Sunday, November 16, 2014

त्रिलोकपुरी के बाद अब बवाना में दंगों की साजिश

विशेष रिपोर्ट
वर्ष-17,अंक-22(16-30 नवम्बर, 2014)   
 पूर्वी दिल्ली के त्रिलोकपुरी में साम्प्रदायिक हिंसा की आग बुझ भी नहीं पाई थी कि बाहरी दिल्ली के बवाना में मोहर्रम के अवसर पर दंगा भड़काने की पूरी तैयारी कट्टरपंथी तत्वों द्वारा कर ली गयी थी। मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा हर वर्ष की तरह मोहर्रम के जुलूस को बवाना गांव में नहीं निकलने देने के लिए हिन्दू कट्टरपंथी तत्वों द्वारा हिंसक टकराव की धमकी दी गयी थी। मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधियों द्वारा 24 अक्टूबर को प्रशासन के सामने किसी अप्रिय व हिंसा की घटना को टालने के मद्देनजर बवाना गांव में मोहर्रम का जुलूस न निकालने का आश्वासन देने के बावजूद 2 नवम्बर को हिन्दू कट्टरपंथियों द्वारा बवाना में 52 गांवों की एक महापंचायत आयोजित कर मोहर्रम के दिन बवाना गांव में जुलूस व ताजिया न निकलने देने हेतु शक्ति प्रदर्शन किया गया। इस तरह मोहर्रम के दिन इस इलाके की शांति व हिन्दू-मुस्लिम भाई-चारे को नष्ट कर दंगा फसाद को अंजाम देने की पूरी तैयारी साम्प्रदायिक तत्वों द्वारा कर ली गयी थी। मोहर्रम के अवसर पर ‘‘नागरिक संवाददाता’’ ने बवाना जाकर तनाव ग्रस्त इलाके में वहां के स्थानीय लोगों से बातचीत कर स्थिति का जायजा लिया। प्रस्तुत है एक रिपोर्ट-
    बवाना बाहरी दिल्ली (उत्तर पश्चिमी) में स्थित है। यहां काफी संख्या में उद्योग भी हैं। ज्यादातर उद्योग लघु उद्योगों की श्रेणी के हैं, जहां रोजमर्रा की उपभोक्ता वस्तुओं व हार्डवेयर के सामान की मैन्युफैक्चरिंग होती है। आमतौर पर दिल्ली में बवाना को एक औद्योगिक इलाके के रूप में जाना जाता है। औद्योगिक इलाके से सटी बवाना पुनर्वास कालोनी है। इस पुनर्वास कालोनी में लगभग 1.5 लाख आबादी रहती है। जिसमें 35000 के लगभग मतदाता हैं। यह पुनर्वास कालोनी लगभग दस वर्ष पूर्व बसाई गयी। इनमें ज्यादातर लोग यमुना पुस्ता से यहां पुनर्वासित किए गये हैं। राजघाट पाॅवर हाउस व आर.के.पुरम के झुग्गीवासियों को भी पुनर्वासित कर यहां बसाया गया था। इस बस्ती के ज्यादातर लोग मजदूर-मेहनतकश हैं। इनमें से ज्यादातर दिहाड़ी मजदूर, रिक्शा चालक, गाड़ी-टैम्पो चालक व असंगठित क्षेत्र के छोटे-मोटे रोजगार में लगे लोग हैं। यह कालोनी एक छोटा-मोटा कस्बा जैसी प्रतीत होती है। इस कालोनी में मुस्लिम व हिंदू आबादी क्रमशः 60 व 40 प्रतिशत है। हिंदू व मुस्लिम आबादी आपस में घुली-मिली है। किसी भी गली में हिन्दू व मुस्लिमों के मकान अलग-बगल हैं। कई जगह मंदिर व मस्जिद भी आस-पास ही हैं। 

    इस पुनर्वास कालोनी को आम बोलचाल में जे.जे. कालोनी बवाना कहते हैं। पुनर्वास कालोनी से दूसरी ओर बवाना रोड़ पर पुल पार कर बवाना गांव है। इस गांव में बहुसंख्यक हिंदू हैं कुछ मुस्लिम परिवार भी हैं। 
    बवाना में पिछले दस वर्ष से मोहर्रम का त्यौहार शांतिपूर्वक मनाया जाता रहा है। इसे लेकर कोई तनाव या अप्रिय घटना की कोई शिकायत नहीं रही। हर वर्ष मोहर्रम के दिन जे.जे.कालोनी (पुनर्वास कालोनी) से ताजिए निकाले जाते, बवाना गांव व बाजार से होते हुए वे वापस जेे.जे.कालोनी पहुंचते थे। इस दौरान मातम मनाने के साथ अखाड़े के खेल भी होते थे। इन खेलों में मुसलमानों के साथ हिंदू भी शामिल होते रहे हैं। 
