Friday, August 1, 2014

हम चुनाव नहीं चाहते.. कोई चुनाव नहीं चाहता

दिल्ली विधान सभा की स्थिति अजीब सी है। उसे पिछले पांच महीने से ‘सस्पेंडेड एनिमेशन’ में रखा गया है यानी जिन्दा तो है पर काम नहीं करेगी और भविष्य में इसका क्या होगा यह दिलचस्प है।   
जब फरवरी में केजरीवाल एण्ड कम्पनी की सरकार ने इस्तीफा दिया तो उन्होंने विधान सभा भंग कर नये चुनाव कराने की सिफारिश भी की थी। पर तब कांग्रेस की केन्द्र सरकार कुछ और ही समीकरण देख रही थी। उसे लग रहा था लोकसभा चुनावों के बाद फिर से आम आदमी पार्टी के साथ सरकार बनाने की जरूरत पड़ सकती है। कम से कम वह लोकसभा चुनावों के साथ चुनाव करवाकर अपनी और फजीहत नहीं करना चाहती थी। उसे परिणाम का अंदाजा था। उसे उम्मीद थी कि वक्त के साथ उसके प्रति जनता की नाराजगी कम हो जायेगी। इसीलिए फरवरी में विधान सभा भंग नहीं हुई।
फरवरी में भाजपा भी चुनाव नहीं चाहती थी। वह आश्वस्त नहीं थी कि नये चुनाव में वह बेहतर कर पायेगी। इसीलिए जब आम आदमी पार्टी की अर्जी पर सर्वोच्च न्यायालय ने कांग्रेस और भाजपा को तलब किया तो भाजपा ने गोल-माल जवाब दिया। 
लोकसभा चुनावों के बाद पूंजीवादी राजनीति की जोड़-तोड़ की राजनीति और गरम हो गई। इन चुनावों में कांग्रेस की हालत और पतली हो गयी जबकि भाजपा की और बेहतर। कांग्रेस की स्थिति इतनी बुरी हो गयी कि उसे लगा कि और बुरा नहीं हो सकता। 
इसीलिये चुनावों के बाद कांगे्रस पलट कर चुनाव कराने की मांग पर आ गई पर उसे लगा कि चुनाव जितनी देर से होंगे उतना ही उसके लिये बेहतर होगा। दूसरी ओर अब तक चुनावों की बात करने वाली आम आदमी पार्टी चुपके-चुपके सरकार बनाने की नई कोशिशें करने लगी। उसने कांग्रेस से नये गठबंधन के लिये बाकायदा प्रयास भी किया पर अबकी बार कांग्रेसियों ने उन्हें ठेंगा दिखा दिया। 
सबको लगा कि ऐसे में नयी भाजपा सरकार विधान सभा भंग करवा कर कई प्रदेशों के साथ यहां भी नये चुनाव की ओर बढ़ेगी पर ऐसा नहीं हुआ। 
वक्त के साथ यह स्पष्ट हुआ कि भाजपा दोनों विरोधी पार्टियों के विधायकों को तोड़कर अपनी सरकार बनाने के लिए प्रयासरत है। कांग्रेसी विधायकों के नाम भी उजागर हो गये जो टूटने को तैयार थे। बस राजनीतिक हानि-लाभ का लेखा-जोखा लेना बाकी था। 
और तब दृश्य और भी जुगुप्सित हो गया। जोड़-तोड़ से भाजपा की सरकार बनते देख आम आदमी पार्टी ने बाकायदा दिल्ली में पोस्टर चिपकवा दिये जिसमें मुस्लिम समुदाय से कहा गया था कि मुस्लिम विधायक गद्दारी कर भाजपा में जा रहे हैं। आरोपों-प्रत्यारोपों का एक नया सिलसिला शुरू हो गया। 
यह आश्चर्यजनक किन्तु सत्य है कि आज लुटी-पिटी कांग्रेस सबसे अच्छी स्थिति में है जबकि अभी हाल में जीत का सेहरा बांधे भाजपा घबराई हुई। 
केन्द्र में सरकार बनाने के दो महीने के भीतर ही भाजपा की हालत खराब हो गई है। वह जनता के मोह भंग से डर रही है, खासकर बढ़ती महंगाई के कारण। साथ ही उसे पता है कि लोक सभा में उसे वेाट देने वाले बहुत सारे मतदाता विधान सभा में उसे वोट नहीं देंगे। 
इसी के साथ भाजपा के विधायकों को व्यक्तिगत भय भी सता रहा है। वे आश्वस्त नहीं हैं कि वे फिर जीत जायेंगे। इसीलिए वे अभी जोड़-तोड़ से सत्ता सुख भोग लेना चाहते हैं। 
यही हाल आम आदमी पार्टी विधायकों का है। वे सारे के सारे नये हैं। ज्यादातर लोगों की अपनी कोई राजनीतिक हैसियत नहीं है। इसीलिए वे भयभीत हैं। वे नहीं चाहते कि नये चुनाव हों। 
कांग्रेस के विधायक भी मौका नहीं छोड़ना चाहते। कल हो न हो। 
ऐसे में सल्तनतकालीन दिल्ली की तरह दिल्ली में कुचक्रों का बाजार बहुत गर्म हो गया है। आगे और भी जोड़-तोड़ सामने आ सकते हैं।  

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