Sunday, February 1, 2015

ग्रीस में सीरिजा के जीत के मायने

वर्ष-18, अंक-03(01-15 फरवरी, 2015)
    विश्व व्यापार संकट में सबसे बुरी तरह शिकार होने वाले देशों में ग्रीस रहा है। अर्थव्यवस्था की गिरती विकास दर ने संकट के 7 वर्षों में यहां की अर्थव्यवस्था को काफी सिकोड़ दिया है। बाकी देशों की तरह यहां की सरकार ने भी संकट के वक्त जहां पूंजीपतियों को बचाने के लिए अपने खजाने का मुंह खोल दिया और इस तरह खुद सरकार को भारी कर्ज में डुबा दिवालिया होने की हद पर पहुंचा दिया। बाद में इस कर्ज को कम करने के नाम पर और केन्द्रीय यूरोपीय बैंक व यूरोपीय यूनियन से नये कर्जों की शर्त के बतौर ग्रीस की सरकार ने जनता के ऊपर बड़े पैमाने के कटौती कार्यक्रम थोप दिये। इन कटौती कार्यक्रमों ने संकट व बेकारी से तबाह हाल मेहनतकश जनता की कमर ही तोड़ दी। युवाओं में बेरोजगारी ग्रीस में अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ गयी। 
    स्वाभाविक रूप से जनता बडे़ पैमाने पर यूरोप के बाकी देशों की तरह कटौती कार्यक्रमों के खिलाफ मैदान में डटने लगी। ग्रीस का पिछले 10 वर्षों का इतिहास इस बात की तस्दीक करता है कि कोई वर्ष ऐसा नहीं बीता जब ग्रीस की जनता ने अपने कटौती कार्यक्रम विरोधी प्रदर्शनों में सड़कों को न भर दिया हो। परंतु ग्रीस का शासक वर्ग यूरोपीय यूनियन में किसी भी कीमत पर बने रहने की खातिर कटौती कार्यक्रम लागू करता रहा और इस तरह जनता से अलगाव में पड़ता रहा। 

