Wednesday, April 1, 2015

‘आप’ में कलहः एक और पूंजीवादी मिथक टूटा

वर्ष-18, अंक-07(01-15 अप्रैल, 2015)
    आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के पहले और बाद में जो कुछ हुआ वह यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि भारत के सभी राजनैतिक दलों की तरह ही आआपा भी उन्हीं सभी बीमारियों से ग्रस्त है जिनसे ये पार्टियां ग्रस्त हैं। पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव, व्यक्तिपूजा, गुटबाजी, सिद्धान्तविहीनता, अवसरवाद और सबसे बढ़कर सत्ता पाने के लिए हर हथकंडे को आजमाया गया।
 
    आम आदमी पार्टी ने भारतीय राजनीति में कई लोगों को पहले पहल खूब आकर्षित किया। कई थके-हारे वामपंथियों से लेकर बिना किसी ठोस सिद्धान्त या योजना के चलने वाले स्वनाम धन्य बुद्धिजीवी इसमें शामिल थे। शासक वर्ग ने भी इस पार्टी को पालने-पोसने में कोई कसर नहीं छोड़ी हुयी थी। व्यक्तिगत तौर पर कई इसके सदस्य बने और कईयों ने इसके लिए अपने खजाने के मुंह खोल दिये थे। हालिया दिल्ली चुनाव में मिली अभूतपूर्व सफलता ने आम आदमी पार्टी और उसके मुख्य नेता अरविन्द केजरीवाल को ऐसी ऊंचाई पर पहुंचा दिया था जहां से उनका पतन अवश्यम्भावी दिखायी दे रहा था। परन्तु यह सब इतनी जल्दी हो जायेगा, यह इनकी चुनावी सफलता की तरह अप्रत्याशित था। 
    आम आदमी पार्टी के कूचे से बड़े बेआबरू होकर निकले उच्चतम न्यायालय के वकील प्रशान्त भूषण और बुद्धिजीवी योगेन्द्र यादव ने अपने साथ हुये दुव्र्यवहार के जो किस्से बताये, वे अन्य सभी पार्टियों के आम किस्से हैं। पूंजीवादी राजनैतिक दलों में इसके इतर और हो भी क्या सकता है। वे उस पर्दाफाश के वायस बन गये जो अपने जन्म के समय इस पार्टी ने वैकल्पिक राजनीति के नाम पर ओढ़ा हुआ था। ये नंगी सच्चाईयां देखकर हो सकता है कुछ मध्यमवर्गीय और मायूस हों, परन्तु मजदूर वर्ग ऐसे मजमेबाजों के मजमे से जरूरी सबक निकाल कर आगे बढ़ेगा और उस कार्य को- अपनी मुक्ति के काम को स्वयं अपने हाथ में लेगा जो उसका ही है। 
    अरविन्द केजरीवाल ने जो वक्तव्य अपने पूर्व साथियों के बारे में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पहले दिये वे यह बतलाने को पर्याप्त हैं कि आज का पूंजीवाद ऐसे ही नेता और नायक पैदा कर सकता है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसके एक नमूने हैं तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल दूसरे नमूने हैं। 
    दिल्ली और देश की जनता अपने को छला या ठगा महसूस करे इससे तब तक कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है जब तक वह उस जमीन को खत्म करने को आगे नहीं आती है जहां से ठग और छलिया पैदा होते हैं। यह सड़ते-गलते पूंजीवाद की जमीन है। इसकी सड़न तब तक बढ़ती रहेगी जब तक यह मौजूद रहेगा। 

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