वर्ष-18, अंक-04 (16-28 फरवरी, 2015)
दिल्ली में आम आदमी पार्टी को भारी बहुमत मिल गया। सपनों के सौदागर ने सपनों का ऐसा बाजार लगाया गया कि हर कोई दिल्ली में ‘झाडू’ का
खरीददार बन गया। इससे पहले लोकसभा चुनावों में मोदी ने आम जन को सपने बेचे थे और उनके सपनों की बिक्री खूब हुई थी। पर इस बार अरविन्द केजरीवाल जैसे तमाम लोग जिन्होंने अपनी एनजीओ की दुकान चलाने से ज्यादा ध्यान सपनों की बिक्री पर लगाया था, उनके सपनों की बिक्री खूब हुयी। सपनों की सौदागरी में अरविन्द केजरीवाल ने मोदी को पछाड़ दिया।
एक के खून में व्यापार है (मोदी द्वारा जापान में दिये गये भाषण के अंश से) और दूसरा जाति से व्यापारी है।(केजरीवाल द्वारा दिल्ली चुनाव के दौरान मोदी के आरोप के जबाव से) की व्यापारिक प्रतिद्वन्द्विता (सपनों के बेचने की) में जनता छली जा रही है। लोकसभा चुनाव से पहले गुजरात दंगों के रचयिता ने लोकलुभावन वादों, नारों और झूठी लफ्फाजियों के दम पर देश की जनता को ठगा था। चुनाव जीतने के लिए जाति, धर्म व क्षेत्र की विभाजनकारी राजनीति का सहारा लिया था। इससे भी बढ़कर कारपोरेट जगत के हीरो बनकर पूरे मीडिया का अपहरण कर लिया गया था। कांग्रेस के मुकाबले अपनी दीनहीन स्थिति का मुजाहिरा करके जनता से सहानुभूति हासिल की गयी थी।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी को भारी बहुमत मिल गया। सपनों के सौदागर ने सपनों का ऐसा बाजार लगाया गया कि हर कोई दिल्ली में ‘झाडू’ का

एक के खून में व्यापार है (मोदी द्वारा जापान में दिये गये भाषण के अंश से) और दूसरा जाति से व्यापारी है।(केजरीवाल द्वारा दिल्ली चुनाव के दौरान मोदी के आरोप के जबाव से) की व्यापारिक प्रतिद्वन्द्विता (सपनों के बेचने की) में जनता छली जा रही है। लोकसभा चुनाव से पहले गुजरात दंगों के रचयिता ने लोकलुभावन वादों, नारों और झूठी लफ्फाजियों के दम पर देश की जनता को ठगा था। चुनाव जीतने के लिए जाति, धर्म व क्षेत्र की विभाजनकारी राजनीति का सहारा लिया था। इससे भी बढ़कर कारपोरेट जगत के हीरो बनकर पूरे मीडिया का अपहरण कर लिया गया था। कांग्रेस के मुकाबले अपनी दीनहीन स्थिति का मुजाहिरा करके जनता से सहानुभूति हासिल की गयी थी।