Thursday, January 1, 2015

रूस की अर्थव्यवस्था में हिचकोले

वर्ष-18, अंक-01(01-15 जनवरी, 2015)  
  दिसंबर के मध्य में रूस की मुद्रा रूबल में दो दिनों में 17 प्रतिशत की गिरावट जहां एक ओर रूसी अर्थव्यवस्था की खस्ता होती हालत को बयां करती है वहीं समूची वैश्विक अर्थव्यवस्था के बारे में भी संकेत करती है। रूस की अर्थव्यवस्था में वृद्धि के बारे में पहले ही काफी नकारात्मक भविष्यवाणियां की जा चुकी हैं।
    रूसी मुद्रा की तात्कालिक गिरावट का कारण चाहे जो हो, पिछले साल भर से ऐसे बहुत सारे कारक काम करते रहे हैं जो इसे उधर की तरफ धकेलते हैं इसीलिए पिछले साल भर में इसमें करीब 60 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है। 

    इन कारकों में दो प्रमुख हैं- रूस पर संयुक्त राज्य अमेरिका व यूरोपीय संघ द्वारा आर्थिक प्रतिबंध तथा तेल की कीमतों में कमी। इसके साथ सारी दुनिया में जारी आम आर्थिक संकट तो है ही। 
    यूक्रेन को लेकर अमेरिकी-यूरोपीय व रूसी साम्राज्यवादियों में खींचतान चली उसका एक नतीजा यह निकला कि अमेरिकी-यूरोपीय साम्राज्यवादियों ने अपनी ताकत का इस्तेमाल करते हुए रूस पर कई आर्थिक प्रतिबंध लगा दिये। हालांकि इन प्रतिबंधों से भी नुकसान होना था पर उन्हें लगा कि रूस इससे ज्यादा प्रभावित होगा और दबाव में आकर पीछे हटेगा। पर अभी तक रूस ने ऐसा नहीं किया है। 
    जहां तक तेल की कीमतों का सवाल है इसके कम होने का कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था के संकट के चलते मांग में आम कमी के साथ-साथ अमेरिका द्वारा शेल चट्टानों से तथा टार सैण्ड से तेल निकालने की प्रक्रिया को तेज करना है। इससे अमेरिका द्वारा कच्चे तेल की मांग में काफी कमी आई है। यहां यह याद रखा जाना चाहिए कि अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता देश है और अभी तक उसकी जरूरतों का ज्यादा हिस्सा तेल के आयात से पूरा होता था। 
    दूसरी ओर तेल रूस के निर्यात का सबसे बड़ा हिस्सा है और उसकी आमदनी का बड़ा स्रोत भी। ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों में कमी रूसी अर्थव्यवस्था को सीधे प्रभावित करती है। 
    पिछले सालों में वैश्विक अर्थव्यवस्था के संकट से बाहर निकलने की जब भी बातें होती रही हैं तब इस पर जरूर चर्चा होती रही है कि दुनिया में तनाव और झगड़े इसके रास्ते में एक बाधा हैं। अरब की तनावपूर्ण स्थिति से लेकर यूक्रेन तक सारे इसी बाधा की श्रेणी में आते हैं। 
    ये झगड़े और तनाव यदि वैश्विक अर्थव्यवस्था की सेहत ठीक होने के रास्ते में बाधा हैं तो इसीलिए कि यह अर्थव्यवस्था अपने संकट में इतने गहरे धंसी हुई है कि इसमें सुधार की हर छोटी-मोटी चीज ऊंट के सिर पर तिनका साबित होती है। इसलिए यूक्रेन के मसले पर रूस पर छोटे-मोटे आर्थिक प्रतिबंध भी संकट से मुक्ति में इतने महत्वपूर्ण साबित हो रहे हैं। 
    यूरोप-अमेरिका की सभी अर्थव्यवस्थाओं की तरह रूसी अर्थव्यवस्था भी क्षणभंगुरता की स्थिति में है। इसीलिए हिचकोले उसे बुरी तरह झकझोर रहे हैं। 
    पर यह सोचना नादानी होगी कि रूसी अर्थव्यवस्था की यह हालत वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर नहीं डालेगी। जब रूस की मुद्रा गिरी तो उसने साथ ही सारी दुनिया के शेयर बाजार को हिला दिया। यदि रूस की अर्थव्यवस्था तीखे संकट का शिकार होती है तो वह यूरोप-अमेरिका की अर्थव्यवस्थाओं को उसी तरह प्रभावित करेगी जैसा उसने 1998 में किया था या जैसा कि दक्षिण यूरोप के देशों का संकट प्रभावित करता है। सारी दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं को आपस में एकीकृत कर वे उसके परिणामों से बच नहीं सकते। वे इसके एक हिस्से पर स्वयं लात मार इससे होने वाले नुकसान से बच नहीं सकते। 
    साम्राज्यवादी इसे जानते हैं। इसीलिए वे प्रतिबंधों में एक हद से आगे नहीं जा रहे हैं। पर जितना वे जा रहे हैं वह भी उनके लिए काफी घातक साबित हो रहा है। पुतिन यदि रोयेंगे तो ओबामा को भी सुबकना ही होगा। 

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