Thursday, July 16, 2015

व्यापम की व्यापकता

वर्ष-18, अंक-14(16-31 जुलाई, 2015)
मध्य प्रदेश सरकार के व्यापम घोटाले की चर्चा इस समय आम है। खासकर इससे सम्बन्धित मौतों ने सबका ध्यान खींचा है और इस पर हाय-तौबा मची है।
लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि इस घोटाले को अप्रतिम, बेनजीर या अपनी तरह का अनोखा बताने की कोशिश की जा रही है। कांगे्रस पार्टी द्वारा ऐसा किये जाने का तो वाजिब कारण है पर पूंजीवादी प्रचारतंत्र और अन्य लोग भी इसे इसी रूप में पेश कर रहे हैं।

सच्चाई यह है कि ये सब भी अच्छी तरह जानते हैं कि ऐसा नहीं है। कि व्यापम अपने आप में अनोखा नहीं है। कम से कम दो मामले तो जगजाहिर हैं- हरियाणा का मामला जिसमें चैटाला जेल में हैं तथा दूसरा उत्तर प्रदेश सरकार में पुलिस भर्ती का मामला।
आज सारी ही सरकारी नौकरियां घोटाले का एक बड़ा जरिया बन गयी हैं। उदारीकरण के दौर में निजी क्षेत्र में नौकरियां या तो बहुत कम वेतन वाली आकस्मिक और अस्थाई नौकरियां हैं या फिर बहुत ऊंचे वेतन वाली बहुत थोड़ी सी नौकरियां। इसके मुकाबले सरकारी नौकरी स्थाई और अच्छे वेतन वाली  होती हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि लगभग सारी ही नौकरियां प्रेमचंद्र के ‘नमक का दरोगा’ की तरह ‘ऊपरी कमाई’ का बड़ा स्रोत हैं।
ऐसे में सरकारी नौकरियों के लिए बहुत मारा-मारी है। उदारीकरण के दौर में एक नीति के तहत सरकारी नौकरियों में कटौती के कारण यह मारा-मारी बहुत बढ़ गयी है। सम्पन्न और प्रभुत्वशाली जातियों द्वारा अपने लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग इसी मारा-मारी की एक अभिव्यक्ति है।
इसी तरह इंजीनियरी-डाक्टरी के सरकारी शिक्षा संस्थानों में प्रवेश भी आज बेहद कीमती चीज बन गयी है। निजी संस्थानों के मुकाबले यहां फीस बेहद कम है और इनकी गुणवत्ता ऊंची है। इसीलिए इनमें प्रवेश के लिए भी बड़े स्तर की मारा-मारी है।
ऐसे में इस बात की संभावना पैदा होती है कि सरकारी नौकरियों व उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश की खरीद-फरोख्त शुरू हो जाये और यह अपने आप में एक धंधा बन जाये। मंत्रियों, उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों से लेकर दलालों तक का एक पूरा जाल फैल जाये और सारे ही प्रदेशों मंे ऐसा हुआ भी है।
आज सरकारी नौकरियों में नीचे से लेकर ऊपर तक की नौकरी की दर तय है। स्थिति यहां तक पहुंची है कि कर्मचारी कुछ सालों तक बिना वेतन के भी काम करने को तैयार हैं। मां-बाप खेत या कोई सम्पत्ति बेचकर सरकारी नौकरी खरीदने को तैयार हैं। इस फर्जीबाड़े को अंजाम देने के लिए नौकरियों की परीक्षा और साक्षात्कार में धांधली का पूरा इंतजाम किया जाता है।
इसी तरह इंजीनियरी, मेडिकल के सरकारी संस्थानों में फर्जी प्रवेश का पूरा इंतजाम किया जाता है, खासकर मेडिकल में। इसके लिए भी पूरा जाल फैलाया जाता है। इसमें दलालों से लेकर छात्र तक शामिल होते हैं।
चंूकि इस गोरखधंधे का ताना-बाना ऊपर से लेकर नीचे तक फैला हुआ है इसीलिए किसी भी मामले को उजागर होने से रोकने के लिए सारे एड़ी-चोटी का जोर लगा देते हैं। इसीलिए ऐसा होता है कि शुरूआती हल्ले-गुल्ले के बाद अंततः सब कुछ शांत हो जाता है। मध्य प्रदेश का मामला केवल इसीलिए विशेष हो गया कि इसमें मामले को शांत करने के लिए मौतों का सहारा लिया जाने लगा।
व्यापम जैसा घोटाला इसी बात का केवल एक और प्रमाण है कि वर्तमान पतित पूंजीवाद गले तक भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है और इसे सुधारा नहीं जा सकता।

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