Wednesday, July 1, 2015

इस्लामिक स्टेट का कहर

वर्ष-18, अंक-13(01-15 जुलाई, 2015)
पिछले दिनों फ्रांस, ट्यूनीशिया, कुवैत, सीरिया में इस्लामिक स्टेट या उससे जुड़े संगठनों के हमले में दर्जनों लोग मारे गये और घायलों की संख्या भी सैकड़ों में है।
फ्रांस, ट्यूनीशिया, कुवैत में मारे जाने वाले निर्दोष नागरिक थे। उनकी हत्या किये जाने का एक ही मकसद था व्यापक तौर पर आतंक फैलाना और पश्चिमी साम्राज्यवादियों को एक संदेश देना कि वे किस तरह और कहां तक हमले कर सकते हैं।

इस्लामिक स्टेट ने फ्रांस व ट्यूनीशिया में जहां यूरोपीय देशों के नागरिकों की हत्याएं कीं वहां कुवैत में उनके निशाने पर शिया थे। सीरिया में इनके निशाने पर कुर्द थे। सीरिया में मारे गये लोगों में महिलाएं और मासूम बच्चे भी रहे हैं।
इस्लामिक स्टेट और उससे जुड़े आतंकवादी संगठनों की पैदाइश व परवरिश में अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, इटली जैसे पश्चिमी साम्राज्यवादियों के साथ अरब की शेखशाहियों का हाथ रहा है। इन आतंकी संगठनों को हथियार से लेकर धन तक यही सब मुहैय्या कराते रहे हैं। और जब से विश्व आर्थिक संकट शुरू हुआ और उसके बाद अरब के देशों में लोकप्रिय जनांदोलन फूट पड़े तब से इन आतंकी समूहों को खूब खाद पानी दिया गया। आज ये संगठन इतने ताकतवर और स्वतंत्र हो चुके हैं कि ये अपने पैदा करने वालों के लिए भी खतरा बन गये हैं।
हाल के वर्षों में फ्रांस में बढ़ते आतंकी हमलों की एक बड़ी वजह फ्रांसीसी साम्राज्यवादियों की अरब और अफ्रीका के मुस्लिम बहुल देशों में सैनिक हस्तक्षेप के साथ बढ़ती दखलंदाजी रही है।
ट्यूनीशिया की स्थिति 2011 के बाद से ही यह रही कि वहां कट्टरपंथी इस्लामिक समूहों को स्वयं शासक वर्ग के हिस्से ने प्रश्य और संरक्षण दिया। लोकप्रिय जन आंदोलन को कुचलने के लिए वामपंथी नेताओं की हत्याएं तक यहां करवायी गयीं। ‘बोया पेड़ बबूल का आम कहां से खाये’ की तर्ज पर यहां के शासकों को अपने ही कुकृत्यों का परिणाम मिल रहा है।
कुवैत में रहने वाली शिया आबादी को सुन्नी कट्टरपंथियों और आतंकियों के द्वारा की गयी कार्यवाही साम्प्रदायिक हिंसा व तनाव फैलाने के मकसद से भरी हुयी है। इस्लामिक स्टेट के कुख्यात नेता रमजान के महीने में इस तरह के हमले करने के लिए लगातार अपने कैडरों को उकसा रहे हैं। वे अपने कुत्सित इरादों को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।
इराक-सीरिया में इस्लामिक स्टेट ने अपना कब्जा और दबदबा एक बड़े क्षेत्र में बनाया हुआ है। अपने कब्जे को बनाये रखने और नये इलाके हथियाने के लिए वह भीषण नरसंहारों को अंजाम देते रहे हैं।
इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी समूहों का समूल नाश न तो पश्चिम साम्राज्यवादी और न ही स्थानीय शासक कर सकते हैं। ऐसा करने की इनकी न तो मंशा है और उससे बढ़कर न ही क्षमता। इनका विनाश केवल मजदूर वर्ग अपनी व्यापक एकता, संगठन व जनता के दम पर तब ही कर सकता है जब उसका लक्ष्य इन आतंकी समूहों के साथ-साथ स्थानीय शासक व साम्राज्यवाद हो। इनका खात्मा किये बगैर जनता को मुक्ति व राहत नहीं मिल सकती है। केवल समाजवाद ही इस बर्बरता का सही व उचित जवाब हो सकता है। 

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