि ‘‘पहले भी तुमने एवरेडी में हड़ताल करवायी थी और फिर हड़ताल करवा रहे हो।’’ इमके के साथियो के द्वारा पूछा गया कि हम कौन सा गैर कानूनी काम कर रहे हैं तो उसने कहा कि तुम सरकार की बुराई कर रहे हो। इमके के साथियों के द्वारा यह कहने पर कि सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों की तो पूरे देश में बुराई हो रही है और 2 सितम्बर को पूरे देश में हड़ताल है, वह कहने लगा कि तुम बगैर अनुमति के माइक से प्रचार नहीं कर सकते। इमके के साथियों ने कहा कि इस छोटे माइक का इस्तेमाल तो तमाम फड़-खोखे वाले अपना सामान बेचने के लिए रोज इस्तेमाल करते हैं और इसके लिए किसी अनुमति की जरूरत नहीं है। इस पर उस पुलिस वाले ने कहा कि ‘मैं कुछ नहीं जानता और मैंने थाने में अपने अधिकारी से बात की है तो उन्होंने तुम लोगों को गिरफ्तार कर थाने लाने के लिए कहा है।’’ इस दौरान उसके बुलाने पर और पुलिस वहां आ गयी और इमके के महासचिव अमित कुमार सहित राजू और कुलदीप रावत को पुलिस गिरफ्तार कर सिडकुल थाने ले गयी। 
    सिडकुल थाने में उपस्थित ड्यूटी आफीसर ने भी इमके के कार्यकर्ताओं को शांति भंग करने वाला माना। सभी पुलिस वालों की तरफ से वही बात आ रही थी कि जो चल रहा है इसमें कोई बदलाव नहीं आ सकता। इसलिए इमके के कार्यकर्ताओं को पुलिस के लिए फिजूल का सिरदर्द नहीं बनना चाहिए। दबे स्वर में पुलिस के लोग स्वीकार कर रहे थे कि पुलिस को भी अपने अधिकारों के लिए लड़ने पर नुकसान उठाना पड़ता है। उनका इशारा आपरेशन ‘आक्रोश’ के सम्बन्ध में हुए कुछ बर्खास्तगियों से था। 
    बहरहाल इमके के साथियों द्वारा यह कहने पर कि वे मजदूरों के अधिकारों के लिए लड़ते रहेंगे, ड्यूटी आॅफीसर ने कहा कि ‘‘मैं तुम लोगों को 250 रुपया प्रति व्यक्ति जुर्माने पर छोड़ रहा हूं लेकिन आगे से बिना अनुमति के लाउडस्पीकर का प्रयोग नहीं करना।’’ इमके के साथियों ने कहा कि वे लाउडस्पीकर का प्रयोग नहीं कर रहे थे और चैलेंजर का प्रयोग वे तब तक करते रहेंगे जब तक यह नहीं साबित हो जाए कि यह गैर कानूनी है। इस पर सभी पुलिस वाले खिन्न थे। 
    अगले दिन जमानत की प्रक्रिया के दौरान न्यायाधीश महोदय की तरफ से दबाब बनाया जा रहा था कि इमके के साथियों द्वारा जुर्माना राशि अदा कर दी जाए फिलवक्त तीनों साथियों को ‘81, उत्तराखण्ड पुलिस एक्ट’ के तहत लगे मुकदमे में जमानत मिल गयी है। इंकलाबी मजदूर केन्द्र द्वारा मजदूरों के पक्ष में आवाज उठाते हुए पुलिस द्वारा इस तरह ‘81, उत्तराखण्ड पुलिस एक्ट’ की धारा का दुरुपयोग करने के खिलाफ मजदूर आबादी में भंडाफोड किया जा रहा है।                हरिद्वार संवाददाता
बी.एच.ई.एल. में आठ मजदूर हुए निलम्बित
वर्ष-18, अंक-18 (16-30 सितम्बर, 2015)
    2 सितम्बर की देशव्यापी हड़ताल का बी.एच.ई.एल. की अधिकांश यूनियनों ने समर्थन किया। ‘विशाल एकता मंच’ के बैनर तले इस हड़ताल का आयोजन किया गया। पिछले कुछ समय से बी.एच.ई.एल. के मजदूरों के अधिकार कटते रहे हैं। इस वजह से हड़ताल को लेकर सभी ट्रेड यूनियन के कार्यकर्ताओं में उत्साह था। 2 सितम्बर के दिन हड़ताल को सफल बनाने के लिए विभिन्न प्रवेश द्वार (गेट) की जिम्मेदारी अलग-अलग यूनियनों को दी गयी। 
    हड़ताल के दिन मजदूरों का अधिकांश हिस्सा काम करने नहीं गया। लेकिन सुपरवाइजरों और इंजीनियरों की बड़ी संख्या को प्रबंधन ने सुबह 6 बजे ही बुलाकर संस्थान में प्रवेश करा दिया। इस दिन सामान्य तौर पर बंद रहने वाले गेटों को भी प्रबंधक ने खुलवा दिया था। दिन में किसी भी समय आने वाले कर्मचारियों को पूरे दिन की हाजिरी दी जा रही थी। मजदूरों में पहले से जमा रोष इन सारी चीजों से बढ़ रहा था। 
    शाम को जब ड्यूटी समाप्त होने का समय हुआ तो सभी गेटों पर भीतर गए कर्मचारियों को नहीं निकलने देने का मजदूरों के बीच माहौल बन गया। इस पर प्रबंधन ने भारी पुलिस बल बुलवा कर मेन गेट पर लाठी चार्ज करवाया और कर्मचारियों को बसों में बिठाकर बाहर निकलवाया। सड़क से गुजर रहे बस पर हड़ताली मजदूरों ने पत्थर फेंके। इससे पहले दिन के समय जो फैक्टरी के गेट जाम को तोड़कर भीतर घुसने का प्रयास कर रहे एक अधिकारी की मजदूरों के साथ हाथापाई हुई थी। इस हाथापाई की खबर आज तक चैनल पर दिखाई गयी। 
    ‘विशाल एकता मंच’ के नेतृत्व पर शाम के लाठीचार्ज के बाद अगले दिन टूल डाउन करने का दबाव मजदूरों की तरफ से पड़ने लगा। ‘विशाल एकता मंच’ नेतृत्व तो अनुष्ठानिक हड़ताल करने की मानसिकता में था। उसने टूल डाउन के सुझाव को अगले दिन सुबह तक के लिए टाल दिया। 
    अगले दिन 3 सितम्बर को सुबह 8 बजे भारी संख्या में मजदूर संस्थान के भीतर शहीद स्मारक पर इकट्ठा हुए। ‘विशाल एकता मंच’ के नेतृत्व में मांगों का एक ज्ञापन प्रबंधन को सौंपकर मामले को समाप्त करना चाहा, लेकिन मजदूर सीआईएसएफ के कमांडेंट की मजदूरों के सामने माफीनामे की मांग कर रहे थे। नेताओं ने कोई भी फैसला लिये बगैर मजदूरों को दिशाहीन छोड़ दिया। मजदूरों ने स्वतः स्फूर्त तरीके से प्लांटों में काम बंद करवाया और कुछ तोड़फोड़ भी की। 
    4 सितम्बर को प्रबंधन ने 8 मजदूरों को मारपीट करने, हड़ताल में दूसरे कर्मचारियों को जबरन काम पर आने से रोकने आदि का आरोप लगाकर निलंबित कर दिया। इस कार्यवाही ने मजदूरों के शांत हो रहे गुस्से को फिर से भड़का दिया। मजदूर ‘विशाल एकता मंच’ से किसी ठोस कार्यवाही की मांग कर रहे थे। मजदूरों के दबाव में नेतृत्व ने निलम्बित मजदूरों की निलम्बन वापसी को लेकर एक धरने का कार्यक्रम शुरू किया। और एक प्रतिनिधि मंडल दिल्ली में केन्द्रीय नेताओं और कारपोरेट स्तर के अधिकारियों से मिला। केन्द्रीय नेताओं ने प्रतिनिधि मंडल को आंदोलन तेज करने के लिए कहकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली। कारपोरेट स्तर के अधिकारियों ने मामले को उद्योग मंत्रालय के पाले में जा चुका कह कर अपना पल्ला झाड़ लिया। 
    मजदूर पिछले कुछ समय से पुराने स्थानीय नेताओं की धोखाधड़ी को देख चुके हैं। इसलिए वे आशंकित हैं कि पुराने नेता प्रबंधन के साथ सांठ-गांठ कर आठ निलम्बित मजदूरों को कहीं बलि का बकरा न बना देें। फिलहाल मजदूरों ने प्लांट में ओवरटाइम बंद कर रखा है और उत्पादन धीमा कर रखा है। आम मजदूरों की सहानुभूति निलम्बित मजदूरों के साथ है।            हरिद्वार संवाददाता  
बीएचबी मेडिर्साइंस के मजदूर संघर्ष की राह पर
वर्ष 18, अंक-17 (01-15 सितम्बर, 2015)
    रूद्रपुर/ 22 जुलाई को वीएचबी मेडिर्साइंस लि.(प्लाॅट न. 20,21,22,49,50,51, सेक्टर-5 सिडकुल पंतनगर उधमसिंह नगर) कंपनी के 55 मजदूर फैक्टरी गेट पर धरने पर बैठे थे। मजदूरों ने कंपनी द्वारा गैर कानूनी तरीके से 9 मजदूरों के गेट बंद करने के खिलाफ कार्य बहिष्कार किया हुआ है। 18 अगस्त 15 तक मजदूर फैक्टरी गेट पर बैठे थे। 19 अगस्त को मैनेजमेण्ट ने पुलिस के माध्यम से कोर्ट का स्टे आॅर्डर दिखाकर मजदूरों को फैक्टरी गेट से खदेड़ दिया। उस दिन मजदूरों ने सहायक श्रम आयुक्त रुद्रपुर के कार्यालय पर धरना दिया। एएलसी महोदय अवकाश में चल रहे थे। अगले दिन मजदूर जिलाधिकारी कार्यालय में धरने पर बैठे।
    कंपनी मजदूरों ने 15 अगस्त 2012 से यूनियन बनाने की कार्यवाही शुरू की। 14 अगस्त 2014 को बीएचबी श्रमिक संगठन का पंजीकरण न. 287 मिल गया। मजदूरों ने 17 नवम्बर 2014 को भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के लेटर हेड पर 18 सूत्रीय मांग पत्र (जिसमें आधी मांगे श्रम कानूनों के दायरे की हैं) कंपनी प्रबंधक को दिया जिस पर प्रबंधन द्वारा कोई वार्ता नहीं की बल्कि मामले को टालते गये। यूनियन द्वारा मांग पत्र को एएलसी कार्यालय में दिया, जिस पर 16 फरवरी 2015 की तारीख दी गयी प्रबंधन वार्ता में नहीं पहुंचा। इसके उपरांत यूनियन ने यह मांगपत्र डीएलसी हल्द्वानी नैनीताल में लगाया। इसके लिए 17, 27, 30 अप्रैल व 13 मई की तारीख दी गयी परंतु प्रबंधन वर्ग द्वारा एक भी वार्ता में आने की जहमत नहीं उठाई गयी। कंपनी के भीतर यूनियन नेताओं द्वारा पुनः वार्ता की बात करने पर प्रबंधन ने 20-25 दिन का समय मांगा। लेकिन समय बीत जाने पर भी प्रबंधक की ओर से कोई जबाव नहीं मिला। इस प्रकार बार-बार के टाल-मटोली से तंग आकर मजदूरों ने 6 जुलाई को एक दिवसीय कार्य बहिष्कार कंपनी के भीतर ही कर दिया। प्रबंधकों द्वारा बाहर से मजदूर बुला कर काम करवाने की कोशिश की गयी। मजदूरों द्वारा इसका विरोध किया गया। इसी बात को बहाना बना कर प्रबंधन ने 22 जुलाई को नौ मजदूरों का गेट बंद कर दिया। इसी दिन से 55 मजदूर फैक्टरी गेट पर 9 निलंबित मजदूरों की कार्यबहाली के लिए धरने में बैठे हैं।
    कंपनी प्रबंधन ने बड़ी चालाकी से एक यूनियन का गठन किया है जिसमें खुद को आपरेटर दिखाते हुए यूनियन का अध्यक्ष घोषित किया हैै। बाकायदा ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रर से रजिस्ट्रेशन भी करवाया है, फर्जी तरीके से मजदूरों की यूनियन के कुछ सदस्यों को भी अपना सदस्य बनाया है।
    20 अगस्त को बीएमएस के माध्यम से एक ज्ञापन जिलाधिकारी उधमसिंहनगर को दिया गया। डीएम साहब द्वारा कहा गया कि मजदूरों ने कंपनी में मारपीट व तोड़फोड की कार्यवाही की है। इस पर मजदूरों ने कंपनी मैनेजमेण्ट के अडियल रवैये व जालसाजी को रखा गया। डीएम साहब द्वारा एसडीएम को मामला निपटाने के निर्देश दिये। उसी दिन एक ज्ञापन उत्तराखंड क्रांति दल द्वारा एसडीएम को मजदूरों की समस्या के समाधान के लिए दिया गया।
    21 अगस्त को एसडीएम द्वारा त्रिपक्षीय वार्ता बुलाई गयी। उसमंे प्रबंधक द्वारा बताया गया कि मजदूरों द्वारा कंपनी के दो मजदूरों को घायल कर दिया है। जबकि वे दोनों लोग पहले से ही बीमार (एक मजदूर का कान का पर्दा व दूसरे को हाइड्रोसिल की बिमारी थी) थे। इसके अलावा प्रबंधक 4 अन्य मजदूरों को और निलंबित करने की बात कहने लगा। एसडीएम अनिल शुक्ला ने कंपनी प्रबंधकों को सभी मजदूरों को काम पर रखने की बात की परंतु मैनेजमेण्ट तमाम दबाव के बावजूद 9 मजदूरों की बहाली पर ही सहमत हुआ। मजदूर पक्ष ने अन्य चार मजदूरों के निलंबन की जानकारी से अनभिज्ञता जाहिर की और सभी निलंबित मजदूरों की कार्यबहाली की बात की। दोनों पक्ष अपनी-अपनी बात पर अड़े रहे। एसडीएम साहब ने दोनों पक्षों को आपस में बातचीत करके एक राय बनाने की राय के साथ अगली वार्ता 24 अगस्त को लगा दी। 24 अगस्त को कंपनी के मुख्य अधिकारी द्वारा वार्ता में उपस्थिति से असमर्थता जताते हुए 26 अगस्त की तारीख ले ली। वार्ता में 5 मजदूरों को शर्तों के साथ वापस काम पर लिया जाएगा।
    वीएचबी कंपनी में 2007 से उत्पादन कार्य चल रहा है। इसके मालिक अशोक जैन महाराष्ट्र के रहने वाले हैं यह कंपनी नियोन ग्रुप के नाम से दवाई बनाती है। इसका मासिक कारोबार लगभग 8 करोड रुपये है। कंपनी में दो ठेकेदार संतोष पाल व श्री कृष्ण इंटरप्राइजेज के लगभग 250 मजदूर (150 महिला मजदूर) हैं जिन्हें 5200 रुपये 8 घंटे के मिलते है। कंपनी रोल पर 90 मजदूर (4 महिला मजदूर) हैं। इनको मजदूरी 6500 से 12 हजार रुपये मिलते हैं। कंपनी में कैन्टीन की सुविधा के तहत बाहर से 40 रुपये प्रति टिफिन के हिसाब से आता है।
    कंपनी का हेड आॅफिस कांतिवेली मुम्बई में है कच्चा माल भी वहीं से आता है। कंपनी बीडीआर फर्मा, इंटास फर्मा, सन् फार्मा के लिए माल उत्पादन करती है। कंपनी में चार ब्लाकों में काम होता है। ये  क्रमशः इस प्रकार आगे बढ़ते गये हैं। 2007 में सियोलसोरिन, 2008-09 में आनक्लोजी ब्लाॅक, 2010 हार्मोन ब्लाॅक, 2011-12 में जनरल ब्लाॅक। हर ब्लाॅक में उत्पादन प्रक्रिया वासिंग, फिलिंग, आटो क्लिप, सिलिंग, लेबलिंग, पैकिंग के द्वारा होता है। कंपनी में एंटिबायोटिक, हार्मोन, सिफोलो स्पोरिन (कैंसर की दवा) एंटीकैन्सर व जनरल प्रोडक्ट (लिक्विड, पाउडर, इंजेक्शन) बनते हैं।
    वीएचबी श्रमिक संगठन के नेतृत्व को कानूनी व आंदोलनात्मक कार्यवाही साथ-साथ चलाते हुए आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए अपने परिजनों व सिडकुल की समस्त यूनियनों व अन्य संगठनों के साथ एकजुटता कायम करने की जरूरत है। साथ ही अपनी यूनियन को मजबूत संगठन के तौर पर स्थापित करना होगा। रुद्रपुर संवाददाता
 लम्बे संघर्ष के बाद मजदूरों को मिली आंशिक सफलता 
आईएमपीसीएल मोहान
वर्ष 18, अंक-17 (01-15 सितम्बर, 2015)
    आईएमपीसीएल मोहान में भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी संघर्ष में लम्बे समय बाद मजदूरों को सफलता मिली। तथा एक एकाउण्ट आॅफिसर को निलम्बित कर दिया गया। साथ ही मैनेजमेण्ट ने अपने आप को पाक दामन साबित करने के लिए पूर्व के दो ठेकेदारों के खिलाफ मजदूरों का पी.एफ. इत्यादि का पैसा न दिये जाने के सम्बन्ध में रिपोर्ट दर्ज करा दी है। 
    ज्ञात को कि आई.एम.पी.सी.एल. मोहान में सन् 2011 से मजदूर ‘ठेका मजदूर कल्याण समिति’ के माध्यम से संघर्षरत हैं। जब मजदूरों ने ठेकेदार द्वारा कम वेतन देने, बोनस न देने तथा पी.एफ. इत्यादि का पैसा जमा न करने के बारे में पूछा तो ठेकेदार ने मैनेजमेण्ट के साथ मिलकर कुछ मजदूरों को बाहर निकलवा दिया। उसके बाद हुए आंदोलनों के बाद अंततः मैनेजमेण्ट को मजदूरों को वापिस लेने के लिए बाध्य होना पड़ा था और ठेकेदार का ठेका निरस्त कर मजदूरों को दैनिक भोगी मजदूर के रूप में रखना पड़ा। साथ ही उसने ठेेकेदार के खिलाफ कार्यवाही कर मजदूरों का पी.एफ. इत्यादि पैसा वापिस करने का आश्वासन भी दिया। 
    परन्तु बाद में मैनेजमेण्ट व ठेकेदार ने मिलकर मजदूर नेतृत्व की अनुभवहीनता का फायदा उठाया और उसे लालच देकर अपनी तरफ मिला लिया। इससे मजदूरों की ताकत कमजोर हुई और मैनेजमेण्ट पुनः नये ठेकेदार को ठेका देने में सफल हो गया तथा नेतृत्वकारी मजदूरों में से 32 को वह काम से निकालने में सफल हो गया। ये मजदूर आज भी बाहर रहकर संघर्ष कर रहे हैं। इन संघर्षरत मजदूरों के संघर्ष करने के परिणामस्वरूप शासन द्वारा बिठायी गयी जांच में मजदूरों के द्वारा फैक्टरी में पी.एफ. बोनस.,ईएसआई आदि में की गयी भारी राशि के गबन का मामला तो साफ हुआ ही साथ ही कई अन्य और भी भ्रष्टाचार उजागर हुआ। जिसमें कम्पनी द्वारा टेण्डर में तय मानकों का उल्लंघन कर ज्यादा मजदूरों को भर्ती करना, कम्पनी व ठेकेदार के बीच हुए लेन-देन में 1 लाख रुपये से ज्यादा की हेराफेरी व कम्पनी द्वारा ठेकेदार को टैक्स के लिए लाखों रुपये की भुगतान राशि में से कुछ हजार ही जमा करना आदि है। इस सबके बाद भी मैनेजमेण्ट ने जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की। आखिर करता भी कैसे वह खुद भी भ्रष्टाचार में गले तक डूबा हुआ था। 
    ‘ठेका मजदूर कल्याण समिति’ ने शासन की जांच रिपोर्ट के साथ अपने पूर्व के प्रमाण लगाकर आईएमपीसीएल के दिल्ली स्थित हेड क्वार्टर में भेजे परन्तु उस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। ऊपर से अधिकारी जांच करने के लिए आये जरूर लेकिन खानापूर्ति करके जाते रहे। अंत में मजबूर होकर मजदूरों ने नैनीताल हाईकोर्ट की शरण ली और एक याचिका दायर की। अब मैनेजमेण्ट ने कानूनी पेंच में फंसते ही दोनों ठेकेदारों के खिलाफ कार्यवाही करते हुए एफआईआर दर्ज करवा दी और अपने बीच में से एक अधिकारी की बलि (निलम्बित) देनी पड़ी।
    आईएमपीसीएल का लम्बे घटनाक्रम में जिस तरह मजदूरों ने छोटी सी जीत हासिल की वह मजदूरों के लिए उत्साहवर्धक है परन्तु यह मजदूरों के सामने इस बात को भी स्पष्ट करती है कि किस तरह इस पूंजीवादी व्यवस्था में शासन-प्रशासन तमाम सबूतों के होते हुए भी दोषी अधिकारियों, ठेकेदारों के खिलाफ कोई कार्यवाही करने के लिए तैयार नहीं था। लम्बे संघर्ष के बाद मजबूर होकर उसे थोड़ी सी कार्यवाही करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। मजदूरों के सामने इस बात को भी स्पष्ट करता है कि इस व्यवस्था में उसे अपने अधिकारों के लिए एक बड़ी एकता व लम्बे संघर्ष की जरूरत है।   रामनगर संवाददाता
फर्स्ट फ्लाइट कोरियर के कर्मचारियों की  जीत के साथ हड़ताल खत्म
वर्ष 18, अंक-17 (01-15 सितम्बर, 2015)
    17 माह पूर्व हुए समझौते को प्रबंधक द्वारा लागू न करने के परिणामस्वरूप शुरू हुई बरेली के फस्र्ट फ्लाइट कोरियर के कर्मचारियों की हड़ताल उनकी जीत के साथ समाप्त हो गयी। फील्ड व आॅफिस के कर्मचारियों द्वारा 19 अगस्त से यह हड़ताल जारी थी। 
    ज्ञात हो कि बरेली ब्रांच के मैनेजर होतम सिंह द्वारा लम्बे समय से कर्मचारियों का मानसिक व शारीरिक शोषण किया जा रहा था जिसकी शिकायत कर्मचारियों द्वारा काफी समय पहले लखनऊ स्थित हेड आॅफिस में की गयी थी। इसके बाद प्रबंधक वर्ग के पवन सिंह, कर्मचारियों, उपश्रमायुक्त बरेली व इंकलाबी मजदूर केन्द्र के शहर सचिव की मध्यस्थता में समझौता हुआ। समझौते के अनुसार यदि होतम सिंह छः माह तक कर्मचारियों के साथ सही व्यवहार नहीं करते हैं तो उनको बरेली से हटा लिया जायेगा। 
     होतम सिंह ने इस समझौते का पालन नहीं किया और अपना पूर्ववत व्यवहार जारी रखा। कर्मचारियों द्वारा प्रबंधक वर्ग से शिकायत करने के बाद भी प्रबंधक वर्ग नहीं सुन रहा था। अब कर्मचारियों के पास कार्य बहिष्कार के सिवाय कोई और रास्ता नहीं बचा था। इसी कारण मजबूर होकर कर्मचारियों को हड़ताल करनी पड़ी। 20अगस्त को मार्केट वर्कर्स एसोसिएशन ने भी हड़ताल को अपना समर्थन दिया। 20 अगस्त को ही प्रबंधक पवन सिंह, इमके के जयप्रकाश, अरविन्द तथा कर्मचारियों अविद, हरीश, अनुज आदि के बीच समझौता हुआ। जिसके अनुसार 15 दिनों में होतम सिंह से सभी चार्ज लेकर नये ब्रांच मैनेजर को दे दिये जायेंगे। नये ब्रांच मैनेजर के रूप में हरीश को प्रमोट किया गया। हरीश छः माह तक अंडरटेकिंग के रूप में काम करेंगे और उसके बाद बरेली के ब्रांच मैनेजर का काम संभालेंगे। 
    इस हड़ताल ने एक बार फिर दिखाया कि मजदूर कर्मचारियों को अपनी छोटी-छोटी बातें मनवाने के लिए भी संघर्ष करने व एकता की जरूरत होती है। 
                बरेली संवाददाता  
आॅटोलाइन मजदूरों का संघर्ष रंग लाया
14 मजदूरों का निलम्बन समाप्त
वर्ष-18, अंक-16(16-31 अगस्त, 2015)
    रुद्रपुर/ 29 जून से जिलाधिकारी कार्यालय पर धरने पर बैठे आॅटोलाइन इण्डस्ट्रीज लि. के मजदूरों ने आखिरकार 10 अगस्त की देर रात को अपने 14 निलम्बित साथियों की कार्यबहाली के लिए मैनेजमेण्ट को मजबूर कर ही दिया। आॅटोलाइन के मजदूरों ने अपनी संगठित ताकत के दम पर निलम्बित साथियों की कार्यबहाली कर सिडकुल पंतनगर के मजदूरों में संघर्ष के प्रति एक प्रेरणा का संचार किया है। 
    ज्ञात हो कि आॅटोलाइन के मजदूर ने अप्रैल माह में अपनी यूनियन का पंजीकरण किया व अप्रैल के अंत में अपनी मांगों को लेकर एक मांगपत्र मैनेजमेण्ट को दिया। यूनियन पंजीकरण से बौखलाया मैनेजमेण्ट मांग पत्र देने से और बिदक गया और यूनियन तोड़ने व मजदूरों को सबक सिखाने के बारे में सोचने लगा। जून के प्रथम सप्ताह में उसने यूनियन के अध्यक्ष, महामंत्री, कोषाध्यक्ष सहित 13 मजदूरों को गैरकानूनी तरीके से मिथ्या आरोप लगाकर निलम्बित कर दिया। मजदूरों ने इसकी शिकायत श्रम विभाग व जिला प्रशासन, शासन से की, श्रम विभाग में सहायक श्रमायुक्त रुद्रपुर की मध्यस्थता में त्रिपक्षीय वार्ताओं का दौर चला। 
    मैनेजमेण्ट शुरू दिन से ही 13 निलम्बित मजदूरों की कार्यबहाली से मना करता रहा और घरेलू जांच चलने की बात करता रहा और मांग पत्र पर अपनी खराब आर्थिक स्थिति का रोना रोता रहा। निलम्बित मजदूरों ने 29 जून से डीएम कोर्ट पर धरना शुरू कर दिया। बाकी मजदूर अपनी शिफ्ट के हिसाब से धरना स्थल पर आते थे। फैक्टरी के भीतर मजदूरों ने निलम्बित साथियों की कार्यबहाली एवं मांगपत्र पर समझौते के लिए शांतिपूर्वक तरीके से मौनव्रत, काली पट्टी बांधकर विरोध शुरू कर दिया। मैनेजमेण्ट ने मजदूरों को तोड़ने के काफी प्रयास किये, कई लड़कों को गेट पर बैठाया, कई मजदूरों व सुपरवाइजरों को नोटिस जारी किये। मजदूरों ने हड़ताल का नोटिस दिया और उसे आगे बढ़ाते रहे। इंकलाबी मजदूर केन्द्र ने मजदूरों से धैर्यपूर्वक संघर्ष चलाने एवं मैनेजमेण्ट के किसी बात से उकसावे में न आने की सलाह दी और आंदोलन में सक्रिय रहे। ए.एल.सी. कार्यालय में कई दौर की वार्ता चली लेकिन नतीजा नहीं निकला। ए.एल.सी. ने 28 जुलाई की अंतिम वार्ता की तिथि दी फिर वार्ता डी.एल.सी. (उपश्रमायुक्त) कुमाऊं परिक्षेत्र हल्द्वानी को भेजने की बात की थी। 
    28 जुलाई की वार्ता से पूर्व ही मैनेजमेण्ट ने 1 मजदूर को और निलम्बित कर दिया जो कि 6E का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन थी। वार्ता में मैनेजमेण्ट ने अपना वही रवैया अपनाया और निलम्बित मजदूरों की कार्यबहाली से स्पष्ट मना कर दिया। ए.एल.सी. ने अगली तिथि देने से मना कर दिया और मामला हल्द्वानी रैफर करने की बात की। मजदूरों ने स्थानीय कांग्रेसी नेता के माध्यम से डी.एम. से बात कर ए.एल.सी. के वहां ही वार्ता की अगली तिथि 10 अगस्त की रखवा ली और डी.एम. साहब से अनुरोध किया कि वार्ता जिला प्रशासन के मध्यस्थ में हो। डी.एम. ने एस.डी.एम. को मामला देखने का निर्देश दिया। एस.डी.एम. रुद्रपुर ने 10 अगस्त को ए.एल.सी. के मध्यस्थता में होने वाली वार्ता को ही अपने वहां रखवा ली। 
    इस बीच मैनेजमेण्ट ने यूनियन के महामंत्री को एक नोटिस और जारी किया जिसमें कहा गया कि महामंत्री ने कम्पनी में नौकरी पाने हेतु आई.टी.आई. का जाली प्रमाण पत्र लगाया है इसकी जांच कंपनी ने कर ली है। इस पर स्पष्टीकरण मांगा गया। इस बात से मजदूरों में एक स्तर पर हलचल मची। इमके कार्यकर्ताओं ने मजदूरों को समझाया और महामंत्री का स्पष्टीकरण तैयार कर दिया गया। 
    यूनियन अध्यक्ष ने अपनी घरेलू समस्या के चलते अध्यक्ष के कार्यभार को संभालने में असमर्थता जाहिर की और कम्पनी में नौकरी नहीं करने की बात की और बगैर कार्यकारिणी/आमसभा में बात किये अपना इस्तीफा कम्पनी को डाक द्वारा भेज दिया। इमके ने कार्यकारिणी में अनौपचारिक रूप से कुछ नये साथियों को आम सभा से चुनवा लिया और मजदूरों को संगठित करने की सलाह दी। अध्यक्ष द्वारा अध्यक्ष पद से व यूनियन की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया गया। मजदूरों की अफरातफरी को इमके द्वारा रोका गया और समझाया गया। मजदूर संगठन पर भरोसा कर जमे रहे। 
    10 अगस्त की वार्ता हेतु मजदूरों ने बागेश्वर विधायक ललित फस्र्वाण जो कि मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि के बतौर आये थे व बागेश्वर जिला पंचायत अध्यक्ष व इंटक के नेताओं को बुलाया था। वार्ता में इमके के अध्यक्ष कैलाश भट्ट को भी मजदूर ले गये। एस.डी.एम. की वार्ता में मैनेजमेण्ट वही पुराने राग अलापता रहा और किसी तरह के गैरकानूनी काम नहीं करने की बात कहता रहा। जब इमके अध्यक्ष द्वारा ठेका मजदूरों की दुर्घटना में कटी अंगुलियों वाले कागजात एवं ठेकेदारों के लाइसेंसों की प्रतियां एस.डी.एम. के सामने प्रस्तुत की और कहा कि लाइसेंस लोडिंग अनलोडिंग के हैं जबकि ठेका मजदूरों से मशीनों पर काम कराया जा रहा है और दबाव बनाया कि एस.डी.एम. महोदय एवं विधायक जी को फैक्टरी में छापा मारकर स्थिति देखनी चाहिए तब एस.डी.एम., विधायक समेत सभी लोग फैक्टरी पहुंचे। मैैनेजमेण्ट ने बड़ी चालाकी से एस.डी.एम., विधायक, ए.एल.सी. के पहुंचने से पूर्व ही अपने तीनों इकाइयों में उत्पादन बंद करवा दिया लेकिन ठेका मजदूर अंदर ही थे। 
    सांय करीब 5 बजे गेट पर पहुंचते ही एस.डी.एम. व विधायक ने रजिस्टर दिखाने को कहा तो मैनेजमेण्ट ने रजिस्टर छुपा लिये तब जनरल शिफ्ट के मजदूर अंदर ही गेट पर बैठ गये बाकी मजदूर बाहर फैक्टरी गेट पर बैठ गये। एस.डी.एम., ए.एल.सी. विधायक ने फैक्टरी की जांच की और कई अनियमितता पायी गयी। इसकी रिपोर्ट ए.एल.सी. से बनाने को कहा गया और टैक्स विभाग को भी मौके पर बुला लिया गया। अंदर बैठे मजदूर बगैर रजिस्टर में आउट किये बाहर नहीं आ सकते थे सो भीतर ही बैठे रहे। करीब 8 बजे रजिस्टर मिले तब मजदूर बाहर निकले और बाहर फैक्टरी गेट पर धरने में शामिल हो गये। पुलिस मौजूद रही। मैनेजमेण्ट ने अपने पक्ष में कांग्रेस के ही एक नेता साहिब सिंह को बुला लिया जिससे विधायक पर दबाव बनाया जा सके। 
    मैनेजमेण्ट एस.डी.एम. की बातों पर चुप्पी लगाये रहा और 14 निलम्बित मजदूरों की कार्यबहाली से इंकार करता रहा। श्रम कानूनों के उल्लंघन व गैरकानूनी काम का हवाला देने पर मैनेजमेण्ट चुप लगाये रहा। ए.एस.पी. भी मैनेजमेण्ट की भाषा बोल रहे थे। एस.डी.एम. द्वारा फैक्टरी सीज करने की बात की जाने लगी तब इमके कार्यकर्ताओं ने मजदूर नेतृत्व को समझाया कि फैक्टरी सीज से मजदूरों को क्या फायदा होगा? 14 मजदूरों की कार्यबहाली पर ही जोर लगाया जाए। मैनेजमेण्ट के अडियल रुख को देखकर पहले ए.डी.एम. राजस्व फैक्टरी पहुंचे फिर एस.एस.पी. ऊधमसिंह नगर व डी.एम. ऊधमसिंह नगर भी फैक्टरी पहुंचे। मजदूरों की संगठित ताकत एवं मैनेजमेण्ट की गैरकानूनी कृत्यों के सबूतों के आगे कांग्रेस के दलाल नेता को भी मैनेजमेण्ट से 14 लोगों की कार्यबहाली की बात करनी पड़ी अंततः मैनेजमेण्ट को 14 मजदूरों की कार्यबहाली की बात माननी पड़ी। हालांकि वह मजदूरों की घरेलू जांच जारी रखने की बात मनवाने में सफल हो गया। डी.एम., एस.एस.पी. विधायक आदि नेताओं, एस.डी.एम. के मजदूरों के खिलाफ कुछ नहीं होने देने के मौखिक आश्वासन पर यूनियन नेतृत्व विश्वास कर गया और 14 निलम्बित मजदूरों की घरेलू जांच वापस नहीं करा पाया। इसके आधार पर समझौता पत्र तैयार किया गया। सभी निलम्बित मजदूरों को 11 अगस्त की जनरल शिफ्ट में काम पर बुलाया गया। 
    11 अगस्त को सभी 14 मजदूर (पूर्व यूनियन अध्यक्ष सहित) काम पर वापस ले लिये गये। 11 अगस्त को यूनियन अध्यक्ष के इस्तीफा देने के बावजूद कम्पनी ने उसे काम पर रखा। 11 अगस्त को दिन में कांग्रेसी नेता साहिब सिंह पुनः सिडकुल चौकी इंचार्ज के साथ फैक्टरी में आये और मैनेजमेण्ट को टाइट रहने के टिप्स दे गये और मजदूरों को धमका गये। 
    आॅटो लाइन के मजदूरों ने अपने संघर्ष व एकता के दम पर अपने 14 निलम्बित साथियों को काम पर वापस करा लिया। अपनी एकता व संगठित ताकत के दम पर ही वह मैनेजमेण्ट को घरेलू जांच में मजदूरों के खिलाफ कोई कार्यवाही करने से रोक सकते हैं। मजदूर नेतृत्व को मजदूरों के बीच और घनिष्ट एकता कायम करने की ओर बढ़ना होगा और संघर्ष के लिए तैयार रहने के साथ-साथ धैर्य का परिचय भी देना होगा।              रुद्रपुर संवाददाता  

मजदूरों की झोंपडि़यों पर गुण्ड़ों का हमला
वर्ष-18, अंक-16(16-31 अगस्त, 2015)
    लालकुंआ उत्तराखण्ड नैनीताल जिले में बजड़ी कम्पनी नाम से एक कालोनी है। यहां पर एक स्टोन क्रेशर है जो लगभग 40-45 सालों से यहां लगा हुआ है। यह गोला नदी के खनन से चलता है। गोला से खनन आकर यहां रेत और बजड़ी छानकर अलग-अलग किया जाता है। जब यह कम्पनी यहां लगी थी तभी से जो मजदूर यहां काम करते थे उन मजदूरों को रहने के लिए जगह दी जिस पर उन मजदूरों ने अपने रहने के लिए झोंपड़ी बना रखी हैं। ये मजदूर बिहार, झारखण्ड, रांची, पूर्वांचल आदि अलग-अलग जगहों से आकर यहां रह रहे हैं। लेकिन पिछले दो-तीन साल पहले स्टोन क्रेशर के मालिक ने स्टोन क्रेशन का विस्तार किया इसके लिए मालिक को जितनी जगह चाहिए थी उसने मजदूरों की झोंपडि़यों को उजाड़ कर उतनी जमीन ले ली। इस बात की चिंता किये बगैर कि जिन मजदूरों को वह उजाड़ रहा है वे कहां जायेंगे, कैसे रहेंगे? इस बात से उसे कोई मतलब नहीं था। 
    जो मजदूर परिवार यहां रहते हैं वे जब तक गोला नदी में खनन (लगभग 5-6 महीने) होता है तब तक ये सभी मजदूर गोला में यह काम करते हैं। और यहां क्रेशर में आकर माल उतारने का व क्रेशर के अंदर अन्य काम करते हैं। इस काम को महिला और पुरुष दोनों मिलकर करते हैं। जब गोला नदी में खनन बंद हो जाता है तब यहां पर रहने वाले लोग इधर-उधर कार्य करने को मजबूर होते हैं। चिनाई का काम, खेतों में काम, वन निगम आदि जगह पर जाकर काम करते हैं। इस कालोनी में न पीने का पानी सुचारू रूप से आता है और न ही गंदे पानी के निकलने की व्यवस्था है। पिछले 10-15 सालों से अपने बिजली का बिल भी मजदूर देते रहे हैं। 
    29 जुलाई 2015 को शाम के समय कालोनी के अंदर 8-10 गुंडे आये और वहां रहने वाले 5-6 मजदूरों के घरों के ऊपर की टीन उतारने लगे। जब वहां के मजदूरों ने उनसे कहा कि आप लोग ऐसा क्यों कर रहे हो तब पहले उन गुंडों ने बताया कि स्टोन क्रेशर मालिक के पास हमारा पैसा है। इसलिए मालिक ने कहा है कि तुमको जितने कमरे चाहिए यहां से खाली करवा लो। तब मजदूरों के विरोध करने पर  वे लोग मजदूरों के साथ गाली-गलौच करने लगे, उनको डराने-धमकाने लगे। और कहने लगे कि पता नहीं कहां-कहां से आकर रहने लगे हो, ये उत्तराखण्ड है। अगर तुम लोग यहां पर रहोगे तब फिर हमारे पहाड़ी भाई लोग कहां रहेंगे। भागो यहां से नहीं तो हम तुम्हारे साथ बहुत बुरा करेंगे। 
    उस रात जब इसकी शिकायत लेकर वहां के लोग पुलिस स्टेशन आये तब वहां पर बैठे अधिकारियों ने उनकी बात सुने बिना उन्हें वहां से भगा दिया। मजदूरों के पास कोई लिखित तहरीर नहीं थी इसके कारण उनकी बात नहीं सुनी गयी। उसी समय पुलिस की पक्षधरता देखने को मिली। जिन मजदूरों के घर उजाड़े गये, गाली-गलौच की गयी, धमकाया गया उन मजदूरों को पुलिस वालों ने उनकी कोई बात सुने बिना ही भगा दिया और जो गुंडे उन मजदूरों के साथ ये सब करके आये थे, उन गुंडों के साथ पुलिस स्टेशन में बैठकर टी.वी. देखा जा रहा था। 
    अगले दिन सुबह वहां के मजदूर लालकुंआ के स्थानीय नेता के पास गये और उसको अपनी बात सुनाने के बाद उसको लेकर पुलिस स्टेशन गये तब रिपोर्ट लिखने वाले अधिकारी ने कहा कि ये लोग कल कोई लिखित तहरीर नहीं लाये थे इसलिए इनकी तहरीर नहीं लिखी थी। फिर स्टोन क्रेशर के मालिक से फोन पर बात की गयी। तब मालिक ने कहा कि मेरा न उन गुंडों से कोई मतलब है और न ही इन मजदूरों की झोंपडि़यों से। तब जाकर पुलिस स्टेशन में उन मजदूरों की रिपोर्ट लिखी गयी।     
    फिर उसके अगले दिन कुछ अन्य स्थानीय नेताओं और मजदूरों के द्वारा दबाव बनाने पर उन गुंडों के साथ मजदूरों का लिखित समझौता करवाया कि आज के बाद कोई उनकी कालोनी आकर इस प्रकार की घटना नहीं करेगा। लेकिन जिन मजदूरों के घरों को उजाड़ा था उनको कोई मुआवजा नहीं दिलवाया गया। और गुंडे स्थानीय नेताओं से जो समझौता करवाने में थे उनसे इस बात पर झगड़ा कर रहे थे कि उन लोगों ने मजदूरों का साथ क्यों दिया। उनको तो उनका साथ देना चाहिए था।       लालकुंआ संवाददाता   
पाइप लाइन को लेकर प्रदर्शन, आप विधायक बौखलाये
वर्ष 18, अंक-15(01-15 अगस्त, 2015)
    दिल्ली, 21 जुलाई को इंकलाबी मजदूर केन्द्र, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र व निवासी आम आदमी पार्टी के स्थानीय विधायक वेद प्रकाश के यहां पानी की पाइप लाइन बिछाने की मांग को लेकर प्रदर्शन के लिए पहुंचे जिसमें महिलाओं ने बड़ी संख्या में भागीदारी की। 
    दिल्ली के शाहबाद डेरी मजदूर-मेहनतकशों की एक घनी आबादी वाली बस्ती है। वैसे तो शाहबाद डेरी के कई ब्लाॅकों में पानी की समस्या है परन्तु एफ ब्लाॅक और नया ए ब्लाॅक में पानी की बहुत बड़ी समस्या है। यहां पर पानी की पाइप लाइन नहीं है। यहां पानी की आपूर्ति दिल्ली जल बोर्ड के टैंकरों द्वारा की जाती है। टैंकरों से पानी प्राप्त करना भी एक बड़ी समस्या है। टैंकर से पानी लेने के लिए भगदड़ मचती है और अपना पाइप लगाने के लिए आपस में झगड़ा व गाली-गलौच होती है और कभी-कभी मारपीट भी हो जाती है। टैंकर से कुछ लोगों को पानी मिलता है और कुछ को नहीं। फिर भरे हुए डिब्बों, केनों, बाल्टियों को पैदल व साइकिल के द्वारा अपने घरों तक पहुंचाना पड़ता है। कभी-कभी कई दिनों तक टैंकर नहीं आता है। पानी की इस समस्या के समाधान के लिए एफ ब्लाॅक में पानी की पाइप लाइन बिछाये जाने को लेकर आआप के स्थानीय विधायक के निवास व कार्यालय पर प्रदर्शन करने का निश्चय किया। 
    गौरतलब है कि इससे एक महीने पहले भी 20 जून को पानी की लाइन की मांग को लेकर बड़ी संख्या में महिलाओं समेत स्थानीय निवासी स्थानीय विधायक के यहां आये थे। विधायक की अनुपस्थिति में कार्यालय प्रभारी ने आश्वासन दिया कि वह विधायक के आते ही उन्हें प्रदर्शनकारियों की मांग से अवगत करायेंगे और उनकी मांग पर जल्द ही उचित कार्यवाही की जायेगी। स्थानीय निवासियों ने वहां पर ये कहा था कि अगर इस सम्बन्ध में कार्यवाही नहीं की गयी तो एक महीने बाद वे बड़ी संख्या में आकर यहां प्रदर्शन करेंगे। महीने भर भी इस सम्बन्ध में कोई कार्यवाही नहीं हुई तो स्थानीय निवासी एक बार फिर प्रदर्शन के लिए आआप विधायक के निवास व कार्यालय पर पहुंचे हैं। 
    21 जुलाई को जब विधायक महोदय के निवास व कार्यालय में पहुंच कर प्रदर्शन किया तो उनके कर्मचारी ने बताया कि विधायक जी अभी मीटिंग में हैं। फिर भी प्रदर्शनकारी ‘हम अपना अधिकार मांगते, नहीं किसी से भीख मांगते’, ‘आज दो अभी दो, पानी की सुविधा दो’ के नारे लगाते रहे और प्रदर्शन जारी रखा। 
    इतने में विधायक महोदय अंदर से बौखलाते हुए आये और नारे बंद करने के लिए कहते हुए पूछा कि क्या मांग है तुम्हारी। प्रदर्शन में आई महिलाओं ने अपनी परेशानी और एफ ब्लाॅक में पानी की पाइप लाइन बिछाने की मांग रखी। विधायक महोदय को इस तरह उनके निवास व कार्यालय पर प्रदर्शन करने से बड़ी परेशानी हुई। उनसे बातचीत करते हुए बहुत नोंक-झोंक हुई। उन्होंने कहा कि उनके यहां इस तरह से प्रदर्शन करने की जरूरत नहीं है। एक व्यक्ति आकर भी अपनी समस्या रख सकता है। इस पर इमके के प्रतिनिधि ने बताया कि वह एक महीने पहले भी अपनी इस मांग को लेकर आये थे और आपके यहां से आश्वासन मिला था पर महीना बीत जाने के बाद भी कुछ नहीं हुआ। इस बारे में जब विधायक महोदय को पता चला तो कहने लगे कि उनके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है और अभी बजट का पैसा भी नहीं आया है। उन्होंने कहा कि कोई भी काम तरीके से होता है इस तरह प्रदर्शन करने से कोई काम नहीं होता। 
    फिर विधायक महोदय ने बताया कि उन्होंने शाहबाद डेरी में पानी के टैंकरों की संख्या बढ़ा दी है। इस पर महिलाओं ने जोर देकर कहा कि हमें टैंकर नहीं, पानी की लाइन चाहिए। विधायक ने पूछा कि तुम लोगों की झुग्गी पक्की है या कच्ची। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि पानी की पाइप लाइन वहीं तक बिछेंगी जहां तक पक्के प्लाॅट होंगे। कच्ची झुग्गियों में पानी की पाइप लाइन नहीं बिछेंगी और इसके लिए चाहे तुम लोग धरना करोे या प्रदर्शन। प्रदर्शन में पहुंची महिलाओं को यह सुन कर हैरानी हुई। उन्होंने बताया कि हम लोग एफ ब्लाॅक में बीस साल से भी अधिक समय से रह रहे हैं। और यदि हम अपनी मांग के लिए यहां पर धरने पर बैठे तो आप को कोई फरक नहीं पड़ेगा। विधायक ने कहा कि उसे कोई फरक नहीं पड़ेगा। वह इन धरने/प्रदर्शनों से नहीं डरते। 
    यह आम आदमी की बात करते हुए दिल्ली की सत्ता में बैठे आम आदमी पार्टी के विधायक हैं। चुनाव से पहले विधायक महोदय ने एफ ब्लाॅक की कच्ची झुग्गियों में पहुंचकर हर किसी को पानी देने का वादा किया था। दिल्ली में चुनाव से पहले और बाद में भी आम आदमी पार्टी धरना-प्रदर्शन करती रही है। आज जब स्थानीय निवासी उन्हें उनका वादा याद दिलाने के लिए पहुंचे तो धमकाने के अंदाज में कहते हैं कि कच्ची झुग्गियों में पानी की लाइन नहीं बिछेगी और इसके लिए धरना करो या प्रदर्शन इससे उनको कोई फरक नहीं पड़ेगा। यह रुख आज सिर्फ विधायक महोदय ही नहीं पूरी आम आदमी पार्टी और उनकी सरकार का भी है। 
    इस बीच विधायक ने दिल्ली जल बोर्ड के शाहबाद डेरी प्रभारी जूनियर इंजीनियर को फोन पर पानी की लाइन के सम्बन्ध में एफ ब्लाॅक पहुंच कर निरीक्षण कर तुरंत जबाव देने के लिए कहा। अंत में विधायक ने आश्वासन दिया कि वह लोगों की मांग के सम्बन्ध में जल्द ही कोई उचित कार्यवाही करेंगे। 
    इसके बाद प्रदर्शन को समाप्त करते हुए इंकलाबी मजदूर केन्द्र व प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र के कार्यकर्ता ने प्रदर्शनकारियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि आज का हमारा प्रदर्शन इस मायने में सफल रहा कि हमने अपनी एकता के दम पर स्थानीय विधायक के यहां अपनी मांग को लेकर प्रदर्शन किया। हमारी एकता व संघर्ष से विधायक परेशान हुए और हमसे बातचीत करने आये। उन्होंने आश्वासन दिया कि हमारी मांग के सम्बन्ध में जल्द ही उचित कार्यवाही करेंगे। यदि पानी की लाइन बिछाने के सम्बन्ध में उचित कार्यवाही नहीं होगी तो अगली बार वे बड़ी संख्या में विधायक के यहां पहुंचकर धरना-प्रदर्शन कर उन्हें तब तक परेशान करते रहेंगे जब तक हमारे यहां पानी की लाइन नहीं बिछ जाती। इन बातों पर सभी प्रदर्शनकारियों ने नारे लगाकर सहमति व्यक्त की। 
    प्रदर्शन की सफलता यह रही कि प्रदर्शन के बाद शाहबाद डेरी में दिल्ली जल बोर्ड का प्रभारी जूनियर इंजीनियर पहुंचा और उसने एफ ब्लाॅक की पक्की व कच्ची दोनों तरह की झुग्गियों का निरीक्षण कर पानी की नई पाइप लाइन बिछाने के लिए विधायक से फोन पर बात की। विधायक ने पानी की लाइन बिछाने के खर्च सम्बन्धी आंकलन लगाकर देने के लिए कहा।
                 दिल्ली संवाददाता 

आॅटो लाइन के मजदूरों का संघर्ष जारी है
वर्ष 18, अंक-15(01-15 अगस्त, 2015)
    पंतनगर सिडकुल स्थित आॅटोलाइन फैक्टरी के मजदूरों का अपने मांगपत्र पर सुनवाई एवं 13 निलम्बित मजदूर साथियों की कार्यबहाली की मांग को लेकर डी.एम. कोर्ट पर धरना जारी है। आॅटोलाइन के मजदूरों ने अप्रैल माह में अपनी यूनियन पंजीकृत कराई थी और अप्रैल माह के अंत में एक मांग पत्र प्रबंधक को दिया था जिसमें कैजुअल मजदूरों को स्थायी करना, ओवरटाइम का दुगुना वेतन देने, कैंटीन की सुविधा देने, मजदूरों को फैक्टरी में लाने-ले जाने हेतु व्यवस्था करने आदि कई मांगे रखी थीं। 
    आॅटो लाइन का प्रबंधक यूनियन के पंजीकृत होने से खफा था। उस पर मजदूरों की ओर से सामूहिक रूप से लगाये मांग पत्र से वह बौखला गया। फैक्टरी में श्रम कानूनों की खुलेआम धज्जियां उड़ाने वाला फैक्टरी प्रबंधक मजदूरों द्वारा श्रम कानूनों को लागू करने की मांग को किसी भी कीमत में मानने को तैयार नहीं था। मजदूरों की एकता तोड़ने एवं उनमें भय का माहौल पैदा करने की मंशा से प्रबंधन ने यूनियन के अध्यक्ष, महामंत्री, कोषाध्यक्ष सहित 13 मजदूरों को ‘गैरकानूनी तरीके से निलम्बित कर दिया। प्रबंधन द्वारा किये गये इस कृत्य ने मजदूरों में आक्रोश बढ़ा दिया और उनकी एकता और मजबूत हो गयी। अपनी मांगों को लेकर 29 जून से आॅटोलाइन के मजदूर डी.एम. कोर्ट पर बैठे हैं। फैक्टरी में कार्यरत मजदूर अपनी शिफ्ट के हिसाब से धरने पर आते हैं। 
    आॅटोलाइन के मजदूर इस बीच कई अधिकारियों व पूंजीवादी पार्टी नेताओं के चक्कर लगा चुके हैं और एक स्तर पर यह समझने लगे हैं कि ये सब फैक्टरी मालिकों के पैसों के आगे बिके हुए हैं। 
    सहायक श्रमायुक्त की मध्यस्थता में 14 जुलाई की हुई त्रिपक्षीय वार्ता में प्रबंधकों ने 13 निलम्बित मजदूरों की कार्यबहाली से स्पष्टतः मना कर दिया। बाकी मांग पत्र की मांगों को यह कहकर टाल दिया कि अभी कम्पनी की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और अगली वार्ता की तिथि 20 जुलाई की ले ली। 
    आॅटोलाइन के मजदूरों ने प्रबंधक द्वारा मांगों को नहीं मानने पर 15 जुलाई से हड़ताल में जाने का नोटिस दिया था। बाद में जिसे यूनियन ने आगे बढ़ा दिया। प्रबंधकों ने मजदूरों के हड़ताल में जाने की स्थिति की पूर्ण तैयारी कर ली। करीब 200 मजदूरों को ठेकेदारी के तहत भर्ती कर लिया था तथा उनसे  24 घंटे फैक्टरी में रहने की शर्त रखी थी तथा फैक्टरी में ही उनके खाने रहने की व्यवस्था की तैयारी कर ली थी। 15 जुलाई की सुबह पूरा प्रबंधन वर्ग एवं स्टाफ सुबह 5ः30 बजे उपस्थित हो गया। भारी पुलिस बल फैक्टरी में तैनात किया गया था लेकिन मजदूरों ने हड़ताल आगे बढ़ा दी थी। 
    इससे प्रबंधक और बौखला गया। प्रबंधकों ने मजदूरों को उकसाने के लिए 15-16 जुलाई को कुछ मजदूरों को उनके काम के स्थान से हटाकर फैक्टरी गेट पर एक कमरे में दिन भर बैठाकर रखा। इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ताओं ने मजदूरों से किसी भी तरह की उकसावे से बचने की सलाह दी और मजदूरों की ओर से श्रम विभाग व जिलाधिकारी की प्रबंधक के उत्पीड़न की शिकायत पत्र लगाये। 
    आॅटोलाइन के मजदूर एक तरफ धरना जारी रखे हुए है तो फैक्टरी के भीतर मजदूर मौन व्रत रखे एवं हाथ में काली पट्टी बांधकर शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने की नीति पर चल रहे हैं। प्रबंधक जब मजदूरों को गेट पर बैठाकर भी उकसाने में कामयाब नहीं हो पाया तो उसे फैक्टरी गेट पर मजदूरों को बैठाने की अपनी नीति से पीछे हटना पड़ा। 
    20 जुलाई की वार्ता से पूर्व सहायक श्रमायुक्त के स्थानान्तरण के कारण नये सहायक श्रमायुक्त के मध्य वार्ता हुई। प्रबंधक अपने पूर्व के हठीले रुख पर कायम रहा। एवं ए.एल.सी. ने प्रबंधकों एवं यूनियन से द्विपक्षीय वार्ता कर समाधान करने को और अगली व अन्तिम वार्ता की तिथि 28 जुलाई की दी गयी है। उसके बाद वाली वार्ता डीएलसी हल्द्वानी को स्थानान्तरित हो जायेगी। प्रबंधकों ने द्विपक्षीय वार्ता नहीं बुलाई। उल्टा कई मजदूरों व सुपरवाइजरों को नोटिस थमा दिये कि वे अपना कार्य सही से नहीं कर रहे हैं और अनुशासन हीनता कर रहे हैं आदि आदि।
    13 निलम्बित मजदूरों की घरेलू जांच जारी है। अभी प्रबंधकों की ओर से कुछ लोगों की गवाही हुई है। 
    इस सबके बीच डी.एम. कोर्ट में धरना जारी है। मजदूर अपने धरने में अपने घरों की महिलाओं को ला रहे हैं लेकिन 1-2 घंटे के लिए ही। मजदूरों को अपने घर के महिलाओं-बच्चों को आंदोलन का हिस्सा बनाना होगा। पतित पूंजीवादी पार्टियों के नेताओं के फेर में उलझने के स्थान पर अपनी एकता एवं सिडकुल के मजदूरों व यूनियनों को अपनी लड़ाई में जोड़ना होगा। 
    28 जुलाई की प्रातः 10 बजे सिडकुल की सभी ट्रेड यूनियनें एवं मजदूर संगठन आॅटोलाइन के संघर्षरत मजदूरों के समर्थन में पुनः डी.एम. एवं ए.एल.सी. से वार्ता करेंगी। 
    आॅटोलाइन के मजदूर निर्भीक होकर अपने संघर्ष पर डटे हैं। और उसे बढ़ा रहे हैं। 
                रुद्रपुर संवाददाता  

शिवम के ठेका मजदूरों का गुस्सा फूटा
वर्ष 18, अंक-15(01-15 अगस्त, 2015)
    मानेसर (गुड़गांव) से 10 किमी दूर बिनौला में स्थित ‘शिवम आॅटोटेक लिमिटेड’ के ठेका मजदूरो का गुस्सा 15 जुलाई को फूट पड़ा। सभी ठेका मजदूरों ने अपनी मशीनों को बंद कर दिया। तथा एचआर डिपार्टमेंट के सामने इकट्ठा हो गये। मजदूर कम्पनी प्रबंधन द्वारा बेवजह ठेका मजदूरों की की जा रही छंटनी का विरोध कर रहे थे। 13 जुलाई को कम्पनी प्रबंधन ने दो ठेका मजदूरों को काम से निकाल दियां यहां तक कि मजदूरों द्वारा काम किये गये दिनों का हिसाब तक नहीं दिया। मजदूरों को जब यह पता चला कि कम्पनी प्रबंधक सभी पुराने ठेका मजदूरों को निकालना चाहता है और 15 जुलाई की सुबह प्रबंधन के आते ही कुछ मजदूरों का गुस्सा फूट पड़ा और वे मशीनें बंद कर एच आर विभाग के पास जमा होने लगे और देखते ही देखते कम्पनी के समक्ष ठेका मजदूरों ने काम बंद कर प्रबंधन से अपनी मांगें- ‘सभी निकाले गये मजदूरों को वापस लिया जाये’ ‘छंटनी पर रेाक लगाई जाये’ आदि करने लगे। यह सुनकर प्रबंधन तंत्र में एक डर का माहौल फैल गया। जिसे काबू करने के लिए उसने ठेकेदारों को बुलाकर मीटिंग की। ठेकेदार ने सभी मजदूरों को वापस काम पर जाने को कहा और आश्वासन दिया कि वे प्रबंधन से 12 बजे तक बातचीत कर लेंगे इस आश्वासन पर सभी मजदूर अपनी-अपनी मशीनों पर चले गये परन्तु किसी ने भी मशीनों को नहीं चलाया। 12 बजे तक कोई फैसला न होने पर पुनः मजदूर एच आर विभाग के आगे जमा हो गये और जल्दी फैसला करने की मांग करने लगे।
    प्रबंधन ने उनमें से चार अगुआ मजदूरों को वार्ता के लिए बुलाया। लगभग दो घंटे चली बहस के बाद भी कोई निष्कर्ष नहीं निकलने पर वे चारों मजदूर बाहर आकर अपनी मांगों पर डटे रहे। 
    इस घटना ने प्रबंधन की घबराहट को और बढ़ा दिया तभी उसने ठेकेदारों से मिलकर एक नई चाल चली और ठेकेदारोें ने इन चारों मजदूरों में से एक-एक मजदूर को अपने आॅफिस में बुलाया और मारने-पीटने की धमकी देकर त्यागपत्र पर दस्तखत कराकर कम्पनी गेट से बाहर करने लगा और इस तरह प्रबंधन अपनी इस चाल में कामयाब हो गया। 
    कम्पनी की स्थापना 1999 में हुई। कम्पनी का कारोबार लगभग 18 करोड़ प्रति महीना था। वर्तमान में यह लगभग 15 करोड़ प्रति महीना है। कम्पनी में 420 स्थाई मजदूर तथा लगभग 600 अस्थाई मजदूर हैं। स्थाई मजदूरों का वेतन 12,000 से 27,000 रुपया प्रतिमाह है जबकि अस्थायी मजदूरों की तनख्वाह 7000-10,500 रुपये है। सभी अस्थाई मजदूरों से 12-12 घंटे काम कराया जाता है तथा ओवरटाइम का सिंगल पैसा ही दिया जाता है। अधिकांश ठेका मजदूरों को काम करते हुए 3 साल से ज्यादा हो चुका है और विभिन्न संघर्षों और समझौतों के बाद उनकी तनख्वाह 10,500 तक हो पाई है। कम्पनी प्रबंधन सभी ठेका मजदूरों को निकालकर सस्ते मजदूरों को भर्ती करना चाहता है जिससे कि उसका मुनाफा और बढ़ सके। इसके बाद वह स्थायी मजदूरों को भी निकालने की ओर बढ़ेगा। अतः सभी स्थायी व अस्थायी मजदूरों को संगठित होकर योजनाबद्ध तरीके से लड़ना होगा तभी वह अपनी नौकरी सुरक्षित रख सकते हैं। और भविष्य में नयी लड़ाइयां लड़ सकते हैं।   गुड़गांव संवाददाता 
निलंबित मजदूरों की कार्यबहाली व मांग पत्र के लिए आॅटो लाइन के मजदूरों का धरना जारी
यूनियन तोड़ने के लिए मैनेजमेण्ट का मजदूरों की एकता तोड़ने का प्रयास
वर्ष-18, अंक-14(16-31 जुलाई, 2015)
29 जून से आॅटोलाइन के मजदूर डी.एम. कार्यालय पर धरने पर बैठे हैं। आॅटो लाइन के मजदूरों ने अप्रैल माह में अपनी यूनियन पंजीकृत करवायी जिस कारण मैनेजमेण्ट ने अध्यक्ष, महामंत्री समेत 13 स्थायी मजदूरों को बिना सफाई का मौका दिये ही निलम्बित कर दिया। इससे पूर्व मजदूरों ने फैक्टरी में श्रम कानूनों को लागू करवाने के लिए एक मांगपत्र श्रमिक प्रतिनिधियों की ओर से दिया था जिसमें केबिन, बस, वेतन बढ़ोत्तरी व कई सालों से कार्यरत मजदूरों को स्थायी करने समेत अन्य श्रम कानूनों के दायरे की मांगें रखीं थीं। इस कारण मैनेजमेण्ट ने मजदूरों का मांग पत्र से ध्यान भटकाने और यूनियन को कमजोर करने के लिए ही निलंबन की कार्यवाही की। इसी बीच मैनेजमेण्ट ने स्टे आर्डर के लिए जिला कोर्ट में प्रार्थनापत्र भी दे दिया। यूनियन द्वारा इसके सम्बन्ध में पहले से ही कार्यवाही की हुयी थी। अतः अभी मैेनजमेण्ट को कोर्ट द्वारा स्टे नहीं मिला है।
29 जून को यूनियन नेतृत्व द्वारा फैक्टरी में अस्थाई मजदूरों(ठेका मजदूरों) से मशीनें चलवाने की शिकायत श्रम विभाग व जिला प्रशासन से की। कुछ दिनों बाद इसकी खानापूर्ति के लिए जिला प्रशासन व श्रम विभाग ने एक दिन कम्पनी जाकर छापामारी की कार्यवाही की।
30 जून को उप श्रमआयुक्त ऊधमसिंह नगर को यूनियन ने कम्पनी प्रबंधकों द्वारा श्रम कानूनों (औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 6 ई) के उल्लंघन की शिकायत की गयी। 4 जुलाई को मैनेजमेण्ट की बुद्धिशुद्धि के लिए धरना स्थल पर यज्ञ किया गया। एक ज्ञापन श्रम कानूनों को लागू करवाने को लेकर कांग्रेसी नेता के साथ डी.एम.साहब को दिया। 5 जुलाई को सिडकुल में बनी यूनियनों ने एक संयुक्त मोर्चे की बैठक की जिसमें दो दर्जन के लगभग यूनियनों के नेताओं ने भागीदारी कर अन्य बातों के साथ 6 जुलाई तक आॅटो लाइन के मजदूरों का कोई समझौता नहीं होता है तो 7 जुलाई को डी.एम. साहब को संयुक्त रूप से ज्ञापन देकर आगे आंदोलन को सिडकुल के स्तर पर व्यापक बनाने का फैसला लिया गया।
6 जुलाई की वार्ता के लिए आॅटो लाइन मैनेजमेण्ट मजदूरों को दबाव में लेने के लिए पूरे दलबल (10-12 लोग) के साथ आया था। वार्ता में मजदूरों ने मैनेजमेण्ट पर आरोप लगाया कि वह फैक्टरी में श्रम कानूनों का उल्लंघन कर रहा है। मजदूरों के अधिकारों में कटौती की जा रही है। इसी की आवाज उठाने के कारण कम्पनी प्रबंधकों ने 13 मजदूरों को निलम्बित कर दिया। इस वार्ता में मैनेजमेण्ट ने किसी निर्णय पर पहुंचने में असमर्थता जताई। इसके लिए एम.डी. साहब से बात करके ही बता पायेंगे। एम.डी. साहब 13 जुलाई को आएंगे इसी कारण अगली वार्ता 14 जुलाई की है। उस दिन की वार्ता बेनतीजा रही।
7 जुलाई को संयुक्त मोर्चे की ओर से एक ज्ञापन आॅटोलाइन व महिन्द्रा के मजदूरों के उत्पीड़न को बंद करने के बारे में डी.एम.को दिया। परन्तु डी.एम. साहब द्वारा कानूनी तरीके से ही बातें कीं। आॅटो लाइन के मजदूरों को सम्बोधित करके धरना खत्म करने के लिए धमकाने के अंदाज में बात की। साथ ही अन्य फैक्टरियों (ऐरा) के मामले में खुद अपने द्वारा मजदूरों को काम पर बहाल करवाने की बात बताई। डी.एम. को यूनियन नेताओं ने अमानवीय    कृत्यों के बारे में अवगत करवाया कि आॅटो लाइन कम्पनी में लगभग एक दर्जन से भी ज्यादा मजदूरों के अंग भंग हो गये हैं। कई मजदूरों को कम्पनी ने मुआवजा देना तो दूर उन्हें काम से भी निकाल दिया है। मजदूर श्रम विभाग के चक्कर लगाते रहते हैं पर उन्हें कुछ नहीं मिलता है। ठेका मजदूर के तो और भी बुरे हाल हैं। इस पर डी.एम. साहब ने बडी दरियादिली दिखाते हुए कहा कि ऐसे मामले मेरे संज्ञान में लाओ मैं कुछ करवाता हूं। जब एक साथी मजदूर को उनके सामने खड़ा किया गया तो बोले कि ‘ठेकेदारी में काम ही क्यों करते हो और मशीन चलाने से मना क्यों नहीं करते। ठेका मजदूरी में काम करने वाले मजदूरों के लिए ठेकेदार ही जिम्मेदार है न कि मालिक। परन्तु यूनियन नेतृत्व ने श्रम कानूनों का हवाला देते हुए कहा कि अगर ठेकेदार किसी भी मामले में मुकर जाता है तो मुख्य नियोक्ता की जिम्मेदारी होती है। तब डी.एम. साहब कांग्रेसी नेता से मुखातिब होकर उल्टा मजदूर को ही नियम कानून सीख कर आने की बातें कहने लगे। कांग्रेसी नेता भी कानूनी बातें कर डी.एम. साहब के सुर में सुर मिलाने लगे।
8 जुलाई को यूनियन कार्यकारिणी द्वारा मैनेजमेण्ट के यूनियन को तोड़ने के प्रयास के खिलाफ यूनियन रजिस्ट्रेशन कार्यालय में कार्यवाही की गयी। मैनेजमेण्ट ने फर्जी तरीके से 28 मजदूरों (जो यूनियन के सदस्य हैं) के नाम से यूनियन से नाम वापसी के लिए प्रार्थनापत्र सम्बन्धित विभाग में लगाया। इसका पता लगते ही कार्यकारिणी द्वारा उन्हीं मजदूरों के शपथपत्र के साथ में वास्तविक हस्ताक्षर के साथ श्रम कार्यालय में जमा करा दिये। इससे काम बनता न देख कर मैनेजमेण्ट द्वारा अन्य तरीकों से यूनियन को कमजोर करने की कार्यवाही करना जारी है। इसी दिन एस.डी.एम. ने भी अपनी मध्यस्थता में वार्ता बुलाई थी जिसमें मैनेजमेण्ट ने मजदूरों की किसी भी मांग को मानने से साफ इंकार कर दिया।
इसी क्रम में कांग्रेसी नेता हरीश पनेरू भी एक दिन धरने पर बैठे। अगले दिन स्थानीय विधायक भी किसी काम से डी.एम. से मिलने आये थे। मजदूरों से बोले कि तुम लोग मेरे पास नहीं आये। मेरे लायक कोई सेवा हो तो बताना, कह कर चले गये। उत्तराखण्ड क्रांतिदल के स्थानीय व प्रांतीय नेताओं ने धरने पर आकर समर्थन दिया। मजदूरों को साथ लेकर डी.एम. को अपने लेटर हेड पर ज्ञापन भी दिया। उ.क्रां.दल के नेता चुनावबाज राजनीति करके चले गये। इंकलाबी मजदूर केन्द्र मजदूरों के साथ शुरूआत से ही है। धरना अभी जारी है।
मजदूरों की घरेलू जांच भी शुरू हो चुकी है। अभी पहले चरण में सभी मजदूरों को जांच अधिकारी द्वारा जांच की कार्यवाही से अवगत करवाया गया। मजदूरों ने इस दौरान भी अपने बुलंद इरादों से मैनेजमेण्ट को अवगत करा दिया। मैनेजमेण्ट के दिये गये लिखित निर्देशों के बदलाव पर मजदूरों के कानूनी रूप से विरोध से मैनेजमेण्ट को कागजों में दिये गये निर्देशों को बदलना पड़ा। कुछ मजदूरों की दूसरे दौर की घरेलू जांच भी शुरू हो गयी है।

