Wednesday, October 15, 2014

फिर भारत-पाकिस्तान आमने-सामने

दर्जनों निर्दोष नागरिक मारे गये
वर्ष-17,अंक-20(16-31 अक्टूबर, 2014)
भारत-पाकिस्तान की सीमा पर अक्टूबर माह में तनाव चरम पर है। इसके साथ ही दोनों देशों में अंधराष्ट्रवादी भावनाओं का ज्वार सा आ गया है। दो हफ्तों से भी ज्यादा समय गुजर चुका है परंतु तनाव समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा है।
सीमा पर हुई झड़पों में दोनों ओर से भारी जान माल की क्षति हुई है। जहां भारत का दावा है कि उसके बारह लोग मारे गये और 60 लोग घायल हुये वहां पाकिस्तान का दावा है कि उसके पन्द्रह लोग मारे गये और पचास से अधिक लोग जख्मी हुये हैं। सीमा के दोनों ओर या तो आम लोग सेना द्वारा बनाये गये बंकरों में रह रहे है या फिर पलायन कर गये हैं। भारत के अनुसार जम्मू, सांबा और कठुआ जिलों में पाकिस्तान सीमा से सटे गांव के 20,000 से ज्यादा निवासी 30 राहत शिविरों में रह रहे हैं। ऐसी ही बातें पाकिस्तानी मीडिया में भी आ रही हैं।
भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर झड़पें आम है। इन झड़पों पर एक-दूसरे पर दोषारोपण भी उतना ही आम है। ऐसी झड़पें होते ही दोनों देशों के राजनीतिज्ञ चाहे वे सत्ता में होें अथवा विपक्ष में अंधराष्ट्रवादी उन्मादी माहौल बना देते हैं। शांति भाईचारे और इंसाफ की सारी बातों का गला घोंट दिया जाता है। देशभक्ति का प्रदर्शन इतने बेहया ढंग से किया जाता है कि किसी भी इंसाफ पसंद आम व्यक्ति को शर्म आ जाये। अमेरिकी साम्राज्यवाद के सामने निर्लज्ज ढंग से समर्पण करने वाले दोनों देशों के शासकों के लिए देशभक्ति का मतलब सिर्फ एक दूसरे को बुरे से बुरे ढंग से गाली-गलौच करना है। गली के गुण्ड़ों की भाषा में शासक वर्ग और उनकी पार्टियां एक-दूसरे देश को सबक सिखाने की धमकियां देते हैं।
भारत-पाकिस्तान के शासकों का अपने देश की आंतरिक समस्याओं से ध्यान भटकाने, चुनाव में लाभ हासिल करने आदि का यह एक सस्ता और उबाऊ तरीका बन गया है। वे आम लोगों की जान की कोई परवाह नहीं करते हैं। इनमें न केवल सीमा पर रहने वाले लोग शामिल हैं बल्कि दोनों ही देशों की सेना के आम मेहनतकश परिवारों से नौकरी करने के लिए आये सैनिक भी शामिल हैं।
भारत और पाकिस्तान के मजदूरों सहित सब मेहनतकशों को अपने-अपने देश के शासकों के इन घृणित हथकंडों की जोरदार ढंग से मुखालफत करनी चाहिए। आम मेहनतकशों को घोषित करना चाहिए कि दोनों ही देशों की जनता की आपस में कोई दुश्मनी नहीं है। असल में दोनों देशों की भाषा, संस्कृति, रीति-रिवाज, जीवन शैली आदि में इतनी अधिक समानता है कि वे वास्तव में एक ही हैं। हां! दोनों देशों के शासक अपने-अपने देश में जनता के ऊपर बोझ बन चुके हैं और हकीकत में दोनों ही देश की जनता को कमबख्त शासकों से मुक्ति चाहिए।

No comments:

Post a Comment