Monday, December 1, 2014

नस्लीय उत्पीड़न के खिलाफ अमेरिका में फूटा जनाक्रोश

वर्ष-17,अंक-23 (01-15 दिसम्बर, 2014)    
एक बार फिर नस्लीय उत्पीड़न के खिलाफ अमेरिका में अश्वेत आबादी का आक्रोश फूट पड़ा है। मौजूदा जनाक्रोश एक अफ्रीकी मूल के अमेरिकी किशोर माइकल ब्राउन की हत्या के आरोपी डैरेन विल्सन को स्थानीय जूरी के द्वारा आरोप मुक्त कर, बरी करने के बाद फूटा। 24 नवम्बर को जूरी ने माना कि हत्यारोपी डैरेन विल्सन ने आत्मरक्षा में माइकल ब्राउन पर गोली चलाई थी। यह बात सामने आई है कि 18 वर्षीय किशोर माइकल ब्राउन निहत्था था और उस पर गोलियां तब चलाई र्गइं जब उसने हाथ ऊपर किये हुए थे। 
    यह भी गौरतलब है कि जूरी के फैसले के पहले 21 अगस्त को माइकल ब्राउन की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ कि ब्राउन को एक बार बहुत निकट से हाथ में और कुल छः बार गोली मारी गयी। 

    अमेरिका में ग्रैंड जूरी का गठन समाज के कुछ गणमान्य लोगों के बीच से किया जाता है जो सामान्यतः अभिजात होते हैं। जूरी इस बात का निर्धारण करती है कि किसी मामले में मुकदमा चलाने लायक पर्याप्त साक्ष्य हैं या नहीं अथवा कोई मामला आपराधिक बनता है या नहीं। इस मामले में जो ग्रैंड जूरी गठित की गयी थी उसके 12 सदस्यों में से 9 श्वेत (6श्वेत पुरुष व तीन श्वेत महिलायें) तथा 3 अश्वेत (1 महिला तथा 2 अश्वेत पुरुष) थे। 
ग्रैंड जूरी का निर्णय अमेरिका की अश्वेत आबादी के लिए भौंचक्का कर देने वाला था। 24 नवम्बर को ग्रैंड जूरी का फैसला आते ही इसके खिलाफ आक्रोश फूट पड़ा। गुस्साये लोगों ने कई जगह पुलिस कार सहित कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया। फ़र्गसन उपनगर में हिंसक प्रदर्शन हुए। हजारों की संख्या में अमेरिका के अलग-अलग इलाकों में लोगों ने रैलियां निकालीं। प्रदर्शनकारी अपने हाथों में जो बैनर व तख्तियां लिए हुए थे उनमें लिखा था- ‘‘हैंडस अप डोंट शूट’’ (माइकल ब्राउन गोली मारे जाते वक्त हाथ ऊपर किये था), ‘‘ब्लैक लाइब्ज मैटर्स’’ (अश्वेत लोगों के जीवन का भी मूल्य है), ‘‘जस्टिस फाॅर माइकल ब्राउन’’ (माइकल ब्राउन को न्याय दो), ‘‘जेल आॅफिसर डैरेन विल्सन फाॅर मर्डर’’ (पुलिस अधिकारी डैरेन विल्सन को हत्या के लिए जेल भेजो), ‘‘स्टाॅप रेसिस्ट पोलिस टेरर’’ (नस्लीय पुलिस आतंक बंद करो) आदि। 
न्यूयार्क से लेकर फिलाडेल्फिया, कैलिफोर्निया, ओकलैंड और राजधानी वाशिंगटन डी. सी. में राष्ट्रपति भवन में ये प्रदर्शन हुए। फ़र्गसन में भारी संख्या में नेशनल गार्ड तैनात कर दिये गये। अधिकारियों को जूरी के फैसले का पूर्वानुमान पहले से होने का आभास मिलता है क्योंकि जूरी के फैसले से पहले फ़र्गसन में भारी संख्या में नेशनल गार्ड बुला लिये गये थे तथा प्रांतीय गवर्नर निक्सन ने 17 नवम्बर को आपातकाल की घोषणा कर दी थी। देश भर में अश्वेत आबादी के आक्रोश के बीच राष्ट्रपति ओबामा सामने आये और उन्होंने प्रदर्शनकारियों से शांति की अपील की। 
