Saturday, May 16, 2015

अच्छे दिन न आने थे न आये

वर्ष-18, अंक-10(01-15 जून, 2015)
    मोदी सरकार का एक वर्ष पूरा होने को है। भाजपा के कहे अनुसार अच्छे दिन आ चुके हैं। भाजपा इस अवसर पर एक हफ्ते का उत्सव मनाने की तैयारी कर रही है जिसमें मोदी सरकार की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचाया जायेगा। 
    मोदी सरकार ने पिछले एक वर्ष में क्या क्या किया? इसका लेखा जोखा करने से पहले सरकार के वायदों को याद कर लेना उचित होगा। बड़बोले मोदी ने अच्छे दिनों को लाने का, 100 दिन में काला धन वापस ला जनता में बांटने का वायदा किया था। ये वायदे न तो पूरे होने थे और न हुए। हां! अच्छे दिन एक मुहावरा जरूर बन गया। 

    अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर बात की जाए तो मोदी सरकार ने पूंजीपतियों को खुश करने के खासे प्रयास किये। देश में विदेशी निवेश बढ़ाने के लिए मोदी ने 30 देशों की यात्रायें कीं। इन यात्राओं का टीवी चैनलों पर सजीव प्रसारण कर यह भ्रम फैलाया गया कि मोदी भारत ही नहीं विदेशों में भी बहुत लोकप्रिय हैं पर इतने तामझाम के बावजूद न तो देश में विदेशी निवेश बढ़ा और न ही अर्थव्यवस्था की हालत में कोई सुधार हुआ। रक्षा उपकरणों के क्षेत्र के साथ कई अन्य क्षेत्र विदेशी निवेश को खोल दिये गये। विदेशी पूंजी के आगे सस्ती जमीन-बिजली-पानी की खूब गाजर लटकायी गयी पर विदेशी पूंजी मोदी पर खास मेहरबान नहीं हुई। शेयर बाजार की सट्टेबाजी में तो वह आती रही पर उत्पादक कार्यों में नहीं आई। अर्थव्यवस्था के तीनों क्षेत्र कृषि, उद्योग, सेवा खस्ताहाल के शिकार बने रहे। ऐसे में मोदी सरकार ने आंकड़ों में तब्दीली कर 4.5 प्रतिशत की विकास दर को 7 प्रतिशत तक पहुंचा अपनी पीठ ठोंकना शुरू कर दिया। दावा किया जाने लगा कि भारत चीन को पछाड़ सबसे तेज गति से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था बन चुका है। इस बड़बोलेपन पर जनता तो क्या पूंजीपतियों को भी विश्वास नहीं हुआ। पूंजीपतियों की संस्था ने भी 7 प्रतिशत की दर पर संदेह जाहिर कर दिया।
    विदेशी निवेश जुटाने के अलावा मोदी सरकार ने जिन बातों पर ध्यान केन्द्रित किया वे थीं मजदूरों-किसानों पर हमला बोलना, संघ के फासीवादी एजेण्डे को आगे बढ़ाना। 
    मजदूर वर्ग पर हमले के लिए श्रमकानूनों में बदलाव का एजेण्डा पेश किया गया। पूंजीपतियों के हितों में सारे श्रम कानूनों को तब्दील करने की राह पर मोदी सरकार आगे बढ़ी। इन सब संशोधनों के लागू होने से पूंजी और श्रम के झगड़े में पूंजी को तमाम कानूनी बंदिशों से मुक्त किया जा रहा है। पहले से तंगहाल मजदूर वर्ग के लिए ये संशोधन यूनियन बनाना कठिन करने, छंटनी की पूंजीपतियों को खुली छूट मिलना, औद्योगिक विवादों में पूंजीपतियों को कई प्रावधान मानने से छूट आदि बातें प्रमुख हैं। मजदूर वर्ग ने इन श्रम सुधारों का बढ़-चढ़कर विरोध किया है। केन्द्र में ये कानून अभी भले ही लागू नहीं हुए हैं पर राजस्थान सरीखे राज्य इनमें से कई संशोधनों को पारित कर चुके हैं। 
    बड़बोले मोदी ने ‘श्रमेव-जयते’ कार्यक्रम चला पूंजीपतियों को कानूनों की सारी जानकारी एक जगह मुहैय्या कराने का इंतजाम कर दिया। मजदूरों के नाम पर चली इस योजना में मजदूरों के हित में कुछ नहीं था। 
    इस पूरे एक वर्ष में मजदूरों ने ढेरों मौकों पर आर्थिक संघर्षों व छिटपुट राजनैतिक संघर्षों में भागीदारी की। मोदी सरकार ने इन संघर्षों को कुचलने में पूरी निरंकुशता का परिचय दिया। 
