Sunday, May 31, 2015

बच्चों के हित में या बच्चों के खिलाफ?

बाल श्रम प्रतिबंधन एवं नियमन कानून में संशोधन
वर्ष-18, अंक-11(01-15 जून, 2015)
    गत 13 मई को संसदीय कैबिनेट ने बालश्रम प्रतिबंधन एवं नियमन कानून में संशोधनों को मंजूरी दे दी। सरकार ने अपनी पीठ ठोेंकते हुए कहा कि उसने बच्चों के हित का ध्यान रखते हुए 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से किसी भी किस्म के व्यवसाय में काम पर रोक लगा दी। साथ ही 14-18 साल के बच्चों के खतरनाक उद्योगों में काम पर रोक जारी रखी है। 
    हालांकि कानून में संशोधन का महत्वपूर्ण पहलू यह कदम है कि 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से पारिवारिक व्यवसाय में काम लेने की छूट दे दी गयी है। हालांकि यह जोड़ दिया गया है कि बच्चों को स्कूल के बाद पारिवारिक व्यवसाय में लगाया जा सकेगा। सरकार का तर्क है कि इससे बच्चों को अपना पारम्परिक काम सीखने का मौका मिलेगा। 

    इस संशोधन को सरकार द्वारा संसदीय कमेटी के विरोध के बावजूद कानून में शामिल कराया गया है। इसका क्या परिणाम होगा?
    14 वर्ष तक के बच्चों से किसी व्यवसाय में काम पर पूर्ण प्रतिबंध और केवल पारिवारिक व्यवसाय में काम लेने से छूट से अब स्थिति कुछ इस तरह से पैदा होगी कि अब अगर किसी को 14 साल से कम उम्र के बच्चे से काम कराना है तो उसे पारिवारिक व्यवसाय का आवरण बनाना पड़ेगा। जोकि अधिक मुश्किल नहीं होगा। कामों के विकेन्द्रीकरण होने उनके पीस रेट में होते जाने से घरेलू पारंपरिक कामों के अलावा फैक्टरियों का भी अच्छी मात्रा में काम घरेलू वर्कशापों में पहुंच रहा है जहां अब बच्चों से बेरोकटोक काम कराया जा सकेगा। 
    घरेलू पारम्परिक काम के नाम पर दरी बनाने, जरी के काम, पतंग-माझा बनाने के काम, कढ़ाई, सिलाई-बुनाई, घरेलू वर्कशापों, घरेलू बेकरी के साथ-साथ घरेलू नौकर के तौर पर भी बच्चों से काम कराना अधिक सुगम हो जायेगा। 
    जहां तक सरकार के बच्चों को स्कूल के बाद काम पर लगाने की बात है तो यह एक ऐसी बात है जो व्यवहार में बेहद कम ही उतर सकती है।
    कुल मिलाकर यह संशोधन बच्चों की भलाई के नाम पर उन्हें काम के जुए में धकेलने का ही इंतजाम करता है। भाजपा का परम्परागत जनाधार व्यापारी-बनियों के साथ छोटे उद्यमियों के एक हिस्से में रहा है। इस कानून संशोधन के जरिये भाजपा इन लोगों को बच्चों के शोषण का अधिकार देना चाहती है। 
    संभवतः बचपन से चाय के ठेले पर चाय बेचने का काम करने वाले मोदी देश के सभी गरीब मेहनतकशों के बच्चों को इसी तरह के काम के जुंए में ढकेल कर उनका उत्थान करना चाहते हैं। वैसे भी मोदी की तमाम चिकनी-चुपड़ी बातों का एक आशय मेहनतकश जनता के लिए यह भी होता है कि अगर तुम बेहद कम कमाई के साथ कठिन परिश्रम वाले काम में लगे गरीबी में जी रहे हो तो इसी काम को परिश्रम के साथ करते रहो एक दिन मोदी की तरह तुम्हारा भाग्य भी बदल जायेगा। 
    पूंजी के पक्ष में इससे बेहतर कुछ नहीं है कि बच्चे घरेलू कामों में अपना शोषण कराते हुए मोदी बनने की आस पालें।

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