Thursday, January 1, 2015

अटल बिहारी भारत के किस वर्ग के रत्न हैं

वर्ष-18, अंक-01(01-15 जनवरी, 2015)   
मोदी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को उनके 90 वें जन्म दिन से पूर्व भारत रत्न का तमगा देने का ऐलान कर दिया। पूंजीवादी मीडिया इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी के इतिहास के गौरवगान में डूब गया। 
    इस गौरवगान में से एक बेहद दिक्कततलब तथ्य पूंजीवादी मीडिया ने प्रचारित नहीं किया वह यह कि भारत छोड़ो आंदोलन के वक्त नवयुवक रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने ब्रिटिश साम्राज्यवादियों से माफी मांगी थी। उन्होंने आंदोलन में शामिल होने की गलती मानते हुए अपने लिए माफी मांगी थी और साथ ही उन्होंने अन्य लोगों की गिरफ्तारी में भी भूमिका निभायी थी। 

    अगर इस एकमात्र तथ्य को जाने भी दिया जाये तो भी ऐसा कोई कारण नहीं दिखता कि अटल को पूरे भारत का रत्न कहा जाए। अधिक से अधिक उनके कारनामे उन्हें भारत के शासक पूंजीपति वर्ग का ही  रत्न बनाने तक ले जाते हैं। इसीलिए मेहनतकश जनता के लिए वे रत्न नहीं दुःखदाता ही अधिक थे। 
    आजीवन जनसंघ-भाजपा-आर.एस.एस. से जुड़े वाजपेयी अपने संगठनों के साम्प्रदायिक कुकृत्यों का न केवल समर्थन करते रहे बल्कि उन्हें ढंकने का भी काम करते रहे। सत्तासीन होने पर उन्होंने गुजरात दंगों के मोदी को महज राजधर्म का पालन करने की नसीहत दे नरसंहार करने की छूट प्रदान की। प्रधानमंत्री बन उन्होंने मजदूर वर्ग पर दूसरे चरण के आर्थिक सुधारों का हमला बोला। ताबूत घोटाले से लेकर कई घोटाले कर भ्रष्टाचार की परम्परा को आगे बढ़ाया। जनता के संघर्षों-आंदोलनों पर लाठी-गोली बरसाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। पूंजीपतियों की चाकरी में भाजपा को दूसरी विश्वस्त पार्टी का दर्जा दिलवाया। 
    इसीलिए वाजपेयी से देश का पूंजीपति वर्ग खुश था। साथ ही वाजपेयी से उसकी पार्टी भाजपा भी प्रसन्न थी। अब अगर मोदी ने वाजपेयी को भारत रत्न का पुरूस्कार दिया है तो मानो उसने गुजरात नरसंहार के वक्त खुद पर दिखाये विश्वास का अहसान चुकता कर दिया है। साथ ही मोदी ने उस परम्परा की शुरूआत भी कर दी जिससे भविष्य में सावरकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और खुद मोदी भी इस सम्मान को पा सकें। 
    आजादी के वक्त पूंजीपति वर्ग और जनता दोनों ब्रिटिश साम्राज्यवादियों से संघर्षरत थे। इसीलिए आजादी के बाद तमाम राष्ट्रवादी नेताओं को शासकों ने भारत रत्न सौंपा। समय के साथ यह ‘राष्ट्रवाद’ अतीत बनता चला गया। नई पीढ़ी के पूंजीपति वर्ग का राष्ट्रवाद साम्राज्यवाद से समझौते करने में था। अब टाटा को भारत रत्न दे पूंजीपति वर्ग ने खुद को सम्मान देने की हिमाकत शुरू कर दी। अब उसे जनता का भय नहीं रह गया। इसी कड़ी की तीसरी परम्परा मोदी शुरू कर रहे हैं जहां वे पूंजीपतियों के आधुनिक चाकरों व इतिहास में खासे विवादित लोगों को भी भारत रत्न दे डाल रहे हैं। 
    अब जनता भी उतने ही अच्छे ढंग से जान रही है कि न तो टाटा न अटल बिहारी उसके अपने आदमी हैं बल्कि ये शासकों के आदमी हैं और भारत रत्न शासकों को दिया जाने वाला पुरूस्कार है। 

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