Sunday, March 15, 2015

भाजपा कांग्रेस की जुगलबंदी से बीमा बिल संसद में पास

वर्ष-18, अंक-06(16-31 मार्च, 2015)    
     भाजपा और कांग्रेस पार्टी की जुगलबंदी से बीमा क्षेत्र (इंश्योरेन्स सेक्टर) में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) की सीमा 26 फीसदी से बढ़कर 49 फीसदी हो गयी। राष्ट्रपति की सहमति की मुहर लगते ही यह विवादास्पद बिल कानून बन जायेगा। 
    राज्यसभा में जहां मोदी सरकर को बहुमत हासिल नहीं है वहीं कांग्रेस उसकी तारणहार बन गयी। इसमें वैसे कुछ अनोखा नहीं है क्योंकि दोनों ही पार्टियां देशी-विदेशी पूंजी की सेवा में इस तरह की जुगलबंदी पहले भी कर चुकी हैं। 

    बीमा क्षेत्र में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की यह सीमा उस दिशा में दूसरा बड़ा कदम है जहां देशी-विदेशी पूंजी के बढ़ते दबाव के बाद इसे सौ फीसदी निवेश की ओर ले जायेगा। कल को सरकार यह तर्क जोर-शोर से प्रचारित करेगी कि दुनिया में कई देश हैं जहां बीमा क्षेत्र में सौ फीसदी निवेश की अनुमति है। तब वह उन सब मामूली प्रावधानों को भी हटा लेगा जो उसने इस बिल में लगाये हैं। 
    भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी पूंजी ने इस नये दखल के साथ अर्थव्यवस्था के लिए जिन लाभों की सूची शासक वर्ग प्रस्तुत कर रहे हैं। वे आंख में धूल झोंकने के समान हैं। वास्तव में देशी-विदेशी पूंजी को  बड़े लाभ हासिल होते हैं तथा भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में छाये आर्थिक और विशेषकर वित्तीय संकट से और बुरी तरह से प्रभावित होने की ओर बढ़ेगी। और 2007 की तरह के सब प्राइम संकट समय भारत की अर्थव्यवस्था संकट के तत्काल में नहीं फंसी थी वह अब इस तरह के आर्थिक सुधारों से तेजी से उसके जद में आ जायेगी। 
    हालिया बजट में इस तरह के संकट की पटकथा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और विदेशी संस्थान निवेश(एफआईआई) के फर्क को मिटाकर लिख भी दी गयी है। 
    बीमा क्षेत्र में कार्यरत ट्रेड यूनियन बीमा क्षेत्र में किये जा रहे इन सुधारों का लम्बे समय से विरोध कर रही हैं परन्तु उनकी एक भी बात सरकार ने न सुनी। इसका कारण इन यूनियनों के जुझारू तेवर और संघर्ष न होना में छुपा है। 
    बीमा क्षेत्र में यह सुधार राष्ट्र विरोधी है। इसका तीव्र विरोध होना चाहिए। इन सुधारों की कीमत भविष्य में भारत के मेहनतकशों और निम्न मध्यम वर्ग के लोगों को चुकानी होगी।  

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