Wednesday, April 1, 2015

यमन पर अमेरिकी साम्राज्यवाद की शह पर साऊदी अरब का हमला

वर्ष-18, अंक-07(01-15 अप्रैल, 2015)
    अमेरिकी साम्राज्यवाद के पूर्ण समर्थन से साऊदी अरब ने यमन पर भीषण हवाई हमले 25 मार्च की रात से शुरू कर दिये। इन हमलों में भारी पैमाने पर जान-माल की हानि हुयी है। इन हवाई हमलों के साथ साऊदी अरब बड़े जमीनी सैन्य हमले की तैयारी कर रहा है ताकि अपनी पिट्ठू सरकार को पुनः स्थापित कर सके। भारत सहित विभिन्न देशों के अप्रवासी मजदूर और अन्य नागरिक वहां फंसे हुए हैं। 
    यमन वर्ष 2011 के अरब जनउभार के समय से ही राजनैतिक अस्थिरता का शिकार है। ध्यान रहे जनवरी 2011 में गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार के साथ अब्दुल्ला सालेह की तानाशाही से आजिज आ गये यमन वासियों ने व्यापक जनांदोलन किया था। अब्दुल्ला सालेह ने यमन के संविधान में परिवर्तन करके अपने को आजीवन राष्ट्रपति और अपने पुत्र अहमद सालेह को उत्तराधिकारी के रूप में घोषित करने का प्रयास किया था। सालेह के इन कदमों ने उस आक्रोश और क्षोभ को जन्म दिया था जिसके कारण उन्हें सत्ता छोड़नी पड़ी और उन्होंने अपने संरक्षक साऊदी अरब में अंततः शरण ले ली। 

    सालेह के पतन के बाद कोई सही क्रांतिकारी दिशा, नेतृत्व व संगठन के न होने के कारण धार्मिक वैमनस्य और आतंकवाद तेजी से फैला। यमन में शिया और सुन्नी मत को मानने वाले विभिन्न नृजातीय समूह हैं। मोटे तौर पर यहां की आबादी में 60 फीसदी सुन्नी और 40 फीसदी शिया हैं। स्थापित व्यवस्था के खिलाफ फूटे जनाक्रोश को शीघ्र ही शासक वर्ग और आस-पास की शेखशाहियों ने साम्प्रदायिक रंग दे दिया। और इसी के साथ यहां साम्प्रदायिक तनाव, संघर्ष और आतंकवाद अपनी जड़ जमाने लगा। 
    यमन में अलकायदा और इस्लामिक स्टेट का प्रभाव काफी है। अलकायदा और इस्लामिक स्टेट के जन्मदाता और पोषक अरब देशों की शेखशाहियां रही हैं। वे शिया हूती विद्रोहियों के बढ़ते सैन्य प्रभाव को कमतर करने के लिए पहले अलकायदा और बाद के दिनों में इस्लामिक स्टेट का इस्तेमाल करती रही हंै। इनके जरिये जब वे अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पायीं तो उन्होंने सीधे हवाई और जमीनी हमलेे का फैसला ले लिया।
    शिया हूती विद्रोहियों को ईरान की शिया सरकार का समर्थन हासिल है। हालांकि ईरान की सरकार और हूती इस आरोप से वैसे ही इंकार करते रहे हैं जैसे इस्लामिक स्टेट को जन्म और उसकी परवरिश करने का आरोप शेखशाहियां और अमेरिकी साम्राज्यवाद पर लगने पर वे करते हैं। 
    यमन में हूती विद्रोहियों को खत्म करने के लिए साऊदी अरब ने कुवैत, बहरीन, कतर, संयुक्त अरब अमीरात, जार्डन, मिस्र, सूडान और पाकिस्तान के साथ एक मोर्चा बनाया है। इस मोर्चे को अमेरिका सहित पश्चिम साम्राज्यवादियों का सहयोग हासिल है। 
    अमेरिकी साम्राज्यवादी साऊदी अरब के साथ मिलकर वर्ष 2011 से ही हूती विद्रोहियों और अलकायदा से निपटने के नाम पर भीषण हवाई हमलों के साथ ड्रोन मिसाइलों से हमले करते रहे हैं। इन हमलों में सैकड़ों की संख्या में आम नागरिक मारे गये हैं। परन्तु इस सबके बावजूद यमन के उत्तरी व पश्चिमी हिस्से में हूती विद्रोहियों की पकड़ मजबूत होती चली गयी। हूती विद्रोहियों ने अलकायदा को पीछे हटने और देश की राजधानी सना को खाली करने को बाध्य कर दिया था। 
    2014 में एक एकता सरकार (यूनिटी गवर्नमेन्ट) की स्थापना हूती विद्रोहियों, यमन के शासक वर्ग और विभिन्न धड़ों के बीच हुए समझौते के फलस्वरूप हुयी। राजनैतिक अस्थिरता संविधान और यमन के संघीय ढांचे को लेकर बढ़ती चली गयी। साऊदी अरब और शेखशाहियां ऐसी कोई सरकार अपने पिछवाड़े में नहीं चाहते थे, जिस पर ईरान का प्रभाव हो। उन्होंने यमन में हूती विद्रोहियों को अलग-थलग करने का प्रयास किया परन्तु उसमें वे असफल रहे। अंततः अपनी बढ़ती ताकत और आधार के दम पर हूती विद्रोहियों ने मार्च 2015 में यमन की राजधानी सहित प्रमुख बंदरगाह अदन में कब्जा कर लिया। 
    यमन की भू-राजनैतिक स्थिति ऐसी है कि अमेरिकी साम्राज्यवादी और उसके पिट्ठू किसी भी कीमत पर यमन को अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहते हैं। यमन लाल सागर और अरब सागर के संधि पर स्थित अरब प्रायद्वीप का साऊदी अरब के बाद का दूसरा बड़ा देश है। दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण समुद्री व्यापारिक मार्ग पर स्थित होने के कारण यमन का अत्यधिक महत्व है। यमन के पास तेल सहित अन्य प्राकृतिक सम्पदा भी मौजूद है जिस पर अमेरिकी साम्राज्यवादी सहित शेख शाहियों की निगाह है। 
    इस वक्त यमन गृहयुद्ध, साम्राज्यवादी व क्षेत्रीय शक्तियों के हस्तक्षेप और आतंकवाद से जूझ रहा है। जहां से उसका निकलना फिलवक्त बहुत मुश्किल है।   

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