Sunday, February 1, 2015

ओबामा के आगे नतमस्तक हुए भारतीय शासक

वर्ष-18, अंक-03(01-15 फरवरी, 2015)
    अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा को लेकर पूंजीवादी मीडिया ने जिस उत्सव का माहौल कायम किया उसके आगे भारत का गणतंत्र दिवस फीका रह गया। सबसे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने प्रोटोकाॅल तोड़कर ओबामा की हवाई अड्डे पर आगवानी की फिर अपने हाथों से चाय बनाकर ओबामा को पिलाई। इस दौरान आतंकवाद से लेकर परमाणु सरीखे कई समझौते दोनों देशों के शासकों ने किये। ओबामा के आगे नतमस्तक होने पर किसी को शर्म नहीं आई। पूंजीपतियों से लेकर संघी मोदी, पूंजीवादी मीडिया सब ओबामा के आगे हाथ जोड़े खड़े रहे। माहौल कुछ इस तरह का था मानो भारतीय शासकों का भाग्य, उनकी अर्थव्यवस्था की गति सब कुछ ओबामा के हाथों में आ गयी हो और भारत के शासक इस मुद्रा में थे मानो ओबामा से निवेश की भीख मांग रहे हों।

    इस दौरान बताया गया कि विवादास्पद भारत-अमेरिकी परमाणु करार की सभी बाधायें भी दूर कर ली गयीं। यह वही करार था जिस पर हस्ताक्षर करने के खिलाफ कभी भाजपा मनमोहन सिंह के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लायी थी तब सांसदों की खरीद-फरोख्त के बाद ही मनमोहन सरकार खुद को बचा पाई थी। अब मोदी न केवल मनमोहन के कदम चिह्नों पर चल रहे हैं बल्कि उनसे दो कदम आगे निकल चुके हैं। ओबामा को गणतंत्र दिवस का अतिथि बनाने की हिम्मत मनमोहन सिंह भी नहीं कर पाये थे। अब मोदी ने दो कदम आगे बढ़ते हुए परमाणु करार के जरिये देश की सम्प्रभुता को और तेजी से बेच खाना शुरू कर दिया है। 
    परमाणु करार के मसले पर अभी तक यह बात फंसी हुई थी कि किसी दुर्घटना के वक्त जिम्मेदारी और इसलिए देनदारी किस देश की होगी। भारत, जिस देश का रियेक्टर है, उस देश को जिम्मेदार बनाना चाहता था। वहीं अमेरिका केवल भारत सरकार को ही जिम्मेदार बनाना चाहता था। अब हुए समझौते के तहत 1500 करोड़ रुपये का एक ‘इंश्योरेंस पूल’ कायम किया जायेगा। 4 बड़ी बीमा कम्पनियां 750 करोड़ रुपये का बीमा करेंगी व शेष 750 करोड़ रुपये का भार भारत सरकार उठायेगी। 
    दूसरा विवादित मुद्दा परमाणु संयंत्रों की अंतर्राष्ट्रीय निगरानी का था। इस पर भारतीय अखबारों के दावे के अनुसार फिलहाल अमेरिका पीछे हट गया है। परन्तु दूसरी असलियत भी भविष्य में ही सामने आयेगी। 
    आतंकवाद के मुद्दे पर दोनों देशों के सांसदों ने हमेशा की तरह ही इससे लड़ने की कसमें खाईं। अमेरिकी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए भारत सरकार ने उनके लिए नई रियायतों की घोषणा की। 
    इसके अलावा दोनों देशों के शासकों के बीच हुए अन्य समझौते भविष्य में सामने आयेंगे इन समझौतों के इतर ओबामा के जहाज से लेकर मिशेल के परिधानों, उनके लिए बने भारतीय पकवानों की ही अधिक चर्चा रही। सुरक्षा प्रबंधों के मसले पर भी भारत सरकार ओबामा के आगे नतमस्तक रही। दिल्ली का हवाई क्षेत्र एक तरह से अमेरिका के हवाले कर दिया गया जहां परिन्दा भी उनकी अनुमति के बगैर पर नहीं मार सकता। 
    इस तरह से अपनी राजधानी किसी साम्राज्यवादी को सौंप देने की करामात मौजूदा भारत सरकार ही कर सकती थी, यही भाजपा सरकार व संघ का राष्ट्रवाद है जो ओबामा के चरणों में लोटता है और पाकिस्तान को आंखें दिखाता है। 
    जहां शासक वर्ग ओबामा के स्वागत में जुटा था वहीं देश की क्रांतिकारी ताकतें, वामपंथी पार्टियां ओबामा की भारत यात्रा के खिलाफ खड़ी थीं। देश का हर बड़ा शहर ओबामा विरोधी प्रदर्शनों का गवाह बना। 

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