Wednesday, July 1, 2015

‘ललित गेट’: फिर उद्घाटित हुआ भारतीय शासकों का भ्रष्ट चरित्र

वर्ष-18, अंक-13(01-15 जुलाई, 2015)
पिछले दो हफ्तों से देश की राजनीति में ललित मोदी और भाजपा के नेताओं के रहस्यमयी सम्बन्ध छाये हुए हैं। इन सम्बन्धों के खुलासों के बाद देश के प्रधानमंत्री को मानो सांप सूंघ गया है। वे एकदम मौन हो गये हैं। ‘मुदुहु आंख कतहु कुछ नाहीं’ की उनकी इस योग मुद्रा ने भाजपा के दूसरी और तीसरी पंक्ति के नेताओं को कहीं का नहीं छोड़ा है। वैसे भी एक-दो मंत्री को छोड़कर मोदी जी ने अपने मंत्रिमण्डल के लोगों को इस लायक भी नहीं छोड़ा था कि वे कुछ कर सकंे। वे इतने बेचारे या नालायक समझे गये कि वे अपने निजी सचिवों का भी चुनाव नहीं कर सकते थे। ऐसे समय में जब भाजपा की खूब धज्जियां उड़ रही हैं तब प्रधानमंत्री का मौन प्रमाण हो न हो परन्तु वक्त ने उनकी बोलती बंद कर दी है। या फिर मौन भारत के शीर्ष पर बैठे व्यक्तियों की अदा है।

भ्रष्टाचार पिछली संप्रग सरकार के साथ ऐसे जुड़ा रहा कि शायद ही कोई माह बीता हो जब इसके खुलासे न हुए हों। उस वक्त भाजपा की आक्रामकता संसद और सड़क पर देखने लायक होती थी। और एक वर्ष बीतते-बीतते अब भाजपा की हालत देखने लायक है।
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भाषण देने की कला में जितनी माहिर रही हैं उतनी ही माहिर कर्नाटक के रेड्डी बंधु जैसे खनन माफियाओं से लेकर ललित मोदी जैसे धूर्त के साथ संबंधों को निभाने में हैं। वे अपने वकील पति और बेटी के मोदी के साथ व्यवसायिक सम्बन्धों को पूरी कुशलता के साथ निभाती जातीं यदि इस तरह के खुलासे न होते। संसद में नैतिकता की दुहाई देने वाली स्वराज कितनी नैतिक हैं यह सामने है।
वसुन्धरा राजे सिंधिया के ललित मोदी से कैसे सम्बन्ध रहे हैं इससे ही स्पष्ट है कि उन्हें पिछली बार के कार्यकाल के दौरान अनौपचारिक तौर पर मुख्यमंत्री ही माना जाता था। ललित मोदी का सितारा विशेष तौर पर भाजपा के नेताओं के उनकी पीठ पर हाथ रखने से ही चमका है। सामंती ढंग से शासन चलाने वाली वसुन्धरा राजे किसी भी हद तक जाकर मोदी की मदद करती रहीं। बहुत घेरने और नये-नये खुलासे के बाद ही उन्होंने स्वीकारा कि ललित मोदी की उन्होंने पूरे देश को अंधेरे में रखकर मदद की।
स्मृति ईरानी, पंकजा मुण्डे जैसे मामलों ने भाजपा के ‘चाल-चरित्र-चेहरे’ की रही-सही पोल और खोल दी है।
असल में इन सब खुलासों और मंत्रियों के आचरण में ऐसा कुछ अनोखा नहीं है जो पहले न हुआ हो और भविष्य में नहीं होगा। पूंजीवादी समाज का जिस तेजी से क्षरण और पतन हो रहा है उसमें पूंजीवादी राजनीति का भी ऐसा ही हस्र होता जाता है।
पूंजी का चरित्र ही ऐसा है वह सब कुछ को अपने रंग में रंग देती है। ऐसे में सत्ता के शीर्ष में बैठे लोगों की जिनकी जिम्मेदारी ही पूंजीपति वर्ग के हितों को साधने की है (और वे स्वयं भी पूंजीपति हैं) तो यह हो ही नहीं सकता कि वहां आचरण में भ्रष्टता न हो। भाई-भतीजावाद न हो। पूंजी का रंग न हो। पूंजी का पूरा इतिहास ही धोखाधड़ी, लूटपाट, निर्ममतापूर्वक शोषण और दमन से भरा हुआ है। ऐसे में सिर्फ वक्त की ही बात थी कि कब मोदी सरकार का चरित्र उद्घाटित होता। कब उसकी पोल खुलती।
नरेन्द्र मोदी का गुजरात का पूरा काल खण्ड पूंजी के हितों को साधने के लिए किसी भी हद तक जाने का रहा है। उन्होंने उन सभी संस्थाओं को धता बता दी थी जिनकी जिम्मेदारी कानूनी रूप से निगरानी या जवाबदेही सुनिश्चित करने की थी। आज वे केन्द्र में ऐसा ही बंदोबस्त कर रहे हैं कि कानूनों और संस्थाओं को ऐसा बना दिया जाय जहां आज के नग्न पूंजीवाद को कोई दिक्कत न हो। उसकी राह में कोई बाधा न हो। जो वह करे वही नैतिकता हो।
इस लिहाज से देखा जाए तो किसी ने भी कुछ भी गलत नहीं किया। न तो ललित मोदी, न सुषमा स्वराज, न वसुन्धरा राजे, न स्मृति ईरानी, न पंकजा मुण्डे और न स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। जब कुछ गलत हुआ नहीं तो फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र बोले तो क्या बोले। और ऐसे ही बोलना पड़ा तो अगले चार साल में वे बोलते रह जायेंगे। काम कब करेंगे। पूंजी का रास्ता कब सुगम करेंगे। 

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