Tuesday, December 16, 2014

सी.आई.ए. द्वारा कैदियों का उत्पीड़न व अमेरिकी साम्राज्यवादी

वर्ष-17,अंक-24(16-31 दिसम्बर, 2014)    
अमेरिका में जहां एक ओर पुलिस द्वारा एक निहत्थे अश्वेत नौजवान को मारे जाने के विरोध में अमेरिकी जनता 4 महीनों से सड़कों पर उतरी हुयी है वहीं दूसरी ओर संसद में सी.आई.ए.(अमेरिकी खुफिया एजेंसी) द्वारा कैदियों के उत्पीड़न पर रिपोर्ट जारी किये जाने के बाद समाज में हंगामा है। इस रिपोर्ट में बुश काल में सी.आई.ए. द्वारा कैदियों के साथ किये गये घोर अमानवीय उत्पीड़न को प्रदर्शित किया गया। पर अमेरिकी सरगना बराक ओबामा को न तो प्रदर्शनकारियों का डर है और न उन देशों के नागरिकों का जिनके निवासियों को सी.आई.ए. द्वारा उत्पीड़न किया गया। पहले ओबामा ने घडि़याली आंसू बहाते हुए यह कहा कि अमेरिका में अभी भी अश्वेतों के साथ सम्मान का व्यवहार नहीं होता पर ओबामा नवयुवक के हत्यारे गोरे पुलिस वाले को ज्यूरी द्वारा मुक्त किये जाने के खिलाफ कुछ नहीं बोले। कुल मिलाकर ओबामा ने भी पुलिस वाले पर मुकदमा चलाने से मुंह मोड़ लिया। अब जब सी.आई.ए. के कुकर्मों की रिपोर्ट जारी हुई तो भी ओबामा ने सी.आई.ए. के अधिकारियों की रक्षा करते हुए उन पर कोई कार्यवाही न करने की बात करते हुए केवल इतना कहा कि अब हमें इस तरह कैदियों का उत्पीड़न बंद कर देना चाहिए क्योंकि इससे दुनिया में अमेरिका की गलत छवि जाती है। 

    सी.आई.ए. द्वारा कैदियों के उत्पीड़न की जांच अभी केवल ओबामा से पूर्ववर्ती बुश काल की ही की गयी है। यह रिपोर्ट इस बात की संभावना भी दिखलाती है कि ओबामा काल में भी सीआईए ने इस तरह का उत्पीड़न ओबामा के इशारे पर जारी रखा हो। रिपोर्ट जारी करने से पहले अमेरिकी सरकार ने ढे़र सारी तैयारियां कीं। उसे डर था कि रिपोर्ट जारी होेने के बाद उन देशों की जनता में अमेरिका का विरोध बढ़ जायेगा जहां के नागरिकों का उन्होंने उत्पीड़न किया है इसलिए अमेरिका ने किसी भी संभावित खतरे से निपटने के लिए अपनी सैन्य टुकडि़यों को रेड अलर्ट पर रखते हुए कार्यवाही के लिए तैयार रहने को कह दिया। 
    रिपोर्ट के बाद पाकिस्तान, अफगानिस्तान, मध्य एशिया के देशों में अमेरिका का विरोध बढ़ने की संभावना जतलाई गयी थी। ईराक में अमेरिका के मौजूदा सैन्य अभियान पर भी हमले के संकेत दिये गये थे।
    रिपोर्ट में कैदियों के उत्पीड़न की सभी हदें पार करने की बातें सामने आयी हैं। शारीरिक मारपीट तो इसका सबसे सभ्य हिस्सा है। मारपीट के दौरान कैदियों के गुदा द्वार से सामग्री भीतर डालना, कैदियों को बेल्ट से लपेट कर लटकाना, बर्फीले पानी में डुबोना, ऐसे डिब्बे में ठूंस देना जहां व्यक्ति घंटों हिल ही न सके आदि शारीरिक उत्पीड़न के कुछ तरीके थे। इससे आगे बढ़कर कैदी को यह धमकी देना कि उसे कोई कानूनी मदद नहीं मिलेगी, कि उसके घरवालों को मार डाला जायेगा, कि उसके परिवार की महिलाओं का यौन उत्पीड़न किया जायेगा। आदि धमकाने के कुछ आम तरीके थे। पर सीआईए को इस पर भी चैन नहीं मिलता था तो उसने दो डाक्टर नियुक्त कर रखे थे जो कैदियों को अवसाद में जाने की दवाइयां देते थे, उन्हें जबरन बीमार बनाते थे। डाक्टरों की इस सेवा के लिए उन्हें भारी तनख्वाह दी जाती थी। उत्पीड़न के इस चरम का परिणाम यह होता था कि कई कैदी तो उत्पीड़न के दौरान ही मर जाते थे या ढ़ेरों आत्महत्या करने का प्रयास करते थे। 
    ये खबरें मीडिया के जरिये बाहरी दुनिया में न जायें, सीआईए इसका भी पूरा इंतजाम करती थी। वह मीडिया में अपने एजेंट नियुक्त कर ऐसे पत्रकारों से सम्बन्ध बनाती थी जो उत्पीड़न कार्यक्रमों के समर्थक हों और उनके जरिये अपनी कार्यवाहियों की झूठी भली दिखने वाली रिपोर्टिंग छपवाती थी। आज जब अमेरिकी साम्राज्यवादियों के जनवाद-शांति के मुखौटे से नकाब की एक परत इस रिपोर्ट से उतर गयी है तब भी ओबामा के नेतृत्व में साम्राज्यवादी अपनी हरकतों से बाज आने को तैयार नहीं हैं। ओबामा का इस तरह के उत्पीड़न का केवल बंद करने का आश्वासन देना इसी को दिखलाता है कि अमेरिकी साम्राज्यवादी अपनी पूंजी व वैश्विक विस्तार के मंसूबों के लिए ये कार्यवाही आगे भी जारी रखेंगे। 
    अमेरिका में अश्वेत नवयुवक की पुलिस द्वारा हत्या के विरोध में उतरे प्रदर्शनकारियों को भी ये अहसास करना होगा कि अमेरिकी फौजें, सीआईए जो कुछ दुनिया भर की मासूम जनता के साथ करती है, उसका एक छोटा हिस्सा अमेरिकी जनता पर बरपाया जाना लाजिमी है। इसीलिए श्वेत पुलिस वालों पर कार्यवाही के साथ अमेरिकी साम्राज्यवाद को भी कठघरे में खड़ा करना जरूरी है। 

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