Saturday, August 15, 2015

कानून बने तो लूट हो आसान

वर्ष-18, अंक-16(16-31 अगस्त, 2015)
    भूमि अधिग्रहण विधेयक पर मुंह की खाने के बाद नरेन्द्र मोदी की सरकार ने संसद के वर्तमान सत्र में वस्तु एवं सेवाकर (गुड्स एण्ड सर्विसेज टैक्स) विधेयक को पारित करवाने के लिए हर हथकंडे को अपनाया है। इस विधेयक को लोकसभा पहले ही पारित कर चुकी है परन्तु विधेयक राज्य सभा में अटका है। यह एक ऐसा संवैधानिक विधेयक है जिसे राज्यसभा में दो तिहाई बहुमत से पास होना चाहिए और साथ ही देश की आधी विधानसभाओं से भी मंजूरी मिलनी चाहिए।  
    वस्तु एवं सेवा कर विधेयक उनके आर्थिक सुधार के वर्तमान चरण में सबसे महत्वपूर्ण विधेयकों में से एक है। यह विधेयक, कर ढांचे (टैक्स स्ट्रक्चर) में आमूलचूल  परिवर्तन कर देगा। इस विधेयक के पारित हो जाने के बाद पूरा भारत एक ऐसी आर्थिक इकाई में बदल जायेगा जिसकी मांग लम्बे समय से देशी-विदेशी एकाधिकारी घराने करते रहे हैं। संसद में हंगामे के कारण इस विधेयक के पारित न होने पर दुखी इन वित्तपतियों में से कई ने लूट की राह को आसान बनाने के लिए आन लाइन मांग के एक नये तरीके का इस्तेमाल किया जिसमें संसद के हंगामे के कारण इस विधेयक के पास न होने पर क्षोभ व्यक्त किया गया।

    वस्तु एवं सेवा कर के जरिये देशी-विदेशी पूंजीपति पूरे भारत में एक समान कर व्यवस्था चाहते हैं। वे चाहते हैं कि वे एक बार टैक्स का भुगतान कर दें और उसके बाद उन्हें कोई झंझट न हो। भारत में हर एक राज्य में वस्तु एवं सेवाओं पर अपने कर प्रावधान हैं। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष सहित साम्राज्यवादी देशों द्वारा निदेशित यह कर सुधार दुनिया के कई देशों में पहले ही लागू करवाया जा चुका है। 
    संप्रग सरकार अपने कार्यकाल के दौरान इस कर सुधार को लागू करवाकर देशी-विदेशी पूंजीपतियों से शाबासी हासिल करना चाहती थी परन्तु तब भाजपा और कई अन्य दलों ने उसे ऐसा नहीं करने दिया था। अब भाजपा ऐसा करना चाहती है तो कांग्रेस उसे ‘मियां की जूती मियां के सर’ की तर्ज पर जवाब दे रही है। इन दोनों पार्टियों की इस नूराकुश्ती से देशी-विदेशी पूंजीपति क्षुब्ध हो रहे हैं। संसद का यह सत्र बगैर उनके काम किये खत्म हो गया।  
    वस्तु एवं सेवा कर अब तक मौजूद विभिन्न अप्रत्यक्ष करों केन्द्रीय बिक्री कर, चुंगी कर, केन्द्रीय उत्पाद कर, वैट आदि का स्थान ले लेगा। यह अपने चरित्र में मूल्य संवर्धित कर (वैट) की तरह ही है। इस कर के लागू हो जाने के बाद जहां देशी-विदेशी पूंजीपतियों को भारी राहत मिलेगी वहां मेहनतकश जनता पर सीधे एक झटके में केन्द्र सरकार द्वारा कर का बोझ डालना आसान हो जायेगा। और सबसे बड़ी बात उस पर कर का बोझ बढ़ जायेगा। पहले अलग-अलग राज्य सरकारें अपने कर व्यवस्था में जो फेर-बदल कर पाती थीं अब वह सम्भव नहीं रह जायेगा। हालांकि राज्यों के भारी विरोध को देखते हुए शराब और पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा हुआ है। इन दोनों तरह की वस्तुओं पर लगने वाले कर से राज्यों को सबसे अधिक राजस्व प्राप्त होता रहा है। 
    जीएसटी के जो फायदे गिनाये जा रहे हैं वे सब के सब देशी-विदेशी पूंजीपतियों को होने वाले फायदे हैं। इस टैक्स सुधार से भारत के मजदूरों-किसानों को कुछ नहीं मिलने वाला है और उल्टे उनके ऊपर कर का बोझ बढ़ जायेगा। उनके शरीर को और चूसा जायेगा। 

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