Wednesday, September 16, 2015

मोदी सरकार और सत्ता के दो केन्द्र

वर्ष-18, अंक-18 (16-30 सितम्बर, 2015)
    सितम्बर के पहले सप्ताह में भारत सरकार के सारे मंत्री राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सामने पेश हुए। इसमें स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी शामिल थे। इन सारे मंत्रियों ने संघ के सामने अपने कार्यों का लेखा-जोखा पेश किया। यह तो पता नहीं चला कि शिक्षक दिवस के ठीक पहले संघ द्वारा आयोजित इस परीक्षा में सरकार के मंत्री पास हुए या नहीं और यदि पास हुए तो कितने अंकों से पर यह स्पष्ट है कि इसने संघ और सरकार के रिश्तों को एक बार फिर रेखांकित कर दिया। 
    भाजपाई कांग्रेस पार्टी की मनमोहन सिंह सरकार पर लगातार आरोप लगाते रहते थे कि यह सरकार सोनिया गांधी द्वारा चलायी जाती है जो कांग्रेस पार्टी की शुरूआत है। उसका कहना था कि सरकार के दो केन्द्र हैं और यह खतरनाक है।

    भाजपाईयों ने अपने यहां यह खत्म कर दिया। उनके यहां सत्ता के दो केन्द्र नहीं हैं। वहां सत्ता का केवल एक केन्द्र है और वह है नरेन्द्र मोदी। हालांकि भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह हैं पर उनकी हैसियत वही है जो बम्बईया हिन्दी फिल्म मुन्नाभाई एमबीबीएस में मुन्ना भाई के सर्किट की थी। भाजपा में बाकी नेताओं को शून्य की स्थिति में ढकेलकर मोदी ने भाजपा सरकार में दो सत्ता केन्द्र की संभावना समाप्त कर दी। उन्होंने इंदिरा गांधी वाली कांग्रेस पार्टी की स्थिति हासिल कर ली। 
    परन्तु इसका मतलब यह नहीं है कि मोदी सरकार के लिए सत्ता के दो केन्द्र का मामला समाप्त हो गया। यह मौजूद है और सर्वसत्तावादी प्रवृत्ति रखने वाले मोदी के लिए यह एक बड़ा सरदर्द है। 
    मोदी सरकार के लिए सत्ता का दूसरा केन्द्र है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। यह जगजाहिर है कि नरेन्द्र मोदी को देश की केन्द्रीय सरकार की सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठाने का काम दो ने किया- भारत के एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग ने और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने। दोनों ने ही मोदी में अपने फायदे देखे। जहां एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग ने यह देखा कि मोदी गुजरात माॅडल की तरह पूंजीपति वर्ग को लूट की हर छूट प्रदान करेंगे वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने यह देखा कि मोदी पूरे देश को ही गुजरात की तरह हिन्दुत्व के अजगरी फांस में बांध लेंगे। गुजरात की हिन्दुत्व की प्रयोगशाला से निकले सारे सूत्र वे पूरे देश पर लागू कर देंगे।
    अब दोनों मोदी से उनकी सरकार का रिपोर्ट कार्ड बारी-बारी से मांग रहे हैं। दोनों को ही लग रहा है कि मोदी सरकार उनके लिए वह नहीं कर रही है जिसकी वे उम्मीद कर रहे थे। जहां टाटा जैसे पूंजीपति वर्ग के बुजुर्ग पूंजीपतियों को समझा रहे हैं कि वे थोड़ा धैर्य रखें वहीं संघी सीधे मोदी सरकार को अपने दरबार में पेश होने के लिए आदेश दे रहा है। 
    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के रिश्तों को देखते हुए इसमें कुछ भी अजीब नहीं है। संघ के लिए भाजपा उसका एक आनुषांगिक संगठन है और उसे अपने आनुषंगिक संगठन से उसके काम काज पर सवाल पूछने को और उसे निर्देशित करने का अधिकार है। दूसरी ओर भाजपा का कर्तव्य है कि वह संघ के सामने जवाब दे। इसमें भी अजीब नहीं है कि गैर राजनीतिक होने का दावा करने वाले संघ और राजनीतिक पार्टी भाजपा के इन रिश्तों से दोनों ही इंकार करें। 
    मसला थोड़ा रोचक हो जाता है जब पूंजीवादी प्रचारतंत्र भी इस रिश्ते की असलियत जानने के बावजूद यह दिखाने को ढोंग करता है कि यह कुछ अजीब बात है और इसके भांति-भांति के विश्लेषण किये जाते हैं या स्पष्टीकरण पेश किये जाते हैं। 
    इस संघ के सामने मोदी सरकार का पेश होना उतना इन दोनों के रिश्तों की वजह से हैरतअंगेज नहीं है। यह तो होना ही चाहिए। यह इसके बावजूद कि कभी भाजपाई मनमोहन सरकार में सत्ता के दो केन्द्र की बात करते थे। 
    हैरतअंगेज बात यह है कि भूतपूर्व संघी प्रचारक और वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी, जिन्होंने भाजपा के भीतर हर नेता को शून्य स्थिति की ओर धकेल दिया है, स्वयं की सरकार को संघ के सामने पेश होने दे रहे हैं। इस सर्वसत्तावादी व्यक्ति से संघ द्वारा जवाब ले लेना इस बात को दिखाता है कि मोदी देश के पैमाने पर अभी वह हासिल नहीं कर पाये हैं जो उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते कर लिया था। यानी संघ के नियंत्रण से मुक्ति। 
    मोदी की असमर्थता का कारण यह है कि देश की समस्याएं मोदी की सपनों के उड़ान से बहुत गंभीर हैं। उन्हें चुटकियों में नहीं निपटाया जा सकता और न ही उन्हें गुजरात की तरह आंखों से ओझल किया जा सकता है। ऐसे में मोदी की स्वघोषित छवि के विपरीत उनकी वास्तविक शक्तिहीनता सामने आनी ही है। ऐसे में संघ न केवल मोदी से जवाब तलब करने का माद्दा रखेगा बल्कि मोदी की भी जरूरत बनेगी कि वे संघ का साथ लिये रहें। 
    इसलिए फिलहाल भाजपा की मोदी सरकार के लिए भी सत्ता के दो केन्द्र हैं और उनकी धींगा-मुश्ती जारी है। 

1 comment:

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