Tuesday, December 16, 2014

मोदी राज में बढ़ता साम्प्रदायिक वैमनस्य

वर्ष-17,अंक-24(16-31 दिसम्बर, 2014)
    मोदी सरकार के मंत्रियों में लगता है अपने बयानों से उलट-पुलट कुछ भी बोल साम्प्रदायिक हिन्दुत्व के एजेण्डे को आगे बढ़ाने की प्रतियोगिता छिड़ गयी है। मानो संघ ने ईनाम घोषित कर रखा है कि जो जितना जहरीला व बड़ा झूठ बोलेगा उसे ईनाम दिया जायेगा। अब तक इस प्रतियोगिता में मोदी, स्मृति ईरानी ही थे अब इसमें नजमा हेपतुल्ला, साध्वी निरंजना, सुषमा स्वराज, साक्षी महाराज सभी शामिल हो गये हैं।
    मोदी ने जब अम्बानी के अस्पताल के उद्घाटन में प्राचीन काल में टेस्ट ट्यूब बेबी की बात बोली तो उनके मंत्री पीछे कैसे रहते। स्मृति ईरानी व नजमा हेपतुल्ला ज्योतिष व संस्कृत के महिमा मंडन में जुट गयीं। अब मैदान में आते हुए सुषमा स्वराज ने गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करने की मांग कर डाली। 

सी.आई.ए. द्वारा कैदियों का उत्पीड़न व अमेरिकी साम्राज्यवादी

वर्ष-17,अंक-24(16-31 दिसम्बर, 2014)    
अमेरिका में जहां एक ओर पुलिस द्वारा एक निहत्थे अश्वेत नौजवान को मारे जाने के विरोध में अमेरिकी जनता 4 महीनों से सड़कों पर उतरी हुयी है वहीं दूसरी ओर संसद में सी.आई.ए.(अमेरिकी खुफिया एजेंसी) द्वारा कैदियों के उत्पीड़न पर रिपोर्ट जारी किये जाने के बाद समाज में हंगामा है। इस रिपोर्ट में बुश काल में सी.आई.ए. द्वारा कैदियों के साथ किये गये घोर अमानवीय उत्पीड़न को प्रदर्शित किया गया। पर अमेरिकी सरगना बराक ओबामा को न तो प्रदर्शनकारियों का डर है और न उन देशों के नागरिकों का जिनके निवासियों को सी.आई.ए. द्वारा उत्पीड़न किया गया। पहले ओबामा ने घडि़याली आंसू बहाते हुए यह कहा कि अमेरिका में अभी भी अश्वेतों के साथ सम्मान का व्यवहार नहीं होता पर ओबामा नवयुवक के हत्यारे गोरे पुलिस वाले को ज्यूरी द्वारा मुक्त किये जाने के खिलाफ कुछ नहीं बोले। कुल मिलाकर ओबामा ने भी पुलिस वाले पर मुकदमा चलाने से मुंह मोड़ लिया। अब जब सी.आई.ए. के कुकर्मों की रिपोर्ट जारी हुई तो भी ओबामा ने सी.आई.ए. के अधिकारियों की रक्षा करते हुए उन पर कोई कार्यवाही न करने की बात करते हुए केवल इतना कहा कि अब हमें इस तरह कैदियों का उत्पीड़न बंद कर देना चाहिए क्योंकि इससे दुनिया में अमेरिका की गलत छवि जाती है। 

भोपाल गैस त्रासदी के तीन दशक पूरे होने पर मोदी ने दिया देशवासियों को मौत का तोहफा

देश में कम से कम 12 परमाणु संयंत्र लगाने के समझौते पर मोदी ने किये हस्ताक्षर 
वर्ष-17,अंक-24(16-31 दिसम्बर, 2014)
    3 दिसम्बर 2014 को भोपाल गैस त्रासदी को तीन दशक पूरे हो चुके हैं। इस त्रासदी में हजारों लोग मारे गये और लाखों आज भी इस त्रासदी का दंश झेलने को मजबूर हैं। वहां की मिट्टी, हवा, पानी में आज भी जहरीले अंश मौजूद हैं। इस परमाणु विकरण के कारण वहां अपंग बच्चे पैदा हो रहे हैं। इस त्रासदी के शिकार हजारों मृतकों के परिजन व पीडि़त और प्रभावित लोगों की आंखें न्याय की आस में पथरा गईं। आज भी भोपाल की जनता इस त्रासदी के दंश को झेल रही है। वहां की जमीन, हवा, पानी उस त्रासदी के जहर को अपने भीतर समाये हुए है। इस कांड के आरोपियों व कम्पनी को आजाद भारत की सरकारों ने कभी भी न्याय के कटघरे में खड़ा करने की कोशिश नहीं की, बल्कि उन्हें भगाने में पूरी सुविधा और सहयोग दिया। राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वयं उन्हें बड़ी शान के साथ विमान में बैठाने गये जैसे वह किसी हत्यारे, अपराधी की नहीं बल्कि किसी सम्मानित व्यक्ति की विदाई हो। मुख्य आरोपी एण्डरसेन को पिछले तीन दशकों में कभी भी अदालत में पेश नहीं किया जा सका और जनता की उसको दण्डित करने की आशा उसकी मौत के बाद पूरी नहीं हो सकेगी क्योंकि एक भरा-पूरा जीवन जी कर वह इस दुनिया से विदा हो चुका है और इस भीषण हत्याकांण्ड के अन्य आरोपियों में से किसी को भी कोई सजा नहीं मिली। 
    आज भी भोपाल सहित पूरे देश की जनता के सामने यह सवाल है कि क्या भोपाल गैस त्रासदी के पीडि़तों के घावों पर मरहम लगाने के लिए उन्हें सम्मानजनक मुआवजा भी मिल पायेगा। क्या भोपाल गैस त्रासदी के जैसे और हत्याकांड रचे जायेंगे या नहीं। 

