Monday, February 16, 2015

हरिद्वार पुलिस प्रशासन द्वारा एवरेडी मजदूरों का तीखा दमन

वर्ष-18, अंक-04 (16-28 फरवरी, 2015)
    हरिद्वार प्रशासन एवरेडी के आंदोलन को जब अपनी क्रूर उदासीनता से नहीं तोड़ पाई तो उसने बर्बर दमन का इस्तेमाल मजदूरों पर किया। महिलाओें के प्रति सामान्य सभ्यता तो दूर उसने गर्भवती महिलाओं को भी घसीटते हुए गिरफ्तार किया। सिडकुल के विभिन्न फैक्टरियों के यूनियन नेतृत्व को लक्षित कर लाठियों से पीटा। इंकलाबी मजदूर केन्द्र के प्रति भ्रम फैलाने के लिए मजदूरों में यह बात षड्यंत्रकारी तरीके से प्रचारित की गयी कि ये लोग माओवादी हैं और इनसे दूर रहो। 
    एक दिसंबर से एवरेडी प्रबंधन द्वारा गैर कानूनी तालाबंदी के खिलाफ मजदूरों का आंदोलन शुरू हुआ। इस दौरान प्रबंधन ने 14 मजदूरों को निलंबित कर दिया। 14 निलंबित मजदूरों का निलंबन वापस करवाने के लिए तालाबंदी समाप्त होने के बावजूद कंपनी में जाने के बजाय सहायक श्रम आयुक्त कार्यालय पर धरना जारी रखा। मजदूरों ने इस दौरान श्रम विभाग, प्रशासनिक अधिकारियों, देहरादून में मुख्यमंत्री समेत सभी मंत्रियों तक अपनी बात पहुंचाई। लेकिन लगभग दो माह बीत जाने के बावजूद भी मजदूरों को न्याय नहीं मिला। 

