Thursday, July 16, 2015

ललित मोदीः होनहार बीरवान के होत चिकने पात

वर्ष-18, अंक-14(16-31 जुलाई, 2015)
पूंजीवादी समाज में पूंजीपति वर्ग के सदस्यों को अपनी जीविका चलाने के लिए कोई श्रम नहीं करना पड़ता। वे दूसरों के श्रम पर पलते हैं। पूंजीवाद के शुरूआती दौर में श्रम के प्रबंधन में उनकी जो भूमिका होती है, वह भी पूंजीवाद के परजीवीपन बढ़ने के साथ-साथ कम होने लगती है। इस प्रकार सामाजिक उत्पादन के लिए न तो उनकी कोई जरूरत होती है और न ही वे कोई जरूरत पूरी करते हैं। इस तरह जीवन के किसी भी तरह के सार से वंचित अपने जीवन में वे जो भी काम करते हैं वह घिनौना और जुगुप्सा पैदा करने वाला होता है।

पूंजीपति वर्ग के सदस्य अपने बचपन में ही मेहनत करने वालों के प्रति एक हिकारत का भाव अपने परिवेश से हासिल करने लगते हैं। पैसे को ही व्यक्ति की ताकत का आधार मानते हुए वे मजदूर-मेहनतकशों को कीड़ा-मकौड़ा मानने लगते हैं और खुद अपने लिए सम्पत्ति इकट्ठा करने के लिए पतन के किसी भी गड्ढे में गिरने को तैयार रहते हैं। पूंजीवादी समाज का पूरा तंत्र उनका सहयोग भी कर रहा होता है। मुकेश अंबानी का लड़का अगर बगैर ड्राइविंग लाइसेंस के बेखौफ होकर मुंबई की सड़कों पर पूरी रफ्तार से गाड़ी चलाता है और दुर्घटना होने के बावजूद मामले को रफा-दफा कर दिया जाता है तो पूंजीवादी समाज के लिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
किसी भी पूंजीपति का जीवन अगर लोगों के सामने उजागर हो जाए तो उसमें सिर्फ हैवानियत और पतित आचरण ही दिखाई देगा। लेकिन पैसे की ताकत के दम पर पूंजीपति अपने सारे काले धंधे छिपाने में सफल हो जाते हैं। तब भी कोई-कोई पूंजीपति ऐसा होता है कि अपने वर्ग के आपसी झगड़ों से उसके द्वारा की गयी काली करतूतें लोगों को पता चल जाती हैं। ऐसा ही एक पूंजीपति ललित मोदी है। ललित मोदी ने अपने बचपन से ही अपनी मर्जी के सामने किसी नैतिकता या कानून की कोई परवाह नहीं की। इसके बावजूद वह लगातार आगे बढ़ता गया। भले ही उसके ऊपर कितने ही बड़े अपराधों के लिए मुकदमा चला हो, लेकिन आज भी तमाम नेता उसको उपकृत करने के मौके तलाशते रहते हैं।
ललित मोदी का जन्म एक बड़े उद्योगपति घराने में हुआ। उनके दादा गुजरमल मोदी ने एक बड़े व्यापारिक समूह को खड़ा किया और मोदीनगर शहर बसाया। ललित मोदी हीरा जड़ा सोने का चम्मच लेकर पैदा हुए थे। बड़े-बड़े स्कूलों में उन्हें पढ़ने के लिए भेजा गया। 17 वर्ष की उम्र में उन्हें सेंट जोसेफ कालेज, नैनीताल, से निकाल दिया गया। निकालने का कारण क्लास छोड़कर सिनेमा देखने जाना बताया गया। असली कारण कुछ और भी हो सकता है।
ललित मोदी ने 1983 से 1986 तक अमरीका में पढ़ाई की। इस दौरान उन्होंने अमेरिका के दो विश्वविद्यालयों में दाखिला लिया लेकिन किसी से भी स्नातक की डिग्री नहीं हासिल कर पाए। 