Wednesday, April 1, 2015

मन की बात, जब मन सौ प्रतिशत बेईमान हो

वर्ष-18, अंक-07(01-15 अप्रैल, 2015) 
संघी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर महीने देश की जनता से अपने मन की बात करते हैं। उन्हें इस बात का गुमान है कि देश की जनता उनके मन की बात सुनने के लिए बेताब रहती है हालांकि इस जनता में से केवल एक तिहाई ने ही उन्हें चुनावों में वोट दिया था। 
    इस 22 मार्च को मोदी ने एक बार फिर अपने मन की बात कही। इस बार उन्होंने देश के किसानों को संबोधित किया। किसानों को संबोधित करने से पहले मोदी इस दृढ़ नतीजे पर पहुंच चुके थे कि किसान बेवकूफ हैं। वे अपना हित नहीं समझते, खासकर अपनी जमीन के मामले में। इसीलिए ये बेवकूफ किसान कांग्रेस इत्यादि धूर्त बेईमान पार्टियों के बहकावे में आकर यह नहीं देख पा रहे हैं कि मोदी सरकार किसानों का भला करने पर तुली है। ऐसे में उन्होंने बेवकूफ किसानों को समझाने की ठानी। 

    मोदी ने किसानों को बताया कि उनकी सरकार 2013 में बने भूमि अधिग्रहण कानून में जो परिवर्तन कर रही है, देश के विकास के लिए जरूरी है और किसानों के हित में है। इसमें पूंजीपतियों और खासकर लैण्ड माफिया व बिल्डरों का हित तो बिल्कुल भी नहीं है। किसानों को चार गुना मुआवजा मिलेगा। उनके बच्चों को रोजगार मिलेगा। 2013 वाला जो कानून बना था वह किसानों के पक्ष में नहीं था। अब उसे किसानों के मनमाफिक बनाया जा रहा है। 
    सबसे पहले तो चार गुने मुआवजे की बात। यह प्रावधान 2013 के कानून में ही था और जिन 13 और क्षेत्रों में इसे लागू करने की बात की जा रही है। उसका प्रावधान भी उपरोक्त कानून में ही था। ऐसे में मोदी जो दावा कर रहे हैं, वह सफेद झूठ के सिवा कुछ नहीं है।
    महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस चार गुने मुआवजे की बात की जा रही है। वह ‘सर्किल रेट’ पर आधारित है। इसका मतलब यह है कि किसी जमीन में पैदा होने वाली फसल के हिसाब से जो जमीन का दाम बनता है उसका चार गुना। मसलन यदि किसी इलाके में साल भर में एक एकड़ खेत से बीस हजार रुपये की आय होती है तो दस प्रतिशत ब्याज पर मान लेने पर जमीन की कीमत दो लाख बैठती है और मुआवजा प्रति एकड़ 8 लाख रुपया मिलेगा। है न कमाल की बात। इसी जमीन को फिर बिल्डर दस बीस, पचास यहां तक कि सौ करोड़ रुपये में बेचंेगे। उदाहरण के लिए ग्रेटर नोएडा अथारिटी ने किसानों की जमीनें करीब 34 लाख प्रति एकड़ में खरीदी और फिर बिल्डरों को 14 करोड रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से बेचीं। बिल्डरों ने फिर इसे दस गुना दाम में बेचा। आज गे्रटर नाएडा के किसान इसके लिए संघर्षरत हैं कि उन्हें जमीन की आसमान छूती कीमत का भी हिस्सा मिले। लेकिन मोदी के मन की बात में यह बात सिरे से गायब थी।
    इसी तरह मोदी ने सफेद झूठ बोला कि निजी पूंजीपतियों के हित में किसानों की जमीनें छीनी नहीं जायेंगी। वास्तव में यह सारी कवायद इसीलिए है। इसीलिए इस संसोधन में ऐसे कानूनी नुक्ते डाले गये हैं। जिससे एक छोटे से छेद से पूरा हाथी निकल जाये।
    मोदी चूंकि किसानों यानी जमीन के मालिकों से बात कर रहे थे इसलिए उन्होंने उन लोगों के बारे में कुछ भी नहीं कहा जो गांवों में रहते तो हैं पर जमीन के मालिक नहीं होते। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से यह आबादी करीब आधी है। इसी के साथ एक बड़ी आबादी नाम मात्र की जमीन की मालिक है। वास्तव में किसी गांव में दस-बीस प्रतिशत लोग ही ठीक-ठाक जमीन के मालिक होते हैं। ऐसे में बाकी आबादी को उजड़ने का क्या मुआवजा मिलेगा? कुछ नहीं। मोदी सरकार ने 2013 के ‘सामाजिक प्रभाव’ प्रावधान को हटा दिया है। गांव की यह गरीब आबादी पहले ही मजदूरी कर जीवन-बसर करती है और मोदी को इससे कोई परेशानी नहीं कि ये अब शहरों की झुग्गी-बस्तियों में रहकर शहर में मजदूरी करेंगे। वे तो बस मालिक किसानों को शहरों की झुग्गी-बस्तियों से बचाने का आश्वासन देते हैं।
    यह सब है मोदी के मन की बात उस मन की जो गहरे तक काला है तथा पूरी तरह बेईमान है। यह वह मन है जो पूंजीपतियों के हाथों कब का बेचा जा चुका है। यह कुटिल मन किसी भी चाणक्य की कल्पना से भी ज्यादा कुटिल है।

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