    29 जनवरी से आंदोलन में मजदूरों के परिवारों के सदस्यों ने हिस्सेदारी करनी शुरू की। 29 जनवरी को मजदूरों के परिवार के सदस्यों ने सहायक श्रम आयुक्त का घेराव किया। उन्होंने सहायक श्रमआयुक्त से पूछा कि वे अगर इतने निष्प्रभावी हैं तो मुफ्त में रोटियां तोड़ने के बजाय कोई और कामधंधा क्यों नहीं करते। सहायक श्रम आयुक्त को कोई जवाब नहीं सूझ रहा था। वे मजदूरों के पारिवारिक जनों के सामने रूआंसे हो गये और एस.डी.एम. को फोन कर अपनी जान बचाने का अनुरोध करने लगे। 
    एस.डी.एम. ने इस पर पारिवारिक सदस्यों को प्रबंधन से वार्ता के लिए उसी दिन का समय दिया। इस वार्ता में एवरेडी के मजदूरों के कहने पर इंकलाबी मजदूर केन्द्र का एक साथी भी शामिल हुआ। वार्ता शुरू होने पर एस.डी.एम. ने सबसे पहले इंकलाबी मजदूर केन्द्र के साथी से वार्ता में बैठने पर आपत्ति जताई लेकिन मजदूरों के परिवार के सदस्यों का इंकलाबी मजदूर केन्द्र के साथी से तालमेल देखकर उन्होंने फिर इसे ज्यादा मुद्दा नहीं बनाया। इस वार्ता में प्रबंधन पहली बार इतना झुका कि उसने दो माह के भीतर सभी निलंबित मजदूरों को वापस लेने का मौखिक आश्वासन दिया। मजदूरों की मांग थी कि प्रबंधन इस बात को लिखकर दे। प्रबंधन के राजी नहीं होने पर वार्ता टूट गयी। 
    अगले दिन 30 जनवरी से मजदूर अपने पारिवारिक सदस्यों के साथ फैक्टरी गेट पर धरने पर बैठ गये। पुलिस प्रशासन ने कोर्ट के स्टे आर्डर का हवाला देते हुए मजदूरों को धमकाने का प्रयास किया। लेकिन महिलाओं-बच्चों के साहस को देखकर उसकी बल प्रयोग की हिम्मत नहीं हुई। 2 फरवरी को डी.एम. की मध्यस्थता में मजदूर प्रतिनिधियों और प्रबंधन के बीच 6 घंटे लंबी वार्ता चली लेकिन प्रबंधन के अडि़यल रूख के कारण ये वार्ता भी बेनतीजा रही। 
    इस दौरान पुलिस और एल.आई.यू. के लोग लगातार प्रचार करते रहे कि इंकलाबी मजदूर केन्द्र एक माओवादी संगठन है और एवरेडी मजदूरों को उनका साथ लेकर कोई भला नहीं होगा। एस.एस.पी. ने एवरेडी के मजदूर संगठन द्वारा जारी पर्चे के बारे में कहा कि इसमें लिखी बातों के आधार पर राजद्रोह का मुकदमा लगाया जायेगा।
    जब इन सबसे भी मजदूरों की हिम्मत नहीं टूटी तो 7 जनवरी के तड़के भारी पुलिस बल एवरेडी गेट पर पहंुचा। पुलिस के एक सिपाही से जानकारी मिली कि उसे घर से बुलाया गया और बस में आधी दूरी तय करने के बाद बताया गया कि एवरेडी के मजदूरांे को उठाना है। रानीपुर थाने के एस.ओ. ऋतुराज का व्यवहार सबसे ज्यादा क्रूर था। उन्होंने महिलाओं के साथ खींचातानी की। मोबाइल से वीडियो बना रहे मजदूरों के मोबाइल तोड़ दिये। सभी मजदूरों और उनके पारिवारिक लोगों को पुलिस लाइन भेज दिया गया। पुलिस लाइन में सात मजदूरों और इंकलाबी मजदूर केन्द्र के साथी राजू को अलग रखा गया। पुलिस लाईन में राजू को विशेष तौर पर निशाना बनाते हुए पिटाई भी की गयी। 
    इस घटना से सिडकुल की तमाम कंपनियों के मजदूर आक्रोशित हुए। चार-पांच सौ की संख्या में मजदूर शिवालिक नगर चौक पर इंकट्ठा हुए। मजदूरों ने वहां से पुलिस प्रशासन के जबरदस्ती जुलूस को रोकने के प्रयास को किनारा लगाते हुए डी.एम.आवास तक जुलूस निकाला। 
    डी.एम. आवास पर जब मजदूरों ने सभा  का संचालन कर रहे एवरेडी मजदूर संघ के अध्यक्ष नवीन चंद्रा को पुलिस ने डांटना शुरू किया। अन्य कंपनियों के जिन-जिन सभा करने की कोशिश की तो मजदूर नेताओं ने विरोध किया, पुलिस ने सबको पीटा। पुलिस ने नवीन चंद्रा को सभी लोगों के सामने बुरी तरह पीटा। इंकलाबी मजदूर केन्द्र के साथी राजकिशोर जो कि भेल मजदूर ट्रेड यूनियन के अध्यक्ष भी हैं को पुलिस ने मारा-पीटा और वहां से हट जाने को धमकाया। लेकिन सारी मार पिटाई के बावजूद जब वे वहां से नहीं हटे तो पुलिस ने थक हार कर उन्हें छोड़ दिया। 
    इस लाठी-चार्ज और गिरफ्तारी के बाद से मजदूरों में भारी आक्रोश है। 8 जनवरी को सिडकुल की विभिन्न यूनियनों ने बैठक कर गिरफ्तारी और लाठी चार्ज की निंदा की। दोषी पुलिस अधिकारियों पर कड़ी कार्यवाही की मांग की और 11 जनवरी को विरोध में एक बड़ा जुलूस निकालने का फैसला किया।
    हरिद्वार पुलिस प्रशासन ने दिखा दिया कि पूंजीपतियों का साथ देने के लिए वह किस हद तक गिर सकता है। अब मजदूरों को दिखाना है कि वे न्याय पाने के लिए क्या करते हैं।                        हरिद्वार संवाददाता

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