1983 में मोदी और उनके तीन अन्य दोस्तों ने एक होटल में दस हजार डाॅलर में आधा किलो कोकीन खरीदने की कोशिश की। कोकीन विक्रेता के वेश में एक व्यक्ति ने बंदूक की नोंक पर उनसे दस हजार डाॅलर लूट लिए। अगले दिन मोदी और उनके दोस्तों ने एक छात्र की इस संदेह में पिटाई कर दी कि उनके पैसे लुटवाने की साजिश में वह छात्र शामिल था। परिणामस्वरूप, 1 मार्च 1985 को ललित मोदी को कोकीन हस्तांतरण, मार-पीट, अपहरण के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। अदालत में मोदी ने जुर्म कबूल किया और हलकी सजा के लिए प्रार्थना की। उन्हें निलंबित दो साल की जेल की सजा हुई। जेल की सजा के बदले उन्हें पांच साल के निरीक्षण अवधि और 100 घंटे की सामुदायिक सेवा के लिए कहा गया। 1986 में ललित मोदी ने स्वास्थ्य बिगड़ने का बहाना बनाकर भारत वापस जाने की अदालत से अनुमति मांगी। अपने पिता के सम्बन्धों के दम पर उन्हें भारत वापस आने की अनुमति मिल गयी और अदालत ने भारत में उनसे 200 घंटे की सामुदायिक सेवा का आदेश दिया। भारत के लोगों को तो ललित मोदी से कुछ खास ही ‘सामुदायिक सेवा’’ का मौका मिलने वाला था।
भारत आकर ललित मोदी अपने पारिवारिक कारोबार में शामिल हो गये। कुछ ही समय में उन्हें भारत की सबसे बड़ी तंबाकू कम्पनियों में से एक ‘गाॅडफ्रे फिलिप्स इंडिया’ का गैर कार्यकारी-गैर स्वतंत्र निदेशक बना दिया गया। 1993 में ललित मोदी ने मोदी इन्टरटेनमेंट नेटवक्र्स(एमइएन) के नाम से टीवी पर कार्यक्रम दिखाने वाली कंपनी खोली। 1994 में एमइएन का ईएसपीएन से दस साल का करार हुआ।  एमइएन का काम केवल कंपनियों से ईएसपीएन के कार्यक्रम दिखाने के एवज में पैसा वसूलना था। ईएसपीएन ने मोदी की कंपनी पर वसूले गए पैसे को कम कर के दिखाने का आरोप लगाकर करार का नवीनीकरण नहीं किया।
अपने द्वारा शुरू किये गये सभी व्यवसायों की असफलता के बावजूद ललित मोदी अपने पारिवारिक कारोबारी समूह मोदी इंटरप्राइजेज के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक बने।
ललित मोदी के असली गोरखधंधे क्रिकेट से जुड़े हैं। क्रिकेट से होने वाली पैसों की कमाई किसी से छिपी नहीं है। इस कमाई का हिस्सा पाने के लिए ललित मोदी क्रिकेट प्रशासन में क्रमशः दाखिल हुए। 1999 में ललित मोदी हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन में निर्वाचित हुए। एसोसिएशन पर नियंत्रण का उनका प्रयास असफल हुआ और राज्य के मुख्यमंत्री ने उन्हें एसोसिएशन छोड़ने के लिए बाध्य किया। 2004 में ललित मोदी पंजाब क्रिकेट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष चुने गये।
2003 में वसुंधरा राजे राजस्थान की मुख्यमंत्री बनीं। वसुंधरा राजे के साथ ललित मोदी की मित्रता थी जो उनके मुख्यमंत्रित्व के दौरान और फली फूली। ललित मोदी वसुंधरा राजे के सबसे घनिष्ठ सहयोगी बन गए। ललित मोदी को सुपर चीफ मिनिस्टर भी कहा जाता था। वे अकसर जयपुर जाते थे। और रामबाग पैलेस में रुकते थे जहां मंत्री और नौकरशाह उनसे मिलते और काम करवाने के लिए लाइन लगाते थे। नियम कानूनों में फेरबदल कर ऐतिहासिक स्थलों को निजी हाथों में सौंपने के कई मामले ललित मोदी से जुड़ते हैं।
हिमाचल प्रदेश में असफल होने के बाद ललित मोदी ने राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन पर नियंत्रण हासिल करने की ठानी। राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन (आरसीए) पर एक कारोबारी परिवार रुंगटा परिवार का तीन दशक से कब्जा था। इसके सदस्य 32 जिला एसोसिएशनें और 66 व्यक्तिगत सदस्य थे। मोदी ने आरसीए में घुसने के लिए नागौर जिला क्रिकेट एसोसिएशन में ललित कुमार के नाम से पंजीकरण करवाया। उसने अपना पूरा नाम इसीलिए नहीं इस्तेमाल किया क्योंकि इससे प्रवेश नहीं मिलने का खतरा था।
