Monday, February 16, 2015

कश्मीर में सेना-पुलिस ने कायम किया आतंक राज

वर्ष-18, अंक-04 (16-28 फरवरी, 2015)
    फरवरी के पहले और दूसरे सप्ताह जम्मू-कश्मीर में पुलिस-सेना की बर्बरता के खिलाफ जनाक्रोश के रहे। पहले सेना के द्वारा दो किशोरों की हत्या और फिर पुलिस के द्वारा एक प्रदर्शनकारी की हत्या के बाद कश्मीर के सभी शहरों में व्यापक प्रदर्शन हुये और आम हड़ताल रही। प्रदर्शन और हड़ताल को असफल करने के लिए पुलिस ने प्रमुख अलगाववादी नेताओं को या तो नजरबंद कर दिया या फिर पुलिस हिरासत में ले लिया। हड़ताल के कारण कश्मीर विश्वविद्यालय ने अपनी परीक्षाएं स्थगित कर दी हैं।

    कश्मीर की आजादी के दो प्रतीक बन चुके व्यक्तियों मुहम्मद मकबूल बट और मोहम्मद अफजल गुरू के अवशेषों की वापसी को लेकर जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट द्वारा बुलायी गयी हड़ताल का व्यापक असर रहा। गौरतलब है कि मकबूल बट को 11 फरवरी 1984 तथा अफजल गुरू को 9 फरवरी 2013 को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी देकर वहीं दफन कर दिया गया था। कश्मीर की जनता के एक हिस्से में मांग रही है कि उनके इन नेताओं के अवशेषों को कश्मीर में लाया जाय।
    कश्मीर में पुलिस और भारतीय सेना ने विरोध प्रदर्शन न होने देने के लिए पूर्ण दमनात्मक रुख अपनाया हुआ है। हालिया विधानसभा चुनाव में कश्मीर में भारी पैमाने पर हुये मतदान को लोकतंत्र की जीत बताकर प्रचारित करने वाले इस वक्त जब कश्मीर की जनता का दमन हो रहा है, मौन साधे हुये हैं। कोई भी पूछ सकता है कि यह कैसा लोकतंत्र है जहां आवाम को अपनी आवाज उठाने का हक नहीं है। और यह कोई अनोखी मांग नहीं है कि आम लोग अपने उन नेताओं के अवशेषों को वापस मांगें जो उनके लिए लड़ते हुये मारे गये। भारत की आजादी के लिए लड़ने वाले क्रांतिकारी उधमसिंह को जनरल ओड्वायर की हत्या करने पर ब्रिटेन में 31 जुलाई 1940 को फांसी दे दी गयी थी। उनकी मौत के कई दशक बाद 1974 में भारत की जनता की मांग पर उनके अवशेष भारत लाये गये और उनका अंतिम संस्कार किया गया।
    भारतीय शासक और इसी तरह पाकिस्तानी शासक कश्मीर को जबरदस्ती अपने कब्जे में बनाकर रखे हुये हैं। कश्मीर की जनता अपनी आजादी की मांग करती और लड़ती रही है परन्तु शासक सेना और पुलिस के जरिये ही अपना कब्जा बनाये हुये हैं। वर्षों से इस दमन और जबरदस्ती के कब्जे के खिलाफ लड़ते हुये सैकड़ों की संख्या में निहत्थे नौजवान और यहां तक कि बच्चे भी सेना-पुलिस की गोलियों से मारे जा चुके हैं। फरवरी में भी फूटे जनाक्रोश में दो किशोरों और एक नौजवान की हत्या की बड़ी भूमिका है।
    कश्मीर में हाल के विधानसभा चुनाव के बाद अभी तक कोई सरकार का गठन नहीं हो पाया है। राष्ट्रपति शासन के तहत कश्मीर इस वक्त सीधे केन्द्र में मोदी सरकार के नियंत्रण में है। हिन्दू अंध राष्ट्रवादियों की इस सरकार का रुख भी पूर्व की सरकारों की तरह कश्मीर के प्रति कठोर है। वे जानते हैं कश्मीर में शांति का रास्ता कश्मीर की आजादी से जुड़ा है। और कश्मीर की आजादी का अर्थ आज भारतीय पूंजीवादी व्यवस्था के खात्मे से जाकर जुड़ चुका है।
    वास्तव में सच्चे अर्थों में कायम भारतीय समाजवादी राज्य ही देश की सभी राष्ट्रीयताओं को आत्मनिर्णय का अधिकार दे सकता है। वर्तमान पूंजीवादी राज्य तो उत्पीडि़त राष्ट्रीयताओं का क्रूर दमन ही कर सकता है आत्मनिर्णय का अधिकार जिसमें अलग हो जाने का अधिकार भी शामिल हो, के आधार पर ही पूरे दक्षिण एशिया में सभी राष्ट्रीयताओं की मुक्ति का रास्ता खुल सकता है। और यदि भविष्य में एक ऐसा समाजवादी संघ अस्तित्व में आता है जिसमें सभी राष्ट्रीयताओं को आत्मनिर्णय का अधिकार हो तभी पूरे दक्षिण एशिया में शांति कायम हो सकती है। युद्ध और दमन के द्वारा बरपायी जाने वाली बर्बरता का अंत हो सकता है। और एक समाजवादी संघ ही सभी राष्ट्रीयताओं के बीच बराबरी, भाईचारा और शांति कायम कर सकता है।

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