Saturday, August 16, 2014

भाजपा का नया अध्यक्ष

भारी तामझाम के बीच औपचारिक तौर पर अमित शाह को भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष चुन लिया गया। हालांकि इस चुनाव की आवश्यकता नहीं थी। क्योंकि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और नरेन्द्र मोदी ने अमितशाह का चुनाव पहले ही कर लिया था। संघ और मोदी के फैसले के बाद अमित शाह का विरोध करने की हिम्मत भाजपा में किसके पास थी। 
अमित शाह की कई खासियतें हैं। एक बड़ी खासियत यह है कि इस सज्जन को सर्वोच्च अदालत ने गुजरात राज्य से अपराधिक मुकदमों में दखलंदाजी न करने देने के लिए तड़ीपार किया हुआ है।

साम्प्रदायिक धु्रवीकरण कैसे किया जाता है और उसका चुनावी लाभ हासिल करने में अपनी अनोखी क्षमता का प्रदर्शन ये सज्जन इस वर्ष के आम चुनाव में कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश में इनकी ठोस योजनाओं का ही असर था कि भाजपा की सीटें 10 से सीधे 71 हो गयीं। 
कुछ लोगों ने हल्ला मचाया कि अमित शाह की ताजपोशी में भाजपा ने 90 लाख रुपये खर्च किये। यह रकम भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों के होटल में टिकने के खर्च के साथ विदेशी फूलों पर खर्च की गयी। भाजपा के इस नये अध्यक्ष की ताजपोशी में उस खर्च का एक अंश भी नहीं जितना भाजपा ने चुनाव में कुल खर्च किया था। भाजपा के चुनावी खर्च का अनुमान बीस हजार करोड़ रुपये या उससे भी अधिक का लगाया जा रहा है। 
अमित शाह की ताजपोशी के साथ नरेन्द्र मोदी ने पार्टी पर अपनी पकड़ एकदम मजबूत कर ली है। पार्टी के सारे बड़े नेता या तो पटाक्षेप में चले गये हैं या फिर राजभवनों की शोभा बढ़ा रहे हैं। 
नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी का व्यावहरिक कार्यक्रम यह है कि नरेन्द्र मोदी जहां सत्ता में बैठकर आर्थिक सुधार का एजेण्डा लागू करेंगे वहां अमित शाह साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण कर संघ व भाजपा के फासिस्ट एजेण्डे को आगे बढ़ायेंगे। ऐसा करते वक्त अमित शाह नरेन्द्र मोदी की नीतियों से उपजने वाले जनाक्रोश की दिशा को मोड सकेंगे। 
अमित शाह ने अपनी इस काबिलियत का प्रदर्शन उत्तर प्रदेश में चुनाव के दौरान कर दिखाया है। अब वे पूरे देश में ऐसा करेंगे। हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखण्ड, जम्मू व कश्मीर राज्यों के विधानसभा चुनाव में अगर वे इसी हुनर का प्रदर्शन करते हैं तो इन राज्यों के मेहनतकशों व अल्पसंख्यकों को भयानक तनाव व संत्रास से गुजरना पड़ सकता है। 
अमित शाह को वैसे उत्तराखण्ड के हालिया विधानसभा उपचुनाव की तरह के बुरे अनुभव से भी गुजरना पड़ सकता है क्योंकि नरेन्द्र मोदी की सरकार के खिलाफ बढ़ती महंगाई, बढ़ती साम्प्रदायिक घटनाओं और मोदी के मंत्रियों की बेतुकी बयानबाजी के कारण क्षोभ बढ़ता जा रहा है। दिल्ली में तो सरकार बनाने के लिए भाजपा जोड़-तोड़ का सहारा ले रही है। चुनाव में उतरने से कतरा रही है। उत्तर प्रदेश में उपचुनावों के विजय हासिल करने का उसे सबसे सही नुस्खा साम्प्रदायिक धु्रवीकरण ही लग रहा है।  

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