वैसे 9 अगस्त को डैरेन विल्सन द्वारा माइकल ब्राउन की हत्या के बाद से ही अमेरिका में अश्वेतों का गुस्सा फूट पड़ा था। 18 वर्षीय माइकल ब्राउन दो दिन बाद ही काॅलेज में दाखिला लेने वाला था। माइकल ब्राउन की हत्या के अगले दिन 10 अगस्त को गुस्साये लोगों ने उग्र प्रदर्शन किया तथा एक दर्जन के लगभग व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को ध्वस्त कर दिया। 11 अगस्त को उग्र प्रदर्शन जारी रहे तथा 12 अगस्त को राष्ट्रपति ओबामा ने न्याय विभाग द्वारा जांच का आश्वासन दिया और शांति बनाये रखने की अपील की। इसके बाद फग्र्यूसन में भारी संख्या में नेशनल गार्ड तैनात कर दिये गये व गवर्नर निक्सन ने आपात काल की घोषणा कर दी। 16 अगस्त को सेन्ट लुइस ग्रामीण इलाके की ग्रैंड जूरी ने सुनवाई आरम्भ की तथा जूरी ने 24 अगस्त को अपना कुख्यात फैसला सुनाया। 
फ़र्गसन में जहां मुख्यतः अफ्रीकी मूल की अश्वेत आबादी रहती है, अभी भी गुस्सा उबल रहा है। लोग चाहते थे कि पुलिस अधिकारी डैरेन विल्सन पर हत्या का मुकदमा चलाये परन्तु ग्रैंड जूरी के निर्णय के बाद यह साफ हो गया है कि यह हत्यारोपी पुलिस अधिकारी अब आपराधिक आरोप में अभियुक्त नहीं बनाया जा सकेगा।    
माइकल ब्राउन की नृशंस हत्या के बाद राष्ट्रपति ओबामा के बयानों का अश्वेत आबादी पर कोई असर नहीं हुआ। आज अमेरिका की आबादी में अफ्रीका की अश्वेत आबादी के लोग ही सर्वाधिक शोषित वंचित हैं और अश्वेत आबादी के सामने अब यह अत्यधिक स्पष्ट होता जा रहा है कि बराक ओबामा भले ही अश्वेत हों लेकिन वे बहुसंख्य शोषित वंचित अश्वेत आबादी का प्रतिनिधित्व नहीं करते बल्कि वे अमेरिकी काॅरपोरेट जगत के प्रतिनिधि हैं। उन्हें अश्वेत आबादी के दुःख, दर्द, वंचना से कुछ लेना-देना नहीं है। अमेरिकी साम्राज्यवादी व कारपोरेट हितों के खातिर वे अफ्रीकी अश्वेत मुल्कों सहित दुनिया भर में भयानक हिंसक अभियान व युद्धों को संचालित कर रहे हैं, जिसमें हजारों लाखों की संख्या में लोग हताहत हो रहे हैं। अपने देश में अश्वेत आबादी के बीच महज लोकप्रियता हासिल करने व व्यवस्था के रक्षा कवच का दायित्व निभाते हुए ही वह घडि़याली आंसू बहाते हैं तथा दुःख प्रकट करते हैं। 
माइकल ब्राउन की नृशंस हत्या ने अमेरिकी लोकतंत्र के क्रूर और भयानक नस्लवादी स्वरूप को एक बार फिर उजागर किया है। इसने ट्रेवन मार्टिन की याद ताजा कर दी। दो वर्ष पूर्व फरवरी 2012 में ट्रेवन मार्टिन नामक अफ्रीकी मूल के एक अश्वेत किशोर की एक श्वेत बंदूकधारी जिम्मर मैन ने गोलियों से भून कर हत्या कर दी थी। 20 वर्षीय अश्वेत किशोर ट्रेवन मार्टिन को गोली तब मारी गई जब वह एक जनरल स्टोर से जूस व कैंडी खरीदकर निकल रहा था। महज चोरी के शक में जिम्मर मैन ने उसे गोलियों से भून डाला था। उसके बाद एक स्थानीय जूरी ने जिम्मर मैन को यह कहते हुए आरोप मुक्त कर दिया कि जिम्मर मैन ने आत्मरक्षा में गोलियां चलायीं। यहां भी मृतक किशोर ट्रेवन मार्टिन निहत्था था। ट्रेवन मार्टिन की नृशंस हत्या पर अश्वेत आबादी का गुस्सा फूट पड़ा था। अमेरिका के कई शहरों में उग्र प्रदर्शन हुए। व्यवस्था के रक्षक के रूप में बराक ओबामा सामने आये थे और उन्होंने प्रसिद्ध मार्मिक बयान दिया था- ‘‘35 वर्ष पहले मैं भी ट्रेवन मार्टिन हो सकता था।’’ वक्त ने साबित किया कि ओबामा के ये उदगार केवल घडि़याली आंसू बहाने वाले ही थे। 
अश्वेत अमेरिकी मूल के लोगों के साथ अमानुषिक भेदभाव व उनका उत्पीड़न अमेरिकी समाज में आज भी कायम है। समाज से लेकर संस्थानिक ढांचों में नस्लीय नफरत खासकर अफ्रीकी मूल के अश्वेतों के प्रति घृणा भाव मौजूद है। सत्ता प्रतिष्ठान भी इससे अछूते नहीं हैं। अश्वेत आबादी के अमेरिका में अल्पसंख्यक होने के बावजूद अमेरिकी जेलों में अफ्रीकी मूल के अश्वेतों की संख्या बहुसंख्यक है। अमेरिका में सर्वाधिक शोषित वंचित लोगों में अश्वेत अफ्रीकी मूल के लोगों की संख्या ही सर्वाधिक है। 2007 में आवास बुलबुले और उसके बाद से जारी संकट में सबसे ज्यादा संख्या में अश्वेत ही बेघर हुए हैं। बहुसंख्यक श्वेत आबादी में आज भी न केवल अश्वेत आबादी के लिये घृणा का भाव है बल्कि वह अश्वेतों को जन्मजात चोर, उचक्के, गंदे व अपराधी समझती है। अतः महज शक के आधार पर अश्वेतों को गोली से भून देना श्वेत अमेरिकी आबादी के लिए बहुत सामान्य बात है। 
अश्वेतों के साथ बर्बरता व सत्ता तंत्र के पूर्वाग्रहों की झलक रोडनी किंग की बर्बर पिटाई व बाद में दोषियों को बरी कर देने के मामले में पूरी दुनिया ने देखी थी। मार्च 1991 में एक अश्वेत निर्माण मजदूर को जमीन पर गिराकर बुरी तरह पीटते हुए पांच श्वेत पुलिस अधिकारी एक वीडियो में स्पष्ट दिखाई दिये। वीडियो पास के ही एक बिल्डिंग से एक प्रत्यक्षर्शी ने बनाया था जिसे उसने बाद में समाचार एजेंसियों को पोस्ट कर दिया था। इस वीडियो के बाद अफ्रीकी मूल के अमेरिकियों ने व्यापक प्रदर्शन किये लेकिन हैरत की बात यह है कि एक स्थानीय जूरी ने आरोपियों को दोषमुक्त करार दिया था। इस घटना की अमेरिका की पूरी अश्वेत आबादी के बीच तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। अंततः तीखे विरोध प्रदर्शनों के बाद चार अफसरों पर घातक हथियारों के इस्तेमाल व अत्यधिक पिटाई करने के आरोप के तहत संघीय जिला अदालत में मुकदमा चला। अप्रैल 1993 में संघीय अदालत ने दो अफसरों को अपराधी ठहराकर जेल भेजा जबकि दो को दोषमुक्त करार दिया गया। अमेरिका में रोडनी किंग पिटाई प्रकरण ने अश्वेतों के दबे हुए आक्रोश को सतह पर ला दिया था। 1992 में लाॅस एंजिलिस दंगों के रूप में इस आक्रोश ने विस्फोटक रूप धारण कर लिया, जिसमें 53 लोग मारे गये तथा 200 के लगभग घायल हुए। 
