Sunday, May 31, 2015

मोदी की विदेश यात्रायें और मीडिया की चापलूसी

वर्ष-18, अंक-11(01-15 जून, 2015)
    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक बार फिर से पिछले दिनों विदेश यात्रा पर थे। इस बार वे चीन, मंगोलिया और द.कोरिया घूम आये। पिछले एक वर्ष में वे 30 देशों से अधिक की यात्रायें कर चुके हैं। इन सभी यात्राओं का भारत के पूंजीवादी मीडिया में कुछ इस भाव से प्रदर्शन किया जाता रहा है मानो सिकंदर विश्व विजय के अभियान पर निकला हो और सभी देशों के शासक उसके आगे नतमस्तक होते जा रहे हैं।  अभी हाल की चीन यात्रा का उदाहरण ले लें। चीनी राष्ट्रपति द्वारा प्रोटोकाॅल तोड़ मोदी की अगुवाई को भारतीय पूंजीवादी मीडिया ने इस रूप में प्रचारित किया कि मानो चीन भारत की बढ़ती ताकत के आगे झुकने को मजबूर हो गया। जबकि वास्तविकता यह है कि प्रोटोकाॅल तोड़ राजनेताओं का दूसरे देश केे नेताओं द्वारा स्वागत अधिकाधिक परम्परा बनती जा रही है। खुद भारतीय नेता साम्राज्यवादी मुल्कों के नेताओं के स्वागत में प्रोटोकाॅल तोड़ते रहे हैं। 

    इसके पश्चात मोदी ने खुद व उनकी नकल करते हुए टी.वी. चैनलों ने मोदी की चीन यात्रा को ऐतिहासिक करार दिया। जबकि वास्तव में 3 दिन की चीन यात्रा की उपलब्धि गिनाने को भारत सरकार के पास कुछ खास नहीं है। कहने को 22 अरब डालर के भारत में निवेश के करार हुए हैं पर यह अभी सहमति के स्तर पर है वास्तव में कितना चीनी निवेश भारत में होगा यह आने वाले वक्त में पता चलेगा। यह सब कुछ मोदी के ‘वाइब्रेंट गुजरात’ सम्मेलनों सरीखा है जहां दुनिया भर के पूंजीपति अरबों-खरबों के निवेश के आश्वासन देकर चले जाते रहे हैं जबकि निवेश बेहद मामूली होता रहा। और मोदी की प्रचार मशीनरी अरबों-खरबों के वायदों को जोड़ यहां तक साबित करती रही है कि अकेले गुजरात में पूरे चीन से ज्यादा विदेशी निवेश हो रहा है। 
    22 अरब डालर के निवेश के वादे से अधिक मोदी को चीन में कुछ खास हासिल नहीं हुआ है। मोदी ने चीनी पर्यटकों, निवेशकों के भारत आने में वीजा प्रक्रिया सरल बनाने के वायदे किये। दोनों देशों ने रस्मी तौर पर सीमा विवाद निपटाने की कसम खाई, रणनीतिक क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर सहमति बनी आदि आदि ही मोदी की चीन यात्रा की उपलब्धि थी। कुल मिलाकर मोदी की चीन यात्रा कहीं से भी न तो ऐतिहासिक थी और न ही इसने भारत-चीन सम्बन्धों में कोई बड़ा परिवर्तन किया। 
    चीन के बाद मंगोलिया यात्रा को भारतीय टी.वी. चैनलों ने भारत की दयालुता के रूप में पेश किया कि अभी तक कोई भारतीय प्रधानमंत्री मंगोलिया नहीं गया। कि मंगोलिया जाकर भारत ने वहां चीन के प्रभाव को कम कर अपना प्रभाव बढ़ाने की शुरूआत की आदि-आदि।
    चीन व मंगोलिया की यात्रा की बात हो या पिछले एक वर्षों में मोदी के 30 देशों की यात्राओं की बात हो कुछ चीजें टीवी चैनलों पर समान थीं। मोदी हर जगह मंदिरों में पूजा करने गये और उसका सजीव प्रसारण हुआ। मोदी ने सभी जगह भारतीय समुदाय को सम्बोधित किया उसका भी सजीव प्रसारण हुआ। हर यात्रा को मोदी ने बड़बोले स्वभाव के नाते ऐतिहासिक व भारत की ताकत के वैश्विक तौर पर फैलने के रूप में बताया और टी.वी. चैनलों ने मोदी  के हर झूठ को सच मानते हुए इसी रूप में प्रदर्शित किया। टी.वी. चैनलों के मुताबिक मोदी की यात्राओं से भारत की अंतर्राष्ट्रीय हैसियत बढ़ रही है भारत दुनिया की अर्थव्यवस्था में बड़ी भूमिका निभाने जा रहा है। उसकी साख बढ़ रही है, मानो सिकंदर 33 देश जीतकर आ गया है और अगले 3-4 सालों में बाकी देश जीत विश्व विजेता बन जायेगा। 
    मोदी सरकार का मीडिया मैनेजमेण्ट आज झूठ को सच साबित करने में सिद्धहस्त हो चुका है। मोदी का बखान टी.वी. चैनलों ने इस हद तक कर दिया है कि अब मोदी के भाषण से मेहनतकश जनता को कोफ्त होने लगी है। 
    मोदी द्वारा दुनिया भर में भारत के विकास का झूठा बखान और टी.वी. चैनलों पर उनके सजीव प्रसारण ने एक सकारात्मक चीज भी पैदा की है और वो यह कि देश की मेहनतकश जनता जो अधिकाधिक तंगहाली की ओर बढ़ रही है, के साथ मध्यम वर्ग के एक हिस्से ने भी मोदी की बातों और टी.वी. चैनलों के झूठ के निर्लज्ज प्रदर्शन को एक प्रहसन के रूप में लेना शुरू कर दिया है। 
    फिर भी मोदी सरकार के साथ चापलूस पूंजीवादी मीडिया भक्तिभाव से खड़ा है। उसका यह भक्तिभाव ही खबरिया चैनलों की स्वीकार्यता को गिरा रहा है। 

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