Saturday, November 1, 2014

विशेष रिपोर्ट राजधानी को हिन्दुत्व की प्रयोगशाला बनाने की साजिश

वर्ष-17,अंक-21(01-15 नवम्बर, 2014) 

  त्रिलोकपुरी में साम्प्रदायिक दंगा
 अक्टूबर माह के अंतिम दिनों में पूर्वी दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके में साम्प्रदायिक तनाव की घटनायें हुई हैं। पिछले 2 महीनों में दिल्ली के कई इलाकों में साम्प्रदायिक तनाव भड़काने की कोशिशें हुई। लेकिन इस बार साम्प्रदायिक तत्व अपने इरादों में एक हद तक कामयाब हुए। त्रिलोकपुरी में एक छोटे से विवाद से शुरु हुई घटना ने बड़े पैमाने की हिंसा का रूप ले लिया। 2-3 दिन के भीतर इस साम्प्रदायिक तनाव का प्रसार कल्याणपुरी, खिचड़ीपुर व समयपुर बादली तक हो गया। 
    इस साम्प्रदायिक तनाव व हिंसा के कारणों को तलाशने व साम्प्रदायिक हिंसा से प्रभावित इलाकों का जायजा लेने के लिए विभिन्न जनवादी व प्रगतिशील संगठनों, जनपक्षधर बुद्धिजीवियों व पत्रकारों की एक तथ्यान्वेषी टीम ने दंगा प्रभावित त्रिलोकपुरी इलाके का दौरा किया। नागरिक संवाददाता भी इस टीम के हिस्सा थे। तथ्यान्वेषी टीम ने विभिन्न इलाकों का दौरा किया व हिंसा से प्रभावित कुछ लोगों से भी उन्होंने मुलाकात कर स्थिति का जायजा लिया। प्रस्तुत है इस तथ्यान्वेषी टीम द्वारा दंगा प्रभावित क्षेत्र की एक रिपोर्ट- 
    27 अक्टूबर को तथ्यान्वेषी टीम जब दंगा प्रभावित इलाके में पहुंची तो माहौल में एक तनावपूर्ण शांति दिखाई दे रही थी। मयूर विहार थाने में जब वहां ड्यूटी पर मौजूद अधिकारी से तथ्यान्वेषी टीम ने गिरफ्तार लोगों के संबंध में जानकारी मांगी तो उन्होंने स्पष्ट रूप से कोई जानकारी देने से मना कर दिया। त्रिलोकपुरी के ब्लाॅक 20 में सामान्य आवाजाही थी लेकिन तनाव मौजूद था। लोग अपने बच्चों को बाहर निकलने पर डांट-फटकार रहे थे। तथ्यान्वेषी टीम के सदस्यों ने अलग-अलग इलाकों में जाकर जानकारियां जुटाने का प्रयास किया। पुलिस के एक अधिकारी ने धारा 144 का हवाला देकर टीम को इलाके में घूमने से रोकने की कोशिश की और वापस लौटने को कहा। अंततः टीम दो-दो, तीन-तीन सदस्यों के रूप में बिखरकर अलग-अलग इलाकों में गई। पुलिस द्वारा टोका-टाकी बराबर होती रही। कुछ जगहों पर पास के बगैर घूमने पर प्रतिबंध की बात कहकर व मुख्य सड़कों को छोड़कर विभिन्न गलियों से होते हुए तथ्यान्वेषी टीमों ने अधिकाधिक लोगों तक पहुंचने का प्रयास किया। 

    त्रिलोकपुरी एक पुनर्वासित कालोनी है, जहां मुख्यतः दलित (वाल्मीकी) व मुस्लिम समुदाय के लोग रहते हैं। हमें बताया गया कि आपातकाल के दौरान तुर्कमान गेट, आश्रम व भोगल की झुग्गियों को तोड़ने के बाद वहां के कुछ लोगों को त्रिलोकपुरी व कल्याणपुरी में पुनर्वासित किया गया था। तुर्कमान गेट के लोगों को मुख्यतः त्रिलोकपुरी में और आश्रम व भोगल के लोगों को मुख्यतः कल्याणपुरी में पुनर्वासित किया गया। 
