Saturday, August 16, 2014

इराक का संकट और गहराया

इराक का संकट लम्बा और गहराता जा रहा है। अमेरिकी साम्राज्यवादी पुनः इराक में आक्रामक मुद्रा में आ गये हैं। अमेरिकी बमवर्षक विमान इस्लामिक स्टेट आॅफ इराक और अल शाम (आईएसआईएस) के कब्जे वाले शहरों पर बम बरसा रहे हैं। यह कोई छुपी हुयी बात नहीं है कि कुछ वर्ष पूर्व इस संगठन को अमेरिका, इजरायल, सऊदी अरब व कतर ने खड़ा किया था। 
इराक की अमेरिका समर्थित वर्तमान सरकार को बदलने के लिए अमेरिका ने घृणित हथकण्ड़ों का सहारा लिया है। इराक के राष्ट्रपति फौद मासूम ने नूरी अल मलिकी की सरकार को हटा दिया है और हैदर अल-एबादी को प्रधानमंत्री नियुक्त किया है। अमेरिका बहुत दिनों से मलिकी की सरकार को हटाना चाहता था। इराक के वर्तमान संकट का दोषी वह मलिकी को मानता है। अमेरिका के अनुसार मलिकी ने सुन्नियों को सत्ता में भागीदारी न देकर इस संकट को जन्म दिया है। इस तरह से अमेरिका अपने घृणित अपराधों को अपने देश और दुनिया की जनता से छिपा ले जाना चाहता है। 

साहेब और बहादुर

भारत का पूंजीवाद प्रचारतंत्र इस समय हर तरीके से देश की संघी सरकार या ज्यादा सही-सही कहें तो मोदी सरकार का समर्थन करने में लगा हुआ है। इसके लिए वह किसी भी तुच्छ घटना को एक शानदार कारनामे की तरह पेश करता है। 
नरेन्द्र मोदी की हालिया नेपाल यात्रा के समय ऐसे ही हुआ। सारे ही अखबारों और टीवी चैनलों ने प्रमुखता से देश को बताया कि कैसे मोदी ने दसियों सालों से अपने परिवार से बिछुड़े एक लड़के को उसके परिवार से मिलाया। बताया गया कि एक छोटा सा बालक देश में यूं ही भटक रहा था। उसे यह भी पता नहीं था कि उसके मां-बाप नेपाल में कहां रहते हैं। किसी गुजराती सज्जन को यह बालक मिला तो उन्होंने उसे नरेन्द्र भाई को सौंप दिया। नरेन्द्र भाई ने उसे अहमदाबाद में अपने पास रखा। अब इतने सालों बाद जब वे प्रधानमंत्री बने तो उसे अपने पास नहीं रख सकते थे। सो उन्होंने उसका बी.बी.ए. में पढ़ाई के लिए प्रवेश करा दिया। इस बीच उन्होंने नेपाल में उसके घर का पता करवाया और जब यात्रा पर नेपाल गये तो उसे उसके परिवार को सौंप दिया। 

भाजपा का नया अध्यक्ष

भारी तामझाम के बीच औपचारिक तौर पर अमित शाह को भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष चुन लिया गया। हालांकि इस चुनाव की आवश्यकता नहीं थी। क्योंकि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और नरेन्द्र मोदी ने अमितशाह का चुनाव पहले ही कर लिया था। संघ और मोदी के फैसले के बाद अमित शाह का विरोध करने की हिम्मत भाजपा में किसके पास थी। 
अमित शाह की कई खासियतें हैं। एक बड़ी खासियत यह है कि इस सज्जन को सर्वोच्च अदालत ने गुजरात राज्य से अपराधिक मुकदमों में दखलंदाजी न करने देने के लिए तड़ीपार किया हुआ है।