13 निलम्बित मजदूरों के साथ धरने पर ए, बी व जनरल शिफ्ट के मजदूर भी नियमित रूप से आते हैं। अगली त्रिपक्षीय वार्ता 14 जुलाई को ए.एल.सी. के कार्यालय में होगी। डी.एम, एस.डी.एम., ए.एल.सी., राजनैतिक पार्टियों के नेताओं व पुलिस प्रशासन अपनी वर्गीय पक्षधरता को ध्यान में रखते हुए मालिकों के हिसाब से ही काम कर रहे हैं। यूनियन नेतृत्व को मजदूर वर्ग की एकता कायम करके आंदोलन को तेज करना होगा।    रुद्रपुर संवाददाता
बंशी नगला के निवासियों ने एकता के दम पर हासिल की जीत
वर्ष-18, अंक-14(16-31 जुलाई, 2015)
बरेली के एक मोहल्ला बंशी नगला में पिछले दिनों सड़क बनाने को लेकर यहां के लोग सड़कों पर उतर आये। ये लोग पिछले कई वर्षों से नगर निगम व इस इलाके के विधायक राजेश अग्रवाल के यहां सड़क बनाने को लेकर मिल चुके थे लेकिन सड़क का निर्माण नहीं हो पा रहा था। बरसात में सिटी श्मशान भूमि से मढ़ीनाथ को जाने वाले कच्चे रास्ते में पानी भर जाता था जिससे लोगों को भारी समस्याओं का सामना करना पड़ता था।
इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ताओं ने सड़क बनवाने को लेकर मुहल्ले में एक जनसभा आयोजित की और यह तय किया कि अगले दिन नगर निगम व विधायक का घेराव किया जायेगा। अगले दिन तय कार्यक्रम के मुताबिक सैकड़ों पुरुष, महिलायें व बच्चे नगर निगम पहुंचे। आयुक्त ने कहा कि वे जल्दी ही सड़क बनवायेंगे। वहां से लोग विधायक कार्यालय पहुंचे। विधायक ने वादा किया कि बरसात शुरू होने से पहले वे सड़क बनवा देंगे और कहा कि उसे उस जगह का नक्शा बना कर दो जहां सड़क बननी है।
अगले दिन एक नक्शा बनाया गया जिसमें पांच गली व दो बड़ी सड़कें व बिजली के पोल चिह्निनत करके दिये गये। नक्शे को देखते ही विधायक बौखला गया और बोला कि इतना काम तो इतनी जल्दी नहीं हो सकता। और बड़ी सड़कें नगर निगम बनवायेगा। लोगों ने कहा कि सड़क आप बनवाओ या नगर निगम हमें सड़क चाहिए। उसके बाद समय-समय पर लोग सड़क के बारे में विधायक से पूछते रहे। समय बीत गया और बरसात शुरू हो गयी लेकिन सड़क नहीं बनी। रास्ते में पानी भर गया और लोग उसमें गिरते रहे। एक दिन एक चूड़ी बेचने वाला रास्ते में बने गड्ढे में गिर गया और मर गया। इस घटना से लोग आक्रोशित हो गये।
अगले दिन बंशी नगला के लोगों ने हाइवे जाम कर दिया। इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ता भी वहां पहुंचे गये। भारी पुलिस बल भी आ गया। लोगों व पुलिस में झड़प होने लगी। पुलिस ने जाम खुलवाने की कोशिश की और न खुलने पर लाठीचार्ज की धमकी दी। लेकिन लोगों के तेवर खासे गरम थे। उन्होंने कहा कि लाठी चलाओ या गोली, वे नहीं हटेंगे। पुलिस बल के साथ वहां एसओ तृतीय भी पहुंचे। उन्होंने इमके के जेपी से बात की और कहा कि आप जाम खुलवाओ। मैं नगर आयुक्त से बात करता हूं। नगर आयुक्त से बात होने पर उन्होंने जबाव दिया कि तुरंत जेसीबी व ट्राली आ रही है। तब जाकर जाम खोला गया। घटनास्थल पर अन्य संगठनों के लोग भी पहंुच गये। मृतक के घर भी लोग गये और मुआवजे के लिए नगर निगम से बात करने को कहा लेकिन घर वाले राजी नहीं हुए।
रास्ते में चूंकि पानी भरा था इससे मिट्टी नहीं पड़ सकी। अगले दिन इमके के नेतृत्व में 200-250 लोग जुलूस की शक्ल में नारेबाजी करते हुए नगर निगम पहुंचे। लोग जुलूस में ‘मेयर का रामपुर गार्डन स्वर्ग-स्वर्ग, बंशी नगला नरक-नरक’ का नारा लगा रहे थे। नगर निगम में भारी पुलिस बल भी पहुंच गया था। मेयर आईएस तौमर ने एक डेलीगेशन बुलाया जिसमें इमके से जयप्रकाश, पछास से कैलाश, मोहित व मोहल्ले से सीता, डालचंद, भगवान दास गये। बातचीत में मेयर से साफ शब्दों में कहा गया कि जब तक काम शुरू नहीं होगा तब तक वे नहीं जायेंगे और यहीं बैठेंगे। मेयर ने नगर निगम के सभी अधिकारियों को तुरंत फोन किया और तुरन्त काम शुरू करने के लिए कहा। और कहा कि वे कल खुद वहां आयेंगे। इस पर भी लोग वहीं बैठे रहे। पुलिस ने लोगों को हटाने के लिए काफी दबाव बनाया। जब मोहल्ले में फोन करके पूछा गया कि काम शुरू हो चुका है तभी लोग वहां से हटे। इसके बाद लोग विधायक कार्यालय गये। और ‘नेता जी होश में आओ, वंशी नगला में सड़क बनाओ’ का नारा लगाया। तब विधायक ने लोगों से कहा कि आपकी गली में सड़क पास करा दी गयी है। सड़क बनाने वाली कम्पनी को पत्र जा चुका है।
अगले दिन मेयर अपने पूरे दस्ते के साथ बंशी नगला पहुंचे और पूरा दौरा किया। फोन करके एक जेसीबी मंगायी गयी और एक डम्पर मंगाया गया। नाला बनाने के निर्देश दिये गये। रास्ते का पूरा पानी निकाल कर मिट्टी डाली गयी। और शीघ्र ही सड़क बनाने की कार्यवाही शुरू की जायेगी।

बंशीनगला के लोगों की एकजुटता के कारण उनको यह छोटी सी जीत मिली। इस पूरे आंदोलन में इमके ने नेतृत्वकारी भूमिका निभायी और यह भी बताया कि पूूंजीपतियों की व्यवस्था में यदि मेहनतकशों को कुछ मिल सकता है तो उनकी एकता के दम पर ही। जब तक पूंजीवाद रहेगा जनता को लड़ना होगा। अपनी समस्याओं के वास्तविक और स्थायी समाधान के लिए मजदूर राज अर्थात समाजवाद के लिए लोगों को संघर्ष करना होगा।            बरेली संवाददाता
आंशिक जीत के साथ मित्तर फास्टनर्स के मजदूरों की हड़ताल समाप्त
वर्ष-18, अंक-14(16-31 जुलाई, 2015)
रुद्रपुर/ 16 जून से मित्तर फास्टनर्स के मजदूरों की चल रही हड़ताल अंततः 3 जुलाई को समाप्त हो गयी। समझौता एस.डी.एम. की मध्यस्थता में सम्पन्न हुआ। समझौते मे दो निलंबित मजदूरों की कार्यबहाली, विकलांग मजदूरों को पेंशन व मुआवजे, न्यूनतम वेतन कटौती एरीयल के साथ भुगतान व पांच निष्कासित मजदूरों को सम्भावित राशि मैनेजमेण्ट देगा। यह समझौता कांग्रेस के नेताओं द्वारा करवाया गया।
मित्तर फास्टनर्स की हड़ताल में मजदूरों द्वारा लगातार अपने नेतृत्व का साथ दिया गया। सभी 50-55 मजदूर शुरू से अंत तक साथ में बने रहे। महिला मजदूरों व पुरुष मजदूरों की महिलाओं व बच्चों ने भी आंदोलन में भागीदारी की। इससे शासन-प्रशासन के ऊपर एक दबाव बन रहा था। आॅटोलाइन के मजदूरों को भी इससे अपने धरने को शुरू करने के लिए हिम्मत मिली।
मित्तर फास्टनर्स के मजदूर प्रतिनिधियों में टीम भावना का अभाव भी एक हद तक मौजूद था जो अन्य मजदूर भी साफ महसूस कर रहे थे। मजदूर नेतृत्व अपने से ज्यादा कांग्रेस के स्थानीय छुटभैय्यै नेताओं पर भरोसा कर रहा था। यह इतना खतरनाक साबित हुआ कि समझौते में मैनेजमेण्ट दो मजदूरों की कार्यबहाली की अपनी शुरू की अवस्थिति से टस से मस नहीं हुआ। निष्कासित पांच मजदूरों को वह केवल नोटिस पे व छंटनी के दौरान मिलने वाली ही राशि देने को तैयार था जो कि बहुत ही कम थी।
अभी फिलहाल समझौता पूरी तरीके से मैनेजमेण्ट ने लागू नहीं किया है। पांच निष्कासित मजदूरों ने हिसाब नहीं लिया है। अब कोर्ट के माध्यम से लड़ाई लड़ना ही बचता है। परन्तु इसमें भी उहापोह की स्थिति बरकरार है। इंकलाबी मजदूर केन्द्र द्वारा विगत लम्बे समय से इनका सहयोग किया जा रहा था परन्तु नेतृत्व द्वारा समझौते के दौरान किसी प्रकार का राय मशविरा नहीं लिया गया।
कम्पनी के अंदर का माहौल भी अब ज्यादा अच्छा नहीं रहा। मजदूरों के कार्यस्थल बदले जा रहे हैं। इससे मजदूरों में मैनेजमेण्ट के प्रति अविश्वास का भाव है। 8 जुलाई को लगभग 3-4 बजे एक मजदूर का स्वास्थ्य अचानक खराब हो गया। कम्पनी में प्राथमिक उपचार व एम्बुलेंस के अभाव में मजदूर की मौत हो गयीं मैनेजमेण्ट आनन-फानन में उसे अस्पताल लाया। परन्तु डाॅक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। अन्य मजदूरों को पता लगा तो वे भी वहां पहुंच गये। मैनेजमेण्ट पर लापरवाही का आरोप लगाया। परिजनों के आने के बाद मैनेजमेण्ट द्वारा हार्ट अटैक की कहानी गड़ी गयी। यह मजदूर हड़ताल के दौरान अंदर काम पर ही था। इस कारण काम का दबाव ज्यादा था। मृत मजदूर के परिजनों को मैनेजमेण्ट कानूनी तौर पर जो भी करता है वह देने की बात कर रहा था। इसके लिए मैनेजमेण्ट ने विधायक के भाई(ठेकेदार) को बुलवा लिया। वह भी उसके पक्ष में ही बात कर रहा था। शाम तक 4 लाख रुपये तक की बात मैनजमेण्ट कह रहा था। घटना का पता लगते ही इमके के कार्यकर्ता व ऐरा श्रमिक संगठन के महामंत्री व अन्य मजदूर अस्पताल पहुंच गये और मांग उठायी कि पूर्व में सिडकुल की कम्पनी में हुयी मौत पर समझौते जिसमें 10 लाख रुपये मुआवजा, पत्नी को पेंशन व बच्चों की पढ़ाई का खर्च मिला था, मिलना चाहिए। परिजनों द्वारा पोस्टमार्टम करवाने व मैनेजमेण्ट के खिलाफ सिडकुल चैकी में प्राथमिकी दर्ज करवाने से यह राशि पांच लाख रुपये पहुंच गयी। भाजपा के नेता सिर्फ बयानबाजी करने तक ही सीमित रहे। अंततः परिजन लाश को लेकर चले गये और किसी भी प्रकार के संघर्ष से पीछे हट गये।

   रुद्रपुर संवाददाता
मित्तर फास्टनर्स के मजदूर हड़ताल पर
वर्ष-18, अंक-13(01-15 जुलाई, 2015)
विगत दिनों में दो निलंबित मजदूरों को काम पर वापस लेने पर सहमति बनी थी। परन्तु मैनेजमेण्ट की वादा खिलाफी के विरोध में मित्तर फास्टनर्स के मजदूरों ने 16 जून से हड़ताल कर दी है। 16 की सुबह 5 बजे से ही मजदूर फैक्टरी गेट पर एकत्र हो गये। फैक्टरी में लगभग 70 मजदूर कंपनी बेस पर काम करते हैं। उनमें से 55-60 मजदूर हड़ताल पर आ गये। इनके अलावा लगभग 30-40 मजदूर ठेकेदार के कम्पनी में कार्यरत हैं। कुछ ही देर बाद मालिक ने पुलिस बुला ली। मालिक और पुलिस दोनों मिलकर मजदूरों को काम पर जाने को धमका रहे थे। मजदूर नेताओं ने पहले ही हड़ताल का वैधानिक नोटिस कम्पनी प्रबंधक व अन्य जगहों पर दिया था। परन्तु पुलिस अपने चरित्र के अनुकूल ही व्यवहार कर रही थी। पुलिस ने मजदूरों को कहा कि या तो काम पर जाओ या यहां से हट जाओ। इस पर मजदूर नेतृत्व द्वारा पूर्व में निर्धारित कार्ययोजना के अनुरूप ही डीएम कार्यालय पर चले गये। फैक्टरी गेट पर रुककर संघर्ष न चलाने का कारण मजदूर नेतृत्व का अपने आप व अपने मजदूर साथियों पर भरोसा करने के बजाए कांग्रेस के छुटभैय्ये नेताओं पर ज्यादा भरोसा करना था। उस दिन नेताओं को भी बहाना मिला कि वे शहर में ही नहीं हैं, जबकि बाद में किसी भी कांग्रेस नेता ने फैक्टरी गेट पर जाम करने के लिए मजदूरों को नहीं कहा जिससे मालिक पर ज्यादा दबाव पड़ता और वह समझौते के लिए तैयार होता।
17 जून को मजदूर नेतृत्व द्वारा इंकलाबी मजदूर केन्द्र के सहयोग से एक शिकायती पत्र कम्पनी में अकुशल ठेका श्रमिकों से मशीनों पर काम करवाने के विरोध में कारखाना निदेशक, एएलसी व डीएलसी में लगाया। महिलाओं व मजदूरों ने कम्पनी प्रबंधक के पुतले की शव यात्रा निकाल कर डी.एम. कोर्ट के बाहर नैनीताल रोड़ पर पुतला दहन कर पुतले की जूता-चप्पलों से पिटाई कर गुस्सा निकाला। मजदूर नेताओं ने आंदोलन को सहयोग व समर्थन के लिए विभिन्न कम्पनियों की यूनियनों/संगठनों को पत्र लिखा।
मजदूरों द्वारा दिये गये शिकायत पत्र पर 18 जून को एएलसी पीसी तिवारी ने मित्तर फास्टनर्स में औचक निरीक्षण की कार्यवाही करके केवल तीन मामलों में 1. महिला यौन शोषण सुरक्षा समिति का गठन न होने 2. श्रमिकों की उपस्थिति पंजिका में नियमित हाजरी न भरने 3. अस्थाई (ठेका) मजदूरों से उत्पादन कार्य (मशीनें चलवाने) लेने के मामले में एक सप्ताह के भीतर जबाव देने का नोटिस दे दिया और अपने कर्तव्य की इतिश्री कर दी। परन्तु कुछ समय बाद ही कम्पनी पुनः ठेका मजदूरों से चलने लगी। कांग्रेस के छुटभैय्यै नेताओं द्वारा धरने पर आकर एएलसी की इस छापामारी का श्रेय लेने के प्रयास किये गये परन्तु मजदूरों ने इन धूर्त नेताओं के मुंह के सामने ही विरोध किया और कहा कि पहले तो हमारी शिकायत पर ही यह कार्यवाही हुयी दूसरे आपके द्वारा अगर हुआ है तो मात्र दो-तीन घण्टे बाद ही कम्पनी पुनः चलने लगी।
20 जून को पुनः महिलायें व मजदूर ए.एल.सी. कार्यालय पहंुच गये। ए.एल.सी. को महिलाओं व मजदूरों ने घेर लिया व उनसे कहा कि कम्पनी मैनेजमेण्ट स्थाई मजदूरों को बाहर कर गैरकानूनी तरीके से ठेका मजदूरों से काम करवा रहा है। आपकी क्या इतनी भी ताकत नहीं है कि आप उसे रोक सके? ए.एल.सी. ने इस पर अपनी असमर्थता जतायी। कहा कि, ‘‘मैंने जो करना था कर दिया इससे ज्यादा मैं नहीं कर सकता हूं’’। इस पर महिलाओं ने पूछा कि आप श्रम कानूनों का पालन करवाने के लिए यहां बैठे है या मालिकों को छूट देने व श्रम कानूनों से बचाव के रास्ते बताने के लिए? मजदूरों द्वारा श्रम कानूनों को लागू करवाने के लिए एएलसी को जिम्मेदार ठहराते हुए उन पर हीलाहवाली करने का आरोप लगाया। मजदूरों को भर्ती करते समय नियुक्ति पत्र, न्यूनतम वेतन, ई एस आई व पी.एफ. पर्ची आदि श्रम कानूनों में दर्ज अधिकार भी नहीं दिये जाते। मजदूर जब इन अधिकारों की मांग करते हैं तो उल्टा मजदूरों को ही बिना उचित प्रक्रिया के निष्कासित व निलम्बित कर दिया जाता है। यहां तक कि मजदूरों का जांच कार्यवाही के दौरान आपरेशन अवधि में ही निष्कासन की कार्यवाही मैनेजमेण्ट द्वारा कर दी जाती है। इसकी शिकायत श्रम विभाग में करने पर भी सुनवाई नहीं होती उल्टा मजदूरों को मामले को लेबर कोर्ट भेज देने की धमकी श्रम विभाग व मालिक मैनेजमेण्ट की होती है। इसका विरोध करने पर मजदूरों को नेतागिरी करने का आरोप लगाकर वास्तविक व न्याय संगत मांग को दरकिनार कर दिया जाता हैै। एएलसी महोदय के पास मजदूरों व महिलाओं की इन बातों का कोई जबाव नहीं था। वे लगातार पानी पीते रहे और पसीना पोंछते रहे। किन्तु इस घटनाक्रम के बाद तुरन्त शाम को ही 22 जून सोमवार को 11 बजे त्रिपक्षीय वार्ता का नोटिस जारी कर दिया जोकि 16 जून की हड़ताल के बाद पहली वार्ता थी। वार्ता के लिए ए.एल.सी. महोदय द्वारा पुलिस से मदद मांगी गयी वह भी महिला पुलिस की।
21 जून सुबह को सभी मजदूर कांग्रेस के एक स्थानीय दबंग नेता से अन्य कम्पनियों के मजदूरों के साथ में मिले। मित्तर फास्टनर्स के मजदूर नेतृत्व को इनके ऊपर काफी भरोसा था। कांग्रेसी नेताजी ने अपने अंदाज में मजदूरों को विश्वास दिलाया। फिर सभी लोग कांग्रेस के पूर्व मंत्री से भी मिले। मंत्री जी ने पहले तो मालिक से रिश्तेदारी की बात करके मामले को टालने की बात की। परन्तु मजदूर नेताओं द्वारा स्थानीय वोट बैंक होने व इस प्रकार अन्याय में मालिकों का साथ देने की दुहाई दी तब जाकर नैतिक दबाव में आकर मंत्रीजी ने अप्रत्यक्ष रूप से साथ देने की बात कही।
रविवार वाले दिन भी मजदूर धरने पर बैठे थे। उस दिन सिडकुल पंतनगर की अन्य कम्पनियों के मजदूर यूनियनों/संगठनों व ट्रेड यूनियन सेण्टरों के नेतृत्व को बुलाकर आंदोलन के सम्बन्ध में साझी रणनीति बनाने के लिए एक बैठक रखी थी। इस बैठक की ठीक ढंग से तैयारी न होने या मजदूर वर्ग की वर्गीय एकता की सोच की कमी के कारण ज्यादातर यूनियनों के लोग बैठक में नहीं पहुंचे। बैठक में पहुंचे एक सेण्ट्रल ट्रेड यूनियन नेता ने मजदूर आंदोलन की कमजोरी (मजदूर नेतृत्व का राजनीतिक न होना) को केन्द्र बिन्दु बनाते हुए आज के दौर में कम संख्या वाली कम्पनी के मजदूरों को आंदोलन के बजाय कोर्ट के माध्यम से ही संघर्ष लड़ने की बात कही गयी और आंदोलन व्यापक जनता के साथ हो वर्ना नहीं करने चाहिए। बैठक आगे और तैयारी के साथ करने की बात के साथ समाप्त हो गयी।
22 जून को वार्ता में कांग्रेसी छुटभैय्यै नेताओं ने एएलसी को खूब खरी-खोटी सुनाई। सुरक्षा के लिए विशेष पुलिस बल की एक गाडी महिला पुलिस के साथ एएलसी कार्यालय पहुंच चुकी थी ताकि मजदूरों के ऊपर दबाव बनाया जा सके। वार्ता में मैनेजमेण्ट द्वारा मजदूरों पर अनर्गल आरोप लगाए गये। वार्ता के बिन्दुओं में 1. चार निष्कासित मजदूरों की बहाली, 2. दो निलम्बित मजदूरों की कार्यबहाली, 3. विकलांग मजदूरों के मुआवजा व पेंशन, 4. 2010 से ही न्यूनतम वेतन के एरियर का भुगतान, 5. वेतन बढोत्तरी में से केवल दो निलम्बित मजदूरों की कार्यबहाली की ही बात मैनेजमेण्ट कर रहा था। मजदूरों ने विरोध करते हुए मैनेजमेण्ट पर आरोप लगाया कि उसने पहले ही ए.डी.एम. के समक्ष हुए फैसले को नहीं माना तो अब बात 6 मजदूरों की बहाली व अन्य मांगों के बिना पूरी नहीं होगी। उस दिन कांग्रेस के स्थानीय नेता भी थे। परन्तु वार्ता बिना किसी नतीजे के समाप्त हो गयी। उसके बावजूद अन्य मजदूरों ने एएलसी व मैनेजमेण्ट के ऊपर दबाव बनाने के लिए जोरदार नारेबाजी की। वार्ता की अगली तिथि 24 जून की रखी गयी।
23 जून को मजदूरों का धरना ही चला। इस दिन भाजपा के छुटभैय्ये नेता ने आकर मजदूरों को समर्थन देने व कल (24 जून) वार्ता में आकर मामले को निपटाने का आश्वासन दिया। मजदूरों का भाजपा विधायक का पूर्व में कम्पनी मालिक का पक्ष लिये जाने से विरोध था। भाजपा के नेताओं को वार्ता में ले जाने का मजदूरों ने विरोध किया परन्तु मजदूरों के नेतृत्व ने कहा कि अगर भाजपा नेता हमारे पक्ष में बात करते हैं तो फिर क्यों विरोध किया जाए। अगर वे हमारे खिलाफ बात करेंगे तो हमें उनकी बात मानने की कोई बाध्यता नहीं है। 23 जून को ही कांग्रेस के श्रम प्रकोष्ठ के नेताओं द्वारा मैनेजमेण्ट का पुतला फूंका गया। इसी के प्रभाव में ही भाजपा नेता सक्रिय हुए।
24 जून को वार्ता से पहले भाजपा के छुटभैय्ये नेता ने अपने श्रम प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष हरबोला व स्थानीय विधायक राजकुमार ठुकराल को भी बुला लिया। इन्होंने 12 बजे ए.एल.सी. कार्यालय पहुंचकर ए.एल.सी. को मजदूरों के सामने धमकाया कि आप लोग मजदूरों के हितों के खिलाफ मालिकों का पक्ष लेेते हैं। परन्तु जैसे ही मैनेजर आया वैसे ही उनका रुख बदल गया। खासकर विधायक राजकुमार ठुकराल का। मैनेजर ने एक मजदूर की शिकायत की कि उसने मालिक को गाली दी थी तो ठुकराल साहब भद्दी भाषा का प्रयोग करते हुए बोले कि उस मजदूर को लात मारकर बाहर कर देना चाहिए और साथ ही उत्तराखण्ड के लोगों की फैक्टरी में स्थिति पूछने लगे। बाहरी लोगों को कम कर उत्तराखण्ड के लोगों को रोजगार देने की बात करने लगे। बताते चलें कि इन्हीं विधायक साहब के भाई का सिडकुल की कई कम्पनियों में ठेके चलते हैं और उसमें बाहर के मजदूरों को रखा जाता है। इनके मजदूर डर भय के माहौल में काम करते हैं। मित्तर फास्टनर्स कम्पनी में तो एक बार इनके भाई ने मजदूरों को पुलिस चैकी में धमकाया और बोला था कि मैं फैक्टरी का एच.आर. हूं। किसी मजदूर को काम पर वापस नहीं लूंगा। विधायक द्वारा कही गयी बातों की गहमागहमी में मजदूरों की मांगों पर कोई सहमति नहीं बन पायी। मजदूर नेताओं ने जब बात रखी तो मैनेजर को कोई जबाव नहीं सूझा। परन्तु कुछ ही देर में मजदूर नेताओं को विधायक जी ने बाहर कर खुद बात करने को कहा। उन्होंने मैनेजर से कहा कि मजदूरों से अन्डर टेकन भराकर फैक्टरी में ले लो बाद में निकाल देना परन्तु मालिक फैक्टरी बंद कर देने की बात करने लगे, अंततः कुछ भी सहमति न बन पायी। विधायक ने तीन दिन का समय देकर बात खत्म कर दी। 26 जून को उपश्रमायुक्त (एएलसी) कार्यालय पर त्रिपक्षीय वार्ता तय थी लेकिन मैनेजमेण्ट वार्ता में नहीं आया। तब मजदूरों ने एडीएम से मुलाकात कर मैनेजमेण्ट की तानाशाही पर पुनः आक्रोश व्यक्त किया। एडीएम महोदया ने मजदूरों से कहा कि कल 27 जून को अपने कार्यालय पर मैनेजमेण्ट को बुलाकर वार्ता करेगी।

27 जून को एडीएम कार्यालय पर मजदूर व मैनेजमेण्ट तो उपस्थित हुए लेकिन एडीएम महोदया नदारद थीं। एडीएम के वहां वार्ता 29 जून को नियत है। मजदूरों का डीएम कोर्ट पर आंदोलन(धरना) जारी व हड़ताल जारी है।      रुद्रपुर संवाददाता
उत्तेजित ओरियण्ट गारमेण्ट फैक्टरी के मजदूरों ने की आगजनी
वर्ष-18, अंक-13(01-15 जुलाई, 2015)
गुड़गांव के सेक्टर-37 स्थित ओरियन्ट क्राफ्ट कम्पनी में एक बार फिर मजदूरों का आक्रोश फूट पड़ा। गुस्साये मजदूरों ने कंपनी परिसर में खड़ी दर्जन भर से ज्यादा गाडि़यों में तोड़फोड़ की तो कुछ को आग के हवाले कर दिया तथा कम्पनी में भी तोड़फोड़ की।
20 जून को आम दिनों की तरह मजदूर काम पर गये हुए थे। सुबह 9 बजे के आसपास मजदूरों ने देखा कि पवन नाम का उनका साथी सामान ढोने वाली लिफ्ट के पास खड़ा जोर-जोर से हिल रहा है। उन्हें समझते देर नहीं लगी कि लिफ्ट के चैनल में करण्ट आ गया है। कंपनी में चीख-पुकार मच गयी तथा कुछ मजदूर लकड़ी की सीढ़ी ढूंढ कर लाये तथा पवन को लिफ्ट से दूर किया। वह बेहोश हो गया था। उसे निकट के अस्पताल में भर्ती कराया गया। मजदूरों ने अपने सहज बोध से अंदाज लगाया कि जब चैनल में करंट था तो लिफ्ट में भी करण्ट होगा तथा उसमें मौजूद साथियों में भी करण्ट लगा होगा। जब इस बावत प्रबंधन से उन्होंने पूछा तो कोई उत्तर नहीं मिला तब तक किसी ने कहा कि लिफ्ट में भी आग लग गई तथा उसमें मौजूद तीन मजदूर जलकर मर गये हैं तथा हाॅस्पीटल में भर्ती पवन की भी मृत्यु होने की अफवाह फैल गयी।
प्रबंधन मजदूरों को लिफ्ट के पास नहीं जाने दे रहा था। इसने अफवाह को और पुख्ता किया। क्षण भर में ही कंपनी में कार्यरत 1500-2000 मजदूर कंपनी से बाहर निकल आये और तोड़फोड़-आगजनी शुरू हो गयी। गुड़गांव के सभी थानों की पुलिस व रैपिड एक्शन फोर्स ने पहुंचकर मजदूरों को खदेड़ा। करीब 4 घंटे बाद स्थिति शांत हो पाई। घायल श्रमिक पवन का इलाज चल रहा है। तोड़-फोड़ में सीसा लगने से घायल एक अन्य श्रमिक भी अस्पताल में भर्ती है। पुलिस ने 9 नामजद सहित 100 अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली है।
अप्रैल 2012 में भी इसी प्लांट में ठेकेदार द्वारा कैंची भोंक देने से एक श्रमिक घायल हो गया था। मजदूरों ने तब पुलिस अधिकारी की जिप्सी समेत दर्जनों वाहनों को आग के हवाले कर दिया था।
ओरियन्ट क्राफ्ट के 7-8 प्लाण्ट गुड़गांव-मानेसर में हैं। यह गारमेण्ट निर्यात की सबसे बड़ी कंपनी है। गुड़गांव में करीब 1500 गारमेण्ट की फैक्टरियां हैं। जिनमें करीब 1.5-2 लाख मजदूर कार्यरत हैं। किसी भी कंपनी में न तो कोई स्थाई मजदूर है और न ही कोई यूनियन। अधिकांश मजदूर न्यूनतम वेतन से भी कम वेतन पर कार्य करते हैं या फिर पीस रेट पर। कम्पनी में ड्यूटी जाने का तो समय नियत है आने का नहीं। 16-16 घण्टे, 18-18 घंटे काम करना आम बात है। मशीन में करंट आने से मौत हो जाना। ठेकेदार, बाउंसर, एचआर विभाग द्वारा मारपीट किया जाना व अपमानित किया जाना आम बात है। भारी संख्या में कार्यरत महिला श्रमिकों के साथ भी अमानवीय व्यवहार किया जाता है। इन कंपनियों में कोई भी श्रम कानून लागू नहीं होते हैं। ऐसे में कोई भी घटना-दुर्घटना मजदूरों में तरह-तरह की आशंकाओं को पैदा करती हैं तथा कभी-कभार आक्रोश फूट कर सड़कों पर आ जाता है और क्षणिक प्रतिक्रिया के बाद शांत हो जाता है लेकिन कोई संगठित सतत प्रतिरोध का रूप नहीं ले पाता है। अधिकांश मजदूर दूर-दराज के इलाकों के इनमें कार्यरत हैं।
ऐसी ही एक घटना इसी साल फरवरी में उद्योग विहार में हुई। जब गौरव-रिचा इण्टरनेशनल के एक प्लाण्ट में एक मजदूर समीचंद की मौत की अफवाह फैलने से उसके 6 प्लाण्टों में मजदूरों ने तोड़-फोड़ की तथा अपना आक्रोश व्यक्त किया। इस मजदूर को बाउंसरों ने बुरी तरह पीटा था जिसके कारण वह अस्पताल में भर्ती हुआ था। जब मजदूरों ने प्रबंधक से इस बारेे में बातचीत की और घायल समीचंद का हाल पूछना चाहा तो प्रबंधन ने मजदूरों को डांटना-फटकारना शुरू कर दिया था। और मजदूर आक्रोशित हो गये थे।
ओरियण्ट क्राफ्ट की घटना के बाद अतिरिक्त श्रमायुक्त आर.सी. विधान ने कंपनी परिसर का दौरा किया और गुडगांव के श्रम विभाग को बोला कि वह छोटी-छोटी बातों पर होने वाली इतनी बड़ी घटनाओं के पीछे के ठोस कारणों की जांच पड़ताल करे। 2012 में भी गुड़गांव प्रशासन ने ऐसी ही बात कही थी लेकिन स्थिति फिर वही ढाक के तीन पात वाली है। घटनाओं के पीछे की ठोस वजह किसी अंधे को भी साफ समझ में आ सकती है। उसके लिए किसी पड़ताल की जरूरत नहीं है बल्कि कड़ाई से श्रम कानूनों को लागू करने की जरूरत है। श्रम कानूनों को खत्म करने की कवायद में लगी शासन-सत्ता से श्रम कानूनों को लागू करने की उम्मीद करना बेमानी है। ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इन घटनाओं का और बड़े पैमाने पर होना लाजिमी है।
    गुड़गांव संवाददाता
एफटीआईआई के छात्रों के समर्थन में दिल्ली में प्रदर्शन
वर्ष-18, अंक-13(01-15 जुलाई, 2015)
गजेन्द्र चौहान की नियुक्ति के खिलाफ व फिल्म एण्ड टेलीविजन इंस्टीट्यूट आॅफ इण्डिया (एफटीआईआई) के छात्रों के समर्थन में दिल्ली में विभिन्न जनवादी व छात्र संगठनों द्वारा 16 जून को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के बाहर प्रदर्शन किया गया।
गौरतलब है कि गजेन्द्र चौहान 2004 से भाजपा के सदस्य रहे हैं। 10 जून को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के आदेश पर उन्हें भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान पुणे का चैयरमेन बना दिया गया। उसके अगले दिन 11 जून से ही छात्र इसका विरोध करते हुए हड़ताल पर चले गये। उनका कहना था कि चैहान ने टेलीफिल्म महाभारत में युधिष्ठिर का पात्र निभाया है तथा साथ ही ‘खुली खिड़की’ जैसी कई सेमी-पोर्न फिल्मों में काम किया है। एफटीआईआई के भूतपूर्व चैयरमेनों जिनमें अदूर गोपालकृष्णन, गिरीश कर्नाड, श्याम बेनेगल जैसे नाम रहे हैं की तुलना में चैहान चैयरमेन की योग्यता नहीं रखते। भाजपा का सदस्य व संघी मानसिकता से ग्रसित होने के चलते ही उन्हें इस पद पर नियुक्त किया गया है।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के बाहर चली सभा में पछास के दीपक ने संबोधित करते हुए कहा कि गजेन्द्र चैहान का यह ईनाम उनकी संघी सोच के चलते दिया गया है। चैहान हरियाणा विधानसभा चुनावों में भाजपा के प्रचारक रह चुके हैं। इसके अलावा आशाराम बापू की तरह वे भी वेलेंटाइन डे का विरोध करते हुए माता-पिता दिवस मनाए जाने के समर्थक रहे हैं। दरअसल भाजपा व्यवस्था के अलग-अलग अंगों में अपनी सोच से ग्रसित लोगों केा भरकर उनका भगवाकरण करना चाहती है। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद में सुदर्शन राव जैसे नाकाबिल व्यक्ति को अध्यक्ष बनाकर, फिल्म विपणन बोर्ड में अपने लोगों को भरकर, दीनानाथ बत्रा जैसे लोगों कूढ़मगज व्यक्ति द्वारा लिखित किताबों को गुजरात के विद्यालयों में चलावकर भाजपा यह प्रयास पहले ही शुरू कर चुकी है। अब उसका निशाना एफटीआईआई जैसी संस्थाओं पर है। इससे पहले तक एफटीआईआई में जनवादी एवं धर्मनिरपेक्ष ताकतों का इतिहास रहा है जिससे निकले कुछ हिस्सों ने सिनेमा के द्वारा जनता की आवाज को भी स्वर देने की कोशिश की। और इन्हीं ताकतों से हिन्दू फासीवादी ताकतें खौफ खाती हैं। ये ताकतें उसे अपने तथाकथित ‘हिन्दू राष्ट्र’ के सपने की राह में रोड़ा नजर आते हैं। इसीलिए वह सभी संस्थाओं में अपने लोगों को डालकर यह गारण्टी करना चाहती है कि विभाजनकारी राजनीति का कोई विरोधी न रहे। सभा में एफटीआईआई के भूतपूर्व छात्र नकुल ने कहा कि एफटीआईआई के छात्र निरंतर ही संघर्ष करते रहे हैं। कुछ वर्ष पूर्व जब सरकार द्वारा एफटीआईआई का निजीकरण करने की कोशिशें की जा रही थीं तब भी एफटीआईआई के छात्रों ने इसके विरोध में हड़ताल करके सरकार को अपने कदम खींचने पर मजबूर कर दिया था। 2 वर्ष पूर्व जब क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच ‘कबीर कला मंच’ पर सरकार द्वारा चैतरफा हमला किया जा रहा था तब एफटीआईआई के छात्रों ने संस्थान में उनका कार्यक्रम आयोजित करवाया था। आज एफटीआईआई के छात्रों का संघर्ष दक्षिणपंथी ताकतों के खिलाफ है और उन्हें समाज के हर तबके के समर्थन की जरूरत है।

सभा में सभी वक्ताओं ने एफटीआईआई के छात्रों के साथ अपनी एकता जाहिर करते हुए संघर्ष को व्यापक बनाने पर जोर दिया। प्रदर्शन में आइसा, पछास, एसएफआई, एफटीआईआई के भूतपूर्व छात्रों व नेशनल स्कूल आॅफ ड्रामा के छात्रों ने शिरकत की।        दिल्ली संवाददाता
आॅटो लाइन के मजदूरों का धरना
वर्ष-18, अंक-13(01-15 जुलाई, 2015)
सिडकुल पंतनगर (ऊधमसिंह नगर) में आॅटोलाइन के 13 मजदूरों के निलम्बन के खिलाफ मजदूरों का संघर्ष जारी है। 27 जून को एएलसी रुद्रपुर की मध्यस्थता में हुई त्रिपक्षीय वार्ता में कम्पनी प्रबंधक 15 जून को हुई वार्ता में अपने ही आश्वासन से मुकर गया मजदूरों को आंदोलन स्थगित रखने एवं और अधिक समय देने की मांग करने लगा। यूनियन नेतृत्व द्वारा कम्पनी प्रबंधकों पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए आंदोलन स्थगन वापस ले लिया गया और 28 जून से पुनः कम्पनी के सभी मजदूरों ने कार्य के दौरान काली फीता बांधने एवं मौनव्रत धारण कर आंदोलन पुनः शुरू कर दिया है। यूनियन द्वारा जिला प्रशासन को 27 जून को पत्र प्रेषित कर 29 जून से कलक्ट्रेट परिसर में निलम्बित मजदूरों की कार्यबहाली एवं मांगपत्र पर सुनवाई होने तक अनिश्चितकालीन धरना देने की सूचना दी।

मजदूरों की आम सभा में 29 जून से कलक्ट्रेट परिसर में धरना देने, 29 जून को हड़ताल का नोटिस देने एवं निलम्बित मजदूरों के आर्थिक पक्ष को ध्यान में रखकर सभी मजदूरों द्वारा माह में एक दिन का वेतन निलम्बित मजदूरों को देने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास किया गया। आंदोलन को व्यापक बनाने की रणनीति बनायी जा रही है। एएलसी के वहां अगली त्रिपक्षीय वार्ता 6 जुलाई को नियत है।रुद्रपुर संवाददाता

मित्तर फास्टनर्स के दो मजदूरों की  कार्यबहाली के साथ संघर्ष विराम
वर्ष-18, अंक-12(16-30 जून, 2015)
    10 जून को मित्तर फास्टनर्स के मजदूरों व मैनेजमेण्ट की एडीएम से वार्ता हुयी इसमें दो निलंबित मजदूरों की कार्यबहाली का समझौता प्रशासनिक दबाव के कारण सम्पन हुआ। चार मजदूरों के निष्कासन का मामला एएलसी ने डीएलसी को ट्रांसफर कर दिया। 11 जून के दोपहर बाद मजदूरों ने डी.एम. कोर्ट पर धरना समाप्त कर दिया। 
    विगत 23 मई से मित्तर फास्टनर्स के मजदूर डी.एम. कोर्ट रुद्रपुर उधमसिंह नगर पर धरना दे रहे थे। 31 मई तक किसी प्रकार की कोई वार्ता नहीं हुयी। 1 जून को सहायक श्रमायुक्त रुद्रपुर के यहां त्रिपक्षीय वार्ता में मैनजमेण्ट 4 मजदूरों को रखने को तैयार हुआ परन्तु मालिक से बात करने के उपरांत। अगली वार्ता 4 जून को हुयी अब मैनेजमेण्ट 1 मजदूर प्रतिनिधि जो कि निलम्बित था उसी को काम पर लेने को राजी हुआ। 8 जून को भी 1 मजदूर की ही बात वार्ता में हुयी। 8 जून को शाम को मजदूर ए.डी.एम. दीप्ती आर. वैश्य से मिले, उन्होंने 9 जून को वार्ता करवाकर समझौता करवाने का आश्वासन दिया। 9 जून को ए.डी.एम. के साथ मजदूरों व मैनेजमेण्ट की वार्ता हुयी। वार्ता में 2 लोगों को लेने की सहमति बनी। मैनेजमेण्ट 2 घण्टे बाद मालिक से पूछ कर बताने को कहकर चले गये। 10 जून को मजदूर सुबह धरनास्थल पर पहुंचे। मैनेजमेण्ट भी कुछ समय बाद पहुंच गया। ए.डी.एम. साहिबा 12 बजे के आस-पास पहुंची। मजदूर जब ए.डी.एम. के पास पहुंचे तो वे उल्टा मजदूरों को ही धमकाने लगी कि ‘दो मजदूरों को काम पर लेने की बात हो चुकी है। तुम लोग धरना खत्म क्यों नहीं कर रहे हो।’ मजदूरों का कहना था कि ‘छः लोगों को निकाला है बाकी लोगों का क्या होगा’। ए.डी.एम. महोदया मजदूरों को धमकाने लगी कि ‘तुम लोग मुझे ब्लैकमेल कर रहे हो। मैं इसकी शिकायत डी.एम. साहब से करूंगी। मजदूर फिर वापस आ गये और ए.एल.सी. महोदय से गुहार लगाई। ए.एल.सी. भी दो मजदूरों को काम पर लेने के फैसले को ही मानने लगा। चार मजदूरों के मामले को डी.एल.सी. हल्द्वानी ट्रांसफर कर दिया। 11जून को दोपहर 12 बजे मजदूरों ने धरना समाप्त कर दिया। 
    9 जून को विभिन्न फैक्टरियों के रिद्धी-सिद्धी, पारले, आॅटोलाइन आदि कम्पनियों के निलम्बित व निष्कासित मजदूरों ने एक दिवसीय धरना डी.एम. कोर्ट पर दिया था। इससे जिला प्रशासन को मित्तर फास्टनर्स के मजदूरों का धरना खत्म करने का दबाव था।
    मित्तर फास्टनर्स के मजदूरों का संघर्ष भले ही अभी खत्म हुआ हो परन्तु कुछ ही समय बाद पुनः उन्हें संघर्ष के मैदान में पुनः उतरना होगा, तब तक के लिए उन्हें दुबारा अपनी ताकत और समझदारी बढ़ानी होगी। 
                रुद्रपुर संवाददाता 
आॅटोलाइन कम्पनी प्रबंधन का नवगठित  यूनियन पर हमला
वर्ष-18, अंक-12(16-30 जून, 2015)
    सिडकुल पंतनगर (उत्तराखण्ड) के सैक्टर-11, टाटा वैण्डर पार्क के प्लाॅट संख्या- 5,6 एवं 8 में अवस्थित आॅटोलाइन इण्डस्ट्रीज कंपनी के मजदूरों ने 11 अप्रैल 2015 को अपनी यूनियन पंजीकृत कराई। यूनियन का नाम ‘आॅटोलाइन इम्प्लाइज यूनियन’ रखा गया। इस कंपनी में लगभग 150 स्थाई, 70 कैजुअल/ट्रेनी एवं 300 से अधिक ठेका मजदूर कार्यरत हैं। यह कंपनी टाटा मोटर्स के लिए पार्ट्स बनाती है। मजदूरों का न्यूनतम वेतनमान 6500 रु. व अधिकतम 15,000 रु. है। 
    यूनियन पंजीकरण होते ही कंपनी प्रबंधकों की आंखों में चुभने लगी थी। यूनियन पदाधिकारियों द्वारा 30 अप्रैल को कंपनी प्रबंधकों को अपना मांग-पत्र सौंपा। मांग पत्र मे 18 मांगें थीं जिनमें वेतन वृद्धि, कैजुअल/ट्रेनी/ठेका मजदूरों का स्थाईकरण, कैन्टीन सुविधा आदि मुख्य थी। यूनियन पदाधिकारियों एवं कंपनी प्रबंधन के मध्य 6-7 चक्रों की वार्तायें चलीं जिसमें कोई हल न निकला। कारपोरेट एवं स्थानीय कंपनी प्रबंधन यूनियन को मान्यता देने को तैयार न थे। इस बीच कंपनी प्रबंधन द्वारा अपनी मनमर्जी से यूनियन को विश्वास में लिये बगैर अचानक मजदूरों को वेतन में 800 रुपये, 1500रु से 2000 तक की वृद्धि कर दी और यूनियन को बाइपास कर दिया। 
    यूनियन द्वारा इसका विरोध किया गया। यूनियन के आह्वान पर मजदूरों ने सामूहिक रूप से कार्य के दौरान बांह पर काला फीता बांधकर एवं सीने पर कार्ड लगाकर इसका विरोध किया, जोकि खबर लिखे जाने तक जारी है। कंपनी प्रबंधकों की इच्छा के ठीक विपरीत कंपनी के समस्त स्थाई, कैजुअल, ट्रेनी एवं ठेके के मजदूर एक सूत्र में बंध गये। एकता और मजबूत हो गयी।
    कंपनी प्रबंधन इससे बौखला गया। अब उसने गुण्डागर्दी एवं दमन की नीति अपनाई। 1 जून 2015 को यूनियन अध्यक्ष रात्रि 11 बजे ड्यूटी से अपने काम पर वापस जा रहे थे कि वीरान इलाके में चार नकाबपोश गुण्ड़ों ने उन्हें घेरकर रोक लिया, उनके कनपटी पर रिवाॅल्वर रखकर धमकाया कि ‘‘बहुत नेतागिरी कर रहा है, अपने और अपनी बीबी-बच्चों की खैरियत चाहता है तो नौकरी से इस्तीफा देकर रुद्रपुर से चला जा।’’
    अगले दिन यूनियन अध्यक्ष बालम सिंह कठात ने इसकी लिखित तहरीर सिडकुल पुलिस चौकी इंचार्ज को दी और इसके पीछे कंपनी प्रबंधन का हाथ होने की प्रबल आशंका व्यक्त की। चैकी इंचार्ज ने अपनी पक्षधरता दिखाते हुए पहले अन्य कंपनियों के ट्रेड यूनियन नेताओं के बहाने प्रकारान्तर से (यूनियन नेताओं को भी) मां-बहिन की बुरी-बुरी गालियां दीं। अंत में तहरीर लेकर कार्यवाही का आश्वासन दिया। नतीजा वही ढाक के तीन पातों वाला रहा। पूंजीपति वर्ग की जरखरीद गुलाम भारतीय पुलिस भला मजदूर की तहरीर पर कंपनी प्रबंधकों के खिलाफ कब कोई कार्यवाही करती है? आजादी के बाद से अब तक तो यह दुर्लभ नजारा शायद ही देखने को मिला हो?
    उसी दिन कंपनी के समस्त ए शिफ्ट के मजदूर शिफ्ट छूटते ही कंपनी में बैठ गये और इस पर कंपनी प्रबंधन को खरी-खोटी सुनाई और यूनियन अध्यक्ष की सुरक्षा को ध्यान में रखकर उनकी जनरल शिफ्ट लगाने की मांग की। कंपनी प्रबंधकों ने अगले दिन से यूनियन अध्यक्ष की जनरल शिफ्ट लगा दी। 
    9, 10 एवं 11 जून 2015 तक 16 मजदूरों को अवैधानिक रूप से निलम्बित कर दिया गया है और वह सिलसिला अभी जारी है। निलम्बित मजदूरों में यूनियन महामंत्री, उपाध्यक्ष समेत कार्यकारिणी के अधिकांश सदस्य शामिल हैं। मजदूरों को निलम्बन से पूर्व  न तो कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, न आरोप पत्र दिया गया। स्पष्टीकरण देकर अपना पक्ष रखने का अवसर भी नहीं दिया गया।  
    यूनियन महामंत्री पर आरोप लगाया गया है कि वे यूनियन अध्यक्ष के साथ में 3 जून 15 को सुरक्षाकर्मी की इजाजत के बगैर जबरन गेट से बाहर चले गये, उन्होंने सुरक्षाधिकारी को गाली-गलौच की और अनुशासनहीनता की। जबकि सुरक्षाकर्मी द्वारा कंपनी प्रबंधकों, जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक एवं श्रम अधिकारियों को पत्र प्रेषित कर कहा है कि 3 जून 2015 को यूनियन महामंत्री एवं अध्यक्ष उनकी अनुमति से ही विधिवत तरीके से गेट से बाहर गये। इसीलिए उन पर गलत आरोप में कार्यवाही न की जाये। 
    अन्य मजदूरों पर 2 जून 2015 को कम्पनी में अनुशासन हीनता करने, यूनियन अध्यक्ष के साथ घटित ‘तथाकथित’ घटना पर कंपनी प्रबंधन के अधिकारियों के साथ गाली-गलौच करने, प्रबंधकों को जान से मारने की धमकी देने एवं अनुशासनहीनता का आरोप लगाया गया है। 
    यूनियन द्वारा इसके विरोध में 10 जून को कंपनी गेट पर धरना दिया जा रहा था कि इतने में पुलिस वहां आ धमकी और गुण्डागर्दी पर उतर आयी। पुलिस ने मजदूरों को कंपनी गेट से खदेड़ दिया। यूनियन महामंत्री ने बताया कि यूनियन ने कोर्ट में कैबिएट लगा रखा है, अगर कंपनी ने कोर्ट से स्टे ले रखा है तो उसे दिखाओ, तब हम सोचेंगे। परन्तु पुलिस ने एक न सुनी और सारे कानून ताक पर रखकर कंपनी प्रबंधन की लठैत बनकर मजदूरों को खदेड़ दिया। इंकलाबी मजदूर केन्द्र के बहुत समझाने के बाद भी मजदूर अपने साहस को न बटोर सके और कंपनी गेट पर धरना जारी नहीं रखा जा सका। 
    इंकलाबी मजदूर केन्द्र के सहयोग एवं दिशानिर्देशन में मजदूरों ने इसकी शिकायत डी.एल.सी. एवं ए.एल.सी., शासन-प्रशासन में की और सामूहिक हड़ताल का नोटिस तैयार किया। ए.एल.सी. द्वारा 15 जून 2015 को त्रिपक्षीय वार्ता बुलाई है। 
    आटो लाइन मजदूरों को सिडकुल पंतनगर में वर्ष 2013 में शिरडी कंपनी एवं वर्ष 2014 में ऐरंा कंपनी के मजदूरों के संघर्ष से प्रेरणा लेकर संघर्ष के मैदान में उतरने, नारी शक्ति को अपने संघर्ष से जुड़कर शासन-प्रशासन के नाक में दम करने की आवश्यकता है। शिरडी एवं ऐरा कंपनी के मजदूर नारी शक्ति को  अपने साथ में जोड़कर जुझारू संघर्षों के दम पर शासन-प्रशासन, पुलिस एव कंपनी प्रबंधन के गठजोड़ को जोरदार टक्कर देकर लाठी, डण्डे, दमन झेलने के बाद ही मजदूर नेताओं की कार्यबहाली कराने में सफल रहे थे। श्रम विभाग में चलने वाली वार्ताओं के भरोसे ही बैठे रहने से काम चलने वाला नहीं है। पूरी उम्मीद है कि आॅटोलाइन के मजदूर पुनः सिडकुल पंतनगर में जुझारू संघर्ष की ऐरा एवं शिरडी यूनियन की परम्परा को आगे बढ़ायेंगे। रुद्रपुर संवाददाता

अटाली में साम्प्रदायिक हिंसा
वर्ष-18, अंक-12(16-30 जून, 2015)
. अल्पसंख्यक मुसलमानों पर लाठी-डण्डों से हमला, घरों मे आगजनी एवं लूटपाट।
. मस्जिद में कानूनन हो रहे निर्माण कार्य को जबरन विवादित बनाया गया।
. पुलिस-प्रशासन बना संघी आकाओं की कठपुतली, अभी तक एक भी गिरफ्तारी नहीं।
. बेहद डरे हुए हैं अल्पसंख्यक मुसलमान, कुछ गांव छोड़ने का भी बना रहे हैं मन।

    राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से लगे फरीदाबाद के अटाली गांव में 25 मई की शाम अटाली एवं आस-पास के गांवों के जाट समुदाय के लोगों ने अल्पसंख्यक मुसलमानों पर लाठी-डंडों से हमला किया, उनके घरों में आग लगा दी और जमकर लूटपाट की। करीब दो-ढ़ाई घण्टे खुलकर हुई इस साम्प्रदायिक हिंसा के दौरान पुलिस ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया। 
    अटाली गांव की आबादी लगभग 6500 है। 1000 के लगभग मेव मुसलमान हैं, शेष जाट हैं, मुसलमानों के 150 परिवारों में इक्का-दुक्का को छोड़कर बाकी किसी के पास जमीन नहीं है। ये ज्यादातर छोटे-मोटे काम-धंधों में लगे हुए हैं। नौजवान पीढ़ी में से कुछ फरीदाबाद के कारखानों में मजदूरी भी करते हैं। मेव एवं जाट, दोनों समुदाय के लोग पीढि़यों से आपसी भाईचारे के साथ यहां रहते आये हैं। बुजुर्ग बताते हैं कि 1947 में बंटवारे के वक्त हुए साम्प्रदायिक दंगों के दौरान भी अटाली ने हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल को कायम किया था। यहां पहले कभी कोई साम्प्रदायिक हिंसा नहीं हुई थी लेकिन जो कभी नहीं हुआ वह मोदी राज में हो गया। 
    अटाली में मस्जिद और मंदिर एकदम पास-पास हैं। जिस जगह पर मस्जिद है, वह वक्फ बोर्ड की है। अभी तक मस्जिद पर टीन शेड पड़ा था, कोई पक्की छत नहीं थी। मुसलमानों ने पक्की छत डालनी चाही तो तत्कालीन सरपंच प्रहलाद ने ऐसा नहीं होेने दिया। मामला न्यायालय में पहुंचा, जहां करीब 5 साल बाद मुसलमानों के हक में फैसला हो गया। 15 मई को फैसला आने के पश्चात 22 मई को गांव में पंचायत हुई। पंचायत में मेव और जाट दोनों पक्षों के लोग शामिल थे। पंचायत ने भी मस्जिद में निर्माण कार्य की अनुमति दे दी। इसी के मद्देनजर 25 मई को मस्जिद में निर्माण कार्य जारी था कि दबंगों ने मुसलमानों पर हमला बोल दिया। 
    इस हमले के दौरान भी एवं बाद के दिनों में भी पुलिस-प्रशासन की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही। मारपीट, आगजनी एवं लूटपाट के दौरान पुलिस ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया। यह चर्चा आम है कि पुलिस ने 2 घण्टे की छूट दी थी। इसके बाद पुलिस ने मौके पर पहुंचकर डरे-घबराये, अपनी जान बचाने को इधर-उधर भाग रहे मेवों को बल्लभगढ़ सिटी थाने पहुंचाया और उनके लिए अस्थाई शिविर बना दिया। अटाली में 7 जिलों की पुलिस तैनात कर इलाके को छावनी बना दिया गया। इसके बावजूद 2 दिन बाद मुसलमानों के भूसे के बोरों में आग लगा दी गयी। घटना को घटे 10 से अधिक दिन हो जाने के बावजूद पुलिस ने एक भी गिरफ्तारी नहीं की है कि पूरा प्रशासनिक अमला अपने संघी आकाओं के इशारे पर नाच रहा है। 
    अटाली में साम्प्रदायिक हिंसा के बाद राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की टीम ने भी दौरा किया और बताया कि उन्हें 32 घरों के ताले टूटे हुए मिले। आयोग की टीम ने पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों को फटकार लगाई और मुसलमानों को मुआवजा दिलवाने का आश्वासन दिया। 
    5 जून को, 10 दिनों तक पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों, राजनीतिक दलों के नेताओं की मौजूदगी मेें हुई कई बैठकों एवं दबंगों की मेवों से गांव वापस चलने की दिखावटी विनयपूर्ण अपीलों के बाद अंततः भारी पुलिस घेरे में अटाली के मेव मुसलमान अपने गांव वापस आ गये हैं। प्रशासन ने 23 परिवारों को पांच-पांच हजार रुपये मुआवजा एवं एक सप्ताह का राशन मुहैया करवाया है, बाकी नुकसान का आंकलन कर दिया जायेगा। पुलिस ने क्षतिग्रस्त मस्जिद की दीवार का पुनर्निर्माण करा दिया है। 
    साम्प्रदायिक हिंसा के शिकार ये सभी परिवार बेहद आतंकित हैं। डर इतना ज्यादा है कि किसी बाहरी व्यक्ति से कोई बात भी करने को राजी नहीं है। गांव के दबंग अभी भी इस पर अड़े हैं कि मस्जिद का निर्माण किसी अन्य स्थान पर किया जाए।  
    राजनीतिक दल एवं गांव के भीतर पूर्व एवं वर्तमान सरपंच अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में मशरूफ हैं। सरपंच के चुनाव की तैयारी चल रही हैं। असहाय, लाचार बना दिये गये मेव मुसलमान अपने जले हुए घरों में बचे सामानों के साथ जीवन को एक बार फिर पटरी पर लाने का प्रयास कर रहे हैं। कुछ परिवार गांव छोड़ने का भी मन बना रहे हैं। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने अटाली में मुसलमानों पर हुए हमलों की जाचं सीबीआई या विशेष जांच दल से कराये जाने की याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया है कि पीडि़त पक्ष पहले हाईकोर्ट जाये। मोदी के अच्छे दिनों की सौगात उन्हें मिल चुकी है। 
            फरीदाबाद संवाददाता
अभी और चलना है संघर्ष की राह पर
वर्ष-18, अंक-12(16-30 जून, 2015)
    दमन विरोधी संघर्ष समिति, वीरपुर लच्छी रामनगर के तत्वाधान में 9 जून 2015 को एस.डी.एम. कार्यालय पर धरना दिया गया। ज्ञात हो कि वीरपुर लच्छी ग्रामवासी और रामनगर की इंसाफपसंद जनता लम्बे समय से खनन माफिया की गुण्डागर्दी के खिलाफ संघर्षरत हैं। इसी संघर्ष के दौरान खनन माफिया सोहन सिंह और डी.पी.सिंह द्वारा नागरिक सम्पादक मुनीष कुमार और उपपा महासचिव प्रभात ध्यानी पर हमला करवाया था जिसमें दोनों लोग गम्भीर रूप से  घायल हो गये थे। तभी से आंदोलन में नयी मांग जुड़ गयी कि हमलावरों और साजिशकर्ताओं को गिरफ्तार किया जाए।
    पुलिस और प्रशासन पहले दिन से ही खनन माफिया के साथ सीधे खड़ा नजर आया। जनता के तीखे विरोध के दवाब में ही पुलिस को मजबूर होकर खनन माफिया के खिलाफ कार्यवाही करनी पड़ी थी। पुलिस की कभी भी इच्छा व मंशा नहीं रही। 1 मई 2013 को ग्रामीणों के साथ मारपीट आगजनी की घटना की रिपोर्ट लिखने का मामला हो चाहे अवैध सड़क पर डम्परों का परिचलन करवाने का मामला हो पुलिस और प्रशासन खनन माफिया का ही पक्ष लेता रहा है। 
    9 जून 2015 के धरने का कार्यक्रम का मकसद मुनीष कुमार व प्रभात ध्यानी पर करवाये गये हमले के आरोपी सोहन सिंह और डी.पी.सिंह की गिरफ्तारी की मांग करना था। धरने में बड़ी संख्या में वीरपुर लच्छी गांव से ग्रामीण पहुंचे। घटना स्थल पर चली सभा का संचालन करते हुए इंकलाबी मजदूर केन्द्र के इकाई सचिव पंकज ने 1 मई 2013 से लेकर अब तक के आंदोलन के बारे में बताकर आगे और मजबूती से आंदोलन लड़ने का आह्वान किया। 
    सभा को पछास के इन्दर, इको सेन्सिटिव जोन संघर्ष समिति के ललित उप्रेती, देव भूमि व्यापार मण्डल के संरक्षक मनमोहन अग्रवाल, राज्य आंदोलनकारी हरिमोहन शर्मा, यू.के.डी. के पी.सी.जोशी, ‘हम’ से यशपाल रावत, छात्र नेता नवीन सुनेजा, कांग्रेसी नेता धनेश्वरी घिंडियाल, इमके के भुवन, सामाजिक कार्यकर्ता केसर राणा, उ.प.पा. के महासचिव प्रभात ध्यानी आदि ने सम्बोधित किया। 
    सभा के उपरांत एक जुलूस एस.डी.एम. कार्यालय से सीओ आफिस तक निकाला गया। सीओ आॅफिस का घेराव करते हुए आक्रोशित लोगों ने पुलिस व प्रशासन के खिलाफ जमकर नारे लगाये और सोहन सिंह, डी.पी.सिंह की गिरफ्तारी की मांग की। 
    ज्ञापन लेने आये सीओ रामनगर ने कुछ भी कहने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि ‘चार्जशीट न्यायालय में दे दी गयी है। इससे ज्यादा वे कुछ नहीं कहेंगे। आरटीआई में मांग लो’। सीओ के इस रवैये को देख आंदोलनकारी जनता पुनः आक्रोश से भर गयी। और सीओ के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। कुछ मामला बनता न देख सीओ वापिस अपने कार्यालय में चले गये। 
    सीओ रामनगर का चार्जशीट पर कुछ ना बोलना स्पष्ट करता है कि एक बार पुनः पुलिस द्वारा सोहन सिंह  डी.पी.सिंह को बचाने का इंतजाम कर दिया गया है। अनुमान है कि चार्जशीट में दोनों मुख्य आरोपियों को बचा दिया गया है। 
    दमन विरोधी संघर्ष समिति द्वारा खुली बैठक कर घोषणा की गयी कि चार्जशीट की कापी देखकर आंदोलन की अगली रणनीति बनायी जायेगी। 17 जून को बैठक कर आगे की रणनीति बनायी जायेगी। आरोपियों को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जायेगा, की घोषणा सभी ने एक स्वर में की। 
    क्रांतिकारी जनगीतों के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया।     रामनगर संवाददाता
राजस्थान में दलितों की नृशंस हत्या के खिलाफ विरोध प्रदर्शन
वर्ष-18, अंक-11(01-15 जून, 2015)
    दिल्ली 25 मई/ राजस्थान के नागौर जिले के डांगावास गांव में 14 मई को जाट समुदाय के दबंगों द्वारा 3 दलितों की नृशंस हत्या और महिलाओं समेत अन्य दलितों पर हुए दमन-उत्पीड़न के खिलाफ विभिन्न जनवादी व प्रगतिशील संगठनों ने जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया। 
    गौरतलब है कि 14 मई को डांगावास गांव के जाटों ने एक जाति पंचायत बुलाई और मेघवालों(दलितों) को पंचायत में आने की धमकी दी गयी। फिर सैकड़ों की संख्या में जाट दलित बस्ती में घुस गये और रतन राम मेघवाल, पंचराम और पोकाराम नामक तीन दलितों को बेरहमी से ट्रेक्टर के नीचे कुचल दिया गया और 14 दलितों को जिसमें 6 महिलाएं हैं, को बुरी तरह घायल कर दिया गया। एक महिला के साथ बलात्कार किया। महिलाओं के कपड़े फाड़े और उनके जननांगों में डंडा घुसाने की कोशिश की गयी। एक महिला को लोहे की राॅड से मारा गया। एक महिला को दबंगों ने इतना मारा कि उसके सिर पर 15 टांके लगे हैं। इतना ही नहीं, जब मेडता सिटी अस्पताल में घायलों को इलाज के लिए रखा गया था तब भी जाटों के हथियारबंद हमलावरों ने अस्पताल को चारों तरफ से घेर लिया। और डाॅक्टरों को धमकी दी कि दलितों का इलाज नहीं होना चाहिए। 
    इसी के साथ यह भी गौरतलब है कि पूरे मामले के 72 घंटे तक कोई गिरफ्तारी नहीं होने पर राजस्थान सरकार के गृहमंत्री गुलाब कटारिया अपने बयान देते हैं कि उनके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है जिससे दबंगों की गिरफ्तारी की जा सके। 
    नागौर में करीब दो महीने से दलित समुदाय पर छिटपुट हमले किये जा रहे थे। पुलिस को बार-बार शिकायत करने के बावजूद पुलिस ने कोई कदम नहीं उठाया। पत्रकारों के पूछने पर नागौर के पुलिस अधीक्षक ने कहा कि ये जाति से जुड़ा हुआ मामला नहीं है। जबकि 14 मई को खुलेआम जाट पंचायत रखी जाती है और दलितों को जाट पंचायत में आने की धमकी दी जाती है। और इसके बावजूद पुलिस अधीक्षक कहते हैं कि इस पूरी घटना का जाति से कोई लेना देना नहीं है। और वह गैरकानूनी पंचायत के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करेंगे। स्पष्ट है कि इस पूरे घटना में शासन-प्रशासन दोनों उच्च जातियों के साथ खड़े हैं। 
    इस जाति उत्पीड़न व आतंक से भयभीत दलित समुदाय के लोग अपने गांव में भी वापस जाने से डर रहे हैं। आसपास के गांव के दलितों के बीच भी दहशत का माहौल है। यदि सरकार पीडि़तों को सुरक्षा प्रदान करने में नाकाम होती है तो उच्च जाति के दबंग अपने काम में सफल हो जायेंगे क्योंकि जाटों द्वारा दलित समुदाय की जमीनें छीनने की कोशिशें की जा रही हैं।
    प्रदर्शन में सभी वक्ताओं ने इस हत्याकांड और दलितों के दमन-उत्पीड़न व उच्च जातियों के दबंगों के साथ शासन-प्रशासन के गठजोड़ की कठोर निन्दा की। 
    वक्ताओं ने कहा कि राजस्थान समेत देश के विभिन्न हिस्सों में जातीय हिंसा और दमन-उत्पीड़न की घटनायें हो रही हैं। इन जातीय हिंसा व दमन-उत्पीड़न की घटनाओं के कारणों को समझना होगा। इसके खात्मे के लिए कमजोर पड़ती जातीय व्यवस्था के साथ शोषण-उत्पीड़न पर आधारित इस पूंजीवादी व्यवस्था को ही खत्म करने के लिए एकजुट होना होगा। और बराबरी पर आधारित समाजवादी व्यवस्था की स्थापना करनी होगी।  
     प्रदर्शन को इंकलाबी मजदूर केन्द्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, क्रांतिकारी युवा संगठन, विकल्प, पीडीएफआई, एआईएफटीयू(न्यू), सीपीआई(एमएल), रेड स्टार, जाति विरोधी संगठन, मोर्चा पत्रिका के प्रतिनिधियों ने सम्बोधित किया। 
    प्रदर्शन के बाद प्रधानमंत्री व राजस्थान के मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन दिया जिसमें निम्न मांगें पेश की गयीं। 
1. नामजद और अन्य सभी दोषियों को तुरंत गिरफ्तार किया जाये और उन पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति(अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाये।
2. हत्याकांड में मारे गये दलितों के परिवार को और अन्य सभी पीडि़तों को उचित मुआवजा और सुरक्षा प्रदान की जायें।
3. घटना में संलिप्त अधिकारियों को बर्खास्त कर कठोर कार्यवाही की जाये। 
   दिल्ली संवाददाता
कार्यबहाली के लिए मजदूरों का  डी.एम. कोर्ट में धरना 
वर्ष-18, अंक-11(01-15 जून, 2015)
    23 मई से मित्तर फास्टनर्स के छः मजदूरों की कार्यबहाली को लेकर डी.एम. कोर्ट में अनिश्चितकालीन  धरना शुरू हो गया। धरना मजदूरों के निष्कासन एवं निलम्बन को वापस लेने, वेतन वृद्धि, जूता-वर्दी व पेंशन आदि 7 मांगों को लेकर दिया जा रहा है। कम्पनी के अन्य मजदूर भी धरने पर अपनी शिफ्ट के हिसाब से आते हैं। मजदूरों की एकता को तोड़ने के लिए पहले मालिक/मैनेजमेण्ट ने जनरल शिफ्ट के अलावा भी दो शिफ्ट लगा दी थीं। परन्तु धरना शुरू होने के बाद फिर से सभी मजदूरों की जनरल शिफ्ट लगा दी। जिससे अन्य मजदूर धरने पर न जा सके। 
    पिछले वर्ष से ही मजदूर अपने वेतन व नियुक्ति पत्र आदि मांगों को लेकर मैनेजमेण्ट से संघर्ष चल रहा था। मजदूरों ने पाॅच प्रतिनिधि चुन कर श्रम विभाग में शिकायत की थी। उसके बाद मैनेजमेण्ट ने नियुक्ति पत्र तो दे दिया परन्तु काम के हिसाब से वेतन नहीं दिया था। इसके बाद 13 नवम्बर 2014 को एक मजदूर मसलुददीन खान को कम्पनी मालिक मुकेश साहनी ने अपने केबिन में बुला कर ढाई घण्टे तक इस्तीफे के लिए दबाव बनाया। खान ने इस्तीफा नहीं लिखा तो मैनेजमेण्ट ने उसका गेट बंद कर दिया गया। मसलुददीन ने कार्य बहाली के लिए श्रम विभाग (ए.एल.सी. व डी.एल.सी.) से लेकर जिलाधिकारी को भी अपनी व्यथा सुनाई परन्तु इसका कोई असर नहीं हुआ।
    17 फरवरी 2015 को तीन मजदूरों को फिर निशाना बनाया और उन्हें घरेलू जांच के जाल में फसाकर निष्कासित कर दिया। इन तीन मजदूरों में एक प्रतिनिधि भी था। प्रतिनिधि इस पूरी प्रक्रिया के दौरान बीमार था और उसका आपरेशन भी हुआ था परन्तु मैनेजमेण्ट ने बड़ी बेरहमी से काम किया। इसकी भी शिकायत मजदूरों ने श्रम विभाग व जिला प्रशासन से की। कम्पनी मैनेजमेण्ट ने कम्पनी में अपने चाटुकार कुछ मजदूरों को उक्त मजदूरों का साथ न देने के लिए कहा। जब एक मजदूर ने इसका विरोध किया तो सुरक्षा कर्मियों व सुपरवाइजर ने मजदूर की पिटाई कर दी। इसकी शिकायत सिडकुल चौकी में मजदूरों ने की तो पुलिस उल्टा मजदूरों को ही धमकाने लगी और शिकायत दर्ज नहीं की। मजदूर अपने मुहल्ले के कांग्रेस के नेता के साथ जाने पर भी पुलिस ने कोई कार्रवाही नहीं की। इस बीच पूर्व कांग्रेसी विधायक तिलकराज बेहड़ से भी मजदूरों ने गुहार लगाई। मजदूरों ने विधायक जी को बुला कर अपने मुहल्ले में स्वागत सभा रखी गयी। उसमें विधायक जी ने मजदूरों को डी.एम. के छुटटी पर होने के कारण अभी कुछ न हो पाने व बाद में डी.एम. से बात कर मामले को सुलझाने का भरोसा दिलाया। मजदूरों को भी भरोसा था कि व्यापक जन समूह व कांग्रेसी नेता के साथ होने और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार के होने से उनकी मांगे पूरी हो जाएंगी परन्तु इसका भी कुछ असर नहीं हुआ। एस.डी.एम. ने मामले पर दोनों पक्षों को बुलाकर वार्ता के माध्यम से हल करने का आश्वासन दिया।
    14 मई 2015 को मैनेजमेण्ट ने एक श्रमिक प्रतिनिधि सुदर्शन शर्मा व एक महिला मजदूर लता देवी को निलंबित कर दिया। इन पर मैनेजमेण्ट ने कम्पनी में हंगामा करने का आरोप लगाया।
    इन्हीं सब कारणों से मित्तर फासटनर्स के मजदूरों ने डी.एम. कोर्ट पर धरना शुरू किया है। मजदूरों को इंकलाबी मजदूर केन्द्र के द्वारा लगातार राय-मशविरा से लेकर कानूनी जानकारी की मदद दी जाती रही है। मजदूरों के नेतृत्व को अपने इस लम्बे संघर्षो के दौरान यह पता लगा है कि कितनी ही मेहनत लगन से काम करने का बाद भी अपने हक अधिकार की बात मैनेजमेण्ट से करना मजदूरों के लिए गुनाह हैं। इसका खामियाजा मजदूरों को झूठे मुकदमे, झूठे जांच कार्यवाही व निष्कासन के रूप में चुकाना पड़ता है, श्रम कानूनों के पहरेदार लेबर इंस्पेक्टर, ए.एल.सी. डी.एल.सी. यहां तक की लेबर कोर्ट भी मजदूरों को न्याय नहीं दिला सकते हैं, मजदूरों का फैक्टरी के अन्दर मैनेजमेण्ट द्वारा मारपीट गाली गलौच व अंग भंग या दुर्घटना होने पर पुलिस व प्रशासन भी मालिकों के साथ खड़ा मिलता है। राजनीतिक पार्टियों के नेता भी मजदूरों को अपना वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करने के साथ ही मजदूरों की लड़ने की भावना को कमजोर कर अपना पिच्छलग्गू बनाने का प्रयास करते हैं।
    ऐसे में आज के पूंजी के पक्ष में बदलते माहौल में मजदूरों को इन सब बंधनों को तोड़ कर अपनी एकता को वर्ग के स्तर पर बनाना होगा। और एकमात्र संधर्ष से ही हमें अपने हक अधिकार इतिहास में मिले है इसको स्थापित करना होगा। केवल अपनी ही फैक्टरी के स्तर पर ही नहीं बल्कि अन्य फैक्टरियों के मजदूरों से भी एकता कायम करने की जरूरत है। किसी भी फैक्टरी के मजदूरों को अपने संघर्ष के शुरूआत से ही अपने परिवार को भी अपने साथ खड़ें   होने व संघर्ष में साथ साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष करने के लिए तैयार करने की जरूरत है। मित्तर फास्टनर्स के मजदूरों को भी अपने परिवार को अपने संघर्ष में शामिल करके ही कोई रास्ता मिलेगा।
                रूद्रपुर संवाददाता 
चोरगलिया के ग्रामीण संघर्ष  की राह पर
प्रशासन की राह में खनन कारोबार बना जी का जंजाल
वर्ष-18, अंक-11(01-15 जून, 2015)
    उत्तराखण्ड में इन दिनों खनन के खिलाफ जगह-जगह आवाजें उठ रही हैं। जहां एक तरफ वीरपुर लच्छी, रामनगर की जनता सड़कों पर संघर्ष कर रही है। वहीं हरिद्वार, चंपावत, ऊधमसिंहनगर जिलों में भी इसके खिलाफ जनता विरोध जता रही है। ऐसी ही स्थिति हल्द्वानी तहसील के अंदर चोरगलिया गांव की भी है। चोरगलिया हल्द्वानी-सितारगंज-टनकपुर मार्ग में है। गौला नदी पार चोरगलिया और वहीं खनन की दो मुख्य नदिया नंधौर और कैलाश हैं। 
    चोरगलिया क्षेत्र की कुल आबादी लगभग 10,000 है। जिसमें स्थानीय लोगों के अनुसार लगभग 3000 लोग खनन कारोबार से प्रभावित हैं। चोरगलिया चैराहे से सितारगंज जाते हुए लगभग 500 मीटर बाद सड़क से जुड़े रेत के पहाड़ (स्टाॅक, क्रशर) दिखते हैं। यहां 300 मीटर की सीमा मंे ही पांच स्टाॅक और एक क्रशर है। इसके आस-पास ही गांव भी है। इस क्षेत्र में एक प्राथमिक स्कूल, एक पब्लिक स्कूल व पशु चिकित्सालय भी है। डम्परों की लगातार आवाजाही से गूलें और सड़कें उधड़ चुकी हैं। सड़कों पर पड़ी बजरी कभी भी दुर्घटना का कारण बन सकती है। ग्रामीणों से ज्ञात हुआ कि पूर्व में दो मौतें इससे हो चुकी हैं। स्टाॅकों और क्रशरों के मालिक अभिषेक अग्रवाल (लालकुंआ स्टोन क्रशर), बेदी सहगल और कमल सिंह हैं। 
    यहां के ग्रामीण इस संदर्भ में सिटी मजिस्ट्रेट से लेकर मुख्यमंत्री तक गुहार लगा चुके हैं। लेकिन नतीजा सिफर है। ज्ञापनों का पूरा बण्डल इसकी तस्दीक करता है। हाल के दिनों में वीरपुर लच्छी के संघर्ष से यहां के ग्रामीण भी ऊर्जा महसूस कर रहे हैं और आंदोलन की दिशा में बढ़ रहे हैं। वीरपुर लच्छी के ग्रामीणों के समर्थन में भी ये सक्रिय रहे। 
    तमाम अर्जियां लगा चुकने के बाद ग्रामीण डीएम कार्यालय पर धरना, भूख हड़ताल भी कर चुके हैं। यानि कहा जा सकता है कि गांधी के देश में गांधीगिरी के सारे तरीके अपना चुके हैं। लोकतंत्र की सीमा में रहते हुए अपना विरोध जता चुके हैं। तब 25 मई को ग्रामीणों ने सड़क जाम और डम्परों की आवाजाही पर रोक लगा दी। सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण सुबह पहुंचे और लगभग चार घंटे तक डम्परों के पहिए जाम रहे। तब एसडीएम, डीएफओ ने जाकर लोगों को शांत किया और सोमवार (1 जून) तक का समय मांगा। अधिकारियों ने सात दिन का समय लेकर लगभग चार माह के लिए मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया है क्योंकि 1 जून से खनन कार्य बंद हो जाएगा और डम्परों की आवाजाही सीमित हो जायेगी। 
    घरों, दुकानों, खेतों, स्कूलों, सांस में फैली इस रेत के खिलाफ ग्रामीण के तेवरों को देखते हुए लगता है कि वे लड़ेंगे। सवाल सिर्फ यह है कि इस गोरखधंधे में प्रशासन अंधे-गूंगे-बहरे की भूमिका में कब तक रहेगा। जहां ग्रामीण संघर्ष को अपने दम पर लड़ रहे हैं। वहीं वे इसे अन्य संघर्षों के साथ जोड़ने का भी प्रयास कर रहे हैं। अतः उम्मीद की जा सकती है कि यह संघर्ष एकजुट होने पर प्रशासन का इस सवाल पर अंधापन-गूंगापन-बहरापन ठीक हो जायेगा।
                हल्द्वानी संवाददाता 

सरकार नाकाम, राजनैतिक दल निष्क्रिय पर पूरे हौंसले से जूझती जनता
नेपाल में भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों की रिपोर्ट
वर्ष-18, अंक-10(01-15 जून, 2015)
    नेपाल में 25 अप्रैल को आये भूकम्प जिसकी तीव्रता 7.9 थी जिसने नेपाल में भारी तबाही मचायी। इस भूकम्प के कारण जहां कई हजार लोगों की जान चली गयी। वहीं लाखों लोग बेघर हो गये। टीवी चैनलों के माध्यम से जितना दिखाया जा रहा है नुकसान उससे कहीं ज्यादा है। टीवी चैनलों का मुख्य केन्द्र जहां काठमाण्डू तक सीमित है जिसमें धरहरा टावर व कुछ ऐतिहासिक इमारतों पर केन्द्रित रहा। लेकिन भूकम्प से प्रभावित वहां की आम मेहनतकश जनता जो कि सबसे ज्यादा प्रभावित है किसी भी चैनल का ध्यान उसकी ओर नहीं है। 
    ‘नागरिक’ व विभिन्न जनसंगठनों के सहयोग से बनी मेडिकल टीम ने नेपाल में जाकर भूकम्प प्रभावित लोगों के इलाज के लिए कैम्प लगाये। नौ डाक्टरों समेत सोलह लोगों की यह टीम नेपाल में दूर दराज के इलाकों में जाकर जहां लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, उनका इलाज कर रही है। इस टीम ने नेपाल के प्रगतिशील संगठनों के साथ मिलकर योजना बनाई और उनके सहयोग से सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में स्वास्थ्य सेवायें उपलब्ध करा रही है। इस योजना में दो टीमें बनायी गयी हैं। एक टीम ललितपुर जिले के घुसेल के इलाके में गयी तथा दूसरी टीम धारदेव के इलाके में गयी। 
    पहली टीम ने घुसेल के झांगलकोट गांव में जाकर मेडिकल कैम्प लगाया। मेडिकल कैम्प में सैकड़ों की संख्या में लोगों का इलाज किया गया। इस गांव के नब्बे प्रतिशत से ज्यादा मकान इस भूकम्प में धराशायी हो गये। जिसके नीचे दबकर चार लोगों की जान चली गयी तथा बहुत से मवेशी भी मारे गये। 
    इसी गांव के रहने वाले कुकु एवं दिनेश ने हमें पूरा गांव घुमाया। पूरे गांव में अपवादस्वरूप ही कुछ घर बच पाये हैं जो बचे हैं। उनमें भी दरारें पड़ गयी हैं। इस भूकम्प में कुकु के दादाजी की जान चली गयी। इसी गांव के सुनाम के भाई, भाई की पत्नी एवं बच्चे समेत तीन लोगों की जान इस भूकम्प में चली गयी। भूकम्प के कारण इतनी भारी तबाही होने के बाद सरकारी मदद के नाम पर नाममात्र की ही सहायता उपलब्ध करायी गयी है। पंचकन्या नाम की एनजीओ के माध्यम से बाल्टी, मग, चावल, दाल आदि बांटे जा रहे हैं। ब्रेड कई दिन पुरानी थी जिस पर फफूंद लग गयी थी। जिसे एक व्यक्ति दिखा रहा था। इतनी बड़ी तबाही के बाद जितनी जान माल की हानि हुयी है उसकी तुलना में यह सहायता नाकाफी है। जिनके घर जानें गयी हैं, उन्हें अभी तक कोई सहायता नहीं मिली है। जो मकान तबाह हुए हैं उनके लिए भी अभी कोई सहायता नहीं मिली है। अभी तक सिर्फ वादे किये जा रहे हैं। कुकु के चाचा कांग्रेस पार्टी के नेता हैं। वह भी आये थे और सिर्फ वादे करके चले गये। 
    कुकु जिनकी पढ़ाई आठवीं तक है, काठमाण्डू में एक होटल में कुक का काम करते हैं। आठ से दस हजार रुपये महीना कमा लेते हैं। जिसमें से उनके पांच हजार रुपये मकान के किराये में चले जाते हैं। दिनेश गांव में ही रहकर खेती करते हैं उनकी पढ़ाई नहीं के बराबर है। इन लोगों का कहना है कि सारी पार्टियां जब चुनाव होता है तब आती हैं और वादा करके चली जाती हैं। काम कुछ नहीं करती हैं। इस गांव में जाने के लिए कच्चा रास्ता है जो कि काठमाण्डू से करीब तीन घंटे की दूरी पर है। प्राथमिक विद्यालय इसी गांव में है तथा उससे आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें साढ़े छः किलोमीटर दूर जाना होता है। 
    आम तौर पर इतनी तबाही के बाद लोग सदमे में चले जाते हैं। लेकिन इस गांव में इतनी तबाही के बाद भी लोगांे के अंदर जज्बा कम नहीं हुआ है बल्कि पूरे जज्बे के साथ अपनी दिनचर्या में लगे हुए थे। हमारी टीम का उन्होंने दिल खोलकर स्वागत किया। बहुत थोड़े समय में हम लोग इस तरह घुल मिल गये कि हम लोगों को लगा ही नहीं कि हम लोग कहीं और से आये हैं। ऐसा लगा कि जैसे अपनों के बीच हैं। घुलने-मिलने में भाषाई दिक्कत कहीं आड़े नहीं आयी बल्कि उस दिन हमारी टीम ने वहीं रात्रि विश्राम किया और शाम को कई घंटे उनके साथ गीत भी गाये। हम लोगों के बीच दूरियों के बजाय अपनत्व का भाव बहुत ज्यादा था। 
    अगले दिन हम लोगों की टीम यहां से करीब 100 किलोमीटर दूर ललितपुर जिले के ही गिम्दी गांव में पहुंची। वहां जाने के लिए भी कच्चा मार्ग ही था। वहां पहुंचने में हम लोगों को आठ घंटे से ज्यादा वक्त लग गया। रास्ते में घुसेल में रुककर वहां की तबाही देखी। घुसेल में भी लगभग सारे मकान धराशायी हो गये। वहां पर एक चाय की दुकान पर हम लोगों ने चाय पी। वहां लोगों से बातचीत के दौरान हमें उन्होंने बताया कि बचाव कार्य के लिए सेना जल्दी ही आ गयी और उसने अपना काम तुरन्त शुरू कर दिया। यहां पर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र भी है। इस प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में दो एएनएम एवं एक पुरुष हेल्थ वर्कर ही कार्यरत है। यहां पर कोई भी डाक्टर नहीं है। यह यहां की स्वास्थ्य सेवाओं का क्या हाल है यह समझने के लिए पर्याप्त है। इस गांव में कोई जनहानि तो नहीं हुयी लेकिन बहुत से मवेशी मारे गये। 
    इसी बातचीत के दौरान लोगों ने बताया कि जिनके मकान गिरे हैं उन्हें सरकार दो लाख का मुआवजा देने की बात कर रही है जबकि विपक्षी पार्टी नौ लाख रुपये मुआवजे की मांग कर रही है। बातचीत के दौरान इस गांव के खेमराज का कहना था कि जब जापान में इतने ज्यादा भूकम्प आने के बाद भी जानमाल की हानि बहुत कम होती है तो यह नेपाल में क्यों नहीं हो सकता।
    वहां से आगे चले तो रास्ते में देवीचैर में एक मेडिकल कैम्प दिखा जो कि कस्बे के पास था। हम लोगों ने रूककर जानने की कोशिश की तो पता चला कि यह कैम्प कोरिया की एनजीओ रोज क्लब चला रही है। उनका 5 दिन का कैम्प चलाने का कार्यक्रम है। यह कैम्प वहां चला रहे हैं जहां भूकम्प का प्रभाव अपेक्षाकृत बहुत कम है जो काठमांडू से मात्र 14 किलोमीटर की दूरी पर है। दुगन में जहां नुकसान बहुत ज्यादा है वहां पर कैम्प लगाने की उनकी कोई योजना नहीं है। इस भूकम्प से सबसे ज्यादा प्रभावित गरीब लोग हुए हैं। उनके मकान कच्चे बने हुए हैं। मिट्टी के गारे से पत्थरों को जोड़कर कच्चे मकान बनाये हुए थे ये सारे मकान भूकम्प के झटके में धराशायी हो गये। इन गरीब लोगों का मुख्य काम खेती करना एवं पशुपालन है। इस भूकम्प से आदमियों के साथ पशुओं का नुकसान बहुत ज्यादा हुआ है। इस कारण उनके आय का एक मुख्य स्रोत समाप्त हो गया है। 
    अगले दिन हम लोगों ने गिम्दी में कैम्प लगाया जहां कई लोगों का इलाज किया। हम लोगों ने इस गांव को घूमकर देखा तो ज्यादातर कच्चे मकान धराशायी हो गये हैं। और यहां का श्री नारायण उच्च माध्यमिक विद्यालय भी गिर गया है। इस गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र है जो कि बंद मिला। यहां पर बातचीत के दौरान जो तथ्य सामने आये उनसे पता चलता है कि क्रांति के बाद बदलाव तो हुए हैं। महिलाओं की गैर बराबरी खत्म हुयी, छुआछूत खत्म हुयी है। सड़क बनना शुरू हुआ है मोबाइल टाॅवर लग गये। 
    इस गांव में बड़े किसान नहीं हैं। छोटे और मंझोले किसान हैं। अधिकतम दो बीघे से ज्यादा जमीन किसी के पास नहीं है। कुछ भूमिहीन किसान भी हैं जो बंटाई पर खेती करते हैं। 
    इस गांव से लोगों को काम के लिए काठमांडू या और कहीं जाकर काम करना पड़ता है। इसी गांव के अंग्ररेज थापा मगर से बातचीत में उन्होंने बताया कि वे आठ साल मलेशिया में रह आये हैं। इनका कहना है कि मकान बनाने के लिए कम से कम पांच लाख रुपये चाहिए। 
    एक महिला से बातचीत में एक बात यह सामने आयी कि एक अधिकारी अन्य थे जो उनके मकान का मुआयना नाप कर ले गये हैं। अभी यह पता नहीं है कि कुछ मिलेगा भी कि नहीं। मदद के नाम पर थोड़ा राशन जरूर मिला है। इस गांव में कांग्रेस नेता आये थे और सिर्फ वादा करके चले गये। कोई मदद उन्होंने अभी तक नहीं की। जबकि यहां से उसी की पार्टी चुनाव जीती है। दूसरी टीम जिसमें कुछ डाॅक्टर और सहयोगी थे। ललितपुर के भारदेव ग्राम विकास समिति क्षेत्र में गयी। ये क्षेत्र पक्की सड़क से जुड़ा था। यहां पर स्थानीय स्वास्थ्य केन्द्र टीम ने कैम्प लगाया। 3-4 घंटे में 70-80 मरीज देखे। इस क्षेत्र में कुछ घर टूट गये हैं लोग टेन्ट लगाकर रह रहे हैं। यहां पर ठीक-ठाक मात्रा में राहत सामग्री पहुंच रही है। ग्रामीण समूहों में सामग्री वितरण का ध्यान रखते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि प्रत्येक को राहत सामग्री पहुंचे। उन्होंने आरोप लगाया कि अलग-अलग पार्टियों के लोग अपने-अपने लोगों तक सामग्री पहुंचाते हैं और गड़बड़ी पैदा करते हैं। 
    अध्यापक गोपाल ने बताया कि निकट के गांव नल्लू में एक घर गिरने से एक ही घर से तीन लोगों की मौत हो गयी जिनमें दो बहनें तथा एक वृद्धा थी। उसके बाद हमारी टीम एक अन्य ग्राम विकास समिति चैथरे गयी वहां पर भी 70-80 मरीज देखे। यहां पर टीम ने देखा कि ग्रामीण इस बात का ध्यान रखते हैं कि जो व्यक्ति कष्ट में है उस तक राहत और उपचार कार्य पहले हो क्योंकि इस क्षेत्र में नुकसान ज्यादा नहीं हुआ है। इसलिए ग्रामीणों ने सरकार द्वारा कुछ लाख रुपये सहायता राशि इसलिए लेने से मना कर दिया कि इस सहायता को वहां भेजा जाए जहां ज्यादा आवश्यकता है। ग्रामीणों का व्यवहार बहुत ही सहयोगात्मक रहा। तथा हमने महसूस किया कि जनता की सामूहिकता के ऊंचे स्तर के कारण ही नेपाल में क्रांति हुयी है।   नेपाल से विशेष संवाददाता
छपते-छपतेेें
12 मई को जब हमारी टीम नुवाकोट जिले के रूपलिंग और कुमारी ग्राम विकास समितियों के क्षेत्र में मेडिकल कैम्प लगाने गयी थी जिसे रोल्पा (II) के नाम से जाना जाता है तथा दूसरी ललितपुर से किसी दुर्गम स्थान को जाने के लिए निकल रही थी तभी एक बार फिर तेज भूकम्प आया और उसने नेपाल के सामान्य होते जन जीवन को एक बार फिर ध्वस्त कर दिया। 60 से ज्यादा लोगों की मौत हो गयी। डर फिर वापस लौट आया। आम जनता सुरक्षित स्थानों की ओर लौटने लगी। लोग गाडि़यों में, टैन्टों में, खुले स्थानों में रात गुजारने के लिए चले गये।
    कोई अफरा-तफरी में अपने परिजनों के हालचाल जानने के लिए भागने लगे तो कोई उद्धार कार्य के लिए। काठमांडू, ललितपुर जैसे शहरों में भी सन्नाटा पसर गया। लेकिन जो भी हो नेपाल की बहादुर जनता एक दूसरे के साथ खड़ी है और अपनी सामूहिकता से इस आपदा से पार पा जायेगी। 
नेपाल में फिर से भूकंप में 57 लोग मरे
वर्ष-18, अंक-10(01-15 जून, 2015)
    12 मई को एक बार फिर नेपाल भूकम्प से दहल उठा। पहले से ही भूकम्प से मौतों, गुमशुदा, घायलों व भारी नुकसान झेल रहे नेपाल में इस भूकम्प में 57 लोगों की मौत हो गयी और 1117 लोग घायल हो गये। 12ः30 बजे से लेकर 2 बजे के बीच में 8 बार भूकम्प के झटके महसूस किये गये। यह 4.1 से लेकर 7.3 तीव्रता के भूकम्प के झटके थे। भूकम्प का केन्द्र नेपाल के दोलाखा और सिंधुपाल चैक के बीच कोठारी स्थान भूकम्प का केन्द्र था। 
    भूकम्प क्षेत्र होने के बावजूद लचर पूर्व नियोजित व्यवस्था व बेतरतीब, अवैज्ञानिक बसावट भूकम्पों के प्रभावों को कई गुना बढ़ा दे रही है। लचर ढंग से चल रहे बचाव कार्योें के कारण कई जानें जिन्हें बचाया जा सकता है, बचा पाने में प्रशासन अक्षम है। सारे बचाव कार्यों का मुख्य केन्द्र काठमांडू बना दिया गया है। जबकि आस-पास के गांव व दूर दराज के क्षेत्रों में भी भारी तबाहियां हुई हैं। 
    इन सब कारणों को देखते हुए मौजूदा भूकम्प और भी जख्म नेपाली मेहनतकश जनता को देगा। ऐसे दुःख और विपरीत हालातों में ‘नागरिक’ टीम नेपाली मेहनतकश के साथ खड़ी है। ‘नागरिक’ की अगुवायी में विभिन्न जनसंगठनों के संयुक्त प्रयासों से 16सदस्यीय एक मेडिकल टीम इन दिनों नेपाल में चिकित्सा शिविर लगाकर नेपाली मेहनतकशों की मदद कर रही है। 
का. राजकाजी के साथ बातचीत के अंश
वर्ष-18, अंक-10(01-15 जून, 2015)
(का. राजकाजी नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी जिसे माओवादियों के किरन वैद्य गुट के नाम से भी जाना जाता है, से जुड़े हैं- विशेष संवाददाता)  
भारतीय बचाव दल एवं मीडिया (नेपाली) के विरोध के क्या कारण रहे हैं?
    पहला कारण यह था कि नेपाल सरकार को बाइपास करके भारतीय आपदा बचाव दल अभियान चला रही थी। उसका नेपाल सरकार के साथ कोई तालमेल नहीं था। 
   दूसरा कारण डेरा सच्चा सौदा के लोग यहां के पूर्व राजा ज्ञानेन्द्र से बात करके यहां राहत कार्य के लिए आये। इसका भी सरकार के साथ कोई तालमेल नहीं था तथा राहत वितरण के पहले भगवान की प्रार्थना करा रहे थे। 
   तीसरी कारण भारतीय बचाव दल एवं डेरा सच्चा सौदा के बचाव व राहत दल में पूर्व सैनिकों को भेजा जो कि इस बात को छिपाया गया। इन सब कारणों से लोग तथा सभी राजनीतिक पार्टियां इसका विरोध करने लगीं। 
राहत एवं राहत के काम में नेपाली सेना की क्या भूमिका थी।
बचाव एवं राहत के काम में सेना तुरंत मुस्तैद हो गयी लेकिन वह काठमांडू एवं आस-पास के शहरों के इर्द गिर्द ही बचाव व राहत के काम में लगी। दूर-दराज के दुर्गम इलाकों में सेना दो से तीन दिनों के बाद पहुंची व बचे हुए बचाव व राहत के काम किये। 
इस आपदा की घड़ी में सरकार की क्या भूमिका थी?
स्थानीय सरकार, एम्बुलेंस एवं हेल्पलाइन के फोन दो दिन तक स्विच आॅफ थे। दो दिन बाद ही ये न. आॅन हुए। लेकिन बचाव के काम आपदा के करीब पांच दिन बाद ही शुरू हो पाया। 
जब सेना और सरकार काठमांडू के आसपास बचाव एवं राहत के काम करने में केन्द्रित थी तो दूर दराज के दुर्गम इलाकों में बचाव एवं राहत के काम किसने किये? 
स्थानीय जनता ने सामूहिक प्रयास से बचाव एवं राहत के काम किये। लेकिन इसका नेतृत्व नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने किया। 
इस आपदा में एनजीओ की क्या भूमिका थी?
एनजीओ राहत के काम कर रही है और सरकार भी एनजीओ के माध्यम से राहत पहुंचा रही है वे नाकाफी साबित हो रहे हैं। 
नेपाल का डिजास्टर मैनेजमेंट (आपदा प्रबंधन) कैसा रहा?
नेपाल सरकार ने एनजीओ की मदद से डिजास्टर मैनेजमेण्ट करने की कोशिश की लेकिन ऐसे मौके पर वह पूरी तरह से विफल हो गयी है। 
इस भूकम्प की त्रासदी में राजनीतिक पार्टियों की क्या भूमिका रही है?
कांग्रेस पार्टी ने शुरू में दो दिन तक कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं को ही राहत पहुंचायी। कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अन्यों केा राहत पहुंचाने में कोई काम नहीं किया। 
    प्रचण्ड की पार्टी उतना राहत एवं बचाव का काम नहीं कर रही थी जितना कि मीडियाबाजी कर रही थी। 
    इस आपदा में सबसे अधिक राहत एवं बचाव का काम नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी(किरन वैद्य) ग्रुप ने किया। इसके कार्यकर्ता दूरदराज के दुर्गम इलाकों में स्थानीय लोगों के साथ मिलकर किया तथा वह पहल कर सभी पार्टियों के साथ कोआॅर्डिनेशन करके बचाव व राहत के काम को बेहतर तरीके से चलाने का प्रयास कर रही है। 
इस भूकम्प में दुनिया के अन्य देशों की क्या भूमिका थी?
भारत की तुलना में दुनिया के दूसरे देशों का नेपाल सरकार के साथ कोआॅर्डिनेशन बेहतर था। वे देश नेपाल सरकार के साथ कोआॅर्डिनेशन बनाकर बचाव व राहत अभियान चला रहे थे। 
बचाव व राहत के लिए सबसे पहले किसने मदद की?
सबसे पहले पंजाब के एक गुरूद्वारे से दो घंटे के भीतर राहत के लिए खाने के दो लाख पैकेट आ गये थे। लेकिन कोआॅर्डिनेशन नहीं हो पाने की वजह से वहां नहीं पहुंच पाये जहां इसकी जरूरत थी। सरकार की मैनेजमेण्ट की कमी की वजह से वे पैकेट वापस हो गये थे।                विशेष संवाददाता
वीरपुर लच्छी के ग्रामीणों का संघर्ष जारी
वर्ष-18, अंक-09(01-15 मई, 2015)
    दमन विरोधी संघर्ष समिति वीरपुर लच्छी (रामनगर) के आहवान पर 23 अप्रैल 2015 को उपवास व धरने का कार्यक्रम किया गया। उपवास में 35 महिला-पुरूष बैठे। साथ ही बड़ी संख्या में कार्यक्रम को समर्थन देने के लिए रामनगर व अन्य जगहों से भी लोग पहुंचे। उपवास में पछास, इमके, प्रमएके के कार्यकर्ताओं ने क्रांतिकारी-जनवादी गीत प्रस्तुत कर कार्यक्रम को जोश-खरोश से भर दिया।
    23 मार्च पेशावर कांड की भी सालगिरह का दिन है। इसी दिन गढ़वाल रायफल के वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली द्वारा अंग्रेजों के गोली चलाने के आदेश को मानने से साफ इंकार कर दिया गया था। पेशावर में भारतवासी अंग्रेजी शोषण-दमन के खिलाफ आंदोलनरत थे। निहत्थे आंदोलनकारियों पर अंग्रेज अफसर द्वारा गोली चलाने का आदेश दिया गया। जिसे चन्द्र सिंह गढ़वाली द्वारा स्वीकार न कर देश प्रेम व आजादी के आंदोलनकारियों के साथ प्रेम की मिसाल कायम की गयी थी। 
    पेशावर कांड को याद करते हुए वक्ताओं ने कहा कि एक तरफ वीरचन्द्र सिंह गढ़वाली जैसे जांबाज व सही-गलत की समझ रखने व जनता का पक्ष चुनने वाले लोग भारत में पैदा हुए तो दूसरी तरफ एसडीएम रामनगर, सीओ रामनगर, पीरूमदारा चौकी इंचार्ज कमलेश भट्ट जैसे अधिकारी हैं जो एक खनन माफिया के इशारों पर नचाकर जनता का उत्पीड़न करते हैं। ऐसे अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की मांग धरने के माध्यम से की गयी। 
    वक्ताओं ने कहा कि आजाद भारत के बाद देश में पूंजीपतियों का शासन कायम हुआ जिसने देश की सभी तरह की सम्पदा को अपने कब्जे में रखा उनका बेतरतीब दोहन किया। 1990 के बाद जब से सरकारों ने नयी आर्थिक नीतियों को आगे बढ़ाया है तब से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन पहले के मुकाबले कहीं अधिक तेज हो गया है। देशी व विदेशी पूंजीपति प्राकृतिक संसाधनों का बेहिसाब दोहन कर रहे हैं। सरकार की लगातार नीतियों में बदलाव कर दोनों हाथों से इस सम्पदा को लुटा रही है। इस लूट में रोड़ा बन रहे लोगों को निर्ममता से कुचला जा रहा है। मध्य पूर्व के आदिवासियों के कत्ल, जैतापुर, कुंडाकुलम आदि दमन और संघर्ष के गवाह बने हैं। 
    उत्तराखंड में भी इसी तस्वीर का ही एक रूप साफ देखा जा सकता है। उत्तराखण्ड सरकार बेशर्मी के साथ खनन माफिया के साथ नापाक गठजोड़ कायम किये हुए हैं। प्रशासन माफिया के आगे पंगु बना हुआ है। खनन माफिया की लूट से त्रस्त जनता संघर्ष करने को मजबूर है। मातृ सदन हरिद्वार, मलेठा, रामनगर ऐसे ही बड़े आंदोलन हैं जो खनन माफिया के खिलाफ है। स्थानीय स्तर पर छोटे विरोध प्रदर्शन तमाम जगह चल रहे हैं। सरकार-प्रशासन-माफिया गठजोड़ के कारण इन संघर्षों की मांगों को लगातार अनदेखा किया जा रहा है। वक्ताओं ने कहा तीखे व्यापक संघर्ष की अंततः इस नापाक गठजोड़ को ध्वस्त कर माफिया राज का खात्मा करेंगे। 
    वक्ताओं ने कहा कि 31 मार्च को प्रभात व मुनीष पर हुए जानलेवा हमले के मुख्य आरोपी व साजिशकर्ता सोहन सिंह, डी.पी.सिहं को पुलिस अभी तक गिरफ्तार नहीं कर पायी है। पुलिस की इस उदासीनता पर गहरा रोष धरने में व्यक्त किया गया। धरने से ही एक शिष्टमंडल कोतवाल से मिलकर मामले की जानकारी लेने कोतवाली भी गया। कोतवाल द्वारा कोई संतोषजनक जवाब ना देने, और शिष्टमंडल द्वारा सवाल-जबाव के बीच में ही कोतवाल वार्ता से उठकर चले गये। शिष्टमंडल द्वारा स्पष्ट मांग की गयी कि दोषियों की तुरंत गिरफ्तारी की जाए। 
    धरने में ही फैक्स द्वारा राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, गृह सचिव व पुलिस महानिदेशक, उत्तराखण्ड को चार सूत्रीय मांग पत्र प्रेषित किया गया। ज्ञापन के माध्यम से मांग की गयी।
1. प्रभात ध्यानी व मुनीष कुमार पर जानलेवा हमला करवाने वाले सोहन सिंह, डी.पी.सिंह व अन्य नामजद आरोपियों की तत्काल गिरफ्तारी की जाए।  
2. खनन माफिया सोहन सिंह व डी.पी.सिंह को संरक्षण देने वाले पुलिस क्षेत्राधिकारी, उपजिलाधिकारी, तहसीलदार पीरूमदारा चैकी इंचार्ज के खिलाफ कार्यवाही सुनिश्चित की जाये। 
3. मानकों के खिलाफ चल रहे ढिल्लन स्टोन क्रेशर व पुरेवाल स्टोन क्रेशर को जिला प्रशासन द्वारा आखिरकार सीज कर दिया गया है। लेकिन लम्बे समय से मानकों के खिलाफ चल रहे स्टोन क्रेशर को संरक्षण देने वाले जिला खनन समिति के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाये ताकि जनता में बेहतर स्पष्ट संदेश जा सके। 
4. वीरपुर लच्छी के ग्रामीणों के खेतों के रास्ते में जबरन संचालित हो रहे अवैध डम्परों व भारी वाहनों का अवैध परिचलन बंद किया जाए।
    23 अप्रैल के उपवास में -प्रभात ध्यानी, मनमोहन अग्रवाल, विमला आर्य, ललिता रावत, कमलेश, सुमित्रा विष्ट, केसर राना, प्रेम रावत, नीलम गुप्ता, सतेन्द्र सिंह, गोपाल असनोडा, चम्पा देवी, गोमती देवी, मालती देवी, लील देवी, सुन्दर देवी, प्रेमावती देवी, चरण सिंह, रामचन्द्र सिंह, दौलत सिंह, करन सिंह, राम सिंह, प्रेम सिंह, हरी सिंह, रवि सिंह, गोवर्धन सिंह, लालमणि, पी.सी.जोशी, मंजू पाल, धनेश्वरी घिंल्डियाल, ललित उप्रेती बैठे। 
              रामनगर संवाददाता
बढ़ती साम्प्रदायिकता के साथ बढ़ते महिला उत्पीड़न के विरोध में धरना
वर्ष-18, अंक-09(01-15 मई, 2015)
बढ़ती साम्प्रदायिकता और नारी उत्पीड़न के विरोध में प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र ने 26 अप्रैल को जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन आयोजित किया। प्रदर्शन में उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा व दिल्ली के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की। प्रदर्शन की शुरुआत ज¨रदार क्रांतिकारी नारों व गीत के साथ हुई। 
    ‘‘अच्छे दिनों’’ और महिलाओं के प्रति हिंसा के लिए ‘‘जीरो टाॅलरेंस’’ जैसे जुमलों के साथ सत्ता पर काबिज हुई मोदी सरकार ने न सिर्फ यह साबित कर दिया है कि विह अपने से पूर्ववर्ती सरकारों से किसी भी प्रकार से भिन्न नहीं है, बल्कि उनसे भी ज्यादा जनविरोधी और कारपोरेट समर्थक है। अपने हिन्दुत्ववादी एजेंडे के साथ भाजपा सरकार और उसके सहोदर संगठनों ने पूरे देश में साम्प्रदायिक उन्माद फैलाना शुरु कर दिया है। उनके इन घृणित मंसूबों से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले तबकों में महिलायें सर्वोपरि हैं। ‘‘लव जेहाद’’, ‘‘बेटी बचाओ, देश बचाओ’’ जैसे अभियान न केवल महिलाओं के प्रति पश्चगामी मूल्यों को दर्शाते हैं बल्कि भगवा ब्रिगेड के नेताओं द्वारा दिये जाने वाले बच्चे पैदा करने वाले वाहियात बयानों ने महिलाओं को एक बच्चा पैदा करने की मशीन के रूप में दर्शाया है।   
जहां एक तरफ भाजपा के संरक्षण में हिंदुत्ववादी-फासीवादी संगठन लगातार महिलाओं की अस्मिता की अवमानना कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ मोदी सरकार ने अपनी कारपोरेट समर्थक नीतियों के तहत कारपोरेट जगत के अथाह मुनाफा सुनिश्चित करने हेतु मजदूरों को तीव्र शोषण और उत्पीड़न की तरफ ढकेल दिया है। जाहिर है यहां महिला मजदूर भी इन नीतियों का शिकार हो रही हैं। श्रम कानूनों में संशोधन कर महिलाओं को रात की पाली में काम करवाने की इजाजत जैसे कानून महिला मजदूरों के श्रम का किसी भी हद तक शोषण कर देशी-विदेशी पूंजीपतियों के लिए अथाह मुनाफा सुनिश्चित करती हैं। 
इन परिस्थितियों में प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र द्वारा यह प्रदर्शन आयोजित किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत में सभा को संबोधित करते हुए प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र अध्यक्ष शीला शर्मा ने कहा कि आज महिलाओं पर उत्पीड़न की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हो रही है। देश में भाजपा-संघ के गठजोड़ वाली मोदी सरकार ने तेजी के साथ देश में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ाया है। जिससे पहले से ही दोयम दर्जे का जीवन जी रही मजदूर-मेहनतकश महिलाओं का जीवन और दयनीय हो गया है। हर साम्प्रदायिक घटना में मेहनतकश महिलाओं को निशाना बनाया जाता है। महिलाओं की इस स्थिति को बदलने के लिए मेहनतकश महिलाओं को अपने संगठनों को मजबूत बनाकर साम्प्रदायिक व पूंजीवादी तत्वों के खिलाफ निर्णायक संघर्ष छेड़ने की जरूरत पहले से भी ज्यादा बन गयी है। 
परिवर्तनकामी छात्र संगठन के वक्ता ने कहा कि देश को साम्प्रदायिक दंगों की आग में झोंक कर पूंजीपतियों के लिए मुनाफा और सिर्फ मुनाफा के घृणित एजेंडे को लागू करने के लिए पूंजीपतियों के पक्ष में श्रम कानूनों में मजदूर-मेहनतकश विरोधी बदलाव किये जा रहे हैं जिससे महिलाओं का शोषण व उत्पीड़न घर व कार्यस्थल दोनों ही जगह पर और घनीभूत हो गया है, जिसके खिलाफ निर्णायक संघर्ष छेड़े जाने की जरूरत है। 
प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र के वक्ता ने कहा कि जब-जब पूंजीवादी साम्राज्यवादी व्यवस्था संकट में पड़ी है तब-तब पूंजीपतियों ने पूरी दुनिया को युद्धों की आग में धकेला है। द्वितीय विश्व युद्ध के समय साम्राज्यवादियों ने अपने को इस संकट से निकालने व मेहनतकशों को निचोड़ डालने के लिए हिटलर जैसे फासीवादी को आगे बढ़ाया। उस समय के समाजवादी देश रूस की मजदूर मेहनतकश जनता ने फासीवाद को मुकम्मल शिकस्त दी थी। उसी तरह आज जब देश में बेरोजगारी विकराल रूप से बढ़ती रही है, खेतों में अनाज व अन्य फसलें पैदा कर पूरे देश की रोटी और कपड़े की जरूरतों को पूरा करता है वहीं किसान आत्महत्या करने को मजबूर है। ऐसे समय में देश के 75 प्रतिशत शासक वर्ग ने फासीवादी मोदी को केन्द्र की सत्ता पर ला कर बिठा दिया है तब एक ही रास्ता संघर्षशील जनता के पास बचता है कि वह पूंजीवाद-साम्राज्यवादी-फासीवादी निजाम के खिलाफ अपने संघर्ष और तेज करे। 
इंकलाबी मजदूर केन्द्र के वक्ताओं ने कहा कि देशी-विदेशी एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग ने घोर प्रतिक्रियावादी-फासीवादी संगठन के साथ गठजोड़ कायम कर लिया है। यह नापाक गठजोड़ जहां एक तरफ पूंजीपतियों के हितों के लिए श्रम कानूनों में बदलाव कर रहा है, मजदूर-मेहनतकशों पर होने वाले खर्च में कटौती कर रहा है वहीं दूसरी तरफ साम्प्रदायिक व फासीवादी उभार को भी बढ़ा रहा है। 
श्रम कानूनों में बदलाव व कटौती कार्यक्रम से जहां मजदूर-मेहनतकश परिवारों की महिलाओं को घर चलाना मुश्किल हो रहा है वहीं साम्प्रदायिकता की आग भी मेहनतकश महिलाओं को सर्वाधिक झुलसा रही है। हर साम्प्रदायिक घटना में महिलाओं को विशेष तौर पर निशाना बनाया जाता है। संघी व भाजपाई नेता जब तब कुत्सित बयान देकर महिलाओं के प्रति अपनी घृणित सोच का प्रदर्शन करते रहे हैं। कोई कहता है कि महिलाओं को दस बच्चे पैदा करने चाहिए तो कोई लव जेहाद का हव्वा खड़ा कर महिलाओं को मात्र बच्चा पैदा करने तथा रसोई तक सीमित कर देना चाहते हैं। असल में संघियों व भाजपाईयों का लक्ष्य महिलाओं को मध्य काल की स्थितियों में ले जाने का है। 
कार्यक्रम में समता मूलक संगठन के हरियाणा से आये वक्ता ने हरियाणा में  महिलाओं की बुरी  स्थिति को देखते हुए काम करने की जरूरत को प्रमुखता से रखा। प्रदर्शन में ‘मेरे मैके में गडो है झंडा लाल गीत’ तथा ‘फिलीस्तीनी बच्चे कविता पर नृत्य नाटिका’ की भावपूर्ण प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम का समापन ‘हर दिल में बगावत के शोलों की जगा देंगे’ गीत व क्रांतिकारी नारों के साथ ही हुआ। 
सभा में महिलाओं ने मोदी सरकार के साम्प्रदायिक एजेंडे व महिलाओं के उत्पीड़न पर तीखा आक्रोश व्यक्त किया और सांप्रदायिकता, महिला उत्पीड़न की मूल जड़ पूंजीवादी निजाम को खत्म कर समाजवादी व्यवस्था की स्थापना का प्रण व्यक्त किया। समाजवाद के लिए निर्णायक संघर्ष छेड़ने का संकल्प सभा-प्रदर्शन में लिया गया। सभा को परिवर्तनकामी छात्र संगठन, सामाजिक कार्यकर्ता विमला, महिला रक्षा बाल रक्षा अभियान से कृष्ण रज्जाक, क्रांतिकारी नौजवान सभा, इंकलाबी मजदूर केन्द्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, समता मूलक संगठन के प्रतिनिधियों ने सभा को संबोधित किया।      
       दिल्ली संवाददाता
बिना डरे, बिना झुके, संघर्षरत हैं वीरपुर लच्छी के ग्रामीण
वर्ष-18, अंक-08(16-30 अप्रैल, 2015)
    1 मई 2013 का वाकया है। ढिल्लन स्टोन क्रेशर स्वामी सोहन सिंह, उसके दोनों लड़के डी.पी.सिंह व सनी ने गुण्डों के साथ वीरपुर लच्छी पर हमला बोल दिया था। उन्होंने बुक्सा जनजाति के 3 लोगों के घरों में आग लगा दी। गांव में फायरिंग की। महिलाओं व ग्रामीणों को बंदूक की बटों से बुरी तरह मारा। हमला करने के बाद भी वे मौके से भागे नहीं, रास्ता रोक कर वहीं पर खड़े रहे। मौके पर पहुंची पुलिस के एक अधिकारी को सोहन सिंह से कहलवाना पड़ा कि वे यहां से चले जाएं नहीं तो उन्हें मजबूरी में सोहन सिंह को गिरफ्तार करना पड़ेगा। इसके बाद ही सोहन सिंह व अन्य मौके से गये। 
    वीरपुर लच्छी के ग्रामीणों का कसूर मात्र इतना था कि वे पुलिस की मौजूदगी में हुए समझौते का पालन करने के लिए कह रहे थे जिसके तहत गांव के बीच से गुजर रहे संकरे कच्चे रास्ते पर दिन में दो बार पानी का छिड़काव किया जाना था। 
    घायल महिलाओं व ग्रामीणो को 108 एम्बुलेंस सर्विस के द्वारा अस्पताल लाया गया। शहर के जनपक्षीय सामाजिक राजनैतिक संगठन तुरंत अस्पताल पहुंच गये और उन्होंने रामनगर कोतवाली में उक्त घटना का मुकदमा दर्ज कराया। ग्रामीणों के कोतवाली पहुंचने से पहले ही सोहन सिंह कोतवाली पहुंचा गया और उसने अपने कर्मचारियों की तरफ से जानलेवा हमले की तहरीर दे दी परन्तु जनाक्रोश को देखते हुए पुलिस ने सोहन सिंह का फर्जी मुकदमा दर्ज नहीं किया। 
    1 मई की घटना ने समूचे क्षेत्र को आक्रोशित कर दिया। पुलिस ने सोहन सिंह के गुण्डे तो गिरफ्तार कर लिए परन्तु उसके रसूख के कारण पुलिस सोहन सिंह व उसके बेटों को गिरफ्तार करने का साहस नहीं दिखा पायी। सोहन सिंह कांग्रेस की एन.डी. तिवारी सरकार में दर्जाधारी मंत्री रह चुका है। पुलिस के कुछ अधिकारी तथा राजनैतिक दलों के नेता ग्रामीणों पर ले देकर समझौते का दबाव बनाने लगे। सोहन सिंह ने न्यायालय के माध्यम से सीआरपीसी दफा 156(3) का इस्तेमाल करते हुए ग्रामीणों पर हत्या के प्रयास, एस.सी/एस.टी. एक्ट आदि में मुकदमा दर्ज करवा दिया। दो सप्ताह तक सोहन सिंह की गिरफ्तारी न होने पर ग्रामीणों का मनोबल टूट गया और उन्होंने दबाव में आकर सोहन सिंह के साथ समझौता कर लिया कि वे एक दूसरे पर लगा मुकदमा वापस ले लेंगे। धूर्त सोहन सिंह ने ग्रामीणों से मुकदमा खत्म करने से संबंधित शपथपत्र ले लिये परन्तु स्वयं उन्हें मुकदमा खत्म करने से संबंधित शपथपत्र नहीं दिये। उन्होंने डीआईजी के समक्ष उपस्थित होकर समूची सच्चाई बयां कर दी।
    आंदोलन व जनाक्रोश के दबाव में अंततः पुलिस को सोहन सिंह व उसके पुत्रों को जेल भेजना पड़ा। तत्कालीन पुलिस क्षेत्राधिकारी प्रमोद कुमार ने मुकदमे जांच पूरी करते हुए सोहन सिंह व अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल कर दिया। तथा सोहन सिंह द्वारा लिखाए गये फर्जी मुकदमे में दफा 341 छोड़कर अन्य धारायें हटाने की कार्यवाही शुरू कर दी। 
    10-12 दिन बाद जमानत पर छूटे सोहन सिंह ने डी.आई.जी. कुमाऊं के माध्यम से उक्त दोनों मुकदमों की जांच अपने मित्र बाजपुर पुलिस क्षेत्राधिकारी जी.सी.टम्टा के सुपुर्द करवा दी। ग्रामीणों के संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए गठित दमन विरोधी संघर्ष समिति ने जांच अधिकारी जी.सी.टम्टा को बनाए जाने का विरोध किया परन्तु डीआईजी ने ग्रामीणों की एक भी न सुनी। 
    जी.सी.टम्टा ने सोहन सिंह के ड्रांइग रूम में बैठकर जांच का कार्य सम्पन्न किया। जिसमें सोहन सिंह, उसके दोनों बेटों डी.पी.सिह व सनी के नाम मुकदमे से निकाल दिये तथा अन्य गुण्डे जो कि सोहन सिंह के स्टोन क्रेशर का काम करते थे उन्हें आरोपी बना दिया। तथा सोहन सिंह द्वारा लिखवाए गये फर्जी मुकदमे में 13 ग्रामीणों को दफा 307, .....का आरोपी बनाकर न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल कर दिया।
    1 मई को ग्रामीणों की झोंपडि़यों में आग लगाने, फायरिंग व मारपीट की घटना के समय सोहन सिंह अपने दोनों पुत्रों के साथ मौके पर मौजूद था इसकी वीडियो किसी ग्रामीण द्वारा बना ली गयी थी। इसको तथा अन्य सबूतों को लेकर ग्रामीणों ने हाईकोर्ट की प्रतिष्ठित वकील पुष्पा जोशी के माध्यम से हाईकोर्ट में मुकदमा रद्द करने की याचिका दायर की। जिस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने 13 ग्रामीणों की गिरफ्तारी पर रोक लगायी हुयी है तथा मामले की सुनवाई जारी है। 
    पुलिस क्षेत्राधिकारी जी.सी.टम्टा के द्वारा पुनः दायर किये गये आरोप पत्र को सही मानते हुए ए.डी.जे. फस्र्ट हल्द्वानी ने बगैर मुकदमा चलाए ही सोहन सिंह व उसके दोनों बेटों को चार्ज पर बरी कर दिया। जबकि उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत फाइल में मौजूद हैं। इसकी अपील पर भी सुनवाई हाईकोर्ट में चल रही है। तथा ए.डी.जे. फस्र्ट हल्द्वानी की भारत के तथा उत्तराखण्ड के मुख्य न्यायाधीश से शिकायत कर दी गयी है। 
    न्यायालय में सारे दांव-पेंच इस्तेमाल करने के बाद सोहन सिंह ने सरकार से भी मुकदमे वापसी की कार्यवाही शुरू करवा दी। उत्तराखण्ड शासन ने दिनांक 23 फरवरी, 15 को पत्र लिखकर डी.एम. नैनीताल को सोहन सिंह पर लगा मुकदमा(संख्या- 109/2013) वापस लेने की कार्यवाही शुरू कर दी है। जिसका दमन विरोधी संघर्ष समिति ने कड़ा विरोध करते हुए मुख्यमंत्री हरीश रावत को कटघरे में खड़ा किया है। 
    बीते दो वर्षों के संघर्ष में बुक्सा जनजाति के लोगों को जीवन की नई राह मिली है। उत्तराखण्ड सरकार, पुलिस, प्रशासन व न्यायपालिका सभी सोहन सिंह के साथ खड़े हैं, उसे बचाने में लगे हैं। इस सबके बावजूद भी वीरपुर लच्छी के बुक्सा जनजाति के लोगों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है वे संघर्ष के मैदान में हैं। खनन माफिया के विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका के साथ बने गठजोड़ को चुनौती दे रहे हैं।  विशेष संवाददाता
यहां सिर्फ माफियाओं का कानून चलता है

    वीरपुर लच्छी गांव के बीच से जो रास्ता चल रहा है वह कोई आम रास्ता नहीं है बल्कि बुक्सा जनजाति व अन्य किसानों के खेत हैं। ढिल्लन स्टोन क्रेशर मालिक गुण्डागर्दी के दम पर उस रास्ते पर अपने डम्पर चलाता है। ग्रामीणों द्वारा कई बार लिखित मौखिक विरोध के बावजूद भी प्रशासन रास्ते पर डम्परों की आवाजाही बंद करने के लिए तैयार नहीं है। सूत्रों के अनुसार 750 डम्पर, ट्रेक्टर उक्त रास्ते से होकर क्रेशर में माल डालते हैं। एक डम्पर 3 चक्कर प्रतिदिन लगाता है। इससे हो रहे ध्वनि व वायु प्रदूषण में ग्रामीणों का जीवन नारकीय बना दिया है। गांव में चौबीसों घंटे डम्परों की रेल चलती रहती है।
    सोहन सिंह न्यायालय के माध्यम से गांव में 290  फुट सड़क पर ग्रामीणों द्वारा किसी भी तरह का व्यवधान न डालने से सम्बन्धित स्टे ले आया था। ग्राम समाज की उक्त 290 फुट सड़क पर दिये गये स्टे से न्यायालय के निर्णय पर भी सवाल उठ रहे हैं।
    पुलिस प्रशासन सोहन सिंह के आगे नतमस्तक है। पिछले दो वर्ष में पुलिस ग्रामीणों के खिलाफ 5 बार शांतिभंग करने 107/116 की फर्जी कार्यवाही कर चुकी है।
    गांव में ढिल्लन स्टोन क्रेशर के पास एक दूसरा स्टोन क्रेशर पुरेवाल स्टोन क्रेशर भी लग चुका है। पिछले वर्ष हुयी जन सुनवाई में ग्रामीणों ने पुरेवाल स्टोन क्रेशर को मंजूरी देने का लिखित व मौखिक विरोध किया था। पर्यावरण नियमों के मुताबिक स्टोन क्रेशर की नदी व आबादी से कम से कम 500 मीटर की दूरी होनी चाहिए। नियमों को ताक पर रखकर ढिल्लन स्टोन क्रेशर नदी ठण्डानाला के बिल्कुल किनारे पर लगा हुआ है। राजस्व विभाग व वन विभाग के नक्शे में भी नदी दर्ज है। फिर भी स्टोन क्रेशर को अनुमति मिली हुयी है। दोनों स्टोन क्रेशरों से आबादी की दूरी 300 मीटर से भी कम है, ग्रामीणों के विरोध के बावजूद भी स्टोर क्रेशर धडल्ले से चल रहे हैं।
    जन आंदोलन के दबाव में 13 अप्रैल 2015 को प्रशासन द्वारा छापा मारकर पुरेवाल व ढिल्लन स्टोन क्रेशर सीज कर दिये गये हैं। परन्तु सीज करने का आधार आबादी व नदी से 500 मीटर से कम दूरी होना नहीं बनाया गया है बल्कि ग्रीन पट्टी न होना व दीवारों का कम ऊंचा होना तथा पर्यावरण विभाग को अनुमति 31 मार्च 2015 तक ही होना इत्यादि बनाया गया है। जिससे इस बात की पूरी सम्भावना है कि निकट भविष्य में उक्त दोनों क्रेशरों का संचालन पुनः प्रारम्भ हो जायेगा।
    स्टोन क्रेशर व खनन कारोबार ने ग्रामीणों की खेती-किसानी, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई को चैपट कर दिया है। एस.सी./एस.टी. एक्ट के कानून में दर्ज है कि जनजाति के खेतों व रास्तों पर जोर-जबर्दस्ती करने वालों पर 6 माह से 5 वर्ष तक की सजा हो सकती है। परन्तु वीरपुर लच्छी में देश का कानून नहीं खनन माफियाओं का कानून चलता है।

