Saturday, August 1, 2015

इस आतंक का कोई अंत नहीं

वर्ष 18, अंक-15(01-15 अगस्त, 2015)
    पंजाब के गुरूदासपुर जिले के दीनापुर कस्बे में 27 जुलाई को हुए एक आतंकी हमले में दस से अधिक लोग मारे गये। मरने वालों में निर्दोष नागरिक, सुरक्षाकर्मी और आतंकवादी भी हैं। 
    पंजाब में हाल के वर्षों में घटी यह पहली घटना है हालांकि जम्मू-कश्मीर सहित पूर्वोत्तर राज्यों में इस तरह की घटनाएं रोजमर्रा की बात हैं। भारत सरकार इसे पाकिस्तान से आये आतंकवादियों का कारनामा बता रही है परन्तु इस बात की भी संभावना व्यक्त की जा रही है कि यह पंजाब में पुनः खालिस्तानी आतंकवादियों की हरकत न हो।

    आतंकवादी हमलों की घटनाएं भारत सहित पूरी दुनिया में रोज घटती रहती हैं। पाकिस्तान, ईराक, सीरिया, सोमालिया, कीनिया जैसे देशों में ही नहीं बल्कि फ्रांस, तुर्की जैसे देशों में ये घटनाएं घट रही हैं। इन घटनाओं के पीछे जो कारण बताए जाते हैं उनमें अक्सर मुस्लिम धर्म को आतंक से जोड़ दिया जाता है। यहां यह बात भुला दी जाती है कि आतंकवाद से ऐसे देश सबसे ज्यादा पीडि़त हैं जो मुस्लिम बहुल हैं। इन कारणों में इस प्रमुख बात को भुला दिया जाता है कि इस्लामिक आतंकवादियों की पूरी जमात को अमेरिकी सहित पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने स्थानीय शासकों के प्रश्य से पैदा किया है। अल कायदा, इस्लामिक स्टेट, लश्कर-ए-तएबा, तालिबान आदि-आदि इसके उदाहरण रहे हैं। बाद के समय में ये आतंकी संगठन अपने आकाओं के हिसाब से चलने के बजाय स्वतंत्र ढंग से काम करने लगे। 
    भारत में आतंकवादी घटनाओं का अपना ही इतिहास रहा है। यहां हाल के वर्षों में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने वालों में मुस्लिम आतंकवादियों के साथ हिन्दू आतंकवादियों का भी हाथ रहा है। समझौता एक्सप्रेस, मक्का मस्जिद आदि में आतंकी घटनाओं को हिन्दू आतंकवादियों ने अंजाम दिया था। कश्मीर और पूर्वोत्तर भारत में आतंकवाद की समस्या के मूल में राष्ट्रीयताओं के उत्पीड़न और राजकीय दमन की भूमिका रही है। पंजाब के अस्सी-नब्बे के दशक के आतंक के पीछे अलग देश खालिस्तान की मांग रही है। 
    आतंकवाद की समस्या के समाधान का जो तरीका सुझाया जाता है उसमें सुरक्षा और खुफिया तंत्र को मजबूत करना तथा आतंकवादियों से कठोरतापूर्वक निपटने की वकालत की जाती है। इस मामले में यही सच है कि ये सब दशकों से भारत सहित दुनिया भर की सरकारें अपना रही हैं। इससे समस्या का आज तक कोई समाधान नहीं हुआ है। भविष्य में भी इससे कोई समाधान नहीं हो सकता है।    यहां दिक्कत यह है कि आतंकवाद की समस्या को पैदा करने वाले ही आतंकवाद की समस्या का हल करने की योजना बनाते हैं और हकीकत में इस दौरान ही वे नये आतंकवाद को पैदा कर देते हैं। इसकी पहली शुरूवात राजकीय आतंकवाद से होती है और फिर इसके जबाव में कई किस्म का आतंकवाद पैदा होता है और यह एक ऐसा अनवरत सिलसिला है जो वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था में कभी भी खत्म नहीं हो सकता।
    इसी तरह विभिन्न देशों के द्वारा एक-दूसरे देशों में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तरीके से अंजाम दी जाने वाली आतंकवादी घटनाओं का भी वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था में समाधान नहीं हो सकता है। जिस तरह भारत अपने भीतर होने वाली आतंकवादी घटनाओं के लिए पाकिस्तान को जिम्मेवार ठहराता है ठीक उसी तरह से पाकिस्तान पेशावर-करांची की घटनाओं के लिए भारत को जिम्मेवार ठहराता है और ये दोनों ही बातें एक समय ठीक हो सकती हैं। 
    दुनिया भर के शासकों के घृणित खेल में, उनके द्वारा फैलाये राजकीय आतंकवाद और उसके कारण पैदा होने वाले आतंकवाद में निर्दोष नागरिक मारे जाते हैं। उनके मरने के बाद शासक फिर उनकी लाशों पर अपनी नयी बिसात बिछाते हैं और फिर कहीं कोई नयी आतंकवादी घटना घट जाती है। निर्दोष नागरिक कभी आतंकवादियों और कभी सुरक्षाबलों के हाथों मारे जाते हैं। 

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