Sunday, March 15, 2015

पूंजीपतियों के लिए फूल मेहनतकशों के लिए कांटे

आम बजट 2015-16
वर्ष-18, अंक-06(16-31 मार्च, 2015)
    28 फरवरी को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वार्षिक बजट पेश कर दिया। मोदी सरकार के 9 माह बीतने के बाद भी अच्छे दिन जनता के लिए न तो आने थे और न आये। अब इस बजट के प्रावधानों से एक बार फिर स्पष्ट हो गया है कि मेहनतकश जनता के लिए भविष्य में बुरे दिन ही आने हैं। अच्छे दिन तो मोदी राज में पूंजीपतियों के खाते में आने हैं। 
    बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने एक शेर पढ़ा ‘‘कुछ तो फूल खिलाए हमने और कुछ फूल खिलाने हैं, मुश्किल यह है बाग में अब तक कांटे कई पुराने हैं’’। वास्तव में पिछले 9 माह में मोदी सरकार ने पूंजीपतियों के लिए कई फूल खिलाए हैं जो मेहनतकशों के ऊपर कांटों की तरह चुभे हैं। श्रम कानूनों में सुधार, भूमि अधिग्रहण बिल में बदलाव, विदेशी निवेश के लिए तमाम क्षेत्रों को खोलना, राजसत्ता का साम्प्रदायीकरण आदि आदि ऐसे ढ़ेरों फूल पूंजीपतियों की सेवा में पेश किये गये हैं जो मजदूरों-किसानों को कांटों की तरह चुभे हैं। अब नये बजट में कुछ और कांटे जनता को चुभोने का अरुण जेटली ने प्रयास किया है। 

भाजपा कांग्रेस की जुगलबंदी से बीमा बिल संसद में पास

वर्ष-18, अंक-06(16-31 मार्च, 2015)    
     भाजपा और कांग्रेस पार्टी की जुगलबंदी से बीमा क्षेत्र (इंश्योरेन्स सेक्टर) में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) की सीमा 26 फीसदी से बढ़कर 49 फीसदी हो गयी। राष्ट्रपति की सहमति की मुहर लगते ही यह विवादास्पद बिल कानून बन जायेगा। 
    राज्यसभा में जहां मोदी सरकर को बहुमत हासिल नहीं है वहीं कांग्रेस उसकी तारणहार बन गयी। इसमें वैसे कुछ अनोखा नहीं है क्योंकि दोनों ही पार्टियां देशी-विदेशी पूंजी की सेवा में इस तरह की जुगलबंदी पहले भी कर चुकी हैं। 

Sunday, March 1, 2015

आर्थिक सुधारों की पटरी पर दौड़ी प्रभु की रेल

माल भाड़े में वृद्धि से महंगाई बढ़ेगी
वर्ष-18, अंक-05 (01-15 मार्च, 2015)
    26 फरवरी 2015 को रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने संसद में रेल बजट पेश कर दिया। रेल मंत्री ने एक ओर यात्री किराया न बढ़ाने के लिए अपनी पीठ ठोंकी तो दूसरी ओर पुरानी घोषणाओं को ही पूरा करने की बात करते हुए नई ट्रेनों की घोषणाएं नहीं की। तेल की गिरती कीमतों से फायदे में पहुंची रेल के बजट में 454.5 अरब रुपये के खर्च का प्रावधान रखा गया है जिसमें 66 प्रतिशत सरकार से व शेष आंतरिक स्रोतों से जुटाया जाना है। 
    बजट में बायोटाॅयलेट बनाने, एक हेल्पलाइन नं. जारी करने, ई टिकट को बढ़ावा देने, कुछ ट्रेनों में डिब्बे बढ़ाने, 400 स्टेशनों पर वाइफाई की सुविधा देने, सफाई आदि की लोक लुभावनी बातें की गयी हैं। 

आंकड़ों की बाजीगरी और वाक्छल से भरा आर्थिक सर्वे

वर्ष-18, अंक-05 (01-15 मार्च, 2015)
    ‘मूदहुं आंख कतुहु कछु नाहि’ की तर्ज पर देश के वित्त मंत्री ने आर्थिक सर्वे बजट के ठीक एक दिन पहले पेश किया। उन्होंने ऐसी खुशनुमा तस्वीर देश की अर्थव्यवस्था की पेश की जिस पर उनकी सरकार के अलावा शायद ही कोई भरोसा कर सके। 
    आर्थिक सर्वे में सकल घरेलू उत्पाद की गणना के लिए नये घोषित तरीके को अपनाया गया। इस तरीके में सकल घरेलू उत्पाद की गणना का आधार वर्ष 2004-05 के स्थान पर 2011-12 कर दिया गया। गणना के लिए 2011-12 के मूल्यों को आधार बनाया गया है। इस आधार पर कल तक 5 फीसदी से कम दर से विकसित होती अर्थव्यवस्था रातोंरात करीब सात फीसदी तक जा पहुंची। आर्थिक सर्वे के अनुसार 2012-13 में यह 5.1, 2013-14 में 6.9 और 2014-15 में इसका अनुमान 7.4 फीसदी रहने का है। आर्थिक सर्वे के अनुसार आने वाले वर्षों में यह दर 8 फीसदी से 10 फीसदी के बीच रहेगी। वित्त मंत्री की ये खुशनुमा बातें इस ठोस हकीकत के बीच हैं कि भारत का औद्योगिक उत्पादन ठहराव ग्रस्त है और विकास दर शून्य है। निर्यात गिरा हुआ है और तेल की कीमतों में भारी कमी के बावजूद राजस्व घाटा स्थापित मापदण्ड सकल घरेलू उत्पाद के तीन फीसदी से ऊपर है। 2014-15 में इसके 4.1 फीसदी रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है। 

क्या मोदी अंबानी बंधुओं पर मुकदमा चलायेंगे

वर्ष-18, अंक-05 (01-15 मार्च, 2015)
प्रधानमंत्री की पीठ पर किसका हाथ
    पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त मोदी ने अपने चुनावी भाषणों में काले धन के मुद्दे को बड़े जोर-शोर से उठाया था। उन्होंने वायदा किया था कि वे सत्ता में आने के 100 दिन के भीतर सारा काला धन देश में वापिस ले आयेंगे। हर एक मतदाता के खाते में 15 लाख रुपये जमा कर दिये जायेंगे। परन्तु मोदी सरकार के 9 माह के कार्यकाल के बाद 15 लाख तो दूर 15 रुपये भी किसी मतदाता के खाते में नहीं आये। 
    पहले तो मोदी सरकार इस मामले पर अपने वायदों पर ही लीपापोती करती रही, उसके मंत्री लोग बयान देते रहे कि मोदी ने कभी ऐसा वायदा किया