विभिन्न स्थानों पर फूटा गुस्सा
    31 मार्च को थारी रामनगर में ‘नागरिक’ सम्पादक मुनीष कुमार और उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के महासचिव प्रभात ध्यानी पर हुए हमले के विरोध में और वीरपुर लच्छी गांववासियों की न्याय संगत मांगों के पक्ष में तमाम जगह घरना-प्रदर्शन हुए। रामनगर, नैनीताल व हल्द्वानी के वकील न्याय कार्यों से विरत रहे।  यह धरना प्रदर्शन 1 अप्रैल से लेकर 13 अप्रैल तक चलते रहे। 
दिल्ली- 2 अप्रैल को विभिन्न जनपक्षधर संगठनों व सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा उत्तराखण्ड भवन में प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शनकारियों के पुलिस द्वारा बलपूर्वक गिरफ्तार कर चाणक्य पुरी वाले में 2 घंटे तक कैद किया गया। थाने में ही चली सभा में वक्ताओं ने माफियाराज की तीखे शब्दों में आलोचना की तथा उत्तराखण्ड सरकार का माफियाओं को संरक्षण देने की निंदा की। सभा के बाद उत्तराखण्ड मुख्यमंत्री को ज्ञापन प्रेषित किया गया। 
    कार्यक्रम में इंकलाबी मजदूर केन्द्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र, मजदूर एकता केन्द्र, ए.आई.एफ.टी.यू. (न्यू), सी.एन.डब्ल्यू सहित कई स्वतंत्र सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए। 
बलिया- 2 अप्रैल को जिला मुख्यालय पर आक्रोशित क्रालोस एवं इमके के सदस्यों द्वारा सभा की गयी। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजे गये। सभा में वक्ताओं ने कहा कि पूरे देश मे प्राकृतिक संसाधनों की बुरी तरह दोहन किया जा रहा है। सरकार दोनों हाथों से इसे लुटा रही है। इस लूट से मोटाये पूंजीपति, माफिया, बेलगाम हो रहे हैं। वह हर प्रतिरोध के आवाज को दबंगई से दबा रहे हैं। 31 मार्च को रामनगर में जो हमला हुआ वह इसी का एक रूप है। 
काशीपुर- 2 अप्रैल को काशीपुर में एस.डी.एम. के माध्यम से पछास, इमके कार्यकर्ता द्वारा मुख्यमंत्री को ज्ञापन दिया गया। मांग की गयी कि हमलावरों को तुरंत गिरफ्तार किया जाए। 13 अप्रैल को एक जुलूस शहर में निकाला गया। जुलूस पंत पार्क से शुरू होकर एस.डी.एम. कार्यालय तक निकाला गया। इसके उपरोक्त एस.डी.एम. के माध्यम से एक ज्ञापन मुख्यमंत्री के भेजा गया। कार्यक्रम में इमके, पछास व शंकरपुर ग्रामवासी आदि लोग शामिल रहे।
रूद्रपुर- 4 अप्रैल को विभिन्न जनपक्षधर संगठनों, ट्रेडयूनियनों द्वारा 31 मार्च की घटना के विरोध में जिलाधिकारी के माध्यम से ज्ञापन मुख्यमंत्री को भेजा गया। 
    13 अप्रैल को डी.एम. कोर्ट में एक सभा की गयी। सभा में बाजपुर से बाबू तौमर, मजदूर नेता मुकुल, इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ता, सीपीआई, मजदूर सहयोग केन्द्र आदि ने हिस्सेदारी की।
हल्द्वानी- 1 अप्रैल को घटना के विरोध में मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा गया। 13 अप्रैल जलियांवाला बाग हत्याकांड की बरसी के दिन सभा में माफियाराज की तीखी निंदा की गयी। सभा के बाद जुलूस निकालकर एस.डी.एम. कार्यालय जाकर मुख्यमंत्री को ज्ञापन प्रेषित किया गया। 
    कार्यक्रम में पछास, क्रालोस, इमके, उपपा, प्रमके, राज्य आंदोलनकारी, आरडीएफ, यूकेडी, राजनीतिक बंदी रिहाई कमेटी व गौलापार के माफिया से पीडि़त ग्रामवासियों द्वारा शिरकत की गयी। 
लालकुंआ- 31 मार्च की घटना के विरोध में माफियाराज के विरोध में और सरकार द्वारा माफिया को संरक्षण के विरोध में नारेबाजी करते हुए माफिया व सरकार के गठजोड़ का पुतला फूंका गया। कार्यक्रम में पछास, इमके, प्रमएके ने हिस्सेदारी की। 
बरेली- 2 अप्रैल को विरोध जुलूस निकालकर डी.एम. कार्यालय के सामने सभा की गयी। व मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन भेजा गया। कार्यक्रम में इमके, पछास, क्रालोस, सी.पी.आई. मार्केट वर्कर एसोसिएशन, टेम्पो यूनियन आदि ने हिस्सेदारी की। 
नैनीताल- 13 अप्रैल को कमिश्नरी पर एक घरना दिा गया। सभा में वक्ताओं द्वारा 31 मार्च की घटना की तीखी निंदा की और वीरपुर लच्छी ग्रामवासियों के साथ खड़े होने का संकल्प लिया। घरने में, भाकपा माले के कैलाश जोशी, महिला समाख्या की बसंती पाठक, उमा भट्ट, पछास के कमलेश, यूकेडी के सुरेश डालाकोटी, ठेका मजदूर कल्याण समिति के किशन, शेखर, गोपाल, मुन्नी तिवारी, महेश जोशी आदि ने हिस्सेदारी की।
देहरादून- 13 अप्रैल को धरने के माध्यम से विरोध व्यक्त किया गया। घरने में क्रालोस, पछास, उपपा, राज्य आंदोलनकारी उनियाल जी, चेतना आंदोलन के त्रेपन सिंह चैहान, जगदीश उप्रेती आदि ने हिस्सेदारी की। 
हरिद्वार- 13 अप्रैल को मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा गया। ज्ञापन में सोहन सिंह, डी.पी.सिंह की गिरफ्तारी की मांग की गयी। साथ ही उत्तराखण्ड में बढ़ रहे माफियाराज की निंदा की गयी। कार्यक्रम में इमके, क्रालोस, भेल ट्रेड यूनियन व अन्य यूनियनों ने भागीदारी की। 
कोटद्वार- 31 मार्च के हमले के विरोध में 13 अप्रैल को एस.डी.एम. कार्यालय में धरना दिया गया। एस.डी.एम. के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा गया। कार्यक्रम में पछास, बार एसोसिएशन, राज्य आंदोलनकारी संगठन, स्वतंत्र पत्रकार, महिला समाख्या आदि संगठनों ने शिरकत की। विभिन्न स्थलों से नागरिक संवाददाता    
हमले के खिलाफ रामनगर बंद
    31 मार्च शाम लगभग 5 बजे मुनीष कुमार और प्रभात ध्यानी पर हुए हमले के विरोध में रामनगर शहर में आक्रोश फूटा। घटना के दिन 31 मार्च को ही भारी मात्रा में लोग अस्पताल में एकत्रित होने लगे। बड़ी मात्रा में वीरपुर लच्छी से महिला-पुरुष देर रात तक अस्पताल में डटे रहे। रात को ही शहर में जुलूस निकालकर और कोतवाली में प्रदर्शन कर अपना आक्रोश व्यक्त किया गया। हमले से आक्रोशित लोगों द्वारा एस.डी.एम. को अस्पताल के बाहर ही रोक दिया गया। उन्हें घायलों से मिलने नहीं दिया गया।
    अगले दिन 1 अप्रैल को घटना के विरोध में रामनगर बंद रहा। प्रातः 8 बजे से ही बड़ी संख्या में आंदोलनकारी शहीद पार्क लखनपुर में एकत्रित होने लगे। 9 बजे एक विशाल जुलूस शहर में निकाला गया। व्यापारियों द्वारा अपने संस्थान स्वैच्छिक रूप से बंद रखे गये। 

वेतन वृद्धि व त्रिवर्षीय समझौते को लेकर मोजर बेयर के श्रमिक संघर्ष की राह पर
वर्ष-18, अंक-07(01-15 अप्रैल, 2015)
    मोजर बेयर इंडिया लि. दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा के उद्योग विहार में स्थित है। विगत 27 फरवरी से मोजर बेयर के श्रमिक वेतन वृद्धि एवं त्रिवर्षीय समझौते को लेकर संघर्ष की राह पर हैं। 
    मजदूरों व प्रबंधन के बीच मौजूदा त्रिवर्षीय समझौता 31 मार्च 2015 को समाप्त होने वाला है। कंपनी में चूंकि कोई यूनियन नहीं है बल्कि वर्कर्स कमेटी है। पिछले समयों में लगातार बढ़ती महंगाई के बीच मजदूरों के वेतन में कोई वृद्धि नहीं हुयी है। कंपनी में 3500 स्थाई मजदूर हैं जिन्हें 6 अलग-अलग ग्रेडों (क्रमशः ॅ 1ए ॅ 2ए ण्ण्ण्ण्ण्ॅ 6) में बांटा गया है। इन मजदूरों में आईटीआई से लेकर डिप्लोमा व बी.टेक. डिग्री तक के मजदूर हैं। यहां सीनियर इंजीनियर भी मशीन पर काम करते हैं और ॅ 6 कैटेगरी के मजदूर माने जाते हैं। टेक्निशियन से लेकर सीनियर इंजीनियर तक इस हड़ताल में शामिल हैं।
    वेतन वृद्धि व त्रिवर्षीय समझौते की मांग को लेकर वर्कर्स कमेटी व प्रबंधन के बीच कई दौर की वार्तायें हुईं। जब प्रबंधन ने हठधर्मी दिखाते हुए और घाटे का बहाना बनाते हुए मजदूरों की मांग को बिल्कुल दरकिनार कर दिया तो मजदूर मजबूरन आंदोलन के लिए मजबूर हुए। 27 फरवरी से मजदूरों ने टूल डाउन कर कंपनी के अंदर ही बैठकी हड़ताल (ैपज पद ेजतपाम) शुरू कर दी। कंपनी प्रबंधन व प्रशासन ने मजदूरों को डराने-धमकाने की कोशिश कर मजदूरों को वापस काम पर लौटने की अपील की लेकिन मजदूर दृढ़तापूर्वक खड़े रहे। अंततः प्रशासन के हस्तक्षेप से वार्ताओं का दौर फिर शुरू हुआ। कई चक्र की वार्ताओं के बाद भी कोई समझौता नहीं हो पाया। वार्ताओं के चक्र आंदोलन के पहले से शुरू हो गये थे। इन वार्ताओं की शुरूआत 19 फरवरी से हुई और 2 मार्च को अंतिम वार्ता हुई। 21 मार्च की वार्ता में प्रबंधन द्वारा 21 मार्च की वार्ता में साफ प्रेषित कर दिया कि वह 2000/ रु. (तीन वर्ष के लिए) वेतन वृद्धि के अलावा और कुछ नहीं दे सकता। बोनस के बारे में भी उसने स्पष्ट कर दिया कि बोनस मात्र 3500/रु. दिया जायेगा और वह भी केवल उन्हीं लोगों को दिया जायेगा जिनका मूल वेतन 10,000रु. से कम होगा। गौरतलब है कि मोजर बेयर में 2009 में पहली बार 8400 रु. बोनस मिला था लेकिन उसके बाद इसे घटा दिया गया। 2012, 2013 व 2014 में कंपनी ने 7200 रु. वेतन दिया था। श्रमिकों की मांग न्यूनतम 7000रु. वेतन वृद्धि एवं 8400 रु. बोनस की है। 
    कंपनी प्रबंधन का कहना था कि हम बहुत घाटे में हैं और कंपनी बिकने की स्थिति में पहुंच रही है इसलिए वह स्वीकार कर लेना चाहिए जो उन्हें मिल रहा है बाद में यह भी नहीं मिलेगा। जैसा स्वाभाविक था मजदूरों ने प्रबंधन के इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया व अपना संघर्ष जारी रखा। यहां यह भी गौरतलब है कि जिन बिंदुओं पर कोई सहमति बन भी जाती थी तो प्रबंधन अगली बैठक में उन बिंदुओं पर बनी सहमति पर कायम नहीं रहता था और उन्हें फिर बहस के दायरे में ले आता था। 
    मजदूर जब मोजरबेयर प्रबंधन के झांसे में नहीं आये तो प्रबंधन ने स्थानीय प्रशासन की मदद से मजदूरों को सबक सिखाने की चाल चली। प्रबंधन ने पहले गुपचुप तरीके से कंपनी ने कोर्ट से स्टे आर्डर हासिल कर लिया। हासिल क्या किया एक पुराने स्टे आर्डर की ही तिथि को बढ़वा लिया। इसके बाद कंपनी के भीतर पुलिस बुलाकर मजदूरों को बलपूर्वक बाहर कर दिया। पुलिस ने यह बहादुराना कार्यवाही 23 मार्च की रात को की जब मजदूरों की संख्या बेहद कम थी। अगले दिन मजदूरों की एक सभा हुई जिसमें कंपनी गेट के पास ही एक टैंट लगाकर धरना देने का निर्णय लिया गया। इस तरह 24 मार्च से कंपनी गेट से कुछ दूरी पर मजदूर टेंट लगाकर अपना धरना प्रदर्शन जारी रखे हुए हैं। इस बीच कंपनी प्रबंधन की ओर से 9 मजदूरों के खिलाफ फर्जी मुकदमे दर्ज कराये गये हैं। 
    मोजर बेयर कंपनी के मालिक दीपक पुरी हैं जो कद्दावर कांग्रेसी नेता कमलनाथ के जीजा बताये जाते हैं। कमलनाथ की बहन नीतापुरी भी कंपनी में निदेशक हैं। कंपनी भले ही घाटे का रोना रो रही है लेकिन पिछले एक दशक में कंपनी का साम्राज्य बहुत फैल गया है। पहले कंपनी केवल सी.डी. (काॅम्पेक्ट डिस्क) व डी.वी.डी. (डिजिटल वर्सटाइल डिस्क) बनाती थी। कंपनी ने इस व्यवसाय से अकूत मुनाफा बटोरकर कई अन्य उत्पादों को बनाने के प्लांट लगाये हैं। कंपनी ने पी.वी. (फोटो वोल्टेयिक) प्लांट जहां फोटो वोल्टोयिक सैल का उत्पादन किया जाता है, के अलावा सीईडी एवं सोलर प्लेट का उत्पादन शुरू किया है। इसके अलावा कंपनी ने पेन ड्राइव, मेमोरी कार्ड, डीवीडीआर (रिराइटेबिल डी.वी.डी.) एवं सोलर लैंप के उत्पादन के प्लांट लगाये हैं जिनसे बंपर मुनाफा कंपनी ने कमाया है। कंपनी ने 2200 एकड़ जमीन पर थर्मल पावर प्लांट की स्थापना की है। 
    गौरतलब है कि कंपनी ने यह सब साम्राज्य केवल दो-ढ़ाई दशक में निर्मित किया है। अतः स्पष्ट है कि कंपनी कहीं घाटे में नहीं रही उसने अपने मुनाफे का निवेश अन्य उत्पादों के निर्माण करने में किया है। कंपनी के घाटे में न होने की बात इससे भी साबित होती है कि कंपनी के प्रबंधकों की आमदनी पिछले एक दशक में कई गुनी बढ़ चुकी है। मजदूरों के मुताबिक 2001 में मात्र 50 हजार रु. वेतन वाले एक प्रबंधक का वेतन आज 13 लाख पहुंच गया है जबकि मजदूरों (टैक्नीशियनों से लेकर इंजीनियरों) की तनख्वाह में नाम मात्र की वृद्धि हुयी है। कंपनी में 20-25 साल से काम कर रहे टैक्नीशियन महज 15-16 हजार औसतन तनख्वाह पाते हैं जबकि 15-20 साल पुराने इंजीनियरों की तनख्वाह न्यूनतम 25 हजार से औसतन 35 हजार तक है। 
    टैक्नीशियनों की तनख्वाह में पिछले 13-14 सालों में 9-10 हजार से 16-17 हजार ही पहुंची है। इसकी तुलना में प्रबंधकों की तनख्वाह में 10 से 25 गुने तक की वृद्धि हुयी है। इस बीच मजदूरों को मिलने वाली सुविधाओं में लगातार कटौती होती चली गयी है। कन्वेयेन्स (यात्रा भत्ता), कैंटीन, यूनीफार्म जैसे सुविधायें एक-एक करके कंपनी छीनती चली गयी है। कंपनी के ही कुछ सूत्रों के अनुसार कंपनी की मंशा बड़े पैमाने की छंटनी करने की बात सामने आ रही है। कंपनी इस दौरान एक वी.आर.एस. (स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति योजना) भी सामने लाई है जिसने एक साल की अवधि पर 1 माह का वेतन, 3 महीने का नोटिस पे तथा 25000 रु. अतिरिक्त यह वी.आर.एस. स्कीम, जिसे सेप्रेशन स्कीम भी कहा गया, दो दिन के लिए लागू बताई गयी थी। 
    कंपनी मोदी राज में मिलने वाली छूटों का फायदा उठाना चाहती है। इसके लिए कंपनी अपना आकार घटाकर अथवा मजदूरों की संख्या सीमित कर श्रम कानूनों में हुए संशोधनों का अधिकतम लाभ लेना चाहती है ऐसा प्रतीत होता है मोदी राज में पूंजीपतियों को जो छूट मिली उसका फायदा हर पूंजीपति उठाना चाहेगा। लेकिन यह बिडम्बना है कि इस तथ्य से यहां के मजदूर लगभग पूरी तरह बेखबर हैं और कुछ मजदूर तो मोदी के खिलाफ कुछ बात सुनना तक पसंद नहीं करते। मजदूरों की यह अराजनीतिक प्रवृत्ति उनके अपने हित के लिए दूरगामी तौर पर कितनी घातक है इसका अहसास अभी यहां के मजदूरों को नहीं है। मोजर बेयर के मजदूरों को अपने कंपनी से बाहर देश के स्तर पर मजदूरों के अधिकारों पर हो रहे हमलों के बारे में जानना समझना होगा। व्यापक मजदूर वर्ग की एकता की जरूरत को उन्हें महसूस करना होगा। 
    बहरहाल मोजरबेयर के मजदूरों का संघर्ष पूरे जोश-खरोश के साथ जारी है। दिल्ली संवाददाता
सुजुकी बाइक प्लाण्ट में मजदूरों का समझौता सम्पन्न
वर्ष-18, अंक-07(01-15 अप्रैल, 2015)
    सुजुकी प्रबंधन के अडियल रुख के बावजूद सुजुकी बाइक प्लाण्ट के मजदूरों का संघर्ष जारी रहा और अंततः 25 मार्च को उनका समझौता सम्पन्न हो गया। समझौते के तहत- 1. तीन सालाना वेतन वृद्धि में 14500 रुपये(60प्रतिशत, 20 प्रतिशत, 20 प्रतिशत), 2. कन्वेंस में जनवरी माह तक 35 किमी तक और आगे से 55 किमी तक 50 प्रतिशत प्रबंधक द्वारा और 50 प्रतिशत मजदूर वहन करेंगे। 3. ट्रेनी मजदूरों के लिए ट्रेनिंग तीन साल के बजाय अब दो साल की होगी। 4. और इस समय कम्पनी में काम कर रहे ठेकेदारी के मजदूरों का कम्पनी एक टेस्ट करायेगी और जो पास होगा उसको ट्रेनिंग में रखा जायेगा।
    सुजुकी बाइक में दो सौ पचास मजदूर स्थायी हैं तथा उनका वेतन 14 हजार से 17 हजार तक है। 300 ट्रेनी मजदूर हैं जिनका वेतन 10-11 हजार है। कम्पनी में लगभग 600 से ज्यादा ठेके के मजदूर कार्यरत हैं जिनका वेतन मात्र 6-7 हजार है। कम्पनी में इन सभी मजदूरों से हाड़-तोड़ काम कराया जाता है। मजदूरों की इस मेहनत से कम्पनी में प्रतिदिन 1200 स्कूटर व 300 बाइक बनती हैं। कम्पनी ने मजदूरों को परिवहन की कोई सुविधा नहीं दी है। जबकि पिछले मांग पत्र में परिवहन की मांग थी लेकिन प्रबंधन ने इस पर बात करने से इंकार कर दिया था। और अगले समझौते में इस पर बात करने को कहा। 
    सुजुकी बाइक प्लांट की यूनियन का मांग पत्र पिछले दस महीने से ज्यादा समय से लम्बित चल रहा था। प्रबंधन मजदूरों की मांगों के प्रति कोई गम्भीर रुख नहीं दिखा रहा था। वह कम्पनी के पांच सौ करोड़ के घाटे का रोना रो रहा था। मजदूरों का कहना था कि प्रबंधन अपने घाटे का रोना रोकर मजदूरों की तनख्वाह तो नहीं बढ़ा रहा है परन्तु अपनी सुविधाओं में कोई कटौती नहीं कर रहा है। मजदूर तो पूरी मेहनत से काम कर रहे हैं। अगर घाटा हो रहा है तो इसके लिए मैनेजमेण्ट जिम्मेदार है जिसकी तनख्वाहें मजदूरों से कई गुना ज्यादा हैं। 
    पहले तो मजदूरों ने विरोध स्वरूप काली पट्टी बांधकर काम किया। जब प्रबंधन पर इसका कोई असर नहीं पड़ा तब 18 मार्च को मारुति सुजुकी मजदूर संघ(इसे मारुति सुजुकी मानेसर तथा गुड़गांव प्लाण्ट, सुजुकी पावर ट्रेन, सुजुकी बाइक प्लांट की चारों यूनियनों ने मिलकर बनाया है।) ने सुजुकी बाइक प्लांट के गेट पर एक-एक प्रतिनिधि को भूख हड़ताल पर बिठा दिया। लेकिन प्रबंधकों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। उसके बाद दस प्रतिनिधि भूख हड़ताल पर बैठ गये। अन्य यूनियन प्रतिनिधि इनके समर्थन में क्रमिक भूख हड़ताल पर बैठ गये। 23 तारीख से सुजुकी बाइक के मजदूरों ने अनशन पर बैठे अपने नेताओं के समर्थन में बिना खाये काम किया लेकिन प्रबंधन टस से मस नहीं हुआ। मजदूरों ने कम्पनी से निकाले गये अपने दो साथियों को भी काम पर वापस लेने की मांग को भी जोर शोर से रखा। 
    मारुति मजदूर संघ द्वारा इस दौरान अन्य कम्पनियों के मजदूरों के साथ मिलकर गेट मीटिंग का आहवान नहीं किया गया। जबकि गुड़गांव में मजदूर संघर्षों के दौरान यह तरीका मजदूरों की एकता के लिए सही साबित हुआ है। धरना स्थल पर अन्य कम्पनियों के मजदूरों के अलावा मारुति मानेसर प्लांट के बर्खास्त मजदूरों ने भी समर्थन दिया। मजदूर संघ के नेताओं ने 25 तारीख बुधवार के बाद आगे की कार्यवाही की बात की तभी जाकर यह समझौता सम्पन्न हो पाया।
                 गुड़गांव संवाददाता 
मारुति के मजदूरों की जमानत के दौरान फिर दिखा पूंजीवादी मशीनरी का वर्गीय चरित्र
वर्ष-18, अंक-07(01-15 अप्रैल, 2015)
    23 फरवरी 2015 को मारुति के 2 मजदूरों की सर्वोच्च अदालत से जमानत होने के बाद 79 मजदूरों की जमानत की अर्जी गुड़गांव की स्थानीय अदालत में लगायी गयी। जमानत की अर्जी के दौरान 11 मार्च को सुनवाई हुई। मजदूरों की तरफ से सर्वोच्च अदालत की वकील वृंदा ग्रोवर ने बहस की। सुनवाई के बाद फैसला रिजर्व रखा गया और 17 मार्च की तारीख मिली। 17 मार्च को इन मजदूरों को जमानत मिल गयी। लेकिन 11 मार्च की सुनवाई के दौरान एक बार फिर पूंजीवादी मशीनरी ने अपना वर्गीय चरित्र दिखाया। 
    सुनवाई के दौरान मजदूरों को अंग्रेजी के वर्णमाला के क्रम में खड़ा किया गया था। खड़े होेने का क्रम इस प्रकार था- ए से जी तक मजदूर एक जगह खड़े थे और जी से के तक एक जगह। ठेकेदार से इनकेे नाम लेने की बात मैनेजमेण्ट ने कही थी। लेकिन ठेकेदार इनको नहीं पहचान पाया। इसके बाद जमानत के लिए 35 हजार रुपये की राशि तय की गयी जो काफी बहस के बाद 25 हजार तय हुयी। उसके बाद जमानत के लिए सिर्फ जमीन के कागजात की मान्य किये गये। जबकि ज्यादातर मजदूर भूमिहीन परिवारों के मजदूर हैं। जमीन के कागज कहां से लायेंगे। यानी पूरी प्रक्रिया में मजदूरों के लिए जमानत लेने की प्रक्रिया को कठिन बनाना था। 
    मारुति के मजदूरों को पूंजीवादी व्यवस्था में इससे ज्यादा न्याय मिल भी नहीं सकता था। बिना कोई अपराध किये 31 महीने की जेल मिली। इनमें से कई मजदूरों ने मात्र 6, 9, 12 महीने ही काम किया था। उस दिन क्या हुआ था ज्यादातर को नहीं पता। कई मजदूरों की ड्यूटी तो सी शिफ्ट में थी। इन लोगों को कमरे से उठा लिया था। कुछ मजदूर अप्रेन्टिस कर रहे थे। 
    लम्बी जेल ने मजदूरों को यह तो सिखा दिया कि उनका मजदूर होना ही उनका गुनाह था। उनका गुनाह था कि उन्होंने अपने अधिकारों के लिए यूनियन बनाने की कोशिश की। उनका गुनाह था कि उन्होंने मैनेजमेण्ट के सामने अपना मांग पत्र पेश करने की हिम्मत की। 
    लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने उनको सिखा दिया कि ऐसे गुनाह उन्हें बार-बार करने होंगे। क्योंकि उनकी परिस्थितियां उन्हें इसके अलावा कुछ और नहीं सिखातीं हैं। मारुति के 65 मजदूर अभी भी सीखचों के पीछे हैं। मारुति के मजदूरों को संघर्ष ने भारतीय मजदूर आंदोलन में एक नया अध्याय जोड़ दिया है। 
            गुड़गांव संवाददाता
जोशो-खरोश से मनाया गया अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक महिला दिवस
वर्ष-18, अंक-06(16-31 मार्च, 2015)
8 मार्च को दिल्ली, उत्तराखण्ड व उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों में प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक महिला दिवस की विरासत को याद करते हुए, बिरादराना व प्रगतिशील संगठनों के साथ मिलकर अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक महिला दिवस मनाया गया। अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक महिला दिवस से पहले सभी इकाइयों द्वारा सप्ताह भर रिहायशी व औद्योगिक इलाकों तथा अलग-अलग फैक्टरियों आदि में पर्चा अभियान चलाकर अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक महिला दिवस के इतिहास व उसके महत्व से रूबरू कराते हुए व्यापक पर्चा बांटा गया। 
उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले के रामनगर कस्बे में प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र द्वारा इंकलाबी मजदूर केन्द्र व परिवर्तनकामी छात्र संगठन के साथ मिलकर अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक महिला दिवस मनाया गया। कार्यक्रम के तहत व्यापार मंडल भवन में एक सभा की गई और एक जुलूस निकाला गया। सभा में वक्ताओं ने बताया कि समाज में महिलाओं की दोयम दर्जे की स्थिति बनी हुई है। इसी कारण पूंजीपति उसे सस्ते श्रम के तौर पर इस्तेमाल करता है। पुरुष प्रधान मानसिकता के कारण महिलाओं को काफी उत्पीड़न झेलना पड़ता है। केन्द्र में संघी मोदी के नेतृत्व में नई सरकार बनने के बाद यह हमला और ज्यादा बढ़ गया है। जिस रामदेव की सहायता से भाजपा सत्तारूढ़ हुई है वह रामदेव लड़का पैदा करने वाली दवाई बेचकर समाज में पुरुष प्रधान मानसिकता को बढ़ावा ही दे रहा है। भाजपाई नेताओं व संघियों की ओर से महिलाओं को बच्चा पैदा करने वाली मशीन समझने वाले बयान दिये जा रहे हैं। 
एक वक्ता ने कहा कि सरकार को बी बी सी द्वारा जारी गैंग रेप पर बनायी गई डाॅक्यूमेण्टरी को प्रतिबंधित नहीं करना चाहिए। इस डाॅक्यूमेण्टरी को प्रसारित करना चाहिए ताकि गैंगरेप के अपराधी और उनका केस लड़ने वाले वकीलों की महिला विरोधी सोच जनता के सामने आये। 
सभा में इस बात को पुरजोर तरीके से उठाया गया कि महिलाओं की मुक्ति का रास्ता समाजवाद से होकर ही जाता है। पूंजीवादी समाज में जहां महिलाओं को यौन वस्तु व सस्ते श्रम के रूप में इस्तेमाल किया जाता है वहीं समाजवाद में हर महिला को रोजगार देकर उसे आत्मनिर्भर बनाया जाता है। उसे घरेलू कामों से मुक्ति दिलायी जाती है। रूस व चीन के उदाहरण से समाजवादी समाज में महिलाओं को मिलने वाले अधिकारों की भी चर्चा की गई। 
मजदूर महिलाओं के साथ फैक्टरी में होने वाले शोषण व उत्पीड़न को भी प्रमुखता से उठाया गया। कहा गया कि यदि मजदूर महिलायें लड़ाई में शामिल नहीं होती हैं तो इस लड़ाई के जीतने की सम्भावनायें बहुत कम हो जाती हैं। जुलूस के अंत में ‘जागो फिर एक बार, जागो-जागो रे व महिलायें उठी नहीं तो जुल्म बढ़ता जायेगा’ के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया। 
उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले के लालकुंआ में प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र ने परिवर्तनकामी छात्र संगठन के साथ मिलकर मोटा हल्दू स्थित मदरसन फैक्टरी के गेट पर पर्चा बांटा, जहां पर अधिक संख्या में महिला मजदूर काम करती हैं। इसके अलावा बाजार व रिहायशी इलाकों में भी पर्चा बांटते हुए व्यापक अभियान चलाया गया। 8 मार्च, को अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक महिला दिवस पर सभा की गई तथा जुलूस निकाला गया। 
अंतर्राष्ट्रीय मजदूर महिला दिवस
    गो.ब. पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, पन्तनगर के छोटी मार्केट टा कालौनी के मैदान मंे दिनांक 08 मार्च 2015 को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर महिला दिवस के मौके पर इंकलाबी मजदूर केन्द्र, ठेका मजदूर कल्याण समिति के तत्वाधान में सभा का आयोजन किया गया। सभा में वक्ताओं ने आठ मार्च के इतिहास को याद करते हुए महिलाओं की बराबरी, मुक्ति के संघर्षों को जीवन में उतारने के बारे में अपने विचार रखे। काम के घंटे कम करवाने, समान वेतन, मताधिकार आदि तमाम मांगों को लेकर इतिहास में पूर्वज महिला योद्धाओं ने संघर्ष कर हासिल किया, परन्तु आज व्यवहार में इन्हंे पुनः हासिल करने का और महिला मुक्ति का प्रश्न बना हुआ है। 
    वक्ताओं ने कहा कि मेहनतकश वर्ग की महिलाओं को आज भी शोषण का शिकार होना पड़ रहा है। सम्प्रदायिकता का सबसे बुरा असर मेहनतकश व दलित महिलओं को ही झेलना पड़ता है जिसके उदाहरण गुजरात और मुजफ्फरनगर के दंगे हैं। टीवी, अखबार, मोबाइल आदि तमाम प्रचार माध्यमों द्वारा महिलाओं को वस्तु, उपभोक्ता सामग्री इस्तेमाल करने के रूप में पेश किया जा रहा है जिससे यौन हिंसा, बलात्कार, हत्या की घटनाएं बढ़ रही हैं। प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र की पुष्पा ने कहा कि आज मालिक प्रबन्धन द्वारा कारखानों में महिलाओं का सस्ता श्रम बिना किसी सुविधा के ठेका करण के माध्यम से 12-12 घंटे काम अति अल्प न्यूनतम मजदूरी में कराया जा रहा है। पहले से बने श्रम नियमानुसार कोई सुविधा नहीं दी जा रही है। इन मालिकों पर कार्यवाही के बजाय वर्तमान मोदी सरकार सुधार के नाम पर श्रम कानूनों में संशोधन करके मजदूरांे की जिन्दगी बेहाल कर रही है। वहीं रात में काम कराने पर श्रम कानूनों द्वारा लगी पाबन्दी को खत्म कर महिलाओं का रात की पाली में काम कराने की मालिकों को छूट देकर महिला मजदूरों के साथ धोखा कर सरकार महिला सशक्तीकरण का ढोंग करके बेशर्मी के साथ पंूजीपति वर्ग के साथ खड़ी है। सभा में इन्कलाबी मजदूर केन्द्र की पूर्णिमा ने कहा कि महिला मुक्ति को इतिहास में मजदूर राज समाजवाद में आगे बढ़ाया गया। सोवियत संघ के मजदूर राज्य में घरेलू कार्यांे का सामाजिकरण करके महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक उत्पादन में उनकी भूमिका को बढ़ाया गया। शारीरिक श्रम और मानसिक श्रम का अन्तर समाप्त कर सभी को सम्मानजनक रोजगार दिया गया। शोषण का खात्मा कर महिलाओं को समाज में भूमिका बढ़ाने के काम को आगे बढ़ाया गया। महिलाओं की मुक्ति में बाधक पुरुष प्रधान मानसिकता, उपभोक्तावादी संस्कृति और पंूजीवादी व्यवस्था के खात्मे को, मेहनतकश मजदूर महिलाओं का एकजुट होकर पंूजीवादी व्यवस्था का खात्मा और मजदूर राज/समाजवादी व्यवस्था को स्थापित करने का संकल्प लिया गया।   
    सभा से पहले उक्त संगठनों द्वारा जारी अंर्तराष्ट्रीय मजदूर महिला दिवस पर जारी पर्चा मजदूर बस्तियों में घर-घर बांटा गया। सभा में पुष्पा, मीना, नीता, पूजा, दिनेश, शीला, राजेश, सोना, गीता, राशिद, श्रवण कुमार, दर्जन प्रसाद, दीपक, राजेश, धर्मराज, अभिलाख, सुनीता आदि ने अपने विचार रखे। सभा का संचालन विकास व मनोज ने किया। एवं अध्यक्षता लक्ष्मी पन्त ने की। सभा में महिला मजदूरों के साथ पुरुष ठेका मजदूरों ने शिरकत की।                   पंतनगर संवाददाता  
    उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक महिला दिवस के अवसर पर प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र द्वारा इंकलाबी मजदूर केन्द्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन व क्रांतिकारी लोकअधिकार संगठन के साथ मिलकर सभा की गई। 
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक मजदूर बस्ती शाहबाद डेयरी में प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र व इंकलाबी मजदूर केन्द्र ने मिलकर 8 मार्च के अवसर पर एक सभा आयोजित की जिसमें घरेलू कामगार महिलाओं व फैक्टरियों में काम करने वाली महिलाओं के अलावा पुरुष मजदूर व छात्र-छात्राओं ने भी भागीदारी की। सभा में विभिन्न वक्ताओं ने मुनाफे पर टिकी पूंजीवादी व्यवस्था को महिलाओं की नारकीय स्थिति के लिए जिम्मेदार मानते हुए मजदूर राज समाजवाद के लिए संघर्ष को नारी मुक्ति का मुख्य कार्यभार बताया। वक्ताओं ने कहा कि दिल्ली गैंग रेप के आरोपी ने अपने इन्टरव्यू में महिलाओं के बारे में जो भी कुछ कहा उसमें कुछ भी नया नहीं है, उसने वही बातें की जो उस घटना के तुरन्त बाद दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने की थीं, जो संघी मानसिकता के लोग कहते हैं, जो खाप पंचायतें कहती हैं। हम ऐसे समाज में रह रहे हैं जहां महिलाओं के संबंध में बलात्कारी और समाज के अन्य लोगों के विचार एक ही हैं। इसलिए हमें ऐसे विचारों के खिलाफ लड़ाई लड़नी पड़ेगी व ऐसे विचारों के प्रचार-प्रसार पर रोक लगाने के लिए जनता के बीच क्रांतिकारी विचारधारा को तेजी से ले जाना होगा। इस अवसर पर महिलाओं के साथ समाज में हर स्तर पर होने वाले भेदभाव को प्रदर्शित करते हुए एक पोस्टर प्रदर्शनी भी लगाई गई।  
    उत्तराखण्ड पौड़ी गढ़वाल के कोटद्वार में अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक महिला दिवस के अवसर पर प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन व क्रांतिकारी लोकअधिकार संगठन द्वारा मालवीय उद्यान में विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि पूंजीपति वर्ग से अपने अधिकार छीनने के लिए महिलओं ने संघर्ष किया था। आज पूंजीपति वर्ग महिलाओं को उपभोग की वस्तु बनाने पर तुला हुआ है। जर्मन फासीवादियों की तरह संघी मानसिकता के लोग महिलाओं को शुद्ध नस्ल का बच्चा पैदा करने की मशीन समझते हैं व उन्हें मध्ययुगीन समाज अवस्था में धकेलना चाहते हैं। वक्ताओं ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी ‘बेटी बचाओ-बहू लाओ’ का नारा उछालती है लेकिन बेटियों की सुरक्षा के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाती। उल्टे वह पूंजीपतियों को महिलाओं से रात की पाली में काम करने की छूट देकर महिलाओं के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करते हुए उनकी असुरक्षा कई गुना बढ़ा देती है।      विशेष संवाददाता
हरियाणा, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, बिहार, राजस्थान
वर्ष-18, अंक-06(16-31 मार्च, 2015)
हरियाणा
    गुजरे साल, हरियाणा में सांप्रदायिक हिंसा की तीन घटनाएं हुई, जिनमें से एक मेवात और दो गुड़गांव में हुई। यद्यपि हरियाणा, खाप पंचायतों और जातिगत संघर्षों के लिए जाना जाता है परंतु वह सांप्रदायिक हिंसा से अपेक्षाकृत मुक्त रहा है। राज्य में कुछ महीनों पहले विधानसभा चुनाव हुए थे और उनमें भाजपा को सांप्रदायिक आधार पर धु्रवीकरण से बहुत लाभ मिला था। इसके अतिरिक्त, इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) के मुस्लिम उम्मीदवार, जिन्होंने गुडगांव लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के तीन मुस्लिम-बहुल विधानसभा क्षेत्रों से दो लाख से अधिक वोट पाये थे, भी मुसलमानों को भड़काने में लगे हुए थे।
    दस अप्रैल को गुड़गांव लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र, जो कि राज्य के मेवात इलाके का हिस्सा है, में आईएनएलडी के मुस्लिम समर्थकों और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक संघर्ष हुआ जिसमें वाजिद नामक मुस्लिम युवक गोली लगने से मारा गया। विवाद की शुरूआत, पुनहाना तहसील के नकनपुर के एक मतदान केंद्र के बाहर हुई। भाजपा कार्यकर्ताओं ने बाद में मेवाती मुसलमानों को निशाना बनाया। क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक ने दावा किया कि वाजिद की मृत्यु सांप्रदायिक हिंसा में नहीं हुई।
    सात जून को एक ओवरलोडेड डंपर, जिसे एक मुस्लिम युवक चला रहा था, की चपेट में आकर एक हिंदू युवक दानवीर कुमार मारा गया। यह घटना गुड़गांव से 15 किलोमीटर दूर तारू नामक कस्बे में हुई। इसके बाद सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी। स्थानीय बाजार में एक मुसलमान ने हिंदुओं पर गोलियां चलाईं। स्थानीय निवासियों का दावा है कि कम से कम तीन लोग मारे गये और कई घायल हुये परंतु पुलिस का कहना है कि हिंसा में किसी की मृत्यु नहीं हुई, अपितु सड़क दुर्घटना में जरूर एक व्यक्ति मारा गया। पुलिस उपाधीक्षक सुखबीर सिंह सहित कई पुलिसकर्मी घायल हुए। डंपर के चालक और क्लीनर की जमकर पिटाई की गई और उन्हें गंभीर हालत में एम्स में भर्ती कराया गया। ऐसी अफवाह उड़ा दी गई कि वे दोनों मुस्लिम युवक मर गये हैं। एक मस्जिद को जला दिया गया और कई दुकानों के ताले तोड़कर उन्हें लूट लिया गया। चूंकि विधानसभा चुनाव नजदीक थे इसलिए स्थानीय राजनेताओं ने सांप्रदायिकता की भट्टी को सुलगने दिया। भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री राव इंदरजीत सिंह, 12 जून को निकट के एक गांव में पहुंचे परंतु उन्होंने सिर्फ हिंदू दंगा पीडि़तों से मुलाकात की और उन्हें आश्वासन दिया कि पुलिस उन्हें सुरक्षा देगी। एक दर्जन से अधिक एफआईआर दर्ज की गई। तारू चारों ओर से मेवाती मुस्लिम गांवों से घिरा हुआ है। ये मेवाती मुसलमान अपनी खाप पहचान पर गर्व करते हैं और गोत्र व्यवस्था के अनुरूप वैवाहिक संबंध करते हैं। कुछ साल पहले तक मेवाती मुसलमान दशहरा, होली और दिवाली जमकर मनाया करते थे।
    अगस्त की शुरूआत में, गुड़गांव के बसई गांव में करीब दो दर्जन मुस्लिम परिवार, जो नाई व दर्जी का काम तथा कबाड़ का धंधा करते थे, पर हमले हुए और उन्हें अपना गांव छोड़कर भागना पड़ा। कबाड़ का धंधा करने वालों पर यह आरोप था कि वे आसपास की दुकानों और घरों से सामान चुराते थे। मुख्य आरोपी अमित को गिरफ्तार कर लिया गया। मुसलमानों पर यह आरोप भी लगा कि वे मवेशियों की तस्करी करते हैं व इस कारण भी सांप्रदायिक तनाव में वृद्धि हुई।
दिल्ली
    24 अक्टूबर को पूर्वी दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके में हुई सांप्रदायिक हिंसा में 20 पुलिसकर्मियों सहित 45 लोग घायल हो गये। पांच घायलों को बंदूक की गोलियां लगीं थी। करीब चार घंटे तक दंगाई मुसलमानों पर पत्थर फेकते रहे। जब उन्हें चारों ओर से घेर लिया गया तब मुसलमानों ने पुलिस से मदद की गुहार की परंतु उन्हें जवाब यह मिला कि हमें हस्तक्षेप करने के निर्देश नहीं है। अगले दिन, पुलिस, मुसलमानों के घरों में जबर्दस्ती घुस गई और कई घरों के दरवाजे तोड़ दिये गये। पुलिसकर्मी अनेक मुस्लिम युवकों को उनके घरों से उठाकर ले गये और उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया।
    त्रिलोकपुरी में अवैध शराब बेचने वालों और ड्रग्स का धंधा करने वालों की भरमार है। नशे में चूर लोग- चाहे वे किसी भी धर्म के हों- सड़कों पर हंगामा करते रहते है। दिवाली के कुछ दिन पहले, शराब के नशे में धुत चार लोग एक अस्थायी मंदिर के सामने खड़े होकर आपस में बहस कर रहे थे। इस मंदिर का निर्माण उसी साल हुआ था और उसे माता की चैकी कहा जाता था। इन व्यक्तियों में से एक, जो मुसलमान था, का हाथ गलती से मंदिर के एक हिस्से में लग गया था जो थोड़ा सा धसक गया। ऐसा प्रचार किया गया कि उस मुस्लिम व्यक्ति ने जानबूझकर मंदिर को नुकसान पहुंचाया था। इसके बाद, 23 अक्टूबर को माता की चौकी पर लगे लाउडस्पीकर को लेकर विवाद हुआ। पास की एक मस्जिद में प्रार्थना कर रहे मुसलमानों का कहना था कि लाउडस्पीकर बहुत जोर से बज रहा था और उसके कारण उन्हें परेशानी हो रही थी। जल्दी ही दोनों ओर से पत्थरबाजी शुरू हो गई। तब दिल्ली में चुनाव होने ही वाले थे और स्थानीय सांप्रदायिक नेताओं ने घटना को सांप्रदायिक रंग देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने अफवाहें फैलाकर हिंसा को और बढ़ावा दिया। ऐसा आरोप लगाया गया कि पूर्व भाजपा विधायक सुनील वैद्य ने यह घोषणा की कि माता की चौकी के स्थान पर एक स्थायी मंदिर बनाया जायेगा। वैद्य ने बाद में कहा कि उन्होेंनेे ऐसी घोषणा नहीं की थी। 24 अक्टूबर को  अचानक बहुसंख्यक समुदाय के सैकड़ों लोग, जिसमें से अधिकांश त्रिलोकपुरी के बाहर के थे, ब्लाॅक 20 में घुस गये और घरों पर पत्थर फेकने लगे। उन्होंने गोलियां भी दागीं। इसके बाद वहां बड़ी संख्या में पुलिस और रैपिड एक्शन फोर्स के जवानों को तैनात किया गया।
    इसके अगले दिन, 25 अक्टूबर को, त्रिलोकपुरी के अन्य ब्लाॅकों में हिंसा फैल गई। ब्लाॅक 15, 20 और 27 इस हिंसा से सबसे गंभीर रूप से प्रभावित हुए। दंगे और लूट की शुरूआत चार बजे सुबह हुई, जब लगभग दो दर्जन लोग ब्लाॅक 27 में स्थित एक दुकान, जिसका नाम ‘ए-जेड शाॅप’ था, का दरवाजा तोड़कर उसमें घुस गये और वहां रखे सामान को लूटने के बाद दुकान में आग लगा दी। हिंसा कल्याणपुरी व अन्य आसपास के इलाकों में फैल गई। 24 अक्टूबर की रात को हथियारबंद पुलिसकर्मी ब्लाॅक 27 में पहुंचे और मुसलमानों के कई वाहनों में तोड़फोड़ की। बाद में वे संजय कैंप में गये जहां उन्होंने दंगाइयों को ढूंढने के बहाने कई घरों के दरवाजे तोड़कर उनमें प्रवेश किया। उसी दिन रात को पुलिस ने 14 युवकों को गिरफ्तार किया और थाने में उनकी जमकर पिटाई लगाने के बाद उनके विरुद्ध कई मुकदमे कायम कर दिये। 25 अक्टूबर को देर रात इलाके में धारा 144 लगाई गई। अगर यही कार्यवाही 23 तारीख की रात को कर दी गई होती तो शायद हिंसा इतनी न फैलती।
    भवाना में ताजिया (मोहर्रम के अवसर पर निकाले जाना वाला जुलूस) के खिलाफ लोगों को भड़काने के लिए दो नंवबर को एक महापंचायत बुलाई गई। ईद से ठीक पहले, ‘हिंदू क्रांतिकारी सेना’ नामक संगठन ने एक काल्पनिक ‘गौवध’ का सहारा लेकर भवाना जेजे कालोनी और निकट के भवाना गांव में सांप्रदायिक तनाव फैलाया। पांच अक्टूबर को भवाना गौशाला में एक बैठक के आयोजन की घोषणा करते हुए भड़काऊ पोस्टर जगह-जगह चिपकाए गए थे। बकरा ईद के बाद से ही यह अफवाह फैला दी गई कि उक्त त्योहार पर कई गायों को काटा गया है। इस बहाने हिेदुओं को मुसलमानों के खिलाफ भड़काया गया। हरियाणा और दिल्ली सहित भवाना के आसपास के इलाकों से बड़ी संख्या में उपद्रवी भवाना पहुंच गये।
    महापंचायत का उद्देश्य था भवाना में ताजिये न निकालने देना। जेजे कालोनी के रहवासियों ने हमें बताया कि कालोनी के मुसलमानों ने 28 अक्टूबर को आयोजित एक बैठक, जिसमें दोनों समुदायों के नेता और स्थानीय असिस्टेंट कमिश्नर आॅफ पुलिस मौजूद थे, में पहले ही यह निर्णय ले लिया था कि जुलूस केवल जेजे कालोनी के अंदर निकाला जायेगा। महापंचायत में कई नेताओं ने निहायत भड़काऊ भाषण दिये और मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला। कई वक्ताओं ने कहा कि मुसलमानों का घर पाकिस्तान है और हिंदू, भारत के मूलनिवासी हैं इसलिए जिन मुसलमानों को भारत में रहना है उन्हें हिदुओं की शर्तों पर रहना होगा। खुलेआम हिंसा की धमकियां भी दी गई।
    नूर-ए-इलाही में गाय के एक शव का इस्तेमाल शांति भंग करने के लिए किया गया। नौ नवंबर को रात लगभग नौ बजे इलाके के एक प्रसिद्ध होटल ‘नूर-ए-इलाही चिकन कार्नर’ के बाहर सड़क पर एक बोरी में गाय का शव पाया गया। जल्दी ही वहां भीड़ इकट्ठी हो गई और यह आरोप लगाया गया कि उस दुकान में चोरी-छुपे गाय का मांस परोसा जा रहा है। सौभाग्यवश, साम्प्रदायिक तत्वों के कुत्सित इरादे कामयाब नहीं हो सके क्योंकि स्थानीय रहनवासियों ने जबरदस्त एकता का प्रदर्शन किया। इलाके के हिंदू निवासियों ने जोर देकर कहा कि होटल का मालिक एक शरीफ व मजहबी आदमी है जो किसी भी हालत में अपनी दुकान में गाय का मांस नहीं बिकने देगा।
    एक दिसंबर को सुबह-सुबह दिलशाद गार्डन इलाके में सेंट सेबेस्टियन चर्च में आग लगा दी गई। चर्च के पादरी फाॅदर कोएकल का कहना था कि आग जानबूझकर लगाई गई थी, यह इससे स्पष्ट था कि वहां चारों ओर कैरोसीन की बदबू आ रही थी। परंतु स्थानीय थानेदार ने यह कहा कि आग बिजली के शार्ट सर्किट के कारण लगी है। यह इस तथ्य के बावजूद कि चर्च की बिजली सप्लाई यथावत बनी हुई थी। चर्च की किताबें, बेंचें व वह स्थान जहां से पादरी उपासकों को संबोधित करते हैं, को नष्ट कर दिया गया। फाॅदर कोएकल का कहना था कि चर्च को लगभग डेढ़ करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
जम्मू-कश्मीर
जम्मू-कश्मीर के कटुआ जिले के बासोहिल कस्बे में 28 जुलाई को भड़की सांप्रदायिक हिंसा में करीब एक दर्जन दुकानें जलाकर राख कर दी गई और कई लोगों को चोटें आई। पिछली रात एक नाले में गाय का शव पाये जाने के बाद यह हिंसा भड़की। अफवाहें फैलाई गयीं और हिंदुओं को इकट्ठा कर एक जुलूस निकाला गया। जुलूस में शामिल लोगों ने मुसलमानों की कई दुकानों में आग लगा दी। पत्थरबाजी हुई और वाहनों को नुकसान पहुंचाया गया। हिंसा बानी व महानपुर कस्बों में भी फैल गई।
बिहार
बिहार में जेडीयू व भाजपा का गठबंधन समाप्त होने के बाद, सांप्रदायिक हिंसा में अचानक तेजी आ गई। जून से लेकर दिसंबर 2013 तक 72 छोटी-बड़ी हिंसक घटनायें हुईं। 2014 में राज्य में सांप्रदायिक हिंसा की 51 घटनाएं हुई।
सात अक्टूबर को किशनगंज में एक मंदिर के पास एक जानवर का शव पाए जाने की अफवाह के बाद हिंसा हुई। जलते टायर फेंककर सड़क और रेल यातायात रोकने की कोशिश की गई। दुकानों और कार्यालयों को बंद करवा दिया गया। कस्बे में कर्फ्यू लगाना पड़ा।
राजस्थान
राजस्थान में 2014 में सांप्रदायिक हिंसा की 61 घटनायें हुई जिनमें 13 लोग मारे गये और 116 घायल हुये।
    14 जनवरी को दक्षिणी राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में हुई सांप्रदायिक हिंसा में तीन लोग (राजा खान 20, भंवर सिंह, 50, व दिनेश कुमार 25) मारे गये व छः घायल हो गये। हिंसा तब भड़की जब आरएसएस के कार्यकर्ता शाम साढ़े सात बजे के करीब अपनी एक बैठक से लौट रहे थे और रास्ते में खड़े कुछ मुस्लिम युवकों ने उन पर कोई टिप्पणी की। दोनों धर्मों के समूह निकट स्थित बस स्टेण्ड पर इकट्ठा हो गये जहां दोनों ओर से गोलियां चलाई गईं अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों की लगभग 40 दकानें और कच्चे घर, आगजनी में नष्ट हो गये।    
(अंग्रेजी से अमरीश हरदेनिया द्वारा अनुदित)
(साभारः हिन्दी सेक्युलर पर्सपेक्टिव फरवरी प्रथम 2015)

