Sunday, November 16, 2014

कश्मीर में व्यापक प्रदर्शन

भारतीय सेना के द्वारा दो नौजवानों की हत्या
वर्ष-17,अंक-22(16-30 नवम्बर, 2014)
    भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा कश्मीरी नागरिकों की हत्याओं का सिलसिला जारी है। 2 नवंबर को बड़गाम जिले के छतरग्राम चैकपोस्ट पर सेना के जवानों द्वारा मारूति कार पर ताबड़तोड़ फायरिंग की गयी। कार में सवार चार नौजवानों में से दो नौजवानों फैजल अहमद बट व मेहराजुद्दीन डार की मौके पर ही मौत हो गयी। शेष दो नौजवान अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं। 
    सेना ने कुछ किंतु-परंतु लगाकर अपनी गलती स्वीकार की है तथा मृतकों के परिजनों को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा देने की घोषणा भी की है। सेना का कहना है कि उनके पास सूचना थी कि सफेद मारूति में आतंकवादी आ रहे हैं। उन्होंने गाड़ी को हाथ दिया परंतु गाड़ी नहीं रोकी गयी। इस कारण कार पर गोलियां चलायी गयीं। सेना ने उक्त घटना की जांच करने की बात कही है तथा चैकपोस्ट पर तैनात जवानों को वहां से हटा दिया गया है। 
    सेना की गोली से घायल हुए अस्पताल में भर्ती छात्र जाहिद अयूब और शाकिर अहमद ने बताया कि वे मोहर्रम के जुलूस में शिरकत करके आ रहे थे तथा तेज रफ्तार में थे। रास्ते में सेना के जवान ने हाथ देकर रोका, उन्हें देखने के बाद कुछ आगे हमने ज्योंही कार को रोकने की कोशिश की तो उन्होंने हमारे ऊपर फायरिंग कर दी। हमसे कहा कि हथियार हमारे हवाले कर दो। कार की तलाशी के बाद घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया। फैजल व मेहराजुद्दीन की मौके पर ही मौत हो गयी। 

नसबंदी शिविर या मौत का शिविर

वर्ष-17,अंक-22(16-30 नवम्बर, 2014)
    छत्तीसगढ़ के विलासपुर में नसबंदी शिविर में सरकारी बदइंतजामी और डाक्टरों की घोर लापरवाही के कारण 15 महिलाएं अब तक मारी जा चुकी हैं। 92 से भी अधिक महिलाएं अभी भी विभिन्न अस्पतालों में भर्ती हैं। वे मौत से जूझ रही हैं और सरकार के मंत्री फूहड़ बयान दे रहे हैं।
    छत्तीसगढ़ में वर्षों से भाजपा की सरकार है और वहां स्वास्थ्य सेवाओं का क्या हाल है वह इस घटना ने बखूबी जाहिर कर दिया है। हद तो यह है प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल मुख्यमंत्री की उपस्थिति में मुस्कराते हुए दिखे जब वे लाशों को देख रहे थे। पैचाशिक हंसी का यह नजारा जिसने देखा उसने थू-थू की। 

