Wednesday, June 17, 2015

नेपाल में राजनैतिक गतिरोध टूटा

वर्ष-18, अंक-12(16-30 जून, 2015)
    नेपाल में लम्बे समय सेे चला आ रहा राजनैतिक गतिरोध 8 जून को टूटना शुरू हुआ। 8 जून को देश की चार प्रमुख राजनैतिक पार्टियों नेपाली कांग्रेस, सीपीएन-यूएमएल, यूसीपीएन (माओवादी), मधेसी जनाधिकार फोरम-लोकतांत्रिक के बीच 16 सूत्रीय समझौता हुआ। इस समझौते के पीछे भारी जनदबाव काम कर  रहा था। 25 अप्रैल को भूकंप आने के बाद से देश की गंभीर हालात के बाद राजनैतिक पार्टियों के खिलाफ जनाक्रोश काफी बढ़ गया था। संविधान निर्माण प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए यह समझौता राजनैतिक दायरों में आवश्यक समझा जा रहा था।

    चार पार्टियों के बीच हुए इस समझौते का एकीकृत कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ नेपाल (माओवादी) से अलग हुयी पार्टी नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी के अध्यक्ष मोहन वैध ने मुखर विरोध किया है। इसे लोगों की भावनाओं और आकांक्षाओं का अपमान बताया। इसी तरह कई अन्य पार्टियों व संगठनों ने भी अपना विरोध जताया है।
16 सूत्रीय समझौते के तहत-
1. नेपाली लोकतांत्रिक गणराज्य संघ में आठ प्रांत होंगे। इनका निर्धारण पहचान के पांच और क्षमता के चार मापदंडों के आधार पर किया जायेगा।(पहचान के पांच मापदंडः नृजातिय/सामुदायिक, भाषा, संस्कृति, इतिहास और भौगोलिक और क्षेत्रीय निरन्तरता तथा क्षमता के चार मापदंडः आर्थिक क्षमता, अधिरचना सामाथ्र्य, प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता और प्रशासनिक सम्भावना)
2. प्रांतों के नामों का निर्धारण दो-तिहाई बहुमत से प्रांतीय असेम्बली द्वारा किया जायेगा।
3. नेपाल की सरकार एक संघीय आयोग गठित करेगी जो कि प्रांतों का चिह्ननीकरण करेगा। यह आयोग 6 माह में अपनी रिपोर्ट देगा। आयोग की रिपोर्ट के बाद दो तिहाई बहुमत से संसद अंतिम निर्णय लेगी।
4. संघीय संसद में दो सदन होंगे जबकि प्रांतीय सभा में एक सदन होगा।
संसद और चुनाव प्रणालीः
5. मिश्रित चुनाव प्रणाली संसदीय चुनाव के लिए अपनायी जायेगी। संसद के निम्न सदन में 275 सदस्य होंगे। इनमें से 165 (60 फीसदी) सीधे निर्वाचित (फस्र्ट-पास्ट-दि-पोस्ट प्रणाली के तहत) होंगे जबकि 110 (40 फीसदी) विभिन्न पार्टियों को मिले कुल मतों के आधार पर तय किये जायेंगे।
6. संसद के उच्च सदन में 45 सदस्य होंगे जिनमें से 40 आठ प्रांतों से समान संख्या (प्रत्येक में पांच) के आधार पर चुने जायेंगे। पांच सदस्यों को राष्ट्रपति केन्द्रीय मंत्रीमंडल की सिफारिश पर नामित करेंगे।
सरकार का रूपः
7. लोकतांत्रिक गणराज्य संघ में बहुदलीय संसदीय प्रणाली होगी। स्पष्ट बहुमत प्राप्त दल या गठबंधन के नेता प्रधानमंत्री होंगे।
8. संवैधानिक राष्ट्रपति होगा जिसका चुनाव संसद और प्रांतीय विधान सभाओं द्वारा किया जायेगा।
(एकीकृत नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के संसद के आधार पर चलने वाली सरकार के रूप और संवैधानिक राष्ट्रपति जैसे मुद्दों पर अपने मतभेद दर्ज किये। वे राष्ट्रपति के सीधे निर्वाचन और उसके हाथ में कार्यकारी शक्तियों के पक्षधर रहे हैं।
9-10. नये संविधान के बनने के बाद अगले चुनाव के पहले तक संविधान सभा-संसद 2007 के अतंरिम संविधान के तहत ही चलेगी।
न्यायिक प्रणालीः
11-14. न्यायिक प्रणाली के बारे में है जिसमें सबसे प्रमुख बात स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली के संदर्भ में है।
15. संविधान लिखने की प्रक्रिया संघात्मकता, सरकार के रूप, चुनाव प्रणाली और न्यायिक प्रणाली पर हुए मूल सहमति (फण्डामेण्टल एग्रीमेण्ट) के आधार पर आगे चलेगी।
स्थानीय निकाय चुनावः
16. स्थानीय निकायों के चुनाव जितनी जल्दी हो सकें उतनी जल्दी करवाये जायेंगे ताकि लोगों का प्रतिनिधित्व व भागीदारी सुनिश्चत की जा सके।
    16 सूत्रीय समझौते को 11 जून को संविधान सभा में ‘पालिटिक्ल डायलाग एण्ड कन्सेनस कमेटी’(पीडीसीसी) के द्वारा अपनी एक रिपोर्ट में पेश किया गया जिसका बहुमत के द्वारा समर्थन किया गया। संविधान सभा में मधेसी जनाधिकार फोरम नेपाल, तराई मधेस लोकतांत्रिक पार्टी, सद्भावना पार्टी सहित पांच पार्टियों ने इस समझौते का विरोध किया और वे सदन से बायकाट कर चले गये। इस तरह इस समझौत का मुख्य राजनैतिक पार्टियों द्वारा समर्थन व विरोध का सिलसिला इस समय नेपाल में जारी है। मूलतः इस समझौते को नेपाली समाज में सकारात्मक माना जा रहा है।
    नेपाल में चार पार्टियों के बीच इस समझौते के साथ संविधान निर्माण की मुख्य बाधायें दूर हो गयी हैं। नेपाल में संविधान के निर्माण की सम्भावना बढ़ने के साथ नेपाल की क्रांति पूंजीवादी दायरे में अब पूरी तरह सिमट गयी है।
    नेपाल का संविधान अपनी अन्र्तवस्तु में एक पूंजीवादी संविधान है। राजशाही के खात्मे और सामंतशाही को गंभीर चुनौती देने वाली नेपाल की क्रांति ने पूंजीवादी जनवादी मंजिल संवैधानिक दायरे में हासिल कर ली है।
    नेपाल के मजदूरों, किसानों और अन्य मेहनतकशों को इस पूंजीवादी जनवादी संविधान से बहुत आशायें नहीं पालनी चाहिए। उन्हें आगे का रास्ता तय करना होगा। इस संविधान से प्राप्त जनवादी अधिकारों को भी वे संघर्ष के अनवरत सिलसिले से ही बचा सकेंगे। जाहिर है ऐसे संघर्ष को नये समाजवादी नेपाल के संघर्ष के मातहत होकर लगातार लड़ना होगा। नेपाल के मजदूरों, किसानों और अन्य मेहनतकशों को नेपाल में समाजवाद की लड़ाई को तीव्र करना होगा। वहीं से उनकी वास्तविकत मुक्ति की शुरूवात होगी। समाजवाद की इस लड़ाई के लिए उसे नये ढंग से पार्टी, रणनीति, रणकौशल आदि का निर्माण व निर्धारण करना होगा।

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