Friday, January 16, 2015

निजीकरण के खिलाफ कोयला मजदूरों की हड़ताल

वर्ष-18, अंक-02(016-31 जनवरी, 2015)
नए वर्ष का स्वागत कोयला खनिकों ने हड़ताल के साथ किया। 6 जनवरी से देश के 5 लाख से भी अधिक कोयला खनिक 2 दिन हड़ताल पर रहे। यह हड़ताल केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के नेतृत्व में आहूत की गयी थी। हड़ताल के मुख्य मुद्दे कोल इण्डिया लिमिटेड के निजीकरण व श्रमिकों के वेतनमान में वृद्धि थे। इस हड़ताल से लगभग 75 फीसदी कोयला उत्पादन प्रभावित हुआ। पहले से ही ऊर्जा संकट के कारण सरकार भारी दबाव में आ गयी।

वे हमारा साथ छोड़कर चले गये....

वर्ष-18, अंक-02(016-31 जनवरी, 2015)
कल तक वे हमारे साथ थे आज नहीं हैं। साथी दानवीर का ‘नागरिक’ में योगदान अविस्मरणीय है। वे लगातार
दानवीर
मजदूर आंदोलन की रिपोर्ट भेजा करते थे। ‘नागरिक’ में रुद्रपुर, पंतनगर, खटीमा आदि स्थानों से छपने वाली रिपोर्ट उनकी सक्रियता, सजगता और संवेदनशीलता का प्रमाण हैं। मजदूरों की व्यथा, संघर्षों और उन संघर्षों में मौजूद चुनौतियों को वे अपने हर रिपोर्ट में रेखांकित करते थे। मजदूरों के साथ काम करने के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं पर कई महत्वपूर्ण लेख उन्होंने लिखे। वे अच्छे टाइपिस्ट भी थे। उन्होंने कई अंकों में टाइपिंग भी की। 
उनके जाने से ‘नागरिक’ का बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। हमने अपना एक भरोसेमंद साथी खो दिया। हम नम आंखों से उन्हें विदाई देते हैं। उनकी यादें सदा हमारे दिल में बसी रहेंगी। उनके जाने से एक निर्वात पैदा हो गया है जिसे भरने के लिए हमें बहुत अधिक मेहनत करनी होगी।     नागरिक टीम

संघी सरकार और पाकिस्तानी आतंकवादी

वर्ष-18, अंक-02(016-31 जनवरी, 2015)
भारत की संघी सरकार ने दावा किया है कि उसने अरब सागर से होकर भारत की ओर आने वाली आतंकवादियों की नाव को सफलतापूर्वक रोक दिया जिसके कारण उसमें सवार आतंकवादियों ने अपनी नाव को विस्फोटों से उड़ा दिया। यह घटना 31 दिसंबर की बताई जाती है।
भारत सरकार के अनुसार उनके तटीय सीमा रक्षकों ने ऐसे खुफिया संदेश पकड़े जिसमें इस तरह के आतंकवादी हमले के बारे में बातें थीं। पूर्ण सजगता और सतर्कता दिखाते हुए तटीय सुरक्षा गार्डों ने भारत की जल सीमा में लगभग अंतर्राष्ट्रीय जल सीमा के नजदीक, इस नाव को घेर लिया। कोई बचने का रास्ता न देख नाव सवारों ने खुद को ही शहीद कर डाला।

जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन

वर्ष-18, अंक-02(016-31 जनवरी, 2015)
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के घोर साम्प्रदायिक दुष्प्रचार का एक नतीजा जहां चुनाव में भाजपा की सीटों में बढ़ोत्तरी के रूप में आया वहां दूसरा नतीजा राष्ट्रपति शासन के रूप में आया।
विधानसभा में स्थिति ऐसी हो गयी है कि किसी भी सरकार के लिए भाजपा आवश्यक हो गयी है। भाजपा को किनारे कर यदि पीडीपी, कांग्रेस और निर्दलीय मिली-जुली सरकार बना भी लें तो आर्थिक तौर पर पूरे तौर से केन्द्र पर निर्भर इस राज्य को दैनंदिन का काम चलाना भी मुश्किल हो जायेगा। और यदि पीडीपी भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना लेे तो उनका भावी वजूद खतरे में पड़ जायेगा। इसी तरह भाजपा अपनी पीठ थोड़ी झुकाकर पीडीपी से समझौता कर ले तो उसे भी जितना लाभ हासिल हो गया है उससे ज्यादा लाभ हासिल नहीं होगा। नेशनल कांन्फ्रेस और कांग्रेस इस स्थिति में नहीं हैं कि कोई कदम इस दिशा में उठा सकें।

Thursday, January 1, 2015

‘तेरा जादू न चला...’