    इस बार स्थिति भिन्न थी। हिंदू संगठनों द्वारा साम्प्रदायिक प्रचार जोरों पर था। बिना नाम पते का एक पर्चा भारी संख्या में वितरित किया गया था। जिसमें मोहर्रम के जुलूस को बवाना गांव में न घुसने देने की अपील करते हुए 2 नवम्बर को बवाना महापंचायत मेें पहुंचने की अपील करते हुए भारी संख्या में पर्चे बांटे गए। इसके साथ ही रातों-रात पैदा हुए एक संगठन ‘भगतसिंह क्रांतिकारी सेना द्वारा’ भारी मात्रा में बवाना व आस-पास के इलाकों में गौ रक्षा की अपील करता हुआ और गौ रक्षा को देश रक्षा से जोड़ने की बात करता हुआ एक भड़काऊ पोस्टर चस्पा किया गया था। 
    2 नवम्बर को यानी मोहर्रम से 2 दिन पूर्व बवाना गांव में महापंचायत आयोजित हुई। इस पंचायत के लिए कोई पूर्व सूचना नहीं दी गयी थी और प्रशासन ने भी इसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की। इस पंचायत में भाजपा के वर्तमान विधायक गूगन सिंह व भाजपा नेता नारायण सिंह मौजूद थे। जिन्होंने अल्पसंख्यकों के खिलाफ भड़काऊ भाषण दिये व साम्प्रदायिक नफरत फैलाने का काम किया। रैली में आये नौजवानों के फोन नम्बर नोट किये गये और उन्हें बताया गया कि 4 नवम्बर को उन्हें तैयार रहना होगा। जरूरत पड़ने पर उन्हें फोन किया जायेगा। 
    यह सब एक शक्ति प्रदर्शन का हिस्सा था। मुस्लिम प्रतिनिधि 24 अक्टूबर को ही स्थानीय पुलिस प्रशासन को इस बात का आश्वासन दे चुके थे कि वे गांव के अंदर जुलूस नहीं ले जायेंगे। इसके बावजूद महापंचायत का आयोजन का उद्देश्य आतंक पैदा करना था। पुलिस ने न तोे इस आयोजन को रोका और न ही इसमें अल्पसंख्यकों के खिलाफ जहर उगलने वाले नेताओं के खिलाफ कोई कार्यवाही की। त्रिलोकपुरी में इतने दंगे-फसाद बड़े पैमाने पर दमन, गिरफ्तारियों के बावजूद दंगों के मुख्य आरोपी सुनील वैद्य को पूछताछ के लिए भी बुलाना गंवारा नहीं किया। 
    मामला इतना ही नहीं था। दंगों के लिए जगह-जगह बारूद बिछाने का काम लगातार चलता रहा। 4 नवम्बर को मुहर्रम के ही दिन जे.जे. कालोनी व बवाना गांव की सीमा पर स्थित मंदिर में 52 गांवों का भंडारा आयोजित किया गया था। यानी तनाव को विस्फोटक बिंदु पर पहुंचाने का पूरा इंतजाम किया जा चुका था। 
    4 नवम्बर को मोहर्रम के दिन जे.जे.कालोनी बवाना में शांतिपूर्ण माहौल था। भय और तनाव सभी जगह चेहरों पर साफ पढ़ा जा सकता था। सुबह से ही भारी संख्या में पुलिस बल तैनात था। पत्रकार 10 बजे के बाद आने शुरू हो गए थे। एक चैनल के पत्रकार गांव के स्थानीय नेताओं से मोहर्रम का इतिहास व ताजिए निकालने का मकसद जान रहे थे। शायद ताजिए निकाले जाने के बारे में वे पूर्वाग्रह से ग्रस्त थे या फिर उनकी समझदारी के स्तर पर यह सब उनके लिए अपरिचित व कुतूहल का विषय था। कुछ संजीदा पत्रकार भी मौजूद थे। विभिन्न जनपक्षधर संगठनों के कार्यकर्ता भी वहां पहुंचे थे। त्यौहार की आयोजन कमेटी के लोगों ने पत्रकारों के लिए एक टेंट की व्यवस्था की थी। आयोजन कमेटी के प्रमुख कलीमुल्ला प्रधान ने बताया कि उनकी तरफ से शांति बनाए रखने की पूरी कोशिशें लगातार जारी हैं। गांव में जुलूस नहीं ले जाने का फैसला इसी के मद्देनजर लिया गया। उन्होंने बताया उनकी कालोनी में हिन्दू-मुस्लिमों के बीच कभी कोई तनाव नहीं रहा है। दोनों धर्मों के लोग एक दूसरे के त्यौहारों में सम्मिलित होते हैं। हिंदू भाई भी मोहर्रम के त्यौहार में शामिल होते हैं। अखाड़े