निकम्मी शासन प्रणाली की पोल फिर खुली
सितम्बर माह के पहले हफ्ते में हुयी भारी बारिश ने जम्मू-कश्मीर में भयानक तबाही फैला दी। 400 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं तथा चार लाख से अधिक लोग अकेले श्रीनगर में सितम्बर माह के दूसरे हफ्ते तक भी फंसे हुए थे। इस तबाही में हजारों लोग बेघर हो गये और उनकी गृहस्थी पूरे तौर पर उजड़ गयी।
इस बाढ़ में ‘जम्मू-कश्मीर की उमर अब्दुल्ला की सरकार भी बह गयी’, ऐसा खुद इस राज्य के मुख्यमंत्री का कहना था। श्रीनगर शहर में आई बाढ़ में सरकारी दफ्तर, हाइकोर्ट, सरकारी आवास, टेलीविजन प्रसारण केन्द्र आदि सभी जलमग्न हो गये। जो ‘जलमग्न सरकार’ अपनी ही सुरक्षा नहीं कर सकी वह भला आम जनता को क्या सहायता पहुंचाती। सेना को उतारकर ही पुनः व्यवस्था की जा रही है। जम्मू-कश्मीर में भारी वर्षा व बाढ़ के कारण हजारों लोगों को पलायन भी करना पड़ा है। वे भोजन, दवा, कपड़े, छत आदि के अभाव में दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। पीने के पानी, रसोई गैस, बिजली, डीजल-पैट्रोल आदि के अभाव और संचार सेवाओं के ठप्प हो जाने के कारण हालात और खराब हो गये हैं।
जम्मू-कश्मीर में आई इस आपदा ने पुनः उन जख्मों को हरा कर दिया है जो पिछले वर्ष उत्तराखण्ड में आई आपदा के समय भारत के मेहनतकशों को मिले थे। उत्तराखण्ड की तरह जम्मू कश्मीर में काम करने गये सैकड़ों मजदूर इस आपदा की जद में आ गये। स्थानीय आबादी के धनी वर्ग और राजनेताओं को जहां तुरंत सहायता उपलब्ध हुयी वहां स्थानीय आबादी के मेहनतकशों सहित अन्य राज्यों से आये मजदूरों और अन्य लोगों को भारी क्षति उठानी पड़ी है। रोजगार के अवसर छिनने से लोगों के जीवनयापन और भविष्य पर गम्भीर सवाल खड़े हो गये हैं।
उत्तराखण्ड आपदा की तरह केन्द्र व राज्य सरकार का रुख बाढ़ के स्तर के घटने और कुछ तात्कालिक सहायता का है। गौरतलब है कि श्रीनगर घाटी में ऐसे हालात की चेतावनी चार वर्ष पूर्व दी जा चुकी थी परन्तु केन्द्र व राज्य की सरकारों ने कुछ नहीं किया। अब जब भारी मात्रा में जान माल की हानि हो चुकी है तब धूर्त राजनीतिज्ञ घडियाली आंसू बहाते हुए नये ढंग से श्रीनगर को बसाने का सब्जबाग दिखलाने की कोशिश कर रहे हैं।
उत्तराखण्ड आपदा की तरह यह आपदा भी विकृत पूंजीवादी विकास और मुनाफे की अंधी हवस का नतीजा है। कश्मीर घाटी में जिस दिन से नदी व झील के मार्गों को अवरुद्ध कर दिया गया था उसमें ऐसा होना स्वाभाविक था। कश्मीर व जम्मू संभाग के जिलों में मची तबाही में भी विकृत पूंजीवादी विकास ही जिम्मेदार है। इस तरह की आपदाओं को प्राकृतिक अथवा मानव निर्मित आपदा बतलाना शासक वर्ग की असंवेदनशीलता व नाकामियों को छुपाना है। यह उन लोगों को क्लीन चिट देना है जो इस तबाही और बर्बादी के गुनहगार है।
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