31 माह बाद मारुति के दो मजदूरों को मिली जमानत
वर्ष-18, अंक-05 (01-15 मार्च, 2015)
    अंततः 31 माह यानी 2 वर्ष 7 माह बाद मारुति के दो मजदूरों को जमानत मिल गयी। इन वर्षों में शासन-प्रशासन और न्यायपालिका ने अपनी पूरी ताकत लगा दी कि वे मजदूरों के हौंसलों को तोड़ दें लेकिन मजदूरों ने हिम्मत नहीं छोड़ी। अंत में न्यायपालिका को मजबूर होकर दो मजदूरों की जमानत अर्जी स्वीकार करनी पड़ी। 
    18 जुलाई 2012 को मारुति के मानेसर प्लाण्ट में हुए मजदूर-मैनेजमेण्ट के संघर्ष में एचआर के एक मैनेजर अविनाश कुमार देव की मौत हो गयी थी। फैक्टरी मैनेजमेण्ट व पुलिस-प्रशासन ने इसका दोष मजदूरों पर डाला और इस केस में 148 मजदूरों को अंदर कर दिया। मजदूरों पर इस तरह से केस दर्ज कर उनको जेल में डालने का मूल मकसद उनकी यूनियन को तोड़ना था जो मार्च 2012 में अस्तित्व में आयी थी। इस यूनियन से मैनेजमेण्ट को काफी खतरा महसूस हो रहा था क्योंकि यह एक लड़ाकू यूनियन के तौर पर उभर कर आयी थी और तीन चरण के आंदोलन के बाद मजदूर और मजबूत होकर उभरे थे। यह बात उस समय और स्पष्ट हो गयी जब जेल में बंद मजदूरों के अतिरिक्त यूनियन के बाकी सभी मजदूरों को कम्पनी से बाहर कर दिया।
    मजदूरों को जेल में डालने के बाद फैक्टरी मैनेजमेण्ट, शासन-प्रशासन व न्यायपालिका का जो घृणित गठजोड़ सामने आया उसने सारी हदें पार कर दीं। भारतीय लोकतंत्र की असलियत को सामने ला दिया। हरियाणा सरकार ने मजदूरों के खिलाफ मुकदमे की पैरवी के लिए 11 लाख पर एक वकील को नियुक्त किया।  मुकदमे की सुनवाई के दौरान फर्जी गवाह पेश किये गये। और उन्हें इस बात की ट्रेनिंग दी गयी कि वे कैसे मजदूरों को उनके वर्णमाला के क्रम के अनुसार पहचान करेंगे। पंजाब व हरियाणा के कोर्ट ने तो मजदूरों को जमानत न देने के जो कारण बताये उसने इस बात को झुठला दिया कि फैसला सबूतों के आधार पर होता है। मजदूरों को जमानत न देने के पीछे जो कारण बताया गया वह यह था कि मारुति के मजदूरों को जमानत देने से भारत की छवि खराब होगी और विदेशी निवेश नहीं होगा। यानी अपने ही देश के नागरिकों के अधिकारों को कुचलकर विदेशी पूंजी निवेश (साम्राज्यवादी पूंजी) की फिक्र न्यायपालिका को ज्यादा थी। (यह न्यायपालिका के उस फैसले से अलग नहीं था जब अफजल गुरू को फांसी देने के पीछे सबूत नहीं बल्कि जनमानस की भावनाओं को ज्यादा महत्वपूर्ण बताया गया था।) मजदूरों को जमानत न देने के इस तर्क ने सरकार के पूंजीवादी चरित्र को साफ उजागर कर दिया था।   
    इस बीच जेल में बंद मजदूरों के हौंसलों को तोड़ने के लिए प्रशासन ने कई तरीके अपनाये। उनको यातनायें दी गयीं। मजदूरों के परिजनों की मौत हो जाने पर उनको पैरोल तक पर नहीं छोड़ा गया। उनको यूनियन से अलग होने को कहा गया। लेकिन वे मजदूरों के जज्बे को कमजोर नहीं कर पाये। बाहर निकाले गये मजदूर भी इस बीच संघर्ष में लगे रहे। कई बार मजदूरों और शासन-प्रशासन के बीच तीखे संघर्ष हुए। 
    जब 23 फरवरी 2015 को सर्वोच्च अदालत ने यह फैसला सुनाया तो इससे पहले 30 जनवरी को हरियाणा सरकार को इस बात के लिए फिर दो सप्ताह दिये गये कि वे मजदूरों के खिलाफ कोई ऐसा सबूत पेश कर दें जिससे वे जमानत याचिका खारिज कर दें लेकिन जब हरियाणा सरकार कोई सबूत पेश नहीं कर सकी तो सर्वोच्च अदालत को मजबूरन सुनील व कंवलजीत जो क्रमशः झज्जर व हिसार जिले से हैं, की जमानत याचिका स्वीकार करनी पड़ी। लेकिन इसके बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने अन्य बंद 145 मजदूरों के लिए कुछ नहीं कहा है।  
    मारुति के मजदूरों के जुझारू संघर्ष ने दिखा दिया है कि मजदूर वर्ग तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्ष को तैयार है। इसी तरह देश के बाकी हिस्से में भी मजदूर संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में मजदूरों को देश के स्तर पर एक ऐसे संगठन की सख्त जरूरत है जो इनके संघर्षों को एक सूत्र में पिरो सकें। और पूंजीवाद और साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष में उन्हें उतार सकें।
                 गुड़गांव संवाददाता 
मारुति मजदूरों की रिहाई व बर्खास्त मजदूरों की बहाली को लेकर मजदूर कन्वेंशन
वर्ष-18, अंक-05 (01-15 मार्च, 2015)
    गुड़गांव में 27 फरवरी को जेल में बंद 147 मारुति मजदूरों की रिहाई व बर्खास्त मजदूरों की बहाली की मांग एवं गुड़गांव-मानेसर-धारूहेडा-बावल क्षेत्र के मजदूरों के समर्थन में मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन की प्रोविजनल कमेटी द्वारा एक मजदूर कन्वेंशन का आयोजन किया गया। 
    इस कन्वेंशन में विभिन्न ट्रेड यूनियनों, मजदूर संगठनों एवं गुड़गांव मानेसर क्षेत्र के विभिन्न कारखानों के मजदूरों ने भागीदारी की। 
    कन्वेंशन के द्वारा 2.5 वर्ष बाद सुप्रीम कोर्ट से जमानत पर रिहा मारुति सुजुकी के एक मजदूर साथी सुनील का फूलमालाओं से स्वागत किया गया और जेल में बंद मारुति सुजुकी मजदूरों के संघर्ष व जज्बे को लाल सलाम पेश करते हुए सभी साथियों की रिहाई एवं सभी बर्खास्त मजदूरों की बहाली तक संघर्ष जारी रखने का संकल्प प्रदर्शित करते हुए जोरदार नारेबाजी की गयी। 
    गौरतलब हो कि मारुति सुजुकी के दो मजदूरों सुनील व कंवलजीत को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गयी। लेकिन रिहाई केवल एक मजदूर की ही संभव हो पायी है। कन्वेंशन का संचालन करते हुए प्रोविजनल कमेटी, मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन के रामनिवास ने कहा कि पूंजीपति वर्ग और उसकी सरकार किस तरह मारुति मजदूरों के खिलाफ हमलावर है इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि मारुति मजदूरों के खिलाफ मुकदमा लड़ने के लिए सरकार की ओर से वकील के.टी.एस. तुलसी को हर तारीख पर 11 लाख रुपये फीस सरकारी खजाने से दी जाती रही है। 
    विभिन्न मजदूर संगठनों, ट्रेड यूनियनों व सामाजिक संगठनों ने मारुति सुजुकी के मजदूरों के संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए अपनी ओर से पुरजोर समर्थन देने का आश्वासन देते हुए मारुति मजदूरों के संघर्ष के साथ अपनी एकजुटता प्रदर्शित की। देश के विभिन्न इलाकों बंगाल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, उत्तराखण्ड से आये मजदूर प्रतिनिधियों ने मारुति मजदूरों के संघर्ष को ऐतिहासिक महत्व का बताते हुए देश के अलग-अलग हिस्सों में मारुति मजदूरों के संघर्ष से प्रेरित होकर मजदूर आंदोलनों के बढ़ने का उल्लेख किया और यह बताया कि आज के दौर में देशी-विदेशी पूंजी के गठजोड़ के खिलाफ संघर्ष के प्रतीक के रूप में मारुति मजदूरों का संघर्ष मजदूर आंदोलन के इतिहास में अपनी जगह बना चुका है जो वर्तमान तथा भावी पीढि़यों को हमेशा प्रेरित करता रहेगा। 
    विभिन्न वक्ताओं ने मारुति के जेल में बंद शेष 145 मजदूरों की रिहाई व बर्खास्त मजदूरों की नौकरी पर पुर्नबहाली की मांग को लेकर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सहित देश के विभिन्न इलाकों में जोरदार प्रदर्शन की बात की। 
    मारुति मजदूर आंदोलन के महत्व को रेखांकित करते हुए इंकलाबी मजदूर केन्द्र के साथी श्यामवीर ने कहा कि मारुति मजदूरों का संघर्ष जब शुरू हुआ तब इसके मांग पत्र में ठेका मजदूरों का नियमितीकरण करने की मांग सबसे ऊपर थी। उन्होंने होंडा के 2005 के संघर्ष व रिको मजदूरों के संघर्ष इन सब को निरंतरता में जोड़ते हुए मजदूरों की व्यापक एकता कायम करते हुए जोरदार प्रतिरोध खड़ा करने की जरूरत पर बल दिया तथा मजदूर वर्ग से अपनी एकता में बाधा बन रही बाधाओें से पार जाने की जरूरत पर बल दिया। 
    जनसंघर्ष मंच हरियाणा की साथी ऊषा ने कहा कि जहां पूूंजीपति वर्ग मजदूरों के खिलाफ हमलावर है वहीं महिलाओं के खिलाफ दिनोंदिन बढ़ती जा रही यौन हिंसा के लिए भी पूंजीपति वर्ग व उसकी उपभोक्तावादी संस्कृति जिम्मेदार हैै। 
    मजदूर सहयोग केन्द्र के साथी अमित ने कहा कि आज ठेका मजदूरों के संघर्ष मजदूर आंदोलन में सर्वोपरि महत्व ग्रहण कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक फैक्टरी में मजदूरों के संघर्ष के सफल होने की संभावनायें आज खत्म होती जा रही हैं इसलिए मजदूरों के इलाकाई संघर्ष खड़े करने की जरूरत बनती है और यूनियन अधिकारों के लिए मजदूरों का संघर्ष महत्वपूर्ण बन जाता है। 
    हिन्दुस्तान मोटर्स बंगाल के आभास मुंशी ने कहा कि आज पूंजीपति वर्ग हर जगह मजदूरों पर हमलावर है इसलिए मजदूरों के व्यापक एकता की जमीन मजबूत हो रही है। उन्होंने बंगाल में विभिन्न कारखानों व जूट मिलों में बंदी के खिलाफ संघर्ष का जिक्र करते हुए बताया कि मजदूरों की व्यापक एकता आज वक्त की जरूरत है। 
    एच.एम.एस. के नेता मारुति सुजुकी पावर ट्रेन के अध्यक्ष सूबे सिंह ने कहा कि मानेसर मारुति के जेल में बंद व बर्खास्त मजदूरों के समर्थन में विभिन्न ट्रेड यूनियनों से 1 मार्च को झंडा दिवस को एक जोरदार व ठोस कार्यवाही की अपील की। 
    मजदूर सहयोग केन्द्र रुद्रपुर के मजदूर नेता मुकुल ने कहा कि आज के दौर में जब मजदूरों पर चौतरफा हमले हो रहे हैं ऐसे में मजदूरों की इलाकाई एकता की जरूरत बहुत अधिक है। उन्होंने कहा कि पुराने तरीकों से आगे जाना है। कानूनी व ट्रेड यूनियन दायरे से बाहर संघर्ष के नए रूपों को तलाशना होगा। 
    ट्रेड यूनियन सोलिडेरिटी सेण्टर से जुड़ी व मुंबई में मजदूरों की संगठनकर्ता साथी दीप्ति ने कहा कि आज मोदी सरकार जहां मजदूरों के श्रम अधिकारों पर हमला बोल रही है वहीं वह किसानों व छोटी संपत्ति वालों के खिलाफ भी हमला बोल रही है। उन्होंने कहा कि यह हमला देशी-विदेशी पूंजी के गठजोड़ का भारत की मजदूर-मेहनतकश जनता पर हमला है। इस हमले का पुरजोर विरोध करना होगा। 
    सी.आई.टी.यू. के प्रदेश उपाध्यक्ष का सतबीर ने कहा कि मारुति मजदूरों के समर्थन में सी.आई.टी.यू. का समर्थन व सहयोग जारी रहेगा। उन्होंने हरियाणा सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों की आलोचना करते हुए कहा कि मजदूर सभी मजदूर विरोधियों को जोरदार सबक सिखायेंगे। 
    ए.आई.यू.टी.यू.सी. के नेता रामकुमार ने कहा कि आज मजदूरों मेहनतकशों के ऊपर हर तरफ से हमला हो रहा है। इसका एकजुट होकर जवाब देना आज बहुत जरूरी है। 
    मारुति सुजुकी कामगार यूनियन (गुड़गांव) के अध्यक्ष राजेश ने कहा कि मजदूरों को अपनी ताकत को पहचानना होगा। उन्होंने संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए नए-नए तौर तरीकों व आधुनिक संचार माध्यमों के इस्तेमाल पर जोर दिया। सभा को मारुति मानेसर यूनियन के अध्यक्ष पवन, मारुति पावर ट्रेन के अध्यक्ष अनिल, सुजुकी मोटर साइकिल के अध्यक्ष अनिल कुमार, श्रमिक संग्राम समिति से सुभाष शर्मा, रिको धारूहेडा के अध्यक्ष राजकुमार, हीरो मोटो कार्प गुड़गांव के अध्यक्ष रवि कुमार, लूमेक्स आटोमोटिव से बलवान, बजाज मोटर के विजेन्द्र, बैक्सटर से मंजीत, छैज्ञ त्ंदब से हरकेश, पी.एन रायटर से भरतलाल आदि ने संबोधित किया। 
    कन्वेंशन का समापन करते हुए जनसंघर्ष मंच की साथी ऊषा ने कहा मजदूर वर्ग एकजुट होकर देर सबेर पूंजी की तानाशाही के खिलाफ खड़ा होगा और सरकार तथा पूंजीपतियों के गठबंधन को ध्वस्त करेगा। उन्होंने कहा कि जनता से ताकतवर संसार में कोई नहीं है। उन्होंने कहा कि आने वाला वक्त मजदूर वर्ग का है।             गुड़गांव संवाददाता
एवरेडी के मजदूरों की हड़ताल समाप्त
वर्ष-18, अंक-05 (01-15 मार्च, 2015)
    हरिद्वार में सिडकुल में स्थित एवरेडी के मजदूरों की हड़ताल 14 फरवरी को 108 मजदूरों को काम पर वापस लेने और 14 मजदूरों की दो माह के भीतर सकारात्मक जांच होने के मौखिक आश्वासन के साथ खत्म हो गयी। इस हड़ताल ने हरिद्वार सिडकुल में एक बार फिर शासन-प्रशासन और पूंजीपति वर्ग के घृणित गठजोड़ को उजागर किया। साथ ही मजदूर वर्ग की एकता को और मजबूत किया। एवरेडी फैक्टरी के आंदोलन के समय एवरेडी व अन्य फैक्टरियों के मजदूर नेताओं व मजदूरों पर पुलिस प्रशासन द्वारा किये गये दमन के विरोध में 20 फरवरी को शिवालिक नगर में 1 दिवसीय धरना दिया गया। 
    एवरेडी इण्डस्ट्रीज इण्डिया लिमिटेड कम्पनी हरिद्वार के सिडकुल में सेक्टर 12 प्लांट 6 में स्थित है। यह प्लाण्ट सन् 2006 में लगा था। इस प्लाण्ट में (डबल A) घडी को सेल और (ट्रिपल A) रिमोट सेल का उत्पादन होता है। पहले इसका उत्पादन 4-5 लाख प्रति माह था जो वर्तमान में बढ़कर 54 लाख प्रतिमाह है। इस प्लाण्ट में 122 मजदूर स्थायी और 150-200 मजदूर ठेके के हैं। इसका मालिक दीपक खेतान है और यह कलकत्ता में रहता है। हरिद्वार के अलावा इसके नोयडा, कलकत्ता, चेन्नई, लखनऊ और मदुरै में भी प्लाण्ट हैं।
    एवरेडी में मजदूरों की हड़ताल की पृष्ठभूमि में मैनेजमेण्ट द्वारा अवैध तरीके से फैक्टरी में लाॅकआउट किया जाना था। इससे पहले मजदूरों व मैनेजमेण्ट के बीच त्रिवार्षिक समझौते को लेकर वार्ता चल रही थी। मैनेजमेण्ट के अडियल रुख की शिकायत मजदूरों ने श्रम विभाग में की थी। परन्तु श्रम विभाग ने मामले को टाल दिया था और आपस में बातचीत करने के लिए कहा। लेकिन मैनेजमेण्ट ने मजदूरों को वार्ता के लिए नहीं बुलाया। इसके बजाय उसने 30 नवम्बर की रात को बिना किसी पूर्व सूचना के फैक्टरी में लाॅकआउट कर दिया और गेट पर पुलिस तैनात करवा दी। अगले दिन जब ए शिफ्ट के मजदूर काम पर पहुंचे तो पुलिस ने मजदूरों को धमकाया और वापस लौटने को कहा। ए शिफ्ट के मजदूरों ने यह सूचना बी और सी शिफ्ट के मजदूरों को दी और वे भी गेट पर आ गये और मैनेजमेण्ट की इस तानाशाही पूर्ण कार्यवाही का विरोध करते हुए नारेबाजी करने लगे। मजदूरों ने इसकी शिकायत जिलाधिकारी व श्रम विभाग में भी की। 1 दिसम्बर को तो मजदूर फैक्टरी गेट पर ही बैठे रहे। और इधर मैनेजमेण्ट ने मजदूरों के खिलाफ 500 मीटर का स्टे आर्डर ले लिया।  2 दिसम्बर से मजदूरों ने मजबूर होकर सहायक श्रमायुक्त कार्यालय पर धरना देना शुरू कर दिया। 3 दिसम्बर को मजदूरों को स्थानीय अखबारों के माध्यम से पता चला कि 14 मजदूरों को निलम्बित कर दिया गया है जिसमें 7 मजदूर प्रतिनिधि और 7 आम मजदूर थे। इस कार्यवाही से मजदूरों के बीच आक्रोश और पैदा हो गया और अब उनकी मुख्य मांग 14 निलम्बित मजदूरों का निलम्बन वापस कराने की बन गयी। 
    डी.एम. ने मजदूरों को 5 दिसम्बर को ताला खुलवाने और वार्ता कराने का आश्वासन दिया। लेकिन इससे पहले ही प्रबंधन ने अखबार में बयान जारी करवाया कि 5 दिसम्बर को फैक्टरी खुलेगी और 108 मजदूर पूर्व की भांति काम पर वापस आयें। लेकिन मजदूरों ने अपने निलम्बित साथियों को काम पर लिये बगैर जाना उचित नहीं समझा। 5 दिसम्बर को एएलसी के समक्ष जो वार्ता हुई उसमें मैनेजमेण्ट 108 मजदूरों को गुड कंडक्ट बाण्ड भरवाकर काम पर लेने और 14 मजदूरों को जांच के बाद लेने के अपने अडियल रुख पर कायम रहा। ए.एल.सी. ने अपना पल्ला छुड़ाते हुए केस हल्द्वानी भेज दिया। 
    मजदूर अपने संघर्ष को जारी रखते हुए रैली, प्रदर्शन, पर्चा वितरण करते रहे और सिडकुल के मजदूरों के बीच समर्थन जुटाते रहे। बाद में उन्होंने अपने परिवारजनों को भी इस संघर्ष में उतारने का फैसला किया। 29 जनवरी को मजदूरों के इस संघर्ष में परिजन भी शामिल हो गये और यहीं से मजदूरों के बीच एक नयी ताकत का संचार हुआ। जब 29 जनवरी को परिजनों ने ए.एल.सी. को घेरकर उससे सवाल जबाव किये तो उससे जबाव देते नहीं बना। परिस्थितियों को देखते हुए ए.डी.एम. ने उसी दिन 4 बजे प्रबंधक और मजदूर पक्ष की वार्ता कराने का तय किया। शाम को प्रबंधक के साथ बातचीत में 108 मजदूरों को काम पर लेेने व 14 निलम्बित मजदूरों को 2 माह के भीतर जांच करके लेने पर सहमति बनी लेकिन इसको लिखित में देने के लिए प्रबंधक ने अगले दिन यानी 30 जनवरी का समय लिया। 30 जनवरी को अपने तय समय पर जब प्रबंधक नहीं पहुंचा तो मजदूर और उनके परिजन आक्रोशित हो गये। तथा वे जुलूस निकालते हुए फैक्टरी गेट पर पहुंचे और फैक्टरी गेट पर धरना देना शुरू कर दिया। पुलिस अधिकारियों ने उन्हें धमकाकर गेट से हटाने की कोशिश की लेकिन उनके तेवर देखकर उनका साहस नहीं हुआ।  
    परिजनों के इस लड़ाई में शामिल होते ही इसे व्यापक समर्थन मिलने लगा। सिडकुल के मजदूरों से आर्थिक व भौतिक समर्थन मिलने लगा। इस लड़ाई को व्यापक होते देख मैनेजमेण्ट व शासन-प्रशासन के हाथ-पांव फूलने लगे। 7 फरवरी को मजदूरों ने सिडकुल में एक जुलूस निकालने का तय किया। उसी दिन सुबह 4-5 बजे पुलिस-प्रशासन ने मजदूरों को धरना स्थल से खदेड़ना शुरू कर दिया। महिलाओं के साथ बदतमीजी की गयी। बच्चों तक को नहीं बख्शा गया। पुलिस ने मैनेजमेण्ट की तहरीर पर 16 मजदूरों के खिलाफ कार्यवाही करते हुए 8 मजदूरों को जेल में डाल दिया। इनमें इमके के कार्यकर्ता राजू भी थे। पुलिस ने इनको विशेषरूप से चिह्नित करते हुए बुरी तरह पीटा। 
    पुलिस की इस कार्यवाही का विरोध करते हुए सिडकुल मजदूर संगठन ने शाम को 3 बजे एक जुलूस निकाला। पुलिस ने इस जुलूस पर भी लाठीचार्ज किया और सिडकुल मजदूर संगठन के अध्यक्ष नवीन चंद्रा को अलग से ले जाकर उस पर माओवादी होने का आरोप लगाकर जमकर पीटा। 11 फरवरी को मजदूरों ने पुलिस की इस कार्यवाही का विरोध करते हुए फिर जुलूस निकाला और पुलिस ने इसमें शामिल 11 नामजद व 150 मजदूरों को गैर नामजद करते हुए मुकदमे दर्ज कर दिये। 
    अंत में 14 फरवरी को मजदूरों ने तय किया कि 108 मजदूरों को काम पर वापस भेजा जाय और संगठन को टूट-फूट से बचाया जाय और 14 मजदूरों की लड़ाई को सिडकुल मजदूर संगठन की तरफ से लड़ा जाये। हालांकि इन 14 मजदूरों की दो माह के भीतर जांच सकारात्मक होने का मौखिक आश्वासन भी दिया गया है। लेकिन इसके लिए मजदूरों को अपनी एकता बनाये रखना बहुत जरूरी है। 
    एवरेडी के इस पूरे आंदोलन में जिस तरह से श्रम विभाग ने शुरू से ही पूंजीपतियों के पक्ष में काम किया वह तो जगजाहिर है ही साथ ही न्यायपालिक ने भी इसमें कम भूमिका नहीं निभाई। मैनेजमेण्ट द्वारा जब फैक्टरी में लाॅकआउट किया गया तब तो उसके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गयी। उल्टे न्यायपालिका ने मजदूरों के खिलाफ 500 मीटर का स्टे आर्डर देकर अपना मजदूर विरोधी चरित्र उजागर कर दिया। उसने बिना मजदूरों का पक्ष सुने यह आदेश दिया जो उसके पूंजीपतियों के पक्ष को दिखाता है। शासन-प्रशासन ने मजदूरों के परिजनों खासकर महिलाओं को विशेषरूप से निशाना बनाकर कार्यवाही की और उन पर फब्तियां कसीं ताकि उनको आंदोलन से बाहर कर ताकत को कमजोर किया जाए। यह उसके महिला विरोधी चरित्र को स्पष्ट ही करता है। ऐसा करने वालों में केवल पुरुष अधिकारी ही नहीं बल्कि महिला अधिकारी भी थी। यह महिला अधिकारी एस.एस.पी. स्वीटी अग्रवाल थी। 
    कुल मिलाकर कहा जाये तो एवरेडी के मजदूरों की हड़ताल बेशक खत्म हो गयी है लेकिन उनके संघर्षों का दौर अभी खत्म नहीं हुआ है। उनको अब अपने अधिकारों को बचाने के लिए और बड़ी एकता की जरूरत है। और इसे बनाने के लिए उन्हें एड़ी चोटी का जोर लगाने की जरूरत है। हरिद्वार संवाददाता
ऐरा मजदूरों की शानदार जीत
18 मजदूर नेताओं की पंतनगर प्लाण्ट में वापसी
वर्ष-18, अंक-04 (16-28 फरवरी, 2015)
रुद्रपुर/ ऐरा मजदूरों का संगठित संघर्ष एवं कुशल नेतृत्व रंग लाया। 3 फरवरी 2015 को समस्त 18 मजदूर नेताओं की सिडकुल पंतनगर प्लाण्ट में वापसी हो गयी है। ज्ञात हो कि 21 जुलाई 2014 को कंपनी प्रबंधकों-शासन-प्रशासन के अन्यायी गठजोड़ ने मजदूरों की नवगठित यूनियन को तोड़ने का घृणित षडयंत्र रचा। 21 जुलाई को यूनियन के ध्वजारोहण कार्यक्रम के दौरान षड्यंत्र के तहत पुलिस द्वारा मजदूरों पर बर्बर लाठीचार्ज किया गया और यूनियन के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महामंत्री समेत 18 मजदूर नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। दिनांक 22 जुलाई 2014 को यूनियन का मार्गदर्शन कर रहे इंकलाबी मजदूर केन्द्र के अध्यक्ष कैलाश भट्ट को पुलिस द्वारा कलेक्ट्रेट परिसर में गिरफ्तार किया गया और सभी 19 लोगों को जेल भेज दिया गया। 
    लगभग माह भर की जेल काटने के पश्चात सभी 19 लोगों को रिहाई मिली। सी.जे.एम. ने मजदूरों एवं इमके अध्यक्ष की जमानत अर्जी खारिज कर दी। जिला जज द्वारा भी मालिकान की भरपूर मदद की और काफी विलम्ब से मजदूरों को जमानत दी गयी वह भी मालिक को सीधे फायदा पहुंचाने वाली शर्तें लगाकर। पहली शर्त थी कि मजदूर घटनास्थल से 20 से 25 मीटर की दूर पर रहेंगे। दूसरी शर्त थी कि इमके अध्यक्ष एवं मजदूर नेताओं को प्रत्येक माह की 25 तारीख को पंतनगर थाने में हाजिरी देनी होगी। पहली शर्त मालिकों केे एकदम अनुरूप थी क्योंकि घटनास्थल कंपनी के मुख्य प्रवेश द्वार से महज 2 या 3 मीटर की दूरी पर स्थित था। इस शर्त के अनुसार यूनियन नेता कंपनी में नहीं जा सकते थे। मालिक भी वही चाहता था। इसके खिलाफ यूनियन हाइकोर्ट में गई और जिला जज के आदेश को मजदूरों के जीवन जीने के अधिकार पर हमला करार दिया। हाईकोर्ट ने मजदूरों की इस दलील को स्वीकार किया और मजदूरों को कंपनी में कार्य पर जाने की छूट दे दी। 
    इसके बाद यूनियन ने अपनी ताकत को समेटा और दूरदर्शिता एवं साहस का परिचय दिया। डी.एम. कोर्ट पर धरना दिया और महिला शक्ति को अपने आंदोलन से जोड़ा। पुनः कम्पनी गेट को जाम करके जिला जज को आइना दिखा दिया। अंततः दिसम्बर माह में डी.एल.सी. की मध्यस्थता में यूनियन एवं कंपनी प्रबंधन के बीच में समझौता सम्पन्न हुआ। समझौते के अनुसार सभी 18 मजदूर नेताओं को 45 दिनों की ट्रेनिंग अवधि में हरिद्वार साइट पर जाना था। 
    कंपनी प्रबंधन यह समझ चुका था कि अब यूनियन नेतृत्व को ताकत के दम पर नहीं दबाया जा सकता है। इसी कारण से 3 फरवरी को कंपनी प्रबंधन ने सभी 18 यूनियन नेताओं को पंतनगर प्लाण्ट में कार्यबहाली करा दी गयी। कंपनी प्रबंधन ने प्रस्ताव रखा है कि फरवरी माह से मजदूरों के वेतन में 1500 रुपये की बढ़ोत्तरी की जायेगी। 
    कुल मिलाकर सिडकुल पंतनगर का यह पहला मामला है कि पुलिसिया दमन, जेल आदि का सामना कर यूनियन द्वारा जीत हासिल की गयी है। यह आंदोलन सिडकुल पंतनगर के मजदूर आंदोलन को विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य एवं साहस का परिचय देने की प्रेरणा देगा।   रुद्रपुर संवाददाता 
ठेका प्रथा समाप्त कर नियमितीकरण के लिए पन्तनगर ठेका मजदूरों की सभा
वर्ष-18, अंक-04 (16-28 फरवरी, 2015)
    गोविन्द बल्लभ पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्व विद्यालय पन्तनगर, जिला ऊधम सिंह नगर, (उत्तराखण्ड) के गांधी पार्क में इन्कलाबी मजदूर केन्द्र तथा ठेका मजदूर कल्याण समिति के तत्वावधान में सभा का आयोजन किया गया। सभा में वक्ताओं ने कहा कि पन्तनगर विवि में पिछले 10-15 वर्षों से लगातार कार्यरत ठेका मजदूरों को आवास, अवकाश, बोनस, बीमा, सुरक्षा उपकरण, ई.एस.आई. चिकित्सा जैसी श्रम कानूनों द्वारा देय जरूरी सुविधाएं तमाम अनुरोध के बावजूद विवि प्रशासन द्वारा न दिये जाने, अनदेखी व उपेक्षा पर रोष व्यक्त किया गया। और तुरन्त उक्त सुविधायें देने हेतु सभा के माध्यम से पुरजोर मांग की गई।
     सभा में वक्ताओं ने कहा कि इतने लम्बे समय से अतिअल्प वेतन, बिना किसी सुविधा के कार्यरत ठेका मजदूरों को श्रम नियमानुसार उक्त सभी सुविधाएं व ठेका प्रथा समाप्त कर नियमित नियमितीकरण कर दिया जाना चाहिए था। परन्तु ऐसा कुछ नहीं किया गया। वर्तमान में उत्तराखण्ड शासनादेश विनियमितीकरण नियमावली 2011 के तहत ऐसे कर्मी जो मई 2003 में ठेका प्रथा लागू होने से पूर्व कार्यरत थे व कार्यरत हैं, के विनियमितीकरण हेतु मात्र शासन को सूचना भेजने के सम्बन्ध में विवि श्रमकल्याण अधिकारी कार्यालय द्वारा विभागों को ऐसे कर्मियों के कार्यवधि को प्रमाणित करते हुए भेजने को निर्देशित किया था परन्तु कई विभागों मे अधिकारियों द्वारा सूचना नहीं दी जा रही है। कर्मचारी विभागों के चक्कर लगा रहे हैं। अधिकारी सूचना देने के बजाय कर्मचारियों को हैरान व परेशान कर रहे हैं, जिससे कर्मचारियों में रोष व्याप्त है। सभा के माध्यम से श्रमकल्याण अधिकारी के आदेश का सम्मान करते हुए विभागों से सूचना भेजने की अपील की गई। और ठेका मजदूरी उन्मूलन अधिनियम 1970 के तहत ठेका प्रथा समाप्त कर सभी मजदूरो को नियमित करने की पूरजोर मांग की गई। जिसके लिए मजदूरों को संगठित होकर संघर्ष करने का आह्वान किया गया। अन्त में हरिद्वार में एवरेडी कारखाना के मजदूर लम्बे समय से गैर कानूनी ताला बन्दी और निष्कासन/निलम्बन के खिलाफ अपनी कार्यबहाली जैसी जायज मांग के लिए शान्तिपूर्ण तरीके से चल रहे आन्दोलन पर समस्या के समाधान के बजाय प्रशासन द्वारा लाठी चार्ज कर मजदूर नेताओं की गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। इस घटना की कड़ी निन्दा की गई और उनकी मांगों के समर्थन मे एकजुटता प्रकट करते हुए मजदूर नेताओं की रिहाई और कार्यबहाली की मांग की गई तथा इस कार्यवही मे सभी दोषियों को सजा देने की मांग की गई। 
    सभा में पन्तनगर इकाई के इन्कलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ता व ठेका मजदूर कल्याण समिति के उपाध्यक्ष सुनील मण्डल, राशिद, मनोज, रमेश, जलधारी, सुरेश, राजेश, सुभाष, अभिलाख, राजू कश्यप, धर्मराज, मुरेशर, सोमवती, प्रमोद, रामाश्रय, पप्पू यादव, सुरेश जोशी, राधेश्याम, दीपक, सुरेन्दर, बबलू आदि ने अपने विचार व्यक्त किये। पन्तनगर संवाददाता
एवरेडी के मजदूरों के दमन के विरोध में श्रमिकों ने निकाला जुलूस
वर्ष-18, अंक-04 (16-28 फरवरी, 2015)
    11 फरवरी को हरिद्वार में सिडकुल मजदूर संगठन ने एवरेडी के मजदूरों के दमन व अन्य मजदूर नेताओं पर लाठीचार्ज किये जाने के विरोध में जुलूस निकाला। इस जुलूस में आईटीसी, एवरेडी, हिन्दुस्तान यूनिलीवर, वीआईपी, राॅकमैन, विप्रो, सत्यम, हीरो मोटो कार्प आदि कंपनियों के सैकड़ों मजदूर शामिल थे।
     पुलिस ने जुलूस में शामिल 11 मजदूर नेताओं व 150 अन्य मजदूरों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर अपने मजदूर विरोधी चरित्र को फिर उजागर कर दिया। इन नामजद श्रमिकों में एवरेडी के नवीन चन्द्रा, सिडकुल मजदूर संगठन के अध्यक्ष अश्विनी कुमार, इमके के महासचिव अमित, राजू प्रचारक, दिनेश रमेश राणा, पूरण सिंह, मुकेश, फयाज, नासिर व युद्धवीर शामिल हैं। 
    कोतवाल महेन्द्र सिंह नेगी ने बताया कि श्रमिकों ने बिना अनुमति जुलूस निकाला इसलिए उन पर बिना अनुमति जुलूस निकालने का मुकदमा कायम किया गया है।              हरिद्वार संवाददाता
उत्तराखण्ड निवास पर विरोध प्रदर्शन
वर्ष-18, अंक-04 (16-28 फरवरी, 2015)
    उत्तराखण्ड राज्य के हरिद्वार में स्थित एवरेडी कम्पनी के आंदोलनकारी मजदूरों व उनके परिजनों पर 7 फरवरी को उत्तराखण्ड पुलिस ने दमन किया। इस दमन के खिलाफ दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के मजदूर-छात्र प्रगतिशील व सामाजिक संगठनों ने दिल्ली स्थित उत्तराखण्ड निवास पर 11 फरवरी को संयुक्त विरोध-प्रदर्शन किया।
    प्रदर्शनकारियों ने चाणक्यपुरी पुलिस स्टेशन से उत्तराखण्ड निवास तक रैली निकाली और मजदूरों पर हुये दमन के खिलाफ नारे लगाये। इससे पहले पुलिस द्वारा इंकलाबी मजदूर केन्द्र को अनुमति न होने पर उत्तराखण्ड निवास पर प्रदर्शन न कर जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने के लिए कहा गया। इस पर इमके ने कहा कि मजदूरों पर दमन उत्तराखण्ड सरकार व पुलिस प्रशासन द्वारा किया गया है। इसलिए हम प्रदर्शन उत्तराखण्ड निवास पर ही करेंगे। उत्तराखण्ड निवास पर बड़ी संख्या में पुलिस तैनात थी। 
    उत्तराखण्ड निवास पर पहुंच कर ‘एवरेडी के मजदूरों का संघर्ष जिन्दाबाद’, ‘मजदूरों पर लगाये गये फर्जी मुकदमे वापस लो’, ‘उत्तराखण्ड सरकार व पुलिस प्रशासन मुर्दाबाद’ नारों से विरोध प्रदर्शन की शुरूआत की। विरोध-प्रदर्शन की शुरूआत करते हुए इमके के साथी ने बताया कि 7 फरवरी को सुबह के समय शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे एवरेडी के मजदूर व परिजनों पर पुलिस प्रशासन ने पूरे दल-बल के साथ हमला किया और 46 मजदूरों को गिरफ्तार कर लिया। इस दमन के खिलाफ मजदूरों व उनके परिजनों व प्रगतिशील संगठनों द्वारा हुए विरोध प्रदर्शन पर बर्बर लाठीचार्ज किया। हम दमन की घोर निन्दा व विरोध प्रकट करते हैं। अन्य वक्ताओं ने भी इस दमन की घोर निन्दा व विरोध प्रकट किया। वक्ताओं ने कहा कि पूरे देश मे मजदूरों के हक-अधिकारों को छीना जा रहा है। और जब मजदूर संगठित होकर इसके खिलाफ संघर्ष करते हैं तो शासन-प्रशासन उस पर दमन कर फर्जी मुकदमे लगाकर जेल में डाल देता है। एवरेडी के मजदूरों पर हुआ दमन इसका ताजा उदाहरण है। 
    प्रदर्शन में मारुति सुजुकी यूनियन के प्रतिनिधि ने बात रखते हुए कहा कि मारुति सुजुकी, मानेसर के मजदूरों पर भी प्रबंधन के इशारे पर हरियाणा सरकार व पुलिस प्रशासन ने दमन किया और फर्जी मुकदमे लगा कर जेल में डाल दिया। ढाई साल से 149 मजदूर फर्जी मुकदमों में जेल में बंद हैं। 
    अन्य वक्ता ने बताया कि जहां एक तरफ मजदूरों पर फर्जी मुकदमे लगा कर जेल में भेजा जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ मेहनतकश जनता के हत्यारों को छोड़ दिया जाता है। शंकर बिगहा जनसंहार के सभी 24 आरोपियों को छोड़ा जाना इसका ताजा उदाहरण है। 
    विरोध प्रदर्शन में उत्तराखण्ड राज्य के मुख्यमंत्री को रेजीडेन्ट कमिश्नर के माध्यम से ज्ञापन भेजा गया जिसमें एवरेडी के मजदूरों के दमन की घोर निंदा करते हुए विरोध प्रकट किया और मांग की गयी कि उत्तराखण्ड पुलिस द्वारा एवरेडी के मजदूरों व इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ता राजू सिंह पर दर्ज फर्जी मुकदमे वापस लिये जाये। मजदूरों व उनके परिजनों पर हुए बर्बर हमले के लिए जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करे, एवरेडी के निलम्बित सभी मजदूरों को तुरंत काम पर वापस लिया जाये। विरोध-प्रदर्शन में इंकलाबी मजदूर केन्द्र, मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन, मजदूर एकता केन्द्र, प्रोगेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट आॅफ इण्डिया, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र व प्रतिध्वनि के प्रतिनिधियों ने बात रखी। विरोध प्रदर्शन में इंकलाबी मजदूर केन्द्र के फरीदाबाद गुड़गांव और दिल्ली से आये सदस्यों व कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की। 
    विरोध-प्रदर्शन के अंत में ‘लड़ना है भाई ये तो लम्बी लड़ाई है’ गीत व इस संकल्प के साथ किया गया कि जब-जब मजदूरों का दमन होगा वे उसका जोरदार प्रतिरोध करेंगे।        दिल्ली संवाददाता
उत्तराखण्ड सरकार ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उड़ाया मजाक
पोस्टर लगाने पर इमके-पछास के कार्यकर्ता किये गिरफ्तार
वर्ष-18, अंक-03(01-15 फरवरी, 2015)
    रुद्रपुर/ अमरीकी राष्ट्रपति को भारत के गणतंत्र दिवस का मुख्य अतिथि बनाये जाने का विरोध उत्तराखण्ड सरकार को रास नहीं आया। रुद्रपुर के प्रशासन ने 21 जनवरी को इंकलाबी मजदूर केन्द्र के अध्यक्ष कैलाश भट्ट व परिवर्तनकामी छात्र संगठन के केन्द्रीय कार्यकारिणी सदस्य महेन्द्र को गैर कानूनी ढंग से गिरफ्तार किया। 
    अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनाये जाने व मोदी सरकार के फैसले का विरोध करते हुए इंकलाबी मजदूर केन्द्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र, ठेका मजदूर कल्याण समिति, सिडकुल जागरूक मजदूर एसोसिएशन, भेल मजदूर ट्रेड यूनियन, द्वारा केन्द्रीय स्तर पर ओबामा को गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनाने का विरोध करते हुए पर्चा एवं पोस्टर जारी किया। देश की मजदूर मेहनतकश जनता से ‘‘दुनिया की सबसे बड़ी हत्यारी हुकूमत के मुखिया ओबामा के गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि बनाने का विरोध करो व देशी-विदेशी पूंजी के गठजोड़ को ध्वस्त करो’’ का आह्वान किया गया। 
    कुमाऊं स्तर पर रुद्रपुर में अन्य वामपंथी संगठनों के साथ 24 जनवरी को अम्बेडकर पार्क में ओबामा के विरोध में सभी का कार्यक्रम तय किया गया। विरोध प्रदर्शन की तैयारियों के तहत रुद्रपुर में 21 जनवरी को शहर में पोस्टर चिपकाये गये। 21 जनवरी की रात करीब 9ः30 बजे रुद्रपुर कोतवाली से इंकलाबी मजदूर केन्द्र के अध्यक्ष कैलाश भट्ट के पास फोन आया और कार्यक्रम सम्बन्धी बात करने हेतु बुलाया गया। जब कैलाश भट्ट एक अन्य साथी परिवर्तनकामी छात्र संगठन के महेन्द्र के साथ कोतवाली गये तो कोतवाली पुलिस द्वारा दोनोें को बिठा दिया व पूछताछ करने लगे और पोस्टर बचे होने की खबर पर पुलिस द्वारा दोनों को गाड़ी में बिठाकर कैलाश के कमरे पर पहुंची व कमरे में तलाशी ली व चिपकाने के लिए रखे पोस्टरों को उठाकर ले गये। 21 जनवरी की रात व 22 जनवरी की रात को पूरे दिन भर दोनों को कोतवाली में गैर कानूनी ढंग से बिठाये रखा। दोपहर में एस.डी.एम. रुद्रपुर से इस बावत बात की तो उन्होंने इस बारे में किसी तरह की जानकारी से इंकार कर दिया। पूरे दिन भर रुद्रपुर कोतवाली पुलिस दोनों लोगों पर कौन सी धारा लगायी जाए इस पर विचार करती रही। करीब 3ः30 बजे एक बार पुलिस ने कहा कि इन दोनों को 1 घंटे में एस.डी.एम. के सामने पेश किया जायगा लेकिन पेश नहीं किया। 4 बजे के आस-पास सरकारी वकील को बुलाकर भी इस बावत बात की लेकिन पुलिस को धारा नहीं मिली जिससे वे इन दोनों साथियों को ढंग से ‘सबक’ सिखा सकें। 4ः30 बजे अचानक धारा ढूंढने में लगे पुलिसकर्मियों को धारा मिल गयी और उन्होंने एलान कर दिया कि अब दोनों को कल यानी 23 जनवरी को सी.जी.एम. के यहां पेश करेंगे। और रात भी दोनों कोतवाली में बैठे रहेंगे। जबकि मीडिया कर्मियों से पुलिस द्वारा दोनों का चालान काट कर जेल भेज दिये जाने की बात की थी। अब इंकलाबी मजदूर केन्द्र की ओर से शाम को पुलिस द्वारा कैलाश भट्ट व महेन्द्र को बगैर किसी कारण थाने में गिरफ्तार कर बैठाये रखने की विज्ञप्ति जारी कर दी गयी व अन्य जनवादी संगठनों द्वारा भी अलग-अलग स्थानों पर पुलिस के उच्चाधिकारियों से फोन पर बात की गयी तो रुद्रपुर पुलिस पुनः सक्रिय हुई और दोनों साथियों पर पुलिस ने सम्पत्ति विरूपण 2003 का मुकदमा दर्ज किया। अब पुलिस ने  दोनों को थाने से ही जमानत देने की बात की और दो साथियों के लिए 2-2 लोग कुल चार लोगों की जमानत मांगी। जमानत हेतु लोेग पहुंचे तो पुलिस की पुरुषवादी मानसिकता के दर्शन भी हो गये जब पुलिस द्वारा महिलाओं की जमानत पर छोड़ने से मना कर दिया। जब इसका प्रतिवाद किया गया तो सी.ओ. महोदय तक इसी सोच पर खडे थे। अंत में उन्होंने एक व्यक्ति की जमानत पर दो लोगों में एक पुरुष व एक महिला के कागज लगाने पर सहमति दी और 22 जनवरी की रात करीब 9ः30 पर दोनों साथियों को कोतवाली से ही जमानत पर छुड़ाकर लाया गया। 
    23 जनवरी की शाम करीब 6ः30 बजे जब कार्यकर्ता सिडकुल के मजदूरों के बीच सिडकुल ढाल पर ओबामा के विरोध में पर्चे वितरित कर रहे थे तब सिडकुल चौकी के पुलिसकर्मियों द्वारा परिवर्तनकामी छात्र संगठन के साथी महेन्द्र के साथ मारपीट की और इंकलाबी मजदूर केन्द्र के अध्यक्ष कैलाश भट्ट से पर्चे छीन लिये। 
    इस तरह ओबामा को गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनाये जाने के विरोध के स्वर को दबाने में रुद्रपुर पुलिस सक्रिय रही और वह यह सब अपने राजनीतिक आकाओं को देखकर ही कर रही थी क्योंकि आज देश की सभी चुनावबाज राजनीतिक पार्टियां साम्राज्यवाद के साथ ज्यादा घनिष्ठता से सट रही हैं। इसमें देश के पूंजीपतियों का हित हुआ है। इस कारण सभी सरकारी महकमे पुलिस सहित ओबामा की आगवानी करने में लगा है। 
    24 जनवरी को अम्बेडकर पार्क में ओबामा के विरोध में तय सभा 11 बजे से शुरू हुई सभा के पश्चात शहर में जुलूस निकाला गया। सभा में वक्ताओं ने कहा कि मोदी सरकार देश के सभी शहीदों की शहादत का अपमान कर रही है जिन्होंने आजादी के संघर्ष में अपनी जान की आहुति दी है। शहीदोें ने साम्राज्यवादी ताकतों से लड़कर आजादी हासिल की और इसी के अनुरूप बाद में देश में अपना संविधान रचा और अपनी स्वतंत्रता, सम्प्रभुता को सहेजा लेकिन आज मोदी सरकार व आर.एस.एस. साम्राज्यवादियों से अपनी पुरानी ‘दोस्ती’ को पुनः लागू कर देश की सम्प्रभुता को अमेरिका के सामने गिरवी रख रही है। साम्राज्यवादियों द्वारा अपने लूट को बढ़ाने के लिए दो विश्व युद्धों में तबाही मचाई और उसके पश्चात अब तक पूरी दुनिया के गरीब देशों की सम्प्रभुता को कुचलने व वहां पर अपने हिसाब से चीजें लागू करवाने के प्रयास में करोड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया है और अमरीका साम्राज्यादियों का सरगना बना हुआ है। इराक, अफगानिस्तान को तहस-नहस करने वाला साम्राज्यवादी अमरीका के मुखिया बराक ओबामा हमारे देश की मेहनतकश जनता का मेहमान नहीं हो सकता। देश की मजदूर-मेहनतकश जनता ओबामा सहित सभी साम्राज्यवादियों का विरोध करती है और देश के सहकर्मियों देशी पूंजीपतियों व उसकी राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ संघर्ष को आगे बढ़ायेगी। विरोध प्रदर्शन में इ.म.के., पछास, क्रालोस, प्रमएके, एक्टू, सीपीआईएमएल, सीपीआई, सीटू, ठेका मजदूर कल्याण समिति के कार्यकर्ता मौजूद रहे। 
                रुद्रपुर संवाददाता 
पुलिस ने पोस्टर फाड़े
वर्ष-18, अंक-03(01-15 फरवरी, 2015)
    काशीपुर शहर में ओबामा को गणतंत्र दिवस का मुख्य अतिथि बनाये जाने के विरोध में लगाये गये पोस्टरों को पुलिस ने एक-एक कर फाड़ डाला। पुलिस की इस कार्यवाही से समझा जा सकता है कि वे किस हद तक गिर गये हैं। शहर में चिपकने वाले अश्लील फिल्मी पोस्टरों व महिलाओं के अभद्र तरीके से पेश करने वाले विज्ञापनों पर इन्हें कोई परेशानी नहीं होती है परन्तु भारत की स्वतंत्रता, सम्प्रभुता के खतरे पर अमेरिकी साम्राज्यवाद से मंडराते खतरे को व्यक्त करने वाले पोस्टर इनकी आंखों में चुभ जाते हैं। काशीपुर संवाददाता
अमेरिकी साम्राज्यवाद का पुतला दहन
वर्ष-18, अंक-03(01-15 फरवरी, 2015)
हरिद्वार/ ओबामा की भारत यात्रा के खिलाफ 25 जनवरी को सभा व अमेरिकी साम्राज्यवाद का पुतला दहन किया गया। पुलिस प्रशासन द्वारा सभा को शुरू में ही रोक दिया गया। पुलिस-प्रशासन की यह कार्यवाही जनता के बोलने की स्वतंत्रता के खिलाफ हैं। 25 जनवरी के कार्यक्रम को सफल बनाने और ओबामा की गणतंत्र दिवस पर भारत यात्रा का भारत की मेहनतकश जनता पर दूरगामी असर को बताते हुए जन सम्पर्क अभियान चलाया गया। शहर में परचे वितरित किये गये। पोस्टर चिपकाये गये। 
    25 जनवरी के विरोध कार्यक्रम में इंकलाबी मजदूर केन्द्र सहित परिवर्तनकामी छात्र संगठन, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र, भेल मजदूर ट्रेड यूनियन, सीपीआई व कई अन्य मजदूर नेताओं ने शिरकत की। वक्ताओं ने अमेरिकी साम्राज्यवाद के क्रूर चेहरे का उद्घाटन किया और मोदी सहित भारतीय शासकों के साम्राज्यवाद परस्त चरित्र का भी खुलासा किया। 
    पुतला दहन से पहले साम्राज्यवाद व पूंजीवाद विरोधी जोरदार नारों के साथ एक जुलूस निकाला गया। इस जुलूस में हरिद्वार के अलावा देहरादून, कोटद्वार से विभिन्न जनसंगठनों के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की।                                   हरिद्वार संवाददाता
झांकी के माध्यम से किया ओबामा का विरोध
वर्ष-18, अंक-03(01-15 फरवरी, 2015)
    बरेली/ 26 जनवरी को प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच ने भारत में ओबामा यात्रा के विरोध में एक झांकी का आयोजन किया व सभाएं कीं। मंच ने झांकी का आरम्भ बरेली काॅलेज गेट से किया और अय्यूब खां चैराहा, इन्दिरा मार्केट होते हुए घण्टाघर पर झांकी का समापन किया। झांकी में क्रांतिकारी गीत व अमरीकी राष्ट्रपति के खिलाफ व्यंग गीत भी गाये गये। 
    झांकी में सभा को सम्बोधित करते हुए मंच के साथी विपिन ने कहा कि अमेरिकी साम्राज्यवादी देश का राष्ट्रपति है जो विश्व में अशांति फैला रहा है जो तमाम कमजोर मुल्कों में दमन करता है। जो निर्दोष लोगों की हत्यायें करवाता है और वहां की प्राकृतिक सम्पदाओं को लूटता है। 
    मंच के साथी शुभम ने कहा कि ओबामा सारे विश्व में आतंकवाद के लिए जिम्मेदार है जो खुद तमाम मुल्कों में अलगाववादी संगठनों को हथियार सप्लाई करता है। जो विश्व शांति की बात करता है। ऐसे हत्यारे को नहीं बुलाना चाहिए। 
    साथी फैसल ने कहा कि मोदी साहब ने ओबामा को हमारे गणतंत्र दिवस पर बुलाकर हमारे तमाम क्रांतिकारी शहीदों का अपमान किया है। जिन्होंने हमें लूटा हमारा शोषण किया आज उन्हीं साम्राज्यवादी मुल्क के राष्ट्रपति को हमारी सरकार दावत दे रही है। तमाम विदेशी कम्पनियों को खुला न्यौता दे रही है। हमारी सरकार जो हमारे देश को लूटेगी तथा आम आदमी का श्रम और सस्ते में लेकर उनका शोषण करेगी। तो ऐसी सरकार की नीतियों का हमें विरोध करना चाहिए। झांकी व सभाओं में इंकलाबी मजदूर केन्द्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र व पछास के निम्न साथी मौजूद रहे कंचन, विपिन, अर्पित, सुरभि, सुमन, सतीश बाबू, चन्द्र पाल सिंह, शोभा आदि।                  बरेली संवाददाता
एवरेडी मजदूरों का संघर्ष जारी है.....
वर्ष-18, अंक-03(01-15 फरवरी, 2015)
    एवरेडी इण्डिया इण्डस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी हरिद्वार सेक्टर-12 प्लाट न. 6 में स्थित है। इस कम्पनी में 122 स्थाई मजदूर हैं। फैक्टरी प्रबंधन ने 1 दिसम्बर 2014 को फैक्टरी में गैर कानूनी तालाबंदी कर 144 मजदूरों को निलम्बन कर दिया था। और तभी से मजदूर अपने निलम्बित साथियों का निलम्बन समाप्त कराने के लिए संघर्ष के विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसी बीच मजदूरों और प्रबंधन के बीच द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय वार्ता हुई लेकिन हर बार वार्ता बेनतीजा रही। प्रबंधक का हर वार्ता में एक ही जवाब रहा कि 14 मजदूरों की घरेलू जांच होगी और 108 मजदूर काम पर आ सकते हैं। और वह भी उनकी शर्तों पर यानि अच्छे आचरण का बांड भरकर। 
    लगभग सभी कंपनियों में मजदूरों से एक से नियमों पर काम लिया जाता है। फैक्टरी प्रबंधक अपने द्वारा बनाये गये नियमों पर मजदूरों से काम कराने के लिए बाध्य करते हैं। फैक्टरी में मालिकों द्वारा बनाये नियमों का मजदूरों से पालन कराने के लिए शासन-प्रशासन मालिकों को आश्वासन करते हैं। 
    एवरेडी के प्रबंधक को भी मजदूरों के संघर्ष को कमजोर करने में शासन-प्रशासन का संरक्षण मिल रहा है। प्रबंधक और मजदूरों की दो-तीन वार्ता हरिद्वार श्रम विभाग के अधिकारी के सम्मुख हुई। वार्ता का कोई नतीजा नहीं निकलते देख हरिद्वार के श्रम अधिकारी ने अपने ऊपर से बोझ उतार, हल्द्वानी श्रम विभाग को स्थानातंरित कर दिया। क्योंकि सभी मजदूर श्रम विभाग के गेट के बाहर धरने पर बैठे थे। अगर वहीं पर वार्ता न चलती तो लेबर अधिकारी पर मजदूरों का दबाव पड़ता। और इस दबाव में मजदूरों की मांगों को मानने के लिए बाध्य होना पड़ता। मालिकों के साथ आये दिन सांठ-गांठ में लिप्त रहने वालों से मजदूर क्या उम्मीद कर सकते हैं? ये नाम के श्रम अधिकारी हकीकत में सेवा ‘पूंजी’ की करते हैं। 
    मजदूरों ने जब वार्ताओं के दौर बंद हो गये, अपनी सामान्य गति में श्रम अधिकारी से जानकारी करते तब मजदूरों को यह जबाव मिलता था कि उनका मामला अदालत में चला गया है। इस तरह से लेबर अधिकारी और उपजिलाधिकारी द्वारा भी यही कहा गया। ऐसा इन अधिकारियों द्वारा इसलिए कहा गया क्योंकि आम तौर पर कोई भी केस अदालत में जाने से अदालत के बाहर संघर्ष का कोई फायदा नहीं रहता। इस तरह से इन पूंजीपतियों के दलालों ने मजदूरों की लड़ाई को कमजोर करने के लिए भ्रामक जानकारी दी। लेकिन मजदूरों ने अपने आप को एकजुट बनाये रखा है। 
    मजदूर इन अधिकारियों की चाल को समझकर अपने आप को संघर्ष के लिए तैयार कर रहे हैं। प्रशासन और प्रबंधक ने मजदूरों में टूट-फूट पैदा करने की पूरी कोशिश की। जिसमें प्रबंधन ने अपने कुछ पालतू मजदूरों द्वारा लड़ाई को कमजोर करने के लिए अन्य मजदूरों में जो संघर्ष के पक्ष में थे, उनको रोकने के लिए फूट पैदा करना शुरू कर दी। जिसका परिणाम यह हुआ कि जो मजदूरों का बहुमत लड़ाई के पक्ष में था, को रोका और कहा कि मजदूरों को प्रबंधक के खिलाफ समाज में प्रचार नहीं करना चाहिए। 
    वे कहते हैं कि ‘प्रबंधक हमारा दुश्मन नहीं है।हमें शांति से बैठे रहना चाहिए। प्रबंधक हमारी बात जरूर मानेगा’ आदि आदि बातें कही जा रही। इन ‘विरोधी’ मजदूरों के प्र्रबंधक के खिलाफ प्रचार न करने के लिए इसलिए कहा। क्योंकि संघर्षशील मजदूर प्रबंधक की घृणित चालों का समाज में उजागर कर रहे हैं। संघर्ष के पक्षधर मजदूरों ने इस बार प्रबंधक द्वारा गैर कानूनी तरीके से ठेका मजदूरों से उत्पादन कराया जा रहा था कि बात का जोर दूसरे तरीके से उठाया। इन ठेका मजदूरों द्वारा बनाया गया उत्पाद खराब गुणवत्ता का है। और ठेका मजदूरों से गैर कानूनी तरीके से काम कराये जाने की शिकायत भी श्रम अधिकारी से हुयी थी। इसके बावजूद भी ठेका मजदूरों से काम कराया जा रहा था। संघर्ष के पक्षधर मजदूरों ने फैक्टरी प्रबंधक की इसी कार्यवाही को उजागर करने के लिए जनता में पर्चों के माध्यम से पोल-पट्टी खोलने की योजना बनाई। प्रबंधक ने अपने पालतू मजदूरों से इस प्रचार की कार्यवाही को इसीलिए रुकवाया क्योंकि इस कम्पनी का उत्पाद बदनाम होता और इसके उत्पाद की बाजार में मांग घटती।
    इन विरोधी मजदूरों ने अन्य मजदूरों से एक सप्ताह तक प्रचार की कार्यवाही बंद कराने का माहौल बनाया। जिसमें ये विरोधी कामयाब भी हो गये। और इन्होंने कहा कि प्रबंधक से उनकी बात चल रही है। वह इस सप्ताह कुछ न कुछ जरूर करेगा। इस तरह एक सप्ताह प्रचार न करने की सहमति बनने के बाद जब एक सप्ताह की अवधि पूरी हुई तो प्रबंधक की ओर से कोई वार्ता नहीं हुई। फिर मजदूरों ने अपना प्रचार शुरू कर दिया। उसके बाद उपजिलाधिकारी ने वार्ता के लिए प्रबंधक को बुलाया लेकिन वार्ता बेनतीजा रही। 
    इसके बाद मजदूरों में से पांच नये मजदूर प्रबंधक से वार्ता के लिए गये। इनको भी अपने आप पर भरोसा था कि प्रबंधक उनकी बात मान लेगा। लेकिन इस बार भी कोई बात नहीं बनी। अब मजदूर ने प्रबंधक और प्रशासन की चाल समझकर कि प्रबंधक उनकी लड़ाई लम्बी खींच कर तोड़ना चाहता है, मजदूरों ने अपनी लड़ाई में अपने परिवारवालों को बुलाने का फैसला किया। मजदूरों के इस कदम ने प्रबंधक के अंदर बैचेनी पैदा कर दी है। अब प्रबंधक कमजोर मजदूरों को फोन पर डरा-धमकाकर काम पर आने का दबाव बना रहा है। लेकिन मजदूर प्रबंधक की सभी चाल और हठधर्मिता के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखे हुए हैं। निश्चित रूप से मजदूरों का संघर्ष करने का हौंसला तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद उन्हें जीत दिलायेगा। हरिद्वार संवाददाता
एक भावभीनी श्रद्धांजलिः कामरेड दानवीर का शानदार जीवन
वर्ष-18, अंक-02(016-31 जनवरी, 2015)
कामरेड दानवीर नहीं रहे। यह विश्वास नहीं होता, लेकिन यही सच्चाई है। 7-8 जनवरी की मध्यवर्ती रात्रि को बिहारीपुर पुलिस चैकी से आया वह मनहूस फोन जिसने उनकी मौत की सूचना दी, उनके सभी साथियों को स्तब्ध कर दिया।
कामरेड दानवीर का जीवन मजदूर आंदोलन को क्रांतिकारी आधार पर संगठित करने वाले समर्पित नेता का एक शानदार जीवन था। सामाजिक सरोकार उनके अंदर कूट-कूट कर भरा था। मजदूरों और उत्पीडि़त लोगों की समस्याओं को हल करने में वे जी-जान से लगे रहते थे। इसमें उनको अपने स्वास्थ्य की भी परवाह नहीं रहती थी। वे अपने जीवन के आखिरी दिन तक इस काम में अनथक लगे रहे।
उनका क्रांतिकारी जीवन लगभग दो दशक का था। वे 1995 में क्रांतिकारी छात्र राजनीति में शामिल हुए थे। वे परिवर्तनकामी छात्र संगठन के 1996 में हुए स्थापना सम्मेलन में शरीक थे और 2002 तक उसमें बढ़ चढ़कर हिस्सेदारी की। इसी दौरान 1999 में बरेली काॅलेज में फीस वृद्धि के विरुद्ध आंदोलन के दौरान उन्होंने जेल यात्रा की। 2002 में उन्होंने अपना समूचा जीवन इंकलाबी राजनीति के लिए समर्पित कर दिया और मजदूर वर्ग को क्रांतिकारी राजनीति के आधार पर संगठित करने के उद्देश्य से अपने घर-परिवार को त्याग कर वे उसमें जी जान से जुट गये।
2006 तक वे क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के झण्डे तले मजदूर वर्ग को संगठित करने के काम में लगे रहे। 2006 से इंकलाबी मजदूर केन्द्र की स्थापना होने के बाद वे इसके केन्द्रीय कमेटी और केन्द्रीय परिषद के सदस्य के बतौर कुमाऊं (उत्तराखण्ड) के औद्योगिक क्षेत्रों में मजदूर वर्ग के संघर्षों में जी जान से लग गये। मजदूर वर्ग के संघर्षों के दौरान इनको जेल जाना पड़ा। उन पर गैंगस्टर एक्ट सहित कई संगीन धाराएं लगायी गयीं। उन्हें पुलिस प्रताडना का शिकार बनाया गया।
क्रांतिकारी राजनीति के आधार पर मजदूर वर्ग को संगठित करने के उनके दृढ़ संकल्प को न तो पुलिस दमन और यातना रोक सकी और न ही संगीन धाराओं के तहत कई-कई बार की जेल यात्रायें। जेल से बाहर आते ही वे पूरे जोश-खरोश के साथ मजदूर संघर्षों में लग जाते थे।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण उनके जीवन का आखिरी दिन का उनका काम है। 7 जनवरी को वे सिडकुल पंतनगर की मित्तर फास्टनर्स कम्पनी के मजदूरों की मांगों के संदर्भ में उनके साथ लगे रहे। उसके बाद वे उनके साथ मीटिंग करने का उनको समय दे चुके थे। शाम को 7 बजे इंकलाबी मजदूर केन्द्र की संचालन समिति की बैठक आहूत की। उस बैठक में न आने की सूचना उन्होंने 7 बजे शाम को 5-7 मिनट पहले की। इसके बाद वह मनहूस फोन आया जिसमें उनकी मौत की सूचना दी गयी थी।
आखिर इतने शानदार संघर्ष भरे जीवन का अंत ऐसे कैसे हो गया? यह सवाल उनके सभी नजदीकी साथियों, मित्रों और शुभचिंतकों को परेशान कर रहा है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक उनकी मौत जहर की वजह से हुई है। ज्यादा आशंका आत्महत्या की है।
इसका कारण एक यह ही हो सकता है कि हर क्रांतिकारी कार्यकर्ता को तनावों में जीवन जीना पड़ता है। जो अधिक जिम्मेदार होते हैं, उनको और ज्यादा तनाव झेलने पड़ते हैं। इसमें निजी जिंदगी के भी तनाव और जुड़ जाते हैं। अगर कोई क्रांतिकारी कार्यकर्ता अपने कामों के दौरान इन तनावों से गुजरता है तो अकेले-अकेले सोचकर इसका समाधान नहीं हो सकतां यह सामूहिक तौर पर ही हो सकता है। अपनी पीड़ा व्यथा को अपने साथियों के साथ बांटकर ही उसके समाधान की ओर बढ़ा जा सकता है।
कामरेड दानवीर अपनी पीड़ाओं-व्यथाओं को अपने अंदर ही रखे रहे और उसमें वे घुटते रहे। वे खुद ही इन्हेें झेलते रहे और किसी को भी अपनी परेशानी का एहसास नहीं होने दिया।
यह ऐसी कमी है कि शानदार से शानदार संघर्षशील व्यक्ति को अंदर से कमजोर कर देती है।
अगर हम चाहते हैं कि भविष्य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो तो सभी संघर्षशील कार्यकर्ताओं, नेताओं को अपनी पीड़ाओं, व्यथाओं को अपने साथियों के साथ साझा करके उनका सामूहिक समाधान निकालने की ओर बढ़ना होगा। यही एकमात्र सही रास्ता हो सकता है।
कामरेड दानवीर की मृत्यु एक अपूरणनीय क्षति है। उनकी कर्मठता, समर्पण भाव और जी जान से किसी भी काम में लगने की उनकी भावना हमेशा उनको उन सभी के दिलों में रखेगी जो उनके सम्पर्क में रहा है। उनके ये गुण नये-पुराने साथियों के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत का काम करते रहेेंगे।
कामरेड दानवीर संगठन के अनुशासित योद्धा थे और जीवन के आखिरी क्षण तक संगठन के साथ दृढ़ता से खड़े रहे।
कुछ क्रांतिकारी आंदोलन से पलायन किये हुए भगोड़े यह कुत्सा प्रचार कर रहे हैं कि कामरेड दानवीर अपना संगठन छोड़ चुके थे। यह सरासर बकवास वही कर सकते हैं जो अपने भगोड़ेपन को, अपनी एनजीओ गतिविधियों को, अपने को बेच देने को, अपने को शासक वर्ग का पालतू बनाने को जायज ठहराना चाहते हैं। ऐसे लोग तलछट हैं और कामरेड दानवीर के पैरों की धूल के बराबर भी नहीं हैं। कहावत है कि बाज कभी-कभी नीचे उतरकर मुर्गी की छलांग तक आ सकता है लेकिन कभी मुर्गी बाज की ऊंचाई तक नहीं उड़ सकती। कामरेड दानवीर का जीवन एक बाज का जीवन था और ऐसा कुत्सा प्रचार करने वाले मुर्गी का और वह भी डरपोक चर्बीली मुर्गी का जीवन जी रहे हैं। इन भगोड़े कायर लोगों का यही काम है कि वे क्रांतिकारी आंदोलन को कलंकित करें।

विशेष संवाददाता
का.दानवीर
संक्षिप्त जीवन परिचय
वर्ष-18, अंक-02(016-31 जनवरी, 2015)
जन्म- 25-12-1975
मृत्यु- 08-01-2015
- क्रांतिकारी छात्र राजनीति में प्रवेश- 1995
- परिवर्तनकामी छात्र संगठन के स्थापना सम्मेलन 1996 से 2002 तक  शामिल और सक्रिय।
- बरेली काॅलेज में फीस वृद्धि के विरुद्ध आंदोलन में 1999 में जेल।
- 2002 में घर-परिवार का जीवन छोड़कर मजदूर वर्ग को संगठित करने के उद्देश्य से अपना सम्पूर्ण जीवन लगाने का संकल्प।
- 2002-2006 तक क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन में शामिल होकर  लालकुआँ (नैनीताल) में मजदूर वर्ग को संगठित करने का काम।
- खटीमा में ईस्टर फैक्टरी आंदोलन और पूर्वांचल में भुखमरी के खिलाफ  आंदोलन में सक्रिय भूमिका।
- 2006 में इंकलाबी मजदूर केन्द्र के स्थापना सम्मेलन से केन्द्रीय परिषद  और केन्द्रीय कमेटी सदस्य के रूप में सक्रिय।
- इंकलाबी मजदूर केन्द्र में पूर्णकालिक कार्यकर्ता के बतौर काशीपुर, पंतनगर, रुद्रपुर, खटीमा, सितारगंज में मजदूरों को संगठित करने का प्रयास। 
- श्री श्याम पेपर मिल काशीपुर में आगजनी से दर्जनों मजदूरों की मौत के विरुद्ध चले आंदोलन में सक्रिय हिस्सेदारी।
- 2008 में ठेका प्रथा के विरुद्ध रैली में भयंकर दमन, जेल और संगीन  मुकदमों का सामना। 
- 2010 में एम.के. आॅटोमोबाइल (सिडकुल, पंतनगर) कम्पनी के मजदूर आंदोलन में भयंकर दमन, यातना और गैंगस्टर एक्ट के तहत मुकदमे का सामना। 
- 2012 में हरिद्वार में इंकलाबी मजदूर केन्द्र के तीसरे सम्मेलन में 183 लोगों के विरुद्ध लगायी गयी संगीन धाराओं में इनका नाम भी शामिल।
- 2014 में ऐरा कम्पनी सिडकुल (पंतनगर) में मजदूरों के भयंकर दमन के विरुद्ध संघर्ष में नेतृत्वकारी भूमिका और मजदूरों की जेल से जमानत  कराने के बाद संघर्ष को फिर से खड़ा करने की पुरजोर कोशिश।
- सिडकुल (पंतनगर) में ब्रुशमैन इण्डिया (2011), अमूल(2012), पार्लेजी  (2012), ब्रिटानिया(2010 और 2012), एल.जी.बी.(2012), टी.वी.एस.श्री चक्रा(2013), पर्ल पाॅलीमर(2014), मित्तर फास्टनर्स (2015) लगभग  सभी मजदूर आंदोलनों में संगठन, झण्डे-बैनर, अपने-पराये का भेदभाव न कर जी-जान से भागीदारी एवं नेतृत्व। 
- प्रत्येक सामाजिक व लोगों की व्यक्तिगत समस्याओं को हल करने में शानदार भूमिका, मेहनतकश जनता के प्रति अपने सामाजिक सरोकारों का निरन्तर निर्वाह।  
कामरेड दानवीर की याद में शोक सभाएं
वर्ष-18, अंक-02(016-31 जनवरी, 2015)
चले चलो दिलों में घाव ले के भी चले चलो
रूद्रपुर (उत्तराखण्ड)/ अपने प्रिय साथी दानवीर को याद करते हुए स्थानीय नगर निगम सभागार में 11 जनवरी को एक शोक सभा की गई। इस शोक सभा में इंकलाबी मजदूर केन्द्र के अलावा बिरादर संगठनों के सदस्यों-कार्यकर्ताओं, विभिन्न जनवादी व प्रगतिशील संगठनों के प्रतिनिधियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, ट्रेड यूनियन प्रतिनिधियों व विभिन्न कारखानों के मजदूर साथियों ने भागीदारी की। 
शोक सभा के प्रारम्भ में इंकलाबी मजदूर केन्द्र के महासचिव द्वारा जारी शोक संदेश को पढ़ा गया व दो मिनट का मौन रखकर साथी दानवीर को श्रद्धांजलि दी गई तथा ‘कारवां चलता रहेगा...’ गीत गाया।   
शोक सभा में विभिन्न वक्ताओं ने साथी दानवीर के साथ बिताये अपने पलों और अनुभवों को साझा किया तथा मजदूर वर्ग के मुक्ति संघर्ष के प्रति उनकी प्रतिबद्धता व समर्पण को याद करते हुए कहा कि उनके निधन से मजदूर वर्ग ने मुक्ति पथ के एक जुझारू व समर्पित साथी को खो दिया है। 
शोक सभा में साथी दानवीर के साथ बिताये समय को याद करते हुए वक्ताओं ने उनके सरल-सहज जीवन, दृढ़ व मजबूत वर्गीय पक्षधरता, शासन सत्ता के दमन-उत्पीड़न का मुकाबला करते हुए बेखौफ मजदूर वर्ग की क्रांतिकारी गोलबंदी करने के उनके ज़ज्बे व जद्दोजहद की चर्चा की और उन्हें मजदूर वर्ग की अग्रिम पंक्ति का योद्धा बताया। 
वक्ताओं ने साथी दानवीर के जुझारू व संघर्षशील जीवन को याद करते हुए बताया कि मजदूरों को अपने न्यायपूर्ण हक व अधिकारों के लिए गोलबंद करने व उनके संघर्षों का नेतृत्व करने के दौरान शासन-प्रशासन द्वारा क्रूर दमन, कठोर यातना देने व कई बार जेल भेजने तथा खतरनाक आपराधिक धाराओं के तहत उन पर फर्जी मुकदमे ठोंकने के बावजूद वे हमेशा पूर्ण उत्साह व आत्मविश्वास के साथ मजदूरों की क्रांतिकारी गोलबंदी करने के प्रयासों में अंतिम समय तक जुटे रहे। सड़क व फैक्टरी गेट तथा श्रम न्यायालय (लेबर कोर्ट) तक हर मोर्चे पर वे मजदूर वर्ग की अग्रिम कतार में शामिल थे। 
सभी वक्ताओं ने साथी दानवीर की असमय मृत्यु को इंकलाबी मजदूर केन्द्र व मजदूर वर्ग के लिए एक बड़ी क्षति बताया और उनके सपनों, आदर्शों व मिशन को आगे बढ़ाने का संकल्प व्यक्त किया। 
शोक सभा को इंकलाबी मजदूर केन्द्र के अध्यक्ष कैलाश भट्ट, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के अध्यक्ष पी. पी. आर्या, परिवर्तनकामी छात्र संगठन के महासचिव कमलेश, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र की उपाध्यक्ष बिन्दु गुप्ता, एक्टू (ए.आई.सी.टी.यू.) के प्रदेश सचिव के.के. बोरा, सी.पी.आई. के जिला सचिव राजेन्द्र गुप्ता, क्रांतिकारी जनवादी मंच के क़ैसर राणा, नौजवान भारत सभा के गिरीश आर्या, मजदूर सहयोग केन्द्र के अमर सिंह, सी.आई.टी.यू. के मणीन्द्र मंडल, शिरडी कामगार श्रमिक संघ के महामंत्री आनन्द सिंह नेगी, पारले श्रमिक संघ के प्रमोद तिवारी, वोल्टास के श्रमिक प्रतिनिधि कुन्दन, मित्तर फास्टनर्स के श्रमिक प्रतिनिधि सुदर्शन शर्मा, नैस्ले कर्मचारी संघ के अध्यक्ष राजदीप बाटला, ऐरा श्रमिक संगठन के प्रतिनिधि इन्द्र देव, एटक (ए.आई.टी.यू.सी.) के प्रदेश उपाध्यक्ष ए.एम. खान, ए.आई.के.एम.एस. के प्रदेश अध्यक्ष धर्मपाल, पार्षद मोनू निषाद, एडवोकेट जुगल कुमार गोस्वामी, शिवदेव सिंह, डाॅ. आर.पी. सिंह, डाॅ. उमेश चन्दोला, रविन्द्र कौर व पूजा आदि ने सम्बोधित किया। रुद्रपुर संवाददाता
कारवां चलता रहेगा
हरियाणा /फरीदाबाद में भी 11 जनवरी को साथी दानवीर को याद करते हुए औद्योगिक क्षेत्र, सैक्टर-24 में स्थित सामुदायिक भवन में एक शोक सभा आयोजित की गई। सभा में मजदूर वर्ग की मुक्ति के लिए समर्पित साथी दानवीर के संघर्षमय व प्रतिबद्ध जीवन को याद करते हुए दो मिनट का मौन रख कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई व ‘कारवां चलता रहेगा...’ गीत गाया गया। 
शोक सभा में भारी संख्या में मजदूर साथियों व कार्यकताओं ने भागीदारी की। सभा को इंकलाबी मजदूर केन्द्र के सदस्य-कार्यकर्ताओं के अलावा मजदूर मोर्चा पत्रिका के सम्पादक साथी सतीश, वीनस वर्कर्स यूनियन के पूर्व अध्यक्ष साथी रामछैल पांचाल व सामाजिक कार्यकर्ता नवाब खान आदि ने सम्बोधित किया। 
वक्ताओं ने साथी दानवीर के जीवन के लक्ष्य व आदर्शों और मजदूर वर्ग की मुक्ति के लिए उनकी प्रतिबद्धता और एक राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में उनकी कमर्ठता और जुझारूपन को याद करते हुए उनके जीवन के उद्देश्यों व सपनों को पूरा करने का संकल्प व्यक्त किया। फरीदाबाद संवाददाता
 संघर्षों से भरा जीवन
बरेली /7 जनवरी को वह काली रात जिसने इंकलाबी मजदूर केन्द्र को हिला दिया। इस दिन इंकलाबी मजदूर
केन्द्र ने अपने एक क्रांतिकारी योद्धा को खो दिया। कामरेड दानवीर मजदूरों के प्रिय व देश में समाजवादी क्रांति यानि मजदूर राज के लिए संघर्ष को समर्पित एक जुझारू नेता थे। साथी दानवीर ने 1995 में छात्र राजनीति से अपने क्रांतिकारी राजनीतिक जीवन की शुरूआत की। इसके बाद 2002 से मजदूरों को संगठित करने के उद्देश्य से उन्होंने अपने पूरे जीवन को समर्पित कर दिया। साथी दानवीर का सपना मजदूर वर्ग के नेतृत्व में समाजवादी क्रांति तथा शोषण विहीन समाज की स्थापना था। 
साथी दानवीर इस सपने को संजोए असमय, अस्वाभाविक रूप से हमारे बीच से चले गये। साथी को याद करते हुए इंकलाबी मजदूर केन्द्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, परिवर्तनकामी छात्र संगठन व प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र ने दिनांक 11 जनवरी को बरेली में एक श्रद्धांजलि सभा आयोजित की। 
सभा में इंकलाबी मजदूर केन्द्र के महासचिव अमित कुमार ने साथी दानवीर के साथ बिताए पलों को याद करते हुए उनके व्यक्तित्व के विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि कामरेड दानवीर का 20 वर्ष का राजनीतिक जीवन मेहनतकश, उत्पीडि़त तथा शोषित जनता के लिए संघर्षों से भरा रहा। 1995 से शुरू उनका राजनीतिक संघर्ष आरम्भ में छात्रों-नौजवानों तथा फिर मजदूरों/मेहनतकशों की लड़ाई को समर्पित रहा। 
कामरेड दानवीर के जीवन पर प्रकाश डालते हुए नागरिक ‘समाचार पत्र’ के सम्पादक साथी मुनीष कुमार ने कहा कि विभिन्न आंदोलनों के दौरान उनका तीखा दमन किया गया। कई बार वे जेल गये जहां पुलिस द्वारा उन्हें अनेकों यातनाएं दी गयीं। उन पर रासुका, गैंगेस्टर एक्ट तथा अन्य कई गंभीर धाराएं लगाकर झूठे मुकदमों में फंसाया गया परन्तु फिर भी साथी दानवीर मजदूरों/मेहनतकशों को समर्पित अपने संघर्षों से डिगे नहीं।
सभा में बरेली ट्रेड यूनियन्स फेडरेशन के महामंत्री का. संजीव महरोत्रा ने साथी दानवीर के छात्र जीवन के राजनीतिक संघर्षों व बरेली काॅलेज में छात्र आंदोलन के दौरान दमन व जेल यात्रा के दौरान साथी की संघर्षशील जिजीविषा का वर्णन किया तथा उन्होंने साथी दानवीर के साथ बिताए पलों को याद किया। 
सभा में एटक के तारकेश्वर चतुर्वेदी, सी.पी.आई(एम.एल.) के अफरोज आलम, पी.यू.सी.एल. के प्रो. जे.ए.वाजिद, जागर संस्था के डा. प्रदीप कुमार, क्रालोस के डा. सूर्य प्रकाश, पछास के कैलाश, इमके के सतीश कुमार तथा उनके साथ पहले रहे हरीश पटेल, मथुरा प्रसाद, धनजंय सिंह, मजदूर मंडल के लक्ष्मण सिंह राणा, रोडवेज से साथी रवीन्द्र कुमार आदि ने विचार व्यक्त किये। बरेली संवाददाता
श्रम विभाग, शासन-प्रशासन व केन्द्रीय ट्रेड यूनियन की पोल खोलता अस्ती कम्पनी के ठेका मजदूरों का संघर्ष
वर्ष-18, अंक-01(01-15 जनवरी, 2015)
    आईएमटी मानेसर गुड़गांव में अस्ती के मजदूरों की भूख हड़ताल समाप्त हो जाने बाद अस्ती के मजदूर नये सिरे से अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने 15 दिसम्बर को कमला नेहरू पार्क में आम सभा की मीटिंग की और उसके बाद जुलूस की शक्ल में सोहना चौक से होते हुए एएलसी दफ्तर पहुंचे। और पहले की ही तरह दफ्तर के अंदर सभा की। 
    मजदूरों के ऐसा करते ही पुलिस तुरंत सक्रिय हो गयी और मजदूरों पर दफ्तर से बाहर जाने का दबाव बनाने लगी। पुलिस ने पहले मजदूरों को दफ्तर से बाहर किया और उसके बाद चाहरदीवारी से। उसके बाद धरने के लिए परमीशन न होने की बात कर धरना खत्म करने का दबाव बनाने लगी। 
    अगले दिन जब 10 बजे अस्ती के मजदूर, अस्ती ठेका मजदूर संघर्ष समिति के बैनर तले एएलसी आॅफिस पहुंचे तो एएलसी ने 4 प्रतिनिधियों को वार्ता के लिए बुलाया। एएलसी ने मजदूरों से कहा कि 17 दिसम्बर को वे प्रबंधक को बुलायेंगे और त्रिपक्षीय वार्ता करेंगे और समझौता न होने तक वार्ता खत्म नहीं होगी। और 17 दिसम्बर को समझौता कराने का आश्वासन दिया गया और कहा कि आप लोग एक नोट में अपनी वे सभी मांगें लिखकर दें जिन पर उन्हें बात करनी है। उन्होंने बात करने लिए डीएलसी जेपी मान को भी बुलाया हुआ था। 
    इसके बाद मजदूर प्रतिनिधि अपने साथियों को एएलसी से वार्ता के बारे में बता रहे थे कि तभी पुलिस ने प्रतिनिधियों को बुलाया और धमकी दी कि यहां से भाग जाओ नहीं तो पकड़कर बंद कर देंगे और मुकदमों में फंसा देंगे। पुलिस ने अस्ती के प्रतिनिधि राघवेन्द्र तथा आंदोलन के समर्थन में आये हुए इमके के सदस्य योगेश को पकड़कर जिप्सी में बैठाया और बाकी मजदूरों को डण्डा फटकार कर भगाने लगी। तभी महिला मजदूरों ने पुलिस को चारों तरफ से घेर लिया और खुद को भी गिरफ्तार करने की बात कहने लगीं। तब जाकर पुलिस ने गिरफ्तार दोनों लोगों को छोड़ा। इस घटना के समय मुंजाल कीरू के प्रतिनिधि भी एचएमएस के नेता जसपाल राणा के साथ एएलसी से वार्ता कर रहे थे। इसी बीच बाहर इकट्ठा हुए मुंजाल कीरू के मजदूरों को भी पुलिस ने खदेड़ दिया था। 
    इसके बाद मजदूरों ने एएलसी आॅफिस से डीसी आॅफिस तक पूरे जोशो-खरोश के साथ जुलूस निकाला और रास्ते भर पुलिस के साथ नोक-झोंक होती रही। वहां जाकर एसडीएम ने गेट पर आकर मजदूरों से वार्ता की तथा बोला कि, ‘‘तीन दिन का समय दो हम आपके मामले को निपटा देंगे’’। जब मजदूरों ने धरना देने के लोकतांत्रिक अधिकारों की बात की तो काफी  ना-नुकुर के बाद एसडीएम ने धरना करने की इजाजत दी। परन्तु एसडीएम ने इसमें एक शर्त लगा दी। उन्होंने अपनी शर्त में कहा कि धरना 4 बजे तक ही होगा। दिन-रात के धरने की इजाजत न देने के बारे में उन्होंने बताया कि महिला मजदूरों की सुरक्षा का सवाल है इसलिए वे रात के धरने की इजाजत नहीं दे सकते। 
    यह बात कहते हुए उन्हें तनिक भी लाज-शर्म नहीं आयी कि वे एक तरफ महिला मजदूरों की सुरक्षा के नाम पर उन्हें 4 बजे के बाद धरना देने की इजाजत नहीं दे रहे हैं और दूसरी तरफ महिला मजदूरों से रात्रि की पाली में काम करवाने के लिए श्रम कानूनों में संशोधन कर रहे हैं। यानी चित भी मेरी और पट भी मेरी। 
    मजदूरों ने एसडीएम के इस व्यवहार की घोर निंदा की और कहा कि महिलाओं की बराबरी और सुरक्षा का दम भरने वाला शासन-प्रशासन महिलाओं को नीचा दिखाने तथा उनके लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन करने में पीछे नहीं रहता है। इससे पहले डीसी महिला मजदूरों द्वारा भूख हड़ताल करने को ब्लेकमेलिंग की संज्ञा दे चुके हैं। और एसडीएम ने मजदूरों से लिखित में धरना जारी रखने के बारे में देने के लिए कहा और मजदूरों से ही महिला मजदूरों की सुरक्षा का ध्यान रखने का आश्वासन मांगा। और धरने को शांतिपूर्ण रूप से चलाने और नारे न लगाने के लिए कहा। इस तरह मजदूरों के लोकतांत्रिक अधिकारों से उन्हें वंचित करने की कोशिश की। मजदूरों ने फिर डीसी आॅफिस से एएलसी के दफ्तर तक जुलूस निकाला। 
    17 दिसम्बर को मजदूरों ने आपस में विचार-विमर्श करने के बाद 10 बिन्दु बनाकर एएलसी को दिये। एएलसी की मध्यस्थता में 1 बजे दिन में वार्ता के लिए बुलाया गया। लगभग आधे घंटे की वार्ता के बाद ही वार्ता को समाप्त कर दिया गया और अगली तारीख 24 दिसम्बर की लगा दी गयी। यानी एएलसी अपनी एक दिन पहले कही गयी बात से मुकर गये। जिसमें उन्होंने 17 दिसम्बर को समझौता कराने की बात की थी। 
    एएलसी ने कहा कि उन्होंने वे बिन्दु प्रबंधक को दे दिये हैं। और प्रबंधक को धमकी देते हुए कहा कि अगली तारीख तक इन बिन्दुओं पर ठोस जबाव चाहिए। जब मजदूरों ने इतनी लम्बी तारीख देने का विरोध किया तो एएलसी ने कहा कि वे शहर में नहीं हैं। मजदूरों के दुबारा कहने पर उन्होंने कहा कि उनके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है जिससे वे मामले को तुरंत हल कर देेंगे और मजदूरों को धमकी देते हुए कहा कि अगर उन्हें जल्दी है तो वे मामले को कोर्ट में भेज देते हैं। 
    एएलसी के इस व्यवहार से फिर साबित हो गया कि इतनी लम्बी तारीख देने के पीछे दरअसल प्रबंधन को इस बात के लिए समय देना था कि वह ठेकेदार के साथ मिलकर मजदूरों का साम-दाम-दण्ड-भेद से हिसाब कर दे। यह काम पिछले कई दिन से ठेकेदार कर भी रहा है कि मजदूरों को गाडी में बैठाकर सुनसान स्थान में ले जाकर उनसे इस्तीफा लिखवाया गया और मजदूरों को धमकी दी गयी जिससे मजदूर हड़ताल स्थल पर लगे टेंट से सुरक्षित स्थानों में जाने लगे और फिर कम मजदूर देखकर उन्होंने टेंट ही उखाड़ दिया। 
    अस्ती के मजदूरों का यह पहला आंदोलन है। और पहले अनुभव में ही उनके सामने यह स्पष्ट होता जा रहा है कि किस तरह पूरी व्यवस्था पूंजीपति वर्ग के साथ खड़ी है। साथ ही ट्रेड यूनियनें भी आज केवल दिखावटी ही रह गयीं हैं। वे जुझारू मजदूर संघर्ष लड़ने का माद्दा नहीं रखतीं। और आज भारत के मजदूर को अपने क्रांतिकारी ट्रेड यूनियनों की जरूरत है।                 गुड़गांव संवाददाता

