Tuesday, June 16, 2015

जी-7 सम्मेलनः रूस, ग्रीस को धमकाने की नौटंकी

वर्ष-18, अंक-12(16-30 जून, 2015)
    साम्राज्यवादी मुल्कों के जी-7 का सम्मेलन हाल में सम्पन्न हो गया। पिछले वर्ष जी-8 से रूस को निलम्बित किये जाने के बाद से जी-7 पश्चिमी साम्राज्यवादियों का मंच बन कर रह गया है। उक्रेन के मुद्दे पर रूसी साम्राज्यवादियों और अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी साम्राज्यवादियों के बीच कायम हुई तनातनी अंततः जी-8 से रूस को निकाले जाने के रूप में समाने आई थी। पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने जहां रूस पर ढेरों आर्थिक प्रतिबंध लाद दिये तो वहीं तेल की कीमतों में गिरावट ने रूस की अर्थव्यवस्था को नीचे ढकेल दिया। पर इस सबके बावजूद उक्रेन व सीरिया के मसले पर रूसी साम्राज्यवादी अमेरिका को अपने मन की नहीं करने दे रहे हैं। खासकर उक्रेन में इनका परस्पर तनाव खासा गहराया हुआ है।
    ऐसे वक्त में अमेरिकी साम्राज्यवादी उक्रेन में अपने मन की करने के लिए रूस पर और प्रतिबंध थोपना चाहते हैं पर फ्रांस-जर्मनी के अपने आर्थिक हित रूस से सम्बन्ध बनाये रखने में हैं। इसलिए जी-7 का वर्तमान सम्मेलन रूस को कड़ी चेतावनी देने और रूस के खिलाफ मिलकर लड़ने के संकल्प से अधिक कुछ हासिल न कर पाया।

    सम्मेलन के घोषणापत्र में कहा गया कि हम रूस पर दबाव बढ़ाने के लिए और प्रतिबंध थोपने को तैयार है। इसके साथ ही स्वतंत्रता के सबसे बड़े रक्षक होने का ढोंग करते हुए उक्रेन की सरकार को यूरोपीय यूनियन व आईएमएफ के अनुरूप बुनियादी परिवर्तन करने व ढांचागत सुधार करने में पूरे समर्थन की बात की गयी।
    रूस के बाद दूसरा प्रमुख चर्चा का विषय ग्रीस था। ग्रीस में सीरिजा की जीत के बाद से ही यूरोपीय यूनियन इसके प्रति आशंकित रहा है। हालांकि सीरिजा अपने पूर्ववर्तियों की तरह ही कटौती कार्यक्रम लागू किये हैं। पर सीरिजा सरकार की यूरोपीय यूनियन के खिलाफ दिखावटी बयानबाजी भी यूरोपीय यूनियन के नेताओं को सशंकित कर दे रही है। ऐसे में जी-7 के मंच से जर्मनी-फ्रांस ग्रीस को चेतावनी देते नजर आये कि वह अपनी हद में रहे और यूरोपीय यूनियन के अनुरूप चले।
    रूस-ग्रीस को धमकाने के अलावा पर्यावरण के मुद्दे और आतंकवाद के मुद्दे पर इन देशों ने झूठी कसमें खायीं। कार्बन उत्सर्जन कम करने का संकल्प जाहिर किया व आतंकवाद से मिलकर लड़ने का संकल्प जाहिर किया। नाइजीरिया के बोकोहरम की भी इस दौरान चर्चा हुई।
    पर्यावरण से लेकर आतंकवाद पर इनकी चिंता दिखावटी ही थी क्योंकि पर्यावरण का सर्वाधिक नुकसान करने वाले यही विकसित देश हैं। इनकी साम्राज्यवादी कम्पनियां सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करती हैं। इनके बनाये हथियार भी पर्यावरण को चौपट करने में कहीं से पीछे नहीं हैं। अमेरिकी साम्राज्यवादी खुद दुनिया के सबसे संगठित आतंकवादी हैं जो देशों पर बमबारी से लेकर कब्जे तक में लिप्त रहे हैं। ये दुनिया में ढेरों देशों में आतंकवाद की फसल रोपते हैं। हालिया बर्बर आईएसआईएस इनकी सबसे ताजी आतंक की फसल की उपज है।
    कुल मिलाकर वैश्विक लुुटेरों का यह मंच दुनिया की मेहनतकश जनता की लूट को और बढ़ाने का प्रयास कर रहा है।

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