Wednesday, October 1, 2014

टूटते गठबंधन

वर्ष-17,अंक-19 (01-15 अक्टूबर, 2014)
        पहले हरियाणा और फिर महाराष्ट्र में स्थापित गठबंधन विधानसभा चुनाव के पहले बिखर गये। जिस गठबंधन के टूटने से सबसे ज्यादा शोर मचा वह भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना का 25 वर्ष पुराना गठबंधन है। इस गठबंधन के टूटने के चंद घंटे बाद ही महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस का भी गठबंधन टूट गया। कांग्रेस के जहाज को डूबता देख शरद पवार की पार्टी उससे बाहर कूद पड़ी।
लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत हासिल कर केन्द्र की सत्ता में काबिज भाजपा ने हरियाणा व महाराष्ट्र में अपनी शर्र्ताें पर गठबंधन चाहा था परन्तु दूसरे दलों ने भाजपा के सामने झुकने से इंकार कर दिया। जहां तक कांग्रेस पार्टी की बात है, यह अनुमान लगाया जा रहा है कि क्योंकि दोनों ही राज्यों में उसके नेतृत्व में सरकार रही हैै अतः दुबारा सत्ता में उसका वापस लौटना मुश्किल है। कांग्रेस पार्टी का स्थान लेने का दावा भाजपा का है और उसे उम्मीद है कि वह, वह करिश्मा पुनः दोहरा लेगी जो उसने चंद माह पहले आम चुनाव में दिखाया था। हालांकि इस बाद की संभावना पर ग्रहण हालिया उपचुनावों से लग गया है। इन उपचुनावों में भाजपा को झटका लगा है। उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, बिहार में वह अपनी उन सीटों को दुबारा नहीं जीत पायी जो उसके पास पहले से थी। नरेन्द्र मोदी का नशा अब हैंग ओवर बन चुका है।
भारत की घृणित पूंजीवादी राजनीति में गठबंधनों का बनना और टूटना सत्ता के समीकरणों से तय होता है। उसमें आम मेहनतकश के हित कहीं से नहीं होते हैं। महाराष्ट्र के गठबंधन बने भी इसीलिए थे और टूट भी इसलिए रहे हैं। इसमें कहीं से भी कोई सकारात्मक नहीं है। शिवसेना को भाजपा वाले ऐसे काले कौवे लग रहे हैं जो उनका साथ छोड़कर भाग गये। वे कह रहे हैं, ‘‘जो उड़ चले वे कौवे हैं और जो साथ रह गये वे अपने हैं’’। अब उन्हें गुजराती नेतृत्व (नरेन्द्र मोदी और अमित शाह) वाली भाजपा ‘मराठी मानुस’ की दुश्मन सरकार नजर आ रही है। इस तरह से घृणित पूंजीवादी राजनीति की सडांध रिस-रिस कर बाहर आ रही है। अभी चुनाव के पहले और सत्ता में काबिज होेने के लिए क्या-क्या घृणित खेल जायेंगे, यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है। भारत की जनता उकता चुकी है पर अभी वह इस नाटक को, नूरा कुश्ती के तमाशे को बंद नहीं कर रही है।  

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