नस्लीय भेदभाव का दंश अमेरिका में कितना तीखा है, इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिका के प्रख्यात अश्वेत मुक्केबाज व ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता केसियस क्ले को भी ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता होने के बावजूद नस्लीय भेद व अपमान का शिकार होना पड़ा था। दुःखी और क्षुब्ध होकर केसियस क्ले ने अपना स्वर्ण पदक ओहियो नदी में बहा दिया था तथा धर्म परिवर्तन कर अपना नाम मोहम्मद अली रख लिया था। तब से लेकर आज तक नस्ल भेद में कोई अंतर नहीं आया है हालांकि कहने को अमेरिका को एक अश्वेत राष्ट्रपति जरूर मिला लेकिन ओबामा का अश्वेत होना नस्लीय चेहरे पर नकाब के समान है। 
आज भी अमेरिका में माइकल ब्राउन व ट्रेवन मार्टिन की घटनायें कुछ विशिष्ट अपवाद नहीं हैं। नस्लीय भेद की खबरें बराबर सुर्खियों में छायी रहती हैं। हाल में अमेरिकी बास्केट बाॅल संघ (छठ।) में नस्लीय भेदभाव को लेकर एक प्रमुख क्लब लाॅस एंजिलिस क्लिपर्स के मालिक खासे चर्चा में रहे। लाॅस एंजिलिस क्लिपर्स के मालिक डोलाल्ड स्टर्लिंग का एक वीडियो रिकाॅर्डिंग सार्वजनिक हुई, जिसमें वे अपनी महिला मित्र को यह हिदायत देते हुए नजर आये कि अश्वेत अफ्रीकी मूल के खिलाडि़यों के साथ वह फोटो न खिंचवायें। मामला तूल पकड़ने के बाद स्टर्लिंग से लाॅस एंजिलिस क्लिपर्स का मालिकाना छीन लिया गया। डोलाल्ड स्टर्लिंग पर इससे पहले भी नस्लभेदी व्यवहार के आरोप लगे। उसने अफ्रीकी मूल के अमेरिकियों को अपने लाॅस एंजिलिस स्थित आवासीय अपार्टमेन्ट में किराये पर कमरा देने से मना कर दिया था। इसके लिये स्टर्लिंग को भारी भरकम जुर्माना भी भरना पड़ा था लेकिन उसके बावजूद अश्वेतों के प्रति उसके व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया। अश्वेत महिलाओं के प्रति भी स्टर्लिंग अश्लील व अभद्र टिप्पणियां खुलेआम करता था। राष्ट्रीय बाॅस्केट बाॅल एसोसिएशन के प्रमुख इसे वर्षों तक बर्दाश्त करते रहे। 
अमेरिकी राष्ट्रीय फुटबाॅल लीग का प्रबंधन भी नस्लीय भेदभाव के आरोप में आलोचना के केन्द्र में आया है। राष्ट्रीय फुटबाॅल लीग के प्रबंधन पर अपने श्वेत खिलाड़ी बाल्टीमोर के रैवन स्टार रे राइस पर अपनी अश्वेत मंगेतर पर की गई हिंसा पर चुप्पी साध लेने व उसे प्रतिबंधित करने से बचने का आरोप है। आलांटा सिटी के एक होटल में रे राइस ने अपनी मित्र जैनी पामर को इतनी जोर से घूंसा मारा कि वह होटल के अंदर बेहोश होकर गिर गई और काफी देर तक बेहोश रही। यह घटना फरवरी की है। इस घटना का वीडियो लीक हो जाने के बाद ही राइस पर कार्रवाई हुई और उसे खेल से आजीवन प्रतिबंधित किया गया। 
इस तरह की घटनायें समय-समय पर समाने आती रहती हैं। 2007 के बाद से अमेरिका में नस्लीय हिंसा में उभार आया है। अफ्रीकी और एशियाई मूल के लोगों के खिलाफ हिंसा बढ़ी है। अमेरिकी समाज में पैदा हो रहे आर्थिक, सामाजिक संकटों के लिए अफ्रीकी व एशियाई मूल के लोगों को जिम्मेदार समझा जा रहा है। पूंजीवाद का संकट फासीवाद के लिए उर्वर जमीन तैयार करता है। अमेरिका में नस्लीय हिंसा का विचार यूं ही पैदा नहीं हो रहा है बल्कि नस्लीय हिंसा को बढ़ावा देने वाले संगठन वहां पहले से मौजूद हैं। ऐसा ही एक नस्लवादी हिंसा फैलाने वाला संगठन ‘कू क्लक्स क्लैन’ है। यह एक भूमिगत संगठन है। लम्बे समय से यह माना जा रहा था कि यह संगठन अब मृतप्रायः है लेकिन 2008 से इस संगठन ने अपनी उपस्थिति दिखानी शुरु कर दी है।   