बढ़ती साम्प्रदायिकता के खिलाफ जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन
वर्ष-18, अंक-01(01-15 जनवरी, 2015)
    19 दिसम्बर को काकोरी के शहीद ‘‘अशफाक-बिस्मिल’’ के शहादत दिवस पर परिवर्तनकामी छात्र संगठन ने अन्य जन संगठनों
और बुद्धिजीवियों के सहयोग से रामलीला मैदान गेट से जुलूस निकालते हुए जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया। 19 दिसम्बर, काकोरी शहीदों का शहादत दिवस है। काकोरी के शहीदों के विचारों की प्रासंगिकता और जरूरत वर्तमान में बहुत अधिक बढ़ गयी है। अलग-अलग धर्मों के होने के बावजूद दोनों ने आजादी के आंदोलन में बढ़-चढ़कर भागीदारी की और अंग्रेजों की ‘बांटो और राज करो’ की नीति के खिलाफ संघर्ष करते हुए साझा शहादत दी। ऐसे में जब आज हमारे देश के शासक फिर से साम्प्रदायिकता के जहर को समाज में घोल रहे हैं तो हमें अशफाक-बिस्मिल से प्रेरणा लेते हुए साम्प्रदायिकता के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करना चाहिए।
    जंतर-मंतर पर आयोजित सभा मेें इमके के नगेन्द्र ने कहा कि आरएसएस का इतिहास हमेशा जनता को धर्म के नाम पर बांटने का रहा है। आजादी के आंदोलन से लेकर अब तक ये जनता को आपस में लड़वाकर सत्ता हथियाने का सपना देखती रही। इसके लिए इसने कई छोटे-बड़े दंगे रचे और हजारों मासूमों का खून बहाया। अब जबकि इन दंगों के खून से सने विजयी रथ पर सवार होकर संघ के ‘विकास पुरूष’ मोदी सत्ता में आ चुके हैं। ये शिक्षा के भगवाकरण, ‘लव जिहाद’, ‘घर वापसी’ जैसे साम्प्रदायिक एजेण्डों को प्रचारित कर अपने फासिस्ट एजेण्डे को तेजी से आगे बढ़ा रहे हंै। परंतु इन फासिस्ट ताकतों को ये भी याद रखना चाहिए कि इनके गुरूओं हिटलर और मुसोलिनी का इतिहास में क्या हाल हुआ। आज वक्त की जरूरत है कि इन विभाजनकारी ताकतों को मजदूरों-मेहनतकशों की फौलादी एकता से मुंहतोड़ जवाब दें।
    प्रमएके की ऋचा ने कहा कि ‘लव जिहाद’ की आड़ में अल्पसंख्यकों पर तो हमला किया ही जा रहा है साथ ही ये महिलाओं की आजादी पर भी हमला है। आज भारत में महिलाओं को अपना जीवन साथी खुद चुनने तक की आजादी हासिल नहीं है। अंर्तजातीय-अंर्तधार्मिक विवाह (जो समाज में जाति और धर्म के सामंती बंधनों को तोड़ने का काम करते हैं) करने पर उन्हें परिवार-समाज द्वारा कत्ल कर दिया जा रहा है। विवाह दो व्यक्तियों का निजी मामला है। और किसी भी तरह के धर्म-जाति का इसमें हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। ‘लव जिहाद’ से संघ का महिला विरोधी चरित्र बेनकाब हुआ है।
    क्रालोस के भूपाल ने कहा कि आज पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था मंदी की शिकार है। ऐसे में दुनिया के बाजारों पर कब्जा और कानूनों में उनके मुताबिक बदलाव आज पूंजीपति वर्ग की जरूरत बनती है। इसी का परिणाम है कि पूरी दुनिया समेत भारत में आर्थिक नीतियों को तेजी से लागू किया जा रहा है। विदेशी पूंजी एफडीआई को देश में लाने के लिए श्रम कानूनों को पूंजीपतियों के फायदे के लिए बदला जा रहा है। सरकारी उद्यमों के शेयरों को तेजी से निजी पूंजीपतियों को बेचा जा रहा है, किसानों की जमीनों को छीनकर औने-पौने दामों पर पूंजीपतियों को बेचा जा रहा है। जिसका कुल परिणाम मेहनतकशों की जिंदगी को और अधिक बर्बाद कर देगा। महंगाई-बेरोजगारी-गरीबी की मार से छटपटाती जनता कहीं सरकार के खिलाफ विद्रोह न कर दे, ये डर शासकों को निरंतर सताता रहता है। जनता के इस गुस्से से बचने के लिए बीजेपी अंग्रेजों की ‘बांटो और राज करो’ की नीति को ही आगे बढ़ा रही है। जिसका मूल लक्ष्य है जनता को धर्म के आधार पर इतना बांट दिया जाए कि वे अपने असली दुश्मन को पहचान ही ना सके। 
    पछास के अध्यक्ष नितिन ने कहा कि संघी मंडली व भाजपा द्वारा समाज का तेजी से साम्प्रदायिकरण किया जा रहा है। हिन्दू कट्टरपंथी सोच से जुडे लोगों को सेना-न्यायालय, शिक्षा के उच्च पदों पर आसीन किया जा रहा है। जिससे लोगों के दिमाग में साम्प्रदायिकता का जहर आसानी से घोला जा सके। इतिहास का भगवाकरण करने के उद्देश्य से सुदर्शन राव जैसे संघी को इतिहास अनुसंधान विभाग का अध्यक्ष बना दिया है। पोंगा पंडितों को अपना हाथ दिखाकर अपना भविष्य जानने की उम्मीद रखने वाली अंधविश्वासी महिला को देश का शिक्षा मंत्री बनाया गया है। विज्ञान की एबीसीडी ना जानने वाले और सारा ज्ञान वेदों में मौजूद है जैसी गैर वैज्ञानिक बात करने वाले जाहिल दीनानाथ बत्रा द्वारा लिखित किताबों को गुजरात के प्राथमिक विद्यालयों में अनिवार्य कर दिया गया है। इस तरह छात्रों को हर तरह की वैज्ञानिक शिक्षा से काटकर उन्हें साम्प्रदायिक रंग में रंगने की साजिशें रची जा रही हैं।
    सभा को प्रगतिशील मेडिकोज फोरम के आशुतोष, दिल्ली वि.वि. टीचर एसोशिएशन की नंदिता नारायण, आइसा के मोहित, एआईटीयूएफ न्यू के शाही जी, डीटीएफ की प्रो.नजमा, पीडीएफआई के अर्जुन प्रसाद ने भी सम्बोधित किया। सभी ने पछास के कार्यक्रम को समर्थन देते हुए साम्प्रदायिकता के खिलाफ संगठित होकर साझा लड़ाई लड़ने की बात कही।
    सभा में प्रतिध्वनि, विप्लव सांस्कृतिक मंच व पछास के साथियों द्वारा ‘वो सुबह कभी तो आयेगी’ और ‘सरफरोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है’, आदि गीत भी गाए गये।
    सभा के अंत में पेशावर (पाकिस्तान) में आतंकवादियों द्वारा मारे गये 145 लोगों जिसमें 132 बच्चे शामिल थे, की मृत्यु पर शोक प्रदर्शित करते हुए 2 मिनट का मौन रखा गया।     दिल्ली संवाददाता
ऐेरा प्रबंधकों के यूनियन तोड़ने के घृणित इरादे विफल
सभी मजदूरों की कार्यबहाली का समझौता सम्पन्न
वर्ष-17,अंक-24(16-31 दिसम्बर, 2014)
    सभी 18 बर्खास्त ऐरा मजदूरों की कार्यबहाली को 09 दिसम्बर 2014 को उपश्रमायुक्त कुमायूं क्षेत्र की मध्यस्थता में त्रिपक्षीय वार्ता में समझौता सम्पन्न हुआ। समझौते में बिंदु(1) में समस्त 18 बर्खास्त मजदूरों की कार्यबहाली करने, बिंदु(2) में सभी 18 मजदूरों को 20 दिसम्बर 2014 से कंपनी के उत्तराखण्ड स्थित सम्भागों में 45 दिन की तकनीकी प्रशिक्षण हेतु भेजने, बिंदु(3) में उपरोक्त 45 दिन की अवधि में मजदूरों के नियमानुसार एवं आवश्यकतानुसार अवकाश देने, बिंदु(4) में 45 दिन की उपरोक्त अवधि के बाद मजदूरों को पुनः रुद्रपुर इकाई में वापस भेजने, बिन्दु (7) में मजदूरों को इस दौरान 700 रु.का (Relocation) भत्ता देने, बिंदु(8) में मजदूरों को स्थल सापेक्ष भत्तों का भुगतान करने, बिंदु (11) में उपरोक्त अवधि में मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा ई.एस.आई. आदि प्रबंधन द्वारा नियमानुसार देय होना, बिंदु(12) में दोनों पक्षों द्वारा एक दूसरे के खिलाफ दिये गये शिकायती पत्रों को वापस लेने समेत 12 बिंदु दर्ज हैं। 12 दिसम्बर 2014 को कम्पनी प्रबंधकों द्वारा समस्त 18 मजदूरों की कार्यबहाली करते हुये पत्र हस्तगत कर मजदूरों से यथाशीघ्र कार्य पर उपस्थित होने की अपील की है। 
    विदित है कि 21 जुलाई 2014 को यूनियन के ध्वजारोहण कार्यक्रम के दौरान ऐरा कंपनी प्रबंधकों द्वारा पुलिस एवं सिडकुल प्रबंधन के सांठगांठ कर मजदूरों पर बर्बर लाठी चार्ज कर यूनियन के अध्यक्ष महामंत्री एवं उपाध्यक्ष समेत 18 मजदूर नेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। 22 जुलाई 2014 को अगले दिन आंदोलन का नेतृत्व कर रहे इंकलाबी मजदूर केन्द्र के अध्यक्ष को कलेक्ट्रेट से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। सभी 19 लोग लगभग 25 दिनों के बाद जमानत पर रिहा हुए थे। 
    ऐरा प्रबंधकों द्वारा पहले सभी उपरोक्त 18 मजदूरों को 11 अगस्त 2014 को निलम्बित (सस्पेण्ड) कर दिया गया। उसके पश्चात फर्जी घरेलू जांच बिठाकर 15 नवम्बर 2014 को 16 मजदूरों एवं 17 नवम्बर 2014 को 2 मजदूरों को बर्खास्त कर दिया गया। 
    ऐरा प्रबंधकों, पुलिस, प्रशासन, जिला जज सभी ने एकजुट होकर यूनियन तोड़ने के भरपूर प्रयास किये। जिला जज ने मजदूरों की जमानत देते हुए शर्त लगा दी कि मजदूर घटना स्थल से 20-25 मीटर की परिधि से बाहर रहेंगे, जबकि घटनास्थल कंपनी के मुख्य प्रवेश द्वार के बिल्कुल निकट स्थित है। इसके अलावा जमानत के समय जिला जज द्वारा बयान दिया गया कि ‘‘ये काम करने थोड़े आये हैं, अराजकता फैलाने आये हैं।’’ 
    पुलिस प्रशासन द्वारा मजदूरों की गंभीर तहरीरों के बाद भी ऐरा प्रबंधकों को गिरफ्तार नहीं किया गया। सिडकुल के जे.ई.की झूठी तहरीर रातों-रात तैयार कर पुलिस द्वारा मुस्तैदी से 19 मजदूर नेताओं को जेल भेजा गया। श्रम विभाग एवं जिला प्रशासन धृतराष्ट्र की भांति आंखों पर पट्टी बांधकर अपनी लाचारी-बेबसी दिखाते रहे। 
    इस सबके बावजूद भी मजदूरों ने हार न मानी जेल से रिहा होते ही यूनियन द्वारा बहुत ज्यादा समय गंवाये बिना अपनी ताकत एवं हौसले को पुनः समेटा। डी.एम. कोर्ट पर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे। इतने से भी बात न बनने पर मजदूरों द्वारा अपने परिवार की महिला शक्ति को भी अपने आंदोलन में जोड़ा। अब मजदूर एवं महिलायें कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष में उतर पड़े। कभी ए.डी.एम.का घेराव तो कभी डी.एम. एवं श्रम अधिकारियों के घेराव किये गये। इस पर भी बात न बनते देख ऐरा यूनियन द्वारा विभिन्न यूनियनों एवं सामाजिक संगठनों के साथ मोर्चा बनाकर संघर्ष तेज करने के प्रयास शुरू हुए। 
    27 नवम्बर 2014 को यूनियन द्वारा सामूहिक हड़ताल शुरू कर दी गई। 27 नवम्बर 2014 को ही कंपनी गेट के मुख्य प्रवेश द्वार को जाम कर कंपनी प्रबंधकों को दिन भर बंधक बनाये रखा। इस दौरान सैकड़ों महिलायें, इंकलाबी मजदूर केन्द्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र एवं विभिन्न यूनियनों के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं समेत लगभग 500 लोग उपस्थित थे। उपस्थित जनसमूह ने जिला कोर्ट के जज को आइना दिखा दिया कि यदि अदालतें जन भावनाओं एवं हितों के खिलाफ हिटलरी आदेश देंगी तो मजदूर मेहनतकश अवाम अपने स्वयं के न्यायपूर्ण कानूनों को लागू करेंगी और लागू करवायेंगी। 
    दिनांक 09 दिसम्बर 2014 को एक तरफ उपश्रमायुक्त की मध्यस्थता में त्रिपक्षीय वार्ता चल रही थी वहीं दूसरी ओर इंकलाबी मजदूर केन्द्र की महिला कार्यकर्ता के नेतृत्व में महिलायें डी.एम.का घेराव कर मोर्चा संभाले हुए थीं। डी.एम. द्वारा महिलाओं को डराने के उद्देश्य से बौखलाहट में चीख-चीख कर हड़काया जा रहा है परन्तु महिलाओं पर इसका तनिक भी असर न हुआ और महिलायें मोर्चें पर डटी रहीं। महिलाओं ने डी.एम. को चेतावनी दी कि यदि आज समझौता न हुआ तो मजदूर और महिलायें मिलकर कल 10 दिसम्बर 2014 से कंपनी का गेट जाम कर देंगी। 
    अंततः 09 दिसम्बर 2014 को सभी मजदूरों की कार्यबहाली को उपरोक्त 12 सूत्री समझौता हुआ कंपनी प्रबंधकों की चाल थी कि इस वार्ता को विफल कर मामले को कोर्ट में डाल दिया जाये। मामला सालों-साल लेबर कोर्ट में घिसटता रहे और यूनियन तोड़ दी जाये। यूनियन नेतृत्व ने समझबूझ का परिचय देकर समझौता कर लिया।
    इंकलाबी मजदूर केन्द्र द्वारा यूनियन नेतृत्व को पहले ही आगाह कर दिया था कि मामले को लेबर कोर्ट में भेजने की साजिश रची जा रही है। सम्मानजनक समझौते की स्थिति आते ही तात्कालिक तौर पर कुछ पीछे हटकर समझौता करके दूरगामी एकता को ध्यान में रखा जाये। समय काफी बीत चुका था। धरने का 56 वां दिन एवं 18 मजदूरों की कामबंदी का लगभग 5वां महीना था। संघर्ष को बहुत अधिक लंबा खींचना खतरनाक हो सकता था। यूनियन नेतृत्व द्वारा इस स्थिति को भांपकर समझौता कर लिया गया। 
    सिडकुल पंतनगर में यह पहला मामला है कि मजदूर दमन एवं जेल के बाद भी अपने साहस को बटोरते हुए संगठित होकर संघर्ष को आगे बढ़ाते हुए निरंतर अपनी संगठित एकता को मजबूत बनाते चले जायें और अंत में सफल भी हो जायें। इस रूप में यह संघर्ष अन्य यूनियनों को भी कठिन हालातों में हिम्मत न हारने एवं संघर्ष के रास्ते पर चलने को प्रेरित करेगा। 
    शिरडी यूनियन के सफल आंदोलन के बाद इस आंदोलन ने भी इस बात को साबित किया है कि नारी शक्ति का संघर्ष में शामिल होना निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। अन्य यूनियनों को भी अपने संघर्ष में नारी शक्ति को शामिल करने के विषय में इस संघर्ष के बाद निश्चित तौर पर सोंचेंगी। सिडकुल पंतनगर में मजदूर संघर्षों में महिलाओं पर भरोसा कर संघर्ष में शामिल करने की प्रवृत्ति लगभग गायब है। इसलिए इसे रेखांकित करना अत्यंत आवश्यक है। 
    अंत में ऐरा यूनियन नेतृत्व को किसी मुगालते एवं खुशफहमी में पड़ने के स्थान पर महसूस होना चाहिए कि अब यूनियन की एकता की जरूरत पहले से कहीं अधिक है। घायल शेर ज्यादा खतरनाक होता है। कंपनी प्रबंधक यूनियन पर पुनः हमले कर सकता है। अब यह हमला सामने भी हो सकता है और घात लगाकर ज्यादा हमले की संभावना है। ऐसे हमले ज्यादा मारक एवं खतरनाक होते हैं। इस सबका यही उपाय है कि यूनियन की मजबूती के साथ-साथ अन्य एवं यूनियनों एवं सामाजिक संगठनों के साथ में जीवंत हिस्से कायम करते हुए मजदूर की वर्गीय एकता को निरंतर मजबूत करना और यूनियन सदस्यों का निरंतर राजनीतिकरण करना। यह राजनीतिकरण मजदूरों को अपने वर्ग की राजनीति-वैज्ञानिक समाजवाद की राजनीति पर खड़े करने को निरन्तर जद्दोजहद करना। इसके अभाव में देर-सबेर कंपनी प्रबंधकों का हावी होना पहले से ही तय है। आशा है कि यूनियन नेतृत्व इस गंभीरता से विचार करेगा। 
        रुद्रपुर संवाददाता
एवरेडी कम्पनी के मजदूर अवैध तालाबंदी के खिलाफ लामबंद
वर्ष-17,अंक-24(16-31 दिसम्बर, 2014)
    एवरेडी इण्डस्ट्रीज इण्डिया लिमिटेड हरिद्वार मेें 30 नवम्बर 2014 की रात को फैक्टरी प्रबंधक ने ताला लगा दिया। इसकी सूचना न किसी मजदूर प्रतिनिधि को दी और न ही लेबर अधिकारी को, जब मजदूर एक दिसम्बर को सुबह की पाली में काम करने गये उनको वहां पर पूंजीपतियों की मित्र पुलिस ने रोक दिया और कहा कि फैक्टरी में ताला लगा हुआ है। अन्दर नहीं जा सकते- वापस घर जाओ। मजदूर वहीं पर अपने सभी साथियो के आने का इंतजार करते हुए रुके रहें। फिर सुबह की शिफ्ट के सभी मजदूर आये और दूसरी शिफ्ट के मजदूरों को भी तालाबंदी की सूचना दे दी। 
    एवरेडी का संघर्ष वेतन बढोत्तरी को लेकर पिछले कई महीनों से चल रहा था। दो पक्षीय-त्रिपक्षीय वार्ताओं का दौर भी चला परन्तु यह दौर 20-21 नवम्बर को बंद हो गया था। वार्ता का सिलसिला प्रबंधक की ओर से बंद कर दिया गया। प्रबंधक ने मजदूरों का वेतन दो हजार ही तीन साल तक बढ़ोत्तरी की हद खींच दी। प्रबंधक की ओर से आगे वेतन बढ़ोत्तरी के मुद्दे पर कोई बात नहीं करने की हठधर्मिता को देखते हुए, मजदूरों ने आगे लड़ाई को जारी रखने के लिए अपनी तैयारी शुरू कर दी। 
    प्रबंधन ने मजदूरों की एकता को तोड़ने के लिए रविवार की छुट्टी का मौका पाकर तालाबंदी कर दी जिससे कि इनको तोड़ा जा सके। फैक्टरी प्रबंधन ने इस मकसद को पूरा करने के लिए पूरा तंत्र बेशर्मी के साथ खड़ा था। मजदूरों की वेतन संबंधी मांग का जिला अधिकारी, एसडीएम, लेबर अधिकारियों ने कहा ‘30  हजार रुपये तुम लोग ज्यादा मांग रहे हो’, ‘इतना मालिक कहां से देगा’। इन सब बातों के आधार पर मजदूरों ने कोई अपराध कर दिया हो, ऐसा माहौल बनाया गया। 
    1 दिसम्बर को फैक्टरी स्टाफ भी गायब हो गया था। वह मजदूरों के सामने नहीं आया। वह चोरों की तरह भाग खड़ा हुआ। मजदूर अपने आक्रोश को व्यक्त करते हुए फैक्टरी गेट पर दूसरे दिन मजदूरों ने अपनी मीटिंग कर तय किया कि वे सब 2 दिसम्बर को सहायक श्रम आयुक्त कार्यालय के गेट पर बैठेंगे। मजदूरों ने ऐसा फैसला इसलिए लिया क्योंकि फैक्टरी प्रबंधक ने स्टे ले रखा था। इस प्रकार सभी मजदूर श्रम विभाग के गेट पर सुबह से शाम तक बैठने लगे। मजदूर प्रतिनिधि दुबारा श्रम अधिकारी और जिला अधिकारी से मिले तो उन्होंने 5 दिसम्बर को फैक्टरी खुलवाने का आश्वासन दिया। 
    3 दिसम्बर को मजदूरों को अखबार के माध्यम से पता चला कि 14 मजदूरों को निलम्बित कर इन निलम्बित मजदूरों में 7 मजदूर प्रतिनिधि और 7 मजदूर थे। इस घटना से मजदूरों में और ज्यादा आक्रोश फूटना स्वाभाविक था। 
    इसके उपरांत 5 दिसम्बर को सहायक श्रम आयुक्त के यहां त्रिपक्षीय वार्ता हुई जो बेनतीजा रही। प्रबंधक ने अपनी शर्तें रखते हुए कहा कि 14 मजदूर निलम्बित रहेंगे और बाकी मजदूर अच्छे आचरण का प्रमाण पत्र (गुड कंडक्ट) लिखकर काम पर आ सकते हैं। इस पत्र के अनुसार मजदूर किसी भी प्रकार का कोई विरोध नहीं कर सकते। प्र्रबंधन की शर्तों वाले पत्र से मजदूरों के अंदर गुस्सा और बढ़ गया मजदूरों ने प्रबंधक की सभी शर्तों का विरोध करते हुए काम पर जाने से इंकार कर दिया। मजदूरों ने प्रबंधक के मंसूबों को समझते हुए अपनी लड़ाई को ओर तेज कर दिया। वह अपनी लड़ाई के समर्थन में क्षेत्रीय नेताओं, समाज सेवकों, ट्रेड यूनियन नेताओं को बुलाने लगे। 8 दिसम्बर को फिर त्रिपक्षीय वार्ता हुई जो बेनतीजा ही रही। और अगली बैठक 12 दिसम्बर नियत की गयी। 
    एवरेडी प्रबंधक की ये कार्यवाही खुद की कार्यवाही नहीं थी बल्कि यह पूरे सिडकुल फैक्टरी मालिकों की एसोसिएशन की सोची-समझी संयुक्त कार्यवाही थी। फैक्टरी में मजदूरों की एकता खत्म करने के लिए प्रबंधन ने चोरी-छुपे तालाबंदी कर दी और मजदूरों को कमजोर कर अपनी शर्तों पर काम पर आने के लिए कहने लगा। 
शासन-प्रशासन की भूमिका- एवरेडी के मजदूरों के आंदोलन में भी शासन-प्रशासन फैक्टरी प्रबंधक के साथ खड़े होकर कह रहा था कि 14 मजदूरों को छोड़ बाकी काम पर चले जाये। और पुलिस के अधिकारी भी मजदूरों को धमका रहे थे कि कोई भी गड़बड़ की तो फिर किसी को छोडेंगे नहीं। वे अपनी कार्यवाही करेंगे। मजदूरों से कह रहे थे कि यहां चुपचाप बैठे रहो कोई नारा-वारा मत लगाओ आदि, आदि तरह से धमकाया गया। भाजपा के नेताओं ने भी मजदूरों से मैनेजमेण्ट के विरोध में नारे लगाने की मनाही की। सभी पूंजीपतियों के सेवकों ने मजदूरों को कानूनी और गैरकानूनी पाठ पढ़ाने की कोशिश की गयी। 
    इन पूंजीपतियों के सेवकों के अपने वेतन-भत्ते और अन्य सुविधायें नहीं दिखायी देती। जो पूरे का पूरा अधिकारी वर्ग और शासन के लोग मजदूर-मेहनतकशों की मेहनत पर ही ऐशोआराम की जिंदगी जी रहे हैं। लेकिन मजदूर अपनी मेहनत का वाजिब दाम मांग लेते हैं तो इन मालिकों और इनके पालतू सेवकों के कलेजे पर सांप लोट जाते हैं। 
    सच्चाई यह है एवरेडी के मजदूर औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वाले कुशल मजदूर हैं। वे उसी वेतन की मांग कर रहे हैं जो उनके समकक्षों को सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में मिल रहा है। वेतन बढ़ोत्तरी बढ़ती महंगाई के बीच अनिवार्य बन गयी थी। हरिद्वार संवाददाता
हीरो मोटर कार्प हरिद्वार के मजदूरों का संघर्ष जारी है
वर्ष-17,अंक-23 (01-15 दिसम्बर, 2014)
    15 अक्टूबर से 28 मजदूरों की बहाली के लिए हीरो मोटो कार्प के मजदूरों का संघर्ष जारी है। 3 नवम्बर की देहरादून त्रिपक्षीय वार्ता विफल होने के बाद मैनेजमेण्ट द्वारा लगभग आधे निलंबित मजदूरों को निष्कासन के लिए कारण बताओ नोटिस(सो काॅल नोटिस) दे दिया। इसके विरोध में मजदूरों ने इसका लिखित जबाव देने के अलावा अंदर काम कर रहे ए-शिफ्ट के मजदूरों को साथ में लेकर विरोध की रणनीति बनायी। फैक्टरी से लेकर चिन्मय डिग्री कालेज(सिडकुल में जाने का मुख्य रास्ता) तक रैली व मैनेजमेण्ट का पुतला दहन कर अपने गुस्से का इजहार किया। इस कार्यवाही में एवरेडी, आईटीसी, वीआईपी, सत्यम व इंकलाबी मजदूर केन्द्र के साथी भी इनके साथ में थे। 
    19 नवम्बर को जिलाधीश का घेराव कर पूर्व के वादे को याद दिलाया गया। जुलूस को प्रशासन द्वारा कलेक्ट्रेट गेट पर ही रोक दिया गया। ए.डी.एम. को मजदूरों ने अपने पूरे प्रकरण से अवगत करवाया। प्रशासन द्वारा एक कमेटी बनाकर मामले को हल करवाने के लिए जल्द ही कोई निर्णय लेने की बात बतायी। इसके बाद 21 नवम्बर को सिडकुल मजदूर संगठन के तत्वाधान में एक रैली भगत सिंह चौक से सिटी मजिस्ट्रेट कार्यालय तक निकाली गयी। एक ज्ञापन हीरो के मजदूरों की मुख्य मांग के अलावा सिडकुल के स्तर पर ठेका व कम्पनी मजदूरों की तमाम मांगों का सिटी मजिस्ट्रेट के माध्यम से राज्यपाल को दिया गया। इस रैली में हीरो के मजदूरों की अधिकांश संख्या के अलावा क्रमशः एवरेडी, सत्यम व आईटीसी के मजदूरों के अलावा सीटू, इंकलाबी मजदूर केन्द्र व क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के नेतृत्व के लोगों ने भागीदारी की। 
    मजदूरों द्वारा फैक्टरी के बाहर के विरोध प्रदर्शन के अलावा अंदर भी विरोध जारी है। 24 नवम्बर से ही फैक्टरी के अंदर मजदूरों ने उत्पादन स्वतः स्फूर्त तरीके से कम कर दिया। 9 हजार बाइक प्रतिदिन उत्पादन को लगभग आधा कर दिया। 25 नवम्बर को उत्पादन नाममात्र का ही हुआ। इस सबसे परेशान मैनेजमेण्ट ने 26 नवम्बर को सुबह ही शिफ्ट में मजदूरों को बिना किसी पूर्व सूचना के तीन दिन का लाॅक आउट नोटिस पकड़ा दिया। मजदूरोें के नेतृत्व द्वारा हरिद्वार स्तर पर उनकी पुकार न सुने जाने व केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों का 5 दिसम्बर को देहरादून प्रदर्शन में भागीदारी कर राजधानी के स्तर पर अपनी आवाज बुलंद करने की योजना बनायी है। 
    पूंजीवादी पार्टियों के नेताओं द्वारा विधानसभा सत्र में मजदूरों की मांगों के संबंध में बात उठाने को मजदूर बड़ी उम्मीद के साथ देख रहे हैं। यह मात्र छलावा है। इससे ये नेता केवल ढकोसलेबाजी कर मजदूरों को गुमराह कर रहे हैं। 
    हीरो मैनेजमेण्ट के तालाबंदी(लाॅक आउट) ने मजदूरों के आंदोलन को और ज्यादा मजबूत कर दिया है। एक तरफ अप्रेटिंस (बी कोड दो साल) एफ कोड (एक साल के लिए) के मजदूर भी कम्पनी रोल के मजदूरों के आंदोलन के साथ आ गये है तो दूसरी तरफ लगभग 70-80 बाइंडर कम्पनियों के मजदूरों को भी चाहे अनचाहे हीरो के मजदूरों के आंदोलन के समर्थन में आने की राह खोल दी है। हीरो के मजदूरों के नेतृत्व को इन सभी बेण्डर कम्पनियों के मजदूरों को भी अपने साथ लेकर आगे की रणनीति बनानी होगी। खबर लिखे जाने तक दो मजदूरों का अनशन जारी है। 29 नवम्बर को कम्पनी खुलेगी तो उत्पादन होगा या नहीं यह कसमकश जारी है। 
              हरिद्वार संवाददाता  
अस्ती के ठेका मजदूरों का संघर्ष जारी है
वर्ष-17,अंक-23 (01-15 दिसम्बर, 2014)
    अस्ती इलेक्ट्राॅनिक प्राइवेट लिमिटेड आईएमटी मानेसर के सेक्टर-8 में प्लांट न. 399 में स्थित है। इस कम्पनी ने अपने ठेका मजदूरों को कम्पनी से बाहर निकाल दिया है। और ठेका मजदूर अपनी नौकरी बहाली के लिए संघर्ष कर रहे हैं। 
    अस्ती इलेक्ट्रोनिक के इस प्लाण्ट में 500 से 600 मजदूर काम करते हैं। इसमें स्थायी मजदूरों की तनख्वाह 7 से 10 हजार के बीच है। 6 साल पुराने मजदूर की तनख्वाह 7 हजार रुपये थी। पीसीबी डिपार्टमेंट के स्थायी मजदूरों की सेलरी 8 हजार से 13 हजार तक है। ठेका मजदूरों की तनख्वाह तो हेल्पर का न्यूनतम वेतन के बराबर है लेकिन इनसे काम कुशल मजदूरों का ही लिया जाता है। इनको गुलाम बनाने के लिए अटेण्डेंस अवार्ड है। सेलरी 5 हजार और अटेण्डेंस अवार्ड 1000। इसे प्राप्त करने के लिए मजदूरों को कोई छुट्टी नहीं करनी पड़ती है। अगर किसी मजदूर ने दो दिन की छुट्टी कर ली तो उसके 1500 रुपये गायब। यानी वही 4000 के आस-पास सेलरी बनती है। और ऐसे में मजदूर चाह कर भी छुट्टी नहीं कर पाता। और कम्पनी में एचआर का पूरा रवैया तानाशाही भरा रहता था। 
     ऐसी परिस्थितियों से तंग आकर इस कम्पनी में इसी साल यूनियन बनाने का संघर्ष हुआ और यूनियन बनाई गयी। इस यूनियन को बनाने में ठेका मजदूरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसलिए ये ठेका मजदूर मालिक की निगाह में खटकने लगे तथा उसे लगने लगा कि कल ये ठेका मजदूर भी स्थायी होने की मांग करने लगेंगे। अतः उसने इन ठेका मजदूरों से छुटकारा पाने की साजिश रची। और स्थायी मजदूरों व ठेका मजदूरों को अलग-अलग कर दिया। इससे पहले स्थायी मजदूरों की यूनियन ने ठेका मजदूरों को यूनियन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद यूनियन का सदस्य नहीं बनाया गया। और समझौते में भी ठेका मजदूरों को कम दिया। इसी चीज को मालिक ने और आगे बढ़ाया और स्थायी मजदूरों को बहला-फुसलाकर दोनों मजदूरों की एकता भंग कर दी। 
    1 नवम्बर 2014 को मालिक ने ठेका मजदूरों को बाहर निकालने का नोटिस लगा दिया। इसके बाद सभी ठेका मजदूर कम्पनी में डट गये और मालिक से बात करने की कहने लगे। प्रबंधन ने मीटिंग का बहाना बनाकर मजदूरों से दो दिन का समय मांगा और ठेका के 310 मजदूरों की नौकरी चली गयी। 
    12 नवम्बर को निकाले गये मजदूरों ने आईएमटी मानेसर के मुख्य मार्गों से होते हुए जुलूस निकाला। तथा 19 नवम्बर को गेट मीटिंग की। इस गेट मीटिंग में मारूति, इण्डोरेंस, मुंजाल कीरू, आॅटो फिट सहित कई कम्पनियों के मजदूरों ने हिस्सा लिया। और आंदोलन तेज करने की चेतावनी दी। 24 नवम्बर को त्रिपक्षीय वार्ता भी हुयी लेकिन इस वार्ता में भी कोई हल नहीं निकल पाया। अंततः 25 नवम्बर को 7 मजदूर अपनी मांगों को लेकर भूख हड़ताल पर बैठ गये। इनके साथ ही कुछ अन्य मजदूर भी क्रमिक अनशन पर बैठे। 28 नवम्बर को एक और गेट मीटिंग की गयी। जिसमें मारूति, इण्डोरेंस सहित दर्जनों कम्पनियों के मजदूरों ने भाग लिया। शासन-प्रशासन का रुख मजदूरों के प्रति क्या रहता है यह इस बात से पता चलता है कि भूख हड़ताल के पांच दिन बाद भी कोई डाक्टर मजदूरों के चेकअप के लिए नहीं आया। शासन-प्रशासन का रुख मजदूरों के प्रति उदासीन रहने का ही है। 
    ऐसे समय में देश में स्थापित ट्रेड यूनियन सेण्टरों का चरित्र भी साफ हो रहा है जो ठेकेदारी के मजदूरों की लड़ाई में साथ देने भी नहीं आ रही हैं। 
    एक तरफ तो मोदी श्रमेव जयते का जाप कर रहा है और दूसरी तरफ उसी की पार्टी के राज में मजदूरों को काम से बाहर निकाल दिया जा रहा है। कम्पनी अपना माल बावल में अपनी दूसरी कम्पनी से बनवा रही है या फिर बाहर से मंगा रही है। भाजपा के नेता आकर मजदूरों के लिए न्याय की बात करते हैं और ठेका मजदूर भी उनकी बात पर भरोसा कर ले रहे हैं। वे इनके दोगले चरित्र को नहीं समझ पा रहे हैं। जो पार्टी पूरे देश के अंदर श्रम कानूनों को बदल रही है। मजदूरों के अधिकार छीन रही है वही मजदूरों को उनके अधिकार कैसे दे सकती है। वह मजदूरों को मीठी गोली देकर बहला रही है। भाजपा भी कांग्रेस से दो कदम आगे जाकर मजदूरों के अधिकार छीनेगी।
    आज मजदूरों के हालात कोई पूंजीपतियों की पार्टी नहीं सुधार सकती। बिना इंकलाबी संगठनों के मजदूर आज संघर्ष खड़ा नहीं कर सकते। अक्टूबर क्रांति को याद करते हुए मजदूरों को अपने राज मजदूर राज के लिए संघर्ष करना होगा।    गुड़गांव संवाददाता
छत्तीसगढ़ में महिलाओं की नसबंदी के दौरान हुई  मौतों के विरोध में प्रदर्शन
वर्ष-17,अंक-23 (01-15 दिसम्बर, 2014)
बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में महिलाओं की नसबंदी के लिए लगाये गये कैम्प में महिलाओं की मौतों के विरोध में 19 नवम्बर को दिल्ली में छत्तीसगढ़ भवन पर प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र ने अन्य प्रगतिशील संगठनों व व्यक्तियों के साथ मिलकर विरोध प्रदर्शन व सभा की। सभा में वक्ताओं ने सरकार की जनसंख्या नियंत्रण की गरीब, मजदूर व महिला विरोधी नीति का विरोध किया तथा उसमें परिवर्तन की मांग की तथा छत्तीसगढ़ सरकार व स्वास्थ्य विभाग द्वारा की गई इस घोर लापरवाही की भर्त्सना की। 
    नवम्बर महीने की शुरुआत में बिलासपुर में महिलाओं की नसबंदी करने के लिए सरकारी कैम्प लगाया गया। इस कैम्प में 83 महिलाओं का आॅपरेशन किया गया, जिनमें से कई छत्तीसगढ़ प्रशासन की भयंकर लापरवाही के कारण मौत के मुंह में समा गयीं। 19 तारीख तक उस कैम्प की 18 महिलाओं की मौत की खबर आ चुकी थी, जो लगातार बढ़ती जा रही है। इन महिलाओं की बिना सहमति के पैसों का लालच देकर तथा जबरदस्ती लाया गया था। इन महिलाओं में वे महिलायें भी शामिल थीं, जिनकी जनसंख्या कम होने के कारण सरकार ने इनकी नसबंदी पर रोक लगा रखी है। इस खबर के समाचारों में आ जाने पर अस्पताल के पीछे के खाली जगह पर नकली दवाओं को जलाया गया है। इस घटना के विरोध में प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र ने प्रगतिशील संगठनों- विप्लव सांस्कृतिक मंच, इंकलाबी मजदूर केंद्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, क्रांतिकारी नौजवान संगठन, समतामूलक महिला संगठन, प्रतिध्वनि, नौरोज के साथ मिलकर दिल्ली में छत्तीसगढ़ भवन पर विरोध प्रदर्शन व सभा की। 
वक्ताओं ने कहा कि सरकारों की स्वास्थ्य एवं जनसंख्या नियंत्रण की नीतियां गरीब जनता के विरुद्ध हैं। उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि क्या जनसंख्या नियंत्रित करने का ठेका क्या सिर्फ गरीब जनता का है। सरकार की जनसंख्या नियंत्रित करने की नीति इस विचार पर आधारित है जो गरीबों को ही गरीबी का जिम्मेदार मानती है तथा महिलाओं को केन्द्र में रख कर ही बनाई जाती है। इस कैम्प में भी महिलाओं को चन्द रुपयों का लालच देकर कैम्प में लाया गया था। इसके लिए अस्पताल प्रशासन व छत्तीसगढ़ सरकार मुख्यतया दोषी हैं। इसके अलावा आॅपरेशन स्थल पर गंदगी, नकली दवायें, दवाओं में चूहे मारने की दवाइयों तथा टारगेट पूरा करने के लिए नसबंदी आदि अन्य कारण जिम्मेदार हैं। 
वक्ताओं ने उन कम्पनियों तथा अधिकारियों को भी सजा देने की मांग की जिनकी मिली भगत से नकली दवायें इतने बड़े नसबंदी कैम्प के लिए खरीदी गयी थीं। बिना किसी पूर्व तैयारी के आॅपरेशन के आदेश देने वाले अस्पताल व प्रशासन के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की भी मांग की गई। 
वक्ताओं ने नसबंदी के लिए डाॅक्टरों को टारगेट देने को गलत व जनविरोधी बताते हुए कहा कि जिस तरह फैक्टरियों में सामान तैयार किया जाता है, उसी तरह तथा उसी रफ्तार से आॅपरेशन किये जा रहे हैं जोकि एकदम गलत व गरीब जनता की जिन्दगी के साथ खिलवाड़ है। जहां एक तरफ सरकार गरीबों के इलाज के लिए अस्पताल तक नहीं खुलवाती वहीं दूसरी तरफ निजी अस्पतालों व कम्पनियों को करोड़ों का फायदा पहुंचा रही है।  
वक्ताओं ने इतने संवेदनशील मुद्दे पर प्रदर्शन में शामिल होने वाले प्रदर्शनकारियों की पुलिस द्वारा वीडियो रिकार्डिंग करने पर भी सवाल उठाये। उन्होंने कहा कि प्रशासन इस तरह संवेदनशील मुद्दे पर अपना विरोध जताने के लिए प्रदर्शन में शामिल प्रदर्शनकारियों की पुलिस द्वारा वीडियो रिकार्डिंग, प्रदर्शनकारियों से तीन-चार गुना ज्यादा हथियारबंद पुलिसकर्मी तैनात कर देने, डाॅक्टरों व प्रशासन के बीच चल रहे दोषारोपण के खेल तथा मंत्रियों का लाशों के बीच ठहाके लगाना सत्ता प्रतिष्ठानों में बैठे नेताओं व अधिकारियों व डाॅक्टरों की असंवेदनशीलता को दर्शाते हैं। इस तरह यह दिखाता है कि प्रशासन इन कुछ ही लोगों से जोकि निहत्थे हैं, लेकिन सही चीजों को लेकर लड़ रहे हैं, उनसे कितना भयभीत रहता है कि कहीं ये थोड़े लोग इनसे इनका स्वर्ग न छीन लें। 
प्रदर्शनकारियों ने छत्तीसगढ़ के राज्यपाल को ज्ञापन दिया, जिसमें निम्नलिखित मांगें की गयींः- 
1. पूरे मामले की गम्भीर व निष्पक्ष जांच की जाये तथा दोषी अधिकारियों व डाॅक्टरों को सजा दी जाये।  
2. स्वास्थ्य मंत्री के खिलाफ कार्रवाई की जाये। 
3. राज्य तथा पूरे देश में जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन की नीतियों के गरीब व महिला विरोधी चरित्र को बदला जाये। 
4. सरकारी अस्पतालों में मूल सुविधायें न पहुंचाने वाली सरकारों के खिलाफ कार्रवाई की जाये। 
5. गरीब महिलाओं को जबरदस्ती नसबंदी के लिये ले जाने वाले अफसरों व कर्मचारियों को सजा दी जाये।     
    सभा का संचालन प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र की ऋचा ने किया। सभा के दौरान क्रांतिकारी गीत गाये गये तथा अंत में सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ जोरदार नारे लगाये गये।  
            दिल्ली संवाददाता
हल्द्वानी में मासूम बालिका की नृशंस हत्या
वर्ष-17,अंक-23 (01-15 दिसम्बर, 2014)
    एक और दिल दहला देने वाली घटना हल्द्वानी में घटी। 20 नवम्बर को 7 साल की मासूम बच्ची को विवाह समारोह से अगवा कर लिया गया। बच्ची अपने परिवार के साथ रामलीला मैदान शीशमहल हल्द्वानी में आयी गयी थी। इस दौरान बदमाशों ने मौका पाकर मासूम को अगवा कर लिया। 26 नवम्बर को उसकी लाश 500 मीटर दूर जंगल में पायी गयी। लाश को देखकर ही और बाद में जांच से साफ हो गया कि बच्ची ने मरने से पहले बहुत प्रताड़ना झेली। उसके साथ बहशी बदमाशों द्वारा बलात्कार किया गया। उसे बुरी तरह पीटा गया था। 
    उत्तराखण्ड या देश में यह कोेई पहली घटना नहीं है। जिसमें मासूम बच्ची या महिलाओं के साथ इस तरह के जघन्य अपराध हो रहे हैं। पूरे भारत में ही महिलाओं के खिलाफ अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं। कुछ वर्ष पूर्व ही रामनगर में महिमा सेठ हत्याकांड बिल्कुल इसी तरह का मामला था। जिसके दोषियों को पुलिस अब तक नहीं पकड़ पायी है। मोती महल लालकुंआ में प्रीति शर्मा हत्याकांड जिसके अपराधी भी पुलिस की गिरफ्त से आज तक दूर हैं। दोनों मामलों की सीबीआई जांच करवाने की मांग सरकार द्वारा नहीं मानी गयी। 
    बच्चियों, महिलाओं, के खिलाफ होने वाले अपराधों के लिए यह पूंजीवादी व्यवस्था जिम्मेदार है। इस व्यवस्था के सभी अंग-उपांग महिला विरोधी सोचों से भरे पड़े हैं। पुलिस, न्यायालय, सरकार में घोर महिला स्वतंत्रता विरोधी पुरुष प्रधान मानसिकता भरी पड़ी है। आजादी के 65 साल बाद भी यह व्यवस्था महिलाओं को बराबरी का अधिकार नहीं दे पायी है। फैक्टरियों में आधा वेतन, धार्मिक जकड़बंदी, परिवार-जाति प्रतिष्ठा के नाम पर हत्या(आॅनर किलिंग)  यौन हिंसा ही पूंजीवादी व्यवस्था के पास महिलाओं को देने के लिए है। अश्लील संस्कृति के कारोबार से यह अरबों-खरबों रुपया कमाती है। जो संस्कृति महिलाओं को भोग वस्तु के तौर पर पेश करती है। महिलाओं के खिलाफ अपराधों को बढ़ाती है। 
    हल्द्वानी की इस दर्दनाक घटना के बाद जनता बेहद आक्रोशित है। हल्द्वानी में दो दिन तक स्कूल-कालेज बंद रहे। रोज ही कहीं न कहीं शोक सभा, जुलूूस के माध्यम से लोग अपनी संवदेना व आक्रोश व्यक्त कर रहे हैं। हल्द्वानी ही नहीं तमाम शहरों-कस्बों में लोग अपनी संवेदना व आक्रोश व्यक्त कर रहे हैं। 
    महिलाओं-बच्चियों की सुरक्षा आज देश में बड़ा सवाल बन चुका है। कांग्रेस सत्ता में होती है तो भाजपा ‘सुरक्षा दो’ की मांग करती है और भाजपा सरकार में होती है तो कांग्रेस ‘सुरक्षा दो’ की मांग करती है। यह दोनों पार्टियां और इनके समान ही तमाम चुनावबाज पूंजीवादी पार्टियां अपने रूप, रंग, एजेण्डे पर एक ही हैं। ये लगातार ऐसा माहौल पैदा करने वाले लोग हैं जिस कारण महिलाओं के खिलाफ हिंसा हो रही है। जब पूंजीवादी व्यवस्था के सांसद-विधायक यौन हिंसा में लिप्त हों, विधानसभा में ब्लू फिल्म देखने वाले हों तो ऐसे राजनेताओं और पार्टियों से क्या सुरक्षा की मांग की जा सकती है। 
    महिलाओं की सुरक्षा को देश के मजदूर-मेहनतकशों को ही आगे आना होगा। अपने राजनीतिक हस्तक्षेप से पूंजीवादी व्यवस्था को खत्म कर समाजवाद का निर्माण करना होगा। ऐसे समाज जिसमें महिलाओं को धार्मिक पाखंड से मुक्ति मिलेगी, उसे बराबरी का दर्जा मिलेगा। सामाजिक उत्पादन में उसकी पूर्ण भागीदारी होगी। ऐसा समाजवादी समाज ही महिलाओं की मुक्ति का रास्ता प्रशस्त करेगा।    विशेष संवाददाता 
हीरो मोटो कार्प मजदूरों को बहलाने-फुसलाने की कोशिश में पूंजीवादी नेता
वर्ष-17,अंक-22(16-30 नवम्बर, 2014)
    हरिद्वार। हीरो मोटो कार्प, हरिद्वारा के मजदूर अपने ट्रेड यूनियन अधिकारों को बचाने के लिए संघर्ष के मैदान में डटे हुए हैं। लगभग चौदह माह पहले हीरो मोटोकार्प के तीस से अधिक मजदूरों को कंपनी प्रबंधन ने हड़ताल उकसाने के आरोप में निलंबित कर दिया था। उस वक्त कंपनी प्रबंधन ने कहा थ कि साठ दिनों के भीतर जांच पूरी कर निर्दोष मजदूरों को काम पर वापस ले लिया जाएगा। लेकिन एक साल से अधिक बीत जाने पर भी जब निलंबित मजदूरों को न्याय नहीं मिला तो उन्होंने सड़क पर उतरने का फैसला लिया। इस दौरान पूरी अवधि में कभी भी कंपनी प्रबंधन मजदूरों के चुने हुए प्रतिनिधियों से वार्ता तक करने को तैयार नहीं हुुई।
    सितम्बर माह में सहायक श्रम आयुक्त हरिद्वारा ने मजदूरों को एक दिवसीय धरने के बाद आश्वासन दिया था कि वे मजदूरों के निलंबन समाप्ति को लेकर कंपनी प्रबंधन और मजदूर प्रतिनिधियों के बीच वार्ता कराऐंगे। लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो अक्टूबर माह के मध्य से हीरो मोटो कार्प के 28 मजदूरों ने सहायक श्रम आयुक्त कार्यालय पर दिन-रात का अनिश्चितकालीन धरना और श्रमिक अनशन शुरू किया। इस दौरान पड़े दीपावली के पर्व पर भी मजदूर अपने घर जाने की बजाय सहायक श्रम आयुक्त कार्यालय पर ही डटे रहे। इस पर भी जब शासन-प्रशासन के कानों पर जूं नहीं रेंगी तो 28 अक्टूबर से दो मजदूर साथी आमरण अनशन पर बैठे। 
    निलंबित मजदूरों के द्वारा चलाये जा रहे धरने का हीरो मोटोकार्प के सभी मजदूरों ने जोशो खरोश से समर्थन किया। उन्होंने मजदूर साथियो की वापसी की मांग को लेकर काली पट्टी बांधी, कैन्टीन का बहिष्कार किया, दीपावली पर मिलने वाली मिठाई का बहिष्कार किया और उत्पादन धीमा किया। हरिद्वार सिडकुल की दूसरी कंपनियों एवरेडी, आईटीसी, मुंजाल शीवा, सत्यम, वीआईपी, राॅकमैन के मजदूरों ने भी घटनास्थल पर पहुंचकर हीरो मोटो कार्प के मजदूरों के संघर्ष का समर्थन किया।
    1 नवम्बर को हीरो मोटोकार्प के मजदूरों ने स्थानीय चिन्मय डिग्री काॅलेज से लेकर सहायक श्रम आयुक्त कार्यालय तक रैली निकाली। रैली के दौरान सभी मजदूरों के भीतर प्रबंधन के तानाशाहीपूर्ण रवैये के खिलाफ जबर्दस्त आक्रोश था। इस आक्रोश से घबराए हुए भाजपा और कांग्रेस के नेता सहायक श्रम आयुक्त कार्यालय पर पहुंचे। इन नेताओं ने मजदूरों को न्याय दिलाने के लिए अपने द्वारा किये जा रहे प्रयासों का ढ़ोल पीटा और कहा कि इनके सारे प्रयासों के बावजूद प्रबंधन हठ पर अड़ा हुआ है। इन्होंने घोषणाएं की कि अगर निलंबित मजदूरों को वापस नहीं लिया गया तो वे कंपनी बंद करवा देंगे। ऐसी कागजी घोषणाएं करने के बाद वे सिडकुल में उत्तराखण्ड के लोगों के लिए सत्तर प्रतिशत आरक्षण की बात पर आ गए और इसी पर ज्यादा बातें कीं। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पूंजीपति वर्ग की पार्टी हैं। अतः अपने फर्ज को सही तरीके से निभाते हुए उन्होंने मजदूरों की एकता को तोड़ने के लिए सत्तर प्रतिशत आरक्षण के मुद्दे को खूब उछाला। वे जानते थे कि इस मुद्दे के द्वारा वे मजदूरों के बीच मतभेद पैदा कर हीरो मोटो कार्प प्रबंधन की सेवा कर सकते हैं। 1 नवम्बर की रैली को हीरो मोटोकार्प के सामने वाली सड़क से नहीं गुजरने दिया गया, लेकिन इन नेताओं में से किसी ने भी इस अन्याय पर सवाल नहीं उठाया। 
    अपने दलाल नेताओं की वफादारी से हीरो प्रबंधन आश्वस्त था। इसी वजह से जब 4 नवम्बर को वह देहरादून में मजदूर प्रतिनिधियों से वार्ता के लिए पहंुचा तो कोई भी वार्ता करने के लिए उसने शर्त रखी कि पहले फैक्टरी में माहौल सामान्य किया जाए। मध्यस्थता कर रहे उपश्रमायुक्त डी.लाल ने भी एक तरह से प्रबंधन की ही हामी भरी। डी.लाल की बेशर्मी इस हद तक की थी कि उन्होंने कहा कि वे अगर मजदूरों की जगह होते तो प्रबंधन नौकरी छोड़ने के लिए पैसे का जो प्रस्ताव दे रहा है उसे स्वीकार कर लेते। 
    4 नवम्बर की वार्ता के बाद हीरो मोटोकार्प के मजदूरों ने सीटू के नेता के कहने पर फैक्टरी के भीतर चल रहे कैंटीन बहिष्कार, प्रार्थना बहिष्कार तथा स्लो डाउन को समाप्त कर दिया है। इस दौरान प्रबंधन ने 28 निलंबित मजदूरों की जांच रिपोर्ट जारी कर दी है जिसमें सभी को घोर अनुशासनहीनता का दोषी करार दिया है और उनसे पूछा है कि क्यों न उनकी नौकरी समाप्त कर दी जाए। जाहिर सी बात है कि प्रबंधन अभी मजदूरों के भीतर और ज्यादा बिखराव और पराजय की भावना भरना चाहता है। 
    इस दौरान प्रशासन हर चौथे पांचवे दिन आमरण अनशनकारियों को जबरन उठा दे रहा है अब तक दो-दो मजदूर कर चार चक्र में आमरण अनशनकारी बैठ चुके हैं। 
    हीरो मोटोकार्प के निलंबित मजदूरों को तोड़ने के लिए पूंजीपति वर्ग के दलाल लोग सक्रिय हैं। वे मजदूरों को फुसलाते हैं कि उन्हें समझौते के बारे में सोचना चाहिए और नौकरी पुनर्बहाली के अलावा किसी अन्य मांग मसलन पैसा, किसी अन्य कंपनी में नौकरी, हीरो के किसी अन्य प्लांट में नौकरी या ऐसी ही किसी और चीज पर समझौता कर लेना चाहिए। लेकिन निलंबित मजदूर जानते हैं कि हीरो मोटोकार्प के तमाम मजदूर जिस भरोसे के साथ उनका साथ दे रहे हैं, ऐसी किसी मांग पर समझौता कर लेना उन मजदूरों के साथ दगा होगा।
    हीरो मोटोकार्प के निलंबित मजदूरों के आंदोलन का महत्व पूरे सिडकुल हरिद्वार के मजदूरों के लिए है। अगर हीरो मोटोकार्प के मजदूरों ने अपनी एकता बरकरार रखी और पूंजीवादी नेताओं के फुसलाने में आने के बजाय अपने संघर्षों को तीखा कर हीरो प्रबंधन और पुलिस-प्रशासन-श्रम विभाग पर दबाव बनाने का काम करते हैं तो न सिर्फ अपने लिए न्याय हासिल करेंगे बल्कि शेष मजदूर आबादी के ऊपर से भी दबाव को कम करेंगे।   हरिद्वार संवाददाता
सत्तर प्रतिशत आरक्षण का झुनझुना

    उत्तराखण्ड में सभी पूंजीवादी पार्टी सिडकुल में उत्तराखंड के निवासियों के लिए सत्तर प्रतिशत आरक्षण के मुद्दे को खूब उछालते हैं। वे बार-बार मजदूरों के न कहने पर भी इस मुद्दे के लिए लड़ने की कसमें खाते हैं। सिडकुल में हो रहे श्रम कानूनों में उल्लंघन, ठेकेदारी प्रथा, यूनियनों का पंजीकरण न होने देने पर चुप्पी साधे रहते हैं। जबकि सिडकुल में काम कर रहे उत्तराखंड के सभी मजदूर भी आज सबसे ज्यादा इसी चीज से परेशान हैं। 
    दरअसल, पूंजीवादी पार्टियां नई आर्थिक नीतियों के समर्थक होने की वजह से पूंजीपति वर्ग को शोषण की बेलगाम छूट देने के हिमायती हैं। ऐसे में मजदूरों के भीतर पैदा हो रहे आक्रोश से पैदा होने वाले आंदोलनों की दिशा भ्रमित करने में सत्तर प्रतिशत आरक्षण का मुद्दा बहुत उपयोगी होता है। इस मुद्दे को उठाकर वे मजदूरों के बीच एक-दूसरे के प्रति संशय पैदा करते हैं। इस मुद्दे से मजदूरों के आक्रोश के निशाने पर आने से फैक्टरी मालिकान बच जाते हैं। 
    मजदूरों के हित इस बात में है कि वे मांग करें कि जब पूंजी को आने-जाने पर सरकार कोई रोक टोक नहीं लगाती तो वह मजदूरों के लिए क्यों बाधा खड़ी करती है। क्यों पार्टियां मजदूरों के लिए परमिट इत्यादि का बखेड़ा पैदा कर दमनात्मक माहौल बनाती है। मजदूरों को अगर जानवर जैसी हालत में नौकरी करने के लिए ही आरक्षण मिला है तो इस आरक्षण को पूंजीपति वर्ग और पूंजीवादी नेता खुद एक बार स्वीकार कर के दिखाएं। मजदूरों का हित जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र आदि के भेदभाव से उठकर मजबूत एकता बनाने में है। 

