Friday, January 16, 2015

संघी सरकार और पाकिस्तानी आतंकवादी

वर्ष-18, अंक-02(016-31 जनवरी, 2015)
भारत की संघी सरकार ने दावा किया है कि उसने अरब सागर से होकर भारत की ओर आने वाली आतंकवादियों की नाव को सफलतापूर्वक रोक दिया जिसके कारण उसमें सवार आतंकवादियों ने अपनी नाव को विस्फोटों से उड़ा दिया। यह घटना 31 दिसंबर की बताई जाती है।
भारत सरकार के अनुसार उनके तटीय सीमा रक्षकों ने ऐसे खुफिया संदेश पकड़े जिसमें इस तरह के आतंकवादी हमले के बारे में बातें थीं। पूर्ण सजगता और सतर्कता दिखाते हुए तटीय सुरक्षा गार्डों ने भारत की जल सीमा में लगभग अंतर्राष्ट्रीय जल सीमा के नजदीक, इस नाव को घेर लिया। कोई बचने का रास्ता न देख नाव सवारों ने खुद को ही शहीद कर डाला।

घटना के पांच दिन बाद रक्षा मंत्री मनोहर पारेकर का बयान आया कि घेरे जाने पर नाव सवारों का खुद को उड़ा लेना यह दिखाता है कि वह आतंकवादी थे। यदि वे मछुआरे या स्मगलर होते तो ऐसा नहीं करते।
घटना के पांच दिन बाद रक्षा मंत्री का यह अटकलबाजी भरा बयान क्यों आया? इसलिए कि इंडियन एक्सपे्रस अखबार ने पूरी घटना पर सवाल उठाते हुए रिपोर्ट छापी और कांग्रेस पार्टी ने भी पूरे प्रकरण पर सवाल उठा दिया। बिना कहे हुए इन्होंने यह जताने का प्रयास किया कि इस प्रकरण में सरकार का पूरा पक्ष संदेहास्पद है और सारा मामला पाकिस्तान के साथ ठीक से पेश आने से बचने की कोशिश है।
बम्बइया मसाला फिल्मों की तर्ज पर होने वाले इस प्रकरण में क्या सच्चाई हो सकती है? संघी सरकार जो दावे कर रही है वे कहां तक सच हो सकते हैं?
मसले को ध्यान से देखें तो वास्तव में सरकार के बयान ढ़ेर सारे संदेह पैदा करते हैं। इसमें सरकार की ओर से मजेदार बयान आ रहे हैं जैसे यदि नाव में मछुआरे होते तो मछुआरे जैसे कपड़े पहने होते। आतंकवादियों की पहचान कपड़ों से करने की संघियों को बुरी आदत पड़ गयी है और गुजरात पुलिस के कारनामों के लिए (जिसमें एक पुलिस अभ्यास में नकली आतंकवादियों को मुसलमानों की टोपी इत्यादि पहने दिखाया गया) माफी मांगने के बाद भी वे इससे बाज नहीं आ रहे हैं।
यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि नौका प्रकरण के एक दिन बाद ही पाकिस्तान सीमा पर पाकिस्तान द्वारा युद्ध विराम का उल्लंघन करने की खबरें आने लगीं। ये मानो पहले से ही तय किसी धारावाहिक का हिस्सा हो जिसमें एक के बाद दूसरी घटनांए होनी तय हों। अब तो यह एक तरीके से नियमित बात हो गयी है कि कुछ दिन की चुप्पी के बाद पाकिस्तान के साथ किसी टकराव की खबर आयेगी और सारे टेलीविजन और अखबार उससे पट जायेंगे।
संघी सरकार का यह पाकिस्तान विरोधी आर्केस्ट्रा उसकी आम रणनीति का हिस्सा है। मुसलमान विरोध, आतंकवाद विरोध और पाकिस्तान विरोध इस आर्केस्ट्रा के अलग-अलग वाद्ययंत्र हैं। कभी एक वाद्य बजाया जाता है तो कभी दूसरा और कभी सभी एक साथ। जब सभी वाद्य यंत्र एक साथ बजते हैं तो निकलने वाला संगीत एकदम पैशाचिक हो उठता है।
अरब सागर में जलने वाली एक नौका का सच कभी सामने नहीं आ पायेगा ठीक उसी तरह जैसे 2001 में संसद पर हमले का सच कभी सामने नहीं आ पाया। अफजल गुरू को चोरी-छिपे और आनन-फानन में इसीलिए फांसी पर चढ़ा दिया गया कि सच सामने न आ सके।
एक लम्बे समय से शासक वर्ग इस तरह की फर्जी घटनाओं को अंजाम देते रहे हैं जिससे जनमानस को खास दिशा में मोड़ा जा सके। चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में ऐसे कई गुर बताये हैं। अमेरिकी साम्राज्यवादी एक लम्बे समय से ऐसा करने के लिए कुख्यात रहे हैं। प्राचीन भारतीय संस्कृति का गुण गाने वाले अमेरिकापरस्त संघी यदि उनसे सीख कर इस तरह की हरकतें करते हैं तो यह ताज्जुब की बात नहीं है।
मोदी के विकास के नारे के पीछे बजने वाला यह पृष्ठभूमि का आर्केस्ट्रा मोदी और संघी सरकार के लिए बहुत जरूरी है। इससे अवचेतन में एक बात लगातार बैठाई जाती है जिसे कभी भी बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे लगातार यह बात स्थापित की जाती है कि मोदी सरकार तो विकास की समर्थक और हर किसी से शांति चाहने वाली है पर भारत को खां-म-खां दुश्मन मानने वाला पाकिस्तान यह सब नहीं चाहता। वह खुद आंतरिक समस्याओं से ग्रस्त है और इसलिए वह भारत के खिलाफ ‘नापाक’ हरकतें कर अपनी समस्याओं से ध्यान हटाना चाहता है। इस पाकिस्तान को उसकी औकात दिखाने के लिए सबक सिखाना ही होगा। साथ ही देश के भीतर जो पाकिस्तानपरस्त देशद्रोही हैं (मुसलमान) उन्हें भी सबक सिखाना होगा।
यह फलसफा संघी प्रचार के द्वारा एक स्वयंसिद्ध सत्य तक पहुंचाने के लिए हर चंद कोशिश की जा रही है। अरब सागर का नौका प्रकरण इसी का हिस्सा है। 

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