2008 में ओबामा के राष्ट्रपति बनने पर इस संगठन ने नस्लीय घृणा की नई लहर पैदा करने की कोशिश की। दीवारों पर नस्लीय हिंसा की टिप्पणियां, धमकी भरे फोन, तोड़-फोड़ व हिंसक घटनाओं के साथ इसने जबर्दस्त घृणा अभियान संगठित किया। बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद से एक माह के भीतर हत्या, तोड़-फोड़, आगजनी आदि की 200 घटनायें हुईं। उसके बाद ये घटनायें थोड़ा रुक गईं। शायद ओबामा के अश्वेत होने पर जिस श्वेत वर्चस्व के कमजोर पड़ने की आशंका से ये घटनायें अंजाम दी जा रही थीं वह निर्मूल साबित हुईं। ओबामा की चमड़ी का ही रंग काला था, भीतर से वे पूरी तरह श्वेत ही थे। श्वेत औपनिवेशिक मानसिकता व मूल्यों से ओतप्रोत अश्वेत अमेरिकी। ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिकी जेलों में बंद अश्वेतों की संख्या में कोई कमी नहीं आयी। आज भी वे अमेरिकी जेलों में बहुसंख्यक हैं और महज शक के आधार पर या मामूली बातों के लिए जेल में सड़ने को विवश हैं। 
अश्वेत अमेरिकी जनता के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले ब्लैक पैंथर्स के नेता ‘मुमिआ अबु जमाल’ वर्षों से मृत्युदंड व आजीवन कारावास को बहस का मुद्दा बनाते हुए जेल में बंद हैं। ओबामा के लिए अबु जमाल की रिहाई एक मुश्किल सवाल है जिससे वे पिछले 6 सालों से बचते रहे हैं। 
बहरहाल अमेरिकी समाज में नस्लीय व फासीवादी प्रवृत्तियां जोरों पर हैं। कू क्लक्स क्लैन की 2008 में सदस्यता 6 हजार थी जो अब बढ़ती पर है। ओबामा को जनता ने काले होने के कारण वोट नहीं दिया था, हालांकि अश्वेतों ने जरूर उन्हें अपना आदमी समझा था। अमेरिका को आर्थिक संकट से निकालने के उनके आश्वासन के कारण, अमेरिकियों को सम्पन्नता की तरफ ले जाने, युद्ध खत्म करने व इराक से सेना वापस बुलाये जाने जैसे लोकप्रिय मुद्दों पर ही ओबामा ने चुनाव लड़ा व जीता था। 
आज ओबामा के सुनहरे वादे झूठे साबित हो रहे हैं, आर्थिक संकट फिर मुंह बायंे खड़ा है। ऐसे में सामाजिक संकट भी गहरा रहा है। इसकी अभिव्यक्ति नस्लीय हिंसा व नफरत की बढ़ती घटनाओं से मिल रही है। अमेरिकी ही नहीं यूरोप में भी फासीवादी उभार व नस्लीय हिंसा की घटनायें बढ़ रही हैं। कुछ समय पहले लंदन में हुए नस्लीय असंतोष व हिंसा की घटनाओं को भूला नहीं जा सकता। 
संकटग्रस्त पूंजीवाद फासीवाद का वरण करता है। विश्व आर्थिक संकट के मौजूदा दौर में एक बार फिर वैश्विक स्तर पर फासीवादी उभार दिखाई दे रहा है। ऐसे में केवल मजदूर वर्ग की संगठित ताकत व वर्ग संघर्ष को आगे बढ़ा कर ही इसे पीछे धकेला जा सकता है। 

No comments:

Post a Comment