त्रिलोकपुरी के बाद अब बवाना में दंगों की साजिश

विशेष रिपोर्ट
वर्ष-17,अंक-22(16-30 नवम्बर, 2014)   
 पूर्वी दिल्ली के त्रिलोकपुरी में साम्प्रदायिक हिंसा की आग बुझ भी नहीं पाई थी कि बाहरी दिल्ली के बवाना में मोहर्रम के अवसर पर दंगा भड़काने की पूरी तैयारी कट्टरपंथी तत्वों द्वारा कर ली गयी थी। मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा हर वर्ष की तरह मोहर्रम के जुलूस को बवाना गांव में नहीं निकलने देने के लिए हिन्दू कट्टरपंथी तत्वों द्वारा हिंसक टकराव की धमकी दी गयी थी। मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधियों द्वारा 24 अक्टूबर को प्रशासन के सामने किसी अप्रिय व हिंसा की घटना को टालने के मद्देनजर बवाना गांव में मोहर्रम का जुलूस न निकालने का आश्वासन देने के बावजूद 2 नवम्बर को हिन्दू कट्टरपंथियों द्वारा बवाना में 52 गांवों की एक महापंचायत आयोजित कर मोहर्रम के दिन बवाना गांव में जुलूस व ताजिया न निकलने देने हेतु शक्ति प्रदर्शन किया गया। इस तरह मोहर्रम के दिन इस इलाके की शांति व हिन्दू-मुस्लिम भाई-चारे को नष्ट कर दंगा फसाद को अंजाम देने की पूरी तैयारी साम्प्रदायिक तत्वों द्वारा कर ली गयी थी। मोहर्रम के अवसर पर ‘‘नागरिक संवाददाता’’ ने बवाना जाकर तनाव ग्रस्त इलाके में वहां के स्थानीय लोगों से बातचीत कर स्थिति का जायजा लिया। प्रस्तुत है एक रिपोर्ट-
    बवाना बाहरी दिल्ली (उत्तर पश्चिमी) में स्थित है। यहां काफी संख्या में उद्योग भी हैं। ज्यादातर उद्योग लघु उद्योगों की श्रेणी के हैं, जहां रोजमर्रा की उपभोक्ता वस्तुओं व हार्डवेयर के सामान की मैन्युफैक्चरिंग होती है। आमतौर पर दिल्ली में बवाना को एक औद्योगिक इलाके के रूप में जाना जाता है। औद्योगिक इलाके से सटी बवाना पुनर्वास कालोनी है। इस पुनर्वास कालोनी में लगभग 1.5 लाख आबादी रहती है। जिसमें 35000 के लगभग मतदाता हैं। यह पुनर्वास कालोनी लगभग दस वर्ष पूर्व बसाई गयी। इनमें ज्यादातर लोग यमुना पुस्ता से यहां पुनर्वासित किए गये हैं। राजघाट पाॅवर हाउस व आर.के.पुरम के झुग्गीवासियों को भी पुनर्वासित कर यहां बसाया गया था। इस बस्ती के ज्यादातर लोग मजदूर-मेहनतकश हैं। इनमें से ज्यादातर दिहाड़ी मजदूर, रिक्शा चालक, गाड़ी-टैम्पो चालक व असंगठित क्षेत्र के छोटे-मोटे रोजगार में लगे लोग हैं। यह कालोनी एक छोटा-मोटा कस्बा जैसी प्रतीत होती है। इस कालोनी में मुस्लिम व हिंदू आबादी क्रमशः 60 व 40 प्रतिशत है। हिंदू व मुस्लिम आबादी आपस में घुली-मिली है। किसी भी गली में हिन्दू व मुस्लिमों के मकान अलग-बगल हैं। कई जगह मंदिर व मस्जिद भी आस-पास ही हैं। 

Saturday, November 1, 2014

काला धन और मोदी सरकारः कहां गये वे वायदे?

वर्ष-17,अंक-21(01-15 नवम्बर, 2014)    
कहा जाता है कि झूठ की कलई एक दिन जरूर खुलती है। आज यही मोदी सरकार के साथ हो रहा है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के भ्रष्टाचार पर लम्बे भाषण देने वाले नरेन्द्र मोदी ने बार-बार मंचों से यह दोहराया था कि वे सत्ता में आ गये तो विदेशों में जमा सारा काला धन देश में ले आयेंगे। सारे काले धन के मालिकों के नाम उजागर कर देंगे। समस्त भ्रष्टाचार का नाश कर देंगे। पर सत्ता में आये अभी 5 माह भी पूरे नहीं हुए थे कि मोदी सरकार काले घन के वायदे से पलटती नजर आने लगी है। वित्त मंत्री अरुण जेटली अब मजबूरियां गिनाने लग गये हैं कि विदेशों से हुए समझौतों की बाध्यता के चलते वे स्विस बैंक के खाता धारकों के नाम उजागर नहीं कर सकते। बाद में काफी हो-हल्ले के बाद दो-तीन नाम जाहिर भी किये गये तो मोदी की पार्टी के राम जेठमलानी ने टिप्पणी की ‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’।
    काला धन व भ्रष्टाचार ही वह मुद्दा था जिस पर कांग्रेस सरकार को पहले अन्ना हजारे और रामदेव ने घेरा। भारतीय मध्यम वर्ग के बीच कांग्रेस सरकार को बदनाम कराया गया और फिर मंच पर अवतरित हुए मोदी ने वायदों की फुलझडि़यों से मध्यम वर्ग को मोह लिया। अरविन्द केजरीवाल दिल्ली में ही कदमताल करते रहे और मोदी देश के प्रधानमंत्री बन गये। देश के अधिकांश पूंजीवादी घरानों ने मोदी को जिताने में पूरी ताकत झोंक दी।

