Thursday, May 7, 2015

कश्मीर घाटी फिर गरमायी

वर्ष-18, अंक-09(01-15 मई, 2015)   
 कश्मीरी जनता का आक्रोश एक बार फिर सड़कों पर फूट रहा है। कश्मीर घाटी फिर से बड़े-बड़े प्रदर्शनों-बंदों की गवाह बन रही है। 
आजादी के नारे फिर से हवाओं में तैरने लगे हैं। साल दर साल कश्मीरी जनता का सड़कों पर उतरता आक्रोश यही बतलाता है कि भारतीय शासक संगीनों के दम पर कश्मीरी जनता की आकांक्षा को कुचल नहीं सकते। 
    14 अप्रैल को भारतीय सेना ने दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा जिले के त्राल गांव में खालिद नामक एक नवयुवक की पीट-पीट कर हत्या कर दी। इसके पश्चात सेना ने उसे आतंकी घोषित करते हुए मुठभेड़ में उसका मारा जाना घोषित कर दिया। इसके पश्चात उसके शव को तुरंत दफना भी दिया गया। उसके पिता बताते रहे कि उसके शरीर पर उत्पीड़न के ढेरों निशान थे पर गोली का एक भी निशान नहीं था। पर उनकी इस बात की कोई सुनवाई नहीं हुयी। 

    इसके कुछ दिन बाद 16 वर्ष के एक नौजवान सुहैल की पुलिस द्वारा हत्या कर दी गयी। एक सब इंस्पेक्टर ने सुहैल को भागने को कहा और सुहैल के दौड़ने पर अपने कांस्टेबल को नौजवान पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। स्कूल में पढ़ने वाले सुहैल की इस तरह से पुलिस द्वारा हत्या ने घाटी में उबाल ला दिया। 
    अपनी नई पीढ़ी की इस तरह सेना-पुलिस द्वारा हत्या कर उन्हें आतंकी करार देना किसी को भी आक्रोश और गुस्से से भरने के लिए काफी है। फिर कश्मीरी जनता तो वर्षों से इस तरह का जुर्म सह रही है। अपने आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए लड़ रही है। उसके सहने और लड़ने की गाथा बड़ी लम्बी है। हर बार की तरह इस बार भी जनता आजादी के नारे लगाते हुए, पुलिस-सेना के खिलाफ नारे बुलंद करते हुए सड़कों पर आ डटी। 
    इस सब में आग में घी का काम भारत की तरफ से की गयी दो कार्यवाहियों ने किया। पहला हुर्रियत नेता मसर्रत आलम को रिहा करने के कुछ समय बाद गिरफ्तार करना और दूसरा कश्मीर में पण्डितों की वापसी के लिए अलग कालोनी की योजना पेश करना। 
    जहां मुसर्रत आलम की गिरफ्तारी को कश्मीरी अवाम ने अपने नेतृत्व पर हमले के रूप में लिया वहीं पण्डितों के लिए अलग कालोनी के मसले को कश्मीर घाटी में साम्प्रदायिक तनाव के बीज बोने के एक इंतजाम के बतौर लिया गया। 
    इन सब घटनाओं के चलते घाटी एक बार फिर गरमा गयी है। भाजपा-पीडीपी की सरकार के चलते संघ को जम्मू व कश्मीर दोनों जगह अपने मन की करने की छूट हासिल हो चुकी है। तमाम अलगाववादी नेताओं द्वारा संघ को निशाने पर लिया जाना इस बात का प्रमाण है कि संघ की करतूतें सभी जगह साम्प्रदायिक वैमनस्य फैला कर कश्मीरी संघर्ष का गला घोंटना चाहती है।
    कश्मीरी जनता के मुक्ति संघर्ष में आज कट्टरपंथी ताकतें प्रभावशाली होती गयी हैं। ऐसे में संघ के द्वारा बोया साम्प्रदायिक वैमनस्य इन कट्टरपंथी ताकतों को और मजबूती ही प्रदान करेगा जो अपनी बारी में कश्मीरी जनता के संघर्ष को कमजोर करेंगे। 
    भारतीय शासक संगीनों के दम पर कश्मीर को भारत के साथ जोड़े हुए हैं। उनकी संगीनें सैकड़ों निर्दोषों का कत्लेआम कर रही हैं। ढेरों युवतियों को बलात्कार का शिकार बना रही हैं। कश्मीरी पूंजीपति वर्ग की पार्टियां नेशनल कांफ्रेंस व पीडीपी इस सबमें भारतीय शासकों के साथ खड़ी हैं। भारतीय शासक पूरे देश में अंधराष्ट्रवाद फैला कश्मीर के समूचे संघर्ष को आतंकवाद के पर्याय या फिर पाकिस्तान की चाल के बतौर पेश करते रहे हैं। साथ ही वहीं निर्दोषों के कत्लेआम को आतंकवाद से लड़ने के लिए जरूरी बताते रहे हैं। 
    भाजपा-पीडीपी के कश्मीर में सत्तासीन होने व केन्द्र में भाजपा के सत्तासीन होने से कश्मीरी जनता की दुःख-तकलीफें और बढ़ गयी हैं। उन पर हमले अब और तेजी से बढ़ेंगे। 
    ऐसे में सभी न्यायप्रिय लोगों का फर्ज बन जाता है कि वे कश्मीर के नाम पर भारतीय शासकों द्वारा फैलाये जा रहे अंधराष्ट्रवाद का विरोध करें। कश्मीर में सेना-पुलिस द्वारा निर्दोषों के कत्लेआम के वक्त कश्मीरी जनता के साथ खड़े हों। कश्मीरी संघर्ष को कट्टरपंथी ताकतों द्वारा मोड़ने का विरोध करें व कश्मीरी जनता के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन करें।

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