Monday, December 1, 2014

बढ़ते अंतरविरोधों के बीच आर्थिक संकट जस का तस

जी-20 बैठक
वर्ष-17,अंक-23 (01-15 दिसम्बर, 2014)
15-16 नवम्बर को आस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन में जी-20 की बैठक सम्पन्न हो गयी। बैठक में जहां उक्रेन के मसले पर साम्राज्यवादी आपस में भिड़े रहे वहीं आर्थिक संकट का उन्हें कोई भी हल नजर नहीं आया। वे लाख कोशिश कर पिछले सात वर्ष में इस संकट को इंच भर भी हल नहीं कर पाये। अंत में संकट से मिलकर लड़ने की रस्मी घोषणाओं के साथ बैठक समाप्त हो गयी।
    उक्रेन के मसले पर रूसी व पश्चिमी साम्राज्यवादी इस कदर एक दूसरे के खिलाफ नज़र आये कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन बैठक बीच में ही छोड़ कर चल दिये। दरअसल अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने उक्रेन के हालातों के लिए रूसी साम्राज्यवादियों को जमकर कोसा। पर रूसी साम्राज्यवादी अब इतने कमजोर नहीं रहे कि वे अपने विपक्षियों की सब बकवास चुपचाप सुनते रहें। परिणाम यह हुआ कि पुतिन बैठक बीच में छोड़ चले गये। यह बात दिखलाती है कि साम्राज्यवादियों के अंतरविरोध कितने तीखे हो रहे हैं। 

    जहां तक सवाल विश्व आर्थिक संकट का है तो 2008 से शुरू हुए इस संकट का दुनिया के पूंजीपतियों के पास आज भी कोई हल नहीं है। उनकी विकास दरें गोते लगाना जारी रखे हुए हैं। ऐसे में जिन वजहों से यह संकट पैदा हुआ उन्हें और बढ़ाकर अर्थात नवउदारवादी नीतियां और ज्यादा अपना कर वे संकट के हल होने की 7 वर्षों से झूठी आशा में जुटे हैं। इस बैठक में भी उन्होंने इन्हीं नीतियों को और व्यापक तौर पर लागू करने का संकल्प व्यक्त किया। इन नीतियों का एक ही लक्ष्य है और वह है पूंजी के मुनाफे की भरपाई के लिए मजदूर वर्ग पर अधिकाधिक हमला। 
    पर इस बैठक के तत्काल बाद जारी हुए तीसरी तिमाही के वैश्विक नतीजों ने दिखला दिया कि संकट का अभी बाल भी बांका नहीं हुआ है। साथ ही उसमें कुछ नकारात्मक कारक और जुड़ गये हैं।
    दुनिया की तीसरे नम्बर की अर्थव्यवस्था जापान की हालत और बिगड़ गयी है, इसकी अर्थव्यवस्था में तीसरी तिमाही में विकास दर ऋणात्मक हो गयी। 18 देशों वाले यूरो जोन की हालत भी कुछ अलग नहीं है। इसकी विकास दर इस तिमाही में महज 0.6 प्रतिशत रही। सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि इस यूरो जोन की 3 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थायें जर्मनी, फ्रांस, इटली भी अब गम्भीर संकट में फंस चुके हैं। जर्मनी की विकास दर इस तिमाही में 0.1 प्रतिशत रही जबकि पिछली तिमाही में यह -0.1 प्रतिशत रही थी। पहली बार ऐसा हुआ कि 2009 के बाद से जर्मनी की विकास दर लगातार दो तिमाही यूरो जोन की औसत विकास दर से नीचे रही। इटली की विकास दर भी -0.1 प्रतिशत रही जबकि पिछली तिमाही में यह -0.2 प्रतिशत थी। फ्रांस की विकास दर इस तिमाही में  0.3 प्रतिशत रही जबकि पिछली तिमाही में यह नकारात्मक थी। ग्रीस जहां बेरोजगारी दर 25 प्रतिशत का आंकड़ा पार कर चुका है, यहां विकास दर सर्वोत्तम 0.7 प्रतिशत रही।
    इन हालातों को यूरोपीय नेता अपने निराशा भरे बयानों से अभिव्यक्त कर रहे हैं। ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरून कह रहे हैं कि 6 वर्षों के संकट ने दुनिया को घुटनों पर ला खड़ा किया है। वैश्विक अर्थव्यवस्था की लाल बत्ती एक बार फिर चमक रही है। 
    वास्तव में वैश्विक अर्थव्यवस्था 2008 के वाल स्ट्रीट के ढहने से कहीं ज्यादा गम्भीर स्थिति में पहुंच रही है। ऐसा विकासशील देशों की वृद्धि दर में आयी गिरावट से हो रहा है। पिछले 6 वर्षों में कुल विकास का 80 प्रतिशत इन्हीं देशों में हुआ और अब इनके पहिये भी थकते नजर आ रहे हैं। चीन की विकास दर 10 प्रतिशत के दिन छोड़ 7.5 प्रतिशत पर आ चुकी है और कर्जों में बढ़ोत्तरी उसे लगातार एक बड़े विस्फोट की ओर ढकेल रही है। निर्माण व आधारभूत क्षेत्र में पैदा किया गया बूम(उछाल) उसे कभी भी जमीन पर ला सकता है। बुरे कर्जों में बढ़ोत्तरी के साथ घरों की बिक्री घटने लगी है। चीनी अर्थव्यवस्था 1990 के बाद सबसे निचले 7.4 प्रतिशत के स्तर पर जा पहुंची है। ब्राजील की अर्थव्यवस्था की पहली छमाही मंदी में थी व दूसरी छमाही शून्य प्रतिशत पर रहने की उम्मीद है। 
    रूसी साम्राज्यवादी भी अमेरिका व यूरोप द्वारा थोपे प्रतिबंधों के बीच मंदी के कगार पर हैं। कुल मिलाकर साम्राज्यवादी ताकतों के पास संकट का कोई हल नहीं है। उनकी आपसी कलह बढ़ रही है। जी-20 से लेकर ‘‘विश्व व्यापार संगठन’’ सरीखे मंच समस्या को रत्ती भर भी सुलटाने में विफल रहे हैं। 
    साम्राज्यवादी अभी भी अतीत से सबक सीखने को तैयार नहीं हैं। मुनाफे की भरपाई के लिए उनके पास मजदूरों पर और हमला बोलने की ही सहमति है और वे लगातार इसे कर रहे हैं। वे नये बूम रचकर अपने को शेयर बाजार से झूठी उम्मीद पाल रहे हैं, पर साथ ही वे संकट के न सुलटने के अंजाम से डर भी रहे हैं। 
    2011 के वैश्विक प्रदर्शनों-तख्ता पलटों को वे एक बार फिर करीब आता देख रहे हैं और उम्मीद पाले हैं कि वे एक बार फिर जनाक्रोश को भटका लेंगे। आइये, उनकी उम्मीदों को गलत साबित करते हुए मजदूर वर्ग के कारवां को उस दिशा में बढ़ायें जहां वैश्विक संकट पूंजीवाद की मौत के संकट में बदल जाये। 

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