    यहां स्थानीय निवासियों में ज्यादातर लोग मेहनत मजदूरी करने वाले हैं। वाल्मीकी समुदाय के लोग रिक्शा, टैम्पो चलाने, फड़-खोमचे लगाने, कारीगर, मिस्त्री व नगर-निगम में सफाई कर्मचारी के रूप में तथा कुछ एक्सपोर्ट हाउस व नोएडा की फैक्टरियों में काम करते हैं। दूसरी तरफ मुस्लिम समुदाय के लोग मुख्यतः सिलाई-कढ़ाई व मजदूरी करते हैं। मुस्लिम आबादी यहां मुख्यतः ब्लाॅक-27 में रहती है। कुछ ब्लाॅकों में घुली-मिली आबादी रहती है। मुस्लिम व वाल्मीकी समुदाय के मोहल्ले अलग-अलग परन्तु अगल-बगल हैं। मुस्लिम आबादी अल्पसंख्यक स्थिति में है। 
    एक विशेष बात जो देखने में आयी थी वह यह थी कि हिन्दू इलाकों में तनाव कम था। वहां पुलिस की मौजूदगी नहीं के बराबर थी व कुछ तनाव के बावजूद चहल-पहल थी। टीम के पूर्व विधायक व भाजपा नेता सुनील वैद्य के घर के पास पहुंचने पर काफी संख्या में नौजवान इकट्ठा हो गये, जिनमें 12 से 20 साल के लड़के थे। इनमें तनाव का कोई चिह्न नहीं था। वे रोक-रोक कर टीम के सदस्यों से अपना इंटरव्यू लेने के लिए कह रहे थे। इन सबके बयान आश्चर्यजनक रूप से समानता लिये हुए थे। उनका कहना था कि वे अगली बार भाजपा को वोट देंगे क्योंकि वही उन्हें बचा सकती है। टीम के उस जगह पहुंचने पर जिस तरह अचानक 15-20 लड़कों का जत्था प्रकट हो गया और जिस तरह वे एक ही बयान दोहरा रहे थे इससे लगा कि शायद उस जगह पर कोई बैठक चल रही थी, जिसमें इन लड़कों को मीडिया से बयान देने के बारे में समझाया गया। 
    वाल्मीकी इलाके के बुजुर्ग व थोड़ा उम्रदराज लोगों से बातचीत में यह अनुभव हुआ कि उन्हें साम्प्रदायिक तनाव से परेशानी थी। वे ज्यादातर अपनी रोजी-रोटी व बच्चों के बारे में चिंतित थे और माहौल जल्दी सामान्य होने की उम्मीद कर रहे थे। महिलाओं में अशांति को लेकर परेशानी का भाव दिखा लेकिन वे एक हद तक अफवाहों व साम्प्रदायिक पूर्वाग्रहों के प्रभाव में दिखीं। 
    मुस्लिम इलाकों में इस साम्प्रदायिक तनाव का दूसरा मंजर दिखायी दिया। यहां पुलिस का कड़ा पहरा था, गलियों के गेटों पर पुलिस तैनात थी। ब्लाॅक 27 में पुलिस द्वारा लोगों को घरों से बाहर निकलने नहीं दिया जा रहा था। यहां अघोषित रूप से कर्फ्यू लगा था। टीम की महिला साथी किसी तरह यहां घुस पाई। ब्लाॅक 27 की एक महिला ने बताया कि उन्हें अपने घर से निकलने की अनुमति नहीं है इसलिए उन्हें किसी नुकसान का अनुमान भी नहीं है। घायलों व ब्लाॅक से गिरफ्तार लोगों के बारे में भी जानकारी नहीं मिल पायी। इस तरह इस ब्लाॅक के लोग बेहद बेबसी व सहायता की स्थिति में थे जो अपने परिजनों व पड़ोसियों के बारे में भी नहीं जानते थे। 
    त्रिलोकपुरी बस टर्मिनल के पास वह शोरूम था जिसे दंगाइयों ने जला ड़ाला था। इस साम्प्रदायिक तनाव के दौरान दो दुकानें जलायी गयीं, दोनों ही अल्पसंख्यक समुदाय की थीं। 