    जनता पर यह हमला 2004 से पहले ही शुरू हो चुका था। यह बात दिखलाती है कि ग्रीस यूरोपीय यूनियन के उन चंद देशों में से था जो वैश्विक संकट से पहले से ही संकट का शिकार थे। 2004 में इन कटौती कार्यक्रमों के खिलाफ तरह-तरह के वामपंथी संगठनों के मोर्चे के रूप में सीरिजा का उदय हुआ। उसने शुरूआत में कटौती कार्यक्रमों को रोकने, ग्रीस को यूरोपीय यूनियन से बाहर लाने सरीखे लोकप्रिय आह्वान किये। इस सबका परिणाम यह निकला कि अगले चुनावों में सीरिजा एक बड़ी ताकत के रूप में उभर गयी। हालांकि सत्ता से वह अभी भी दूर थी। अब जनवरी, 2015 के चुनावों में सीरिजा को भारी जीत हासिल हुई। खबर लिखे जाने तक उसने 300 सीटों में से लगभग आधी सीटें जीतने की उम्मीदें लगायी हैं। 
    सीरिजा कोई क्रांतिकारी कम्युनिस्ट पार्टी नहीं है यह तमाम वामपंथी सोचों वाले संगठनों का ही एक गठबंधन है। इसमें मूलतः संशोधनवादी धड़ा हावी है। इस तरह सीरिजा की इस जीत मात्र से ग्रीस की पूंजीवादी व्यवस्था में कोई बुनियादी परिवर्तन नहीं आयेगा। इस पार्टी के नेता अलेक्सिस सीप्रास ने चुनाव से पूर्व प्रचार अभियानों में ग्रीस को कर्ज के जाल से निकालने, कटौती कार्यक्रम रोकने, यूरोपीय यूनियन के दबाव के आगे न झुकने के बड़े-बड़े लोक लुभावन वायदे आदि किये पर इस सबमें पूंजीवाद को हमले का कहीं भी निशाना नहीं बनाया गया बल्कि राष्ट्रवाद की बातें कर पूंजीपति वर्ग के एक हिस्से को भी अपनी नीतियों पर सहमत कराने का प्रयास अधिक किया गया। 
    सत्ताशीन पार्टी न्यू डेमोक्रेसी चुनाव में दूसरे स्थान पर रही और अब तक प्रधानमंत्री रहे अन्तोनियस समारास ने चुनाव में हार स्वीकार कर सीरिजा को जीत की बधाई दी। 
    सीरिजा की जीत की संभावनाएं चुनाव के पहले ही लगने लगी थीं। इसलिए ग्रीस के शासक पूंजीपति वर्ग के एक धड़े ने भी सीरिजा का समर्थन कर यह सुनिश्चित कर लिया था कि सीरिजा जीत की स्थिति में भी उनके एजेंडे को ही आगे बढ़ाए। हालांकि भीतरखाने ग्रीस का बड़ा पूंजीपति वर्ग और यूरोपीय यूनियन के फ्रांस, जर्मनी सरीखे देश सीरिजा की हार का ही प्रयास कर रहे थे। सीरिजा की जीत की आशंका में यूरो मुद्रा में भारी गिरावट दर्ज की गयी है और यूरो अपने 11 वर्षों में न्यूनतम स्तर पर जा पहुंचा। यह बात यूरोपीय यूनियन में सीरिजा की जीत से कायम हुई बेचैनी को ही दिखलाती है। 
    पर कटौती कार्यक्रमों और बदहाली से क्षुब्ध ग्रीस की जनता ने सीरिजा को जीत दिला यूरोपीय यूनियन के शासकों के मंसूबों पर हाल फिलहाल पानी फेर दिया है। अब यूरोपीय यूनियन के नेता नई सरकर से पुरानी नीतियों पर आगे बढ़ने की आशाएं जताने लगे हैं। हालांकि वे ग्रीस पर ऐसा न करने की हालत में नये सिरे से दबाव बनाने की तैयारी में जुट गये थे। 26 जनवरी को यूरो जोन के 19 वित्तमंत्रियों की बैठक का यह प्रमुख एजंेडा बनने वाला है। सीरिजा जनता से किये वायदों पर कितना आगे बढ़ेगी यह आने वाला वक्त बतायेगा। पर इन चुनावों से पूर्व उसके प्रमुख नेताओं के बयानों से स्पष्ट है कि ग्रीस की नई सरकार कुछ दिखावटी सुधारों से आगे नहीं जाना चाहेगी। वह यूरोपीय यूनियन से सांठगांठ कर अधिक से अधिक कुछ रियायतें हासिल करने का प्रयास करेगी। यह सब कुछ खुद सीरिजा के भीतर मौजूद विभिन्न वामपंथी संगठनों के आपसी समीकरणों पर निर्भर करेगा। इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि जनता की आकांक्षाओं के पूरा न होने की स्थिति में सीरिजा के ये संगठन अलग-अलग राह अपना लें और सीरिजा टूटकर बिखर जाय या विशुद्ध संशोधनवादी पार्टी में तब्दील हो जाये। 
    ग्रीस में क्रांतिकारी कम्युनिस्ट पार्टी की गैर मौजूदगी परिस्थितियों के लगातार मुकम्मल होते जाने के बावजूद क्रांति को दूर बनाये हुए है। फिर भी ग्रीस का हालिया उदाहरण यह दिखलाने के लिए पर्याप्त है कि मौजूदा संकट जहां एक ओर जनता को फासीवाद की ओर ढकेल रहा है तो दूसरी ओर जनता मार्क्सवाद के प्रति भी आकृष्ट हो रही है। भले ही अभी यह सीरिजा सरीखी पार्टियों की ओर वापसी हो पर किसी क्रांतिकारी विकल्प की मौजूदगी में जनता उसे भी अपनाने की ओर बढ़ेगी। 
    ग्रीस सरीखी परिस्थितियों की ओर लगातार जारी वैश्विक संकट एक के बाद दूसरे देशों को धकेलेगा जो अपनी बारी में क्रांतिकारी ताकतों के सामने संभावनाओं के नये द्वार खोलेगा। पूंजीवाद विरोधी क्रांतियां और समाजवाद की स्थापना तब दूर की कौड़ी नहीं निकट भविष्य की आसन्न चीजें बन जायेंगी। 

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