ललित मोदी ने वसुंधरा राजे से अपने संबंधों का इस्तेमाल कर 2005 राजस्थान स्पोटर््स एक्ट पास करवाया। नियम कानूनों में बदलाव के बाद राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के 66 व्यक्तिगत सदस्यों के मताधिकार समाप्त हो गए और सिर्फ 32 जिला एसोसिएशन मतदाता के बतौर बचे। इसके बाद ललित मोदी पुराने अध्यक्ष फिशोर रुंगटा को मात्र एक वोट से हराकर अध्यक्ष चुने गये। बीसीसीआई की राजनीति में ललित मोदी ने हाथ डाला और उसके उपाध्यक्ष नियुक्त किए गये। ललित मोदी बीसीसीआई के वाणिज्यिक मामलों में काफी दिलचस्पी रखते थे। 2005 से 2008 के बीच बीसीसीआई का राजस्व सात गुणा बढ़कर एक अरब डाॅलर की रेखा तक पहुंच गया।
2008 में ललित मोदी की पहल पर आईपीएल शुरू हुआ। यह दुनिया के सबसे बड़े खेल आयोजनों में से एक बन गया। ललित मोदी के परिवारजनों और मित्रों को भी आईपीएल से काफी लाभ हुआ। उनके बहनोई का राजस्थान राॅयल्स में बहुमत हिस्सेदारी है। उनके दामाद को आईपीएल के डिजिटल, मोबाईल और इंटरनेट अधिकार हासिल हुए। इसी दामाद का भाई किंग्स इलेवन पंजाब में हिस्सेदार है। कोलकाता नाइट नाइडर्स का एक मालिक जय मेहता उनके बचपन का दोस्त है। राजस्थान राॅयल्स, किंग्स इलेवन पंजाब और कोलकाता नाइट राइडर्स सबसे सस्ते बिके थे।
राजस्थान की राजनीति में ललित मोदी का ऊंचा कद 2008 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में मुद्दा बना। इस चुनाव में भाजपा की हार हुई और अशोक गहलोत वसुंधरा राजे के स्थान पर मुख्यमंत्री बने।
जो मामला ललित मोदी के बीसीसीआई से निष्कासन का कारण बना वह था आईपीएल की दो नई टीमों में से एक कोच्चि टस्कर्स के फ्रेंचाइजी का आवंटन। ललित मोदी ने अपने अदाणी ग्रुप और वीडियाकोन ग्रुप को लाभ पहुंचाने के मकसद से दावेदारी के नियमों को तोड़ा-मरोड़ा। 2010 में बीसीसीआई के द्वारा निलंबित किये जाने के बाद से वे लंदन में रह रहे हैं। वे यूरोप में अपने पारिवारिक कारोबार का विस्तार कर रहे हैं। उन्होंने जान के खतरे की बात कहते हुए भारत लौटने से मना कर रखा है।
2013 में बीसीसीआई की एक कमेटी ने 8 आरोपों के लिए ललित मोदी को दोषी पाया और उन्हें आजीवन प्रतिबंधित कर दिया।
ललित मोदी के ऊपर प्रवर्तन निदेशालय कई आरोपों की जांच कर रहा है। अभी तक कोई आरोप साबित नहीं हुआ है। सभी राजनीतिक पार्टी के नेताओं से ललित मोदी के करीबी रिश्ते रहे हैं। भाजपा के नेताओं और उनके बच्चों से ललित मोदी के रिश्तों का खुलासा पूरी तरह से नहीं हो पाया क्योंकि पूंजीवादी मीडिया ने नरेन्द्र मोदी की छवि को पहुंचने वाले संभावित नुकसान के मद्देनजर ‘‘मोदी गेट’’ को सेंसर कर दिया है।
अगस्त, 2014 में उच्च न्यायालय ने ललित मोदी का पासपोर्ट पुनर्बहाल कर दिया है। कोई आश्चर्य नहीं होगा अगर ललित मोदी प्रवर्तन निदेशालय की जांच में भी बाइज्जत बरी किए जायेंगे।
(तथ्य सा्रेतः विकीपीडिया)

No comments:

Post a Comment