इबोला, साम्राज्यवाद और दवा कम्पनियां

वर्ष-17,अंक-21(01-15 नवम्बर, 2014)   
 विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट के अनुसार अब तक 70 देशों गुनिया, लाइबेरिया, नाइजीरिया, सेनेगल, सेयरा लेओन, स्पेन व संयुक्त राज्य अमेरिका में इबोला संक्रमण के करीब 9 हजार मामले सामने आये हैं और लगभग 4500 लोग इससे मर चुके हैं। अफ्रीकी देशों में यह तेजी से फैल रहा है और वहां की गरीबी व स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव देखते हुए यह बहुत जानें ले रहा है। लाइबेरिया में हालात बुरे हैं।
    इबोला वायरस से संक्रमित व्यक्ति को 40 डिग्री सेन्टीग्रेड के आस पास बुखार आता है, पेट में दर्द होता है व पानी की कमी से डिहाइड्रेशन की संभावना बढ़ जाती है। इबोला वायरस 1970 के दशक में माली व एकाध अन्य अफ्रीकी देशों में पाया गया था पर तब यह इतना व्यापक रूप से नहीं फैला था और कुछ जानें लेने के बाद यह समाप्त हो गया था या निष्क्रिय हो गया था।

विशेष रिपोर्ट राजधानी को हिन्दुत्व की प्रयोगशाला बनाने की साजिश

वर्ष-17,अंक-21(01-15 नवम्बर, 2014) 

  त्रिलोकपुरी में साम्प्रदायिक दंगा
 अक्टूबर माह के अंतिम दिनों में पूर्वी दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके में साम्प्रदायिक तनाव की घटनायें हुई हैं। पिछले 2 महीनों में दिल्ली के कई इलाकों में साम्प्रदायिक तनाव भड़काने की कोशिशें हुई। लेकिन इस बार साम्प्रदायिक तत्व अपने इरादों में एक हद तक कामयाब हुए। त्रिलोकपुरी में एक छोटे से विवाद से शुरु हुई घटना ने बड़े पैमाने की हिंसा का रूप ले लिया। 2-3 दिन के भीतर इस साम्प्रदायिक तनाव का प्रसार कल्याणपुरी, खिचड़ीपुर व समयपुर बादली तक हो गया। 
    इस साम्प्रदायिक तनाव व हिंसा के कारणों को तलाशने व साम्प्रदायिक हिंसा से प्रभावित इलाकों का जायजा लेने के लिए विभिन्न जनवादी व प्रगतिशील संगठनों, जनपक्षधर बुद्धिजीवियों व पत्रकारों की एक तथ्यान्वेषी टीम ने दंगा प्रभावित त्रिलोकपुरी इलाके का दौरा किया। नागरिक संवाददाता भी इस टीम के हिस्सा थे। तथ्यान्वेषी टीम ने विभिन्न इलाकों का दौरा किया व हिंसा से प्रभावित कुछ लोगों से भी उन्होंने मुलाकात कर स्थिति का जायजा लिया। प्रस्तुत है इस तथ्यान्वेषी टीम द्वारा दंगा प्रभावित क्षेत्र की एक रिपोर्ट- 
    27 अक्टूबर को तथ्यान्वेषी टीम जब दंगा प्रभावित इलाके में पहुंची तो माहौल में एक तनावपूर्ण शांति दिखाई दे रही थी। मयूर विहार थाने में जब वहां ड्यूटी पर मौजूद अधिकारी से तथ्यान्वेषी टीम ने गिरफ्तार लोगों के संबंध में जानकारी मांगी तो उन्होंने स्पष्ट रूप से कोई जानकारी देने से मना कर दिया। त्रिलोकपुरी के ब्लाॅक 20 में सामान्य आवाजाही थी लेकिन तनाव मौजूद था। लोग अपने बच्चों को बाहर निकलने पर डांट-फटकार रहे थे। तथ्यान्वेषी टीम के सदस्यों ने अलग-अलग इलाकों में जाकर जानकारियां जुटाने का प्रयास किया। पुलिस के एक अधिकारी ने धारा 144 का हवाला देकर टीम को इलाके में घूमने से रोकने की कोशिश की और वापस लौटने को कहा। अंततः टीम दो-दो, तीन-तीन सदस्यों के रूप में बिखरकर अलग-अलग इलाकों में गई। पुलिस द्वारा टोका-टाकी बराबर होती रही। कुछ जगहों पर पास के बगैर घूमने पर प्रतिबंध की बात कहकर व मुख्य सड़कों को छोड़कर विभिन्न गलियों से होते हुए तथ्यान्वेषी टीमों ने अधिकाधिक लोगों तक पहुंचने का प्रयास किया।