हीरो मोटो कार्प के प्रबंधक का ठेका मजदूरों के बाद स्थायी मजदूरों पर हमला
वर्ष-17,अंक-22(16-30 नवम्बर, 2014)
    गुड़गांव। हीरो मोटर कार्प के प्रबंधक ने अगस्त माह में ठेकेदारी के 500 मजदूरों को बाहर निकालने के बाद अब अपना हमला स्थायी मजदूरों पर भी बोल दिया है। पहले उसने ठेके के मजदूरों का जमीनी संघर्ष समाप्त किया और बाद में मुआवजे के तौर पर कुछ देकर उनको बाहर कर दिया। अब कुछ कानूनी लड़ाई ही बची हुयी है। और इसके बाद उसने अब सितम्बर माह में सस्पेेन्ड किये गये 9 मजदूरों में 3 मजदूरों को बर्खास्त कर दिया है। 5 को वह पहले की काम पर ले चुका था और 1 मजदूर का हिसाब कर दिया था। ये 3 मजदूर प्रबंधक की आंखों में खटक रहे थे। और उसने अब इन तीनों से भी छुटकारा पा लिया है। 
    हीरो मोटो कार्प के इस प्लाण्ट में एचएमएस की यूनियन जो गुड़गांव क्षेत्र में सबसे बड़ा ट्रेड यूनियन सेण्टर है। हीरो मोटो कार्प का यूनियन प्रधान ही इस समय जिला गुड़गांव का एचएमएस का प्रधान भी है। इस समय एचएमएस से जुड़ी हुई यूनियनों के कई प्रधान व पदाधिकारी कम्पनी से बाहर हैं। 
    ऐसे में यह रणनीति बनाई गयी कि सभी यूनियन पदाधिकारी अपनी-अपनी कम्पनी में मजदूरों को संगठित कर संघर्ष करेंगे और एक साझा संघर्ष शुरू किया जाये। और 10 अक्टूबर को 3 यूनियन प्रधानों की बर्खास्तगी के खिलाफ यूनियन प्रधान व एचएमएस के जिला प्रधान हरीश शर्मा और एचएमएस के प्रांतीय कोषाध्यक्ष जसपाल राणा कंपनी के सामने स्थित पार्क में आमरण अनशन पर बैठ गये। 
     ऐसे में ये संघर्ष मजदूरों के लिए आशा की किरण बन गये। कई अन्य कंपनियों के मजदूरों का भी समर्थन इसको मिलने लगा। परन्तु जैसा कि हमेशा होता है कि वर्गीय चेतना से विहीन इन संघर्षों का नेतृत्व संघर्ष को बीच रास्ते में आधा ही छोड़ देते हैं। और वर्ग सहयोग की नीति अपना लेते हैं। 11 अक्टूबर की रात्रि लगभग 9-10बजे डीएलसी अनुराधा लांबा के आश्वासन पर आमरण अनशन समाप्त कर दिया। एक विकसित होते सामूहिक संघर्ष को बीच रास्ते में रोककर मजदूरों के बीच हताशा व निराशा का माहौल पैदा किया गया। डीएलसी लांबा ने 17 अक्टूबर को प्रबंधक के साथ त्रिपक्षीय वार्ता का दिन तय कियां इसके बाद न केवल आमरण अनशन बल्कि जमीनी संघर्ष भी समाप्त कर दिया गया। ये फैसला मात्र कुछ प्रधानों की सहमति के आधार पर लिया गया। अधिकांश मजदूरों की राय थी कि संघर्ष को बिल्कुल समाप्त न किया जाए और वह भी मात्र एक आश्वासन पर क्योंकि इस तरह के आश्वासन तो कई बार कई कम्पनियों के मजदूरों को मिल चुके हैं। 
    और फिर वही हुआ जैसा कि हमेशा होता है। 17 अक्टूबर को हीरो मोटो कार्प के प्रबंधक वर्ग का एक मुख्य आदमी नहीं आया और अगली तारीख 30 अक्टूबर रखी गयी। और इस बीच एचएमएस द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी। जिससे प्रबंधक वर्ग या शासन-प्रशासन कुछ दबाव महसूस करता और वह समझौते के लिए मजबूर होता। 30 अक्टूबर को भी कोई फैसला नहीं हो पाया और केस एएलसी को स्थानांतरित हो गया। जिसकी अभी कोई तारीख भी नहीं है। 
     आज मजदूरों को यह साफ समझने की जरूरत है कि पूंजी मजदूर वर्ग पर हावी है। और वह मजदूरों के बिना एक संगठित प्रतिरोध के, उनको अधिकार देने वाली नहीं है। और पूंजी परस्त ट्रेड यूनियन मजदूरों के संघर्षों को कुंद करने का काम कर रहे हैं। कहीं वे यह काम पूरे होशो हवास में तो कहीं वर्गीय चेतना न होने के कारण कर रहे हैं। मजदूरों को आज अपने  वर्गीय चेतना पर खड़े क्रांतिकारी संगठनों की जरूरत है जो उनके संघर्षों को पूूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ खड़ा करें।             गुड़गांव संवाददाता

मजदूरों ने मृतक मजदूरों के शवों के साथ फैक्टरी पर घेरा डाला

जीवा डिजायन के दो मजदूरों की मौत
वर्ष-17,अंक-22(16-30 नवम्बर, 2014)
    डी.एल.एफ. इंडस्ट्रियल एरिया फेज-प् फरीदाबाद में एक्सपोर्ट लाइन की एक कंपनी जीवा डिजाइन के 3 मजदूर रात के एक बजे ओवरटाइम करके बाईपास रोड़ से पैदल ही अपने घर जा रहे थे कि पीछे से आ रही एक तेज रफ्तार गाड़ी ने उन्हें टक्कर मार दी। दो मजदूरों, इलाहाबाद के अवधेश कुमार एवं मऊ के त्रिभुवन की मौके पर ही मौत हो गयी। तीसरे मजदूर मनोज कुमार के पैर में फ्रैक्चर एवं कुछ अन्य चोटें आई हैं। मरने वाले दोनों मजदूरों की उम्र 30 वर्ष से कम है। अवधेश कुमार के दो जबकि त्रिभुवन के तीन छोटे-छोटे बच्चे हैं। 
    सुबह होते-होते इस मर्मांतक घटना की खबर फैक्टरी के  सभी मजदूरों को लग चुकी थी। फैक्टरी के सैकड़ों मजदूरों ने दोनों मजदूरों के शव फैक्टरी परिसर में रखकर घेरा डाल दिया। इसी फैक्टरी के दूसरे प्लाण्ट के मजदूर भी इस दुःख की घड़ी में काम छोड़कर अपने भाइयों के साथ आ खड़े हुए। सभी मजदूरों का यही कहना था कि प्रबंधन जोर जबर्दस्ती ओवर टाइम लगवाता है। रात-बेरात मजदूरों को छोड़ा जाता है। और वे सुरक्षित घर पहुंच सकें इसका कोई इंतजाम नहीं करता है, इसीलिए यह हादसा हुआ। मजदूरों ने प्रबंधन को इस हादसे के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराया और दोनों मृतक मजदूरों के परिजनों के लिए मुआवजे की मांग करने लगे। 
    मजदूरों के बीच से कुछ आगे बढ़े हुए मजदूरों से प्रबंधन की वार्ता शुरू हो गयी। वार्ता में शुरूआत से ही दलाल किस्म के लोग भी शामिल हो चुके थे। प्रबंधन ने चालबाजी करते हुए समय बिताना शुरू कर दिया। सुबह से दोपहर हो गयी। लेकिन प्र्रबंधन की चाल से मजदूरों को आक्रोश कम होने के बजाय और अधिक बढ़ गया। और जब प्रबंधन ने दोनों मजदूरों को एक-एक लाख रूपये मुआवजे की घोषणा की तो गुस्से में आकर बहुत से मजदूर मृतक मजदूरों में से एक का शव लेकर फैक्टरी के प्रथम तल पर चढ़ गये। बाकी मजदूर दूसरे शव के साथ नीचे घेरा डाले रहे और हंगामा बढ़ गया। फैक्टरी प्रबंधन की सुरक्षा में सुबह से ही तैनात पुलिसकर्मी बीच-बचाव करने लगे। मजदूरों ने कहा कि उन्हें भीख नहीं चाहिए। इस समय तक पुलिस के कुछ बड़े अधिकारी और श्रम विभाग से इलाके से सहायक श्रम आयुक्त भी मौके पर पहुंच चुके थे। अंततः काफी जद्दोजहद के बाद पुलिस ने दोनों मजदूरों को एक-एक लाख रुपये दिये जाने का आश्वासन दिया। ऐसा ही आश्वासन श्रम विभाग से सहायक श्रम आयुक्त ने भी दिया। यह भी तय हुआ कि सभी मजदूर एवं स्टाफ अपना एक-एक दिन का वेतन देंगे और यह जितना बनेगा उसका दोगुना कंपनी देगी, साथ ही दोनों मृतकों की पत्नियों को कंपनी स्थायी नौकरी देगी। फौरी राहत के तौर पर पचास-पचास हजार रुपये प्रबंधन ने मृतकों के परिजनों को दिये। 
    इन्हीं मजदूरों को दिन-रात निचोड़ कर जीवा डिजाइन के मालिक करोड़ों-अरबों का मुनाफा कमाते हैं जिसमें से लाखों रुपये महीने तनख्वाह प्रबंधकों को मिलती है और लाखों रुपये महीना पुलिस-प्रशासन एवं श्रम विभाग के अधिकारियों का बंधा हुआ है। दलाल नेता और लंपट तत्व भी पूंजीपतियों की इसी हराम की कमाई पर पलते हैं। यदि जीवा डिजाइन के मजदूरों ने फैक्टरी पर घेरा डालकर हंगामा न किया होता तो फैक्टरी के मालिक, प्रबंधन, पुलिस-प्रशासन, श्रम विभाग सभी उक्त मामूली मुआवजे की भी घोषणा नहीं करते। 
    जीवा डिजाइन के मजदूरों को मुआवजे को अपनी मुख्य मांग बनाने के बजाय फैक्टरी मालिक एवं प्रबंधकों पर मुकदमा दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार करने की मांग करनी चाहिए थी क्योंकि असल में अपनी मुनाफे की हवस के चलते जबरन ओवरटाइम पर रोक कर और सुरक्षित घर पहुंचने की व्यवस्था न कर मालिक और प्रबंधन ने दोनों नौजवान मजदूरों अवधेश कुमार और त्रिभुवन की हत्या की है। 
    आज वे उदारीकृत पूंजीवाद का मतलब ही है पूंजीपति वर्ग द्वारा मजदूर वर्ग का अबाध शोषण और बेरोकटोक लूट। इसमें बाधक श्रम कानूनों का व्यवहार में पालन विभिन्न सरकारों एवं श्रम विभाग की मेहरबानी के चलते पहले ही बंद हो चुका है। जीवा डिजाइन के दो मजदूरों की मौत हो या फैक्टरियों में रोज-ब-रोज होने वाली दुर्घटनाएं अथवा लखानी अग्निकांड जैसी घटनाएं इन सबके मूल में उदारीकृत पूंजीवाद के तहत जारी लूट ही है। केन्द्र की नई मोदी सरकार तो श्रम कानूनों में ही व्यापक बदलाव की ओर कदम बढ़ाकर उदारीकरण के खूनी रथ को सरपट दौड़ा रही है। मजदूर वर्ग की व्यापक एकजुटता और आंदोलन ही उदारीकरण के खूनी रथ के पहियों को थाम सकता है और पीछे धकेल सकता है।      फरीदाबाद संवाददाता

ऐरा मजदूरों का आंदोलन जारी 
वर्ष-17,अंक-21(01-15 नवम्बर, 2014)
    सिडकुल पंतनगर की ऐरा बिल्डिसिस लि. कम्पनी के मजदूर विगत 15 अक्टूबर 2014 से डी.एम.कार्यालय रुद्रपुर में 18 निलम्बित मजदूरों की कार्यबहाली, मजदूर नेताओं पर दर्ज झूठे मुकद्मे वापिस लेने आदि मांगों को लेकर अनिश्चित कालीन धरने पर बैठे हैं। 
    ऐरा श्रमिक संगठन द्वारा रविवार एवं दीपावली में भी धरना जारी रखा गया। दिनांक 27 अक्टूबर को सिडकुल पंतनगर की दर्जनों यूनियनों एवं मजदूर संगठनों द्वारा डी.एम.ऊधमसिंह नगर को ऐरा मजदूरों की कार्यबहाली कराने को ज्ञापन प्रेषित किये गये और अति शीघ्र मजदूरों की कार्यबहाली न होने पर संयुक्त मोर्चें के तहत ऐरा मजदूरों के समर्थन में व्यापक आंदोलन छेड़ने की चेतावनी दी गयी। ज्ञापन देने वालों में शिरडी श्रमिक संगठन, नेस्ले कर्मचारी यूनियन, ठेका मजदूर कल्याण समिति, वोल्टास वर्कर्स यूनियन, व्हैराॅक वर्कर्स यूनियन, पारले मजदूर संघ, राने मद्रास मजदूर संगठन, इंकलाबी मजदूर केन्द्र, एक्टू, मजदूर सहयोग केन्द्र आदि शामिल थे। ऐरा श्रमिक संगठन को डी.एम. ने 31 अक्टूबर तक समस्या का हल निकालने की बात की है। ऐरा श्रमिक संगठन द्वारा चेतावनी दी गयी है कि 31 अक्टूबर तक मजदूरों की कार्यबहाली न होने पर यूनियन द्वारा आमरण अनशन किया जायेगा और आंदोलन को व्यापक किया जायेगा। 
    कांग्रेस पार्टी के पूर्व विधायक तिलकराज बेहड़ ने मजदूरों केे धरना स्थल पर जाकर एवं डी.एम. के समक्ष अवगत कराया है कि उत्तराखण्ड सरकार द्वारा जनहित में मजदूर नेताओं पर लगाये गये मुकदमे वापिस ले लिये गये हैं। हालांकि ऐरा मजदूरों को उत्तराखण्ड सरकार द्वारा मुकदमे वापिसी के फैसले की प्रति प्राप्त नहीं हुई है। तिलकराज बेहड ने कुछ दिनों के भीतर आदेश की प्रति लाने का वायदा किया है। अब वक्त ही बतायेगा कि मजदूर नेताओं पर लगाये गये झूठे मुकदमे सरकार द्वारा वापिस लिये गये हैं अथवा नहीं। फिलहाल ऐरा यूनियन द्वारा चलाये जा रहे आंदोलन को ट्रेड यूनियनों, मजदूर संगठनों राजनीतिक पार्टियों एवं जनप्रतिनिधियों द्वारा समर्थन मिलना शुरू हो गया है। समर्थन बढ़ती पर है।
वे डरते हैं कि मजदूर अपने रंग में ना आ जायें- 21 जुलाई 2014 को जब ऐरा कम्पनी के मजदूरों द्वारा अपनी पंजीकृत यूनियन का झण्डा फहराया जा रहा था तो पुलिस द्वारा मजदूरों पर बहशियाना ढंग से लाठी चार्ज किया गया। लाठी चार्ज में किसी मजदूर का सिर फूटा तो किसी का हाथ टूटा था। इंकलाबी मजदूर केन्द्र अध्यक्ष कैलाश भट्ट, ऐरा श्रमिक संगठन के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष महामंत्री समेत 19 लोगों पर संगीन धाराओं के तहत मुकदमे लादकर जेल भेज दिया गया था।
    पुलिस, सिडकुल प्रबंधन, सिडकुल कंपनियों के मालिकान, नेता, अफसर, जज सभी मजदूरों के विरोध में खड़े थे। ऐसा अकारण नहीं था। इसका मूलभूत कारण यह था कि ऐरा कंपनी के मजदूरों ने अपनी यूनियन के झण्डे का रंग लाल चुना था। सिडकुल पंतनगर की भूमि पर पहली बार कोई यूनियन लाल रंग का झण्डा फहराने जा रही थी। सिडकुल कंपनी के मालिकान एवं सत्ता प्रतिष्ठानों के सभी अमले मजदूरों के अपने लाल रंग में रंगने के महत्व को बखूबी समझते थे और इससे भयभीत थे, इसलिए ये सभी विरोधी बनकर मजदूरों पर टूट पड़े, ताकि ऐरा मजदूरों की यूनियन को छिन्न-भिन्न कर दिया जाय।
    स्थानीय भाजपा विधायक द्वारा तो लाल झण्डे एवं इंकलाबी मजदूर केन्द्र के खिलाफ खुलेआम लगातार दुष्प्रचार जारी रखा गया और मजदूरों के मनोबल को तोड़ने की भरपूर कोशिश की गयी।
    ‘न्याय के मन्दिर’ का तो यह हाल था कि सी जे एम ने तुरन्त मजदूरों की जमानत अर्जी खारिज कर दी। डी.जे. ने बहस के दौरान प्रतिक्रिया में कहा कि ‘‘यह लोग खुरापाती तत्व हैं। ये नौकरी करने थोड़े ही आये हैं, अराजकता पैदा करने आये हैं’’। डी.जे. ने मजदूरों को जमानत देते हुए दो कड़ी शर्तें लगा दीं (1) मजदूर घटना स्थल से बीस-पच्चीस मीटर दूर रहेंगे (2) सभी अभियुक्तों को प्रत्येक माह की पच्चीस तारीख को पंतनगर थाने में हाजिरी लगानी होगी। 
    शर्त नं. (1) तो ऐरा कंपनी प्रबन्धन के मनमाफिक एवं ऐरा मालिकान को प्रत्यक्षतः लाभ पहुंचाने वाली शर्त है। क्योंकि कंपनी का मुख्य प्रवेश गेट घटना स्थल से मात्र दो-तीन मीटर दूरी पर स्थित है। सांप भी मर जाय और लाठी भी न टूटे वाली बात थी। अर्थात मजदूर डी.जे. के आदेश के बाद कार्यस्थल पर नहीं जा सकते थे वहीं दूसरी तरफ कंपनी प्रबन्धन द्वारा मजदूरों को कार्य से अनुपस्थित रहने के लिए पहले कारण बताओ नोटिस जारी किये गये और उसके बाद सभी 18 मजदूरों को अवैधानिक रूप से निलम्बित (सस्पेंड) कर दिया गया। 
    पूरी कहानी किसी फिल्म की पटकथा की तरह ही शूटिंग से पहले लिखी गयी। पात्रों को तो फिल्म की डिमांड के अनुसार अभिनय मात्र करना था। इस फिल्म की कहानी थी यूनियन को तोड़ना। इसके लिए सिडकुल प्रबन्धन को मजदूरों के खिलाफ झूठी तहरीर देनी थी। पुलिस को लाठी चार्ज कर मजदूर नेताओं को जेल भेजना था। जज साहब को देर से जमानत देनी थी और जमानत के पश्चात मजदूरों को कंपनी गेट पर जाने से रोकना था। इसके बाद प्रबन्धन को मजदूर नेताओं को सस्पेन्ड करना था। सबका कुल परिणाम निकलना था यूनियन का टूट-फूट कर बिखर जाना था। पूरी फिल्म की शूटिंग फिल्म की पटकथा के हिसाब से चली परन्तु फिल्म का क्लाइमेक्स पटकथा से भिन्न तरीके से घटित हुआ। फिलहाल यूनियन बिखरने के स्थान पर ज्यादा मजबूत होती हुई दिखाई देती है। फिल्म के निर्माता-निर्देशक हैरान है। बिलेन हीरो बन चुके हैं और नायक बने खलनायक। 
    ऐरा श्रमिक संगठन द्वारा डी.जे. के जमानत आदेश में दर्ज पहली शर्त को मजदूरों के जिंदा रहने से अधिकारों का हनन मानते हुए इसके खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की और हाई कोर्ट ने इसे स्वीकार करते हुए डी.जे. के आदेश में दर्ज पहली शर्त को खारिज करते हुए मजदूरों को कंपनी में आने-जाने की छूट दे दी। परन्तु अब तक काफी देर हो चुकी थी। कंपनी प्रबन्धन मजदूरों को सस्पेंड कर चुके थे, प्रबन्धकों का काम हो चुका था। यूनियन नेता बाहर हो चुके थे। 
    इसके पश्चात कंपनी प्रबन्धकों ने कंपनी के भीतर कार्यरत मजदूरों को तोड़ने एवं डराने-धमकाने की रणनीति अपनायी। मजदूरों का तरह-तरह से उत्पीड़न किया जाने लगा। 
    यूनियन द्वारा मजदूरों की आम सभा बुलायी गयी। ठीक समय पर कंपनी के भीतर मजदूरों की सामूहिक एकता दिखाने की रणनीति बनायी गयी। मौका चुना गया कंपनी के स्थापना दिवस के मौके पर आयोजित ऐरा डे कार्यक्रम का सामूहिक रूप से बहिष्कार करना। 
    3 सितम्बर को कंपनी प्रबन्धकों द्वारा ‘ऐरा डे’ पर कंपनी में आयोजित सामूहिक भोज का मजदूरों ने ऐन मौके पर सामूहिक रूप से बहिष्कार कर दिया और रसगुल्ले लेने आदि से इन्कार कर दिया। इससे कंपनी प्रबंन्धकों के होश फाख्ता हो गये। अब कंपनी में कार्यरत मजदूर यूनियन नेताओं के बिना भी बेखौफ होकर सामूहिक रूप से प्रतिरोध करके मजदूरों की कार्यबहाली के लिए संघर्ष कर रहे थे। 
    इसके पश्चात यूनियन के निर्देशन में समस्त कार्यरत मजदूरों ने अपने सामूहिक प्रतिरोध को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया गया। 15 सितम्बर से मजदूरों ने कार्य के दौरान बांह पर काले फीते बांधे। एक सप्ताह बाद काले फीते के साथ ही चेस्ट पर ‘‘18 मजदूरों की कार्यबहाली के लिए मौन’’ लिखे चेस्ट कार्ड लगाकर कार्य के दौरान मौन रखा गया। सामूहिक मौन से कंपनी प्रबन्धन अत्यंत परेशान हो गया। 
    24 सितम्बर को कंपनी प्रबन्धकों ने सुनील देवल नामक मुखर मजदूर को अपने केबिन में बुलाकर बंधक बना लिया और टेबिल में कुछ सामान रख कर उसकी फोटो खींची गयी और चोरी के आरोप में फंसाने का षड्यंत्र रचा जाने लगा। सुनील देवल ने मौका पाकर यूनियन महामंत्री एवं उपाध्यक्ष को पूरे प्रकरण की जानकारी देते हुए एस एम एस भेज दिया और बताया कि प्रबन्धकों ने उसे बंधक बना रखा है। यूनियन द्वारा तत्काल इस पर तहरीर तैयार कर दी गयी। मजदूरों को जैसे ही इस घटना का पता चला तो कंपनी में मौजूद सभी मजदूर इससे बौखला गये और कंपनी प्रबन्धकों का जबरदस्त घेराव किया। कंपनी प्रबन्धक मजदूरों के तेवर देखकर बुरी तरह से घबरा गये। और मजदूरों के आगे हाथ जोड़कर माफी मांगने लग गये। मजदूरों ने अपना धैर्य नहीं खोया इससे कोई अप्रिय घटना घटित नहीं हुई। 
    शिफ्ट छूटते ही सभी मजदूर सुनील देवल के साथ में एस.एस.पी. कार्यालय पहुंचे और कंपनी प्रबंधकों के खिलाफ तहरीर देकर प्रबन्धकों की गिरफ्तारी की मांग की। दूसरी तरफ कंपनी प्रबंधक भी सुनील देवल के खिलाफ चोरी का झूठा मुकादमा दर्ज कराने को सिडकुल पुलिस चौकी पहुंचे परन्तु तब तक मजदूर अपनी तहरीर दर्ज करा चुके थे। और कंपनी प्रबंधकों का यह दांव भी फेल हो गया।
    यह घटना मोड़ बिन्दु साबित हुई, यूनियन मजबूत हुई। दबाव मजदूरों से हटकर कंपनी प्रबंधकों के ऊपर आ गया। 
    इसके अलावा यूनियन द्वारा पुलिसिया कार्यवाही के खिलाफ मानवाधिकार आयोग में भी शिकायत की। इस पर आयोग ने यूनियन पदाधिकारियों एवं सी.ओ., सिडकुल चौकी इंचार्ज को बुलाकर 7 अक्टूबर को सुनवाई की। सी.ओ. द्वारा घटना स्थल पर खुद के उपस्थित न होने एवं लाठी चार्ज न करने की बात की। इस पर यूनियन महामंत्री द्वारा घायल मजदूर बुद्धसेन (जिनके हाथ पर प्लास्टर चढ़ा हुआ था) को आयोग के समक्ष उपस्थित किया। बुद्धसेन ने आयोग के समक्ष बयान दिया कि पुलिस ने ही मेरा हाथ तोड़ा है और सी.ओ. साहब उस समय वहां पर मौजूद थे और इन्होंने ही लाठी चार्ज का आदेश दिया था। आयोग द्वारा सुनवाई की अगली तिथि 12 दिसम्बर रखी गयी और पुलिस को पूरे प्रकरण की लिखित रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा। 
    22 अक्टूबर को समस्त मजदूरों ने दीपावली से पूर्व कंपनी प्रबंधन द्वारा दिये जा रहे मिठाई के डिब्बों को लेने से इंकार कर इसका सामूहिक रूप से बहिष्कार किया। 
    प्रबंधकों द्वारा नियुक्त वकील ने 18 एवं 19 अक्टूबर से निलम्बित मजदूरों की घरेलू जांच शुरू की है जिसकी अगली एवं अन्तिम तिथि 30 एवं 31 अक्टूबर रखी गयी है। 
    सिडकुल पंतनगर में लगभग 15-16 कंपनियों के गेटों पर उसी भूमि पर बी.एम.एस. एवं इंटक के झण्डे लगे हुए हैं जहां पर ऐरा यूनियन का झण्डा लगा है। परन्तु सिडकुल के क्षेत्रीय प्रबंधकों, सिडकुल पुलिस और शासन-प्रशासन को कोई दिक्कत नहीं है। ऐरा यूनियन के ध्वजारोहण के कार्यक्रम के पश्चात बी.एच.बी. कंपनी के गेट पर बी.एम.एस. का झण्डा स्थानीय भाजपा विधायक राजकुमार ठकुराल द्वारा फहराया गया, इस पर भी किसी को कोई दिक्कत नहीं हुई। परन्तु ऐरा यूनियन द्वारा फहराये जा रहे झण्डे से ही सबको परेशानी है। इसका स्पष्ट कारण है कि समूचा पूंजीपति वर्ग एवं पूरी राज्य मशीनरी इस बात से डरती है कि मजदूर अपने असली रंग (लाल रंग) में न रंग जाय। इसी कारण सभी ऐरा यूनियन पर टूट पड़ते है। परन्तु जालिमों को कौन समझाये कि उनकी लाख साजिशें भी वर्ग संघर्ष को रोक न पायेंगे। एक दिन जरूर ऐसा आयेगा जब मजदूर वर्ग अपने क्रांतिकारी लाल झण्डे एवं क्रांतिकारी विचारधारा के तहत गोलबंद होगा और अन्यायी पूंजीवादी व्यवस्था को तिनके की भांति उखाड़ फेंकेगा। 
             रूद्रपुर संवाददाता 

दिल्ली से अवैध तरीके से कंपनियों का पलायन जारी
वर्ष-17,अंक-21(01-15 नवम्बर, 2014)
    दिल्ली, मंगोलपुरी स्थित साॅफ्ट आप्शन प्रा.लि. के मालिकान ने अवैध तरीके से ग्रेटर नोएडा(उ.प्र.) स्थानांतरित करके मजदूरों को जबर्दस्ती स्वैच्छिक सेवा अवकाश (वी.आर.एस.) लेने पर मजबूर कर दिया। गौरतलब है कि एक माह पूर्व ओखला स्थित वेयरवैल प्रा.लि. ने अपने सैंपलिंग विभाग को ग्रेटर नोएडा स्थानांतरित कर मजदूरों को स्वैच्छिक सेवा अवकाश (वी.आर.एस.) लेने के लिए मजबूर कर दिया था।
    साॅफ्ट आप्शन प्रा.लि. मंगोलपुरी औद्योगिक क्षेत्र के फेज-2 में प्लांट ।-19 व ।-21 में स्थित है। यह कंपनी 1996 में स्थापित हुई थी। इसके मालिक बृजेन्द्र अग्रवाल हैं। इस कंपनी ने अकूत मुनाफा कमाते हुए लगातार अपनी पूंजी का विस्तार किया। कंपनी की आज कई सिस्टर ब्रांच हैं जो कि दिल्ली में ही निमडी कालोनी, अशोक विहार, श्रीनगर, भारत नगर व आजादपुर में स्थित हैं। इसके अलावा दिल्ली से बाहर नोएडा में कंपनी की एक शाखा स्थित है। इसके अलावा ग्रेटर नोएडा में कंपनी ने अपना नया प्लांट खोला है। 
    साॅफ्ट आप्शन में 300 के लगभग मजदूर काम करते हैं। ज्यादातर मजदूर पुराने हैं जो कि 7 वर्ष से 18 वर्ष तक कंपनी में काम करते हैं। मजदूरों के इतने पुराने होने व कंपनी की पूंजी व शाखाओं में लगातार विस्तार के बावजूद ज्यादातर मजदूरों की तनख्वाहें 8 से साढ़े दस हजार के बीच हैं जो कि दिल्ली जैसे महानगर में न्यूनतम जीवन स्तर के अनुरूप हैं। 
    मजदूरों ने विगत अतीत में अपनी एकजुटता व प्रतिरोध के चलते कंपनी को ई.एस.आई., पी.एफ. लागू करने व मजदूरों को स्थायी करवाने में सफलता पाई। कंपनी के मजदूर एटक से संबंद्ध आॅल इण्डिया जनरल ट्रेड यूनियन के सदस्य हैं। 2007 में मजदूर इस यूनियन से जुड़े। यूनियन का मजदूरों के रोजमर्रा के संघर्ष से कोई जुड़ाव नहीं रहा है। केवल कानूनी मामलों तक ही एटक के स्थानीय नेता अपने को सीमित रखते आये हैं। 
    बहरहाल जब 13 अक्टूबर को मजदूर कंपनी पहुंचे तो उन्होंने कंपनी गेट पर ताला लटका पाया। कंपनी के गेट पर एक नोटिस चिपका हुआ था जिसमें साॅफ्ट आॅप्शन कंपनी के ग्रेटर नोएडा स्थानांतरित होने की सूचना थी तथा मजदूरों से सेवा निरंतरता के वायदे व प्रचलित सेवा शर्तों के साथ ग्रेटर नोएडा में 20 अक्टूबर तक हाजिरी दर्ज कराने का निर्देश था। मजदूरों के ज्वाइनिंग लेने के समय के यात्रा खर्च का 50 प्रतिशत कंपनी द्वारा वहन करने का आश्वासन भी इसमें दिया गया था। यह श्रम कानूनों का खुला उल्लंघन था क्योंकि मौजूदा श्रम कानूनों के मुताबिक 100 मजदूरों (दिल्ली में) से अधिक मजदूरों को नियोजित करने वाली कंपनी के मालिकान अपनी मर्जी से कंपनी को दिल्ली से बाहर नहीं ले जा सकते थे। इसके लिए मजदूरों व यूनियन की मंजूरी अनिवार्य थी। इससे भी अहम बात यह कि मजदूरों को इस संबंध में कोई पूर्व नोटिस नहीं दिया गया था। जुलाई माह से लगातार कंपनी मजदूरों से ओवरटाइम करवाकर माल स्टाॅक कर रही थी। शायद उसे कंपनी शिफ्ट करने पर मजदूरों के प्रतिरोध का अंदेशा था। 
    कंपनी मालिक ने कंपनी गेट पर चिपकाये गये नोटिस की एक प्रति श्रम विभाग व एक प्रति पुलिस विभाग में भी डाल दी। इस अवैध शिफ्टिंग को रोकने के लिए मालिक को जबाव तलब करने व कारखाना खुलवाने के लिए तत्पर होने के बजाय श्रम विभाग कान में रूई डालकर बैठ गया जबकि पुलिस विभाग ने तत्परता से फैक्टरी गेट के पास जिप्सी खड़ी कर दी और मजदूरों को कानून व डंडे का भय दिखाना शुरू कर दिया। 
    मजदूरों ने कंपनी गेट पर अपना धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया। लेकिन एटक के नेतागण मजदूरों को उग्र आंदोलन के बजाय श्रम न्यायालय के चक्कर लगवाने लगे व हिसाब लेने या ग्रेटर नोएडा जाने की हिदायत देने लगे। श्रम समझौता अधिकारी मजदूरों को भ्रमित करते रहे कि कंपनी को शिफ्टिंग का कानूनी हक है। मजदूरों को या तो हिसाब लेना पड़ेगा या फिर ग्रेटर नोएडा जाना पड़ेगा। मजदूरों द्वारा ‘कानून में शिफ्टिंग के संबंध में लिखा है’ यह सवाल पूछने पर श्रम अधिकारी मजदूरों के प्रतिनिधियों को बुरी तरह डांट-डपटने व तमीज से बात करने की नसीहत देेने लगे। लेकिन इसी बीच मजदूरों को बताये बगैर चोरी छिपे श्रम विभाग के कर्मचारी फैक्टरी गेट पर एक नोटिस चिपका आये जो कि अंग्रेजी में था और जिसमें कारखाना शिफ्टिंग को अवैध बताते हुए फैक्टरी मालिकान को कारण बताओ नोटिस तथा आवश्यक कानूनी कार्यवाही करने की बात की गयी थी। यानी टेबिल के सामने श्रम समझौता अधिकारी, मालिकान के वकील की तरह बात कर रहे थे और चोरी छिपे शिफ्टिंग को अवैध घोषित करने वाला नोटिस चिपका रहे थे ताकि भविष्य में किसी कानूनी लफड़े या भ्रष्टाचार के आरोप में न फंसें। 
    मजदूर प्रतिनिधि बृज किशोर यादव ने बताया कि 10 से 15 साल तक काम करने के बावजूद मजदूरों की तनख्वाहें  7500 रुपये से 10,000 रुपये तक ही है। उन्होंने ईएसआई व पीएफ की सुविधा भी संघर्ष के दम पर ही हासिल कीं। ग्रेटर नोएडा में कंपनी की शिफ्टिंग का मामला सीधे-सीधे उ.प्र. सरकार की छूटों का फायदा उठाना था। सस्ती मजदूरी, टैक्स छूट का लाभ व श्रम कानूनों के कम लफड़े के साथ मजदूरों को अब तक दी जाने वाली सुविधाओं से छुटकारा पाना ही कंपनी मालिकान का उद्देश्य था। उन्होंने ‘प्रचलित सेवा शर्तों’ के तहत ही मजदूरों को ग्रेटर नोएडा में पुनर्नियोजित करने की बात की थी न कि वर्तमान सेवा शर्तों के साथ। लेकिन एटक के नेताओं ने कानूनी तौर पर भी मालिकान के समक्ष कोई मजबूत चुनौती नहीं रखी। दरअसल मजदूरोें की छंटनी के लिए मालिकान, श्रम विभाग, पुलिस प्रशासन व एटक नेता एकजुट थे। 
    इस सबके बावजूद मजदूर लगातार संघर्ष में डटे हुए थे। वे आसानी से समर्पण करने को तैयार नहीं थे। श्रम विभाग, मालिकान व एटक नेता इसी बात से परेशान थे। अंततः उन्होंने मजदूरों को अकेले में पकड़कर हिसाब कराने की नीति को अपनाया। 18 अक्टूबर तक वे 40-50 मजदूरों को हिसाब दिलवाने में सफल हो गये। ऐसे में मजदूरों ने निराश होेकर हिसाब लेना स्वीकार कर लिया। मजदूरों ने एक माह के नोटिस पे, डेढ़ माह के वेतन के बराबर बोनस, एक वर्ष पर 17 दिन का वेतन के रूप में ग्रेच्युटी व प्रति वर्ष सेवा पर 15 दिन के वेतन के बराबर मुआवजा, छुट्टियों आदि के नकद भुगतान पर समझौता कर इस्तीफा दे दिया। 
    साॅफ्ट आप्शन के इस अनुभव ने नकारात्मक तौर पर ही सही मजदूरों को शिक्षित किया कि कानून अंततः पूंजीपति वर्ग की सेवा करते हैं। श्रम कानून पूंजीपतियों के अंदर भय पैदा नहीं करते क्योंकि उनकी मार पूंजीपतियों के लिए पुष्प प्रहार की तरह है। दूसरे श्रम विभाग आज कानून को लागू करने वाली संस्था नहीं बल्कि पूंजीपतियों के गैर कानूनी कामों को कानून सम्मत बनाना तथा मजदूरों को अपना कानूनी हक छोड़ने व हिसाब लेने के लिए तैयार कर पूंजीपतियों की सेवा करना है। पुलिस का काम शांति व्यवस्था बनाने के नाम पर मजदूर आंदोलन को दबाना कुचलना व पतित ट्रेड यूनियन नेताओं का काम मजदूरों को कानून को चक्की में घसीटकर थकाना, छकाना व अंततः उनसे आत्मसमर्पण करवाना है। ऐसे में विकल्प क्या हो? विकल्प जुझारू संघर्ष व क्रांतिकारी मजदूर संगठन ही हो सकता है।            दिल्ली संवाददाता 

ज्यू शिन कम्पनी के मजदूरों की आंशिक जीत के साथ हड़ताल समाप्त
वर्ष-17,अंक-20(16-31 अक्टूबर, 2014)
13 सितम्बर से चल रही ज्यू-शिन कम्पनी के मजदूरों की हड़ताल अंततः कुछ मांगों के मांगे जाने के साथ समाप्त हो गयी। पहले यह हड़ताल हिन्द मजदूर सभा के नेतृत्व में शुरू की गयी लेकिन बाद में एक हफ्ते बाद ही यह एटक के साथ संघबद्ध हो गयी थी।
समझौते के तहत 20 मजदूरों को स्थायी करने का फैसला हुआ। तनख्वाह में 200-500(ए केटेगरी कोे 500 रु., बी केटेगरी को 300 रु. तथा सी केटेगरी को 200 रु.) रुपये तक की वृद्धि की गयी। पहले लागू सुविधा सुचारू रूप से लागू करने की बात की गयी। कुछ लोक लुभावन वादों के साथ मजदूरों को सस्ते में ही निपटा दिया गया। पहले भी जब जे एन एस में हड़ताल हुयी थी तब ही कम मजदूरों को स्थायी किया गया। इस समझौते में मालिक ने मजदूरों के खिलाफ भी एक समझौता करवाया। वह यह है कि यदि कोई मजदूर के द्वारा तीन दिन तक प्रोडक्शन कम रहा तो कम्पनी उस मजदूर के खिलाफ व्यक्तिगत कार्यवाही कर सकती है। 
जे एन एस की हड़ताल में किये गये वादे से कम्पनी मुकर रही थी उसे भी सुचारू रूप से लागू किया जायेगा। (इस समझौते के तहत 1000 रुपये की वृद्धि की बात थी जिसको मालिक लागू नहीं कर रहा था।) मालिकों व ट्रेड यूनियनों की मिली भगत के कारण यह समझौता हो गया। वरना मजदूर तो जुझारू संघर्ष करने को तैयार थे। हालांकि मजदूर इस समझौते से खुश नहीं थे परन्तु कम्पनी द्वारा काम पर वापस लिये जाने से भी उनके अंदर उत्साह ही था।                                                              मालिक भी सस्ते में मामला निपट जाने के कारण खुश ही था और उसने किसी मजदूर को काम से नहीं निकाला। दूसरे एटक के नेताजी ने भी मालिक का खूब पक्ष लिया और हड़ताल के लिए मालिक व मजदूर दोनों को जिम्मेदार ठहराया और हड़तालों का होना खराब ही बताया। दोनों पक्षों के साथ बैठकर वार्ता के द्वारा मामले को हल करना सही तरीका बताया। नेताजी शायद भूल गये कि नेपीनो फैक्टरी में सेटलमेंट को लागू होने में डेढ़ साल लग गये और वह भी तब जब उसके तीनों प्लांटों (सेक्टर-8, सेक्टर-3 और उद्योग विहार) ने हड़ताल की। और आज भी सेक्टर 8 के नेपीनो प्लांट से पुराने कर्मचारी बाहर हैं। 



दरअसल हड़ताल के महत्व को कम बताना यह दिखाता है कि केन्द्रीय ट्रेड यूनियन का चरित्र किस हद तक समझौता परस्त हो चुका है कि मालिकों के खिलाफ मजदूरों द्वारा अपनाये जा रहे इस हथियार को वे बेफायदे का बताते हैं। 
जे एन एस, ज्यू शिन और जे-आॅटो के मजदूरों को यह समझने की जरूरत है कि वे अपनी जुझारू एकता के दम पर ही आगे सफलता हासिल कर सकते हैं और आज हासिल की गयी उपलब्धियों को कायम रख सकते हैं। साथ ही इस पूरेे आंदोलन में जिस तरह महिलाओं ने अपनी भागीदारी की और आंदोलन को मजबूत बनाया वह दिखाता है कि मजदूर आंदोलन में महिला मजदूरों की उपस्थिति कितनी जरूरी है और साथ ही मालिक ने मजदूरों को बांटकर जिस तरह से उन्हें ए, बी, सी कैटेगरी में रखा और उसी हिसाब से वेतन वृद्धि की उसे मजदूरों को समझना होगा और अपने बीच के बंटवारे को कम करना होगा। 

   गुड़गांव संवाददाता 

मुंजाल-कीरू के मजदूरों का संघर्ष जारी
वर्ष-17,अंक-20(16-31 अक्टूबर, 2014)
24 सितम्बर को मुंजाल-कीरू के मजदूरों ने 15 जनवरी के समझौते को लागू करने के लिए फैक्टरी के अंदर बैठकर हड़ताल शुरू कर दी। हालांकि एक सुसंगत योजना के अभाव में यह हड़ताल असफल हो गयी।  लेकिन अभी भी करीब 200 स्थायी मजदूर फैक्टरी के बाहर पार्क में धरने पर हैं।  
24 सितम्बर को ए शिफ्ट के समय जब सी शिफ्ट के मजदूर भी फैक्टरी के अंदर थे तब फैक्टार में काम कर रहे मजदूरों ने हड़ताल शुरू कर दी। सूचना पाते ही बी शिफ्ट के मजदूर भी फैक्टरी के बाहर पहुंच गये। कंपनी प्रबंधक ने स्थिति को देखते हुए तुरंत पुलिस बुला ली। और पुलिस सीधे फ्लोर पर पहुंच गयी जहां लगभग 80 मजदूर काम बंद करके फ्लोर पर बैठे हुए थे, चूंकि काम बंद करके बैठे हुए मजदूरों की संख्या काफी कम थी और उनके बीच भी तालमेल और योजना का अभाव था तब उनके सामने दो ही विकल्प थे कि वे काम पर चले जायें अन्यथा वे पुलिस का मुकाबला करें। और अंत में एक-एक करके मजदूर समर्पण करते चले गये और उनकी हड़ताल टूट गयी।                                                   ज्ञात हो 13 जनवरी को जब मुंजाल-कीरू के मजदूर हड़ताल पर थे तब उन पर प्रबंधक ने गुण्डों द्वारा हमला करवाया था जिसमें कई मजदूरों को चोटें आयीं थी। उसके बाद कई यूनियनों द्वारा आईएमटी थाने का घेराव किया गया और बाद में दबाव में प्रबंधक समझौते के लिए तैयार हुआ था। 15 जनवरी को एएलसी की मध्यस्थता में वार्ता बैठक तय हुयी। 

इस समझौते में 15 मजदूरों को जांच के बाद और बाकी मजदूरों को अगले ही दिन से काम पर लेना तय हुआ। इन 15 मजदूरों में से 5 मजदूरों को अगले दिन से ही काम पर लेने व बाकी 10 मजदूरों को 30 दिन के भीतर जांच के बाद काम पर लेने को कहा गया। इसके अलावा ठेकेदारी के मजदूरों को 5-5, 7-7, करके 30-40 दिनों के अंदर ले लेने के बारे में समझौता हुआ। 
परन्तु बाद में प्रबंधक ने अपने इस समझौते को लागू नहीं किया। आधे से ज्यादा ठेकेदारी के मजदूरों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। और 15 मजदूरों में से 7 मजदूर आज भी कम्पनी के बाहर हैं।
इस समझौते को लागू करने के लिए ही मजदूरों ने 24 सितम्बर को हड़ताल की लेकिन वह असफल हो गयी। इसकी असफलता की वजह में समझौते के समय केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों की भूमिका तथा मालिक द्वारा मजदूरों के बीच फूट के बीज बोना था। 
जब मुंजाल-कीरू के मजदूरों ने यूनियन बनाने की फाइल लगायी तब वे एचएमएस से संबंधित थे और बाद में उनसे मायूस होकर मजदूरों ने एटक का दामन थामा। जब प्रबंधक ने हड़ताल के समय मजदूरों पर गुण्डों द्वारा हमला करवाया तो मजदूरों ने प्रबंधक के खिलाफ एफआईआर लिखवायी। जिससे दबाव में आकर प्रबंधक समझौते के लिए तैयार हुआ। परन्तु उस समय इन ट्रेड यूनियन नेताओं ने मजदूरों पर दबाव डालकर एफआईआर वापस ले ली। और जैसे ही प्रबंधक पर दबाव कम हुआ उसने समझौते की शर्तों को मानने से इंकार कर दिया। और फिर ट्रेड यूनियन नेताओं ने मामले को कोर्ट-कचहरी में फंसा दिया और मालिकों की सेवा की। 
दूसरे प्रबंधक ने फैक्टरी के अंदर स्थायी और ट्रेनी तथा ठेकेदार के मजदूरों के बीच फूट के बीज बोये थे और जिन ट्रेनी व ठेका के मजदूरों ने यूनियन बनाने के लिए साथ दिया था उनको बाहर कर दिया। स्थायी मजदूरों द्वारा उनके साथ कोई एकता न दिखाने पर मजदूरों के बीच संदेह पैदा हो गया। और जब 24 सितम्बर को मजदूरों ने हड़ताल की तो ट्रेनी व ठेके के मजदूर काम करते रहे। और मजदूरों को कम संख्या में देखते ही पुलिस को मजदूरों से निपटने का मौका मिल गया और हड़ताल टूट गयी। 
परन्तु मालिक अभी तक मुंजाल कीरू के उन 200 स्थायी मजदूरों का हौंसला नहीं तोड़ पाया है जो फैक्री के बाहर धरने पर बैठे हैं। ये मजदूर अभी संघर्ष के मैदान में डटे हुए हैं। 

आज मजदूरों को आंदोलनों में केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों की भूमिका और प्रबंधक की चालों को समझने की जरूरत है। केन्द्रीय ट्रेड यूनियन के नेता जिस तरह से मालिकों की सेवा करने के लिए कूटनीति का सहारा लेते हैं तब मजदूरों को उनकी इन नीतियों का पुरजोर तरीके से विरोध करना होगा। और प्रबंधक जब-जब भी मजदूरों को तोड़ने के लिए चाल चलता है तो मजदूरों को अपनी वर्गीय एकता से उसका जबाव देेना होगा।               गुड़गांव संवाददाता

बेक्सटर के मजदूरों पर प्रबंधक के हमले जारी हैं
वर्ष-17,अंक-20(16-31 अक्टूबर, 2014)
अगस्त माह में जब मानेसर गुड़गांव की कई कम्पनियों ने हड़ताल की तब वहां के पुलिस कमिश्नर ने कहा कि वे शीघ्र ही कम्पनियों के सभी विवादास्पद मामलों को सुलझायेंगे। लेकिन उनका यह बयान झूठा साबित हुआ। बेक्सटर कम्पनी के मजदूर आज भी प्रबंधक के हमले का शिकार हो रहे हैं। 
जब 13 अगस्त को मजदूरों व प्रबंधन वर्ग के बीच असफल वार्ता हुई तो उसी दिन फैक्टरी के सुपरवाइजरों द्वारा हड़ताल में शामिल लड़कियों के साथ बदतमीजी की गयी और गाली गलौच कर उन्हें डराने-धमकाने के प्रयास किये गये। और एक मजदूर अशोक को जबर्दस्ती वे अपने साथ ले गये। कंपनी के सुपरवाइजर कम गुण्ड़ों द्वारा इस घटना को गुड़गांव के हीरो होण्डा चैक पर अंजाम दिया गया। यहां काफी भीड़-भाड़ रहती है।
बाद में अशोक को उन्होंने मारपीट के बाद छोड़ दिया। जब वह मिला तब उसका हाथ टूटा हुआ था और गर्दन पर दो इंच लम्बा घाव लगा था जिसकी मेडिकल रिपोर्ट भी मजदूरों के पास है।
उसी दिन रात्रि में मजदूरों द्वारा काफी प्रयास करने के बाद खिड़की दौला थाने में इस घटना की रिपोर्ट करायी गयी। और अगले दिन काफी कोशिश करने के बाद एफआईआर दर्ज हुयी। जिसमें कई महिला मजदूरों की तरफ से फैक्टरी के इन सुपरवाइजरों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट थी। 
घटना की रिपोर्ट लिखते समय पुलिस का पूरा जोर इस बात पर था कि कम्पनी के लोगों के नाम इसमें न आयें परन्तु नाम आने के बाद और केस आईपीसी की धारा 294, 341, 506 में दर्ज होने के बाद भी पुलिस ने अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की है और इस बीच प्रबंधन ने कई मजदूरों को काम से निकाल दिया है और कई के खिलाफ जांच बैठा दी है। 
उस समय दबाव में जो समझौता प्रबंधन ने किया था और 22 स्थाई मजदूर जो सस्पेण्ड थे उनको लेने से मना कर दिया गया। साथ ही ट्रेनी व ठेकेदार के मजदूरों को भी संघर्ष करने की सजा दी गयी। 

कंपनी ने शेष मजदूरों को काफी घुमाने-फिराने के बाद 40-40 की टोलियों में धीरे-धीरे काम पर लिया। और हाल में ही उसने 22 निलम्बित मजदूरों में से 15 को नौकरी से निकाल दिया जिसमें अशोक व तीन पुराने निलम्बित मजदूर हैं। अब केवल तीन ही निलम्बित मजदूर हैं उन पर भी कम्पनी ने मार-पिटाई का आरोप लगाकर कारण बताओ नोटिस जारी कर रखा है और इस तरह उनको भी कम्पनी बाहर निकालने का मन बना रही है।          गुड़गांव संवाददाता

कोल इण्डिया पर निजी प्रभुत्व की तैयारी
सरकार निजी क्षेत्र से भी उम्मीदवार के लिए विकल्प तलाश सकती है -केन्द्रीय कोयला मंत्री पीयूष गोयल 
वर्ष-17,अंक-20(16-31 अक्टूबर, 2014)
मई में बनी मोदी सरकार एक तरफ जहां श्रम कानूनों में परिवर्तन कर मजदूरों पर बड़े हमले की तैयारी कर रही है वहीं वह सार्वजनिक कंपनियों के निजीकरण की भी पूरी तैयारी कर रही है। इसी कड़ी में वह कोल इण्डिया पर निजी प्रभुत्व के लिए पिछले दरवाजे खोल रही है। 
ज्ञात हो कि कोल इण्डिया में मई के बाद से ही चेयरमेन का पद खाली है और सरकार ने अब उस पद को भरने के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस प्रक्रिया के तहत सरकार ने कहा कि उन सूचीबद्ध कंपनियों के सीईओ, सीएमडी, प्रेसीडेण्ट व डायरेक्टर जो पिछले तीन सालों में 5000 करोड़ का टर्नओवर करती रही हैं, वे इस पद के लिए आवेदन कर सकते हैं। हालांकि इस पूरी प्रक्रिया में पब्लिक इण्टर प्राइजेज सलेक्शन बोर्ड भी शामिल है लेकिन यह प्रक्रिया सरकार की नीयत में खोट को दिखा देती है। 
जहां कोल इण्डिया से जुड़ी इण्टक की ट्रेड यूनियन के वरिष्ठ पदाधिकारी ने इसमें संदेह व्यक्त किया है वहीं वाम दलों से जुड़ी यूनियनों ने कहा है कि 2013-14 के दौरान कोल इण्डिया लिमिटेड ने 89,395 करोड़ की बिक्री की है। ऐसे में 5000 करोड़ का टर्नओवर करने वाली कम्पनी का मुखिया कैसे इसे संभाल पायेगा। 
मगर केन्द्रीय कोयला मंत्री पीयुष गोयल कोल इण्डिया लिमिटेड के प्रमुख को ढूंढने वाली सर्च कमेटी की स्थापना से पहले ही इस बात को कह चुके हैं कि सरकार निजी क्षेत्र से भी उम्मीदवार के लिए विकल्प तलाश सकती है। 

ऐसी स्थिति में जबकि पूंजीपतियों ने भारी मात्रा में पैसा खर्च कर केन्द्र में मोदी सरकार को बैठाया है तो वह नमक का हक अदा करेगी ही और पूंजीवादी पार्टियों से जुड़ी ट्रेड यूनियनें या फिर वाम दलों से जुड़ी यूनियनें केवल विरोध ही कर सकती हैं। इन मजदूर विरोधी कदमों से सरकार के कदम वापस खींचने का काम केवल मजदूरों के क्रांतिकारी संगठन ही कर सकते हैं।  

न्याय की आस में ठोकरें खाते मजदूूर
श्रम विभाग व श्रम मंत्रालय में लंबित मामले
वर्ष-17,अंक-19  (01-15 अक्टूबर, 2014)
हरिद्वार सिडकुल की कुछ कम्पनियों के मामले श्रम विभाग या श्रम न्यायालय में पिछले दो सालों से चल रहे हैं। इन कम्पनियों में राॅकमैन, सत्यम, मुंजाल सोहा, हीरो मोटो कार्प, आईटीसी, व एवरेडी आदि हैं। इसके अलावा व्यक्तिगत रूप से अनेकों मामले उक्त विभागों में दर्ज हैं। इन विभागों की पक्षधरता किसके साथ है यह किसी से छुपी नहीं है। मजदूरों के एकता व संघर्ष को कानूनों के दायरे में बांध कर रखना ही इन विभागों का काम है। इसकी तस्वीर कुछ इस प्रकार हैः 
1. राॅकमैन- 2011 से इस कम्पनी में यूनियन बनाने के संघर्ष को मजदूरों ने शुरू किया। कम्पनी मैंनेजमेंट द्वारा चार मजदूरों को जेल में डलवा दिया। इसके बाद मजदूरों ने हड़ताल कर दी। बिना किसी प्रकार के मांगें पूरी हुये हड़ताल समाप्त हो गयी। नेतृत्वकारी 9 मजदूरों को कम्पनी ने निलंबित कर दिया। (इनमें जेल गये मजदूर भी शमिल थे।) अंदर काम पर गये मजदूरों ने पुनः अपने नेतृत्व को तैयार किया। मैनेजमेण्ट ने भी चालाकी से नेतृत्व के मजदूरों में अपने दो तीन लोग तैयार किये। दुबारा हड़ताल की तैयारी शुरू होेने पर मैनेजमेण्ट ने स्टे आर्डर के हथियार से मजदूरों को धमकाया। मजदूरों ने हड़ताल का कानूनी तौर पर नोटिस मैनेजमेण्ट व श्रम विभाग को देने के बाद ही हड़ताल की। हड़ताल में कम्पनी के लगभग आधे मजदूरों ने भागीदारी की। हड़ताल के दौरान फैक्टरी गेट, डीएम कार्यालय व देहरादून तक धरना प्रदर्शन किया गया। सरकार द्वारा इस मामले को जून 2012 में मैनेजमेण्ट की शह पर लेबर कोर्ट हरिद्वार में डलवा दिया। कोर्ट को दो बिंदुओं पर निर्णय करने को कहा गया है। 1. यह हड़ताल कानूनी या गैर कानूनी थी। 2. नेतृत्वकारी चार मजदूरों का निलंबन कानूनी था या गैर कानूनी था। तब से आज तक दो साल से भी ज्यादा समय हो चुका है। इस मामले में लगभग 250-300 मजदूर हैं जो अभी तक कम्पनी से बाहर हैं। दो साल में कोर्ट की कार्यवाही गवाहों के बयान तक ही हुयी है। 
2.सत्यमः  इस कम्पनी के मजदूरों ने यूनियन रजिस्टर्ड करवाने की कार्यवाही 2011 से शुरू की थी। 2011 में नेतृत्वकारी मजदूरों को कम्पनी द्वारा जालसाजी (दूसरे के कागजों पर नौकरी करना) का आरोप लगाते हुए बाहर कर दिया। दूसरा नेतृत्व उभरने पर उसे भी परेशान करके अंततः कुछ नेतृत्वकारी मजदूरों को निलंबित कर दिया। यह उसी समय की घटना है जब राॅकमैन के मजदूरों ने दूसरी बार हड़ताल की थी। चाहे-मनचाहे दोनों कम्पनियों के मजदूरों की लड़ाई संयुक्त हो गयी। परन्तु नेतृत्व अलग-अलग ही संचालित हो रहा था। सत्यम के मजदूरों के नेतृत्व ने कम्पनी के लगभग सभी 450 मजदूरों को अपने साथ में बनाये रखा। और कम्पनी में कार्यरत ठेका मजदूरों को भी काम न करने व अपने समर्थन में लाने की कोशिश की। मैनेजमेण्ट इसी दबाव में कूटनीतिक तरीके से अपना बदला हुआ व्यवहार मजदूरों के साथ करने लगा। नेतृत्वकारी मजदूरों को दो-दो करके कुछ माह बाद बहाल करने व 11 ट्रेनिंग के नेतृत्व के मजदूरों को निष्कासित कर दिया। नेतृत्वकारी परमानेण्ट मजदूरों में से लडाकू व जागरूक (तेज तर्रार) मजदूरों को छोड़ कर अन्य को वापस काम पर ले लिया। बचे मजदूर नेताओं व 11 ट्रेनिंग के मजदूरों को कोर्ट के माध्यम से लिये जाने की बात कम्पनी ने की। कोर्ट में 1 साल के समय बीतने के बाद अन्य नेतृत्व के मजदूरों की बहाली हुयी परन्तु अभी भी नेतृत्वकारी ट्रेनिंग के मजदूरों का मामला लेबर कोर्ट में विचाराधीन है। 
3. मुंजाल सोहा- इस कम्पनी में लगभग 300-400 मजदूर कम्पनी बेस काम करते हैं। परन्तु ये स्थायी नहीं हैं। इनको कम्पनी कभी भी ब्रेक दे देती है। और फिर दुबारा नये ढंग से भर्ती किया जाता है। कम्पनी की इस कार्यप्रणाली का मजदूर जब भी विरोध करते हैं, उनको कम्पनी ब्रेक दे देती है। मजदूरों का स्थायी होने का यह संघर्ष विगत कुछ वर्षों से चल रहा है। कम्पनी में लगभग 300 मजदूर ठेके के भी हैं। कम्पनी के लिए मजदूर केवल ‘यूज एण्ड थ्रो’ की चीज बन गयी। 
मजदूरों ने स्थायी होने के लिए जब संघर्ष किया तो 30 मजदूरों को कम्पनी ने स्थायी किया। उन्हें या तो स्टाफ में दिखाया या उन्हें उत्तराखण्ड से बाहर बिना मजदूर की सहमति के स्थानान्तरित कर दिया। पुनः मजदूर संघर्ष करने के लिए एकजुट हुए तो लगभग 120 मजदूरों का गेट बंद कर दिया। सभी मजदूर श्रम विभाग में शिकायत करने गये। इसके बाद अभी तक भी ये मजदूर काम पर बहाल नहीं हुए। नेतृत्व के चार मजदूरों समेत 50-60 मजदूर अभी भी न्याय की उम्मीद में हैं। इनके खिलाफ कम्पनी ने स्टे आर्डर का केस भी डाला है। मजदूरों ने न्यायालय में इसके विरोध में भी प्रार्थना पत्र दिया हुआ है।
4. हीरो मोटो कार्पः हीरो मोटो कार्प के मजदूर अपनी कम्पनी में 2012 से ही यूनियन बनाने की गतिविधियों में लगे हुए थे। कम्पनी द्वारा मजदूरों पर वर्क लोर्ड(पूर्व के 5 हजार बाइक प्रतिदिन से बढा कर लगभग दो गुना 9500 से 10 हजार तक) बढ़ाने के बाद मजदूरों का वेतन बढ़ा कर अधिकतम 19500 रुपये (स्थायी शुरूआती भर्ती के मज़दूरों का)व न्यूनतम 8500 रुपये अप्रेटिंस( बी-कोड) मजदूरों के कर दिये। यह इस सोच के तहत कि इससे मजदूर यूनियन बनाने की गतिविधियों में नहीं लगेंगे। मैनेजमेण्ट ने एक नेतृत्वकारी मजदूर को चरस के झूठे केस में पुलिस द्वारा प्रताडि़त कर नौकरी से निकाल दिया। दूसरे नेतृत्व के मजदूर को पांच-छः साल बाद यह कहकर कि उसने गुडगांव प्लांट में नौकरी करने के तथ्य को छुपाया। जबकि मजदूर ने गुडगांव वाले प्लांट में छः माह ठेकेदारी में काम किया था। यह आरोप लगाकर निकाल दिया। पांच अन्य मजदूरों ने कम्पनी के अपने मनमाने तरीके से बनाये गये स्टैडिंग आर्डर को कोर्ट में बदलवाने के लिए प्रार्थना पत्र डाला। तो उल्टा इन्हीं मजदूरों को जालसाजी का आरोप लगाते हुए जेल में डाल दिया। यूनियन के विरोध में मैनेजमेण्ट द्वारा कुछ मजदूरों के शपथ पत्र लेबर कोर्ट में लगाकर यूनियन के मामले को बाधित करने की कोशिशों में लगा है। मजदूरों के यूनियन रजिस्ट्रेशन व 24 निलंबित मजदूरों से संबंधित मामला लेबर कोर्ट व लेबर विभाग (एएलसी) के पास एक साल से ज्यादा समय से लंबित है। 
5. आईटीसी- इस कम्पनी में मजदूरों ने 2011 में एक यूनियन की फाइल श्रम विभाग में जमा की थी। मैनेजमेण्ट द्वारा इस पर तीन प्लांट होने के कारण एक यूनियन नहीं बनने का विरोध किया। दुबारा तीन यूनियनों की फाइलें लगाई तो उन पर श्रम विभाग की ओर से कई आपत्तियां लगा दीं। पुरानी फाइलों का मामला लेबर कोर्ट में चल रहा है। 
ऐसे ही स्टे आर्डर के खिलाफ कई कम्पनियों एवरेडी, वीआईपी, ग्रेट व्हाइट आदि कम्पनियों के मजदूर कोर्ट में लड़ रहे हैं। 

कम्पनियों के मालिक मजदूरों के एकजुट संघर्ष या किसी भी तरह से उनके मुनाफे में कमी को बर्दाश्त नहीं करना चाहते। येनकेन प्रकार से मजदूरों के संघर्ष को दबाने के लिए वे पुलिस-प्रशासन व न्यायपालिका का सहयोग लेते हैं। 

ज्यू-शिन कम्पनी में मजदूर हड़ताल पर
वर्ष-17,अंक-19  (01-15 अक्टूबर, 2014)
ज्यू-शिन, जेएनएस और जे आॅटो ये तीनों कम्पनियां गुड़गांव के आईएमटी मानेसर के सेक्टर-3 प्लाट न. 4 में स्थित हैं। वैसे तो ये अलग-अलग कम्पनियों के नाम से लगता है कि ये अलग-अलग हैं परन्तु ये तीनों कम्पनियां एक ही परिसर के अंदर अलग-अलग नामों से चलती हैं। इसका मालिक जे.पी. मिण्डा है। इसके लगभग 7-8 प्लांट और भी हैं। यह कम्पनी दो पहिया वाहनों मुख्यतः हीरो और होण्डा के लिए स्विच, लाॅक, इलेक्ट्राॅनिक मीटर बनाने का काम करती हैं। इनमें जे आॅटो में उत्पाद तैयार  होता है और ज्यू-शिन व जेएनएस में असेम्बलिंग की जाती है। इस कम्पनी में आजकल मजदूर हड़ताल पर हैं। 
जे आॅटो में 120 मजदूर काम करते हैं। जेएनएस में लगभग 1200 लड़कियां और 100 के लगभग लड़के काम करते हैं। और ज्यू-शिन में 750 महिला मजदूर और 150 पुरुष मजदूर काम करते हैं। जिनमें से एक भी स्थायी मजदूर नहीं है। 
अप्रैल के महीने में जेएनएस की महिला मजदूरों ने अपने वेतन और ओवर टाइम को लेकर संघर्ष किया था। जिसमें वेतन के रूप में 1000 रुपये और ओवर टाइम दुगुना किये जाने पर समझौता हुआ। और जे आॅटो में लगभग 20 मजदूर और जेएनएस में लगभग 60 मजदूर स्थाई किये गये जो लाइन लीडर के पद पर कार्यरत थे। ज्यू-शिन में इस समय कोई भी मजदूर स्थायी नहीं किया गया। 
12 सितम्बर को प्रबंधक वर्ग की पहले से परेशान करने वाले तरीकों से तंग आकर अपने बढ़े हुए वेतन और ओवर टाइम में जुर्माने के बतौर कटौती से तंग आकर हड़ताल पर जाने का मन बनाया। 
13 सितम्बर को मजदूरों ने एचएमएस की मदद से पूरा दिन कम्पनी गेट पर धरना दिया तो शाम को प्रबंधक वर्ग वार्ता के लिए तैयार हुआ। मजदूरों ने अपने बीच से 7 मजदूर की कमेटी बनाई जिसमें 4 पुरुष और 3 महिला मजदूर शामिल की गयी। जब ये प्रतिनिधि मण्डल वार्ता के लिए अंदर गया तो प्रबंधक 2000-2500 रुपये बढ़ाने और ओवरटाइम दुगुना यानी 48 रुपये देने को तैयार हुआ। परंतु मजदूर इस बार स्थायीकरण की मांग को लेकर कोई समझौता करना चाहते थे। मैनेजमेण्ट ने मजदूरों के स्थायी करने के मामले को रफा-दफा करने के लिए कह दिया कि कम्पनी में इस समय 150 मजदूर स्थायी हैं तो मजदूरों ने 150 मजदूरों की सूची मांगी तो मैनेजमेण्ट किन्तु परन्तु करने लगी। कम्पनी दरअसल मजदूरों को स्थायी करना ही नहीं चाहती थी। और वह अपने इस फैसले पर अड़ी रही। मजदूर भी स्थायी करने के मामले पर कुछ आश्वासन चाहते थे। और अंततः मजदूरों को संघर्ष का रास्ता चुनना पड़ा। और वे कम्पनी के बाहर हड़ताल पर बैठ गये। प्रबंधन ने भी कम्पनी में पुलिस बुला ली। और वह मजदूरों को धमकाकर तोड़ने की कोशिश करने लगा। उसने मजदूरों को लालच देकर भी तोड़ने की कोशिश की। जिसमें वह एक हद तक सफल भी रहा। 