के खेल में हिंदू-मुस्लिम दोनों शामिल होते हैं। ईद, होली, दीपावली भी सभी मनाते हैं। दोनों धर्मों के भाई एक-दूसरे के पूजा त्यौहारों पर चंदा देते हैं। उन्होंने बताया कि बस्ती के हिंदू-मुसलमान यहां पुनर्वासित होने से पहले जमुना पुस्ता व राजघाट में भी मिलजुलकर शांति के साथ रहते थे। पच्चीस वर्षों से वे शांति पूर्वक साथ रहते आये हैं। उन्होंने बताया कि इस बार त्यौहार की रौनक व उत्साह गायब है। किसी तरह रस्म अदायगी के लिए ही त्यौहार मनाया जा रहा है। 
    मंच पर कालोनी के निवासी एक पंडित जी भी बैठे थे। उन्होंने नाम दिलीप पोद्दार बताया। पंडितजी ने बताया कि, ‘‘26 साल से हम साथ रहे हैं, जमुना पुस्ता से यहां तक। हम लोग सभी त्यौहार साथ-साथ मनाते हैं। बाबरी मस्जिद दंगे के दौरान भी हमारी एकता पर कोई आंच नहीं आयी। ‘गौ रक्षा अभियान’ हमारे लिए राजनीति है। यहां कभी न गौ कटी न कभी कटेगी। हम हर साल धूमधाम से मोहर्रम का त्यौहार मनाते हैं।’’
    कली मुल्ला प्रधान बताते हैं कि पिछले दो वर्ष से लगातार वे दहशत व आतंक के साये में जी रहे हैं। दो वर्ष पूर्व बकरीद के मौके पर फोन द्वारा किसी शरारती तत्व ने मस्जिद में गाय कटने की अफवाह उड़ाई। पुलिस आयी, तलाशी में कुछ नहीं मिला अलबत्ता पुलिस ने इस फोन नंबर की डिटेल निकलवाकर एक व्यक्ति को पकड़ा जिससे पूछताछ के बाद गांव के मंदिर के तहखाने से पांच छः बैल बरामद हुए। 
    उन्होंने बताया कि धर्म के नाम पर लोगों को बांटने वाले लोग भगत सिंह का नाम बदनाम कर रहे हैं। भगत सिंह के जन्म दिन 28 सितम्बर को 250 के लगभग लोगों ने मोटरसाइकिल व गाडि़यों से रैली निकाली व भड़काऊ नारे लगाए। ईद से पहले 2 अक्टूबर के दिन 60-70 लोगों के लगभग लोग बस्ती में आये। वे बस्ती में हर किसी से पूछ रहे थे कि गाय कहां रखी है। एक हिंदू रतिराम की गाय भी उन्होंने खोली। कलीमुल्ला बताते हैं कि मुसलमान भी पहले गाय पालते थे लेकिन इन घटनाओं के बाद कालोनी के गाय पालने वाले लोगों ने अपनी गायें गौशाला को दे दी हैं। उन्होंने बताया आतंक के साये तथा पुलिस संरक्षण में ही हमने ईद मनाई और मोहर्रम भी पुलिस के संरक्षण में मना रहे हैं। पहले 10 बजे सुबह से ही मोहर्रम के ताजिए निकलने शुरू हो जाते थे लेकिन आज 2ः30 बजे से ताजिये निकलेंगे केवल रस्म निभाने के लिए। कालोनी में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का दफ्तर भी है। का.सुलेमान पार्टी के ब्रांच सेक्रेटरी व दिल्ली प्रदेश कांउसिल के सदस्य हैं। का. सुलेमान ने बताया कि हमारी कालोनी में हिंदू मुस्लिम एकता जिंदाबाद है। उन्होंने बताया कि 2 नवम्बर की महापंचायत व मोहर्रम के दिन मंदिर पर भंडारे के आयोजन के पीछे साम्प्रदायिक तनाव पैदा कर, वोट बैंक की राजनीति करना है। 
    उन्होंने बताया ‘‘10 साल से हम अमन शांति से मोहर्रम मनाते आये हैं। इस बार हमें मोहर्रम के अवसर पर ताजिए पर हमला होने की सूचना मिली। हमसे सीधे किसी ने बात नहीं की बल्कि हमें यह सूचना गुप्त रूप से मिली। हमने सभा करके गांव में न जाने का फैसला किया। हमने यहां के मोउज्जिम पूर्व कौंसिलर नारायण सिंह व वर्तमान कौंसिलर देविंदर सिंह पौनी से भी बात की कि हमसे क्या गलती हुई है। जब हम 2004 में यहां आये तो हमने इस गांव को अपना गांव माना और आपको अपना प्रतिनिधि चुना। अब हमसे क्या गलती हो गयी। उन्होंनेे पूछा, ‘‘क्या बात है’’। तो