Saturday, May 16, 2015

हिचकोले खाता शेयर बाजार और लुढ़कता रुपया

वर्ष-18, अंक-10(01-15 जून, 2015)  
 नरेन्द्र मोदी ने एक वर्ष पूर्व अपने चुनाव प्रचार के दौरान शेयर बाजार और रुपये की गिरावट को काफी मुद्दा बनाया था। रुपये की गिरावट को उन्होंने राष्ट्रीय गौरव से जोड़ते हुए मनमोहन सरकार की खूब खिल्ली उड़ायी थी। अब लगता है ये सब बातें उनका पीछा करने लगी हैं। 
    शेयर बाजार हिचकोले खा रहा है। अप्रैल माह में एक समय बाॅम्बे स्टाॅक एक्सचेंज का शेयर सूचकांक (सेंसेक्स) 29000 से ऊपर जा पहुंचा था वह अब 27,000 के आस-पास है। मई माह में इसमें बहुत तेज उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है। मई माह के दूसरे हफ्ते में यह उतार-चढ़ाव 500 अंकों से ऊपर-नीचे होता रहा। पिछले समय में विदेशी निवेशकों के अपने हाथ-खींचने से ही यह सूचकांक करीब 2000 अंक नीचे गिरा है। 12 मई को तो वह 27000 से भी नीचे आ गया। बाजार के जानकारों के अनुसार शेयर बाजार की इस गिरावट से निवेशकों को दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। 

    औद्योगिक उत्पादन में सुधार न होने, बढ़ती मुद्रास्फीति, तेल की कीमतों में पुनः बढ़ोत्तरी, सं.रा.अमेरिका, यूरोप व एशियाई बाजारों की कमजोरी आदि-आदि कारण ऐसे रहे हैं जिन्होंने अप्रैल-मई माह में शेयर बाजार में ऐसे हालात पैदा किये हैं। असल में विश्व अर्थव्यवस्था का वर्तमान संकट सारे सरकारी-गैरसरकारी प्रयासों के बावजूद जस का तस बना हुआ है। शेयर बाजार इस गम्भीर आर्थिक संकट में भी तेजी दिखाता रहा है। उसे ऐसे उतार-चढ़ाव का शिकार होना ही है। शेयर बाजार के सबसे बड़े सटोरिये जो इन उतार-चढ़ाव के जरिये दौलत कमा रहे हैं वे भी नहीं जानते कि आगे क्या होगा। 
    भारत के रुपये की गिरावट का दौर जारी है। वह एक डालर के मुकाबले 64 रुपये से भी नीचे जा चुका है। मुद्रा बाजार के पण्डित मानते हैं कि यह इससे भी नीचे जा सकता है। कच्चे तेल की कीमतों में आई तेजी, घटता निर्यात और बढ़ता आयात और विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय बाजार से पैसा निकालकर अन्य एशियाई बाजारों में लगाना भारतीय रुपये की कमजोरी के कारण के बतौर गिनाये जा रहे हैं। रुपये की खस्ता हालत से भारत के निर्यातकों को विश्व व्यापी मंदी के दौर में कुछ लाभ नहीं मिल रहा है, परन्तु तेल जैसी चीजों के आयात आदि से कमजोर होेता हुआ रुपया देश में महंगाई की नई आग जरूर लगाता जा रहा है। 
    मोदी-जेटली न तो शेयर मार्केट के हिचकोले और न ही रुपये की गिरावट को रोक पा रहे हैं। ऐसे में पूंजीपतियों का एक हिस्सा अपना धैर्य खोकर दीपक पारेख के नेतृत्व में उनकी नीतियों की आलोचना कर रहा है तो एक हिस्सा रतन टाटा के नेतृत्व में अपने वर्ग के लोगों को धैर्य न खोने और मोदी पर विश्वास बनाये रखने की अपील कर रहा है। और जहां तक देश के मेहनतकशों को सवाल है वे मोदी-जेटली की लफ्फाजी से उकता रहे हैं। जगह-जगह अपना क्षोभ व्यक्त कर रहे हैं। 
    प्रधानमंत्री मोदी अपने पार्टी के सांसदों के सामने जिन्हें मोदी के सामने कुछ भी बोलने का अधिकार नहीं है, डींग हांक रहे हैं कि उनके दस माह के शासन काल में संप्रग के दस साल के शासनकाल से ज्यादा काम हुआ है। इसके उलट देश के औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े निराशाजनक थे। औद्योगिक उत्पादन की दर पिछले महीने के मुकाबले मार्च महीने में गिर गई। यह सब कुछ तब हो रहा है जब मोदी खूब विदेश दौरे करके अपने ‘मेक इन इण्डिया’ नारे की वकालत कर रहे हैं। 

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