अभी भी मजदूर कम्पनी के गेट पर धरने पर हैं। लेकिन इस आंदोलन को नेतृत्व देने वाले साथी अभी नये हैं। उन्होंने सीधे तौर पर अभी मजदूरों के संघर्षों में भाग नहीं लिया है। इसलिए वे पूंजीपतियों की चालबाजियों को समझ नहीं पा रहे हैं। दूसरी तरफ समझौतापरस्त ट्रेड यूनियन सेन्टर से भी उनको केाई उम्मीद नहीं है। अभी उन्होंने एचएमएस का दामन छोड़कर एटक का सहारा लिया है। वैसे तो मजदूरों को संघर्ष में ही सीखने को मिलेगा लेकिन नेतृत्वकारी मजदूरों को गुडगांव के अंदर चल रहे मजदूरों के संघर्षों का अध्ययन करना चाहिए और उनसे सीखना चाहिए। इन संघर्षों में ट्रेड यूनियनों, पुलिस-प्रशासन, मैनेजमेण्ट की चालबाजियों को समझना चाहिए। उन्हें अपने संघर्षों को अपनी फैक्टरी तक सीमित न रखकर इसे व्यापक बनाना चाहिए। आज के इस दौर में जबकि मजदूरों के श्रम कानूनों पर ही हमला हो रहा है ऐसे समय में उसे इन नये कानूनों के विरोध में भी आवाज बुलंद करनी होगी। अपने संघर्षों को केवल आर्थिक चेतना तक नहीं बल्कि राजनीतिक चेतना तक विकसित करना चाहिए।          गुड़गांव संवाददाता

हीरो मोटो कार्प के मजदूरों का जमीनी सँघर्ष समाप्त
वर्ष-17,अंक-19  (01-15 अक्टूबर, 2014)
11 अगस्त को होरो मोटो कार्प में शुरू हुए ठेका मजदूरों का जमीनी संघर्ष अंततः समाप्त हो गया। इस संघर्ष में कुछ ठेका मजदूरों ने इस डर से हिसाब ले लिया कि कहीं ऐसा न हो कि बाद में ये भी न मिले लेकिन अभी कुछ मजदूर कोर्ट के माध्यम से अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। 
इस संघर्ष के दौरान मजदूरों ने हर वह दरवाजा खटखटाया जहां उन्हें उम्मीद थी। कई बार डीएलसी और डीसी से भी मुलाकात की। लेकिन पुलिस और श्रम विभाग तो शुरू से ही मजदूरों पर हिसाब लेने के लिए दबाव बनाता रहा। पूरा व्यवस्था ने मजदूरों के इस संघर्ष में उसको डराने-धमकाने का भी काम किया। 
इस संघर्ष में ट्रेड यूनियन सेेंटर व कम्पनी की यूनियन ने भी इन ठेका मजदूरों का कोई साथ नहीं दिया। इनके इस संघर्ष के बीच एचएमएस ने आईएमटी मानेसर में चल रहे कई कम्पनियों के विवादों के मद्देनजर कई फैक्टरियों में बंद का आह्वान किया लेकिन ठेका मजदूरों की आवाज नहीं उठायी गयी। इन यूनियनों का मानना है कि ठेका मजदूरों की लड़ाई एक अलग लड़ाई है। परन्तु वे इस बात को या तो भूल  जाते हैं या फिर नजरअंदाज कर देते हैं कि स्थायी, कैजुअल और ठेकेदार ये सब प्रबंधक वर्ग के मजदूरों को बांटने के तरीके हैं। 

ठेका मजदूरों के इस संघर्ष में कम्पनी प्रबंधक ने फूट डालो और राज करो वाला तरीका अपनाकर उन्हें स्थायी मजदूरों से अलग किया और फिर उन पर हिसाब लेने के लिए दबाव डाला। कुछ मजदूरों ने हिसाब ले लिया और हिसाब में 10 हजार रुपये प्रति साल और बोनस ही दिया गया। इस बीच कम्पनी ने पिछले साल से बाहर 4 यूनियन पदाधिकारियों में से 3 को बर्खास्त कर दिया। इस समय की वर्तमान यूनियन ने रैली निकाली और मजदूरों को लेने की मांग की परन्तु कुछ भी नहीं हुआ। और प्रबंधक दोनों तरफ से जीत गया। यह दिखाता है कि आज सभी प्रकार के मजदूरों को अपनी एकजुट संघर्ष करना कितना जरूरी है।          गुड़गांव संवाददाता

बादल फटने से पौड़ी में व्यापक तबाही

प्रशासन का निकम्मापन सामने आया
(वर्ष-17,अंक-18: 16-31 सितम्बर, 2014)
14-15 अगस्त 2014 को जहां एक ओर भारतीय शासक वर्ग आजादी का जश्न मना रहा था। उसी रात उत्तराखण्ड के पौड़ी जनपद के यमकेश्वर, कल्जीखाल व द्वारीखाल विकास खण्डों में बादल फटने से 18 लोगों की जान चली गयी व कई गांव हमेशा के लिए मिट्टी में समा गये। खेती योग्य भूमि व धान की खड़ी फसल रेत बजरी के साथ समा गयी।
कोटद्वार से जन अधिकार संयुक्त संघर्ष समिति जिसमें परिवर्तनकामी छात्र संगठन, महिला समाख्या, सुमंगला महासंघ व पूर्व सैनिक सेवा परिषद की 10 सदस्यीय सर्वे टीम ने यमकेश्वर विकास खण्ड में 2 दिन आपदग्रस्त लोगों से मिलकर पूरे हालात को जाना।
सर्वे टीम सबसे पहले उन गांवों में पहुंची जहां बादल फटने से सबसे अधिक नुकसान हुआ था। मोहन चट्टी के निकट नयार नदी के पार बैरागड़ गांव के पीछे बादल फटने से अब पूरा गांव रोखड़ (गधेरों) में तब्दील हो गया है। 14 अगस्त से 16 अगस्त तक यहां के निवासी जंगल में भूखे-प्यासे रहने को मजबूर हुए। यहां 30 दलित परिवारों के मकानों केे कुछ अवशेषों के सिवा कुछ नहीं दिखायी दे रहा है। उनके खेत अब रेगिस्तान बन चुके हैं। मवेशी बह गये हैं। गांववासी अपनी जान बचाने में तो सफल रहे परन्तु मकान सारा सामान व मवेशियों को नहीं बचा पाये।
16 अगस्त को शासन द्वारा हैलीकाॅप्टर से इन गांववासियों को ऋषिकेश लक्ष्मीनारायण आश्रम में छोड़ा गया। इस आश्रम में भीड़ इतनी अधिक थी कि न तो खाने के इंतजाम ठीक थे और न ही अन्य इंतजाम। 10 दिन बाद एक लाख साठ हजार रुपये देकर धक्के मारकर वहां से उन्हें जबरदस्ती फिर से मौत के मुंह में धकेल दिया गया। चेक भी दयाल सिंह, महिपाल सिंह व जयपाल को नहीं मिले। इसी तरह अन्य गांवों के ग्रामीणों के साथ भी यही व्यवहार हुआ। अब ये ग्रामीणों की स्थिति भिखारियों की तरह हो गयी है। कभी कोई एनजीओ या संस्था इन्हें कुछ राशन या सामान देती है तो पहले ही बंदरबांट हो जाती है। जरूरतमंदों तक वह भी नहीं पहुंच रहा है।
ऋषिकेश में एस.डी.एम. एम.पी.सिंह ने इन्हें गाली गलौज की तथा कहा कि यदि आप यहां से नहीं जाओगे तो हमारे पास कई तरीके हैं उन्हें यहां से हटाने के। विधायक व मंत्री तो ‘आपदा पर्यटन’ में आये। उसके बाद यहां कोई दिखे भी नहीं। सरकार द्वारा इन इलाकों में न तो सरकारी राशन दिया जा रहा है और न ही मेडिकल कैम्प लगाये जा रहे हैं। पुर्नवास की जो सबसे पहले आवश्यकता है इस पर अभी तक शासन-प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है।
नीलकंठ सेवा संस्थान के निकट दिवोली के पास धमान्द ग्राम पंचायत में तुरैड़ा में बादल फटने से एक घर के तीनों सदस्य मलबे में ढ़ेर हो गये। घर के मुखिया पहले ही मर चुके थे। अब 2 लड़के (बड़ा 23 साल का विनोद व छोटा 19 साल का राजेश) व उसकी मां राजेश्वरी देवी इस आपदा में इनका जीवन समाप्त हो गया। अब एक लड़की ही बची है। जो ससुराल में होने के कारण बच गयी। इस लड़की को यह दुखदायी असहनीय घटना 15 दिन बाद बताया गया क्योंकि इस लड़की का बच्चा होने वाला था। बच्चा पैदा होने के बाद ही उसे यह दुखद समाचार सुनाया गया। तुरैडा गांव भी अब जीने लायक नहीं रहा परन्तु स्थानीय प्रशासन तुरैडावासियों को सुरक्षित पुर्नवास देने को तैयार नहीं है। ये लोग रोज सांय 4 बजे अपने घरों से 1 किमी. दूर बरसाती में रहने को विवश हैं। पटवारी, एसडीएम, विधायक तभी तक गांव में आये जब तक लाशें नहीं निकाली गयी थीं। घटना के पांच दिन बाद जब लाशें निकल गयीं तब से एक आदमी भी प्रशासन-शासन का वहां नहीं पहुंचा है, न कोई मुआवजा मिला, न ही राहत सामग्री। ये गांव के आस-पास भी धमान्द तक सभी जगहों पर भूस्खलन व बादल फटने से लोग आतंकित हैं। खेती योग्य भूमि बह गयी है। या मलबे के नीचे आ गयी है। ये इलाका मुख्य सड़क से 4-5 किमी. दूरी पर होने के कारण उन्हें कोई राहत सामग्री की सूचना भी नहीं मिल पाती है। ये ग्रामीण पटवारियों व तहसील के चक्कर लगाते-लगाते थक गये हैं। परन्तु इनकी सुध कोई नहीं ले रहा है।
यमकेश्वर के निकट ग्राम आवई व बिडोली में भी बादल फटने से मकानों के अंदर बाहर 3-4 फीट मलवा भर गया है। धानों के खेत में भी 3-4 फिट मिट्टी, रेत व गारा भर गया है। मुर्गी फार्म व बकरियों का काफी नुकसान होने से आजीविका का संकट पैदा हो रखा है। आवई व विजोली में लोग बारिश होने पर गांव छोड़ दे रहे हैं। मलवा हटाने में हजारों रुपये का खर्चा है, उसके बाद भी अब ये जगह रहने लायक नहीं है।
बिडोली के कई परिवारों में अनाज सड़ने से व अन्य मवेशियों के बदबू से आंखों की बीमारी फैल गयी है। बिडोली के गोविन्द सिंह नेगी के पूरे परिवार में कोई भी सदस्य आंखें नहीं खोल पा रहे थे। अब उनके समक्ष खाने या दवा लाने का भी संकट पैदा हो गया है। जब सर्वे टीम ने उस क्षेत्र में डाक्टरों से मुलाकात की तो उनका कहना था कि हमारा काम घरों में जाना नहीं है बल्कि मरीज हमारे पास आये। मानवता जैसी चीज गायब दिख रही थी। उनके कथनानुसार पूरे विकास खण्ड में सब कुछ सामान्य था क्योंकि अस्पताल तक कुछ लोग पहुंच पा रहे हैं और वे प्रभावित गांवों में जा नहीं रहे हैं।
इसके अलावा पनियाती में एक महिला की मौत हुयी व शीला गांव में भी एक महिला की मौत हुयी है। 12 मौतें कल्सीखाल, द्वारीखाल के पारसौल जगह में बादल फटने से हुई है। इसके अलावा क्षेत्र में खेती, बगीचे, मकान, दुकानें, सड़क, बिजली के खम्बे, जल निगम की पाइप लाइनों को भारी नुकसान हो गया है। कई मकानों में दरारें पड़ गयी हैं तो कई मकान अब रहने लायक नहीं बचे हैं। इन सभी परेशानी में प्रशासन ने आम सड़कें आवागमन के लिए खोली हैं। इसके सिवा अन्य सारी समस्याओं पर उसका रुख उपेक्षा व लेट लतीफी का है। अगर शासन-प्रशासन इन प्रभावित क्षेत्रों का सुरक्षित पुनर्वास नहीं करता है तो यहां बड़े हादसे होने में देर नहीं लगेगी। उसके बाद शासन कुछ लाख रुपये उनके रिश्तेदारों को जरूर देंगे। खेती का मुआवजा 20 रुपये नाली के हिसाब से देेने की बात कह रही है। इस बार यमकेश्वर विकास खण्ड मे बैरागढ़ में 30 दलित परिवार व तुरैडा व धमान्द में पूरी बेल्ट दलित बस्ती थी। तुरैडा में 3 सदस्य जो मलबे में दब गये वे भी दलित ही थे। इस कारण भी प्रशासन का रुख सकारात्मक व इस समस्या के प्रति गम्भीर नहीं है।

कोटद्वार में जन अधिकार संयुक्त संघर्ष समिति ने आपदा प्रभावितों के पुर्नवास व मुआवजा राशि बढ़ाने, प्रभावितों के लिए मेडिकल कैम्प लगवाने, सड़क, जल व विद्युत व्यवस्था को ठीक करने के लिए तहसील में एक दिवसीय प्रदर्शन कर मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा व 16 सितम्बर को स्वास्थ्य मंत्री से मिलकर भी सुरक्षित पुर्नवास व मुआवजे की राशि बढ़ाने व स्वास्थ्य शिविर लगवाने की मांग की। समिति ने सुरक्षित विस्थापन न मिलने तक इलाकावासियों को साथ लेकर आंदोलन की रूपरेखा बनायी है। जल्दी मांगें पूरी न होने पर जिला मुख्यालय पर धरना प्रदर्शन कर विधायक व सांसदों का घिराव किया जायेगा। कोटद्वार संवाददाता

संघर्षरत ठेका मजदूरों पर पुलिस का लाठीचार्ज, भेजा जेल
(वर्ष-17,अंक-18: 16-31 सितम्बर, 2014)
पंतनगर विश्वविद्यालय में ठेका प्रथा समाप्त कर संविदा पर रखे जाने को लेकर चल रहे ठेका मजदूरों का कार्य बहिष्कार के स्वतः स्फूर्त आंदोलन में दिनांक 10 सितम्बर को विश्व विद्यालय प्रशासन की शह पर पुलिस-प्रशासन द्वारा मजदूरों पर बर्बर लाठीचार्ज किया गया। और विभिन्न अपराधिक धारायें 147, 332, 333, 504, 506, 323 और 7 क्रिमिनल जैसी धाराएं लगाकर तीन महिलाओं समेत 15 मजदूरों को जेल भेज दिया। कुल 24 मजदूरों को नामजद एवं दौ सौ अज्ञात लोगों पर उक्त धारायें दर्ज हैं। इसके खिलाफ कार्यबहिष्कार विरोध प्रदर्शन जारी हैं।
पंतनगर वि.वि. में पिछले 10-11 वर्षों से अतिअल्प न्यूनतम वेतन, श्रम नियमों द्वारा देय आवास, अवकाश, चिकित्सा आदि से वंचित बिना किसी सुविधा के कार्यरत ठेका मजदूरों का प्रशासन द्वारा अनवरत शोषण जारी है।
वि.वि. अपने सीधे नियोजित मजदूरों को आवास सुविधायें देता है पर ठेका मजदूरों को आवास सुविधा की कौन कहे झोंपड़ी में रहने की मौन सहमति भी नहीं है। गंदगी असुविधाजनक झोंपड़ी में मजदूर अपने परिवार के साथ भय के साये में रहने को मजबूर हैं। बिना किसी सुरक्षा उपकरण के फसलों में कीटनाशक छिड़काव में मजदूरों को अक्सर बेहोश होने की खबरें आती रहती हैं। इन्हें आज तक बोनस नहीं दिया गया। चिकित्सा सुविधा की कौन कहे वि.वि. चिकित्सालय पंजीकरण शुल्क अधिक वसूलने के बावजूद अस्पताल से सिर्फ परामर्श दिया जाता है। पट्टी दवाई नहीं दी जाती जबकि नियमानुसार सुविधाएं देय हैं। भेदभाव, शोषण जारी है। इसी तरह वि.वि. के आदेशानुसार मासिक मजदूरी इन्हें हर माह की 10 तारीख तक मिल जानी चाहिए पर कभी समय से मजदूरी नहीं मिलती। प्रशासन-ठेकेदार द्वारा ई.पी.एफ. का आज तक न तो कोई पर्ची पास बुक और न ही स्थानीय सेल खुला।
‘ठेका मजदूर कल्याण समिति’ द्वारा पिछले पांच वर्षों से श्रम नियमों द्वारा देय उक्त सुविधाएं देने, ई.एस.आई. लागू करने की शासन-प्रशासन से तमाम अनुरोध किये गये। जब कोई सुनवाई न होने पर मजबूरन विरोध, धरना प्रदर्शन किया। तब जाकर ई.एस.आई. कार्यालय देहरादून द्वाारा मात्र सर्वेक्षण के आदेश जारी हुए। एक वर्ष से शासन-प्रशासन द्वारा ठोस रूप में कुछ भी नहीं हुआ। हीला-हवाली जारी है। ई.एस.आई., चिकित्सा सुविधा न मिलने से इलाज के अभाव में कई मजदूरों की बीमारी से मौत हो चुकी है। अब इनके परिवार बिना किसी सुविधा, अत्यधिक पीड़ा, नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। अमानवीयता, असंवेदनशीलता, अनदेखी श्रम नियमों का उल्लंघन जारी है।
इधर उत्तराखण्ड सरकार द्वारा उत्तराखण्ड परिवहन निगम में ठेका प्रथा समाप्त कर ठेका मजदूरों को संविदा में किये जाने की घोषणा से इन मजदूरों में नयी आशा जगी। और पंतनगर विश्व विद्यालय में हर वर्ष की भांति पुराने ठेकेदार की समय समाप्ति और मजदूरों की आपूर्ति हेतु नये ठेकेदार की तैनाती जिसको लेकर टेण्डर खुलना, पास होना था, ठेकेदार-शासन प्रशासन के बेइंतहा शोषण-उत्पीड़न से तंग ठेका मजदूरों ने सभी यूनियनों को किनारे करते हुए ठेका प्रथा समाप्त कर संविदा में रखे जाने को लेकर स्वतः स्फूर्त आंदोलन छेड़ दिया। आंदोलन के अगुवा तत्वों में कांग्रेस-भाजपा जैसी पार्टियों के नेताओं के पीछे दौड़ने वाले अधैर्यपन, तुरत-फुरत मांगों को हासिल करने हीरो बनने की प्रवृत्ति थी। तो प्रशासन द्वारा नौकरी जाने का डर भी था। इसलिए शातिर तत्वों ने पूर्व कांग्रेस में से निकाली गयी एक महिला को आगे किया। जिसमें 6 सितम्बर को सर्वप्रथम मजदूरों की सभा में कुलपतिजी को संबोधित ज्ञापन समस्त ठेका मजदूरों की ओर से पूर्व तय बिना किसी हस्ताक्षर के देने की स्वयं भू घोषणा और 9 सितम्बर को कार्य बहिष्कार, धरना, बंद करने की स्वयं भू घोषणा थी। मजदूरों ने सभी विभागों से मजदूरों को निकाल काम बंद कराया। कार्य बहिष्कार का प्रशासनिक भवन पर धरना पर बैठे जिनकी मांग खुल रहे ठेकेदारी प्रथा के टैण्डरों को रद्द करना ठेकेदारी प्रथा समाप्त कर संविदा पर रखना था। मौके पर आये पार्टी नेता विधायक द्वारा प्रशासनिक वार्ता के बाद पता चला कि प्रशासन द्वारा ठेकेदारी प्रथा समाप्त कर ठेका मजदूरों को ‘उपनल’ के तहत रखने को सहमत हुआ है। जिस शासनादेश को प्रशासन पिछले दो वर्षों से लागू नहीं कर रहा था। ‘उपनल’ के तहत रखे जाने पर नौकरी की असुरक्षा, छंटनी, भर्ती समायोजन में कागजी जटिलता जैसी नौकरी असुरक्षा के डर से मजदूरों ने उपनल आउट सोर्सिंग संस्था को अस्वीकार कर दिया था। और संविदा को लेेकर आंदोलन तेज किया। इधर शासन-प्रशासन ‘उपनल’ के अलावा संविदा पर रखने भविष्य में नियमित करने की झंझट को लेकर किसी भी तरह तैयार नहीं था। बल्कि निपटने, दमन करने को तैयार बैठा था। सो उसने यही किया। बेलगाम और संगठन गैर अनुशासित स्वयं भू नेता करीब 700-800 मजदूरों की भीड़ को नियंत्रित करने की क्षमता तो थी नहीं बल्कि खुद गैर अनुशासित अनियंत्रित नेतृत्व आंदोलन उग्र होने दूध डेरी फार्म अतिआवश्यक यूनिट बंद होने पर प्रशासन ने जिला पुलिस प्रशासन द्वारा लाठीचार्ज किया गया। आंदोलन में शिरकत कर रहे मजदूरों की गैर हाजिरी तो हो ही रही है। 60-70 मजदूरों को काम से निकालने का फरमान सुना दिया गया बाकी के फरमान अभी गर्भ में हैं।
इधर आंदोलन की शुरूआत से ही चिह्निनत नेतृत्व लोगों के प्रशासन द्वारा धमकाया व समझाया गया। ठेका मजदूर कल्याण समिति के नेता को भी प्रशासन ने बुलाया आंदोलन से दूर रहने को समझाया-धमकाया। जबकि इन मजदूरों के संघर्ष के दौरान मूक दर्शक सभी यूनियनें दूर बैठी रही। बहाना था, हमें बुलाया नहीं गया पर ठेका मजदूर कल्याण समिति के नेता इसके बावजूद इनकी मांगों का समर्थन किया और संघर्ष में इनके साथ रहकर इनसे आंदोलन के तरीके की आलोचना की और सिस्टेमेटिक आंदोलन चलाने बेहतर परिणाम हेतु नेतृत्व को निजी और सभा के माध्यम से सुझाव दिया था पर अघोषित आंदोलन रत नेतृत्व ने कोई सुझाव नहीं लागू किया।

शासन-प्रशासन द्वारा ठेका मजदूरों के आंदोलन का दमन के खिलाफ संघर्ष, से किनारे बैठी यूनियनों ने मजदूर आंदोलन का दमन देखकर सामूहिक विरोध प्रदर्शन में भाग लेना शुरू किया है। पर मजदूरों की जायज मांगों को उठाकर सीधे प्रतिरोध की बजाय जिम्मेदारियों से किनाराकशी कर रही है। रजिस्टर्ड संगठनों में रहते हुए इनकी स्वतंत्र कमेटी बनाकर स्वयं आंदोलन करने को कहा जा रहा है। फिलवक्त 40 सदस्यीय कमेटी बनायी जा रही है। कमेटी संरक्षक मण्डल मे परिसर की कई यूनियनों के अध्यक्ष, महा मंत्री सहित ठेका मजदूर कल्याण समिति के प्रतिनिधि भी शामिल हैं। फौरी तौर पर कमेटी का काम गिरफ्तार साथियों को जमानत कराकर जेल से बाहर निकालना इस संघर्ष में किसी संगठन के न होने से जमानत की योजना की कार्यवाही में भी खासी दिक्कत है। कुछ लोगों के परिवार इससे स्वयं प्रयासरत है। दूसरा बड़ा काम ठेका प्रथा समाप्त कर संविदा अथवा नियमित कराना। पूरे देश में ठेका प्रथा समर्थक चुनाव बाज पूंजीवादी पार्टियां इनके मजदूर फेडरेशन यूनियनों जिन्होंने पूरे देश में ठेका प्रथा और मई 2003 में पंतनगर में वि.वि. में ठेका प्रथा लागू होने के समय शासन-प्रशासन की मजदूर विरोधी कार्यवाही का विरोध करने की बजाय सहयोग किया। ऐसे में, इन सभी पार्टियों के फेडरेशनों यूनियनों का चरित्र और ठेका प्रथा लागू होने की वास्तविक जमीन को जानना होगा। निजीकरण उदारीकरण की वैश्विक पैमाने पर लागू जनविरोधी नीतियां एवं पूरे देश के पैमाने पर लागू की जा रही हैं। मजदूर विरोधी दूसरे श्रम आयोग की रिपोर्ट श्रम सुधारों के नाम पर पूर्व में मजदूर संघर्षों के दम पर मिले अधिकरों में वर्तमान सरकार द्वारा तेजी से कटौती की जा रही है। इसमें ठेका प्रथा को पूरी तरह कानूनी मान्यता देना यूनियन बनाने में कानूनी कठिनाई मालिकों द्वारा मजदूरों की छंटनी को आसान बनाना आदि है। मजदूरों को पूंजीपरस्त पार्टियों, फेडरेशन,यूनियनों के चरित्र समझकर मोह त्याग कर अपने संगठन मजबूत करने होंगे। ठेका मजदूरों और नियमित मजदूरों की व्यापक एकता बनाकर संघर्ष द्वारा ही उक्त ऐसे संघर्षों को जीता जा सकता है। मांगें हासिल की जा सकती हैं। शासन-प्रशासन फिलहाल हमलावर है। फिलहाल यह संघर्ष भी जारी है।      पंतनगर संवाददाता

वेयर वेल ओखला के मजदूरों को संघर्ष में मिली आंशिक जीत
(वर्ष-17,अंक-18: 16-31 सितम्बर, 2014)
वेयर वेल इंडिया, एक्सपोर्ट हाउस की उन बड़ी कम्पनियों में से एक है जो आज ओखला इण्डस्ट्रियल एरिया दिल्ली में बसी हुयी है। वेयरवेल इण्डिया की दो फैक्टरियां प्लाट न. क्-134 और क्.33 ओखला फेस-1 में स्थित है। यह कम्पनी विदेशों से प्राप्त आर्डर पर सिले सिलाये वस्त्र तैयार कर एक्सपोर्ट करती है। क्-134 में सैम्पलिंग, प्रोडक्शन, कटिंग, फिनिशिंग आदि विभाग हैं। जिसमें लगभग 600 मजदूर काम करते हैं। यह वेयर वेल की मुख्य कंपनी है। क्-33 में प्रोडक्शन का काम होता है। इसमें लगभग 300 मजदूर काम करते हैं।
1 सितम्बर सोमवार को क्-33 के सभी मजदूर 8.33 प्रतिशत बोनस की मांग के लिए कम्पनी के अंदर ही हड़ताल पर बैठ गये। गौरतलब बात है कि इस बार मैनेजमेण्ट ने मजदूरों को 3500 रुपये बोनस देेने की बात की थी। इस बात को लेकर मजदूर आक्रोशित थे। मजदूरों का कहना था कि पहले भी कम्पनी ने बोनस कभी 4500, 5000, 5200 रुपये दिया था। पर इस बार तो हद हो गयी। जबकि कम्पनी लगातार मुनाफा कमा रही है। मालिक ने इन्हीं कम्पनियों के मुनाफा कमा कर नोयडा, उत्तर प्रदेश में इन कम्पनियों से कई गुना बड़ी कम्पनी खड़ी की हैं।
मजदूरों ने तय कर लिया कि इस बार हम 8.33 प्रतिशत के हिसाब से बोनस लेंगे। मजदूरों ने कई दिन पहले मैनेजमेण्ट को सूचित कर दिया था कि यदि 1 सितम्बर तक 8.33 प्रतिशत के हिसाब से बोनस देने के संबंध में नोटिस नहीं लगाया तो वह काम बंद कर देंगे। जब 1 सितम्बर तक इस संबंध में कोइ सूचना नहीं लगी और मैनेजमेण्ट ने कहा कि इस बार 3500 रुपये बोनस दिया जायेगा तो मजदूर ने 1 सितम्बर को फैक्टरी के अंदर काम बंद कर अपने संघर्ष की शुरूआत की। 2 सितम्बर को मजदूरों ने अपनी जुझारू एकता का परिचय दिया। क्-134 के सभी विभागों के मजदूर भी काम बंदकर संघर्ष में शामिल हो गये। गौरतलब बात है कि क्-134 में मालिक ने अगस्त महीने से सेम्पलिंग विभाग को बंद कर अपने नोयडा वाली कम्पनी में शिफ्ट कर दिया। सेम्पलिंग के कारीगरों से नोएडा जाने या फिर यहां पर प्रोडक्शन करने के लिए कहा गया। कारीगरों ने इन दोनों की शर्तों को मानने से मना कर दिया। तभी से सेम्पलिंग विभाग के लगभग 30 कारीगर सैम्पलिंग का काम करने या फिर बेहतर हिसाब के लिए संघर्ष कर रहे थे। क्-134 को मजदूरों द्वारा बंद करने से 2 सितम्बर को वेयर वेल का ओखला में काम पूरी तरह से बंद रहा। मजदूरों ने अपनी जुझारू व व्यापक एकता का परिचय दिया। इस एकता से मजदूरों के हौंसले बुलंद हुए। शाम को छुट्टी के बाद क्-134 व क्-33 के सभी मजदूरों ने अपनी एकता को और मजबूत करने व संघर्ष को आगे जारी रखने के लिए मीटिंग की।
मजदूरों की एकता व संघर्ष का असर दिखने लगा। मैनेजमेण्ट पहले 4500 और फिर 4 सितम्बर को 6000 रुपये बोनस के लिए तैयार हो गया। 4 सितम्बर को मजदूरों ने शाम को मीटिंग की। मीटिंग में व्यापक बातचीत के बाद तय किया क्योंकि कम्पनी लगातार मुनाफा कमा रही है इसलिए हम 8.33 प्रतिशत बोनस के लिए संघर्ष को जारी रखेंगे। यदि मैनेजमेंट की तरफ से समझौते के लिए बीच के किसी विकल्प की बात होती है तो उस पर आपस में बैठकर तय करेंगे।
5 सितम्बर को क्-134 में मजदूरों के प्रतिनिधियों से बातचीत के लिए मालिक स्वयं आया। मालिक ने मजदूरों से बहुत ही भावुक होकर बातचीत की। उसने कहा कि वह मजदूरों को सभी सुविधायें दे रहा है। और अभी स्थिति नहीं है कि वह मजदूरों को 6,000 रुपये से अधिक का बोनस दे पाये। मजदूर प्रतिनिधि वर्गीय चेतना की कमी के चलते मालिक और मैनेजमेण्ट की चालों को नहीं समझ पाये। और लगभग सभी इस बात से सहमत हो गये। इसके बाद मालिक और मैनेजमेण्ट प्रोडक्शन विभाग में गये। मालिक ने बहुत ही भावुक होकर मजदूरों के सामने हाथ जोड़े और 6000 रुपये से अधिक बोनस न दे पाने पर अपनी असमर्थता दिखाई। कुछ मजदूरों ने इसका विरोध किया परन्तु ज्यादातर मजदूरों की सहमति के कारण वह विरोध नहीं कर पाये। इसी तरह क्-134 में भी बातचीत हुई। और प्रोडक्शन शुरू हो गया। मजदूरों ने अपनी एकता और संघर्ष के दम पर आंशिक जीत हासिल की।
5 दिनों तक मजदूरों ने अपनी व्यापक व जुझारू एकता के दम पर संघर्ष को चलाया और ऐसे दौर में जहां मजदूरों से उनके अधिकारों को छीना और मजदूरों के संघर्षों को कुचला जा रहा है, आंशिक जीत हासिल की। इस संघर्ष में मजदूर वर्ग की चेतना की कमी के कारण मजदूरों से कुछ चूकें हुयीं। जैसे- क्-134 और क्-33 के चुने हुए प्रतिनिधियों की कोई कमेटी न बनाना, क्-134 में वार्ता के लिए प्रतिनिधियों में सेम्पलिंग व अन्य विभागों के प्रतिनिधियों को न शामिल करना, अंतिम समझौते से पहले सैम्पलिंग व अन्य विभागों के प्रतिनिधियों और क्-33 के प्रतिनिधियों के साथ बैठकर बातचीत न करना। आगे के लिए मजदूरों की एकता को कायम रखने के लिए कोई सोच न होना। सबसे बढ़कर मालिक व मैनेजमेंट की चालों को न समझ पाना।
वेयर वेल इण्डिया के मजदूरों को समझना होगा कि आज पूंजीपति अपने मुनाफे को और अधिक बढ़ाने के लिए कई तरीके निकालता रहता है। जैसा कि पहले भी ओखला की कई बड़ी कम्पनियां शाही एक्सपोर्ट, ओरियंट हाउस जैसी कम्पनियां अपने मुनाफे को और अधिक बढ़ाने के लिए नोएडा, फरीदाबाद, गुड़गांव जा चुकी हैं जैसा कि मजदूरों ने बताया कि वेयर वेल के मालिक ने ओखला से कई गुना बड़ी फैक्टरी नोएडा में लगाई है। मालिक अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिए भविष्य में ओखला से प्रोडक्शन कम  या बंद कर मजदूरों की छंटनी कर सकता है। जैसा कि उसने सैम्पलिंग विभाग को बंद कर, कारीगरों की छंटनी कर साबित कर दिया है। क्योंकि ओखला (दिल्ली) के मुकाबले नोएडा में मजदूरों का न्यूनतम वेतन कम है। ऐसे में मजदूरों की छंटनी होना तय है।

ऐसे समय में मजदूरों की व्यापक एकता ही उन्हें मालिक के हमलों से बचा सकती है। मजदूरों को समय रहते मजदूर वर्ग की विचारधारा पर खड़ा होकर अपनी व्यापक और मजबूत एकता बनानी चाहिए।              दिल्ली संवाददाता

इजरायल द्वारा गाजा में जारी नरसंहार के खिलाफ इजरायली दूतावास में प्रदर्शन
(वर्ष-17,अंक-16 : 16 -31  अगस्त, 2014)
दिल्ली इजरायल द्वारा फिलीस्तीन के गाजा में जारी क्रूर जनसंहार के खिलाफ ‘गाजा के साथ, वैश्विक एकजुटता’ अभियान के तहत 9 जुलाई को दुनिया भर में इजरायल के खिलाफ होने वाले प्रदर्शनों की श्रंृखला में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के विभिन्न वाम-जनपक्षधर व मानवाधिकार संगठनों के द्वारा दिल्ली स्थित इजरायली दूतावास पर एक जोरदार प्रदर्शन किया गया।
इस प्रदर्शन को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के विभिन्न जनसंगठनों के ‘इजरायली जनसंहार के विरुद्ध गठित एक मोर्चे ने आयोजित किया था। इस मोर्चे में आॅल इण्डिया फेडरेशन आफ ट्रेड यूनियन (न्यू), इंकलाबी मजदूर केन्द्र, मजदूर एकता केन्द्र, इंडियन काउंसिल आफ ट्रेड यूनियन, मेहनतकश मजदूर मोर्चा, क्रांतिकारी नौजवान सभा, क्रांतिकारी युवा संगठन, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, पीपुल्स यूनियन फाॅर डेमोक्रेटिक राइट्स, पी.डी. एफ.आई., पीपुल्स फ्रंट, संहति, रेडिकल नोट्स आदि शामिल थे।
प्रदर्शनकारियों का जुलूस इजरायली हमले के खिलाफ नारेबाजी करता हुआ इजरायली दूतावास की ओर बढ़ा तो भारी पुलिस बल द्वारा पहले से ही खड़ी की गयी बैरिकेडिंग द्वारा उसे दूतावास से पहले ही रोक दिया गया। प्रदर्शनकारियों द्वारा वहीं पर इजरायली शासकों के खिलाफ व गाजा की जनता के बहादुराना संघर्ष के समर्थन में जबर्दस्त नारेबाजी की गयी तथा इजरायली हमले पर भारत सरकार की चुप्पी पर भारत सरकार को कोसते हुए इजरायल से सारे संबंध खत्म करने की मांग के नारे लगाए गये। इस अवसर पर बैरिकेडिंग के पास ही एक सभा आयोजित की गयी। सभा में इजरायली नरसंहार पर तीव्र आक्रोश व्यक्त करते हुए विभिन्न संगठनों के वक्ताओं द्वारा इजरायल द्वारा गाजा में जारी नरसंहार मंे अमेरिकी साम्राज्यवाद की शह पर चर्चा करते हुए इजरायल को मध्यपूर्व में अमेरिकी साम्राज्यवाद का लठैत घोषित किया। उन्होंने वर्षों से नाकेबंदी व इजरायली हमलों के शिकार गाजा की जनता के बहादुराना प्रतिरोध की सराहनना करते हुए कहा कि फिलीस्तीन की जनता पिछले 67 सालों से अपने होमलैण्ड पर कब्जे और पश्चिमी साम्राज्यवाद खासकर अमेरिका द्वारा पोषित इजरायली विस्तारवाद के बहशियाना हमलों व नरसंहार का प्रतिरोध कर रही है। वह दुनिया के सबसे शानदार प्रतिरोध संघर्षों में है। सभा में वक्ताओं द्वारा भारतीय शासकों द्वारा 1990 के दशक के बाद फिलिस्तीनी जनता के समर्थन की अपनी विदेश नीति में बदलाव कर अमेरिका व इजरायल के साथ रणनीतिक संबंध विकसित करने की कोशिशों का विरोध किया तथा भारत सरकार से इजरायल से सारे संबंध खत्म करने की मांग की।

सभा के अंत में इजरायल के एक प्रतीकात्मक झंडे को जलाकर इजरायली जनसंहार की कार्यवाही का विरोध किया गया। दिल्ली संवाददाता

ऐरा मजदूरों पर चला पूंजीवादी तंत्र का डण्डा
(वर्ष-17,अंक-16 : 16 -31  अगस्त, 2014)
सिडकुल पंतनगर के सेक्टर 9 में ऐरा बिल्डिसिस के मजदूरों पर पूंजीवादी तंत्र का डण्डा चला और मजदूरों के सामने पूरे खुलकर प्रबंधक वर्ग का साथ दे रहा है।
21 जुलाई की शाम लगभग 6 बजे ऐरा के मजदूर अपनी पंजीकृत यूनियन का ध्वजारोहण फैक्टरी गेट पर कर रहे थे। उससे पहले मजदूरों ने स्थानीय जिला प्रशासन व पुलिस प्रशासन व श्रम विभाग को सूचना दे दी थी मगर उसके बाद किसी ने मजदूरों को लिखित में कोई नोटिस या अस्वीकृत पत्र नहीं दिया था। हां! एक दिन पहले झण्डे का चबूतरा रात में अज्ञात लोगों द्वारा जरूर तोेड़ा गया था, उसकी शिकायत भी मजदूरों ने प्रशासन को करायी थी। मगर उस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई थी। 21 जुलाई की सांय 6 बजे जब मजदूर काम करके आये तो झण्डा रोहण के लिए एकत्रित हुए थे। तब पुलिस ने बर्बर तरीके से लाठी चार्ज किया उसमें दिनेश का सिर फट गया व बुद्धसेन का हाथ दो जगह से टूटा। उसके अलावा प्रदीप के भी काफी चोट आयी जो मौके पर ही बेहोश हो गया था उसे उसके मजदूर साथियों ने उठाकर स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया तो अस्पताल वाले ने भी उसको सामान्य दवा देकर वहां से भगा दिया जबकि उसकी हालत भर्ती के लायक हो रही थी। बाद में अन्य जगह से इलाज करवाया गया। बाकी 18 मजदूरों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और सामान्य मेडिकल कराकर हल्द्वानी जेल भेज दिया। जेल में भी घायल मजदूरों का कोई इलाज नहीं करवाया। मजदूर घायल अवस्था में जेल में बंद हैं। बुद्धसेन का हाथ पूरा सूजा हुआ है और उसमें पस पड़ चुका है। बुद्धसेन हमेशा जेल में रोता रहता है।
पुलिस द्वारा गिरफ्तार मजदूरों के विरोध में स्थानीय जनसंगठन और यूनियन के लोगों के साथ 22जुलाई को 11.30 बजे डी.एम.साहब से मिलने इंकलाबी मजदूर केन्द्र के अध्यक्ष कैलाश भट्ट जा रहे थे कि अचानक पुलिस ने सादा वर्दी में कैलाश भट्ट को गिरफ्तार कर लिया उसके बाद पुलिस ने उन पर संगीन धारायें लगाकर जेल में डाल दिया जबकि कैलाश भट्ट की कुछ दिन पहले अस्पताल में सर्जरी हुई थी। वह बस उसी समय वहां पर गये हुए थे। उसके बाद जनसंगठन और यूनियन के पदाधिकारी जिला डिप्टी कलेक्टेªट प्रभारी से मुलाकात की और उनसे जब बात की कि ऐरा के मजदूरों के साथ पुलिस ने जो व्यवहार किया है वह बहुत ही असंवेदनशील है व इंकलाबी मजदूर केन्द्र के अध्यक्ष कैलाश भट्ट को सादा वर्दी में पुलिस ने जो गिरफ्तार किया है, वह सब क्या है। इस पर उन्होंने साफ कहा है कि आप लोगों ने तो प्रशासन की नाक में दम कर रखा है, कभी किसी अधिकारी को बंधक बनाते हो, तो कभी किसी को यूनियन बनाकर फैक्टरियों में प्रबन्धकों से अपनी मनमर्जी चलवाना चाहते हो आप इस तरह से व्यवहार करेंगे तो पूंजीपति चले जायेगें। बाकी मामलों में हम जांच करेंगे।
जब मजदूरों कोे जेल भेज दिया गया उसके बाद मजदूरों के वकील ने मुख्य न्यायिक मजिस्टेªट के सामने जमानत का प्रार्थना पत्र दिया तो उन्होंने प्रार्थना पत्र यह कहकर खारिज कर दिया कि वे 7 क्रिमिनल में जमानत नहीं दे सकते हैं। अगले दिन जिला जज साहब के सामने प्रार्थना पत्र लगाया तो उन्होंने सीधे बात करने से मना कर दिया और 4 अगस्त की तारीख दे दी। जब 4 अगस्त को जज साहब ने उस जमानतीय प्रार्थना पत्र पर कहा कि यह श्रमिक नहीं है बल्कि यह तो बबाली है, बबाल करते रहते हंै इनको अपना राइट्स तो याद रहते हैं मगर ड्यूटी याद नहीं करते। इसके अलावा बहस में मौखिक तौर पर उन्होंने अन्य बातें भी की जिस पर वकीलों ने अपनी दलील पेश की। वकील साहब ने बताया कि जज साहब ने कहा कि इसी तरह की कार्यवाहियों से रूद्रपुर से होण्डा फैक्टरी में भी बबाल काटा था इससे पूंजीपति यहां से नाराज होकर चले जायेंगे। हालांकि सभी बातें बहस के दौरान मौखिक ही बातें कही हैं। उसके बाद जिला जज साहब ने जमानत तो दे दी मगर कुछ शर्तों के साथ यानि जमानत तो 30-30 हजार के दो जमानती स्थानीय यानि सिर्फ ऊधमसिंह नगर के होने चाहिए। और उनके सम्पत्ति के कागजों को विभागों से तस्दीक कराये जाने चाहिए स्पीड पोस्ट द्वारा। इससे मजदूरों को और अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ गया। क्योंकि अधिकतर मजदूर बाहर से आकर यहां पर काम कर रहे है। यह सभी शर्तें मजदूरों को यूनियन बनाने के सबक के अलावा और कुछ नहीं हंै फिर भी मजदूर और उनके परिवार वालों ने मिलकर जमानती दाखिल कराये। तस्दीक होने में भी मजदूरों को अन्य समस्याओं से गुजरना पड़ा। क्योंकि पूंजीवादी तंत्र तो हर जगह पैसों को ही तरजीह देता है मजदूर इन सबसे वंचित रहते हैं।
वकील भी सम्पत्ति यानि पैसे पर आधारित होते हैं जबकि वकीलों ने इतने सारे मजदूरों को देखा तो सभी गिद्धों की तरह ललचाई आंखों से देखने लगे कि यह केस हमारे लिए मिल जाये। यह ऐसे देखते हैं जैसे मरे जानवर को देखकर सारे गिद्ध देखते हैं। इनकी मजदूरों के साथ कोई पक्षधरता नहीं होती है बल्कि पैसा कमाने के लिए ही कोर्ट में बैठते हैं उसमें भी जो उनके ग्राहक होते है उनका काम करवा दे तो भी ठीक है मगर वह तो सीधे-सीधे बेवकूफ बनाकर पैसा कमाने का काम करते हैं। वकील अपने विवेक से कोई एक प्रार्थना पत्र भी नहीं लगाते हैं और ना ही उनको कोई ठीक से राय देते हैं। जो उनका कत्र्तव्य है उसको भी पूरा नहीं करते हैं जिसका खामियाजा गरीब मजदूर मेहनतकश के आरोपी अपराधी बनते हैं। यह सभी पूंजीवादी सडांध की पैदाइश है। इसी तरह कोर्ट के बाबू भी जो सरकारी वेतन पर होते है जो बगैर पैसे के कोई काम नहीं करते हैं गरीब मजदूर की इस समय सुनने वाला कोई नहीं है। यहां पर लिखा होता है कि घूस देना और लेना अपराध है। इन सबसे ऐरा के मजदूर भी शिकार हुए हैं।
जेल में बंद बुद्धसेन का हाथ दो जगह से टूटा हुआ है। मगर उसका कोई इलाज नहीं करवाया जा रहा है। वकील के प्रार्थना पत्र पर सी.जे.एम रूद्रपुर ने आदेश दिया। उस पर जेल प्रशासन ने सिर्फ एक बार हल्द्वानी सोबरन जीना अस्पताल में सामान्य उपचार कराया गया उसके बाद उस पर कोई इलाज नहीं करवाया गया। बुद्धसेन की पत्नी से जब मुलाकात हुई तो उन्होंने रोते हुए बताया कि मेरे पति का हाथ सड़ चुका है, उसमें पस पड़ गया है, पूरा हाथ सूजा हुआ है, वह जेल में रोते रहते हैं और दर्द से कराहते रहते हैं उनको सामान्य दर्द निवारक गोलियां भी नहीं दी जाती हैं। मगर आज बुद्धसेन की पत्नी की फरियाद सुनने वाला कोई प्रशासन नहीं है।
मीडिया भी पूंजीपति वर्ग के हिसाब से चलता है जब 21 जुलाई को मजदूरों पर लाठी चार्ज हुआ तो उससे पहले ही मीडिया को फोन से सूचना दे दी थी मगर उस पर मीडिया का कहना था कि पहले लाठी चार्ज हो जाने दो उसके बाद मिर्च-मसाला लगाकर समाचार बनायेंगे। जब लाठी चार्ज हो गया तो काफी देर बाद मीडिया अपनी खाना पूर्ति करने के लिए पहुंचा। उस पर भी मीडिया का जो वास्तव में रोल न होकर बल्कि सीधे पूंजीपति व उसके प्रशासन व पुलिस को बचाने के लिए तर्क दिये जाते है। मीडिया और वकील सीधे जेल व पुलिस से जानकारी लेकर दे सकते है जेल में बंदी मजदूरों से मिल सकते हैं और जेल के नियम कानूनों को उजागर कर सकते हैं। मगर वह इस काम को नहीं करते है। इस समय तो जेल कालकोठरी की भूमिका निभाती है सिर्फ मजदूरों के लिए पूंजीपति का एक दमनात्मक यंत्र है। इसी तरह मीडिया पुलिस और फैक्टरी के अंदर जाकर अंदर की परिस्थितियों को जानकर उजागर करना चाहिए।
ऐरा प्रबंधक ने इस समय मजदूरों पर सीधे हमला बोला है यानि फैक्टरी प्रबंधक ने मजदूरों पर सीधे सिडकुल प्रशासन और पुलिस प्रशासन से भिड़ाकर अपना साफ बच गया है जबकि इसका असली खिलाड़ी फैक्टरी प्रबंधन ही है। मजदूरों गिरफ्तार होने के बाद सबसे पहले उसने बचे हुए मजदूरों पर हमला बोला कि आप सभी दो दिन में अपने असली कागजों को पेश करें जो आपने नियुक्ति के समय लगाये थे। सवाल है कि प्रबंधक को असली कागजों को मांगने की इसी समय आवश्यकता क्यों पड़ी है। इसमें पहले क्यों नहीं क्योंकि इस समय असली नेता तो जेल में है जो इनको आगे का रास्ता दिखायेगें। वहीं दूसरी तरफ उसने जेल में बंद 18 मजदूरों के घरों पर एक कारण बताओ नोटिस भेजा कि आप लोगों को पुलिस ने जेल भेज रखा है और काम पर नहीं आ रहे हो आपने कोई सूचना नहीं दी है कि पुलिस ने तुम्हें जेल में बंद क्यों कर रखा है। इसी तरह परेशान करने के लिए और भी आरोप लगाये गये हैं। फैक्टरी प्रबंधक अपने सारे दांव पेंच खेल रहा है इस समय मजदूरों को गेट पास भी बंद कर रखा है।
स्थानीय स्तर पर कुछ टेªड यूनियनें फैक्टरियों में बनी हुई है क्योंकि सभी प्रबंधक अपने मजदूरों का शोषण उत्पीड़न करते है सभी नेताओं ने मिलकर एक सिडकुल एसोसियेशन बनाने का प्रयास कर रहे है मगर इस ऐरा वाली घटना पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पाये बड़ी बदहवासी स्थिति रही है। यूनियन नेता भी अभी पूंजीपति वर्ग की चालबाजियों और उनके दमनात्मक तरीके को झेल पाने में समर्थ नहीं हो पाये है इसलिए खुलकर प्रतिक्रिया नहीं दे पाये और उनकी कोई मदद भी नहीं कर पाये और उनके अंदर भी एक दहशत कायम हो गयी मगर नियम भी तो यहीं है कि नेता या सेनानायक युद्ध के मैदान में ही बन पाता है। कौन पूंजीवादी प्रशासन और प्रबंधक वर्ग के घेरे को तोड़कर मजदूर संघर्षों को नेतृत्व दे पा रहा है। और यही आज सामाजिक संगठनों की भी स्थिति बनती है। आज पूंजीवादी प्रशासन सभी को डराने में एक हद तक कामयाब हुआ है। आज इस स्थिति से सभी को उबर कर बाहर आना होगा।
ऐरा मजदूरों के दमन के मामले पर शासन स्तर से भी कोई भी पार्टी आज मजदूरों के दमन पर नहीं बोली हद तो यहां तक हो गयी कि मजदूरों के हाल चाल भी जाने आज वर्गीय विभाजन साफ-2 हो गया है कि मजदूर और पूंजीपति वर्ग आज सभी पार्टियों के नेताओं की या तो खुद की फैक्टरियां हैं या फिर उनके ठेका चलते हैं जिनसे उनको करोड़ों के वारे न्यारे होते हैं। तो वह भी चाहते है कि मजदूर सिर उठाकर न चले और अपने जुल्म के खिलाफ न बोले वरना आज तो मामला ऐरा का है और कल को तो सभी के खिलाफ होगा। मानवाधिकार आयोग जैसी संस्थाओं को मजदूरों के मामले पर एकदम चुप है यहां पर किसी को मानवाधिकार उल्लंघन दिखाई नहीं देता है।
आज मजदूर भी वर्गीय तौर पर संगठित नहीं है इसलिए मजदूर भी सहमे हुए हैं। मजदूर अपने साथियों को छुड़ाने के लिए लगे हुए है। मजदूर अपने व्यवहार से पूंजीवाद तंत्र को समझ रहे है और उसके खिलाफ संघर्ष करने को लामबंद होने की बात कर रहे है। तो कभी किसी अधिकारों से मुलाकात कर रहे है और उनका चरित्र बहुत जल्दी समझ ले रहे हैं।

मजदूरों को साफ समझना चाहिए कि यदि पूंजीपति वर्ग की दुखती रग पर हाथ रखोगें तो पूरा तंत्र एक साथ सभी को बबाली कहेगा और इसलिए मजदूरों को वर्ग संघर्ष को ध्यान में रखना होगा और उसी के अनुरूप संघर्ष को आगे बढ़ाना होगा। रूद्रपुर, संवाददाता


झंडारोहण में एरा बिल्डसिस के मजदूरों पर पुलिस का भयंकर लाठीचार्ज
(वर्ष-17,अंक-15 : 1 -15  अगस्त, 2014)
      21 जुलाई 2014, रुद्रपुर/पंतनगर सिडकुल में सेक्टर 9 में स्थित एरा बिल्डसिस लि0 के मजदूरों पर पुलिस व पीएसी द्वारा बर्बरतापूर्वक लाठी चार्ज कर यूनियन के अध्यक्ष, महासचिव सहित 18 मजदूरों  को गिरफ्तार कर लिया व पुलिस दमन का विरोध कर रहे इंकलाबी मजदूर केंद्र के अध्यक्ष कैलाश भट्ट को भी दूसरे दिन जिलाधिकारी प्रांगण से गिरफ्तार कर लिया।
एरा बिल्डसिस के मजदूरों की यूनियन का पंजीकरण 21 मई को हुआ था। यूनियन बनाने की प्रक्रिया में फैक्ट्री प्रबंधन ने किसी भी तरह से यूनियन न बन सके इसके प्रयास किये। नेताओं का गेट बंद से लेकर एएलसी, डीएलसी में यूनियन न बन सके इसके लिए आपत्तियां लगाना, आदि सभी हथकंडे फैक्टरी प्रबंधन ने अपनाये थे। लेकिन मजदूरों ने अपनी एकता और जुझारू तेवर लिए हुए संघर्षों के दम पर ही न केवल अपने नेताओं की कार्यबहाली करवायी थी, बल्कि यूनियन का पंजीकरण भी हासिल कर लिया। 
यूनियन पंजीकृत कराने के पश्चात एरा के मजदूरों ने 21 जुलाई  को यूनियन का झंडारोहण का कार्यक्रम रखा था। जिसकी पूर्व सूचना यूनियन द्वारा जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन, डीएलसी, एएलसी को 15 जुलाई और 19 जुलाई को दे दी थी। 20 जुलाई की रात्रि को झंडारोहण हेतु बनाये गये चबूतरे को प्रबंधन ने पुलिस की मिलीभगत से तोड़ दिया था।  इस बात की रिपोर्ट यूनियन पदाधिकारियों ने सिडकुल चैकी को दी लेकिन सिडकुल चैकी पर पुलिस ने मजदूरों की रिपोर्ट लिखने के स्थान पर उल्टा मजदूरों को ही डांटना शुरू कर दिया। तब मजदूरों ने घटना की जानकारी वरिष्ट पुलिस अधीक्षक, जिलाधिकारी ऊधम सिंह नगर, डीएलसी व एएलसी को दी। 
सायं 5 बजे जब मजदूर झण्डारोहण के लिए एकत्र हुए तो सिडकुल चैकी इंचार्ज दल-बल के साथ फैैक्टरी गेट पर आये और मजदूरों को पुलिसिया अंदाज में डांटने लगे व सिडकुल की जमीन पर झण्डा लगाने की अनुमति दिखाने की बात करने लगे। मजदूरों द्वारा शांतिपूर्ण बात की गई और कहा गया कि वे कोई अतिक्रमण नहीं कर रहे हैं केवल गेट के पास एक झण्डा लगाना चाहते हैं लेकिन पुलिसकर्मी मानने को तैयार नहीं थे। तभी पंतनगर एसएचओ दल-बल सहित आये और मजदूरों से कोई बात नहीं की। मजदूर फैक्टरी गेट पर एकता के नारे लगाने लगे। मजदूरों ने  तय स्थान पर पुलिस की मौजूदगी में ही झंडा फहराया और नारे लगाये। तत्पश्चात इस खुशी में मिठाई वितरित करने लगे तभी सीओ सिटी पहंुचे। उनके साथ एक बस पीएसी भी थी। आते ही उन्होंने मजदूरों पर लाठीचार्ज करने का आदेश दे दिया। पुलिस व पीएसी बर्बर तरीके से पिल पड़े। मजदूरों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा गया व यूनियन के अध्यक्ष-महामंत्री सहित 18 मजदूरों को गिरफ्तार कर लिया। झंडे को उखाडकर तहस-नहस कर दिया गया। पुलिस लाठी चार्ज में 7-8 मजदूरों को काफी चोटंे आयीं। गिरफ्तार मजदूरों में एक का सिर फट गया जिसमंें 8 टांकें आये और एक मजदूर का हाथ टूट गया है।
बिखरे मजदूरों को इंकलाबी मजदूर केंद्र व अन्य टेªड यूनियन के प्रतिनिधियों ने एकत्र कर आगे की रणनीति बनाई जिसके तहत 22 जुलाई को जिलाधिकारी महोदय को पुलिस के दमन के खिलाफ ज्ञापन देने का कार्यक्रम रखा गया। 
22 जुलाई को करीब 11 बजे सिडकुल के कई फैक्टरी के यूनियनों के लोग व इंकलाबी मजदूर केंद्र के लोग डीएम कार्यलय पर एकत्रित हुए । करीब 11ः30 बजे एक प्राइवेट कार से कुछ पुलिसकर्मी उतर कर इंकलाबी मजदूर केंद्र के अध्यक्ष कैलाश भट्ट से खींचतान करने लगे। जब लोगों ने इसका विरोध किया तो सादी वर्दी में आये चैकी इंचार्ज ने लोगों को धमकाया कि अभी पीएसी बुलाकर सबको सबक सिखा दूंगा। इसे गिरफ्तार कर ले जा रहा हूं। और कैेलाश भट्ट को कार में ले गये। बाद में सभी गिरफ्तार मजदूरांे के साथ-साथ कैलाश भट्ट को भी धारा 147, 341, 332, 353 प्च्ब् व 7 क्रिमिनल एक्ट के तहत चालान कर जेल भेज दिया गया। 
पुलिस की इस कार्यवाही पर यूनियनों व इमके प्रतिनिधियों ने डीएम साहब से मिलने की कोशिश की लेकिन डीएम साहब ने मिलने से मना कर दिया। तब डिप्टी कलेक्टर से लोगों ने मुलाकात कर ज्ञापन दिया व कैलाश भट्ट की गैरकानूनी तरीके से हुई गिरफ्तारी का विरोध किया। 
23 जुलाई को इमके, एक्टू, रानेमद्रास लि0, एरा व ठेका मजदूर कल्याण समिति की ओर से एक ज्ञापन मुख्यमंत्री को भेजा गया जिसमें इमके अध्यक्ष कैलाश भट्ट की गिरफ्तारी का विरोध एवं एरा मजदूरों के दमन के दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्यवाही की मांग की। 
23 जुलाई को सीजीएम कोर्ट से मजदूरों की जमानत खारिज हो गयी। 24 जुलाई को जिला कोर्ट में जमानत अर्जी दाखिल की गयी जिस पर 4 अगस्त को सुनवाई की तारीख मिली है। 
एरा के मजदूरों पर बर्बरतापूर्वक लाठी चार्ज के पीछे सिडकुल के प्रबंधकों व ठेकेदारों की एसोसियेशन एवं पुलिस प्रशासन-जिला प्रशासन के गठजोड़ की भूमिका स्पष्ट है। सिडकुल के भीतर मजदूरों के शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ किसी तरह की आवाज को आज सरकार सुनना नहीं चाहती और जबकि सिडकुल के मजदूर अपनी फैक्टरी के स्तर पर संगठित हो रहे हैं और संघर्ष कर यूनियनें पंजीकृत करा ले रहे हैं। तब इस नापाक गठजोड़ की नींदें खराब हो रही हैं। किसी तरह संघर्षरत बहादुर मजदूरों को सबक सिखाने का बहाना ढूंढा जा रहा है। एरा फैक्टरी में सिडकुल की सरकारी जमीन पर बगैर अनुमति झंडा गाड़ना ही बहाना था। इमके मजदूरों के संघर्ष को सही धार देने का काम करता रहा है। इसीलिए इमके अध्यक्ष कैलाश भट्ट पुलिस प्रशासन की आंखों में खटकते रहते हैं। उनकी गिरफ्तारी कर पुलिस प्रशासन ने इसे साबित ही किया है। 
सिडकुल लगाते वक्त सरकारांे ने कृषि योग्य जमीन को कोडि़यों के भाव दिया व 10 सालों तक तमाम तरह के करों से छूट प्रदान की जिससे इन पंूजीपतियों ने अरबों का मुनाफा कमाया। जिन मजदूरांे ने पूंजीपतियों के इस सिडकुल को गुलजार किया उसे फैक्टरी गेट पर एक पाइप गाड़कर झंडा लगाने पर पुलिस के दमन का शिकार होना पड़ रहा है। 
एरा के मजदूरों के दमन से पूंजीपतियों, पुलिस-प्रशासन के घृणित गठजोड़ के हौंसले थोड़ी देर के लिए बढ़े हों लेेकिन एरा के बहादुर मजदूरों द्वारा पुलिस के सामने ही अपने झंडे़ को फहराना मजदूरांे के बुलंद हौंसले को दिखाता है।रुद्रपुर संवाददाता

लखानी की चालाकी व मजदूरों की परेशानी
(वर्ष-17,अंक-15 : 1 -15  अगस्त, 2014)
22 जुलाई देर शाम लखानी(वरदान) कम्पनी(हरिद्वार सिडकुल सेक्टर-4 स्थित) को राजस्व विभाग ने सील कर दिया। कम्पनी ने वर्ष 2008-09 का एक करोड़ 13 लाख के लगभग टैक्स जमा न करने के कारण पहले 26 नवम्बर 2013 को कम्पनी की आरसी काट दी थी। कम्पनी में वर्तमान समय में 150 मजदूर अधिकांश महिला कार्यरत थीं। जिनका दो माह का वेतन कम्पनी ने नहीं दिया है। 
23 जुलाई को मजदूर जब काम पर आये तब उन्हें कम्पनी के सील किये जाने की जानकारी हुयी। मजदूरों ने अपने वेतन व अन्य देनदारी (पी.एफ., बोनस, ग्रेच्युटी व छुट्टियों का पैसा) के लिए फैक्टरी गेट पर विरोध प्रदर्शन किया, परन्तु कम्पनी का कोई भी प्रतिनिधि जबाव देने नहीं आया। मजदूरों को अगले दिन 24 जुलाई को अखबारों द्वारा फैक्टरी में सिर्फ टैक्स जमा न करने के कारण डी.एम. के आदेश पर सील करने की कार्यवाही का पता चला। सभी मजदूर डी.एम. कार्यालय पहंुचे। डी.एम. कांवड़ मेले को सफल बनाने की जिम्मेदारी का बहाना बना कर 25 जुलाई के बाद मिलने को कहने लगे। 26 जुलाई को मजदूर पुनः डी.एम. आॅफिस पहुंचे। मजदूरों की डी.एम. साहब के देहरादून चले जाने की बात पता चली। अब मजदूरों को 28 जुलाई को डी.एम. साहब से अपने वेतन मिलने की उम्मीद है।
इससे पूर्व भी यह कंपनी अन्य दो प्लाण्ट (डिटरजेण्ट केक और आॅटो पार्ट) इन्हीं धोखाधड़ी के कारण बंद करवा चुकी है। इन प्लांटों के बंद करने के लिए मालिक ने बैंकलोन न चुकाने व कई सालों से पी.एफ. का पैसा जमा न करवाने को बताया जा रहा हैं 
यह फैक्टरी 2008-09 में अपने उत्पादन को पूरी क्षमता के साथ चलती थी। उस समय इस फैक्टरी में 500 से ज्यादा मजदूर काम करते थे व 7-8 लाइन चलती थीं। तब भी मजदूरों को श्रम कानूनों के तहत सुविधाएं नहीं मिलती थीं। यह कम्पनी हरिद्वार में 2006 से ही कार्यरत है। कम्पनी इस प्रकार की टैक्स चोरी करने में अपनी मातृ कम्पनी फरीदाबाद से ही माहिर है। ये वही फैक्टरी है जिसके फरीदाबाद के प्लांट में सुरक्षा मानकों में कटौती करने से 200 मजदूर जलकर मारे गये थे। फरीदाबाद में इसके कई प्लांट हैं। हरिद्वार में भी पांच प्लांट थे जिनमें तीन प्लांट वरदान ग्रुप के हैं।
कम्पनी मालिक तेजी केे समय मजदूरों से खूब काम करवाता है। जब थोड़ा सा भी (मंदी) मुनाफे में कमी होती है तो मजदूरों की छंटनी करना शुरू कर देता है। परन्तु शासन-प्रशासन दोनों ही समयोें में पूंजीपतियों के लिए मुस्तैदी से तैयार रहता है। मंदी का बहाना बनाकर पूंजीपति फैक्टरी बंद कर देते हैं। उस दौरान भी वह नुकसान कम से कम हो इसके लिए भी मजदूरों को ही निशाना बनाता है। इसके तरीके के बतौर मजदूरों की संख्या में गड़बड़ी कागजी तौर पर करना प्रमुख साधन है। उक्त घटना में एक तरफ तो टैक्स जमा न करने के बहाने फैक्टरी को सील करने की कार्यवाही पूंजीपति स्वयं करवाता है। दूसरी तरफ हीरो मोटो काॅर्प कम्पनी मालिक हरिद्वार में लगभग इतना ही 1 करोड़ 11 लाख टैक्स न जमा करने के बाद भी उत्पादन जारी रहता है।  हरिद्वार संवाददाता 

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