Sunday, March 1, 2015

क्या मोदी अंबानी बंधुओं पर मुकदमा चलायेंगे

वर्ष-18, अंक-05 (01-15 मार्च, 2015)
प्रधानमंत्री की पीठ पर किसका हाथ
    पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त मोदी ने अपने चुनावी भाषणों में काले धन के मुद्दे को बड़े जोर-शोर से उठाया था। उन्होंने वायदा किया था कि वे सत्ता में आने के 100 दिन के भीतर सारा काला धन देश में वापिस ले आयेंगे। हर एक मतदाता के खाते में 15 लाख रुपये जमा कर दिये जायेंगे। परन्तु मोदी सरकार के 9 माह के कार्यकाल के बाद 15 लाख तो दूर 15 रुपये भी किसी मतदाता के खाते में नहीं आये। 
    पहले तो मोदी सरकार इस मामले पर अपने वायदों पर ही लीपापोती करती रही, उसके मंत्री लोग बयान देते रहे कि मोदी ने कभी ऐसा वायदा किया 

ही नहीं। बाद में खुद सरकार स्विस सरकार से समझौतों की दुहाई देते हुए यह कहने लगी कि स्विस बैंक के खाताधारियों के नाम जानना मुश्किल है, परन्तु सरकार की यह गोटी भी तब विफल हो गयी जब एक खोजी मीडिया एजेन्सी ने उन 1195 लोगों के नाम प्रकाशित कर दिये जिनके 2007 में स्विस बैंक में खाते थे। और इनमें कुल 25 हजार करोड़ की रकम जमा थी। अब सरकार के सामने बहानेबाजी का कोई तरीका नहीं बचा। उसकी स्थिति काले धन की गुठली को न तो उगलते बनती थी न तो निगलते। वह न तो आरोपियों पर कार्यवाही कर सकती थी और न ही जनता के सामने यह सब बोल सकती थी कि काला धन तो केवल एक चुनावी मुद्दा था। जिस पर सरकार को वायदे के अलावा कुछ नहीं करना था। इसलिए सरकार को सबसे बेहतर तरीका चुप्पी लगा जाने का लगा और उसने इस मुद्दे को ठण्डे बस्ते में डाल दिया। इस सूची में जिन लोगों के नाम शामिल थे उनमें मुकेश अंबानी, अनिल अंबानी इन दोनों की माता कोकिला धीरू भाई अंबानी, जेट एअरवेज के चेयरमेन नरेश गोयल, डाबर की बर्मन फेमिली व कई अन्य नेताओं व उद्योगपतियों के नाम शामिल हैं। 
    यह लिस्ट इस बात का जीता जागता उदाहरण है कि काले धन के सबसे बड़े मालिक इस देश के पूंजीपति वर्ग से आते हैं। पूंजीपति वर्ग एक ओर तो मजदूर मेहनतकशों का खून चूसकर अकूत मुनाफा कमाता है वहीं दूसरी ओर पूंजीपतियों की आपसी प्रतिस्पर्धा उन्हें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार पैदा करने की ओर ढकेलती है, अपनी पूंजी के दम पर पूंजीपति नेताओं, सरकारी अधिकारियों को खरीदते हैं, उनकी नीतियों को प्रभावित करते हैं और साथ ही अपनी कमाई के बड़े हिस्से पर टैक्स देने से इंकार कर कालेधन का मालिक बन जाते हैं। पूंजीपतियों के लिए काम करने वाली सरकारें काला धन जब्त करना तो दूर पूंजीपतियों द्वारा दिखाये गये मुनाफे पर पूरा टैक्स वसूल तक नहीं कर पाती हैं। हर साल लाखों करोड़ रुपये की टैक्स छूट पूंजीपतियों को दे दी जाती है। 
    ऐसी परिस्थितियों में काले धन या भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले किसी भी संगठन को सबसे पहले पूंजीपतियों के द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा होना आवश्यक है। कोई भी पूंजीवादी पार्टी पूंजीपति वर्ग के खिलाफ नहीं खड़ी हो सकती, चाहे वह भाजपा हो चाहे वह कांग्रेस या फिर आम आदमी पार्टी। इन सबके लिए भ्रष्टाचार और कालाधन चुनावी मुद्दे से ज्यादा कुछ नहीं है। इस मसले पर थोड़ी सी भी बड़ी कार्यवाही पूंजीपतियों के हितों को नुकसान पहुंचाने लगती है। 
    मोदी सरकार व जनता के लिए यह स्पष्ट है कि देश के शीर्ष उद्योगपति अंबानी बंधु देश के शीर्ष काले धनपति भी हैं। क्या मोदी सरकार की इतनी हिम्मत है कि वह अंबानी बंधुओं पर मुकदमा कायम करे, उन्हें जेल की सलाखों के पीछे भेजे, उनकी सम्पत्ति कुर्क करे। बहुत स्पष्ट है कि मुकेश अंबानी से अपनी पीठ पर हाथ रखवा खुश होने वाले मोदी इनमें से एक भी कदम नहीं उठा सकते। इसीलिए काले धन पर उनकी सारी बातें लफ्फाजी के सिवा कुछ नहीं थीं।  

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