    ‘‘हमें दंगाइयों ने घेर लिया। जब हमने पुलिस को फोन किया तो पुलिस का कहना था कि हमें मामले में दखल देने का कोई आॅर्डर नहीं है। चार घंटे तक पत्थरबाजी चलती रही। कुछ बच्चे जख्मी हो गये लेकिन पुलिस तब भी मूकदर्शक बनी रही।’’ यह कहना है 27 ब्लाॅक की मदीना का जो 24 अक्टूबर की घटना की प्रत्यक्षदर्शी रही हैं। मदीना एक 22 गज के प्लाॅट में दुतल्ला मकान में रहती हैं। उनके साथ उनके दो लड़कों का परिवार व तीन किरायेदार भी रहते हैं जो जान के भय से उसी रात कहीं भाग गये। मदीना ने बताया कि अगले दिन जब पुलिस आयी तो उसके पास स्पष्ट निर्देश थे। पुलिस दरवाजा तोड़कर हमारे घर में घुसी। उसने हमें मारा-पीटा और सलमान को पकड़कर ले गयी। जब अगले दिन वे अपने छोटे बेटे जमील के साथ पुलिस स्टेशन में सलमान को खाना देने गयीं तो जमील को भी पकड़कर हवालात में डाल दिया। उसकी बुरी तरह पिटाई हुई और उसे अब जेल भेज दिया है। 
    27 ब्लाॅक में ही 25 अक्टूबर को तीन भाइयों को पुलिस ने उस वक्त गिरफ्तार कर लिया। जब वे खाना खा रहे थे। घटना का ब्यौरा देते हुए 16 वर्षीय आसमां (परिवर्तित नाम) ने बताया कि उसने भाइयों को पुलिस की पिटाई से बचाने की कोशिश की तो उसे भी बट से मारा गया। दो भाइयों को पुलिस ने 26 तारीख की रात को छोड़ दिया, ये नाबालिग थे। एक भाई का एक हाथ टूट गया है और उसमें सूजन है तथा दूसरा भाई चलने की स्थिति में नहीं है क्योंकि उसके पैरों के तलवों व एडि़यों में लाठियों से जबर्दस्त पिटाई की गयी है। 
    वहाउद्दीन 16 वर्ष का नौजवान है जो शादी-ब्याह की पार्टियों में खाना बनाने का काम करता है, तीन दिन बाद पुलिस कस्टडी से छूट कर आया है। नाबालिग होने के चलते उसे जेल में न भेजने की कृपा बख्श दी गई। वहाउद्दीन के माथे पर जख्म है, सिर पर चोट हैं जहां अभी भी खून जमा है। पूरे शरीर पर लाठियों के निशान पड़े हैं। वहाउद्दीन की कमीज जो उसने पहले पहनी थी, खून से सनी है। वहाउद्दीन दुकान से कुछ सौदा लेने गया था। वहीं से वह पुलिस के हत्थे चढ़ा। उसने बताया कि पुलिस ने भयंकर लाठियां चलायीं, गलियों, दुकानों व घरों से भी लड़कों को पकड़ा। 
    ब्लाॅक 34 से पुलिस ने लगभग 200 लोगों को उठाया। दो प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि 25 तारीख को पथराव से 15-20 मिनट पहले बजरंग दल का एक नेता प्रेमपाल तलवार लेकर 34 ब्लाॅक में आया और वहीं मुसलमानों के घर पूछने लगा। ‘हाथी’ ने उन्हें कुछ मुसलमान लोगों के घरों की पहचान करवाई। 
    प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि झगड़ा 24 अक्टूबर को शुरु हुआ। 200-250 लड़के भाजपा नेता व पूर्व विधायक सुनील वैद्य के नेतृत्व में जबर्दस्त नारेबाजी कर रहे थे। उन्होंने दो चौकों पर पत्थरबाजी की। लड़के ज्यादातर बाहर के थे। 20 ब्लाॅक से शुरु हुई पत्थरबाजी फैलती चली गई। 21 ब्लाॅक वालों ने 27 ब्लाॅक की झुग्गियों पर भी पथराव कर दिया। बचाव में मुस्लिम आबादी ने भी पथराव किया। पुलिस बहुत देर बाद हरकत में आयी और जब आयी भी तो कहर मुस्लिमों पर ही टूटा।             
