Thursday, January 1, 2015

‘तेरा जादू न चला...’

वर्ष-18, अंक-01(01-15 जनवरी, 2015)    
जम्मू-कश्मीर व झारखंड विधानसभा चुनावों के नतीजे आ चुके हैं। दोनों ही जगहों पर किसी भी पार्टी को अकेले दम पर बहुमत नहीं मिला। तमाम झूठे प्रचारों व दावों के बावजूद भाजपा दोनों ही स्थानों पर बहुमत से दूर रह गयी। दोनों ही विधानसभाओं में दलीय स्थिति इस प्रकार है-
जम्मू-कश्मीर (87/87)       
भाजपा-                 25      
पीडीपी-                  28    
नेशनल कांफ्रेस-     15
कांग्रेस-                  12
अन्य-                      7    
झारखंड (81/81)
भाजपा-              37    
जे एम एम-        19
जे वी एम (पी)-      8
आजसू-                5
कांग्रेस-                6
अन्य-                  6
    इन चुनावों में मोदी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। संघ परिवार झारखंड और जम्मू-कश्मीर में अपने साम्प्रदायिक हथियारों से कृष्ण की भूमिका में ही नहीं था वरन् पर्दे के पीछे से वह स्वयं लड़ाई लड़ रहा था। झारखंड में ईसाई बनाम हिन्दू का तो जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम बनाम हिन्दू का कार्ड जमकर खेला गया। इसी के परिणामस्वरूप न सिर्फ भाजपा का मत प्रतिशत बढ़ा बल्कि इसका ढंग भी विशिष्ट रहा- विशेषकर जम्मू-कश्मीर में। सांप्रदायिक आधार पर किये गये ध्रुवीकरण का परिणाम यह निकला कि जम्मू-कश्मीर का परिणाम भी इसी के अनुरूप आया। घाटी में पीडीपी तो जम्मू में भाजपा और मूलतः लद्दाख में कांग्रेस पार्टी। संघी फासिस्ट जम्मू-कश्मीर का सांप्रदायिक बंटवारा ही चाहते रहे हैं और ऐसा करने में वे काफी हद तक सफल रहे हैं। उनका पहले भी आधार जम्मू में ही था परंतु कांग्रेस व जम्मू-कश्मीर की स्थानीय पार्टियों का भी जम्मू में आधार रहा था और वे अपनी सीटें निकालते रहे थे। लेकिन सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण जम्मू से बाकी सभी का एक तरह से सफाया हो गया। परन्तु इस घोर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के बावजूद मोदी-शाह का ‘मिशन 44+’ पिट गया। 

    इन परिणामों के फलस्वरूप जम्मू-कश्मीर में सांप्रदायिक तनाव और बढ़ेगा जिसका परिणाम जम्मू व कश्मीर घाटी में फसाद के रूप में आने वाले दिनों में दिखायी दे सकता है। भाजपा व संघ परिवार जम्मू व कश्मीर में जो जहर घोलते जा रहे हैं उसके परिणाम काफी भयावह होंगे। इस सांप्रदायिक राजनीति से कश्मीरियत कमजोर होगी और अलग राष्ट्रीयता की मांग का कश्मीरियों का आंदोलन भी। क्योंकि जम्मू में भाजपा जितनी सांप्रदायिक कट्टरता को बढ़ावा देगी इस सबका खामियाजा भविष्य में जम्मू-कश्मीर की जनता को भुगतना पडे़गा। जेकेएलएफ के कमजोर होने के बाद वैसे भी घाटी में कट्टरपंथी संगठनों का प्रभाव ज्यादा है। इस प्रकार भाजपा व घाटी के कट्टरपंथी दोनों एक दूसरे का सहारा बनेंगे।
    झारखंड में स्थिति इसी प्रकार के ध्रुवीकरण से अलग नहीं रही है। एक दशक से भी ज्यादा समय से इस या उस तरीके से भाजपा सत्ता से जुड़ी रही है। संघ परिवार आदिवासियों में अपना धार्मिक व सांप्रदायिक प्रचार करता रहा है। भाजपा की सरकारों ने या भाजपा समर्थित सरकारों ने अपनी मण्डली को पूरी छूट दे रखी थी कि वे ईसाईयों के विरुद्ध माहौल तैयार कर सकें। इस कारण ही यह सम्भव हो सका कि अपनी तमाम नाकामियों के बावजूद भाजपा अपनी सीटें व अपना मत प्रतिशत बढ़ा पाने में सफल रही।
    इन दोनों ही जगहों पर भले ही मत प्रतिशत व सीटें बढ़ी हों इसके बावजूद कि दोनों ही राज्यों में भाजपा स्वतंत्र रूप से बहुमत न पा सकी फिर भी मीडिया गा रहा है ‘तेरा जादू चल गया’। जबकि सब जानते हैं कि मोदी स्वयं दोनों विधानसभाओं के चुनाव अपने नाम पर लड़ रहे थे। भाजपा को इन दोनों राज्यों में सफलता का एक कारण अन्य पार्टियों के गठबंधन का टूटना भी रहा है। जम्मू-कश्मीर व झारखंड दोनों ही स्थानों पर अन्य राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण दल मसलन जम्मू-कश्मीर में पीडीपी, नेशनल कांफ्रेस, कांग्रेस तो झारखंड में जेएमएम, कांग्रेस, जेवीएम(पी) ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। सांप्रदायिक राजनीति की सफलता की एक बड़ी वजह यह भी रहा है।
    इसका मतलब यह नहीं है कि बाकी पूंजीवादी पार्टियां उपरोक्त वजहों से ही हारीं। जनता के हितों के विरुद्ध उनकी नीतियों व जनता से अलगाव के कारण जनता के बीच इन पार्टियों को लेकर गुस्सा व अविश्वास है। जम्मू-कश्मीर में बाढ़ पर जिस ढंग से उमर हुकूमत निपटी थी वह वेहद शर्मनाक था। ऐसे में ऐसे राजनीतिक दलों को हारना ही था।
    मोदी व उनकी पार्टी की दूसरे दलों पर लगातार बढ़त का एक कारण यह भी है कि मोदी का जादू देश के पूंजीपतियों व मीडिया पर अभी भी चल रहा है। जब भी कोई चुनाव परिणाम आता है, अखबार व चैनल ‘मोदी मैजिक’ व ‘मोदी लहर’ से पट जाते हैं और तब मतदाता ‘‘निष्पक्ष चुनावों’’ से चुनाव हार जाता है। पिछले सात महीनों से भाजपा सरकार ने एक भी कदम जनता के लिए नहीं उठाया फिर भी मीडिया ‘मोदी गान’ में व्यस्त है।
    मोदी व भाजपा की लगातार बढ़त ने अन्य पूंजीवादी दलों को भी कट्टरपंथी व धुर दक्षिणपंथी राजनीति की ओर धकेला है। पूरी पूंजीवादी राजनीति अब दक्षिणपंथ की ओर और ज्यादा खिसक गयी है। विभाजनकारी मुद्दों पर जनगोलबंदी हो रही है, चुनाव लड़े जा रहे हैं और जनता के वास्तविक मुद्दे व जनसमस्याओं पर गोलबंदी पीछे कहीं छूट गयी है। यह दक्षिणपंथी राजनीति का जादू है जो स्वयं मीडिया पर भी चल रहा है और जनता भी इसके प्रभाव में खिंची जा रही है।                             

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