    किसानों के नाम पर मोदी सरकार ने सबसे बड़ा हमला भूमि अधिग्रहण बिल को नये रूप में संसद में पेश करके किया। पूंजीपतियों को किसानों की भूमि छीनने के कानूनी लाइसेंस सरीखा यह बिल किसान विरोधी है। किसानों पर दूसरा बड़ा हमला तबाह फसलों की भरपाई के लिए नाम मात्र के मुआवजे की घोषणा करके किया। आज बड़े पैमाने पर किसान आत्महत्या कर रहे हैं, उनकी लाशों की जिम्मेदार भी मोदी सरकार है। 
    बजट में शिक्षा-स्वास्थ्य मदों में कटौती कर, सब्सिडी की राशि घटा, मनरेगा को लाभप्रद बनाने की बातें कर, मोदी सरकार ने गरीब तबकों-छात्रों पर हमला बोला है। ढेरों योजनाओं पर खर्च का जिम्मा राज्य सरकारों पर डाल केन्द्र सरकार ने इन योजनाओं से अपना पल्ला झाड़ लिया है। 
    आदिवासियों से भूमि छीनने के लिए गृहमंत्रालय नई योजना पेश कर रहा है जिसमें जबरन माओवादियों को कुचल देने की बातें की गयी हैं। 
    सड़क-बिजली-पानी के सब्जबाग भी एक वर्ष पूरा होने के बाद कहीं से बेहतरी की ओर नहीं बढ़े हैं। पूंजीवादी मीडिया पर नकेल डाल मोदी सरकार ने सभी चैनलों को अपना भोंपू बनाने के प्रयास किये हैं। मोदी विरोधी पत्रकारों की छुट्टी कर दी गयी है। 
    संघ के फासीवादी एजेण्डे को आगे बढ़ाने में भी मोदी सरकार ने पर्याप्त तत्परता दिखलाई है। शिक्षा के क्षेत्र से लेकर विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति, सरकारी विभागों के सचिव आदि पदों पर संघ की पाठशाला में पढ़े लोगों को बैठाया जा रहा है। इतिहास परिषद का शीर्ष पद से लेकर राज्यों के राज्यपाल तक को बदला जा चुका है। इतिहास से लेकर संस्थाओं के भगवाकरण की मुहिम तेजी से जारी है। 
    संघ के कर्ता-धर्ता आज संघ की जहर उगलती बातें खुलेआम करते फिर रहे हैं। केन्द्र सरकार के मंत्री भी इस सब पर भांति-भांति के बयान देते रहे। मोदी भारत के वैदिक काल में प्लास्टिक सर्जरी ढूंढ लाये तो स्मृति ईरानी एक ज्योतिषी से राष्ट्रपति बनने का आशीर्वाद ले आयीं। किसी को ज्योतिष, विज्ञान नजर आने लगा तो किसी को गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ बनाने का शिगूफा मिल गया। गौहत्या पर प्रतिबंध से लेकर तमाम दकियानूसी बातों को फैलाया जाने लगा। बाबा-महात्मा-पाखण्डी सभी धार्मिक भावनाओं का हवाला देकर हिन्दुत्व की बातें फैलाने लगे। 
    ‘लव-जिहाद’, ‘घर वापसी’ धर्मांतरण व साम्प्रदायिक दंगे मोदी सरकार के प्रिय एजेण्डे बन गये। साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ाने के लिए सारी हरकतें जायज ठहरा दी गयीं। अल्पसंख्यकों, आदिवासियों के खान-पान संस्कृति को निशाना बना सवर्ण ब्राह्मणवादी संस्कृति को स्थापित किया जाने लगा।
    इससे आगे बढ़ संघ-भाजपा अम्बेडकर से लेकर भगत सिंह को भी भगवा रंग में रंगने लगे। 
    कुल मिलाकर, मोदी सरकार का एक वर्ष मेहनतकश जनता के दुःख-तकलीफों को बढ़ाने वाला, संघ के फासीवादी एजेण्डे को आगे बढ़ाने वाला रहा। 
    मोदी लहर अब लहर सरीखी नहीं रही है। जनता ‘अच्छे दिनों’ से त्रस्त हो चुकी है। बड़बोले मोदी के लच्छेदार भाषण से पेट नहीं भरता, यह वह जान चुकी है। आने वाले वर्ष में वह मोदी सरकार के और हमलों से उसके खिलाफ खड़ी होने लगेगी। 
    जनपक्षधर क्रांतिकारी ताकतों का दायित्व बनता है कि एक ओर तो वह मोदी सरकार की करतूतों को जनता के सामने लायें दूसरी ओर इस बात को भी स्पष्टता से उजागर करें कि मोदी सरकार उन्हीं एजेण्ड़ों को तेजी से आगे बढ़ा रही है जिन्हें धीमे-धीमे कांग्रेस व अन्य बुर्जुआ पार्टियां बढ़ाती रही हैं। ऐसे में मोदी सरकार के कदमों के खिलाफ खडे़ होते हुए दूसरी बुर्जुआ पार्टियों पर भी हमला बोलना होगा। 

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