Sunday, March 1, 2015

आर्थिक सुधारों की पटरी पर दौड़ी प्रभु की रेल

माल भाड़े में वृद्धि से महंगाई बढ़ेगी
वर्ष-18, अंक-05 (01-15 मार्च, 2015)
    26 फरवरी 2015 को रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने संसद में रेल बजट पेश कर दिया। रेल मंत्री ने एक ओर यात्री किराया न बढ़ाने के लिए अपनी पीठ ठोंकी तो दूसरी ओर पुरानी घोषणाओं को ही पूरा करने की बात करते हुए नई ट्रेनों की घोषणाएं नहीं की। तेल की गिरती कीमतों से फायदे में पहुंची रेल के बजट में 454.5 अरब रुपये के खर्च का प्रावधान रखा गया है जिसमें 66 प्रतिशत सरकार से व शेष आंतरिक स्रोतों से जुटाया जाना है। 
    बजट में बायोटाॅयलेट बनाने, एक हेल्पलाइन नं. जारी करने, ई टिकट को बढ़ावा देने, कुछ ट्रेनों में डिब्बे बढ़ाने, 400 स्टेशनों पर वाइफाई की सुविधा देने, सफाई आदि की लोक लुभावनी बातें की गयी हैं। 

    बजट का मुख्य जोर 5 वर्षों में 8.5 लाख करोड़ का निवेश जुटाने पर है। सुरेश प्रभु भारत में बुलेट ट्रेन चलाने, 200 किलोमीटर प्रति घण्टा की चाल पर ट्रेनें दौड़ाने, ट्रेनों में साफ-सफाई व अन्य सुविधाओं में बढ़ोत्तरी करने के लिए हर क्षेत्र से निवेश की गुहार लगाते नजर आये, काॅरपोरेट पूंजीपतियों से लेकर विदेशी पूंजी तक को आमंत्रित करते नजर आये। उनके अनुसार अभी ही लम्बित प्रोजेक्टों में 1.7 लाख करोड़ रुपये के निवेश की जरूरत है। 
    रेल मंत्री ने वाहवाही लूटने के लिए यात्री भाड़े में इस वक्त वृद्धि नहीं की हालांकि कुछ माह पूर्व यात्री भाड़े में 14 प्रतिशत से भी अधिक वृद्धि की जा चुकी है। माल भाड़े में बेहद चतुराई के साथ वृद्धि की गयी है। कोयला, सीमेंट, पेट्रोलियम उत्पाद, लौह एवं इस्पात से बनी वस्तुओं, यूरिया के माल भाड़े में दस फीसदी की वृद्धि की गयी है। 
    13 लाख लोगों को रोजगार देने वाली भारतीय रेलवे भारत सरकार के सबसे बड़े उपक्रमों में से एक रहा है। पिछली सरकारों ने तरह-तरह के ठेकाकरण को बढ़ावा देकर रेलवे को निजी हाथों में सरकाना शुरू किया था, मौजूदा सरकार भी इसी दिशा में आगे बढ़ रही है। डिब्बों में तमाम सुविधाओं को ठेके पर गैर सरकारी संगठनों व निजी पूंजीपतियों को देने की पहल की गई है। इन सबसे बढ़कर निजी पूंजी निवेश के जरिये देशी-विदेशी पूंजी को रेलवे के जरिये मुनाफा कमाने के लिए आमंत्रित किया जा रहा है।
    सरकार एक ओर मध्यम वर्ग को बुलेट ट्रेन का सपना दिखा रही है तो दूसरी ओर रेलवे मेें कार्यरत 13 लाख कर्मियों का जीवन कठिन बनाने का इंतजाम कर रही है। प्रभु की रेल जनता की भलाई में नहीं पूंजीपतियों के मुनाफे की दिशा में दौड़ रही है।  

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