हमने कहा कि आप हमारा जुलूस का रास्ता क्यों रोक रहे हैं। कोई न कोई बात तो होगी इस पर नारायण सिंह ने कहा कि भाई साहब अभी माहौल गर्म है। नए लड़के हैं। हमारी बात नहीं मानते उनको समझाना हमारे बस की बात नहीं। हमने जब कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि कालोनी के लोग दारू पीकर आते हैं, पेड़ उखाड़ते हैं, नंगे तलवार लेकर चलते हैं। इस पर हमने कहा कि अगर इतनी सी बात है तो दोनों पक्षों के दो-दो लोग बैठकर इसे हल कर लेते हैं। लेकिन हमारी ये कौन सी गलती थी कि मस्जिद पर गाय-बैल रोक कर गाय बैल कटने की सूचना दी गयी। 2 अक्टूबर को बाहर के लोग बस्ती में क्यों घुसे।’’ इस पर वे चुप रहे। हमने उन्हें अपना फैसला सुना दिया कि अगर आप नहीं चाहते तो हम लोग मोहर्रम का जुलूस गांव सेे नहीं निकालेंगे। इसके बाद इन्होंने 52-53 गांवों की पंचायत 2 नवम्बर को बुलाई जिसमें भाजपा विधायक गूगन सिंह, बीजेपी नेता नारायण सिंह तथा पूर्व कौंसिलर कांग्रेस नेता पौनी शामिल थे। यह पंचायत भगत सिंह समिति द्वारा बुलाई गयी। इस दौरान भड़काऊ पर्चे बांटे गये। जिनमें लिखा था ‘‘कटती गाय करे पुकार, कहां है हिन्दू तलवार।’’। 
    इस बार दंगे की योजना कितनी पुख्ता थी इसका अंदाजा इस बात से लग जाता है कि गौ रक्षा को लेकर बड़े पैमाने पर काफी पहले से इलाके में ‘हिन्दू क्रांतिकारी सेना’ व भगतसिंह समिति’’ के पर्चे पोस्टरों की बाढ़ आ गयी थी। बाहरी दिल्ली के बवाना, बवराला, शाहबाद डेयरी समयपुर बादली, मंगोलपुरी तक आदि में पोस्टर दिखाई देने लगे। कोई साधु उमांकांत महाराज का भी गौ रक्षा का पोस्टर दिखाई पड़ने लगा। ईद के ऐन मौके पर बवाना कालोनी में गाय लाकर बांध दी जाती है। अगर वहां के लोगों ने रात में ही पुलिस को इत्तला कर पुलिस की मदद से गाय श्री कृष्ण गऊशाला नहीं भेजी होती तो दंगा होना तय था। संघ की शाखा में जाने वाले एक नए नौजवान ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि कुछ समय पहले शाहबाद डेयरी में हनुमान मंदिर में एक सभा हुई जिसमें भाजपा विधायक व संघ कार्यकर्ता मौजूद थे। इस सभा में काफी भड़काऊ भाषण हुए। मोहर्रम से पहले शाहबाद डेयरी से ही 40 तलवार बवाना भेजी गयी थीं। 
    पिछले कई महीनों से चल रहा साम्प्रदायिक विषवमन, भड़काऊ पोस्टर-पर्चे सब कुछ पुलिस प्रशासन की नजर के सामने हो रहा है। लेकिन वह इसके खिलाफ कुछ भी नहीं कर चुपचाप तमाशबीन बनी खड़ी है। हां! मोहर्रम के दिन बवाना में तथ्यान्वेषण व हालात का जायजा लेने गये सामाजिक कार्यकर्ताओं व दिल्ली विश्व विद्यालय के छात्रों को लेकर उनकी नजर टेड़ी हुई और 11 लोगों को हिरासत में लेकर उन्होंने उन्हें दिन भर कड़ी पूछताछ के बाद रात में रिहा किया। 
    बहरहाल बवाना कालोनी के बाशिंदों ने साम्प्रदायिक उन्माद फैलाने व दंगा कराने वालों की कोशिशों को अपनी सूझबूझ से नाकाम कर दिया है। लेकिन भगवा ब्रिगेड द्वारा दिल्ली में चुनावों के मद्देनजर साम्प्रदायिक नफरत का माहौल बनाने की कोशिशें तेज हो गयी हैं। त्रिलोकपुरी बवाना के साथ ही समयपुर बादली, ओखला, मजनू का टीला, नांगलोई आदि इलाकों से साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने हेतु शरारतपूर्ण कार्यवाहियों की खबर मिली है। लेकिन मेहनतकश जनता ने इसे फिलहाल नाकाम कर दिया है। दिल्ली संवाददाता

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