    इलाके में पहले से गठित एक अमन कमेटी, जिसमें भाई नईम व यूनुस आदि थे, ने ब्लाॅक 27 में मुस्लिम समुदाय के लोगों को पथराव रोकने के लिए समझाया जबकि दूसरी ओर से लगातार पत्थरबाजी जारी थी। इन दानिशमंद व अमन पसंद लोगों की पहल का असर हुआ तथा कुछ समय बाद पथराव रुक गया।   
    लोगों ने बताया कि साम्प्रदायिक तनाव की घटनायें पहले भी होती थीं। पहले भी 27 व 28 ब्लाॅक के बीच पथराव हो जाता था लेकिन दो-तीन घंटे बाद सब सामान्य हो जाता था। लेकिन इस बार दंगा ज्यादा संगठित व योजनाबद्ध था। शीघ्र ही यह बड़े इलाके में फैल गया। त्रिलोकपुरी के सभी ब्लाॅकों, कल्याणपुरी, खिचड़ीपुर, संजय कैम्प तक इस साम्प्रदायिक तनाव का प्रभाव देखने को मिला। हर बार की तरह यहां भी बेहद सामान्य बातों पर झगड़ों को साम्प्रदायिक रूप दिया गया। 
    इस बार दंगा कैसे शुरु हुआ इसके बारे में अलग-अलग बातें सामने आयीं हैं। कुछ लोगों के अनुसार ब्लाॅक 20 में सामान्य कूड़ा फेंकने की जगह तथा दीपावली की रात को एक पूजास्थल पर जोर से लाउडस्पीकर बजाने को लेकर जबकि पास में दूसरे समुदाय के लोगों के पूजा स्थल पर नमाज अता की जा रही थी, जैसी बातों को लेकर तनाव शुरु हुआ। यह तनाव बढ़ते हुए पत्थरबाजी तक जा पहुंचा। 
    कुछ स्थानीय लोगों के अनुसार विवाद मंे भाजपा के पूर्व विधायक सुनील वैद्य ने हस्तक्षेप किया। बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं को भड़काने के लिए उसने घोषणा की कि उक्त कूड़ा फेंकने की जगह पर ही वे मंदिर बनायेंगे। हालांकि अखबारों में सुनील वैद्य ने इस आरोप का खंडन करते हुए कहा कि, ‘‘मेरे पास दीवाली की रात कुछ लोग यह शिकायत लेकर आये कि कुछ मुस्लिम अपराधी तत्व ‘माता की चौकी’ के कार्यक्रम को बाधित करने की कोशिश कर रहे हैं। मैंने एस. एच. ओ और ए.सी. पी. को उनकी शिकायत सुनने के लिए अपने आॅफिस में बुलाया’’। हालांकि बहुत कम लोग इस बयान को विश्वसनीय मानते हैं। 23 अक्टूबर की रात तनावपूर्ण गुजरी। 
    24 अक्टूबर को भारी संख्या में सुनील वैद्य के कार्यालय पर लोग इकट्ठा हुए तथा इन्होंने ब्लाॅक 20 पर पत्थरबाजी शुरु कर दी। तनाव अन्य इलाकों में भी फैल गया। पुलिस ने रात में 20 से अधिक नौजवानों को गिरफ्तार कर लिया। 24 की रात को त्रिलोकपुरी बस टर्मिनल के पास एक रेडीमेड कपड़े के शो-रूम ‘‘ए-टू-जेड’’ को आग के हवाले कर दिया। 
    25 अक्टूबर को पुलिस ब्लाॅक 27 में पहुंची। उन्होंने वहां खड़े वाहनों को तोड़ा तथा उसके बाद में वे संजय कैम्प में घुसे। उन्होंने बंद दरवाजों के ताले यह कहकर तोड़े कि भीतर आदमी छिपे हैं। ब्लाॅक 27 व संजय कैम्प में भारी संख्या में महिलायें चोटिल हुई हैं। लाठी के निशान उनके शरीर पर साफ दिखते हैं। घायल लोग गिरफ्तारी के भय से अस्पताल भी नहीं जा रहे हैं। यहां की दुकानें भी नहीं खुल रही हैं। स्थानीय आम आदमी पार्टी के विधायक इस दौरान पूरे समय नदारद रहे हैं। 