Monday, December 1, 2014

बढ़ते अंतरविरोधों के बीच आर्थिक संकट जस का तस

जी-20 बैठक
वर्ष-17,अंक-23 (01-15 दिसम्बर, 2014)
15-16 नवम्बर को आस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन में जी-20 की बैठक सम्पन्न हो गयी। बैठक में जहां उक्रेन के मसले पर साम्राज्यवादी आपस में भिड़े रहे वहीं आर्थिक संकट का उन्हें कोई भी हल नजर नहीं आया। वे लाख कोशिश कर पिछले सात वर्ष में इस संकट को इंच भर भी हल नहीं कर पाये। अंत में संकट से मिलकर लड़ने की रस्मी घोषणाओं के साथ बैठक समाप्त हो गयी।
    उक्रेन के मसले पर रूसी व पश्चिमी साम्राज्यवादी इस कदर एक दूसरे के खिलाफ नज़र आये कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन बैठक बीच में ही छोड़ कर चल दिये। दरअसल अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने उक्रेन के हालातों के लिए रूसी साम्राज्यवादियों को जमकर कोसा। पर रूसी साम्राज्यवादी अब इतने कमजोर नहीं रहे कि वे अपने विपक्षियों की सब बकवास चुपचाप सुनते रहें। परिणाम यह हुआ कि पुतिन बैठक बीच में छोड़ चले गये। यह बात दिखलाती है कि साम्राज्यवादियों के अंतरविरोध कितने तीखे हो रहे हैं। 

नस्लीय उत्पीड़न के खिलाफ अमेरिका में फूटा जनाक्रोश

वर्ष-17,अंक-23 (01-15 दिसम्बर, 2014)    
एक बार फिर नस्लीय उत्पीड़न के खिलाफ अमेरिका में अश्वेत आबादी का आक्रोश फूट पड़ा है। मौजूदा जनाक्रोश एक अफ्रीकी मूल के अमेरिकी किशोर माइकल ब्राउन की हत्या के आरोपी डैरेन विल्सन को स्थानीय जूरी के द्वारा आरोप मुक्त कर, बरी करने के बाद फूटा। 24 नवम्बर को जूरी ने माना कि हत्यारोपी डैरेन विल्सन ने आत्मरक्षा में माइकल ब्राउन पर गोली चलाई थी। यह बात सामने आई है कि 18 वर्षीय किशोर माइकल ब्राउन निहत्था था और उस पर गोलियां तब चलाई र्गइं जब उसने हाथ ऊपर किये हुए थे। 
    यह भी गौरतलब है कि जूरी के फैसले के पहले 21 अगस्त को माइकल ब्राउन की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ कि ब्राउन को एक बार बहुत निकट से हाथ में और कुल छः बार गोली मारी गयी। 

संत-महंत और बाबा-साधु

वर्ष-17,अंक-23 (01-15 दिसम्बर, 2014)   
 हरियाणा के हिसार में संत रामपाल के मामले ने एक बार यह दिखाया कि भारत की पूंजीवादी राजनीति के इस मोड़ पर धर्म और राजनीति का कितना और किस हद तक घृणित गठबंधन हो चुका है। संत रामपाल को केवल अदालत में पेश करने के लिए तीस चालीस हजार की पुलिस तैनात की गयी और कई दिनों का नाटक रचा गया। 
    ऐसा क्यों किया गया? ऐसा इसलिए किया गया कि संत रामपाल ने पिछले चुनावों में भाजपा को समर्थन दिया था और अपने अनुयाइयों से कहा था कि वे भाजपा को वोट दें। अब भाजपा सरकार में है और वह संत का कुछ तो ख्याल रखेगी ही।