Tuesday, December 16, 2014

भोपाल गैस त्रासदी के तीन दशक पूरे होने पर मोदी ने दिया देशवासियों को मौत का तोहफा

देश में कम से कम 12 परमाणु संयंत्र लगाने के समझौते पर मोदी ने किये हस्ताक्षर 
वर्ष-17,अंक-24(16-31 दिसम्बर, 2014)
    3 दिसम्बर 2014 को भोपाल गैस त्रासदी को तीन दशक पूरे हो चुके हैं। इस त्रासदी में हजारों लोग मारे गये और लाखों आज भी इस त्रासदी का दंश झेलने को मजबूर हैं। वहां की मिट्टी, हवा, पानी में आज भी जहरीले अंश मौजूद हैं। इस परमाणु विकरण के कारण वहां अपंग बच्चे पैदा हो रहे हैं। इस त्रासदी के शिकार हजारों मृतकों के परिजन व पीडि़त और प्रभावित लोगों की आंखें न्याय की आस में पथरा गईं। आज भी भोपाल की जनता इस त्रासदी के दंश को झेल रही है। वहां की जमीन, हवा, पानी उस त्रासदी के जहर को अपने भीतर समाये हुए है। इस कांड के आरोपियों व कम्पनी को आजाद भारत की सरकारों ने कभी भी न्याय के कटघरे में खड़ा करने की कोशिश नहीं की, बल्कि उन्हें भगाने में पूरी सुविधा और सहयोग दिया। राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वयं उन्हें बड़ी शान के साथ विमान में बैठाने गये जैसे वह किसी हत्यारे, अपराधी की नहीं बल्कि किसी सम्मानित व्यक्ति की विदाई हो। मुख्य आरोपी एण्डरसेन को पिछले तीन दशकों में कभी भी अदालत में पेश नहीं किया जा सका और जनता की उसको दण्डित करने की आशा उसकी मौत के बाद पूरी नहीं हो सकेगी क्योंकि एक भरा-पूरा जीवन जी कर वह इस दुनिया से विदा हो चुका है और इस भीषण हत्याकांण्ड के अन्य आरोपियों में से किसी को भी कोई सजा नहीं मिली। 
    आज भी भोपाल सहित पूरे देश की जनता के सामने यह सवाल है कि क्या भोपाल गैस त्रासदी के पीडि़तों के घावों पर मरहम लगाने के लिए उन्हें सम्मानजनक मुआवजा भी मिल पायेगा। क्या भोपाल गैस त्रासदी के जैसे और हत्याकांड रचे जायेंगे या नहीं। 

    लेकिन पूंजीपतियों और उनकी सरकारों को इस बात की क्यों और कब चिंता होने लगी। उन्हें तो भरपूर मुनाफा और डालर चाहिए। कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने संसद में रमाणु विधेयक बिल पास कर करोड़ों जनता के स्वास्थ्य व जीवन की कीमत पर देशी-विदेशी पूंजीपतियों को अरबों-खरबों कमाने की छूट दी। वैसे पूंजीपति वर्ग के लिए मेहनतकश जनता की जान की कीमत कीड़े-मकोड़ों से ज्यादा नहीं होती। 
    भोपाल गैस त्रासदी की जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड एक विदेशी अमेरिकन कम्पनी थी, जिसे इस घटना के बाद डाव कैमिकल्स ने खरीद लिया है। और दोनों कम्पनियां उस दुर्घटना की हर जिम्मेदारी से बचना चाहती हैं।  
    यह विडम्बना है कि चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना के बाद फुकुसिमा के परमाणु संयत्र से खतरनाक परमाणु विकरण के बाद जहां सारी दुनिया में ऊर्जा के इस रूप को अमान्य घोषित किया जा चुका है वहीं भारत सरकार ने इसे एक मौके के रूप में देखा है। फुकुसिमा के परमाणु संयत्र में हुई दुर्घटना के बाद भी भारत सरकार ने इससे कोई सबक नहीं लिया। यूकिको ताकाशाही जिसका घर फुकुसिमा में है, उसने भी भारत के प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर परमाणु संयंत्र से होने वाली दुर्घटना के संबंध में गम्भीर चिंता जाहिर की है। इस सबके बावजूद भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विदेश से भारतीय मेहनकशों के लिए मौत का तोहफा खरीद लाये हैं और इस मौत को खरीदकर बहुत खुश भी हैं। रूस के साथ भारत सरकार ने 12 से अधिक नये परमाणु संयत्र लगाने व ऐसे ही 20 अन्य समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं, जिनमें से एक कुडनाकुलम है। 
    लम्बे समय से कुडनाकुलम की जनता इस परमाणु संयंत्र को बंद करने के लिए संघर्षरत्त है, जिसका भयंकर दमन किया जा रहा है। और आंदोलन में शामिल 5000 लोगों पर देशद्रोह का मुकदमा लाद दिया गया है, जो कि पूरी दुनिया में एक मिसाल है।  
    और भोपाल गैस त्रासदी की बरसी 3 दिसम्बर के केवल एक सप्ताह बाद की भारत के पूंजीपरस्त शासक वर्ग के नुमाइंदे नरेन्द्र मोदी ने पूंजीपतियों की पूंजी को और बढ़ाने के बदले में करोड़ों भारतवासियों की जान को जोखिम में डाल कर रूस के साथ एक शर्मनाक समझौता किया है, जिसमें रूस 2035 तक भारत में कम से कम 12 परमाणु संयंत्र लगायेगा। इसके लिए उपकरण भी भारत में तैयार किये जायेंगें। परमाणु सहयोग पर रणनीतिक दृष्टि के दस्तावेजों में कहा गया है कि दोनों पक्षों ने उन परमाणु बिजली घरों के तेजी से क्रियान्वित करने का निर्णय लिया है।  
    भोपाल गैस त्रासदी के तीन दशक बाद भारत के शासक वर्ग व उसके नुमाइंदों ने रूस के साथ देश में और परमाणु संयत्र लगाने के समझौते पर हस्ताक्षर कर देश में अनगिनत हत्याकाण्ड रचने का इंतजाम कर लिया है।   

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