    25 अक्टूबर को तनाव तब और बढ़ा व पत्थरबाजी शुरु हुई जब तीन कांस्टेबल मस्जिद में जांच हेतु घुस गये। हालांकि पुलिस अधिकारियों ने बाद में इस घटना पर माफी मांग ली लेकिन इस घटना से मस्जिद पर हमले की अफवाह उड़ गई। इससे सामान्य होते हालात फिर बिगड़े तथा फिर पत्थरबाजी शुरु हो गयी। 
    26 का दिन शांत रहा लेकिन गिरफ्तारियों का सिलसिला चलता रहा। कुछ नाबालिगों को पुलिस द्वारा देर रात छोड़ दिया। 
    27 अक्टूबर तक ब्लाॅक 15 में कर्फ्यू लगा था तथा ब्लाॅक-27 में धारा 144 लगी थी। 
    इस पूरे प्रकरण में पुलिस की भूमिका बेहद अफसोसनाक रही। 24 अक्टूबर को वह चार घंटे तक मूकदर्शक बनी रही। 25 अक्टूबर को उसने भेदभावपूर्ण तरीके से कार्रवाई की। 27 ब्लाॅक में काम करने आये दिहाड़ी मजदूरों को भी उसने गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद 25 अक्टूबर को जूता पहनकर व बिना अनुमति के वह मस्जिद में घुस गयी। दोनों समुदाय (वाल्मीकी व मुस्लिम) के लोगों के प्रति, महिलाओं के प्रति अभद्र गाली-गलौच, घर में घुसकर बूढ़ों व महिलाओं की पिटाई जैसी चीजें पुलिस द्वारा अंजाम दी गयीं। पुलिस कस्टडी में भयंकर टार्चर व चुनिन्दा गिरफ्तारियां भी पुलिस के पूर्वाग्रहों व व्यवहार को दर्शाती हैं। पुलिस ए.सी.पी द्वारा 25 अक्टूबर को फायरिंग का आदेश, जिसमें दो बच्चे जख्मी हुए बताये जाते हैं, एक असंवेदनशील व अगंभीर कार्रवाई थी। अभी भी पुलिस ने मुस्लिम बहुल ब्लाॅकों 15 व 27 का अघोषित घेराव कर रखा है। कई ब्लाॅकों से मुस्लिम परिवारों की महिलाओं, बच्चों व नौजवानों का सुरक्षा के मद्देनजर रिश्तेदारों व सुरक्षित इलाकों में बड़े पैमाने पर पलायन हुआ है लेकिन हिन्दू कट्टरपंथी इसे भी मुस्लिमों द्वारा बदला लेने की साजिश कह कर प्रचारित कर रहे हैं।   
    फिलहाल त्रिलोकपुरी में स्थिति तनावपूर्ण शांति की है। 28 अक्टूबर को पुलिस द्वारा ब्लाॅक 15 में लोगों को घरों में घुसकर मारने-पीटने की खबरें आयी हैं। प्रशासन द्वारा मामले को लगातार और गम्भीर बनाया जा रहा है। प्रशासन की ओर से लोगों द्वारा घरों में पत्थर व बोतलें जमा करने की बातें की जा रही है तथा ड्रोन द्वारा निगरानी करने की बातें कहकर मामले को और सनसनीखेज बनाया जा रहा है। मुहर्रम के समय तक स्थिति के तनावपूर्ण रहने की आशंका जताई जा रही है। प्रगतिशील जनवादी तत्वों द्वारा स्थितियों को सामान्य बनाने व पीडि़तों को राहत व न्याय दिलाने के प्रयास किये जा रहे हैं। 
             दिल्ली संवाददाता 
नोट- सुरक्षा की दृष्टि से कुछ नाम परिवर्तित कर दिये गये हैं। 

No comments:

Post a Comment