वर्ष-18, अंक-01(01-15 जनवरी, 2015)    
जम्मू-कश्मीर व झारखंड विधानसभा चुनावों के नतीजे आ चुके हैं। दोनों ही जगहों पर किसी भी पार्टी को अकेले दम पर बहुमत नहीं मिला। तमाम झूठे प्रचारों व दावों के बावजूद भाजपा दोनों ही स्थानों पर बहुमत से दूर रह गयी। दोनों ही विधानसभाओं में दलीय स्थिति इस प्रकार है-
जम्मू-कश्मीर (87/87)       
भाजपा-                 25      
पीडीपी-                  28    
नेशनल कांफ्रेस-     15
कांग्रेस-                  12
अन्य-                      7    
झारखंड (81/81)
भाजपा-              37    
जे एम एम-        19
जे वी एम (पी)-      8
आजसू-                5
कांग्रेस-                6
अन्य-                  6
    इन चुनावों में मोदी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। संघ परिवार झारखंड और जम्मू-कश्मीर में अपने साम्प्रदायिक हथियारों से कृष्ण की भूमिका में ही नहीं था वरन् पर्दे के पीछे से वह स्वयं लड़ाई लड़ रहा था। झारखंड में ईसाई बनाम हिन्दू का तो जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम बनाम हिन्दू का कार्ड जमकर खेला गया। इसी के परिणामस्वरूप न सिर्फ भाजपा का मत प्रतिशत बढ़ा बल्कि इसका ढंग भी विशिष्ट रहा- विशेषकर जम्मू-कश्मीर में। सांप्रदायिक आधार पर किये गये ध्रुवीकरण का परिणाम यह निकला कि जम्मू-कश्मीर का परिणाम भी इसी के अनुरूप आया। घाटी में पीडीपी तो जम्मू में भाजपा और मूलतः लद्दाख में कांग्रेस पार्टी। संघी फासिस्ट जम्मू-कश्मीर का सांप्रदायिक बंटवारा ही चाहते रहे हैं और ऐसा करने में वे काफी हद तक सफल रहे हैं। उनका पहले भी आधार जम्मू में ही था परंतु कांग्रेस व जम्मू-कश्मीर की स्थानीय पार्टियों का भी जम्मू में आधार रहा था और वे अपनी सीटें निकालते रहे थे। लेकिन सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण जम्मू से बाकी सभी का एक तरह से सफाया हो गया। परन्तु इस घोर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के बावजूद मोदी-शाह का ‘मिशन 44+’ पिट गया। 

रूस की अर्थव्यवस्था में हिचकोले

वर्ष-18, अंक-01(01-15 जनवरी, 2015)  
  दिसंबर के मध्य में रूस की मुद्रा रूबल में दो दिनों में 17 प्रतिशत की गिरावट जहां एक ओर रूसी अर्थव्यवस्था की खस्ता होती हालत को बयां करती है वहीं समूची वैश्विक अर्थव्यवस्था के बारे में भी संकेत करती है। रूस की अर्थव्यवस्था में वृद्धि के बारे में पहले ही काफी नकारात्मक भविष्यवाणियां की जा चुकी हैं।
    रूसी मुद्रा की तात्कालिक गिरावट का कारण चाहे जो हो, पिछले साल भर से ऐसे बहुत सारे कारक काम करते रहे हैं जो इसे उधर की तरफ धकेलते हैं इसीलिए पिछले साल भर में इसमें करीब 60 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है। 

अटल बिहारी भारत के किस वर्ग के रत्न हैं

वर्ष-18, अंक-01(01-15 जनवरी, 2015)   
मोदी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को उनके 90 वें जन्म दिन से पूर्व भारत रत्न का तमगा देने का ऐलान कर दिया। पूंजीवादी मीडिया इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी के इतिहास के गौरवगान में डूब गया। 
    इस गौरवगान में से एक बेहद दिक्कततलब तथ्य पूंजीवादी मीडिया ने प्रचारित नहीं किया वह यह कि भारत छोड़ो आंदोलन के वक्त नवयुवक रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने ब्रिटिश साम्राज्यवादियों से माफी मांगी थी। उन्होंने आंदोलन में शामिल होने की गलती मानते हुए अपने लिए माफी मांगी थी और साथ ही उन्होंने अन्य लोगों की गिरफ्तारी में भी भूमिका निभायी थी।