Friday, August 1, 2014

इस्राइल का फिलिस्तीन पर हमला जारी

जुलाई माह की शुरूआत से ही एक बार फिर से इजरायल ने फिलिस्तीन पर हमला बोल दिया है। पहले हवाई बमबारी और अब जमीनी हमले में अब तक 1000 से अधिक फिलिस्तीनी नागरिक मारे जा चुके हैं और हजारों घायल हो चुके हैं। मरने वालों में 100 से अधिक बच्चे हैं। फिलिस्तीन के स्कूल, अस्पतालों-बिजली उत्पादन संयत्र सबको इजरायल बमबारी में तबाह कर दिया गया है। इजरायल दुनिया भर में हो रही अपनी निन्दा के बावजूद हमला जारी रखे हुए है। फिलिस्तीनियों और हमास के प्रतिरोध में इजरायल के भी तीन दर्जन से अधिक सैनिक मारे जा चुके हैं।  
हमले के बहाने के बतौर इस्राइल ने हमास पर यह आरोप लगाया कि उसने युद्ध विराम का उल्लंघन करके 3 इस्राइली किशोरों का अपहरण कर उनकी हत्या कर दी। हमास ने इस्राइल के इस आरोप का खण्डन किया है पर साथ ही यह भी कहा कि युद्ध विराम का पिछला समझौता जिसमें फिलीस्तीन नागरिकों को एक तरह से कंस्ट्रक्शन कैम्पों में ठूंस दिया है, उसे मान्य नहीं है। इस्राइल द्वारा हमले की शुरूआत के बाद हमास ने भी कुछ राकेट इस्राइल की ओर छोड़े जिनमें 2 इस्राइली मारे गये। फिर भी इस्राइल की विशाल सैन्य शक्ति से हमास का कोई मुकाबला नहीं है।

और अब सहारनपुर में साम्प्रदायिक दंगा

उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक दंगे रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। पूरे प्रदेश में जबरदस्त साम्प्र्रदायिक तनाव भाजपा और संघियों द्वारा कायम किया हुआ है। ऐसी स्थिति में किसी भी छोटी सी घटना को साम्प्रदायिक रंग देकर दंगे प्रायोजित किये जा रहे हैं। सहारनपुर की घटना भी ऐसी है। महीनों से सहारनपुर में किसी न किसी रूप में तनाव कायम था। उसे विस्फोटक रूप धारण करना था। अंततः उसने कर लिया। इन दंगों में तीन लोग मारे गये और दर्जनों घायल हो गये। शहर के छह थानों में कफ्र्यू लगा दिया गया।
सहारनपुर में सिख और मुस्लिम सम्प्रदाय के लोगों के बीच जमीन को लेकर विवाद था। विवाद अदालत में चल रहा है परन्तु उस पर किये जाने वाले निर्माण को साम्प्रदायिक दंगे का रूप दे दिया गया। कमोवेश इसी तरह मुरादाबाद के कांठ कस्बे में भी जारी तनाव साम्प्रदायिक तत्वों की पैदाइश है। संघी व भाजपाई इस तनाव को लगातार बनाये रखने में अपनी ऊर्जा लगा रहे हैं।

हम चुनाव नहीं चाहते.. कोई चुनाव नहीं चाहता

दिल्ली विधान सभा की स्थिति अजीब सी है। उसे पिछले पांच महीने से ‘सस्पेंडेड एनिमेशन’ में रखा गया है यानी जिन्दा तो है पर काम नहीं करेगी और भविष्य में इसका क्या होगा यह दिलचस्प है।   
जब फरवरी में केजरीवाल एण्ड कम्पनी की सरकार ने इस्तीफा दिया तो उन्होंने विधान सभा भंग कर नये चुनाव कराने की सिफारिश भी की थी। पर तब कांग्रेस की केन्द्र सरकार कुछ और ही समीकरण देख रही थी। उसे लग रहा था लोकसभा चुनावों के बाद फिर से आम आदमी पार्टी के साथ सरकार बनाने की जरूरत पड़ सकती है। कम से कम वह लोकसभा चुनावों के साथ चुनाव करवाकर अपनी और फजीहत नहीं करना चाहती थी। उसे परिणाम का अंदाजा था। उसे उम्मीद थी कि वक्त के साथ उसके प्रति जनता की नाराजगी कम हो जायेगी। इसीलिए फरवरी में विधान सभा भंग नहीं हुई।